डॉ मित्रनाथ झा (१९५६-)
पिता स्वनामधन्य मिथिला चित्रकार स्व. लक्ष्मीनाथ झा प्रसिद्ध खोखा बाबू, ग्राम-सरिसब, पोस्ट सरिसब-पाही, भाया- मनीगाछी, जिला-मधुबनी (भारत), सम्प्रति मिथिला शोध संस्थान, दरिभङ्गामे पाण्डुलिपि विभागाध्यक्ष ओ एम.ए. (संस्कृत) कक्षाक शिक्षार्थीकेँ एम.ए. पाठ्यक्रमक सभ पत्रक अध्यापन। लेखन, उच्चस्तरीय शोध ओ समाज-सेवामे रुचि। संस्कृत, मैथिली, हिन्दी, अंग्रेजी, भोजपुरी ओ उर्दू भाषामे गद्य-पद्य लेखन। राष्ट्रीय ओ अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर सुप्रतिष्ठित अनेकानेक पत्र-पत्रिका, अभिनन्दन-ग्रन्थ ओ स्मृति-ग्रन्थादिमे अनेक रचना प्रकाशित। राष्ट्रीय ओ अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर आयोजित अनेक सेमिनार, कॉनफेरेन्स, वर्कशॉप आदिमे सक्रिय सहभागिता।—सम्पादक
विदेह-वैभव
विद्या-वैभव केर गरिमासँ सर्वथा पुक्त जे सिद्ध भूमि।
अन्तर कदापि नहि जे कएलक अप्पन वा आनक थातीमे॥
देलक सदिखन जे पूर्ण ज्ञान निश्छलता ओ कर्मठतासँ।
मद्धिम कखनहुँ नहि पड़य देल, दय तेल ज्ञान केर बातीमे॥
हवि ज्ञानक अप्पन सतत बाँटि, हो बुद्धिक कोनो अनुष्ठान।
शिक्षाक भनहि हो कोनो विधा, वर्जित नहि हिनकर पातीमे।
अक्षुण्ण राखि निज-मर्यादा, अन्यहु क्षेत्रक कएलक विकास।
मिथिला केर तापस ज्ञान-भानुसँ, के-के नहि लेलक प्रकाश॥
मतवैभिन्यक अप्पन महिमा, के नहि जनैछ ई दिव्यभूमि।
तमसँ आच्छादित मार्ग कोनो, त्वरिते पाओल ज्ञानक प्रकाश॥
रहि मध्य मार्ग केर अनुगामी, कामी नहि कोनहु तुच्छ फलक।
कएलक प्रयास विध्वंसक बड़, पर कए न सकल किञ्चित् विनाश॥
होता कोनहु हो, यजमानक ज्ञानक मानक हो ध्यान सदा।
मिथिला केर पावन धरतीपर, गुञ्जित हो ज्ञानक गान सदा॥
भग्न चिन्तन
चिन्ताक तप्त दावानलमे हम की रचनात्मक कार्य करू।
हियमे तँ अबैछ लहरि भावक, पर धार कोना ई पार करू॥
त्रिभुवन केर प्रायः कोनो वस्तु, मानव-चिन्तनसँ दूर नञि।
की भावनाक ई दिव्य महल, होएत हमरासँ पूर नञि॥
लेखनी हमर ई बाजि रहल, की हमरा अपनहि भरि रखबेँ।
मानस पट से धिक्कारि रहल, की समय एतबहि भरि रखबँ॥
खाली हाथँ जाएत सभ क्यो, ई नीक जेकाँ हम जनैत छी।
लेखनीक आइ दुर्दशा देखि, एकान्त मौन भए कनैत छी॥
कारण जनैत छी नहि जाएत भूतलसँ संग एक्कोटा कण।
पर मित्र भाग्यसारणी हमर नहि देलक एहन कोनो यक्षण॥
जेहि अनुपमेय क्षणमे अप्पन भावना अतीतकेँ दोहराबी।
भग्ना वीणा केर रुग्ण तारपर दू आखर हमहूँ गाबी।
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