भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Saturday, April 04, 2009
विदेह २७ म अंक ०१ फरबरी २००९ (वर्ष २ मास १४ अंक २७)-part-iv
३.पद्य
३.१.श्री गंगेश गुंजनक- राधा (नवम खेप)
३.२. गजेन्द्र ठाकुर- 15 टा पद्य
३.३. सतीश चन्द्र झा- दू टा कविता
३.४.ज्योति- पनभरनी
३.५. पंकज पराशर - सत्तनजीब
३.६. मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल- बी.के कर्ण
डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार।१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल। ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “ किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”। “किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके। मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि। श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। प्रस्तुत अछि गुञ्जनजीक मैगनम ओपस "राधा" जे मैथिली साहित्यकेँ आबए बला दिनमे प्रेरणा तँ देबे करत सँगहि ई गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित सभ दुःख सहए बाली- राधा शंकरदेवक परम्परामे एकटा नव-परम्पराक प्रारम्भ करत, से आशा अछि। पढ़ू पहिल बेर "विदेह"मे गुञ्जनजीक "राधा"। -सम्पादक.
गुंजन जी लिखित रचना सभ डाउनलोड करबाक लेल नीचाँक लिंककेँ क्लिक करू -
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गुंजनजीक राधा (नवम खेप)
विचार आ संवेदनाक एहि विदाइ युग भू- मंडलीकरणक बिहाड़िमे राधा-भावपर किछु-किछु मनोद्वेग, बड़ बेचैन कएने रहल।
अनवरत किछु कहबा लेल बाध्य करैत रहल। करहि पड़ल। आब तँ तकरो कतेक दिन भऽ गेलैक। बंद अछि। माने से मन एखन छोड़ि देने अछि। जे ओकर मर्जी। मुदा स्वतंत्र नहि कए देने अछि। मनुखदेवा सवारे अछि। करीब सए-सवा सए पात कहि चुकल छियैक। माने लिखाएल छैक ।
आइ-काल्हि मैथिलीक महांगन (महा+आंगन) घटना-दुर्घटना सभसँ डगमगाएल-
जगमगाएल अछि। सुस्वागतम!
लोक मानसकें अभिजन-बुद्धि फेर बेदखल कऽ रहल अछि। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहल अछि- मैथिलीयेक नाम पर शहीद बनवाक उपक्रम प्रदर्शन-विन्याससँ। मिथिला राज्यक मान्यताक आंदोलनसँ लऽ कतोक अन्यान्य लक्ष्याभासक एन.जी.ओ.यी उद्योग मार्गे सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल । से एहन कालमे हम ई विहन्नास लिखवा लेल विवश छी आऽ अहाँकेँ लोक धरि पठयवा लेल राधा कहि रहल छी। विचारी।
राधा (नवम खेप)
किछु ने उत्तर कतहुसँ सब किछु पड़ल अछि शान्त सब दिश रातुक अतल अन्हार आ निश्चिन्त निद्रालीन गामक लोक । सभ टा माल जाल, पंछी पखेरु चुप्प दबकल । अपन-अपन ठौर आ अपन ठेकान
समय स्वयं बनि गेल हो जेना सबहक कान एक मात्र,
एकमात्र, नाक आ एकहि मात्र आँखि सौंसे आबादीक भऽ गेल हो- जेना एकीकरण,
एकहि एक चेतना करण, एकहि बोध एकमात्र अस्तित्वक भास
सौंसे सब किछु भऽ गेल हो जेना आकाश
से बूझि मनुषकेँ अब्बल-दुब्बल
चुपचाप आकि सूति गेल हो स्वयं बनि पताल ! माने सब तारागण समेतक चन्द्रमा आ रंग, रसक
बसात लऽ कऽ आ सूतल आकाश अतल तल मे जा कऽ ओहि पताल
विलक्षण मनक ई प्रवाह आ बुद्धिक दिशा राधा, एहुक नहि कोनो टा अछि उत्तर,
भला सोचू जे ई आकाश जाऽ कऽ कोना भऽ जायत पताल
यदि सेहो तँ कतऽ जायत पताल, कोन बाटे उतरत ? वा चलि कऽ गेल होयत ? जँ भरि जायत एही अनन्त आकाशसँ ? दोसर जे, कोना आँटत एतेक टा आकाश ओतनी टाक पताल मे ? के अंटाओत आ फल की तकर !
हँ, से तं अछि ठीक मुदा हमरा लेल एकदम साफ
कहाँ कत्तहु देखाइए एकहु टुकड़ी मेघ
एक्कहु टा, एतय धरि जे कनियों लुकझुको तारा, कत्तहु कोनो कात ? कोनो कोन मे ?
कहाँ सब टा तँ अछि भेल अदृश्य - अंतर्धान,
सोझाँ जे विशाल विस्तारसँ पसरल महा अन्हार राति
कहाँ किछु अछि शेष कोनो ध्वनि कोनो ज्योति कोनो
स्पर्श कोनो बोध जे स्वाधीन, कहि आ बुझा सकय
अहाँक होयबाक अर्थ सेहो सदेह आ जीवन्त प्राणक ?
कहाँ किछु कतहु ? सब टा अछि बनि गेल समुद्र
कि योजन योजनक अन्हार पताल । ककरो किछु
ने सूझय, किछु ने भेटय, तथापि किछु ने किछु तकबे करी
से मनुक्खक लुतुक आ अभ्यास तेँ,
लागल अनेरे एहि अन्हारक सिन्धु सँ खसयबा मे
मनक जाल – बझवै लेल जानि ने माछ केहन ?
समस्त अस्तित्व फाटल पुर्जी सन उधिया रहल
कृष्णक प्रथम पत्रक पुर्जी, सौंसे भेल, भरि पृथ्वी,
अनन्त पताल धरि, चलि गेल,
छूटि गेल अपना हाथ सँ, उधिया रहल ई मन
स्वयं हुनकर प्रथम पत्रक फटल पुर्जी भेल,
यद्यपि शब्द अछि कंठस्थ सभ टा किन्तु
हुनक स्पन्दित उपस्थिति, हुनक होयवाक निरन्तर
अनुभूति आभास केर स्वरूप तँ टूटि गेल
ई की भेल ? हमरा संगे ई की भेल ?
बड़ रही उदास एक दिन अहाँ माधव,
कोनो टा ने करैत रही गप्प शप्प , खोंटैत मात्र दूभि हरियर,
ताहू पर करैत जेना स्वयं के मने मन गंजन आ पश्चात्तापी आघात,
-‘दूवि भेल तँ दूरि गेल ? अनेरे कियेक ओकर हो एना दुर्दशा
आ सेहो अहाँ सदृशक हाथ सँ ? ई तँ थिक हिंसा
एक प्रकारेँ हिंसा, अन्याय ! नहि ?’
भंगठल खेलौना ठीक भऽ गेलापर कोनो नेनाक आकृति पर जेहन,
अबैत छैक स्वर्गसँ चलल काल हर्षक आभा मृदुल नान्हि टा ठोढ़ पर आ आँखि मे चमक आनन्दक,
सएह अनमन सएह भऽ गेल रहय अहूंक समाचार ,मन अछि?
केहन दुर्लभ विहुंसी छल ओ ? सौंसे भुवनक सुखक सूत्र बिहुंसी ! अहाँक, अछि मन ?
ताहि दिव्य विहुंसी के देखिते हम ताकऽ लगलौँ अपन नूआक खूट
बड़े व्यग्र बड़ उताहुल ।
-“की भेलौ राधा?” अहाँक एहि प्रश्न मे रही बाजल जेना ।
- खूटमे सरिया कऽ एकरा बान्हि कऽ धऽ लैत छी, अहाँक ई मुस्की, माधव !
अनन्त कालक चुप्पीक उपरान्त ; सौंसे सृष्टि जेना
हम सत्ये लैत अहाँक ठोर सँ विहुंसी अपन आंजुर अभागल सब सँ
बान्हि लेने रही खूट मे विहुँसीक गीरह !
बन्हितहिं रही कि अहाँ अनचोकहि हमर
जुट्टी के घीचैत जोर सँ कहने बिना किछु-
कष्ट देबा धरि- जोरे हमर मूड़ी पाछाँ देलौं झुका
आ कृत्रिम क्रोध सँ कय गेलौं हमरे आँखि बाटे हमरे अभ्यंतर मे बलात् प्रवेश,
स्वागत !
कहाँ बाँचल रहल हमरा बोध । नहि बाँचल ।
अहाँक हाथें घीचल जाइत अपन दुखाइत केशक ।
मात्र एतबे तँ रही कहने आधा तामस आ पूरा स्नेह सँ
-‘करबें सैतानी फेर, हमरा संगे? बाज...बाज मोटकी?’
से पूछब बोल नहि छल - स्वयं छल अनंत प्रतिध्वनि – निनादित ब्रह्माण्ड
अपने आप अहाँक ओहि बोल सँ गुंजित अनुगुंजित प्रतिगुंजित
अनवरत एहि प्रक्रियामे बनि गेल छल
महानादक एक टा त्रिलोक व्यापी आवर्त ! प्रत्यावर्त’
गनगनाय लागल छल हमर सृष्टि !
बहुत किछु तँ अहिना अनेरे होइत अछि जीवन मे,
अनेरेक ओही आवृत्त पुनरावृत्त पड़ल पथार मे स सस्नेह आ श्रमपूर्वक
ताकय पड़ैत छैक मनुक्ख केँ । मनुक्ख, ताही प्रकृति प्रक्रिया
स मात्र तकबा लेल, जीवन-प्राण लेल उपयोगी,
तत्व तकबा लेल आयल
पृथ्वी पर । सएह कऽ रहल ।
तहिया सँ आइ धरि सएह क रहल । तहिया- तकर बादो
बहुत युग धरि कहियो नहि भेल विरत- विरक्त ने एकहु रती
उदासीन अपन एहि जीवन-गति सँ ।
लैत अपन एहि नियति केँ कौखन प्रेम, कौखन
आदर्श, नैतिकता कौखन धर्म धर्मादेश कौखन
आओर नहि तँ बेशी काल लोक लज्जा-मर्यादा ।
एतेक विस्तृत आ जटिल भेल चल जाइत
मनुक्ख जीवनक अनादि अनन्त पथार मे सँ
एतेक रास अकटा मिसिया बीछ कऽ करब
फराक आ अपना योग्य अन्न कऽ लेब अपना दिस
अपन पथिया- ढाकी- अर्थात्
अपन वासन मे- केहन मोश्किल आ कए
काल अकच्छाह सेहो तँ !
मनुक्ख भरि जन्म कि अन्नक पथारमे सँ इच्छित अकटा मिसिया बिछबाक लेल ! भेटल छैक लोककेँ एतबे लेल आयु ?
-एतबे लेल नहि अवश्ये, मुदा इहो छैक आवश्यक राधिका !
एहनो नहि बुझियौ एहि बातकेँ व्यर्थ । कए बेर सुनि गेलाक आ चुप रहलाक बाद, कृष्ण अहाँ स्वभाव सँ एकदम अप्रत्याशित धीर-गम्भीर स्वरमे एतवा कहि कऽ आँगुर सँ सरिया देने रही हमर तेल बिन भऽ गेल जट्टा जट्टा केशक । एकटा कपार पर लटकल लट।
-जेना ईहो तँ ! सौंसे ब्रजमे कतेक रास छैक लोक, कतेक रास गोपी सब । लोक गोपीक कतेक रास केश सुन्दर आ सुन्दर, बहुत रास.... तहिना
बात, घटना आ धान-पान-मखान संगहि जनमल अनेरेक दूभि निफल लत्ती-कर्मीक महाजाल ! आदि तकरा बीचहि सं त अपना लेल’ उपयुक्त आनऽ पड़ैत छैक मनुक्ख कें । एहि मे एकहु रत्ती नहि छैक उदास आ विरक्त होयबाक बात । बल्कि उन्टे एकरा जीवन कें आगाँ लऽ जयबा लेल, सुख कें आगाँ बढ़यवा वास्ते आ दुःख सबकें बीछि-बीछि कऽ फराक करैत अपना सुभीताक बाट करवाक वास्ते सृष्टिक देल एकटा अवसर होयवाक चाही, से एकर उपयोग । एकरे तं राखऽ पड़ैत छैक ध्यान ।
ध्यान बड़ मूल्यवान छैक मनुक्ख-देहक रक्त-प्रवाह मे राधा ! मुदा आश्चर्य जे सेहो नहि छैक अंतिम अनिवार्य । ओकरो छैक अपन आयु आ अपनहि अर्थ, सीमा । मनुक्ख-मनुक्खक मोताविक छैक तहिना उपयोगिता सेहो ओकर । छूटय नहि बुद्धिक ई सूत्र । सैह चेतवैत रहैत अछि हमरा विवेक । सुख तं सुख, जे आनन्द पर्यन्त नहि होइत अछि तेहन पोखरि-धार जाहि मे सतत निर्मल जले टा छल-छल करैत रहय । प्रवाहित होइत रहय । थम्हलो रहय तं नहि भऽ सकैत अछि ओ एकदम्मे सेमार-करमी बा अन्य दृय-अदृश्य वनस्पति सभ सं सर्वथा मुक्त, मात्र जल शीतल सर्वथा मनुष्येक उपयोग आवश्यकता भरि । तें आनन्द सन आनन्द ! तकरो मुदा एकटा काल सीमा पर, यथा समय झाड़ऽ–पोछऽ पड़ैत छैक । ओकरा आनन्द बनल रखवाक वास्ते समय पर ध्यान सं स्नान करबऽ पड़ैत छैक, नव धोआ वस्त्र पहिराबऽ पड़ैत छैक । यमुना पर्यंत सतत् यमुना नहि रहि पबैत छैक राधा । ओकरो नहाबऽ पड़ैत छैक । एकरो वस्त्र बदलऽ पड़ैत छैक-नव धोअल वस्त्र !
सब लोक तें अपने-अपने आनन्दक माय होइत अछि । आनन्द ओकर शिशु-संतान ! तकरो लेल करऽ पड़ैत छैक भरि प्राण ताकुत राधा ! पोसऽ पड़ैत छैक... से सत्य । मुदा नहि बना दी आनन्द कें जुआन, परिपक्व ! कथमपि नहि।
जनैत छें अपन आनन्दकें कदापि जुआन नहि होमऽ दी । रखने रही ओकरा कोरा-करेज आ बांहि धरि मे समेटि इच्छानुसार दुलार करबा लेल मोहक शिशु ! आनन्द बच्चे आनन्द ! जवान आनन्द, भऽ जाइत अछि किछु आन बात :
बुझबा लेल कहैत छी ई जे हमर मित्र अभिन्न छथि अप्पन । महान । हिनकर आनन्द भऽ गेलनिहेँ जवान ! तकरे टा आब ई सब उपद्रव छनि भरि जीवन जगत, निर्गुण-सगुणक ज्ञान-ध्यान । सएह बनल छनि हिनक सामर्थ्य तेँ सैह बनौने छनि निरानन्द । यद्यपि सभक अपन-अपन बाट होइत छैक ! अपन डेग, अपन-अपन गति !
हम तँ भऽ गेल रही हतप्रभ !
वाह रे कृष्ण ! वाह रे अहांक ज्ञान ! ई केहन गप्प आ सुझाव ?
आनन्द कें नेने रखने रही... जवान नहि होअ दी ...उद्धवक भऽ गेल छनि आनन्द जवान !
(२१.०४.०५)
(अगिला अंकमे जारी)
गजेन्द्र ठाकुर
15 टा पद्य
१.
देखैत दुन्दभीक तान
*शामिल बाजाक
सुनैत शून्यक दृश्य
प्रकृतिक कैनवासक
हहाइत समुद्रक चित्र
अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे
तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर
सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह
हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश
देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह
हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर
आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त
सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि
असीमताक मात्र छद्म।
घुमैत गोल पृथ्वीपर,
चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।
मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
एहि अनन्तक परिधि
परिधिकेँ नापि अछि लेने मनुक्ख।
ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
स्वरकेँ देखबाक
चित्रकेँ सुनबाक
सागरकेँ नाँघबाक।
समय-काल-देशक गणनाक।
सोहमे छोड़ि देल देखब
अन्हार खोहक चित्र
सोहमे छोड़ल सुनब
हहाइत सागरक ध्वनि।
देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र
केहन ई साधक
बनि गेल छथि शामिल बाजाक
दुन्दभी वादक।
*राजस्थानमे गाजा-बाजावलाक संग किछु तँ एहेन रहैत छथि जे लए-तालमे बजबैत छथि मुदा बेशी एहन रहैत छथि जे बाजा मुँह लग आनि मात्र बजेबाक अभिनय करैत छथि। हुनका ई निर्देश रहैत छन्हि जे गलतीयोसँ बाजामे फूक नहि मारथि। यैह छथि शामिल बाजा।
२.
ढहैत भावनाक देबाल
खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़
बालकोनीमे राखल गमलामे तुलसीक गाछ
प्रतीक मात्र सहृदयताक
आकांक्षाक बखाड़ी अछि भरल
घरमे राखल हिमाल-लकड़ीक छोट मन्दिर
प्रतीक बनि ठाढ़।
मोन पाड़ैत अछि इनार-पोखरिक महार,
स्विमिंगपूलक नील देबाल
बनबैत पानिकेँ नील रंगक
मोनक रंगक अदृश्य देबाल
ढहैत
खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़
बहैत।
३
बद्री विशाल केदारनाथ
अलकनन्दा मन्दाकिनीक मेल
हड़हराइत धार दुनू मिलैत
मेघसँ छाड़ल ई ककर निवास।
बदरी गेलाह मीत भाइ
नहि घुरलन्हि ओदरी हुनक ताहि,
आइ सड़क धरि एतए आओल
शीतल पवनक झोंक, खसि रहल भूमि,
स्खलन भेल जन्तु सबहिक,
हिम छाड़ल ई ककर वास।
हृदय स्तंभित देखि धार
पर्वत श्रेणीक नहि अन्त एतए
कटि एकर तीव्र, नीचाँ अछि धार
खसत जे क्यो की होएत तात
दुहू कात छाड़ल पर्वतसँ ई,
अलकनन्दे ई सौन्दर्य अहींक
मन्दाकिनी जे आकाश मध्य
देखल आइ पृथ्वीक ऊपर
हरहड़ाइत ई केहन फेनिल
स्वच्छ निर्मल मनुक्ख निवसित,
शीतल पवनक छाड़ल ई सृष्टि
नव दृष्टि देलक देखबाक आइ।
४
पक्काक जाठि
तबैत दुपहरियाक भीत पोखरिक महार,
पस्त गाछ-बृच्छ-केचली सुषुम पानि शिक्त,
जाठि लकड़ीक तँ सभ दैछ पक्काक जाठि ई पहिल,
कजरी जे लागल से पुरातनताक प्रतीक।
दोसर टोलक पोखरि नहि अछि डबरा वैह,
बिन जाठिक ओकर यज्ञोपवीत नहि भेल कारण सएह,
सुनैत छिऐक मालिक ओकर अद्विज छल,
पोखरिक यज्ञोपवीतसँ पूर्वहि प्रयाण कएल।
पाइ-भेने सख भेलन्हि पोखरि खुनाबी,
डबरा चभच्चा खुनेने कतए यश पाबी।
देखू अपन टोलक पक्काक जाठि ई,
कंक्रीट तँ सुनैत छी, पानियेमे रहने होइछ कठोर,
लकड़ीक जाठि नहि जकर जीवन होइछ थोड़।
५
निन्नक जीवन विचित्र
डैनियाही दुपहरियाक घामक बीच,
सपनाइत, सहस्रबाढ़निक दानवाकार आकृति,
प्रेयसीपर झपटैत ओकर कंठ मचोड़ैत,
प्रेमी पकड़ैत अछि सहस्रबाढ़निक झोंट,
पोखरिमे अछि खसैत प्रेमीक पएर बान्हि लेलक झोंटासँ,
डैनियाही दुपहरियामे पोखरिक झोंटाबला पनिडुब्बी।
तांत्रिक-सहस्रबाढ़निक झोँझसँ निकलि,
अपन प्राणान्त करैत प्रेयसीकेँ बचबैत,
प्रेमीक निन्न अछि खुजैत रौदसँ घमैत घामसँ नहाएल।
घोर निद्राक तृप्ति रहैछ मुदा हेराएल।
देखैत ओलम्पिक्समे देशवासीकेँ पछड़ैत,
मंत्र-तंत्रयुक्त दुपहरियामे जागल गुनधुनी बला स्वप्न,
बनैत अछि सभसँ तीव्र धावक, अखरहाक सभसँ फुर्तिगर पहलमान,
दमसाइत मालिकक स्वर तोड़ैत छैक ओकर एकान्त।
कारिख चित्रित रातिक निन्न,
टुटैत-अबैत-टुटैत निन्न आ स्वप्नक तारतम्य,
बनि राजनेता करैत देशक समस्याक अन्त,
बड्ड थोपड़ी अछि बजैत न्यायक डंका गुंजैत,
धर्म-जाति-आतंकवाद, समस्या-समझौता करैत,
प्राणघातक प्रहारकेँ छातीपर सहैत- जितइत,
निन्न अछि टुटैत, मुदा तकर अछैत,
घोर-निद्रा तृप्तिक अनुभूति अछि छुटैत।
निन्नकेँ आस्ते-आस्ते देलक माहुर् मित्र,
कएलक निन्नक जीवन विचित्र।
६
बंशी पाथि पकड़बाक प्रयास,
आकांक्षाक पंखयुक्त अश्वकेँ,
बोर देने सफलताक सूत्रक,
अनन्त प्रतीक्षा निस्बद्ध चुप्पीक।
पानिक तल स्थिर नियन्ताक रूप,
छोट कीड़ीक गमन उठबैत अछि सूक्ष्म हिलकोर,
आशाक विश्वासक प्रतिरूप।
बंशी पथने ठाढ़, पाथि पकड़बाक प्रयास,
अंधविश्वासक छोड़, विज्ञानक ओर,
बोर देने ज्ञानक पिण्ड,
प्रतीक्षाक अन्त! प्रशान्त शान्ति,
सोंस, काछु, हरकाछुसँ रिक्त पानि,
निर्माताक निर्मितिक अंत कएल व्याधि।
बीया-जीरा माछक रोपि,
बंशी पाथि पकड़बाक लेल हियाउ,
आकांक्षाक अश्व, सफलताक सूत्र,
ज्ञानक पिण्ड निर्माताक निर्मितिक साधांश,
ठाढ्च बिच अनन्त अकास,
यंत्रवत बिच अनन्त विस्तार,
शान्त-प्रशान्त-वाकहीन मनुक्ख।
सूक्ष्मतर भावनाक जखन आबए हिलकोर,
विह्वल करैत मनुक्खकेँ छल जे छुच्छ-रुक्ख।
७
सुरसराइत ग्वालक झुण्ड
कमलाक धारमे पिछड़ि हेलबाक द्वंद,
धारक विरुद्ध चलबाक क्रम,
ढेकरैत माल-जालक अबैए शब्द,
घुरि जाइछ गाम दिस झुण्डक-झुण्ड।
घरक वातावरण गारि-मारिक,
बकरीक नेरीक बीच जीवन साइत,
पलायन नगर दिस भेल आब ई दैव,
घृणा, विरक्ति, प्रदूषण आ ई एड्स।
कैक संगी मृत एड्सक भेँट,
नगरक चमक मोन पाड़ैछ गामक द्वैध।
अगिलही पहिने आब सुन्न अछि घर-द्वार,
कोठा-कोठामे भेल मुदा की सुखहाल?
गामक गाम सुड्डाह पलायनक अगिलहीमे,
नहि जानि की षडयंत्र ई अछि महीमे?
गाममे बेचने तरकारी लोक की कहत,
नगरमे के ई जाए देखत?
आह भेल नजरिक भेद लोकक एतहु,
चारू कात ताकी अपन जे भेटत कतहु।
अपन लोक सेहो अछि दैत अहम्,
अहमक मारि मरैत पुस्तक-पुस्त आगाँक।
आह ई खून-खुनाहनि असामक,
ई हाल की निचुलका पीढ़ीक होएत भरि भारत।
तखन कोन भयेँ छोड़ल अपन देस,
केकर षडयन्त्र किए नहि बुझि पाओल कियो?
छोड़ल धरती जड़ि नहि ताकि पाओल किएक।
तहिया मोन खराप भेने नहि डॉक्टर छल,
बाढ़ि अकालमे के ककर आसरा बनत,
जाति-पाति-धर्मक देबाल बिच,
पिचाएल जाइत मनुक्खक पलायन बाट छल।
मुदा जे आएल नहि रहल ओतहि सएह,
अछि समृद्ध, डॉक्टर वैद्य अछि,
जाति टूटल पाँति टूटल, टूटल धर्म-सम्प्रदाय की?
लोक समृद्ध भेल जनसंख्याक कम भेने आर बाट की?
मुदा दिअ हमरो अहाँ यश एहि समृद्धिक लेल,
सभ बहराएल ताहिं बोझ धरतीक कम भेल,
देस-कोस घर-द्वार आब हमर ईएह,
वेदना हमरामे अछि अगुलका पीढ़ीक,
तँ ई सम्बलो ने हएत।
८.
अभिनव भातखण्डे
( शास्त्रीय संगीतक शास्त्रकार आ गायक श्री रामाश्रय झा “रामरंग” जीक मृत्यु १ जनवरी २००९ केँ भऽ गेलन्हि। हमर रचित “मिथिलाक ध्वज गीत”क संगीत हुनके देल छन्हि। हुनकर स्नेहमे अनायासे किछु पाँती पद्य रूपमे बहराएल अछि।)
भातखण्डेक अमरत्वक,
पाश्चात्य संगीतक जे रहए षडयन्त्र,
भारतीयताक, भारतक संगीतक स्वाधीनताक अपहरण,
दृष्टिदोषक कारण जतए,
राजनैतिक नेतृत्व भेल पराजित,
स्वाधीनता भेल अपहृत,
मुदा भातखण्डेक चरित्र,
रोकि देलक संगीतक पराधीनता,
हे रामरंग, अहाँक अभिनव गीताञ्जलि,
पढ़लहुँ हम सम्पूर्ण आ
ठीके छी अहाँ अभिनव भातखण्डे,
मिथिलाक धरतीक रत्न,
कोनो मातवर, नामवरक नहि अधीन,
अहाँक पचासो बरखक साधना,
कंठसँ शास्त्रसँ स्वाधीनताक परिभाषा,
हनुमान-भक्त रामरंग अहाँक
सम्पूर्ण संगीत-रामायणक आस्वाद लेने,
मोन पड़लथि तुलसीदास,
हुनक स्त्री-शूद्रक प्रति दुर्भावपर,
अहाँक संगीत रामायणक विजय,
स्वाधीनतक नव-नव अर्थ दैत,
ठीके छी अहाँ अभिनव भातखण्डे,
राग वैदेही भैरव, राग तीर भुक्ति राग विद्यापति कल्याण मिथिलाकेँ देल,
राग भूपाली आ राग बिलावलमे मैथिली भाषाक रचना कएल,
राग विद्यापति कल्याणक द्रुत आ विलम्बित खयाल,
अहाँक देल संगीत मिथिला ध्वज गीतकेँ देलक नव अर्थ,
नव अनुभूति,
ध्वजक फहरएबाक अर्थ अछि स्वाधीनता,
स्वाधीनता मनसिक,
नाम खसि कए ठाढ़ होएबाक,
आ बैशाखी छोड़ि दौगबाक।
घृणाक आस्वाद कएनिहारक मस्तिष्कक,
प्रक्षालन करैत संगीत लहरीसँ,
हे सुखदेव झाक पुत्र खजुरा गामक लोक भेटताह तँ कहबन्हि,
रामरंगक मूर्ति गाममे लगबाए,
नहि होमए जाएब उऋण हे बहिन-भाए,
स्वाधीनताक शाखाक करए जाऊ विस्तार।
रामरंग रहि वाराणसी-प्रयागक गंगा तटपर,
कएल स्वाधीन संगीतकेँ ओ ऋषि,
स्व अधीन विचार-बात होएत,
तखने होएत श्रद्धांजलि रामरंगक हे खजुरावासी।
युगक अन्त भेल आइ, माँगनक स्वरमे गाबए छी,
माँगनक-रामरंगक नाम लिअ नहि लिअ,
मुदा मोन राखू स्वाधीनताकेँ,
विश्वाससँ निकलैत आत्मविश्वासकेँ,
नहि बान्हि राखू मस्तिष्ककेँ सिक्कड़िमे,
पएर भने बैशाखीपर रहए,
माथ रहए मुदा स्वाधीन।
९
शिल्पी
शिल्पी बलिराजगढ़क
हड़ाही पोखरिक,
पस्टनक अकौरक आ नाहर-भगवतीपुरक बौद्ध खोह,
अवलोकितेश्वर ताराक प्रतिरूप उच्चैठक मूर्ति,
स्त्रीगणक गीत सहस्राब्दि भरि सुनि-सुनि बनलीह काली-भगवती,
वैजयन्तीपुर-जनकपुर आ मिथिलानगरीक उत्थान,
अरि मर्दनक भूमि मथल जाइत अछि जतए शत्रुकेँ,
जन आ विश केर साम्राज्ञ जनक केर भूमि,
दलित शिल्पीक सभटा ई कृति,
मुदा आब के देत ओकर महत्व,
चरण रज धोबि पीबू हिनक पएर,
एतेक भेलोपर निष्कपट कएलन्हि मातुक सेवा,
कमलाक भगता बनि जनकपुरक प्रदिक्षणा,
मिथिलाक वृहत परिक्रमा गहबर सभकेँ गोहारिकेँ,
मुदा बनलाह अछूत,
गामसँ बाहर के पठेलकन्हि हुजूर,
तैयो संस्कृतिक ई शिल्पी,
नहि कएलन्हि पलायन,
अहांक बुद्ध अहींक शिव राम कृष्ण,
मन्दिरमे प्रवेश निषेधक अछैत,
नहि कएलन्हि पलायन,
धर्म-जातिक बोझ माथपर लेने रहलाह,
पूजन करू पएर रज पखारि कऽ,
बौद्ध मूर्तिक शिल्पी, ब्रह्मा विष्णुक मूर्तिक आधार,
कलाकृति भाँसि गेल, हेराएल
केलहुँ सभ मिलि ठाढ़ हिनका,
गामक बाहर,
तखन विनती
दीन भदरी, छेछन महाराज, गरीबन बाबा, लालमइन बाबा,
अमर बाबा, मोती दाइ, गांगो देवी, कृष्णाराम,सलहेसक मूर्ति बनाऊ,
चरण रज पूजि मुदा
१०
अहाँक आँखिक मिलन भेने,
दूर होइत अछि चिन्ता ओहिना,
सागर तटपर जेना लहरि लऽ जाइत अछि,
सभटा पात-खाद्य वस्तु करैछ साफ,
सभटा फिकिर, शान्त स्वच्छ तट मोनक।
अहाँक हँसीमे भऽ जाइत छी,
फेकैत अपन सभटा दुःख,
दुःखक संगे अपन सभटा महत्वाकांक्षा,
अहाँक प्रेरणा दैत अछि सम्भावना,
आत्मविश्वास अबैत अछि फुर्तिक संग,
अभिलाषाक पूर्तिक बढ़बैत आकांक्षा,
बिसरैत अपनाकेँ अहाँक आँखिमे,
अहाँक स्नेहसँ गप करब,
मात्र एतबे
अनैत अछि कतेक सम्भावना आ परिणाम,
मुदा एकर विपरीत...
११
आर्यभट्टक पाटलिपुत्रमे उद्घोष
आन विद्याक तँ होइत अछि भेद-विभेद,
मुदा विज्ञानक तँ अछि ई सूर्य-चन्द्र गबाह
चन्द्रायणक स्वप्न पूर्ण केलन्हि वाह,
लीलावती पढ़ि सूर्य-चन्द्र-तरेगणक दूरी नापलन्हि,
आइ पूर्ण सफल भेल परिश्रम जाए।
अग्नि-ब्रह्मोस पूर्ण कएल ई अर्थ,
ब्रह्मास्त्र-पाशुपतास्त्र केर अर्थ बुझलनि जाए आइ।
१२.
यौ शतानन्द पुरहित
अगहन शुक्ल विवाह पंचमी,
विवाहक सभसँ नीक दिन,
पुरहित शतानन्द,
राम सीताक विवाह कएल सम्पन्न,
खररख वाली काकीक विवाह,
सेहो विवाह पंचमीएकेँ भेल,
पुरहित सेहो कोनो पैघे पण्डित रहथि,
सीता दाइ कतेक कष्ट कटलन्हि,
मरबापर चित्रकला लिखल रहए मिथिलाक,
परिछन, नैना-जोगिन सभटा भेल,
ओहिना जेना भेल रहए सीता दाइक विवाहमे ।
बाल-विवाह तँ भेले रहन्हि खररख वाली काकीक,
विवाहोक दिन सभसँ नीक,
नैना जोगिन, जोगक गीत,
किछुओ कहाँ बचा सकल,
भऽ गेलीह विधवा।
कहैत छथि हमर संगी,
जहिया लऽ जाइत छथि ओ भौजीकेँ,
पेंशनक लेल दानापुर कैण्ट,
विधवा भौजीकेँ देखि,
भीतरे-भीतरे कनैत रहैत छथि,
बाबूकेँ कहलन्हि जे विधवा विवाह हेबाक चाही,
तँ मारि-मारिकेँ ओ उठलथि,
नेऊराक राजपूत बाबूसाहेबक ई खानदान,
बड़ काबिल भेलाह ई,
मुदा अछि बुझल हमरो,
कुहरैत रहैत छथि बापो,
मुदा बोझ उठेने छथि समाजक कुरीतिक,
उपाय नहि छनि कोनो दोसरो।
१३.मिथिला रत्न
जनक याज्ञवलक्य विदथ माथव,
मल्ल जगत्प्रकाश-जगतज्योतिर्र
माँगन खबास रामरंग यात्री हरिमोहन,
सुन्दर झा शास्त्रीक पएरमे सिकड़ि बान्हल जेलक चित्र,
सीरध्वज वेदवती मैथिली मैत्रेयी
जयमंगला-असुर-अलौली-कीचक-वरिजन-बेनू नौला गढ़ सभ
बलिराजपुरक
बुद्ध-महावीरक वस्सावसक भूमि,
शिल्पी कृषकक क्षेत्र,
खिखीर शाही नीलगाएक भ्रमण,
आँखि लागल सभटामे।
हजारक-हजार साल जे भूमि कएलक निर्वहण,
से अछि पलाएनक भूमि आब,
पचास सालमे की भेल जे
हजार सालमे नहि छल प्राप्त
लोचनक रागतरंगिणीक चर्च भातखण्डेमे
भातखण्डेक चर्च रामरंगमे,
गंगेश वाचस्पतिक तर्कक बीच
कुतर्की कहियासँ भेलहुँ जाए।
याज्ञवल्क्य द्वारा गुरुक शिक्षाक त्याग
शुक्ल यजुर्वेदक निर्माणक नव अध्याय,
मुदा पछातिक जाति-मंडित शास्त्र,
इतिहाससँ तैयो क्षमाक करैत आश!
तँ शुरु किएक नहि करैत छी
इतिहासक नव अध्याय।
१४. पिताक स्वप्न
पिताक छल आश
झूठ बजनाइ पाप,
गलत काजक सर्वदा त्याग,
सभ होए समृद्ध,
साधारण जीवन उत्तम विचारक बीच।
करैत पालन देखल जे,
बुरबक बुझैत अछि लोक
तँ की बदली? अपन शिक्षाक अर्थ
त्यागि रस्ता नुदा वैह लक्ष्य
जिदियाहवला।
मुदा बजने की बस करैत रहू
सोझाँवलाकेँ बुझए दोयौक,
जे छी हम बुरबक।
जावत बुझत तावत भऽ जएतैक हारि,
पिताक सत्यकेँ झुकैत देखने रही स्थितप्रज्ञतामे
तहिये बुझने रही जे
त्याग नहि कएल होएत
रस्ता जिदियाहवला।
१५
सरोजिनी नगर मार्केटक बम विस्फोट
डस्टबिनमे राखल बमक विस्फोट
उड़ैत लोक कार वस्तु-जात
खूनक धार, टटका निकलल लाल,
पुरनाएल गप, खून खरकटि गेल,
कारी स्याह बनल
आ एम्हर दिल्ली नगर फेर आबि गेल पटरीपर!
दिलवलाक छी ई नगर तेँ!
मुदा जिनका घरमे रोटी कमाएवलाक मृत्यु अछि भेल
हुनक जीवनक रेल
एक दू दिन की भरि जिनगीयो
की आबि सकत पटरीपर।
सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।
1. ई जीवन 2.‘‘ अप्पन भाषा ’’
1. ई जीवन
भेल व्यर्थ ई जीवन ले के जन्म जगत मे ।
नहिं केलहु किछु काज व्यथा ई रहल ह्रदय मे ।
बीतल बचपन उड़ल संग तितली के धेने।
कखनो मस्त मलंग खेल मे जोर लगेने।
आवि गेल चुप चाप उतरि के यौवन कहिया।
चैंक उठल मन भेल भविष्यक आहट जहिया।
लगा लेलहुं संपूर्ण जोर ताकत छल जतवा ।
अछि की कम संघर्ष करब परिवारक सेवा ।
अन्न, वस्त्र, भोजन के करिते उचित व्यवस्था ।
बीत गेल जीवन के सबटा नीक अवस्था ।
छै कर्मक ई खेल भाग्य के कोना मेटेबै ।
भाग्य प्रवल छै कहि के ककरा केना बुझेबै ।
किछु जीवन के दोष देवता छथि किछु दोषी।
करिते रहलहुं कर्म सतत् किछु कम आ बेसी।
भेटल किछु सम्मान, मान लय के अछि भूखल ।
होई छै एखनो सुनू, अर्थ सँ सबटा प्रतिफल ।
कहाँ शक्ति छनि सरोस्वती के असगर अपना।
सबसँ उपर ठाढ़ लक्ष्मी सबके सपना ।
जिनका जतवा अर्थ पैघ छथि जग मे नामी।
बिना अर्थ सब व्यर्थ, दुखक जीवन अनुगामी।
आब सोचि की करब उम्र उतरल अगुता के।
वाणप्रस्थ मे जायब किछु संताप उठा के।
हम रहलहुं अभिलाषी भव मे मोक्ष मार्ग के।
चलिते रहलहुं हम धिसियाक पथ सुमार्ग के।
की भेटल अभिमान करब जकरा ले के हम।
पेट पोसि के मात्र बीतेलहुं ई जीवन हम।
2.‘‘ अप्पन भाषा ’’
बनल मंच पर शब्द जोड़ि क’
जगा रहल छी झूठक आशा।
बिसरि मैथिली मृदुल कंठ सँ
चिकड़ि रहल छी आनक भाषा।
करब याद माईक कोरा मे
निकलल शब्द पहिल जे मुख सँ।
कतेक सुकोमल,मिठगर,रसगर,
ई भाषा अछि बाजू सुख सँ।
छी मैथिल संतान कथी लय
बाजि मैथिली शर्म करै छी ।
छोड़ि पियरगर शब्द अपन ई
अंग्रेजी के ओट धरै छी।
नहिं जीवन के नव प्रवाह मे
अछि भाषा कखनो अवरोधक।
नहिं बाजै छी तैं अछि लज्या
बना लेने छी दृष्टि अबोधक।
बाजब हम सब अप्पन भाषा
लिअ’ आई संकल्प हृद्य सँ।
पसरल जायत अपने दिन. दिन
भ’ जायत समृद्ध अभय सँ।
पनभरनी -ज्योति झा चौधरी
पनभरनी आयल भोरहरबामे
छल कनकनी सऽ भरल बसात
केवाड़क खटखटीसऽ नींद खुजल
मेघक आवरणमे प्रकाशहीन प्रात
बरतन बासन रखलक बाहर
भन्सा घरके निपलाक पश्चात
डोल सबके लटकेने विदा भेल
पानि भरै लेल इनारक कात
पानि उपछैत नहिं अघायल
काज लग सोहेलै नहिं कोनो बात
रोजी रोटीक प्रयोजन छल
फुर्ती सऽ जाड़के धांगैत लात
आवश्यकता उर्जा श्रम आभूषण
अपर्याप्तउ वस्त्र सहैत ऋतुक आघात
मृदुलता आऽ कोमलताक प्रतीक स्त्री
कर्त्तव्यपथ पर देलक प्रकृति के मात
पंकज पराशर,
डॉ पंकज पराशरश्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
सत्तनजीब
एहि अकादारुण कंक्रीटक बोनमे बौआइत तकैत छी एकटा कोर
एकटा स्नेहिल गाछ सन चतरल तरहत्थ
जतय बिसरि सकी जा कए भविष्यहीन समय केर सबटा संताप
एकटा अदद चाकरीकेँ सुरक्षित बचौनेँ रहबाक लेल
अव्यक्त आक्रोशकेँ चाँपैत-चाँपैत रक्तक भयंकर चापसँ चापित
एहि नव साम्राज्यवादी लोकतांत्रिक अभिशापित एक नागरिक
कथी लेल जीबैत छी
ककरा लेल जीबैत छी
जीबि कए की करैत छी?
डॉक्टरक बताओल पथ्य आ दवाइक सोंगरपर टिकल
एहि जीवनक कोन उपयोगिता, कोन सार्थकता
मैञा, किएक उकासियो लेल कहैत छलेँ सत्तनजीब
हमरा सन-सन सहस्रो लोकक मोनमे निरन्तर बढ़ल जाइत व्यर्थता-बोध
एक अदद चाकरीक लेल जीबैत लोकक मोनमे अपने प्रति घृणा आ विरोध
जे लोकनि अपस्याँत छथि जीवनोत्सवक समारोहमे
लहालोट छथि रागात्मक काव्यक उत्पादनमे
हुनकर आँखिक रेटिनापर खचित नहि भऽ सकैत छनि
आयकरदाताक सूचीसँ बाहर विशाल जनसमूह केर पिरौंछ मुंह
एहि समय केर विभिन्न तंत्र सबसँ बारंबार पुछैत अछि लोक
भिन्न-भिन्न परिभाषाक कोन व्याख्यामे निपत्ता भऽ जाइत अछि
हमर मैञाक सत्तनजीब
हमर पिताक देल दीर्घायु हेबाक आशीष?
लोक पुछैत अछि भिन्न-भिन्न तंत्र केर व्याख्याकार सबसँ ई प्रश्न
आ मारल जाइत अछि अचक्के राष्ट्रद्रोहक नामपर
जे किछु नहि पुछैत अछि
किछु नहि बजैत अछि
ओ एक अदद चाकरीक रक्षामे तिल-तिल कए मरैत
मृत्युक आवाहन करैत अछि।
मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल- बी.के कर्ण
मुऱझाऽल अछि अपन व्यक्तित्व पर
सेनहता लगले रहल अपन काबिलियत पर
सफल खिलाड़ीक क्षेत्रक शान आ मान देखि कऽए
मोन होइया हमरो क्षेत्रक शान आ मान पर
भेटल रहिताऽ एकोटा मेडल मिथिलाक लेल
ढुढि रहल छी मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल
अथक प्रयास करबे करब ककरा जकां
क्रिकेटमे गावस्कर आ तेंदुलकऱ
शतरंजमे आनन्द विश्वनाथन जकां
शुटिंगमे अभिनव बिन्द्रा आ टेनिसमे सानिया मिर्जा जकां
कते कहु ककरा ककरा जका़ चाहि एकटा मेडल
ढुढि रहल छी मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल
के नैऽ जनैऽयैऽ मिथिलामे बाढि अभिशाप बनलयैऽ
माहिर भेल नेना भुटका सभ खुब हेलैयऽ
बाढिक वरदान तखने बुझब जखनैऽ
अगला ओलम्पिकमे मेडलिस्ट स्वीमर फेल्पस पर
कड़त प्रहार बाढि प्रताड़ित एक मैथिल
ढुढि रहल छी मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल
बिहारक प्रहार मिथिला पर हिन्दीक प्रहार मैथिली पऱ
ताहु स पैघ मैथिलक प्रहार मैथिली पर
बिहार आ हिन्दी सॅं लगाव कोनो कम नहि
पर मिथिला वा मैथिलीक उपेक्षा अगज सॅं मगज तक
प्रहारो झेलब उपेक्षित रहब जखन क्यो मैथिल़
जीत कयऽ लयताह मिथिलाक लेल़ एक ओलम्पिक मेडल
कोशीक देल कष्टसॅं की की नैऽ गवेलहुँ
राहत काेष सॅं आहत भए अथाह टुअरक नाम कमेलहुँ
इतिहासमे बिलाऽल मिथिला महिमाके़
पुनरनिर्वाणक क्रान्ति सुनगि रहल
कहिया हैऽत से नहि जानि पर एकटा भरोसा अछि बनल
मैथिल जनसॅं मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल
भरोसा दऽय रहल नवतुरिया मैथिल सब कहि रहल अछि
अथक प्रयास करबे करब मिथिलाक लेल एक ओलम्पिक मेडल लेबे करब़
कला आ संगीत शिक्षा
हृदय नारायण झा, आकाशवाणीक बी हाइग्रेड कलाकार। परम्परागत योगक शिक्षा प्राप्त।
मिथिलाक लुप्तप्राय गीत
गर्भ सॅ छठिहार धरि
सोहर आ खेलउना पर आधारित संस्कार गीतक बानगी
मिथिलाक गौरवमयी श्रेष्ठ संस्कृति एवं परम्परा केॅ सुरक्षित रखबाक श्रेय मैथिली लोकगीत कें अछि।
परम्पराक सूत्रधार पूर्वजलोकनि मैथिल समाजक जन सामान्य कें अपन मूल संस्कृति ओ परंपराक प्रति उदार बनाबए लेल तदनुकूल लोकगीतक परंपरा विकसित कएलनि । कालान्तर में अनेकों विद्वान गीतकार ने अपन कृति मे मैथिली लोकगीतक भण्डार के अत्यन्त समृ( बनओलनि । देश ,काल और परिस्थिति में परिवर्तनक संग संग लोकगीतक रचना में सेहो विविधता आएल । मुदा आदर्श आचार पर आधारित लोकगीतक परंपरा लोककण्ठ में स्थान पबइत रहल जे आइयो मिथिलाक आचार आदर्श सॅ परिचय करबइत अछि ।
सर्वविदित अछि जेे लोकगीतों में कृत्रिमतानहि होइत अछि । समाज मे प्रचलित सामान्य बेवहारक अभिव्यक्ति होइत अछि । मैथिली लोकगीतक अवलोकन सॅ मिथिलाक सभ्यता ,संस्कृति , रीति रिवाज ,पर्वत्योहार ,कला ,साहित्य सामाजिक उन्नति आ मानवीय आकांक्षाक यथार्थ रूप आइयो अनुभव करबा योग्य अछि । मिथिला में जन्म सॅ लऽ कऽ विवाह धरि सब बिध बेवहार गीतक संग सम्पन्न होइत अछि ।
बारहो मास मे प्रचलित पर्व त्योहार व्रत पूजन आदि परंपराक लेल अलग अलग गीत अछि । )तुक अनुसार मैथिली लोकगीतक अपन विशेषता रहल अछि मिथिला में । विवाह ओ उपनयन आदि संस्कारक गीत में खास प्रकार के रागक प्रयोग भेल अछि जे अन्य़त्र नहि देखल जाइछ । धर्म प्रधान क्षेत्र हेबाक कारणें मिथिला में प्रातः जागरण सेहो
पराती लोकगीत सॅ होइत रहल अछि । जहॉ तक मैथिली लोकगीतक प्रकारक प्रश्न अछि अनेकों प्रकारक लोकगीत आइयो लोककंठ में रचल बसलन अछि। पुत्रकामना ,जन्म सॅ संबंधित सामान्य व्यवहार एवं लोकाचारक सहज अभिव्यक्ति सोहर , खेलउना , छठिहार , पीपर पिलाई , आॅख अॅजाई , बधैया , आदि नाम सॅ प्रचलित लोकगीत सभ मे अछि । एहि मे लौकिक एवं भक्ति प्रधान विषय पर आधारित गीतक समावेश अछि । एक भक्त हृदय स्त्रीक पुत्रकामना व्यक्त करइत सोहर अछि -
पॉच गाछ रोपल आप पॉचे गाछे इमली रे । ललना तइयो ने सोभय बगीचबा एकहि चनन बिनु रे ।।
नहिरा में छथि पॉच भइया आओर पॉच भातिज रे । ललना तइयो ने भावए नइहरबा एकहि अमा बिनु रे ।।
ससुरा में छथि पॉच जाउत आओर पॉच जइधी रे । ललना एक नहि भाबए सासुरबा अपन होरिला बिनु रे ।।
गंगा पइसी नहइतहुॅ हरिवंश सुनितहुॅ रे । ललना सूति उठि लगितहुॅ गोर कि दैव सहाय हएत रे ।।
ललना एकहि पुत्र दैव दीतथि जिउरा जुड़बितहुॅ रे ।।
बच्चा जन्मक समय प्रसव पीड़ा सॅ विह्वल स्त्रीक मनोदशाक वर्णन सेहो स्वाभाविक लगइत अछि । एहि प्रसंगक सोहर अछि है इस प्रसंग के सोहर गीत में । प्रसव पीड़ाक वेदना मे स्त्री अपन सासु ,जेठानी आ ननदियो कें स्वार्थी आ कठोर बूझऽ लगैत अछि आओर पुत्र प्राप्तिक बाद सभ कष्ट कंे बिसरि जाइत अछि । पुत्र जन्मक खुशी मे ओकरा सभक बेवहार नीक लगइत अछि । एहि भाव कें व्यक्त करइत सोहर अछि -
अपन माए मोरा रहितइ , मुुंहवां निहारितइ ,दरद बॉटि लीतइ हो ।
ललना पिया जी के माए निरमोहिया होरिला होरिला करइ हो ।।
अपन भाउज मोरा रहितथि डॉड़ लागि बइसतथि हो ।
ललना पिया जी के भाउज निरमोहिया भानस भानस करइ हो ।।
आधा राति बीतल पहर राति आरो भिनसर राति हो ।
ललना होइते भिनसर पह फाटल होरिला जनम लेल रे ।।
ललना पुत्र फल पाओल से देखि सब दुःख बिसरल रे ।।
मिथिला मे जन्मक प्रथम उत्सव छठिहार होइत अछि । एहि उत्सव मे ननदि आ भाउजक बीच हास परिहासक जे स्वाभाविक रूप मिथिला मे अछि तकर अभिव्यक्ति खेलउना और बधइया गीत मे अछि । ननदि आ भाउजक बीच मधुर संबंध कें व्यक्त करइत एक खेलउना मे छठिहारक अवसर पर ननदि कंे बजाबऽ लेल पति सॅ आग्रह करइत भावव्यक्त होइत अछि -
पिया तोर गोर लागूॅ ननदी मॅगा दे ।
जब रे ननदिया नगर बीच आएल । पूरी मिठाई बड्र्र्र्ऱा मीठ लागे ।। पिया तोर गोर लागूॅ
जब रे ननदिया दुअरे बीच आएल । बिछिया बाजे बड़ा मीठ लागे ।। पिया तोर गोर लागूॅ
जब रे ननदिया आॅगन बीच आएल । ननदी के बोली बड़ा मीठ लागे ।। पिया तोर गोर लागूॅ
जब रे ननदिया सोइरी बीच आएल । बेसरि मॉगे बड़ा तीत लागे ।। पिया तोर गोर लागूॅ ननदी मॅगा दे ।।
आओर भाउज आ ननदिक बीच हास परिहास एहनो होइत अछि जाहि मे ननदि इनामक मांग करइत अछि आ भाउज ओहि मांग के अपना तर्क सॅ टारबाक कोशिश करइत अछि ।
ननदि- सब गहना में नथिया बड़ा महराजा हो राज ।।
भाउज- नथिया ने लेइ ननदिया हो महराजा हो राज ।।
;ननदि बच्चा कंे उठाकऽ चलि दैत अछि । तखन भाउज कहइत अछि द्ध
लय गेलइ बबुआ उठाय हो महराजा हो राज ।
दए जाहु ननदी बउआ हमार महराजा हो राज ।।
लए जाहु भइया उठाय हो महाराजा हो राज ।
ननदि- हम लेबइ भइया के राज हो महाराजा हो राज ।।
भाउज- जौं तोहें लेब ननदी भइया के राज महाराजा हो राज ।
की लेतइ बउआ हमार हो महाराजा हो राज ।।
भाउजक तर्कक समक्ष ननदि हारि जाइत अछि तखन ननदि बधैया गबइत अधिकार पूर्वक भाउज सॅ कहैत अछि -
बधइया हम लेबउ भउजी हे ।।
अॅउठी आ मुनरी हम नहि लेबइ। जड़ाउदार कंगना भउजी हे ।। बधइया
बाली आ कनफूल हम नहि लेबइ । मीनादार नथिया भउजी हे ।। बधइया
बाजू बिजउठा हम नहि लेबइ । घॅुघरूदार पायल भउजी हे ।। बधइया
रेसम के सरिया हम नहि लेबइ । लहरदार चुनरी भउजी हे ।। बधइया हम लेबइ भउजी हे ।।
मुदा आब एहि सब तरहक गीतक परंपरा लुप्त प्राय अछि तें इ गीत सभ सेहो लुप्त भऽ रहल अछि । एहि सभ गीतक परंपरा लुप्त भेला सॅ लौकिक परंपरागत संबंधक मधुरता कोन रूप मे प्रभावित भऽ रहल अछि विचारणीय अछि संगहि इहो विचारणीय अछि जे ओहि आदर्श कें बचाबऽ के विकल्प कोना खोजल जाय ।
बालानां कृते- 1. मध्य-प्रदेश यात्रा आ 2. देवीजी- ज्योति झा चौधरी
1. मध्य प्रदेश यात्रा
तेसर दिन :
25 दिसम्बर 1991 :
आहिके हमर सबहक यात्रा प्रातः साढ़े नौ बजे प्रारम्भ भेल जखन हमसब नर्मदा एक्सप्रेस सऽ पेण्ड्रारोड दिस विदा भेलहुं।अहिबेर हमसब अपन गतिविधि कम कऽ गाड़ीक गतिविधि पर विशेष ध्यान देने रही।हमर सबहक गाड़ी उस्लापुर (10:05 a.m.) घुटकू (10:15 a.m.) कलमीटर(10:30 a.m.) करगीरोड(10:40 a.m). बेलगहना(11:00 a.m). टेमनमाड़ा(11:15 a.m). बेलगहना(10:40 a.m.) होंगसा (11:35 a.m. सऽ होइत पेण्ड्रारोड पहुंचल। ओत सऽ हमसब तुरन्त अमरकण्टक लेल रवाना भऽ गेलहुं।लगभग सवा दू बजे हमसब अमरकण्टक पहुंचलहुं।ओतय हमसब पर्यटक अतिथिशालामे रूकलहुं।भोजनोपरान्त हमर सबहक पहिल पड़ाव छल ‘माइ की बगिया’। ई जगह नर्मदा नद तथा सोनभद्रा नदीक उद्गम स्थान अछि।
माई की बगिया के भ्रमण मे सबसऽ पहिने विवेकानन्द सेवाश्रम देखलहुं।अकर स्थापना 1983 इर्सवीमे भेल छल।अत साधुसब गेरूआ वस्त्र धारण केने विराजमान छलैथ।ओतऽ सऽ कनिके आगू बढ़लापर नर्मदामूड़ा पहुंचलहुं जतय एकटा छोट सन जलकुण्ड छल। यैह कुण्ड नर्मदा नदके मूल उद्गम स्थान छल। अत नर्मदा अवतरित भऽ पुनश्च भूमिगत भऽ जाइत छैथ। ई कुण्डके नर्मदाक बाल्यकाल मानल गेल अछि।अहिठाम ‘गुलवकावली’ नामक बूटी भेटैत छै जे की आयुर्वेद विज्ञानमे अमूल्य छै आर मेकार पर्वतके अतिरिक्ता मात्र अतै भेटै छै।तकर बाद श्री महातीर्थ सोन उद्गम कुण्ड महन्तजी श्री 108 बालकेश्वर गिरि के तपोभूमि अवस्थित छै।तकर बाद सोन आऽ भद्रा नदीक संगम कुण्ड छै जे भूमिगत भेलाक बाद कनिके दूर पर विशाल झरनाक रूप लऽ लैत छै्र। अहि विशाल जलप्रपातक सुन्दरताक वर्णन केनाई असम्भव लागि रहल अछि।मानव निर्मित वाटर फाउण्टेन अकर सामने बहुत तुच्छ अछि। शहर मे अतेक वास्तविक एवम् मनोरम प्राकृतिक दृष्य कहां देखऽ भेटैत छै।
ऊंच ऊंच वृक्ष श्रृंखलाक बीच कच्चा सड़क के पार करैत हमर सबहक टाेली आब करीब तीन फीट ऊंच घासक मैदान मे घुसल।फेर सऽ गाछक झुण्ड आयल।गाछ पर चढ़ि कऽ सब फोटो सेहो खिंचेलक लेकिन हमरा लग कैमरा नहिं छल से हमेशा पछतावा रहत।एक वृताकार पथ स होएत हमसब ‘जय मां नर्मदे हर’ पहुंचलहुं।अहि ठाम एकटा नर्मदा कुण्ड छै जे एक टा छोट पोखरि के आकारक छै। कहल गेल छै जे नर्मदा अपन बाल्यकालके बाद अहिठाम पुनः अवतरित होएत छथि।अत अनेको देवी देवताक मन्दिर छैन जेनाकि गोरखनाथ मन्दिर श्री रोहिणी देवी मन्दिर श्री दशावतार मंदिर नर्मदेश्वर महादेव मन्दिर श्री गाैरीशंकर मंदिर श्री सूर्यनारायण मंदिर श्री ग्यारह रुद्र मंदिर सिद्धेश्वर मंदिर इत्यारदि।अहि सबहक बाद हम सब घुरि एलहुं अपन स्थान पर।पता चलल जे आहि हम सब करीब 7 किलाेमीटर पैरे चललहुं। ई ज्ञात भेलासऽ हमर सबहक थकान आर बढ़ि गेल।तकर बाद फेर वैह संग मे खेलनाइ़ अंताक्षरी़ चुटकुला़ गीत नाद आ सबसऽ नीक छल माउथआर्गन सुननाई।हमरा सबके खुजल मैदान भेटल छल ताहिमे कैम्प फायर के मजा सेहो उठेलहुं।
2.देवीजी : सरस्वती पूजा
वसंत पंचमी के शुभ दिन आबि रहल छल।सब विद्यार्थी गौँवा सबसऽ चंदा जमा कऽ पूजाक तैयारी केलैथ। अहि पूजा लेल विद्यालयके प्रांगण सऽ उत्तम आर कोन स्थान भऽ सकैत छल।सब प्राधानाध्यापक सऽ अनुमति लऽ कऽ सरस्वती जीक प्रातिमा अनलक। पूजाक तैयारी मे देवीजी विद्यार्थी सबहक संगे सतत् उपस्थित एवम् कार्यरत रहैथ।पुरोहित के बजाओल गेल।
पूर्ण विर्धिविधान सऽ देवी सरस्वतीजीक पूजा अर्चना भेल। अहि सबमे पुरोहित सबके सरस्वतीजीक महिमा बतेलखिन। ओ कहलखिनजे माता सरस्वती विद्याके देवी छथि।ई श्वेतवस्त्र धारण करैत छथि जे सात्वििकताक प्रातीक अछि।हिनकर हाथमे वीणा रहैत छनि तथा हंस पक्षी हिनकर सवारी छैन।हिनकर चारिटा हाथ चारि वेदक प्रातीक मानल गेल अछि आर ई चारिटा वेद मे साहित्य के तीनू विधा पद्य़ गद्य तथा संगीत निहित अछि।एक हाथमे पुस्तक गद्यक प्रातीक़ दोसर हाथमे स्फटिक माला पद्यक प्रातीक़ तेसर हाथमे वीणा संगीतक द्याेतक तथा चारिम हाथमे पवित्र जल सऽ भरल कलश साहित्यथक तीनू विधाके शुद्धताक प्रातीक मानल गेल अछि।सरस्वती देवीके सेब फल सबसऽ प्रिय छैन से मानल गेल अछि तथा हिनका मधुक नैवेद्य चढ़ायल जायत छैन। मधुके ज्ञानक सम्पूर्णताक प्रातीक मानल गेल अछि। फेर मूर्त्तिके विसर्जन सेहो कैल गेल।
अहि प्राकारे सब अपन बौद्धिक विकास के लेल विद्याक देवीके पूजा केलैथ।आबै वला समयमे विविध प्राकारक प्रातियोगिता आबैवला छल से सब देवी सरस्वती सऽ आशीर्वाद लऽ आगामी कार्यक्रमक तैयारी मे लागि गेलैथ।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input:(कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Roman or Mithilakshara)
Language: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Roman, Mithilakshara and Phonetic Roman.) English to Maithili
Maithili to English
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.पञ्जी डाटाबेस २.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
१.पञ्जी डाटाबेस-(डिजिटल इमेजिंग / मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण/ संकलन/ सम्पादन-पञ्जीकार विद्यानन्द झा , नागेन्द्र कुमार झा एवं गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)
जय गणेशाय नम:
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पुरूषोत्तम सुतो ज्ञानपति: मांडबेस्टं स हरिकर सुत बाटू दो।। ज्ञान पति सुतो उँमापति सुरपति एकमा बलियास सँ आडनिसुत बाढ़ दौ।। एकमा बब्यिास सँ बीजी वरणीधर। एक सुता पदमनाम श्री निधि श्री (1115/0411) नाया:।। पदमनाम सुतो शुक्ति (1108/0711) हरिवंश हरि शर्मणो बरेबा स पुरूषोत्तम दौ वरूआली मराढ़ में बीजी दिवाकर: ए सुतोवाध श्रीहर्ष:।। श्री हर्ष सन्तएति मराढ़वासी बाछ सन्तति बरूथली वासी।। बाछ सुतो।। आवस्थिक चन्द्रतकर रतनाकर मधुकर साधुकर विरेश्व र धीरेश्वशर गिरीश्व0रा: धनौजसँ जनार्दन दौ।। साधुकर सुतो धाम: पनिहारी दरिहरा सँ गंगेश्व्र दौ अपरो देहरि: पनिचोभ सँ विघ्नेीश्वरर दौ।। देहरि सुता गंगेश्वजर दौ।। ठ सुरपति सुता दूबे 1127/ दरिहरा सँ गंगेश्वरर दौ अपरौ देहरि: पनिचोभ सँ विघ्नेनश्वरर दौ।। देहरि सुता दरिहरा सँ गंगेश्वजर दौ।। ठ सुरपति सुता दूबे 1127/ लाक्ष महिपतिय: मंगरौनी माण्ड र सँ पीताम्ब्र सुत दाम दौ माण्डदर सँ बीजी त्रिनयनभट्ट : ए सुतो आदिभट्ट: ए सुतो उदय भट्ट ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचन भट (सुनयन यह) ए सुतो यह ए सुतो धर्मजटी मिश्र ए सुतो धाराजही निम्न ए सुतोब्रहमजरी मिश्र एसुतो त्रिपुर जरी मिश्र ए सुतं विघुजरी मिश्र ए सुतो अजय सिह: ए सुतो विजय सिंह ए सुतो ए सुतो आदि बइह: एसुतो महोवराह: ए सुतो सोढ़र जय सिहं तर्काचार्यरस्त्रि महास्वि विद्या पारड़त महामहो पाध्यामथ: नरसिंह:।।
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तर्काचार्यस्त्र महास्त्र विद्याा पारड़त महामहोपाध्यारय नरसिहं (111011061) सुता महामसे 1107110/11 निधि शिलपाणि (1116110/11) कुलधरा:।। महामहो निधि सुतो श्री कुमार पाठक वासी कुलधंर कोड़रावासी शिलपाणि मड़रौनीवासी ए सुतो महाविभाकर: जजिबाल मातृक:।। ए सुता नारायण चन्द्र कर विश्वेवश्वोरा: करिअन सँ धर्माधिकरणीक महामहोपाध्यामय भरथ दौ।। महामहोपाध्याय नारायण सुता महामहोपाधा देवशर्म्मद हेलन जगतपुर नरदेवा: आदय: परली पालीसँ जयशर्म्मक दो अन्योथ केउँटी राडढ़ सै धराई दौ।। महामहोउपा देवशर्म्मा सुता महामहो जगन्नारथ महामहोड़ देवनाथ मिश्र (1116/0811) नन्दीम मिश्र (1118110911 गुणे मिश्र स्थितकरा:आदयो पोखरौनी टंकवास स् नरसिंह दौ अपरौ छादन सरिसब सॅ देवादित्यय दौ अन्यौल भण्डाीरिसमसँ रूचिकर दौ।। महामहोउ जगन्नायथ सुता सदुपाध्या्य (191105) अमतू सदुपाध्यायय (1909/0611) विशो महामहोपाध्याौय वतेशा (1118/02।।) वतेशा गढ़निरदूतिसँ महामहन्तोक विद्याधरदौ मेरन्दीासँ श्रीधर दौ।। अपरौ पीताम्बपर: चक्रहद पनिचोभ सँ चन्द्रोकर दौ।। पीताम्बयर सुतोदाम प्र दामोदर: बेलउँचसँ तीर्थड़र दौ भरेससँ विश्वीनाथ दौं।। (1144110211) दामू सुता बाए़ प्रलय सँ महामहोपाध्यारयरामेश्वेर दौ: बाढ़ प्रलयसँ बीजी पंडित गंगा ए सुतोभरत: ए सुता सीते पदूम वर्द्धमान हाडका:।। पदूम सुतोकमलपाणि। ए सुता रतनेश्वपर वस्त्रमश्वढर यवेश्व्र देवेश्व रा: खौआल सै नयपाणि दौ एकहरी सँ सोने दौ वत्सेडवर सुतो (1157/10811) वीरेश्ववर महापहोपाध्यासय रामेश्व री आदय: भाण्डररसँ श्यारमकंठ दौ अन्यो ततैल पण्ड आसँ महामहो दिवाकर दौ सोनकरियाम करमह गसॅ हरिकेश।।
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महोपाध्या य (11600211) रामेश्वयर सुता महो (181101) ग्रहेश्वमर महो लक्ष्मीतघर (531107) महो गंगाधरा: (1631103) मताउन दरिहरा सँ एति दोते।।: मताओन दरिहरा सँ बीजी श्रीकर: ए सुतो गंगेश्व1र विश्वेनश्वहरों।। गंगेश्वतर सुता विन्द3येश्वरर ग्रहेश्वमर यवेश्व0र परनाम सर्वेश्वदर पशुपति धर्मेश्वदर गिरीश्व्र गौरीश्वारा टकबालमाद्रक गिरीश्ववर सुतो देवादित्य। दुर्गा दित्यों अलय सँ रति दौ।। देवादित्य सुतो रति बिजूको: सरिसब सँभवदेव दौ महोरति सुता ठकुराइनि लरिका देयीका:।। कोइयारसँ भवशम्मरर्स दौ।। ठक्कु र दुबे प्र श्रीपतिसुता ठ (151109) हरपति ठ (84/04) नरपति ठ. चन्द्रशपति प्र. चन्द्रगपति प्र. चाण: सोन करयांम करमहा सँ श्रीधर दौ सोन रियाम करमाहासँ ब्रीजी महामहोपाध्यासय वंशधर: ए सुता महामहोहरिब्रहम महामहोहरिकेश म. म. धूर्तराज गोनूका: सकुरीसँ महामहो देयी दौ।। महामहो हरिकेश सुतो (121104) गोविन्दु नोने को खण्डमबला सँ नित्याशनन्द दौ।। अपरौ (11102) लक्ष्मीदपति लक्ष्मी कंठो कुजौली सँ बाछे दौ।। अपरै लान्हि रूचिकर हरिवंशा: लखनौर सकराढ़ी सँ पनिहथ ढोढं दौ।। रूचिकर सुतो हरदत्त नितिकरौ खण्डलबलासँ विश्व नाथ दौ।। अपरो गिरीश्वुर: मनकी सजातनाम सीत दौ।। गिरीश्विर सुतागंगेश्वार भवेश्व र देवेश्व रा: लखनौर सकराढ़ीसँ सर्वेश्व र दौ।। (603106) गंगेश्वकर सुता (211108) नरसिंह श्री कर्स केशवा: बेलासक जीवेश्वेर दौ अपरै (20/08 ) वाराह श्री धर माधव (291103 351103) रामा: पतौना खौआल सँ आदू दौ।। पतऔना खौआलसँ बीजी महामहोपाध्याेय प्रजापति सुतो महो वाचस्पाति महो उँमापति।। (127/05) वाचस्य ति सुतो गणपति
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धनौज सँ त्रिपुरारि दौ।। गणपति सुता शशिधर (211/04) लक्ष्मीसघर सुरानन्दग धर्मधिकरणिक महामहोपाध्याधय (1103110511) हरिशर्म्म्णा:।। शशिधरसुतो गदाधर: मड़ारसँ (विदौ ।। अपरौ महिघर पृथ्वीमघरौ गंगोली सँ देवरूप दौ।। अपरै जयकर शिरू गोनू गंगाधरा: सँ प्रियकर दौ।। गदाधर सुतो महामहो न्य पाणि महो हरिपाणि महुआएं भीखम दौ।। महो हरिपाणि सुतो लक्ष्मीीपाणि रतनपाणि उदनपुर जजिवाल सँ शान्तिकर दौ।। अपरौ महिपाणि जयपाणि गंगोली सँ माद्रक:।। महामहो रतनपाणि सुता महो हरादिस महामहो (131010) भवादित्यण महामहो न्याादित्यं महामहो धरादित्या गंगोलीसँ वंशधर दौ।। अपेरे जयादित्यन महामहो (191109) दैवदित्यर महो गंगादित्या मिगुआल सँ चन्द्रिकर दौ।। महामहो जयादित्य सुता लक्ष्मीशकर शुचिकर आचार्य उदयकरा: बनाइनि पाली सँ भोगीश्वसर दौ (20101) शुचिकर सुता छीतू (71106) बीकू आडू का भुतहरी निरबूतिसॅ सुत दौ दियोयसँ पति गौण।। आड़ सुता महपौर प्रलयसँ गयशमर्स दौ: महथोरे प्रलयपर बीजी बाढ़न ए सुतो विश्वरनाथ: ए सुतौ गयशर्म्मॅ गुणाकरौ मिगुआलसँ विरेश्वपर दौ।। गयशर्म्मा सुतोकारू वेदूकौ सकराढ़ी मात्रकौ।। श्रीधत्सुातो (30110) रतिध (531106) महिधेरो नाउन में मुरारि दौ: शक्रिरायपुर नरउनसँ बीजी मनोधर: ए सुतोबलमद्र: ए सुतो बलमद्र: ए सुतो पनाईत भद्रेश्वसर: केउँटी सउढ़सँ हरिहर दौ।। ए सुतो (10101) रामेश्व र नन्दीोश्व रौ अलयसँ देवपति दौ।। नन्दीुश्वभर सुतो गौरीश्वरर गोविन्दोस करूआनी सकराढ़ीसँ रतिकर दौ: करूआनी सकराढ़ी सँ बीजी हरदन्तन: ए सुतो श्रीकरदशा: (13104) मनोरथा:
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दशरथ सुता बलिदेव (81105) राम नरसिहं।। पचहीवासी नरसिहं सुतो शूलपाणि: सिंहाश्रम सँजाई दौ।। ए सुतो पदमपाणि महामहोपाध्यािय कारूकौ आदय: सुरगण सँ गोवर्द्धन दौ।। अन्योप कोइगर सँदल्हरन दौ।। महामहोपाध्यादयकारू सुतो महो गोविन्द्महो प्रतिकर महो जगद्धरमहो (14107) हरिहरा: करही सँ हरिवंश दौ।। महोप्रतिकर सुतो लक्ष्मीदकर मधुकरौ सरिसब सँमहो हरादित्रूम दौ।। सरिसबसँ बीजी रतनपाणि ए सुतो चक्रपाणि दीधीसँ भीम दौ।। ए गुत श्री वस टल्लेशश्वरर वसुन्धमर रामदेवकाम देवा: चक्रहदपनिचोभसँ छितिशर्मा दौ।। श्री वत्स् सुतामहो (11102) देवादित्यर महो (14107) जयादित्यह महो हरादित्यास मन्दरवाल जल्ल कीसँ उद्योतकर दौ।। अपरौ शिवादित्य।: जलकौर पालीसँ श्री वत्स1 दौ महो हरादित्यर सुता नान्य(पुर सौआल सँ बाछ दौ 1103 101।। म. म. धर्म विधर्यणक हरिशर्मा सुत राजे बढ़े (11102 4101) नाने गडूर जयशम्म(णि: नान्यरपुर का सिनय: तत्रादयो गढ़ एकहरी सँ धनमुय दौ। अपरौ मड़ार सँ पीथो मगिनेय: 14101 बाछे सुता जयदेव कापनि मधवा गंगोलीसँ भीम सुत शाकलय दौ धोसियाम सँ धाम दौण अपरौ धाम: अहपूर करमहा सँ सँ नारायण सुत हिंगू दौ।। गौरीश्व र सुतो दामोदा मुराारि: तक बाल सैरूद दौ: टंकबालसँ बीजी हरिपाणि: ए सुतो शंरपयाणि: कीर्तिपाणि: पिहवालसँ मालोदो ।। गंखपाणि: नीमावासी।। कीर्तिपाणि सुतो गोविन्दय शूलपाणि: गोविन्दो पोरखरौनीकासी।। ए सुतो नरसिंह: पइसरासँ उँमापति दौ।। ए सुतो बरसेश्वदर: बेला सकरादी सँराउल मासो दौ।। अपरौशुक्लह (17106) भिखारी:।। गंगोलीसँ रतिदेव दौ ।। अपरै रतिदेव दौ।। अपरै हरिहर मुरारि अनन्नात दामोदर श्रीनापा:
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तेरहोत सकराढ़ीसँ रामेश्वहर दौ 110311090 वत्सेगश्ववर सुतो रूद: नान्यमपुर खौआलसँ होरिल दौ 11103511 गड़र सुतो धर्माधिकरणीक म.म. विठुआलसँ रैधर सुत मनोधर दौ।। ए सुतो धीरेश्व्र: सुइरीसँ धर्माध्यक्षक देवे दौ ।। अपरौ विन्येउल मश्वकर: ।। रूदसुता 2 प्रोझोली बेलउँच सँ कीर्तिशर्मा दौ।। अथ ठोम टेकारी ग्राम तत्र चतुर्वेदाध्यावयी कामदोवो बीजे।। ए सतापात्रिक परशुराम दिक्षीत सोमत्रिपाठी कृष्णो।। कलिगामौ पार्यक परशुराम सुतोश्रीधर बलभद्रो त्रिपाटीसँ कुमर दौ बलभद्र सुता शारड़ बनमाली उद्योतकरा: महुआसँ अग्निहोत्रक धनमय दौ।। शारड़ सुतो राम वामनौ।। वामन कांचगाम वासी।। महामहोपाध्याशयराम विल्वकपंचक (बेलउँच) वासी। ए सुतो संतोष परितोषौ।। सन्तो ष सन्तनति दक्षिण पाटक वासी चाकग्राम सन्ति।। परितोष सुतो हरिहर नारायणो दुखनौरीसकराढ़ीसँ बनमाली सुत हरानन्दो दौ।। अन्यौतो स दरिहरसँ मातृक:।। नारायण सुतो देवे (1130111) भवे को एकहरा वासिन्योक।।। हरिहर सुतो कुश लवौ सकर निन्याअनन्दत दौ लमस्त बड़यि नाम्नास प्रसिद्ध गढ़ वासी।। कुश सुतो शिवदाश कीर्तिशम्म्णों सकराढ़ी सँ लक्ष्मी।पाणि दौ कीर्तिशर्म्मि सुता बलाइनि पालीसँ भोगीश्वर दौ मुरारी (116220) सुता बागे गोगे मांगुका तेरहोत सकराढ़ीसँ जाई दौ।। तेरहोत सकराढ़ीसँ बीजी गंगाराढ़ीसँ बीजी गंगादित्या एसुतो भवादित्यौ एसुतो जाई माने कौ गंगोली सं पणिडत केशव दौ।।
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जाई सुतो हारू गोगू कौ कुजौली सँ राजू दौ।। कुजौलीसँ बीजी दान्तिय पुत्र पौत्रदय इन्द्र चन्द्रर रूद्र तारापति दिनकर मटकरा।। दिनकर सुता कर्ण वासुदेव गंगाधर नरदेव मूल देव।। कर्ण सुता हरिहर हरिब्रहन शान्रिबह्म शूलपाणि नरसिहं शिवब्रह्माणा:।। शिव ब्रहन सुता (1117110811) शुभंकर जयकर लक्ष्मीहकर नोने मेधाकर गुणाकरा: मोखरि सँ मधुमन दौ सकुरीसँ महमहो देवीदौ।। मेधाकर सुतो जनक: वनगांव वासी बलाइनि वासी पासीसँ देल्टमन दौ।। ए सुतो भीम नन्दीवश्वमरौ पकलिया सँ कान्ही दौ।। नन्दीगश्वसर सुतो (1126090) रूप पचटन पण्डुाआ सँ मुरारी दौ अपरौ शिव: कप सिआ मातृक: शिव सुतो राजूक: कुरिसमा सकराढ़ी सँ श्या मकंठ दौ।। राजू सुता सुधाकर अमृतकर (12310711) सोमकर विधुकर चन्द्रआकर शशिकरा: तत्रादयोरेकौरा गंगोलीसँ पण्डित केशव दौ।। सोइनिसँ शंकरदाश द्धौ।। ठ. (1173110511) चन्द्र पति सुता महामहो महादेवा परनामक येध महामएं भगीरथा: परनामक मेध महामहो दामोदर म.प. महेशा: रेकौरा सकराढ़ीसँ वीर सुत रूद हौ: रेकौरा अकराढ़ीसँ बीजी कपिलानन्दग ए सुतो नयपाणि ए सुतो ब्रहमश्वदर: बरैवा सँ त्रिलोचन दौ।। ए सुतो गोवर्द्धन नान्यरपुर अलय सँ हरिपाणि दी ।। ए सुतोबन्धुज वर्द्धन: टूनी नाम्ना रख्याशत: नरधोध टकबालसँ बनमाली दौ।। ए सुता बाटू गोविन्दा माधना चन्दौसत पालीसँ गंगाधर दौ।। अथ पल्लीद ग्राम बीजी कपिदेव: ए सुतो सोमदेव ए सुतो वासुदेव: सुतोआदिदेव ए सुतोराउल भुगुक: एतस्यसपली।। त्रयम एकस्यद सुतो अभिमन्युा (06110711 112110411) पुरूषोन्तामौं
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अपरा सुतो ब्रहमेश्वशर महेश्वुरौ।। अपरा सुता शंकरदेव बलदेव वरदेव वासुदेवा: मछैटा ग्रामोपार्यका:।। महेश्वोरसुता किर्तू गुणाकर दिवाकर गर्वेश्वेरा।। किर्त सुता नाटू साटू शिव छीतर नोनेका: सकराढ़ी सँ नरसिंह दौ।। नादू सुतो चन्द्राकर:चन्द्रोअत गामे पार्थक:।। ए सुता महो (19166) प्रतिकर महामहो शुचिकर आचार्य लक्ष्मीरकर महो गुणाकरा: तत्रादयास्त्ररय डीह ढरिहरासँ अभिमन्युक दौ।। अन्यौवे खौआलसँ हरिपाणि दौ।। महामन्नेत गुचिकर सुतो महोगंगोधर गणपति: आदमो गंगोर सँ रजदेव दौ अन्योस नहरासँ गांगू दौ।। महो गंगाधर सुतो मही (10104) हलधर धर्मधिकरिणि म.म. (2311010) नरिसिंह।। महामहो (20/01) ब्ज्ञ दै क्ज्ञ।: तत्रादयो मताओन दरिहरासँ शूलपाणि दौ अन्यो1 गोरा जजिवालसँ शिवदन्त दौ।। गोविन्दध सुता (1351109) होरे चांड़ो सोम (301101) हरिश्वओर गोमा: गढ़ खण्डयबला सँ कामेश्वतर दौ 01/0511 बैकुण्ठो सुतो गंगेश्वरर (0609) भोगीश्व।रौगढ़ वासियों।। गंगेश्वतर सुता सिद्धेश्वदर सोमेश्वदर रतनेश्व र नोन देवके तत्रा दयाश्चवत्वा रों नरवाल मात्रक: अन्योर हरिअम मात्रक: ।। सिद्धेश्वढर सुता गढ़वय भगव शिवशर्म्मद विष्णु्सर्म्णाो: नीमातक (तनपाणिदौ।।भगव सुतो कामेश्वनर गढ़अलयसँ देवशर्म्मन दौ।। (28104) कामेश्वधर सुता फनदहसँ गंगेश्व्र दौ: अवहिरखण्डो भण्डा रिसम स बीजी कुसुमादित्य।: ए सुतो श्रीधर कलपाणि:।। श्रीधर सुता।।
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एकादश: तत्रेक: मैनी वासी।। अपरौ वशिष्ठन: सुरगन ऍं सर्वाज आउ दौ।। अपरौ ओहरी करही अपरौ रैधर: ए युतो गंगाधर: फनन्द6ह वासी।। ए सुतो लरवाई शशिधरौ।। महो लखाई सुता रतनेश्वीर (181106) भवेश्वहर: ज्ञानेश्व रा: बुजौलीसँ मेधाकर दवै।। अपरौ हल्लेरश्व र बिरेश्वधरौ में रन्दी सँ हषिकेश दौ हल्ले1श्व र सुता ंगेश्व र घनेश्व्र रामेश्वारा: तेरहोत सकराही सँ कुलेश्वफर सुत भवनेश्वमर दो सकुरीसँ महो नयपाणि दौ।। (20/05) गंगेश्वतर सुता सुपरानी बंगोनी सँ सुपट दौ (1101/0411) वी सुता देवधर मासो मुरारि गांगु शिवदेव:।। देवधरसुता आदिदेव (1134110711) विश्वुरूप पुरूषोत्तम आदिदेव सुतो (1107/02) विकर्ण वसुन्धररौ।। तत्र वसुन्धशर सुतो देवपाणि:दरिहरा सें मांगु दौ।। ए सुता शारड़पाणि श्रीपाणि शूलपाणि वंशीधर धराधर हलधरा: तत्रादयास्त्ररय बलहि।। टंगवालसँ बृहस्पसति दौ।। मित्रवंश भागिनेभयो।। धराधर सुतो देवादित्य : देवहार सरौनीसँ देवनाम दो।। लोहरा ग्रामोपथिक ए सुतो शुज महामहोपाध्याुय सुपरौ रवौआलसँ हरिपाणि दौ महामहोपाध्यादय सुपर सुतो तत्र (109/0211) सोम गोमों वननियामसँ भीखम दौ अपरै साबै वीर (1120/0211) धीर परम चांड़ौका बलहिटसँ रतिकर दौ ।। अपरौ गौरीश्वरर: बलहिटसँ (आनयादि सात्र) चांडो सुता वीर ( 40/0611 451103) नन्दीा गुणेका: उचति सँ अन्दूर सुत दृष्ट।व्यस दौ
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उचित भण्डापरिसमसँ बीजी महिपाणि ए सुतो धर्मपाणि लखाई कौ।। लरवाईक: सोहरा वासी धर्मपाणि उचति वासी।। ए सुतो पदमपाणि नरउनसँ प्रियंकरदौ।। ए सुतो पुरूषोतम सरिसबसँ कामदेव दौ।। ए सुतोअन्टूि नोने कौ मालिछसँ लक्ष्मीाकंठ सुत देवकंठ दौ।। अन्द्रन सुतो (112310411) धानू तटवय कौ।। आदयो: गोरा जीजवाल सँ रीपति दौ।। अन्यों गुलदी खण्डतवसासँ रतनाकर दौ।। हटवय सुत (1125102111) माधव दामोदर श्रीधर (1128110711) हलधर केशव: कुजौलीसँ शशिकर शंकर सुत रधु दौ यहिमतसँ हरिहर दौ।। (1143/0611) वीर सुता रूद्र (1130/110311) राजू सोने का: वमनियामसँ गोनन सुत किहो दौ: वभनियामसँ बीजी हरिशर्म्म( ए सुतो झालोक: महजाली मात्रिक: एक सुता शुभंकर जयकर प्रियंकर चोथेका।। (117510411) शुभंकर सुतो बाहते क: जगतिसँ महानिधि दौ।। ए सुतो रामब्रहम कृष्ण् ब्रहजौ।। रामब्रहम सुता भीम जाई जवे कांगू का: सुइरीसँ कान्हर दौ।। जायी सुता गोर जयपति (1122/10) गणपतिय:।। गोर सुतो वीर (111411) गोननो कोड़रा माण्डभरसँ रतनेश्वगर दौ अन्योर यमुगाम सँ हरिकृर दौ।। गोनन सुता (''27/07'' ''92/09'') महिपति किठो ऐंठोका: महवालसँ दिवाकर दौ: महबालम बीजी माहवमपत्याो: परना ए सुतो प्रभाकर ए सुतो बनमालीक: ए सुता ओहरि ढेहरि चक्रधरा:।। ओहरिप्र रत्नाकर सुतो दिवाकर जीवाकौ हथियन सकुसँ देवपति दौ।। किहो। सुता खण्डपवलासँ रविकर दौ (''22/01'') दिवाकर भवशर्म्मा गढ़धरा: नीमाटंक सउँथ पाणि दौल रतनाकर सुतो पक्षधर: कुर्रसमासक राजूदौ।।
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पक्षधर सुतो हलधर गशोधरौ दरिहरासँ रतनाकर दौ।। यशोधर सुतो रविकर पानियोगसँ कोनदौ ।। रविकर सुलारूद्र श्री करौ गढ़ विस्क्री सँ शंकर दौ बाढ़ विस्क्री सँ बीजी विष्णुा शर्म्मा।: ए सुतो हरादित्या ए सुतो कर्मादित्या:।। ए सुतो कर्मदित्या।। ए सुतोशान्ति विग्राहिक देवादित्यश राजवल्लकम भवादिलो।। यदि विग्रहदेवादित्यम सुता पाएधारिक वीरेश्वर व्यरक्तिव नैवाधिक (64/05) धीरेश्वबर प्रक्रय महासमन्धि पति महामहनतक गणेश्वकर मण्डिमागीक यटेश्वतर स्थाुन्त्रि: हरदयन् सु्रदहानक लक्ष्मीीछत शुभ न्ता्: तत्र वीरेश्विर स्टरपक्रप गणेश्व्र शुभदन्ताह: नान्य्पुर त्रिपालीसँ कामेश्व।र दौ।। अपरौवर्तित धीरेश्वीर अनुक्रमांक जनेश्वसरों महपौर वासी माध्दतमभागिनयो हरदन्तत लक्ष्मीधदन्तद: मह पौर वासी यमुगाम करिर्य माने दौ।। हरदन्तव सुतो मुरारीदन्तर: बहेरापीसँ लठावन दौ।। अपरौ उँमापति दत वरूआली मातृक ।। अपरौ शंकरदत्त अलयसँ देवे दौ।। अपरौ महबाक होराइक: गढ़ बेल्उँवचसँ शंकरदत्त दो।। शंकरदात्त सुता नरवाल सँ दिवाकर दौ।। रूद सुतो वेणीक: देल्हहण सोल्ह:ण तिमे मुरारिय: देहलों (09/07) देल्हवनी वलाइनि वसी सोल्हआनों मछाँटा वासी तिमे जलकर मुरारी बहराढ़ीवादी ए सुतो देवपाणि चन्द्रहपति।। देवपाणिसुतो हारिल देहरि: आदय: सुरगनसँ गोबर्द्धन दौ।।
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अन्यो9 भिन्ना मातृक:।। होरिल सुता लक्ष्मीुकंठ जयकंठ शितिकंठ सोखे (09/04) लड़ावन श्या मकंठ हेलना: तत्रादयो सरिसबसँ कामदेव सुत कानह दौ अन्यो खैआलसँ बाछे दौ।। जयकंठ सुतोस्था्नान्ररिक रति: पवौलीसँ वीर दौ (05/04) विकर्ण सुतो गणपति वाचस्प ति।। वाचस्पति पबौली गामोपार्थक: ए सुतौ हरदन्तक।। बापरौ आदय सुरगन सँ गोबर्द्धन दौ अन्य4 जेहोरी सकरदीसँ ऐलौदो।। हरदन्ति सुता वीर देवे श्रीदन्ताो: वीर सुतो मसे (14/03) गंगारभन्दब हरिदाशदै।। जलवंशा राजवासी दामोदरो बीजी ए सुतो माधव बान्वौन ।। माधव सन्त्ति भन्द:वाल वासी ए सुतो जानु श्रुतिपरम त्रिलोचन:।। जानू सुता भुमिनन्दा दाजू अच्यु त मधरा:।। दाजू सुतो हरिदाश:।। हरिदाश सुता सँ दौ।। स्था न्रीक ठरनि सुतो ठ. वासुकी: गढ़ निखूतिसँ भगपर दौ।। निश्निनसँ बीजी त्रिपाठी रूद्र: ए सुता महामहवक सुरेश्वार रतनेश्वनर नोने देवे का: सरौनी मातृक: सरौनी मातृक:।। महामहत्तक सुरेश्वतरसुता शान्ति विग्रहिक हरिहर विद्याधर देवधरा: डीह राउढ़सँ छीतर दौ।। महामहतक विधाधर सुता जगद्धर नाने प्र रतनधर देवधरा बुधौरा सकराढ़ी में गणपति दौ।। छतौनीसँ माधव छौ।। महामहतक जगद्धर सुती लक्ष्मीा शर्मा कीर्तिशर्म्म णों सिंहाश्रम रतनेश्वढर दौ दुवादए पार पुर मकएढ़ीसँ अनन्त दौ।। ठ. वासुकी सुता गोविन्दी नरहरि (10/01) जनार्दना: तल्हवनपुरसँ रत्नाकर दौ : तल्हवनपुरसँ बीजी विष्णुर शर्म्मा : ए सुता शुक्लु जान रतनेश्व र क्षमोदरा: तत्र दामोदर सुतोलोरिक: बेलासकएढ़ीसँ मासोदौ।। ए सुतो चन्द्रपकर धमकी।। कुजौलीसँ विकर्ण दौ।। चन्द्र कर सुतो लग शर्म्मल (तनाकरौ डीह दरिरासँ लक्ष्मे्श्वुर दौ।। रतनाकर सुता पोखराम बसहासँ राम सुत देवे दौ।। सुइरीसँ कीर्तिदाश दौ।। ठ. (25/02) नरहरि सुता विश्वीम्मकर (30/04) विरपू (25/04) गदाधरा: गढ़माण्डार सँ नागे दौ
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(02/01) महामहो निधिसुतो श्री कुमार पाठक वासी गंभीरसँ चन्द्र कर दौ।। ए सुतो दूबे (26/02) चौबेकौ टकबालसँ रतनपाणि दिशि मित्रानन्द दौ।। (09/05) दूबे सुतो घृतिकर: केउँटराम पण्डो्सी सँ रूद दौ।। ए सुतो रविकर: अलयसँ गोविनद दौ।। एक सुतो गुणीश्वनर (11/06) कोने वाणेकौ तिसउँन सँ जगद्धर सुत नारायण दौ निमऍ दुर्भाग्यि दौहित्र दौ।। बागे सुतोशतूक: गढ़ यमुगामसँ जीवेश्वनर दौ गढ़यमुगाम बीजी श्रीकर: ए सुतो हरिकर: ए सुतो जीवेश्वसर: सकराढ़ीसँ पदमपाणि दौ।। जीवेश्वेर सुतो आउनि माउनि: अथरी दरिहरा सँ नरसिंह दो: दरिहरासँ बीजी कमल पाणि: ए सुता देवधर धरणीधर माहव (कनिष्ठास) अपरौ (14/07) चिन्तासमणि: (15/07) देवधर सुतो कुसुम (11/03) रेचन्द्रो कुसुमे सुता सागर पुराई सीध का: ।। सागर सुतो पाई दामोदरा।। दामोदर सुतो बसाईक: ए सुतो राम: ए सुतो नरसिहं।। नरसिहं।। सुता दिधो से कर्मादित्य दौ।। ठ. विश्व।म्म र सुतो नाथू (70/02) बाटू कौ (52/01) खौआलसँ बिकू सुत रघुपति दौ (03/06) बिकू सुतो रघुपति: गंगोरसँ भोरे दौ: गंगोर सँ बीजी शाश्वुत: ए सुतो दामोदर: ए सुता रघु माधव चन्द्रआपारा: छतौनी सँ श्रृंगार दौ।। चन्द्रसघर सुतो बिनू विनू कौ पण्डुदआ स राम दौ।। (19/04) विदू सुता विश्वानाथ (16/09) श्री नाथ जगन्नाँथ देवनाथा: सतलखासँ महिधर दौ।। श्री नाथ सुतो गुणीनाथ: राढ़ी कोइगार सें शान्ति दौ ए सुतो भोरेक: शीशे पालीसँ ऐलौदौ।। भोरे सुता (17/01) शिवनाथ भवनाथ देवनाथा: छतौनी वासी सठवालसँ देवशर्म्मी दिशि कुसुमाकर दौ छतौनीसँ परमेश्वेर द्वौणा (23/01) रघुपति सुतोहरिपति: (25/04) नरउनसें कोने दो नरउनसँ बीजी महामहोपाध्यादय महिधर: ए सुता श्री धर मनोबर लक्ष्मी धरा:।। श्रीधर सुतो उदयकर प्रियंकर प्रियंकरें।। कुमुदी मातृको।। अपरो त्रिलोचन:।। उदयकर सुतारतनाकर पुण्याशकर रूचिकरा: लखनौर सक मातृ: रतनाकर सुता पदमाकर मक्रिकर।
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शुचिकर कीर्तिकरा: मक्रिकर सुतो जयशर्म्म् हरिशम्मी णौ।। वत्सरवाल वासिन्योर।। बुधौरा सकराढ़ी प्रितिकर दौ।। (11/06) हरिशर्म्मम सुतो प्रितिशर्म्मप: पचही जजिवालसँ लक्ष्मी श्व र दौ जानिवालसँ बीजी दण्डनपाणि: ए सुतो रतनपाणि हर्षपाणि:।। रतनपाणि सुता शूलपाणि गोवर्द्धन महेवश्वपर शीरू शारड़ा।। शूलपाणि सन्तषति पतखौरि वासी।। (09/01) गोवर्द्धनो गोरा वासी।। महेश्वनरसुतो उग्रेश्वमर: पचही वासी।।। ए सुता (17/03) गौरीश्विर शुक्लप कान्हद सुस्रे)वर सोमेश्वोपरा:।। कान्हत सुतो लक्ष्मी श्वणर हरिश्वोरौ: सरौनी सँ सर्वानन्दक दौ।। लक्ष्मीतश्व7र सुतो पदमपाणि: पचही सकराढ़ीसंकारूदौ।। तिसउँत सँ छौ।। प्रितिशर्म्मो सुतो डालू (08/02) कोने कौ करमहा सँ नोने दौ।। (02/06) नोने सुता कीर्तिशर्म्म (143/06) रामशर्म्मर मांगू का: आदय: मेरन्दी सँ कुसुमाकर दौ।। अन्योि सुरगन सँ विरेश्व र दौ।। मेरन्दी मँ बीजी जनार्दन: सुतौ बैकुण्ठ1 ऋषिकेश सुता भानू पुण्यामकर दिवाकर गुणाकर: परस्पेर भिन्नँ मातृका:।। पुण्यावकर सुता दृष्टिगत सँ कान्हँ दौ (14/05) कोन सुतो उदयकर (23/06) श्री करौ बलियाससँ भीख दौ।। (01/02) शुक्लु हरिवंश सुता (09/03) सुता रतिकर सोमकर लक्ष्मीुकर (10/65) साधुकर दिवाकर शुंभकरा: आदय सिधौलीसँ सुरेश्व)र दौ।। अपरैत्रय हड़री खण्उतवाससँ चक्रेश्वजर दौ।। अन्योलक् गढ़ बेलउँच सँ चणाई दौ।। दिवाकर सुतो भिखेक: तिसउँत सँग्रहेश्वशर दौ तिसउँतसँ बीजी विश्वतम्मसर: ए सुता हरिहर हल्ले्श्वोर (14/05) नारायण (10/05) पदमनाम गोधन जीवन दिवाकरा: आदय सरिसब सँ रामदौ।। अन्यौ करनैठा सकराढ़ीसँ रतनपाणि दौ।। हरिहर सुतो डालूक: विस्की से मधुकर दौ।। डालू ग्रहेश्व र: माण्ड र सँ चन्द्र।कर दौ।। ग्रहेश्वकर सुतो मोती क
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माण्ड2र से नारायण दौ।। (11/03) भिखे सुता रूद्रपुर सरिसब सँ वीर सुत महादेव दौ वरूआलीसँ रामेश्व र दौ।। एवम ठ. महोदेवादि मातृक चक्रम।। महामहोपाध्या(य ठ. भगीरथा परनामक मेध सुतोमहामहोपाध्याँय ठ. रामभद्र: नाउन से उतिपति शुत शोरे दौ (08/04) डालू सुता मधुकर (27/02) चन्द्रमकर (24/07) दिवाकरा: मड़ार सँ सोम सुत यरेश्वदर दौ।। पचदही सिंहश्रम सँ धाम दौ।। मधुका सुतो रूचिकर विश्वेाश्वकरौ (5/07) करहिया पनिचोभ सँ सोंसे दौ।। करतिया पनिचोभसँ बीजी चण्डेाश्वसर: ए सुतो भिखेक: ए सुतो गोंढि: केउँटराम पण्डौ/लीसँ पण्डौ्लीसँ ग्रहेश्वंर दौ तल्हचनपुर सँ महादेव दों।। गोंढि सुतो सोंसेक: सुइरी सँ गुणकर सुत मधुकर दो।। सोंसे सुतो प्रितिकर हारू कौ बेला सक जीवेश्व र दौ।। 03/011 रामौ बलहि टंकबाल मातृक: ए सुतौ मधुकर चाड़ौ।। मधुकासुतौ राउल मासौकौ बेलावासी पचही जजिवालसँ महेश्वसर दौ राहुल मासौ सुता त्रिलोचन कृष्णक नारायणा: कोइयार सँ हरश्व।र दो।। त्रिलोचन सुवा हरदत्त पुरोहित गोपाल साधुकरा: बुधौरासँ बुधौरासँ भोनू दौ।। हरदन्ता सुतो चाण गोननो पनिचोभ सँ सहसदेव दौ।। पनिचोभसँ बीजी मधुमन: ए सुताधूज्जसटि वाचस्परति वृहस्पाति भोजदेव्य्:।। तत्र धूर्ज्ज टि सन्नोतति तल्लिस्माइ ग्रामोपार्यक:।। (16/02) वाचस्पुति सन्तिपत वीरपुर ग्रामौं पार्यक:।। ए सुतो रवि शर्म्मध: ए सुतो महादेव ए सुता सहदेव श्रीदेव आदिदेवा:।। सहदेवसुता सान्हि देहरि आडूका: से सँ दौ गोनन सुतो जीवेश्वपर धरेश्वसरी बरूआलीसँ चान्द दौ।। जीवेश्वदसुतो गिरीश्वार:
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खण्ड3बलासँ जाई दौ (07/05) दामोदार सुतो महोदधि: पाली मातृक:। ए सुतौ विश्वरनाथ गोननौ।। दौ अपरौ होरेक: दरिहरासँ विश्व3रूप दौ।। होरे सुतो जाई भवनाथो।। गम्भीधर होरा वासियों ।। जाई सुता मातिध सँ देहरि दौ।। मालिछ सँ बीजी वत्सेश्वौर ए सुतौ हलैश्वरर दण्डिका: सुरगन मातृक:।। ए सुतो पुरूषोत्तम प्र देहरि: खण्डजबसासँ कापनि माधव दौ।। देहरि सुतो करूणाकर: थुरी जालय सँ धाम दौ।। (55/04) रूचिकर सुतो रतिपति: तकवाल सँ शिरू दौ टकबाल से बीजी हरिकंठ: ए सुतौ लक्ष्मीदकंठ: पण्डुजआ सँ शंकर दौ।। ए सुतो बाढ़क: देउरीसँ श्री नाथ दौ।। ए सुतौ माधव (25/01) केशवौ नरवालसँ यशुदौ भन्दमवाल परिसरासँ कृष्णआ शर्म्म दौ।। बृहद ब्रहनपुरासँ विश्णुाकर कस्तमत: माधव सुतो शिरू मांगु कौ जलकौर दरिहरासँ अन्इद सुत सोंढ दौ गाउल फरमहा सॅ पागु छौ।। शिरू सुता (24/08) रूद रति विश्वेकश्व रा: माण्ड र सँ सुधाकर दौ (02/05) सदुपाध्या य (27/02) विशोसुतौ (28/05) हरिका सुधाकरो पालीसँ हलधर दौ (06/08) देल्हतन सुतो गंगादत्त हल्ले श्वारौ विलय सँ हरि दौ गंगादत्त सुता धारेश्वौर शंकर भोगीश्वतर यवेश्वीर (12/01) मोतीश्वररा: सिंहाश्रमसँ महोदधि पौत्र देहरि सुत गदाधर दौ।। धारेश्वधर सुतो धीरेश्वपर: दरिहरासँ देव सन्तरति देवेश्वुर दौ।। ए सुता हलधर देवधर लक्ष्मीेधर (14/02) श्री धरा: जगतिसँ धारेश्व र दौ: जगतिसँ बीजी जयकर ए सुतो सगर: ए सुता जलसेन त्रिलोचन अरविन्दास।। जलसेन सुता मधुकर गोधब श्रीकर देल्ह0न जीव धरा:।। गोधन सुनो सिद्धेश्वतर गंगेश्वगरौ।। सिद्धेश्वर सुता कृष्णज धारेश्व र रूद्रेश्व2रा: जगति वासन्य :।। धारेश्वशर सुतो बोधी कोने को केउँटी एडढ़ सँ हरिहर दौ
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केउँटी राउढ़ बीजी मसबास बासूक: ए सुतो सिंगारूक: ए सुतोवाराह:।। ए सुता श्री वत्सा जगद्धद श्री धरा: श्रीधर सुता विश्वाेपर लक्ष्मीरधर शशिधर महिधर हरिहरा: सिंहाश्रम सैगंगादित्यो दौ।। हरिहर सुता धोसियामसँ तिनन्दान दौ। हलधर सुतो (42/01) सोसेक: सुपटानी गंगोलीसँ गोम देगो। (05/07) गोम सुतो जीवेक: एकमा वलियास सँ रतिकर दौ।। (08/07) रतिकार सुता दिखोसँ सान्हूि दौ।। (19/02) सुधाकर सुता मनोरथ (36/06) हरि कान्हद सोमा बहेराढ़ी सँ रवि दों (07/01)।। लड़ावन सुतो राम सुपनो रूद्रपुर सरिसबसँ वीर दौ।। राम सुतो (27/01) रवि: डीह दरिहरा स विश्वनम्भहर दौ पिहवालसँ लक्ष्मी पति दौहित्र दे (19/08) रवि सुतो पुरेक: माण्ड सँ विभू दौ (07/01) अपरा दूबे सुता गुणाकर शान्तिकरणीक (22/07) पौखू मित्रकरा: मछेटा पालीसँ श्री कंठ दौ।। अपरौ सुपेक घुसौनसँ राम सुपे सुतो विभूक: दिप्योीयसॅ जगन्ना0थपुर वासी सुरेश्वार दौ (10/10) विभू सुतो गोरा जजिवाल सँ भवदन्तप दौ 1108/03) गोबर्द्धन सुतो कापनि प्र ब्राह्णण: भण्डाासिकस कंठ दौ कोधुआसँ गोविन्दा द्धौ।। कापनि सुता भवदत्त गंगादत्त जयदता: सकराढ़ीसँ शारड़ दो।। मांडल प्र भवदत्त सुता दूबा सकश लभशर्म्म: दौ।। श्री कर सुता जनक बैकुण्ठस धारेश्व रा:।। जनक सुतो ऐलो बीठू को बरैबासँ कान्ह। दौ ऐलो सुता आदिदेव जीवधर व केश्व्रा: जी सुताअनन्तब रवि सुपेका इबावासिन्या: चण्डीद बेहद दष्टिमसँ विद्यानिधि महि निधि दौ।। रवि सुता शुचिकर गुणाकर शुंभकर लभशर्म्म णा: बलहिसि शिवादित लभशर्म्मु सुतो रामशर्म्मि: गढ़ बेल लक्ष्मीसपाणि सुत पांचू दौ।। एवम रतिपति मातृक चंक्र।। ।।रतिपति (48/05) सुता गोरे होरे बासू शशुका: बहेराढ़ी सँ जनर्दन
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सुत गणपति दौ (07/08) (32/08) जनार्दन सुतो गणपति: शक्रिरायपुर न उनसँ हरिश्ववर दौ (03/08) रामेश्वबर सुतो योगीश्वरर चक्रश्वतरों (65/03) विरपुर पनिचोभ सँ रतनेश्वतर दो (08/08) वाचस्प ति सुतो हरिशर्म्म ए सुतो (18/03) देवशर्म्मस ए सुतो थानूक: ए सुतौ गौरीश्वरर ए सुतौ महेश्व8र वीरपुर वासी ए सुतोकामेश्ववर: ए सुवौरतने ततैल पण्डुतआ में गुणाका दौ।। ए सुतौ विश्व1नाथ (17/04) विकू कौ तत्रदयो रेकौरा गंगोली स जाटू दौ अल्यौि तल्हानपुरसँ लौरिक दौर अपरा सुता करूआनी सकराठी सँ जगद्धदर दौ सरिसबसँ राम द्धौ (08/07) (2/108) साधुकर सुतो मित्रकर (16/03) चण्डेसश्वारौ तिसउँतसँ पण्डित सुपाई दौ।। 08/09।। नारायण सुतो पण्डित सुपाईक: पतऔना खौआ गदाघर दौ।। ए सुता भड़ारसँ श्रीनिवास दौ।। हरिश्विर (25/05) सुता चान्दो वलियास सँ शिवादित्या दौ।। चान्दोौ बलियास सँ बीजी पुरूषोत्तम ए सुतामहादेव जयदे महेश्व रा:।। जयदेव सुतो सुध्नि धि एसुतौ महानिधि ए सुतो जयनिधि रतनपुर तिलयसँ हरिहर दौ।। जयनिधि सुवा अभयनिधि राजनिधि सु लक्ष्मीस करा: तत्रदयो बभनिपाम सँ राम दौ।। सुपर कोयलीसँ रवि भागिनेयो।। अन्यौज महुआ मातृकी।। अभयनिधि सुता रतनेश्वीर रामेश्वशर परमेश्वमर: गंगो देवरूप दौ।। रतनेश्व र सुता सूर्यकर देवत्त गौरीश्विर शंकर गदाधरा: तत्रादयो दिनारी सरीसन सँ राम दो।। अपरै बनिनियामसँ नितिश दौ।। सूर्यकर सुता (44/06) रूचिकर शिव (13/02) गंगादित्यत महो (28/03) हरादित्यै कान्हो प्र कामेश्व।रा: मछैटा पाली से गणेश्वदर दौ शोधवाल गंगोलीसँ गंगेश्ववर दौ।। शिवादित्य3 सुता होरे पुराई धारू भवाई दुर्गादिल्यँ
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धोसियामसॅ जगन्नाकथ सेतु श्री रंग दौ लाहीसँ श्री धर दौ।। (49/07) गणपति सुता रविकर अमरू कमलू का: बेलकुँच महादित्रून दौ (04/07) शिवदाश सुतोदुर्गादित्यँ (14/05) तीर्यकरौ डीह दरिहरासँ विकर्ण सुतनन्दान दौ सुरगन सँ राय दृष्टिकेश द्धौ।। दुर्गादित्यग सुतो धरादित्यस कपिलेश्वररौ कुजौली सँ रूचिकर दौ सरिसबसँ बीर दौ।। धरादित्यौ सुता एकादश महो (16/05) धर्मादित्य् महो (30/09) जयदित्यस महो (22/06) गयादित्य महो महादित्य महो जीवादित्यद (19/06) महो (25/05) महो रूद्रादित्य् (25/05) पझपुर मकलियसॉं सीधू सुत बाछे दौ चिलकौ दरि भव द्धौ अपरे सुता (तना दित्यि नहो मित्रादित्यध महो (20/02) महो प्राणादित्याय: (33/16) भरेहासँ गणपति दौ सोहन जल्ल्कीसँ समशर्म्मज छौठा अपरौ रूक्मामदित्या परनामक बाट (35/02) बाटु प लाला लहरा गंगोली में बारू दौ।। महो महादित्यँ सुवा विश्व्नाथ (50/02) दूबे (66/02 दूबे मोखे चौबे का: माण्ड5र सँ गोपाल दौ।। 02/10) अपरा नरिसिंह सुतो चोथू मोथू कौ ।।चौथू सुतो देहरि: जजिबालयाक: ए सुतो देवदाश रामपति:।। देवदाश सुतो रतनेश्वगर ए सुतो सुधन सथवई कौ नान्यमपुर अलय सँ पौखू भागिनेयो ।। सुपन सुतो गणेश्वनर नर देवौ सँ दौ।। नरदेव सुतो सज्जदन गोपालौ अलयसँ शूल पाणिदौ।। गोपाल सुतोहरिरि नरसिहों सरपरब खण्डसबला सँ होरे सुत परमेश्ववर दौ बलहा बलियाससँ महादेव दौ।। नरदेव सुतो सज्जौन गोपालौ अलय सँ शत पाणि दौ।। गोपाल सुतोहरिहर नरसिंहो सरपाब खण्ड बलासँ होरे सुत परमेश्व र दौ बलहा बलियाससँ महादेव दो।। एवम शोरे मातृक चक्र शोरे सुताबुधवाल सँ कान्ह दौ बुधवालसँ बीजी वायुदेव: ए सुतो विभाकर प्रभाकरौ।। प्रभाकर सुतोधारेश्वमर हरिपुर वासी ए सुताधर्मेश्व र बागन होगा गंगोली गणपति दो बामनसुता पुराश कौशलदूबे हिरू का सुइरीसँ प्रतिहस्तर प्रज्ञाकर दौ।। पुराश सुल मधुक (38/08) सूर्यकर उदयकरा: खौआल सँ रतनपाणि दौ
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मधुकर सुतो सटुपाध्याय मानूक: एकमा खण्डधबला सँ सुये दौ।। (09/01) अपरा विश्विनाथ सुतो सुपे गांगुकोदक्षिण खण्ड कटाईसँ भीम दौ।। सुपे जादू मतिसर (20/07) शत्रु लाखू का: करमहासँ लक्ष्मी पति दौ।। (02/06) लक्षमीपति सुता सरिसवसँ देवादित्यड दौ (03/02) देवादित्य सुता (12/07) सुता रर्वेआत्य सँ नोन दौ (003/105) (33/04) नोने सुत: (16/05) कान्ही: गंगोर सँ शकल्पौ दौ।। सदुपाध्या0य (191/03) भानू सुता (45/06) गणेश्वसर (22/07) गुणीश्व0र महो गंगेश्व र (35/01) रूचिकर (43/04) रतिकरा: एकमा वलियास सँ भीखे दौ (08/01) उपरा भीखे सुता चिन्तारमणि दिनमणि (19/09) हिरमणि धरार्माणय: त्रिलाठी धुसौत सँ त्रिलोचन दौ।। त्रिलाठी धुसौत से बीजी नरसिंह ए सुतो केश्वु: ए सुता लक्ष्मीमकंठ श्यासम कंठ सुपटा: छत्तौनी सँ विभू दौ।। लक्ष्मील कंठ सुता चन्द्रतकर भवेश्नंर वस्ता) ा आदयो गोधोली सॅ श्रीधर भागिनेयो।। अन्योंछहिमतसँ राम दौ।। भवेश्वभर सुतो त्रिलोचन: दरि गौढि दौ त्रिलाचन सुता नाउन सँ हरिशर्म्मव दौ (08/08) जजि लक्ष्मी श्व छो ।। महो गंगेश्व र सुतो हेलूक गढ़ माण्ड रसँ जीवेश्व र दौड़ (07/02) कोने प्र गुणीश्व(र सुतो जीनेश्व र पवौली सँ पुराश दै (07/03) वापट सुता यशोधर जगद्धर (17/05) हलधरा: कुसमाल सँ मणिधर दौ।। अपेरे उदयकर गुणाकर पदमकरा: फनन्द8हसँ लखाईभ्रातृ शशिघर दौ।। यशोधरा सुतो प्रितिकर पुराशो: नीमातक बलासँ जगन्ना।थ सुत भवनाथ दौ कुजौलीसँ पहका दौ वसुआलसँ भवदाशस्तुँत: पुराश सुतो देवशर्म्मर तिसउत खुशे दौ।। अपरौ मोहन दामकौ एकमा पलियासँ आनन्दन कर दौ मरेहासँ लड़ावन छौणा अपरौं वीठू पुण्याककरौ एकराढ़ीसँ हरपति दौ।। जीवेश्वतर सुता टकबालसँ गोपाल दौ।। अपरा जीवेश्वर सुतो सोंसेक : बुधवाल (59/07) सँ मानू दौ।। जसानन्दी टकबाल सँ बीजी:
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पॉंखूक: ए सुतो श्री निवास: ए सुतो हरिहर: उदनपुर त्रजिवास आवस्थिक माने दौ।। ए सुतो बाछेक: गढ़ यमुगामसँ हरिकर दौ।। सुतो गोपाल: मिगुआससँ जाटू सुत मितूदौ सोइनिसँ शंकरदाश छौणाएकान्त्रिक गोपाल सुता (46/04) नारायण हरि बासुदेवा: नरवालसँ दिवाकर पौत्र मणिकर सुत होरे दौ भिखौनी कलिगामासँ कमलपाणि दौ।। अपरौ सुपेक: हड़री खण्डकबलासँ गोनन्द द्वौ।। तेलू सुतो कान्हर: दरिहरा सँ पदमकर दौ (07/04) रेचन्र्न सुतो योगु मन्डसनौ ।। योग सुता आनिधर मनोधर चतुर्भूजा चतुर्भुज सुता पुराक मसवास देवधरा: पाली सँ श्रीपाणि दौ।। पराक श्री पत्यार: परनामा सुतो यशस्पनति सिंहासनसँ मनोधर दौ ए सुतो महामहो रतिपति नहीं रामति महो (12/10) जानपतिय: ।। गोधूलि अलयसँ शंरपाणि दौ।। ब्रहमपुरादिधोय सोम छौठ।। महामहो रतियति सुता महामहो सुरपति महामहो इन्द्रीपति महामहो महो धृतिपतिय: जाती मराड़ से लोचन प्र चन्द्रबकर दौ पिहवासँ सीधू दौहिन दौ।। महामरी सुरपति सुता महो कितिर्श्मार महो प्रतिशर्म्मध नहीं हरिशर्म्मजमिश्र मित्रशर्म्मदणा: आद्यो महुआसँ धीतू दौ दरिहरासँ गंगेश्वमरदौ।। अन्योरकरही भण्डािरिसमसँ देववंश सुतनयवंश दौ महामहो प्रितिशर्मा ता रविकर गांगु दिवाकरा: तत्रादयो यमुगाम सँ जीवेश्वसर दौ।। अन्योा वति गाम सँ इशर वाट सुत जादू दौ।। दविकर सुता शुभकर (34/05) गुणाकर प्रजाकर (24/09) कुसुमाकर पदमासर नदामसँ महादेव सुत सुधाकर दौ दूबा सक मतिदेव दौ।। (38/01) पद्मकर सुतो बाटू (73/07) प्र हरीक: तल्हीनपुर सँ गढवय दौ (07/08) शुक्ल् जान सुतो महादेव: चाण्डी टक वालसँ सोम दौ।। महादेव सुता सोमदेव नरदेव गंगदेवा: कुजौली मनोरथ दौ।। सोमदेव सुतो चन्द्रतश्व र बर्द्धमानौ।। चन्द्रँश्वार सुतो यवेश्वेर
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(21/09) वीरेश्वबरी: जालयसँ श्रीपति दौ।। यवेश्वेर सुतो गढ़वयक: महियानीसँ तारापति दौ।। गढ़वय सुता हरि रवि रतना: पालीसँ छिताई दौ।। (09/07) मोतीश्वचर सुतो रतनाकर: दरिण्कासन्हक दौ।। ए सुतो छिताई कौ (43/02) हिताई को सिम्भुौनाम वरमहासँ शंकर दौ।। छिताई सुतो प्रभावकर: पदमपुर पकलियासँ बाछ दौ।। पदम पुर पकलियासँ बीजी बासुदेव:ए सुता महादेव गंगदेव रामदेव कामदेवा: रामदेव सुतो शितिकंठ श्यााम कंठौ।। शितिकंठौ ।। शितिकंठ सुतो सिधूक ग्रामुगाम मात्रक: ए सुतो गणपति बाहरे कौ अपेरो गिरीश्वसर पाली सुइरीसँ अभिन्न्द दो।। बाछे सुवा भाइ मासे चन्द्रठकरा: चितकौर सँ भव दौ।। माडबेहर सँ कान्ह छौ।। कान्हे सुता हरि शिव शंकर: उदनपुर जजिपाल सँगुणु दौ।। उदनपुर जजिवालसँ बीजी आवस्मथ्कक मानेक: ए सुता शिनिकंठ रति कंठ मुयर कंइ होर कंठ अनन्त कंठ मणि कंठा तत्रादयो सझौरा सकाढ़ीसँ दौ।। अपरै बरेबासँ शंकर दौ।। शितिकंठ सुता धीर वीर भासे गोपाल हरिहरा: तेर होता सँ नारायण दौ।। देयाम सँ प्रजाकर पौड़ श्री कर सुत हरिकर दौ अनयौ के धौनी टकबालसँ गुणकर भागिनेयो: गोपाल सुो कान्हद: बनाइनि पाली सँ धीरेश्वरर दौ ए सुता गोविन्दग (20/09) नारू पुराई रामा: तत्रदयो जगतिसँ गणपति दौ अन्लो करूआनी सकराहीसूं नाइदो ।। बेलमोहरन नाउन सू तपक सुत कार्प्यि गंगादाश दौ. पुराई सुतो बैजू शंकरों ( 38/04) उचित हखय दौ।। अपरौ डालूक झोंट पाली दरिहरासँ रविदन्तप दै। (11/05) जानपति झोंटवाली वासी ए सुता महो शिवपति कृष्णहपति वासुदेवा: सरिश्रम छीतू दौ हरिअम्बा दो बीजी दीक्षित झॉंड़क: ए सुतौयान्त्रिक त्रिलोचन: एअतौ विद्यानिधि देवनिधि।। देवनिधि सुतोविद्याधर छीतू प्रसिद्ध नामा: वन्ड वलासँ नीलढंठ दौ।। सुता हरिहर (16/08) माधव गोविन्दाो सुइरीसँ बहलचनुद्रा।।
(40) ''12''
सुइरीसँ बीजी शेखर ए सुता रतनपाणि वासुदेव लखपतिय:।। वासुदेव सुतोशंकर:।। ए सुता आमेध कुमार शार उपाणिय: ।। शारड़ पाणि सुतौ और बहन चन्द्रोण बहलचन्द्र सुता सँ दौ।। शिवपति सुता डालू विशो होरे हरपन्तड जादू का: आदया छादन सरिसब सँ गयन दौ।। अपरौगंगौर सँ बराहनाथ दौहित्र हो होरे सुतो रविदन्तस: गाउल करमाहासँ श्रीदेव दौ।। रविदन्त सुता गांगु कान्हस गोपाला: कोइयार संहारू ।। अपरा सुता करमहासँ आउन्ि दौ (02/06) गौरी सुतो अमॉं इक: नान्यापुर (बौआल सँ जगदेव दौ।। ए सुतो आउनि बलहिरसँ देवकंठ दौ।। ए सुतो डारू क: धोसिवाम सँ पराशर दौ।। कलिमासँ दिवाकर छौंप (38/02) डालू सुता गोरी गुणेग्रहेश्व र परनामक आमांउका बरूआली से रूचिकर दौ (01/0511) चन्द्रंकर सुतो विश्वनाथ: कन्जुौग्राम सकराढ़ीसँ जगन्ना।थ दो गोविन्द् वनपानि चोमसँ नन्दमन सुत गंंगेश्वदर छौ। विश्व नाथ सुतो (25/08) मेरी सिंहसन संभव दौ।। ए सुतो रूचिकर दहिमतसँ राम सुत इबे दौ भण्डापरिसमसँ हरिहर रूचिकर सुता सरिसब सँ नाने दौ अपरौ देवादित्यस सुतोकरूणाकर : करूआनी एक राढिसँ म. म. उ कारू दौ।। करूणाकर सुतो रतनाकर प्रजाकररौं दहुलासँ श्रीहर्ष दौ।। रतनाकर सुतो हरिकर: कटाई संमीम दौ।। हरिकर सुतो नाने क: सरौनी संलीक दौ।। नारे सुतो भ्वँदित्यँ पुरादित्यौन जालयसँ राम दौ।। जल्लईकी (जालप) सँ बीजी बान्धरन: एसुता खड़गपर चØघर शंखघर जीवघरा: एतै मातृक कृष्णे: खड़घर सुता विद्याघर कीर्तिघर गंगाधरा मेरन्दील मादक विधाधर सुतो द़ष्टि रूचिकरौ विजनपुर दरिण्सँघ वेद दो।। हरिहर सुतो चक्रघर शंख धरा जीवधरा: एते मात्रक कृष्णत।। खडगपर सुता विधार कीर्तिघर गंगा धरा मेरन्दीि मादक विधाधर सुतो हरिहर रूचिकरो विजनपुर परि सं वेद दो।। हरिहर सुतो श्रीपति: ए सुतो विश्वेाश्वदर: मटियानीसँ तारापति दौ।। ए सुतोभवेश्वमर रामेश्विरौ वरूआली माण्डिर सँ म म उ शंकर दौ म म उ रामेश्वगर सुता महमहतक गणति महामतक रतिधर सदुण (24/02) महिधरा: आदया पबौली सँ महिपाणि सुत यूबेदै अन्योौ एक धृतिका दौ।। गुणेसुता अफेल (224/05) लाखन रविय 391/07) पालसँ हलधरदौ।। (10/04) अपरौमहो टपबर सुतो।
(41)
मुरारी एकहरासँ दिवाकर दौ (04/06) देवे सुतो रतनेश्वीर : मझौरा सकराढ़ीसँ श्रीकंठ सुत नीलकंठ दौ पवौती संवाचस्पफति अपरेसुस्तह सोम धर्ममित्रश्वखर यश्यिसँ त्रिलोचन दौ महुआसँ बर्द्धमान दौ।। रतनेश्वबर युवा दिवाकर रूचिकर (227/07) शुचिकर मतिकर मिश्र हरिकरा: मड़ार सँ श्री हर्ष दौ।। दिवाकर सुतोस्थाानान्तवरिक सुधाकर रतिकरौ विलयसँ बराह सुत देवशर्म्मस दौ भण्डा रिसमसँ धरिश्विर द्वौणा। अपरा सुता तेरहोत सकराढ़ी सँ कुलेश्व।र सुत भवेश्वरर दौ सकुरीसँ लक्ष्मी हैंा मुरारी सुतो पौखूक: तेरहोत सकराढ़ीसँ गाजो दौ (03/09) मनोरथ सुता वनमाली वशिष्टस गोविन्दत शुभकरा: अपरौ शकर्षण शुभंकर सुता भागीरथ दिवाकर तनपति नाई का: तोहोत वासिन्यर।। सिंहाश्रम सैविद्यापति छौ. भागीरथ सुतो कुलेश्वुर: ए सुता रामेश्वार योगीश्वतर भवेश्वेर परमेश्रा : रामेश्वार सुनी जीवधर पितधरौ महुआ सँ महादेव दौ।। जीवधर सुतों गाजांक केउँटी विषय सँ लक्ष्मी्कर दौ।। ढेढवाल 2 वलय सँ नयदेव दौ।। गाजो सुतो गणपति: अलय सँ यशाकरदौ अलय सँ बीजी धरनी धर धाउन प्रसिद्धनामा।। ए सुता मनोरथकम्रकअमारका:।। मनोरथ सुता प्रितिकर श्रीधर वावन रामा: वावन सुतो शंख पुरूषोन्ति।। गोधूलि वासियों पुरूषोत्तम सुते भोगीश्व्र: पदमपुर पकलियासँ राम दौ।। ए सुतो यशोधर देव धरौ करूआनी एकराढ़ीसँ म.म. उ कारू दौ करहीसँ नमवंश दौ।। यशोधरा सुतोसरूक नाउन सँ महिधर दौ अपरा सुता खौआतसँ रूद्रिपाणि सुतखांजो दौ खण्ड बला सँ होरे क्षै।। पौखू सुता गणेश्व र नन्दी श्वअर वीर गोविन्दर हरिश्वोर पतऔना (वौआल सँ नरसिंह दो (03/04) भवादित्य सुतो रति: वमनियामसँ यवे दौ।। रति सुतो डालूक: सरौनीसँ हाउँ दौ।। डालू शशिधर नरसिंहों तम्त्दयो नगवाड़ धोसोतसँ रति दौ
(42) ''13''
अन्त4योभण्डा'रिसमसँ सिरटि दौ।। नरसिहं सुतो नारायण दामोदरौ मुगेनी दिथोयसँ कुमर सुत साठू दौ मूलहरीसँ बल्ल3भदाश दौ।। गोविन्दल सुता होरि नाने भरैवा चान्दो। बलियाससँ धारू दौ (10/10) गंगादित्यौ सुता भबाई मंगलधरा परनामा।। भवाईं मिश्र, शिवादिस दन्तनकपुत्र: यमुगामसँ दिनकर दौ अन्त यो धोसियामसँ श्रीरंकदौ मंगलधर सुतो धारूक: कनन्दाहसँ परान सुत हद दौ यमुगाम सँ चतुर्भुत धारू सुतो चाको रतनपाणि: कुरहरि करमहासँ धनेश्वार दौ।। गाउल करमहासँ बीजी मुरारी।। रासुता जगद्धर ऐमधर मनोधरा:।। हेमधर सुतो महिपार ए सुतो हरिहर ए सुतो रतिदेव जगदेव श्री देव वासुदेवा: तत्रादयो पनिहारी दरिहरासँ बविराज मिसर दौ।। अत शक्रिरायपुर नाउनसँ बलभद्र दौ।। श्री देव सुतो चण्डेवश्वीर विश्व वरै।। चण्डी श्वरर सुता प्राणेश्वमर नन्दीतश्व र महेश्व र मश्वसरा: कुरहरिवासियों योग बेहद कुसखान गोविन्दौद।। रामेश्व र सुता। गिरीश्ववर धनेश्ववर मतिश्वार देवेश्व रा: यमुगामसँ बासुदेव दौ धनेश्वसर सुतो गुणीश्वंर: बेलमोहन नाउनसँ नारायण दौ।। कीर्तिकर सुतो भीखर धाने कौ।। भीखन प्र रतनेश्ववर सुता प्रान्ा्वरान डगरू दर्ब्बे श्वररा नान्यगपुर विस्फीकसँ गुणे दौ।। दर्ब्बेउश्व र सुतो पीताम्बखर गोविन्द्वन पनिचोम लखन सुत लक्ष्मीारकर दौ।। ए सुतो भिरखेक: मालिछ मात्रक: ।। ए सुतो नारायण गोविन्दोब उपमान्य गोत्रे गढ़ एकहरी सँ हरिहर दौ। क्वनचित गुरू भद्रेश्वार दौ।। नारायण सुतो लक्ष्मीणपति: मन्वााल परिसरासँ नयशर्म्मम दौ।। एवम रामभद्र मातृक चक्र।।
२.इंग्लिश-मैथिली कोष / मैथिली-इंग्लिश कोष
इंग्लिश-मैथिली कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।
मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@yahoo.co.in वा ggajendra@videha.co.in पर पठाऊ।
भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली
1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।
कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
आब 1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली आऽ 2. मैथिली अकादमी, पटनाक मानक शैलीक अध्ययनक उपरान्त निम्न बिन्दु सभपर मनन कए निर्णय करू।
ग्राह्य / अग्राह्य
1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/ होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
English Translation of Gajendra Thakur's (Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in )Maithili Novel Sahasrabadhani by Smt. Jyoti Jha Chaudhary
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
SahasraBarhani:The Comet
translated by Jyoti
Walking to the office, always thinking about something etc. had become routine of Nand. Earlier he used to read some books but he left that habit too. He was not spending time in reading books with his children as well. Visiting village twice in a year in Holi and in Durga Puja was also changed in visiting village only once on the occasion of the Durga Puja. But Nand never missed to celebrate Holi in village although apart from his family. While going to village Nand started visiting one uncle somehow related to his family.
(continued)
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि। 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-15 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website: http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। - कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (५):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
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पेपरबैक संस्करण
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र
उपन्यास
माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
कहानी-संग्रह
धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम
एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन
अंतिका प्रकाशन
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”
९/१०/११ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-15 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आऽ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
श्रुति प्रकाशन, रजिस्टर्ड ऑफिस: एच.१/३१, द्वितीय तल, सेक्टर-६३, नोएडा (यू.पी.), कॉरपोरेट सह संपर्क कार्यालय- १/७, द्वितीय तल, पूर्वी पटेल नगर, दिल्ली-११०००८. दूरभाष-(०११) २५८८९६५६-५७ फैक्स- (०११)२५८८९६५८
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विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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