हमर ठोरक पपड़ी पर जे एकटा मर्म सुखा रहल अछि
हमर जिह्वा पर जे धूरा उड़ि रहल अछि
हमर सोनितक धार सँ जे धधरा उठि रहल अछि
हमर देहक शंख सँ जे समुद्रक आवाज आबि रहल अछि
हमर आत्माक अंतरिक्ष मे जे चिड़ै-चुनमुनी कलरव क’ रहल अछि
हमर स्मृतिक गाछ पर जे झिमिर-झिमिर बरखा भ’ रहल अछि
तकरा सभक चोट आ खोंच केँ
टीस आ मोंच केँ
रूप आ रंग केँ
स्वर आ गंध केँ
कोना पानक एकटा बीड़ा बनाक’
हम अहाँक आगू राखि दी आ कही-
लिअ’ ग्रहण करू
ई थिक अहाँक प्रति हमर प्रेम…
जखन कि हमरा बूझलए
जे हमर प्रेम
गुड़ियाम मे बान्हल एक टा पियासल बरद अछि
जे खाली बाल्टी केँ देखि-देखिक’ भरि राति हुकरैत अछि
हमर प्रेम अछि
छिट्टा सँ झाँपल एक टा छागर
जे बन्द दुनिया सँ बहरयबाक बेर-बेर चेष्टा करैत अछि
हमर प्रेम धूरा-गर्दा मे जनमल एक टा टुग्गर चिलका अछि
जे दीने-देखार हेरा गेल अछि
बीच बाजार मे
तखन अहीं कहू
कोना हम अपन आत्माक फोका केँ
एक टा मृदुल भंगिमाक संग अहाँक सम्मुख तस्तरी मे राखि दी
आ कही-
लिअ’ ग्रहण करू…
हमर प्रेम जँ किछु अछि तँ एक टा फूजल केबाड़
हमर प्रेम जँ किछु अछि तँ एक टा कातर पुकार
कि आउ
अइ दुनियाक सभ सँ कोमल आ सभ सँ धरगर चीज बनिक’
आबि जाउ
अहाँक स्वागत मे
हमरा ठोर सँ ल’क’ अहाँक ओसार धरि जे ओछाओल अछि
ओ कोनो कालीन नहि
अहाँक तरबा लेल व्यग्र
खून सँ छलछ्ल करैत हमर ह्रदय अछि
आ हमर हड्डीक प्राचीन अंधकार मे
ओसक एक टा बुन्न सन कोमल
अनेक युग सँ अहाँक बाट ताकि रहल अछि हमर प्राण…
हमर प्राण अछि अहाँक आघात लेल आतुर
अहाँक आघात एहि जीवनक एक मात्र त्राण
bah bahut dinuka bad ahank kavita padhlahu, baD nik lagal
ReplyDeleteतखन अहीं कहू
ReplyDeleteकोना हम अपन आत्माक फोका केँ
एक टा मृदुल भंगिमाक संग अहाँक सम्मुख तस्तरी मे राखि दी
आ कही-
लिअ’ ग्रहण करू
bad sundar
आ हमर हड्डीक प्राचीन अंधकार मे
ReplyDeleteओसक एक टा बुन्न सन कोमल
अनेक युग सँ अहाँक बाट ताकि रहल अछि हमर प्राण…
हमर प्राण अछि अहाँक आघात लेल आतुर
अहाँक आघात एहि जीवनक एक मात्र त्राण
ahank agila padyak pratiksha me
bad nik kavita
ReplyDeletedhanyavad..dhanyavad..dhanyavad
ReplyDeleteहमर ठोरक पपड़ी पर जे एकटा मर्म सुखा रहल अछि
ReplyDeleteहमर जिह्वा पर जे धूरा उड़ि रहल अछि
हमर सोनितक धार सँ जे धधरा उठि रहल अछि
हमर देहक शंख सँ जे समुद्रक आवाज आबि रहल अछि
हमर आत्माक अंतरिक्ष मे जे चिड़ै-चुनमुनी कलरव क’ रहल अछि
हमर स्मृतिक गाछ पर जे झिमिर-झिमिर बरखा भ’ रहल अछि
तकरा सभक चोट आ खोंच केँ
टीस आ मोंच केँ
रूप आ रंग केँ
स्वर आ गंध केँ
कोना पानक एकटा बीड़ा बनाक’
हम अहाँक आगू राखि दी आ कही-
bhavpravn kavita
bah.bah
ReplyDeleteaah nikali delahu
hriday samrat chhi ahan
ReplyDeletevidyapatik ke patiya lay jayat re mon pari delahu virhak kavi ji
ReplyDeletebah bhaiya, bad nik lagal kavita,
ReplyDeletesabh line guru gambhir achhi
bah bhai bad nik
ReplyDeleteadbhut prem git
ReplyDeletesvagat achhi,
ReplyDeleteehina ras barsabait rahu
bad nik krishnamohan ji,
ReplyDeleteaar rachnak pratiksha r
poora kavita eke sans me padha gel,
ReplyDeletekavitak pathak kiye kam hoyat je ehen rachna bhetat, takhan
aah..vah......
ReplyDeleteehina likhait rahu dhurjhar
ReplyDeleteआत्मीय ओ ममत्वपूर्ण टिप्पणी लेल बहुत-बहुत आभार!हमरा त लगैत रहय जे कविता प्रायः केओ नै
ReplyDeleteपढैत अछि।
हमर आर कविता केँ सार्थक क'र'लेल कृपया हमर ब्लॉग-देसिल बयना- पर आउ। पता अछि-http://paraati.blogspot.com
krishnamohan Jhajee bahut-bahut dhanyabad, ber-ber padhlahu muda tripti nahi bhel pher se padhwak mon karait achhi. Asa karait chhi je ahina apan kavita se pathak ke khush karait rahab, dhanyabad.
ReplyDeleteकविता बड्ड नीक लागल , हमहूँ बेर-बेर पढ़ि रहल छी।
ReplyDeleteहमर ठोरक पपड़ी पर जे एकटा मर्म सुखा रहल अछि
ReplyDeleteहमर जिह्वा पर जे धूरा उड़ि रहल अछि
हमर सोनितक धार सँ जे धधरा उठि रहल अछि
हमर देहक शंख सँ जे समुद्रक आवाज आबि रहल अछि
हमर आत्माक अंतरिक्ष मे जे चिड़ै-चुनमुनी कलरव क’ रहल अछि
bahut- bahut dhanywad
jha ji
Aasha achhi ahina likhal karab ,
bah bhai
ReplyDeleteअहांक आगमनसं ई ब्लॊग सुन्दर भए गेल।
ReplyDeletehamar monak gap ahank kalam se niklal dekhi mon tript bhel
ReplyDelete