भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Wednesday, April 15, 2009
कथा-कनियाँ-पुतरा सुभाषचन्द्र यादव
जेना टांग छानै छै, तहिना ऊ लड़की हमर पएर पाँज मे धऽ लेलक आ बादुर जकाँ लटैक गेल। ओकर हालत देख ममता लागल। ट्रेनक ओइ डिब्बा मे ठाढ़ भेल-भेल लड़की थाइक कय चूर भऽ गेल रहै। कनियें काल पहिने नीचे मे कहुना बैठल आ बैठलो नै गेलै तऽ लटैक गेल ।
डिब्बा मे पएर रोपै के जगह नै छै। लोग रेड़ कय चढ़ै-ए, रेड़ कय उतरै-ए । धीया-पूता हवा लय औनाइ छै, पाइन लय कानै छै। सबहक जी व्याकुल छै। लोग छटपटा रहल-अय।
हम अपने घंटो दू घंटा सऽ ठाढ़ रही । ठाढ़ भेल-भेल पएर मे दरद हुअय लागल। मन करय लुद सिन बैठ जाइ । तखैनिये दूटा सीट खाली भेलै, जइ पर तीन गोटय बैठल । तेसर हम रही जे बैठब की, बस कनेटा पोन रोपलौं। ऊ लड़की ससैर कय हमरा लग चैल आयल । पहिने ठाढ़ रहल, फेर बैठ गेल । फेर बैठले-बैठल हमर टांगमे लटैक गेल । जखैन ऊ ठाढ़ रहय तऽ बापक बाँहि मे लटकल रहय । ओकरा हम बड़ी काल लटकल देखने रहिऐ । ओकर बाप अखैनियों ठाढ़े छै। छोट बहीन आ भाय ओकरे बगल मे नीचे मे बैठल औंघा रहल छै ।
ऊ जे टांग छानने ऐछ, से हमरा बिदागरी जकाँ लाइग रहल-अय । जाइ काल बेटी जेना बापक टांग छाइन लै छै, तेहने सन । ने ऊ कानै-अय, ने हम कानै छी । लेकिन ओकर कष्ट, ओकर असहाय अवस्था उदास कऽ रहल-अय । हम निश्चल-निस्पंद बैठल छी । होइए हमर सुगबुगी सऽ ओकर बिसबास, ओकर असरा कतौ छिना नै जाय । हाथ ससैर जाइ छै तऽ ऊ फेर ठीक सँ टांग पकैड़ लै अय ।
लड़की दुबर-पातर आ पोरगर छै । हाथ मे घड़ी । प्लास्टिकक झोरा मे राखल मोबाइल । लागै छै नौ-दस सालक रहय । मगर कहलक जे बारह साल के ऐछ । सतमा मे पढ़ै-अय आ ममिऔत भाइक बियाह मे जा रहल-अय ।
बेर-बेर जे हाथ ससैर जाइत रहै से आब ऊ हमर ठेंगहुन पर मूड़ी राइख देलक-अय। जेना हम ओकर माय होइ अइ । ओकर माय संग मे नै छै । कतय छै ओकर माय? जकर कनहा पर, पीठ पर, जाँघ पर कतौ ऊ मूड़ी राइख सकैत रहय । हम ओकर माथ पर हाथ देलिऐ । ऊ और निचेन भऽ गेल जेना ।
एक बेर गाड़ीक धक्का सऽ ऊ ससैर गेल; सोझ भेल आ ऑंइख खोललक। एक गोटय कहलकै- दादा कय कसि कय पकड़ने रह ।
अंतिम टीशन आइब रहल छै । सब उतरै लय सुरफुरा लागल-अय। अपन-अपन जुत्ता-चप्पल, कच्चा-बच्चा आ सामान कय लोग ओरियाबय लागल-अय । राइत बहुत भऽ गेल छै। सब कय अपन-अपन जगह पर जायके चिन्ता छै। बहुत गोटय ठाढ़ भऽ गेल ऐछ । ऊ लड़कियो। हमहूँ ठाढ़ भऽ कऽ अपन झोरा उतारै छी । तखनियें नेबो सन कोनो कड़गर चीज बाँहि सऽ टकरायल। बुझा गेल ई लड़कीक छाती छिऐ । हमर बाँहि कने काल ओइ लड़कीक छाती सऽ सटल रहल। ओइ स्पर्श सऽ लड़की निर्विकार छल; जेना ऊ ककरो आन संगे नै, बाप-दादा या भाय-बहीन सऽ सटल हो ।
ओकर जोबन फूइट रहल छै । ओकरा दिस ताकैत हम कल्पना कऽ रहल छी। अइ लड़कीक अनमोल जोबनक की हेतै ? सीता बनत की दरोपदी ? ओकरा के बचेतै ? हमरा राबन आ दुरजोधनक आशंका घेरने जा रहल ऐछ ।
टीशन आइब गेलै। गाड़ी ठमैक रहल छै । लड़की हमरा देख बिहुँसै—अय; जेना रुखसत माइंग रहल हो । ई केहन रोकसदी ऐछ! ने ऊ कानै छै, ने हम कानै छी । ऊ हँसै-अय, हमहँ हँसै छी। लेकिन हमर हॅसी मे उदासी अय ।
6 comments:
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subhash jik kono javab nahi.
ReplyDeleteant te hriday hila delak
ReplyDeletekatha bad nik lagal.
ReplyDeletekatha manovaigyanik vishleshnak udaharan
ReplyDeleteबहुत नीक कथा
ReplyDeletekatha hridaysparshi
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