भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Saturday, April 04, 2009
विदेह २८ म अंक १५ फरबरी २००९ (वर्ष २ मास १४ अंक २८)part-i
एहि अंकमे विशेष:-
भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (आगाँ)
एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कारबार २. मरीचका मरीचका- कुमार मनोज कश्यप (कथा)
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (आगाँ)
२.३. की नाम राखी एहि कथाक-गजेन्द्र ठाकुर
२.४. जितेन्द्र झा- रिपोर्ताज
२.५. विवेचना:केदारनाथ चौधरीक उपन्यास: चमेली रानी आ माहुर:- गजेन्द्र ठाकुर
३.पद्य
३.१. निमिष झा बुद्ध आ आतंक
३.२.ज्योति- विद्याधन
३.३. पंकज पराशर - रावलपिंडी
४. मिथिला कला-संगीत- हृदयनारायण झा
५. बालानां कृते-मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
६. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
7. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
7.1.Jyoti's Poem
7.2.The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( तिरहुता आ देवनागरी दुनू लिपिमे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Tirhuta and Devanagari versions both ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक तिरहुता आ देवनागरी दुनू रूपमे
Videha e journal's all old issues in Tirhuta and Devanagari versions
१.संपादकीय
मैथिलीक पुरोधा जयकान्त मिश्र (1922-2009) क 3 फरबरी 2009 केँ सात बजे साँझमे निधन भ' गेलन्हि।
मैथिली साहित्यक एकटा बड़ पैघ विद्वान डॉ. जयकांत मिश्र 1982 ई. मे इलाहाबाद विश्वविद्यालयक अंग्रेजी आ आधुनिक यूरोपियन भाषा विभागक प्रोफेसर आ हेड पद सँ सेवा निवृत्त भेल छलाह। तकरा बाद ओ चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालयमे भाषा आ समाज विज्ञानक डीन रूपमे कार्य कएलन्हि।
स्व. मिश्र अखिल भारतीय मैथिली साहित्य समिति, इलाहाबादक अध्यक्ष, गंगानाथ रिसर्च इंस्टीट्यूट, इलाहाबादक अवैतनिक सचिव आ सम्पादक, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागक प्रबन्ध विभागक संयोजक आ साहित्य अकादमी, नई दिल्लीक मैथिली प्रतिनिधि आ भाषा सम्पादक रहल छलाह।
मैथिली साहित्यक इतिहास, फोक लिटेरेचर ऑफ मिथिला, कीर्तनिया ड्रामा सभक क्रिटिकल एडीशन, लेक्चर्स ऑन थॉमस हार्डी, लेक्चर्स ऑन फोर पोएट्स आ द कॉम्प्लेक्स स्टाइल इन एंगलिश पोएट्री हिनक लिखित किछु ग्रंथ अछि।
हिनकर वृहत मैथिली शब्द कोष मात्र दू खण्ड प्रकाशित भए सकल, जाहिमे देवनागरीक संग मिथिलाक्षर आ फोनेटिक अंग्रेजीमे सेहो मैथिली शब्दक नाम रहए। ई दुनू खण्ड मैथिली शब्दकोष संकलक लोकनिक लेल सर्वदा प्रेरणास्पद रहत।
विदेह डाटाबेस आधार पर सोलह खण्डमे गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झाक मैथिली अंग्रेजी शब्दकोष जाहिमे मिथिलाक्षर आ अंतर्राष्ट्रीय फोनेटिक रोमन आ देवनागरीमे शब्द आ शब्दार्थ देल गेल अछि प्रेसमे अछि आ एहि मासमे ओकर पहिल खण्ड प्रकाशित भए जाएत। ई पोथी दीनबन्धु झा, जयकांत मिश्र आ गोविन्द झाकेँ समर्पित कएल जा रहल अछि।
स्व. जयकांत मिश्रकेँ मैथिल आर मिथिला परिवार दिससँ श्रद्धांजलि।
एहि घटनापर मैथिली भाषा-साहित्यक प्रसिद्ध समीक्षक प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह जीक उद्गार-
" डॉ. जयकांत मिश्रक मृत्यु मैथिलीक लेल एकटा अपूरणीय क्षति अछि। मैथिलीक लेल हिनकर सेवाक कोनो जोड़ नहि अछि, ग्रियर्सनक बाद ई एकमात्र एहन मैथिली प्रेमी रहथि जे मैथिलीकेँ विश्व-स्तर तक अनलन्हि आ विश्वक सोझाँ अनलन्हि।"
एहि घटनापर मैथिली भाषा-साहित्यक प्रसिद्ध कवि-कथाकार डॉ. गंगेश गुंजन जीक उद्गार-
"जयकांत बाबूक निधन बहुत सांघातिक सूचना। समस्त मैथिल, मिथिला आ मिथिलांचल लेल। किछु कहल सम्भव नहि भ' रहल अछि....।"
डॊ. रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” जीकेँ नेपालक एकमात्र सरकारी प्रकाशन संस्था “साझा प्रकाशन”क चेयरमैन नियुक्त कएल गेल छन्हि। साझा प्रकाशनक ४५ बरखक इतिहासमे ई पहिल बेर भेल अछि जे कोनो मधेसीकेँ ई सम्मान भेटल छन्हि। भ्रमर जीक कार्यभार सम्हारिते विद्यापतिक फोटो प्रकाशित कएल गेल अछि आ आगाँ नेपालीक लेल मात्र काज केनिहार एहि संस्थासँ मैथिलीमे व्याकरण, शब्दकोष, बालकथा, कथासंग्रह आदि प्रकाशित कएल जएबाक योजना अछि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० जनवरी २००९) ७३ देशक ७११ ठामसँ १,४६,१६१ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कारबार २. मरीचका मरीचका- कुमार मनोज कश्यप (कथा)
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (आगाँ)
२.३. की नाम राखी एहि कथाक-गजेन्द्र ठाकुर
२.४. जितेन्द्र झा- रिपोर्ताज
२.५. विवेचना:केदारनाथ चौधरीक उपन्यास: चमेली रानी आ माहुर:- गजेन्द्र ठाकुर
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कारबार २. मरीचका मरीचका- कुमार मनोज कश्यप (कथा)
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
कारबार
ओ सभ अचानक सड़क पर भेटि गेल छलाह । हम अपन होटल घुरैत रही, तखने हुनका सभ पर नजरि गेल । ओ सभ चारि गोटय छलाह । दू गोटय केँ हम चिन्हैत रही । ओ दुनू हमर परिचित रहथि । हुनका दुनू केँ एतेक दिनक बाद देखि कऽ हमरा आश्चर्य आ प्रसन्नता भेल। वर्मा सँ तऽ घनिष्ठता रहय, मुदा दोसर नवयुवक सँ मात्र परिचय ।
हम वर्मा सँ पुछलिऐन—कहू-कहू , कुशल कि ने ?
वर्मा हमर प्रश्नहक कोनो जवाब नहि देलथि । कहलनि — अहाँ बढ़िया मौका पर भेटल छी । आउ, चलै छी।
हम पुछलिऐन – कत्तऽ ?
तऽ वर्मा कहलनि — चलू ने !
फेर डेग बढ़बैत कहलनि –हिनका सँ परिचय करू । ई छथि मिस्टर सिन्हा ।
आ हिनका तऽ अहाँ जनिते हेबनि ।
हम मिस्टर सिन्हा सँ हाथ मिलबैत ओहि चारिम व्यक्तिक बारेमे सोचय लगलहुँ जे एकरा सँ कहिया आ कतय भेंट भेल छल; मुदा किछु मोन नहि पड़ल ।
हम सभ फुटपाथ पर चलय लगलहुँ । हम छगुन्ता मे पड़ल ई जनबाक लेल व्यग्र छलहुँ जे हम सभ आखिर कतय जा रहल छी । हमर व्यग्रता जल्दिए खतम भऽ गेल । कनेक आगाँ बढ़ल रही कि देखलहुँ ओ सभ बार दिस घुमि गेल छथि । बारक गेट पर दरबान ठाढ़ छल आ भीतर जाइबला हरेक आदमीकेँ सलाम ठोकैत छल । ओकर सलामी हमरा अवढंगाह बुझायल । ओ बहुत जोरसँ सलाम ठोकैत छल ।
बार एयरकंडीशंड छलैक । भीतर घुसिते शीतल बुझायल । पूरा हॉल मे हल्लुक नील इजोत पसरल छलैक। मद्धिम आवाज मे कोनो पॉप गीत बाजि रहल छलैक । बार मे बेसी मर्दे रहैक । कोन मे एकटा स्त्री अपन छोट बच्चा आ घरवलाक संग छलि आ आब उठि कऽ विदा होबऽ बला छलि । ओकर मुँह साफ –साफ नहि देखाइत रहैक । अपन – अपन टेबुल लग बैसल लोक खाइत – पिबैत गपशप कऽ रहल छल । गपशप सुनाइत नहि रहैक । वेटर अबैत – जाइत रहैक । बुझाइत रहैक जेना ओ सभ धुंधमे चलि रहल हो ।
हम सभ एकटा टेबुलक दुनू कात बैसि गेल रही आ शराब आ खेबा - पिबाक वस्तुक प्रतीक्षामे रही । हम अपना लेल बीयर आनय कहने छलिऐक । तखने वर्मा बजलाह — दस बिगिंस आवर बिजनेस डिनर ।
ओ सभ नव कारबार शुरू कऽ रहल छलाह आ ओही खातिर एतय आयल छलाह । कारबारक ओरिआओन पूरा कऽ लेला पर ओ सभ प्रसन्न छलाह आ उछाह मे डिनर कऽ रहल छलाह । एक-एक पैग पिलाक बाद जखन हमरा सभ पर निशांक फुरफुरी शुरू भेल तऽ सिन्हा बाजल — भाइ, बिजनेस मिंस बिजनेस । बिजनेस अलग छै, दोस्ती अलग । दोस्तीक रूपमे हम अहाँक एक बेर मदति कऽ सकैत छी, दू बेर कऽ सकैत छी । लेकिन जँ अहाँ बिजनेस मे हमर समय लेब तऽ हमर समयक तऽ मोल अछि। आ ओ अहाँ केँ देबहि पड़त । हमर एकटा नव दोस्त रहय । एक दिन ओ आयल आ कहलक — यार, वाइफ केँ टी.भी. किनबाक बड़ सेहन्ता छैक । किछु पाइ अछि, किछु तों दऽ दे तऽ कीनि ली । हम ओकरा एकटा नव सेट बेसाहि देलिऐक । किछु दिनक बाद ओ फेर आयल । कहय लागल – यार, वाइफ फ्रिज लेल कहि रहल अछि । हम कहलिऐ — नाउ दिस इज टू मच ।
सिन्हा एक पैग और पीलक । सिगरेट धरेलक आ बाजय लागल — सभ चीजक मोल होइत छैक । एकटा खिस्सा सुनबैत छी । ध्यान सँ सुनबै आ कहब । एकटा स्त्री छलि । ओकर घरबला बेराम पड़ि गेलै । डॉक्टर लग लऽ गेलि । डॉक्टर कहलकै ऑपरेशन करय पड़तैक । ओहि स्त्री लग पाइ नहि छलैक आ डॉक्टर बिना पाइ लेने ऑपरेशन करक लेल तैयार नहि भेलै। ऑपरेशन नहि भेलासँ ओकर पति मरि जइतैक । ओ अपन पूर्व प्रेमी लग गेलि । ओकर पूर्व प्रेमी पाइ देबा लेल तैयार भऽ गेलै, मुदा ओकर एकटा शर्त्त रहै । शर्त्त ई रहै जे ओहि स्त्री केँ अपन पूर्व प्रेमी संगे एक राति बिताबय पड़तैक । हम सभ ई जनबाक लेल उत्सुक रही जे आब ओ स्त्री की करत । लेकिन तखने सिन्हा खिस्सा केँ ओत्तहि खतम करैत पुछलक — आब ई कहू जे गलती ककर रहै ? ओहि डॉक्टरक, पूर्व प्रेमीक या ओहि स्त्रीक ?
हम सभ, जे एकटा मनलग्गू खिस्साक आनंद लैत रही, एकाएक चिन्ता मे पड़ि गेलहुँ आ सोचय लगलहुँ । बड़ी काल धरि क्यो किछु नहि बाजल । सभ नैतिकताक फाँस मे ओझरायल रहय । सिन्हा हमर सभक दुविधा केँ बूझि गेल आ बाजल –गलती ककरो नहि रहै ।
समस्याक एहि समाधान सँ हम सभ कने चौंकलहुँ, मुदा संतोषक अनुभव सेहो भेल ।
सिन्हा मामला केँ और स्पष्ट करैत बाजल – देखू , डॉक्टर जँ पाइ नहि लेत तँ ओकर रोजगार मारल जेतै आ ओकर पूर्व प्रेमी बिना किछु लेने एतेक पाइ किएक देतै ? आ ओ स्त्री जँ ओकरा संगे राति नहि बितायत तँ ओकर घरवला मरि जेतै ।
सिन्हाक स्पष्टीकरणक संगहि खिस्सा खतम भऽ गेल आ हमरा सभक भीतर चलैत उचित – अनुचितक उठा-पटक सेहो । हम सभ बार सँ निकलय लगलहुँ तँ दरबान फेर ओहिना जोर सँ सलाम ठोकलक । हमरा आब हरेक चीज मे पैसाक टनक सुनाय लागल, दरबानक सलामीयो मे। ओकर सलामी मे अवढँगपनी अखनो छलैक मुदा हम सभ ओकर अभ्यस्त भेल जाइत रही ।
बाहर आबि एहि डिनर लेल हम कृतज्ञता प्रकट कयलहुँ आ नव कारबारी सभ सँ विदा लऽ कऽ अपन होटल दिस चलि पड़लहुँ । मन भारी रहय । ओ स्त्री आ ओकर बेमार घरबला दिमाग मे चक्कर कटैत रहय ।
लघुकथा-
कुमार मनोज कश्यप ।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
मरीचका
'हे हर, हमरहु करहु प्रतिपाल ' - भवनीबाबूक मुंह सँ निकलल एहि गीतक भावार्थ सभ के बुझल छलैक। एते तक कि बच्चो सभ बुझि जाईत छल जे भावनीबाबू आब भोजनक प्रतीक्षा कय रहलाह अछि ।
भवानीबाबू -- जिला परिषदक सेवा-निवृत बड़ा बाबू । सस्ती जमाना मे भवानीबाबू एक-एक टा रुपैया जमा कऽ कऽ शहर मे जमीन खरीद लेलनि । मुदा घर टा बनि सकलनि सेवा-निवृति के बादे । सेवा-निवृति पर भेटल सभ पाई के लगा कऽ बनलनि चारि कोठली के पक्का-पुख्ता मकान । मुदा चारु कोठली दुनू बेटा आपस मे बाँटि लेलक । भवानीबाबू के आश्रय भेटलनि बालकनी मे । कनियाँ तऽ पहिने स्वर्गवासी भऽ चुकल रहथिन । भवानीबाबू अपने बनाओल घर मे आन बनि बालकनी के एक कोन मे टुटलहवा चौकी पर समय काटऽ लगलाह । हद तऽ तखन भऽ गेल जखन एक दिन भवानीबाबू के पेट सेहो बँटि गेलनि ---पार लगा कऽ दुनू भाई के घर सँ भोजन आबऽ लगलनि।
आई भवानीबाबू बड़ी काल धरि गीत गबैत रहलाह ---बीच-बीच मे नजरि याचक-भाव सँ दुनू भाईक भनसा घर दिस बेरा-बारी सँ जाईत रहल । गीत अंतरा धरि पहुंचि गेल । फेर स्वर मद्धिम पड़ऽ लागल----उदास---- थाकल---हारल---हे हर, हमरहु करहु प्रतिपाल़।
भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)- (आगाँ)
अंक 1 दृश्य : 3
लेखिका - विभा रानी
पात्र - परिचय
मंगतू
भिखारी बच्चा 1
भिखारी बच्चा 2
भिखारी बच्चा 3
पुलिस
यात्री 1
यात्री 2
यात्री 3
छात्र 1
छात्र 2
छात्र 3
पत्रकार युवक
पत्रकार युवती
गणपत क्क्का
राजू - गणपतक बेटा
गणपतक बेटी
गुंडा 1
गुंडा 2
गुंडा 3
हिज़ड़ा 1
हिज़ड़ा 2
किसुनदेव
रामआसरे
दर्शक 1
दर्शक 2
आदमी
तांबे
स्त्री - मंगतूक माय
पुरुष - मंगतूक पिता
भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)
अंक : 2
दृश्य : 1
(बाजारक दृश्य। फेरीबाला रूमाल, टिकुली, सेब, नारंगी, खिलौना सभ बेचबाक आवाज नेपथ्य स' - 'ऐ बच्चा के खेलौना, साढ़े बीस रूपैया, दौग-दौग क' ले, जाऊ, दीदी, काकी, भैया,' खसि गेल खसि गेल, पेंटक दाम खसि गेल', हरेक माल 30 रूपैया, 30 रूपैया, 30 रूपैया' आदि।)
(प्रकाश शनै-शनै: मंगतू पर केन्द्रित होइत अछि।)
मंगतू : ओह, ई हल्ला-गुल्ला! ई भीड़, ई धक्का-धुक्की!.. नीक लागै छै। जिनगी चलि रहल छै अई सभ मे.. ई जगह.. बरगदक नाहित.. हमरा सन-सन कतेक लोकक आसरा.. कखनो, कखनो त' हम सड़क पर नजरि जमा देइत छी.. ओह खाली पएरे-पैर.. दौगैत-भगैत गोरे-गोर.. कनेक ओकरा स' ऊपर त' दायाँ-बाम डोलैत हाथ.. कनेक ओकरा स' ऊपर त' माथे-माथ.. कारी-कारी केस, स्त्रीक माथ, पुरूषक माथ.. सभक लक्ष्य अपना-अपना गंतव्य धरि पहुँचबाक, रहि जाइ छी त' हमी - लोथ, नांगरि., लूल्हि.. अही के अही ठां.. लोक आओर कहैत रहैत अछि जे हम बड्ड भगमंता छी.. बइसल-बइसल पाइ भेंटि जाइत अछि.. कोना क' हम बुझाबी जे हमरा भीख नञि, काज चाही काज। .. (शून्य मे चिकरि क') रौ, हम भगमंता छी त' तोहो सभ कियैक ने बनि जाइ छें हमरे जकाँ भगमंता.. (विक्षिप्त जकां हंसैत अछि) .. अरे, सभ हमरे जकाँ बनि जाएत, त' फेर कमाएत के.. हमरा आओर पर भीखक नजरि आ चवन्नी, अठन्नी फेंकत के? .. हं, बूझल। ई सभ चलैत रहौक, तकरा लेल साबुत लोकक भेनाई जरूरी छै.. आ ओ सभ पुण्य कमाबैथि, तकरा लेल हमरा आओरक रहनाई सेहो ..
(मंगतू जहन ई बाजि रहलए, दू-तीन टा हिज़ड़ा ओम्हर अबैत अछि। सभक नजरि मंगतू लग छिड़ियाएल पाई पर छै। सभक के आँखि मे लालच छै।)
हिजड़ा 1 : की राजा! की भेलौ रौ? सूखल गरी जकाँ मुंह कियै बनेने छें? अरे हाय, हाय, तोरा देखि क' हमरा त' किछु किछु होबैत अछि (गबैत अछि) 'क्या करूँ हाय, कुछ-कुछ होता है।'
मंगतू : (अपनही धुन मे) धिया-पुता सभ स्कूल-बैग ल' क' स्कूल जाइत अछि.. कतेक नीक लगै छै.. हम नान्हि टा स' जवान भ' गेलहुँ, मुदा स्कूलक मुंह..
हिजरा 2 : त' की भेलौ रौ राजा। अपना ओहिठां बहुत रास लोक स्कूलक मुंह देखने बेगर मरि जाइत अछि। हमरे आओर के देख। मुदा फ़िकिर नईं। हमरा आओर खुशो छी आ हे देख, तोरा लेल गीतो गाबि रहल छी।.. (गबैत अछि)
''सैंया दिल में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
हो आके फिर ना जाना रे, छम-छमा-छम-छम!''(अथवा कोनो आधुनिक गीत)़
मंगतू : हमहू कहियो ई चाकर-चिक्कन रोड पर चलि सकब! बस- ट्रेन में चढ़ि सकब। अपना कमाई स' बसक टिकट कीनि सकब! .. भ' सकै छै.. कोनो मददगार आबि क'.. मुदा, की भेटत कोनो एहेन।
हिजड़ा 3 : चल रौ, हम बनि जाइ छियौ तोहर खुदाई खिदमतगार। चल, चल, हम सभ तोरा ल' क' सनीमा जेबौ, चाट-पकौड़ी खुएबौ (गबैत अछि)
''चौपाटी जाएंगा, भेलपुरी खाएगा, पीछा न छोड़ेंगा हम,
गाना बजाना, खाना-पीना, गाड़ी में होंगा सनम।''
(सभ मिलिक' मंगतू के झोरैत अछि। मंगतूक धेयान टूटैत छै।)
हि. 1 : की रौ हीरो। एना अभिषेक बच्चन जकाँ मुंह कियैक लटकौने छे?
हि. 2 : रौ, तों कोनो भीख थोड़बे मांगै छें। तोरा देखितही मातर लोक आओरक' हाथ अपने आपे अपन पॉकिट दिस बढ़ि जाइ छै।
हि. 3 : हमरा आओर स' नीके छें रे। देख, तोहर हाथ-गोर नञि छौ, तइयो तों आदमी कहबैत छें - आदमी, मरद। हमरा आओर के अछि ई चारू हाथ-गोर! तइयो एक गोट पहिचान नञि अछि। तैं (ताली बजबैत अछि) कहबैत छी।
हि. 1 : सिगनले-सिगनले, रोडे-रोडे भीख मंगैत फिरै छी। हमरा आओर के देखितही बाबू-मेम सभ सीसा चढ़ा लेइत छथि गाड़ीक।
मंगतू : मुदा हमरा भीख नञि चाही। हमरा काज चाही।
हि. 2 : (हंसैत) से तोरा भेंटतौ नञि! कह, त' स्टाम पेपर पर लिखि क' द' दियौ। (गबैत अछि) 'कोरे कागज पे मुझसे करा ले सही।' 'अरे हमर चिक्कन-चुनमुन राजा, हमर छैला, ई सनी देओल जकाँ डकरै स' तोरा काज भेंट जेतौ। भेंटल हमरा आओर के ? तोहर त' हाथ-गोर नञि छौ, हम्मर त' अछि। मुदा दोकानदार बाजल - रौ बाप रौ बाप! हे पानि मे आगि लगाब' लेल हमही भेटलियौ रौ? तोरा देखि क' त' गँहकी पराइए जेतौ। फेर बिक्री-बट्टाक की हएत।
हि. 1 : हम ऑफिस-ऑफिस केहुरिया काटल। सभक एक्के टेर- पढ़ल-लिखल छें? डिग्री छौ?
हि. 2 : सोचल, अपने कोना धंधा-पानी आरंभ करी त' -पूँजीए नञि (करूण हंसी) घर मे मुर्गी नञि, कीने चलल मसल्ला।
हि. 1 : एखनि नीक भ' गेल अछि। रबि क रबि सभ दोकान पर रेट फिक्स अछि- एक रूपैया फी दोकान। (हंसैत अछि) फ़ी रूपैया, फ़ी दोकान, फ़ी छक्का । रौ, तोरा त' अठन्नी, रूपैया दू रुपैया डेली भेटै हेतौक। हमरा आओर के त' एक रूपैया फी हफ्ता, फी छक्का। देख, सभ किछु अछि - हाथ गोर, नाक-आँख, मूड़ी, दिमाग।
हि. 2 : मुदा सभ किछु रहितहु किछु नञि छी हम सभ.. ने मनुक्ख, ने कुकुर।
हि. 1 : बस एक रूपैया फी हफ्ता, फी छक्का (गबैत नचैत अछि। शेष दुनू ओकरा संगति देइत अछि) एक रूपैया मे.. एक रूपैया मे, पूड़ी खाऊं, जिलेबी खाऊं, नरेटी फाड़ि क' तान लगाऊ.. एक रूपैया मे।
(नचैत गबैत ओ सभ मंगतूक माथ, बाल, मुंह छुबैत अछि, चूमैत अछि, नाच' लेल उठाबैत अछि। मंगतू सेहो प्रयास करैत अछि। पार्श्र्व स' नृत्य प्रधान संगीत तेज होइत अछि.. नाचबाक प्रयास करैत-करैत मंगतू खसि पड़ैत अछि। सांस सामान्य भेला पर।)
मंगतू : हँ रौ, सही कहै छें तो सभ। अई ठाँ त' लोक-आओर अठन्नी - टाका, में पुण्य कीनैत छथि त' अपना आओर के काज द' क' किओ अपन पांच सौ, सात सौक खारा कियैक करत? लोक आओर त' इएह बूझैत छथि ने जे लोथ, लूल्हि-नांगड़ि. कोन काजक? तोरा आओर स्त्री-पुरूष नञि भेलें त' समाज मे तोहर गिनतीयो नञि! अरे किओ पूछल हमरा आओर स' जे हम सभ.. हम सभ की सभ क' सकै छी। अरे, किओ करबा के त' देखौ जे हम सभ की नञि क' सकै छी!
हि. 2 : (हंसैत आ थपड़ी पीटैत) की सभ क' सकै छें रे? साला, दगेबाज, हमरा संगे प्रेम बना सकै छें! रौ सार.. (चिढ़बैत अछि। मंगतू पहिने खिसियाइत अछि, फेर हंसि पड़ैत अछि।)
मंगतू : बनेबौ रौ, बनेबौ, मुदा पहिने अखबार त' पढ़' दें। भिन्सर स' नञि भेटल। नञि त' रामआसरे भाइ आ नहिए किसुनदेवे भाइ आइ अखबार देलैन्हि.. चली, अपनही स' ल' आनी। भ' सकै छथि, जे बेसी काज हुअए हुनका आओर के..
(मंगतू अखबारक औफ़िसक प्रवेश द्वार धरि अपना के ल' जाइत अछि। द्वार पर किसुनदेव आ रामआसरे अति सावधानक मुद्रा मे ठाढ़ छथि।)
किसुन. : आई सीएमडी साहेब आब' बला छथि।
राम. : हँ, तैं देखहक नें, सभकिछु कतेक चकाचक छै.. फिट-फाट.. फस्ट किलास।
किसुन. : आई त' सभ स्टाफ सेहो आएल अछि। कोनो गैरहाजिर नञि ।
राम. : सुनल जे आइ सीएमडी साहेब सभ' स' भेंट करताह। मीटिंग करताह।
किसुन . : तहन त' अपनो सभ स' भेंट करताह!
राम. : भ' सकैत अछि।
किसुन : एहेन हेतै त' हम पलखति निकालि क' हुनका पएर छुबि कहबै, जे साहब.. हमरा कनकिरबा के कोनो नोकरी..
राम. : सपना जुनि देख.. ई एतेक बड़का लोक सभ.. अर्जी दइयो देबही त' अई हाथ मे लेथुन्ह आ ओहि हाथ स'..
(अही बीच युवक आ युवती पत्रकार अबैत छथि। दरबानक मुंह पर पहिचानक मुस्की अबैत छै। दुनू ओहि दुनू के नमस्कार करैत छथि।)
युवक : (भीतर जाइत) रामआसरे! की बात? वर्दी एकदम कलफदार। मूँछो-एकदम कड़क। मूछो के कलफ लगा देलही की?
राम. : (लजाइत) ऊ साहेब, आइ.. ऊ.. सीएमडी साहेब..
युवक : ओ हो.. तोरा संगे हुनकर मीटिंग छौ की? बढ़िया, बहुत बढ़िया (दर्शक दिस) देख रहल छी ने प्रशासन के। ओ तखने चुस्त-दुरूस्त नजरि अबैत अछि, जहन ओकर माय-बाप सभ अबैत अछि.. वरना.. (रामआसरेक एक दिसक मोछ के नीचा क' देइत अछि आ भीतर चलि जाइत अछि। ओकरा गेलाक बाद रामआसरे अपन मोछ पूर्ववत करैत अछि।)
(मंगतू ताबैत द्वार धरि पहुँचि जाइत अछि। दुनू दरबान के देखि क' मुस्काइत अछि। मुदा दुनू ओकरा दिस ध्यान नञि द' क' मुस्तैदी स' अपन ड्यूटी क' रहल अछि। मंगतू अपन एकलौता हाथ स' सलाम ठोकैत अछि।)
मंगतू : रामआसरे भाई? किसुनदेव भाई? आई त' बड्ड जोरदार लगि रहल छी दुनू।
(दुनू कोनो जवाब नञि देइत छथि)
मंगतू : बेरहटिया भ' गेलै.. अखबार नञि भेटल.. मोन बेचैन भेल अछि.. आ रामआसरे भाई.. कहियो हमरो ई ओफिस भीतर स' घुमा दिय' ने। सुनै छी, बड्ड मोडन ओफिस छै.. कम्पूटर, त' की त' की सभ छै। अच्छा, अहीं सभक पुन्न परताप से पढ़ब सीखि गेलहुँ त' अहींक किरपे कोनो दिन ओफीसो..
(तखने गेट पर हलचल होइत अछि। 'साब आ गए'। 'हटो, हटो, रास्ता छोड़ो' आदि स्वर उभरैत अछि। सिक्यूरिटी अटेंशनक मुद्रा मे आबि जाइत अछि। रामआसरे आ किसुनदेव दुनू मंगतू के देखैत छथि, फेर पलखतिये मे दुनू मे जेना कोनो करार होइत अछि आ दोसरे पल मे दुनू मंगतू के घीचि क' गेट स' दूर ल' जाक' पटकि देत छथि आ झब स' अपना स्थान पर आबि क' ठाढ़ भ' जाइत छथि। एक गोट सूटेड-बूटेड साहेब कएक टा अधिकारी सभस' घेराएल अबैत छथि आ भीतर चलि जाइत छथि। दुनू हुनका खूब चुस्त, मुदा नमगर सलाम ठोकैत छथि। सीएमडी आ बाकी लोकके भीतर गेलाक बाद।)
राम. : यार किसुनदेव! ई नीक नञि भेलै।
किसु. : त' कइए की सकैत छलहुँ? सीएमडी साहेब आब' बला छलाह। ऐहेन स्थिति मे हम सभ एकटा लोथ.. नांगड़ि भिखमंगा स' गपियाइत रहितहँु त'.. अपन नोकरी त' सोझे..
राम : तइयो.. आराम स' ल' जा सकै छलियै.. एना बोरा जकाँ पटकि देलियै.. की जान' चोटो-तोटो लागल हेतै..
किसुन : चल, चल देखि लेइत छियै..
राम. : नराज हेतैक ओ..
किसुन : अरे अखबार ल' क' चलै छी। ओकर नराजगी दूर भ' जेतै.. अखबार त' ओकरा लेल चरसो-गाँजा स' बढ़िक छै..
राम : पढ़ियो कतेक जल्दी लइत छै। पढ़ै की छै, घोखि जाइ छै, (गर्व स') हमही त' सिखेलियै ओकरा, अहिना एक दिन आएल छल आ बाजल छल.. हमरो अखबार पढ़ाएब सीखा दिय' ने भाई जी। हम मजाक केलियै -'की रौ, पढ़ि क' की बनबें? शिक्षा मंत्री? ओ बाजल, मंत्री बन' लेल पढ़ब जरूरी थोड़बे छै।
राम. : मंगतूक ई प्रश्न हमरा छुबि गेल। बड़का-बड़का लोक सभक धिया-पुता के पढ़ब नीक नयि लागे छै.. माय-बाप ओकर पढ़ाईक पाछा पागल बनल रहैत अछि आ धिया-पुता सभ हुनकर मंह पर पों-पों पदैत रहैत छथि.. आ ई एकटा लोथ.. भिखमंगा.. हम तय केलहुँ जे एकरा ओतेक त' पढ़ाइए देबै जे ई पेपर - तेपर पढ़ि सकय.. ई अ, ज आकारा जा.. ह उूकार हि.. आ आखर-आखर करैत ओ पढ़ब सीखि गेलै। आ आब त' ओ जतेक तेजी स' पढ़ैत अछि कि ओतेक तेजी से पढुओ सभ नञि पढ़ि सकत।
किसुन : हिन्दी छै ने! तैं जीभ के लकबा मारि जाइ छै.. एना-एना मुंह बनाओत कि लागत जे कोनो लाटक नाती आबि गेल अछि बिलायत से।
राम : कंपूटरो स' तेज ओकर दिमाग छै.. सभ किछु जेना जीहे पर राखल रहैत छै.. जेना कंपूटरक, की कहै छै... ऊ, मेमोरी में..
किसुन : अरे रामआसरे भाइ, ई मोरी तो सुने थे.. नाली। ई मेमोरी की छै? मोरीक बहीन की?
राम : ननदि छै। रौ मेमोरी नञि बूझै छें.. कंपूटरक दिमाग। मुदा मंगतूआक दिमाग त' कंपूटरोक दिमाग स' बेसी तेज छै। एकदम फास्ट.. रौ, कंपूटर मे त' देख' लेल ओकरा पहिने फोलू, फ़ेर फाइल त' की दनि, कहाँ दनि फोलू.. तहनो सेभ माने दिमाग बचा क' राखने छी त' भेटत, नञि त'.. हवा.. लें सार.. गेल सभ.. आ जदि कोनो बेरामी घुसि गेल, तहन त' पूरे गुड्डी बकट्टा..
किसुन : अरे, ठीक इएह गप्प हमर साहेब कहै छथि। आ सएह सच्छात विराजमान छै मंगतुआक खोपड़ी में। ऊँहूँ, गलति बाजि गेलहुँ, ओकर मेमोरी त' ई कंपूटरोक मेमोरी स' फास्ट चलै छै। चालू कि बन्द करबाक झंझटि स' फ्री। कोनो घटनाक दिन, समय, साल, कारण पूछू, तत्काल हाजिर। पोलटिस पर पूछू कि सनीमा पर कि टीवी पर की मौगी सभक नवरंगा डरेस पर की ठोर पालिस पर। सभ कंठस्थ, हनुमान चलीसा जकाँ। भूत-पिचास निकट नहिं आबै..
राम : अरे, शुरू-शुरू मे लोक आओर बड्ड हैरान होइत छलै ओकरा अखबार पढ़ैत देखि क'। किओ-किओ त' मुंहो बिचकबैत छल जे एह, भेल भिखमंगा आ शान प्रधानमंत्री के।
किसुन : ओकरा आओर के बुझले नञि छै ने जे मंत्री सभ अखबार नञि पढ़ै छथि.. पढ़ताह कोना.. फुर्सतिये कत' छै.. जन-सेवा स' (जनसेवा पर स्वर मे व्यंगात्मक जो।)
(तखने पार्श्र्व स' तेज गति स' चलबाक ध्वनि अबैत छै। दुनू पुन: अटेंशनक मुद्रा मे आबि जाइत छथि। सीएमडी निकलैत छथि। दुनू खूब नमगर सलाम हुनका ठोकैत छथि। हुनका जाइते देर कि सभ किओ फक स' साँस छोड़ैत छथि आ फेर सभ-किछु ढील-ढाल भ' जाइत छै। रामआसरे आ किसुनदेव अपन वर्दीक कलफ ढीला करैत छथि, मोछो नीचा करै छथि।)
राम : देखलही। साहेब के जाइते सावधानक कलफ मे लागल ई पूराक पूरा.. की कहै छै .. मैनेजमेंट ग्रुप.. सभ एकदम स' ढील-ढाल भ' क' लटकि गेलौ। एना (हाथ-गोर मूड़ी ढीला क' क' देखबैत अछि।)
किसुन : चल आब मंगतुआ लग। द' आबी अखबार। (दुनू मंगतू लग पहुँचैत छथि। ओकरा अखबार देइत छै। मंगतूक चेहरा पर दुख, अपमान, नाराजगीक भाव छै। ओ अखबार लेब' लेल उत्सुक नञि देखाई पड़ैत अछि।)
किसुन : रौ लाट साहेबक नाती। मंगबे भीख आ शान रखबें राजा-महाराजा के। (कनेक नरम भ' क') रौ, हम सभ त' अदना मोलाजिम छी। हुकुम नञि बजाएब त' नोकरी स' छुट्टी। देखलही ने आइ तों जे बड़का-बड़का हाकिम सभ सेहो कोना कुकुरक नांगरि जकाँ .. ले, राखि लें, काल्हि स' जल्दी आनि देबौ।
(मंगतू ओकरा आओर दिस बेगर देखि क' अखबार ल' लैत अछि।)
किसुन : की जानि एहेन कोन हीरा-मोती जड़ल रहै छै अई मे जाहि लेल ई एतेक पिरीसान फिरैत अछि। वएह त' खबरि होइत छै - हत्या, अपहरण, बलात्कार। लागै छै जे पूरा देस अई सभ' मे हाथ रोपि क' बइस गेल अछि।
मंगतू : (अखबार मे डूबि गेल अछि।) ओहि दिन हम अखबार मे गिनती कएल.. 380 लोकक मरबाक समाचार। किओ अपन मौगत नञि मरलै.. किओ गोली स' त' किओ बस पलटी स, किओ बम स', किओ अपनही बेटा-पुतौहु द्वारा.. एखने त' खबरि छलै - बम फ़ुटबाक। खूब असमान चढ़ि रहल छै मौगतक ई धंधा। एखने त' लोक आओर निकलल छलाह, घर स', बजार स', काज स', हंसैत-खेलैत, सौंसे देहे आ एखने हाथ-गोर साफ.. भरि जिनगी लेल लोथ.. तहन एक दिन की ई पूरा दुनिये लोथ भ' जेतै? (ठेहुन मे मुंह नुका लइत अछि, दर्शक मे स' एक गोट बाजैत अछि। मंगतू चेहाक मूड़ी ऊपर उठबैत अछि।)
दर्शक 1 : साँच कहल रौ भाई, साँच! ई देख (केहुनी धरि कटल हाथ देखबैत अछि) रौ, बम, दंगा, झगड़ा-फसाद - मरैये के? कोनो नेता? हुनकर बेटा-जमाय, नाती-पोता? ऊँहूँ - धूरि सन हम, तों, ई, ओ..। ओ सभ पैघ.. मातबर लोग.. पैघ लोक, पैघ गिनती.. पैघ गिनती मे छोट-छीन संख्याक मोजर नञि .. ।
दर्शक 2 : (महिला अछि) देखू हमर ई मुंह (झरकल मुंह) जहिया स' एना भेलए, ऐना देखब छोड़ि देलहुंए.. सुनैत छलहुं जे लोक प्रेम मे त्याग करैत छथि। आई प्रेमो जबर्दस्तीक चीज बनि गेलैय'! हमरा अहाँ स' प्रेम भ' गेलए तैं अहाँ के हमरा स' प्रेम करैये पड़त.. दोसर रस्ताक कोनो गुंजाइसे नञि.. वरना तैयार रहू.. परिणाम लेल.. आह.. हम शिकार भ' गेलहुँ एहेन प्रेमक। (चिकरैत) रौ, बिगाड़' त' आबै छौ, बनाब' आबै छौ? कोन हक्के तों एना केलें हमरा संगे.. (कनैत) आब ऊपरबला स' मौगत माँगै छी त' सेहो नञि भेटैय'.. दिन-राति ओढ़नी स' मुंह तोपैत चलैत रहू, अपना स' बेसी दोसर लोकक खेयाल करू जे हुनका हमर ई मुंह नञि देखाइ पड़य.. (ओत्तहि ठेहुन भरे बैसि जाइत अछि।)
मंगतू : कहबी छै जे सात जनमक बाद मनुक्ख जनम भेटै छै। आ सएह मनुक्खक ई अवस्था? (विक्षिप्त जकाँ चिकरैत अछि) रौ, रौ सर्वशक्तिमान कहाब'बला भगमान! कत' छें तों? मनुक्ख बनेबाक बदले राक्षस कियैक बना रहल छें? एतेक फ़ुटानी कियैक रौ? आ सोझा मे, देखियौ तोहर हिम्मति.. रौ, बौक-बहीर छें की.. देखबही ई धरती के, किछु करबहीं एकरा लेल कि कान मे तेल ध' क' सुतल रहबें?.. रौ, किछु क' सकै छें त' कर.. नयिं त' हमरो मारि दे आ तोंहो कतहु डूबि-धँसि जों.. नञि जीबाक अछि.. मौगत.. द' दे.. भगवान, मौगत.. नञि जीब' चाहै छी राक्षस स' भरल अई दुनिया मे.. (भोकासी पारि क' कनैत अछि।)
(जाहि समय मे मंगतूक प्रलाप चलैत अछि, ओहि समय ओम्हर स' पास होब बला लोक आओर ओकरा दिस देखैत चलि जाइत रहैत अछि। ककरो नजरि मे ओकरा लेल कोनो सहानुभूति नञि । ध्वनि सभ ऊभरैत अछि.. 'की भेलै रौ एकरा?', 'अरे, किछु नञि, पागल छै सार!','चोट्टा, भगवान के गरियबैत छै, पछिलो जनम मे गरियैने हेतै, तैं' अई जनम से सेहो..', 'रौ, बइसल बनिया की करय, ई कोठीक धान ऊ कोठी करय', 'काज ने धंधा, मौज-मस्ती ठंढा.. ', 'हमरा आओर जकाँ ट्रेन बस ट्रेन करितियइ, नौ स' पाँच मे जिनगी स्वाहा कर' पड़तियैत त' बुझितियइ.. गै चल, तोंहो कोन पगलेटक चक्कर मे फँसि गेलैं.. ', 'नञि रौ ई पगलेट नञि छै.. वाजिब गप्प कहै छै.. भीख माँगब एकरा नीक नञि लागै छै.. मुदा.. मजबूरी छै.. के काज देतै एकरा.. ' आदि - आदि । ..सभ पात्र एम्हर ओम्हर स' निकलि क' मंगतूक पाछा ठाढ़ भ' जाइत अछि आ समवेत स्वर मे कहैत अछि..)
'हम सभ.. मात्र पुतली भरि
नियंताक अपन-अपन
इच्छाक / कामनाक दीप लेसने हम
सख्त अछि ताकीद
देखू मात्र, बजाऊ कोर्निश
गबैत रहू राग-दरबारी..
हे प्रभो, अन्नदाता
बस कृपा करी एतबे जे
बनल रही हम सभ
पुतरी भरि..
डोरी अदृश्यक हाथ मे।
(प्रकाश मंगतू पर केन्द्रित होबैत शनै: शनै: फेड आउट)
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(अगिला अंकमे जारी)
की नाम राखी एहि कथाक-गजेन्द्र ठाकुर
“हम यादवजीक पत्नी बाजि रहल छी, ओ छथि की?” एकटा गम्भीर स्वर आएल। यादव जी एखने अपन प्रेमिकाक संग बाहर निकलल रहथि । अरिन्दमकेँ किछु नहि फुरएलैक जे की बाजए- “कोनो काजसँ बाहर गेल छथि, एखने दू मिनट पहिने। हुनकर मोबाइलपर फोन कऽ लिअ”।
“मोबाइल नॉन-रीचेबल छन्हि, कोनो ऑफिसक काजसँ गेल छथि की?”
अरिन्दमकेँ आब किछु नहि फुरएलैक-
“नहि, से तँ लागैए जे कोनो व्यक्तिगते काज छन्हि कारण ऑफिसक काज रहितए तँ हमरा बुझल रहितए”।
ओम्हरसँ फोन राखि देल गेल। अरिन्दमकेँ मोन पड़लैक जे यादवजी जाइसँ पहिने मोबाइल बिना ऑफ कएने बैटरी निकालि आ लगा कऽ मोबाइल बन्द कएने छलाह। स्वाइत नॉन-रीचेबल आबि रहल अछि।
अरिन्दम लैपटापपर एक्सेल डॉक्युमेन्टमे ओझराएल हिसाब-किताब ठीक-ठाक करए लगलाह।
किछु दिन पहिने एहिना एकटा स्वर फोनपर आएल रहैक- “यादवजी छथि की?”
“अहाँ के”?
“हम हुनकर पत्नी”। अरिन्दम फोन यादवजीकेँ देने रहए आ यादवजी खूब आह्लादसँ पत्नीसँ गप कएने छलाह। ओहि दिन बॉसक पत्नीक अबाज ओतेक गम्भीर नहि लागल रहैक अरिन्दमकेँ। चुलबुलिया सन अबाज रहैक। होइत छैक, लोकक मोन क्षणे-क्षणे तँ बदलैत रहैत छैक।
अरिन्दम अपन घरक शान्त-प्रशान्त जीवन मे रहैत अछि। कारसँ नित्य अबैत काल रेडलाइटपर हिजड़ा-सभ सभ दिने भेँट होइत छैक। पुरनका कारमे ए.सी. नहि रहैक, से शीसा खसेने रहैत छल। ढेर गप-शप बजैत ओ सभ हाथ-मुँह चमका कऽ की-की सभ सुना दैत रहए। मुदा आब ओ एहिसँ बचबाक लेल शीसा खसबिते नहि अछि। ओ सभ शीसाक बाहरसँ मुँह पटपटबैत किछु कालमे दोसर गाड़ी दिस बढ़ि जाइत अछि। परसू एकटा बालगोविना तमसा कऽ हाथक झुटकासँ ओकर कारमे स्क्रैच लगा देलकैक। पाँच टकाक बदलामे ढेर नुकसान भऽ गेलैक- धुर। के करबैत गऽ डेंटिंग-पेंटिंग, स्क्रैच भने रहत किछु दिन। दिल्लीमे जे एहन चेंछमे डेंटिग पेंटिंग कराबए लागी तँ सभ दिने करबए पड़त। मुदा ई नवका बॉस ज्र् आएल अछि से अरिन्दमक मस्तिष्कमे एकटा भूकम्प आनि देने छैक। रस्तोमे की सभ सोचाइत रहैत छैक।
“काल्हि अहाँक पत्नीक फोन आएल रहन्हि”।
“अच्छा, कखन?” यादवजी बजलाह।
“अहाँक गेलाक किछुए कालक बाद”।
कोनो जवाब बिनु देने यादवजी फोन मिलेलन्हि-
“ऑफिसमे किएक फोन केलहुँ......मोबाइल बेसमेन्टमे नॉन-रीचेबल रहैत छैक, तँ किछु काल प्रतीक्षा कएल नहि भेल...”। खटाकसँ फोन रिसीवरपर बजड़ल। अरिन्दम लैपटॉपसँ मुँह उठा कऽ देखलक। केहन परिवार छैक? साँझमे गामपर पहुँचल होएत तँ पत्नीसँ गपो नहि भेलैक की? गपक फरिछाहटि ऑफिसेसँ फोन कए कऽ रहल अछि।
अरिन्दम डेस्कटॉपक आ वाशिंग मशीन दुनुक हेल्पलाइन नम्बरकेँ फोन मिलेलक, गामपर फुरसति कहाँ भेटैत छैक। घरपर दुनू चीज एके बेर खराप भऽ गेलैक। घरसँ ऑफिस निकलैत काल कनियाँ वाशिंग मशीनक खराब हेबाक तँ बेटा अपन कम्प्युटरपर गेम कैक दिनसँ खरापीक चलते बन्द रहबाक विषयमे कहने रहन्हि।
“कतेक कालसँ फोन इनगेज रखने छी, गप सुनू, ककरो फोन आबए तँ कहबैक जे यादवजीक स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। बॉस बाहर कतहुसँ फोन कएने रहथिन्ह आ एके सुरमे सभटा बाजि गेल छलाह।
काल्हि साँझमे पत्नीकेँ छोड़ए लेल यादवजी गेल रहथि आ एम्हर हुनकर प्रेमिकाक फोन आएल रहन्हि ऑफिसमे। ओ कोनो होटलक नाम बाजल रहए आ कहने रहए जे यादवजीकेँ होटलक नाम बता देबन्हि ओ बुझि जएताह। अरिन्दम ई मैसेज यादवजीकेँ तखने दऽ देने रहथि। आब आइ नहि जानि कोन कारणसँ एखन धरि ऑफिस नहि आएल अछि। कनियाँ तँ गेलैक नैहरि आ तखन आब ककर फोन अएतैक जकरा कहबैक जे एकर स्थानान्तरण भऽ गेलैक।
फोन तँ नहि आएल मुदा ओ आएलि रहए, बॉसक प्रेमिका। आइ ओ अपन नामो बतेलक, बड्ड नीक नाम रहैक ओकर- पारुल।
“यादवजी कतए गेलथि”।
“हुनकर स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। अरिन्दम बाजल।
“अच्छा”। ई कहि ओ चलि गेलि।
“अहाँकेँ फोनपर आएल प्रश्नक उत्तरमे ई कहबाक रहए, सोझाँ आएल लोककेँ नहि”। ओकर सहकर्मी रोहिणी हँसैत बाजलि।
“हम कनेक भाँसि गेल छी। आब आइसँ ऑफिसक फोन रिसीव करबाक भार अहाँपर”। अरिन्दम बाजल।
रोहिणी एहि गपकेँ हँसीमे लेने रहए मुदा अरिन्दम तखनेसँ सभटा फोन रिसीव केनाइ छोड़ि देलक।
एहन नहि रहए जे बॉस कार्यालय अब् नहि छल। जखन धरि ओ कार्यालयमे रहैत छल बेशी काल अपने फोन रिसीव करैत रहए, काजमे सेहो फुर्तिगर रहए।
“एकटा गप बुझलिऐ। अजय गणेशन आइ भोरसँ मुँह लटकौने अछि”।
“किएक”। रोहिणीक प्रश्नक उत्तर दैत अरिन्दम बाजल।
“इन्टरनेटपर कोनो प्रेमिका संगे कतेक महिनासँ चैटिंग द्वारा प्रेमालाप करैत रहए। आइ पता लगलैक जे ओकरा संगे क्यो दोसर लड़का हँसी कऽ रहल छलैक। प्रेम वियोगमे अदहा बताह बनल अछि”- रोहिणी कहलक।
यादव जी कोनो चीज बिसरि गेल छलाह से लिफ्टसँ तखने कक्षमे आएल रहथि, रोहिणीक गप सुनि लेने छलाह।
“हमरा तँ इन्टरनेटक ई माध्यमे आकाशीय लगैत अछि”- कहैत ओ अपन चश्मा लेलन्हि आ चलि गेलाह।
रोहिणीकेँ फोन रिसीव करबाक ड्युटी लगलन्हि तँ अरिन्दम निश्चिन्त भऽ गेलाह।
“सुनैत छी, एक बेर फोनपर जे अबाज अबैत छैक जे हम यादवजीक पत्नी छी तँ ओहिमे कचबचियाक अबाज गुँजैत छैक आ दोसर बेर जे फोन अबैत अछि जे हम यादव जीक पत्न्नी छी तँ ओहिमे गंभीरता रहैत छैक। की रहस्य अछि किछु ने बुझाइए”।
“लोकक मूड होइत छैक”।
“एहन कोन मूड होइत छैक जे घण्टे-घण्टामे बदलैत रहैत छैक। आ देखू एहि बॉसकेँ। जखन चुलबुलिया मूडमे फोन अबैत छैक तँ ई हँ-हँ हमर सरकार कहि कऽ गप करैत अछि आ जखन गम्भीर स्वरमे पत्नीक फोन अबैत छैक तँ झिरकिकँ बजैत अछि जे ऑफिसक फोनपर फोन किएक केलहुँ- बुझू”।
“ई अपना रहलापर फोन अपने उठबैक प्रयास करैत अछि”।
“कोनो डर छैक ताहि द्वारे”।
“अहाँकेँ तँ ओहिना लगैत रहैए, कथीक डर रहतैक एकरा”।
आब अरिन्दमकेँ लगलैक जे रोहिणी कोनो चीजक अन्वेषणमे लागि गेल अछि।
“दू दिनसँ देवगन तंग कएने अछि दुर्घटना बीमा करेबाक लेल”- रोहिणी बजलीह।
“एजेन्सी लऽ लेलक अछि की?”- अरिन्दम पुछलन्हि। देवगन ऑफिसमे चपरासी छल।
“हँ, एहि नगरमे जतेक पाइ भेटैत छैक ताहिसँ की होएतैक से पत्नीक नामसँ एजेन्सी लेने अछि। कहैत रहए पन्द्रह सालक दुर्घटना बीमा लेबाक लेल”।
“ओ, तखन ई एल.आइ.सी. नहि जी.आइ.सी.क एजेन्सी लेने अछि”।
“कम्मे प्रीमियम छैक लऽ लियौक, हमहू लऽ रहल छी”।
देवगन खुशी खुशी दुनू गोटेकेँ फॉर्म भरबाक लेल देलक आ चाह बनेबाक लेल चलि गेल। तखने यादवजी धरधराइत अएलाह।
“कोन फॉर्म सभ गोटे भरि रहल छी?”
“देवगन कनियाँक नामसँ इन्स्योरेन्सक एजेन्सी लेने अछि, वैह दुर्घटना बीमा करबा रहल अछि सभक”। रोहिणी आ अरिन्दम जेना संगे बाजि उठलाह।
तखने देवगन चाहक ट्रे लेने आएल। यादवजीकेँ फॉर्मक तहकीकात करैत देखि ओकर देह सर्द भऽ गेलैक।
“दू टा फॉर्म हमरोसँ भरबा लिअ”- यादवजी देवगनकेँ कहलखिन्ह।
देवगनकेँ तँ कानपर विश्वासे नहि भेलैक। दौगि कऽ दू टा फॉर्म अनलक।
“एकटा हमरा नामसँ भरू आ एकटा सबीना यादवक नामसँ”।
“मेम साहबक नाम सबीना यादव छन्हि?”
“हँ”।
फॉर्म जखन भराए लागल तँ नॉमिनेशनक कॉलम मे देवगन यादवजी बला फॉर्ममे सबीना यादव आ सबीना यादव बला फॉर्ममे यादव जीक नाम भरि देलक।
“ई की केलहुँ, दुनू फॉर्म चेन्ज करू। नॉमिनेशनक की जरूरति अछि। हमरा पत्नीक पाइक कोनो खगता नहि अछि”।
देवगन दुनू फॉर्म फाड़ि दू टा नव फॉर्म भरलक। अपन फॉर्ममे यादवजी हस्ताक्षर कएलन्हि आ दोसर फॉर्म साइन करेबाक लेल देवगनकेँ पता लिखि कऽ देबऽ लगलाह।
“हमरा अहाँक डेरा देखल अछि साहब”।
“ई दोसर पता छी, राखू”।
रोहिणीक कान ठाढ़ भऽ गेलन्हि। ओ यादवजीक बाहर गेलाक बाद देवगनक कानमे किछु कहलन्हि। अरिन्दम अपन काजमे लागल रहल।
“यादवजी छथि?” फोनपर पारुल रहथि।
“यादवजीक ट्रान्सफर भऽ गेलन्हि”।
“झूठ नहि बाजू, हुनका फोन दियन्हु”।
“हे, नहि तँ हम अहाँक नोकर छी आ नहिये अहाँक यादव जीक।
ई कहैत अरिन्दम फोन पटकि देलक। बीचमे कतेक दिनसँ रोहिणी फोन उठबैत छलीह। आइ ओ कतहु एम्हर-ओम्हर छलीह से अरिन्दमकेँ फोन उठाबए पड़ल रहैक।
रोहिणी तखने पहुँचि गेल छलीह- “अभ्यास खतम भऽ गेने तामस उठि गेल अहाँकेँ”। अरिन्दम स्वीकृतिमे मूड़ी डोलेलक।
आइ ऑफिस अबैत काल रेडियो मिर्ची एफ.एम. पर चलि रहल अण्ट-शण्ट गप नीक लागि रहल छलैक अरिन्दमकेँ।
“हमर बड़का बेटा सुमन्त तेलुगु खूब नीक जकाँ बजैत अछि मुदा छोटका हिन्दी बाजए लागल अछि। हैदराबादसँ दादाक फोन अबैत छैक तँ हुनको हिन्दीयेमे जवाब दैत अछि। हुनका हिन्दी अबिते नहि छन्हि। घरमे पति तेलुगु बजबाक अभियान शुरु कएने छथि”- रोहिणी बाजि रहल छलीह।
“अच्छा”।
“बुझलहुँ, पारुलक फोन आएल रहए। कहैत रहए जे अरिन्दम जीक हम कोनो बकड़ी तँ नहि खोलि लेने छलियन्हि जे ओना कऽ फोनपर झझकारि उठल रहथि”।
“हूँ”।
“आ ई सेहो बाजि रहल छलि जे ओ यादवजी पर विश्वास कए धोखा खएलक”।
“ओ”।
“आ देवगन गेल रहए यादवजीक नवका घर”।
“नवका घर? पुरनका घर बेचि देलन्हि की?”
“नहि। देवगनेक कहल कहैत छी। पुरनका घरमे यादव जीक पहिल पत्नी रहैत छथिन्ह, वैह अहाँक गम्भीर स्वरवाली। आ नवका घरमे नवकी चुलबुली कनियाँ रहैत छन्हि। एकटा कोढ़चिल्को देखलक देवगन। यादवजीक बेटा रहन्हि प्रायः”।
गजेन्द्र ठाकुर
केदारनाथ चौधरीक उपन्यास “चमेली रानी” आ माहुर
केदारनाथ चौधरी जीक पहिल उपन्यास चमेली रानी २००४ ई. मे आएल । एहि उपन्यासक अन्त एहि तरहेँ खतम भेल जे एकर दोसर भागक प्रबल माँग भेल आ लेखककेँ एकर दोसर भाग माहुर लिखए पड़लन्हि। धीरेन्द्रनाथ मिश्र चमेली रानीक समीक्षा करैत विद्यापति टाइम्समे लिखने रहथि- “...जेना हास्य-सम्राट हरिमोहन बाबूकेँ “कन्यादान”क पश्चात् “द्विरागमन” लिखए पड़लनि तहिना “चमेलीरानी”क दोसर भाग उपन्यासकारकेँ लिखए पड़तन्हि”।
ई दुनू खण्ड कैक तरहेँ मैथिली उपन्यास लेखनमे मोन राखल जाएत। एक तँ जेना रामलोचन ठाकुर जी कहैत छथि- “..पारस-प्रतिभाक एहि लेखकक पदार्पण एते विलम्बित किएक?” ई प्रश्न सत्ये अनुत्तरित अछि। लेखक अपन ऊर्जाक संग अमेरिका, ईरान आ आन ठाम पढ़ाइ-लिखाइमे लागल रहथि रोजगारमे रहथि मुदा ममता गाबए गीतक निर्माता घुमि कऽ दरभंगा अएलाह तँ अपन समस्त जीवनानुभव एहि दुनू उपन्यासमे उतारि देलन्हि। राजमोहन झासँ एकटा साक्षात्कारमे हम एहि सम्बन्धमे पुछने रहियन्हि तँ ओ कहने रहथि जे बिना जीवनानुभवक रचना संभव नहि,जिनकर जीवनानुभव जतेक विस्तृत रहतन्हि से ओतेक बेशी विभिन्नता आ नूतनता आनि सकताह। केदारनाथ चौधरीक “चमेली रानी” आ “माहुर” ई सिद्ध करैत अछि। चमेली रानी बिक्रीक एकटा नव कीर्तिमान बनेलक। मात्र जनकपुरमे एकर ५०० प्रति बिका गेल। लेखक “चमेली रानी”क समर्पण “ओहि समग्र मैथिली प्रेमीकेँ जे अपन सम्पूर्ण जिनगीमे अपन कैंचा खर्च कऽ मैथिली-भाषाक कोनो पोथी-पत्रिका किनने होथि” केँ करैत छथि, मुदा जखन अपार बिक्रीक बाद एहि पोथीक दोसर संस्करण २००७ मे एकर दोसर खण्ड “माहुर”क २००८ मे आबए सँ पूर्वहि निकालए पड़लन्हि तखन दोसर भागमे समर्पण स्तंभ छोड़नाइये लेखककेँ श्रेयस्कर बुझेलन्हि। एकर एकटा विशिष्टता हमरा बुझबामे आएल २००८ केर अन्तिम कालमे जखन हरियाणाक उपमुख्यमंत्री एक मास धरि निपत्ता रहलाह, मुदा राजनयिक विवशताक अन्तर्गत जाधरि ओ घुरि कऽ नहि अएलाह तावत हुनकापर कोनो कार्यवाही नहि कएल जाऽ सकल। अपन गुलाब मिश्रजी तँ सेहो अही राजनीतिक विवशताक कारण निपत्ता रहलोपर गद्दीपर बैसले रहलाह्,क्यो हुनका हँटा नहि सकल। चाहे राज्यक संचालनमे कतेक झंझटि किएक नहि आएल होए। उपन्यास-लेखकक जीवनानुभव एकर सम्भावना चारि साल पहिनहिए लिखि कऽ राखि देलक। भविष्यवक्ता कोनो टोना-टापरसँ भेनाइ संभव नहि होइत अछि वरन् जीवनानुभव एकरा सम्भव बनबैत अछि। एहि दुनू उपन्यासक पात्र चमत्कारी छथि, आ सफल सेहो कारण उपन्यासकार एकरा एहि ढंगसँ सृजित करैत छथि जेना सभ वस्तुक हुनका व्यक्तिगत अनुभव होइन्ह।
उपन्यासक बुर्जुआ प्रारम्भक अछैत एहिमे एतेक जटिलता होइत अछि जे एहिमे प्रतिभाक नीक जकाँ परीक्षण होइत अछि। “चमेली रानी” उपन्यासक प्रारम्भ करैत लेखक एकर पहिल परीक्षामे उत्तीर्ण होइत छथि जखन एकर लयात्मक प्रारम्भ पाठकमे रुचि उत्पन्न करैत अछि। कीर्तिमुखक पाँच टा बीटाक नामकरणक लेल ओकर जिगरी दोस कन्टीरक विचार जे – “पाँचो पाण्डव बला नाम बेटा सबहक राखि दहक। सुभिता हेतौ”। फेर एक ठाम लेखक कहैत छथि जे जतेक गतिसँ बच्चा होइत रहैक से कौरवक नाम राखए पड़ितैक। नायिका चमेली रानीक आगमन धरि कीर्तिमुखक बेटा सभक वर्णन फेर एहि क्रममे अंग्रेज डेम्सफोर्ड आ रूपकुम्मरिक सन्तान सुनयनाक विवरण अबैत अछि। फेर रूपकुम्मरिक बेटी सुनयनाक बेटी शनिचरी आ नेताजी रामठेंगा सिंह “चिनगारी”क विवाह आ नेताजी द्वारा शनिचरीकेँ कनही मोदियानि लग लोक-लाजक द्वारे राखि पटना जाएब, नेताजीक मृत्यु आ शनिचरी आ कीर्तिमुखक विवाहक वर्णन फेरसँ खिस्साकेँ समेटि लैत अछि। तकर बाद चमेली रानिक वर्णन अबैत छथि जे बरौनी रिफाइनरीक स्कूलमे बोर्डिंगमे पढ़ैत छथि आ एहि कनही मोदियानिक बेटी छथि। कनही मोदियानिक मृत्युक समय चमेली रानी दसमाक परीक्षा पास कऽ लेने छथि। भूखन सिंह चमेली रानीक धर्म पिता छथि। डकैतीक विवरणक संग उपन्यासक पहिल भाग खतम भऽ जाइत अछि।
दोसर भागमे विधायकजीक पाइ आकि खजाना लुटबाक विवरण, जे कि पूर्व नियोजित छल, एहि तरहेँ देखाओल गेल अछि जेना ई विधायक नांगटनाथ द्वारा एकटा आधुनिक बालापर कएल बलात्कारक परिणामक फल रहए। आब ई नांगटनाथ रहथि मुख्यमंत्री गुलाब मिसिरक खबास जे राजनीतिक दाँवपेंचमे विधायक बनि गेलाह। २००८ ई.क अरविन्द अडिगक बुकर पुरस्कारसँ सम्मानित अंग्रेजी उपन्यास “द ह्वाइट टाइगर”क बलराम हलवाइक चरित्र जे चाहक दोकानपर काज करैत दिल्लीमे एकटा धनिकक ड्राइवर बनि फेर ओकरा मारि स्वयं धनिक बनि जाइत अछि, सँ बेश मिलैत अछि आ चारि बरख पूर्व लेख एहि चरित्रक निर्माण कऽ चुकल छथि। फेर के.जी.बी. एजेन्ट भाटाजीक आगमन होइत अछि जे उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर” धरि अपन उपस्थिति बेश प्रभावी रूपेँ रखबामे सफल होइत छथि।
उपन्यासक तेसर भागमे अहमदुल्ला खाँक अभियान सेहो बेश रमनगर अछि आ वर्तमान राजनीतिक सभ कुरूपताकेँ समेटने अछि।
उपन्यासक चारिम भाग गुलाब मिसिरक खेरहा कहैत अछि आ फेरसँ अरविन्द अडिगक बलराम हलवाइकेँ मोन पाड़ैत अछि। भुखन सिंहक संगी पन्नाकेँ गुलाब मिसिर बजबैत अछि आ ओकरा भुखन सिंहक नांगटनाथ आ अहमदुल्ला अभियानक विषयमे कहैत अछि। संगहि ओकरा मारबाक लेल कहैत अछि से ओ मना कऽ दैत छैक। मुदा गुलाब मिसिर भुखन सिंहकेँ छलसँ मरबा दैत अछि।
पाँचम भागमे भुखन सिंहक ट्रस्टक चरचा अछि, चमेली रानी अपन अड्डा छोड़ि बैद्यनाथ धाम चलि जाइत छथि। आब चमेली रानीक राजनीतिक महत्वाकांक्षा सोझाँ अबैत अछि। स्टिंग ऑपरेशन होइत छथि आ गुलाब मिसिर घेरा जाइत छथि।
उपन्यासक छठम भाग मुख्यमंत्रीक निपत्ता रहलाक उपरान्तो मात्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाओल जएबाक चरचा होएबाक अछि जे कोलिशन पोलिटिक्सक विवशतापर टिप्पणी अछि।
उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर”क पहिल भाग सेहो घुरियाइत-घुरियाइत चमेली रानीक पार्टीक संगठनक चारू कात आबि जाइत अछि। स्त्रीपर अत्याचार, बाल-विधवा आ वैश्यावृत्तिमे ठेलबाक संगठन सभकेँ लेखक अपन टिप्पणी लेल चुनैत छथि।
माहुरक दोसर भागमे गुलाब मिसिरक राजधानी पदार्पणक चरचा अछि। चमेली रानी द्वारा अपन अभियानक समर्थनमे नक्सली नेताक अड्डापर जएबाक आ एहि बहन्ने समस्त आन्दोलनपर लेखकीय दृष्टिकोण, संगहि बोनक आ आदिवासी लोकनिक सचित्र-जीवन्त विवरण लेखकीय कौशलक प्रतीक अछि। चमेली रानी लग फेर रहस्योद्घाटन भेल जे हुनकर माए कनही मोदियाइन बड्ड पैघ घरक छथि आ हुनकर संग पटेल द्वारा अत्याचार कएल गेल, चमेली रानीक पिताक हत्या कऽ देल गेल आ बेचारी माए अपन जिनगी कनही मोदियाइन बनि निर्वाह कएलन्हि। ई सभ गप उपन्यासमे रोचकता आनि दैत अछि।
माहुरक तेसर भाग फेरसँ पचकौड़ी मियाँ, गुलाब मिसिर, आइ.एस.आइ. आ के.जी.बी.क षडयन्त्रक बीच रहस्य आ रोमांच उत्पन्न करैत अछि।
माहुरक चारिम भाग चमेली रानी द्वारा अपन माए-बापक संग कएल गेल अत्याचारक बदला लेबाक वर्णन दैत अछि, कैक हजार करोड़क सम्पत्ति अएलासँ चमेली रानी सम्पन्न भऽ गेलीह।
माहुरक पाँचम भाग राजनैतिक दाँव-पेंच आ चमेली रानीक दलक विजयसँ खतम होइत अछि।
विवेचन: उपन्यास विधाक बुर्जुआ आरम्भक कारण सर्वांतीजक “डॉन क्विक्जोट”, जे सत्रहम शताब्दीक प्रारम्भमे आबि गेल रहए, केर अछैत उपन्यास विधा उन्नैसम शताब्दीक आगमनसँ किछु समय पूर्व गम्भीर स्वरूप प्राप्त कऽ सकल। उपन्यासमे वाद-विवाद-सम्वादसँ उत्पन्न होइत अछि निबन्ध, युवक-युवती चरित्र अनैत अछि प्रेमाख्यान, लोक आ भूगोल दैत अछि वर्णन इतिहासक, नीक- खराप चरित्रक कथा सोझाँ अबैत अछि। कखनो पाठककेँ ई हँसबैत अछि, कखनो ओकरा उपदेश दैत अछि। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि।
जीवनानुभव सेहो एक पक्षक होइत अछि आ दबाएल इच्छाक तृप्तिक लेल लेखक एकटा संसारक रचना कएलन्हि जाहिमे पाठक यथार्थ आ काल्पनिकताक बीचक आड़ि-धूरपर चलैत अछि।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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