भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, May 08, 2009

रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- )

रामाश्रय झा रामरग (१९२८- )

विद्वान, वागयकार, शिक्षक आ मंच सम्पादक छथि।


मैथिली  भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रचना।

 

.राग विद्यापति कल्याण- एकताल (विलम्बित)

 

स्थाई- कतेक कहब गुण अहाँकेँ सुवन गणेश विद्यापति विद्या गुण निधान।

अन्तरा- मिथिला कोकिला किर्ति पताका “रामरंग” अहाँ शिव भगत सुजान॥

 

स्थायी - - सा  रेग॒म॑प ग॒रेसा

       ऽ ऽक  ते ऽऽऽ क,कऽ

 

रे सा (सा), नि॒ध निसा रे नि॒धप़ ध़नि सा सारे ग॒रे रेग॒म॑प –(म॑)

ह ब     ऽऽ  गु न ऽअ हां,ऽऽ  केऽ ऽ   सुव नऽ ऽऽऽऽ  ऽ ग

प प धनि॒ धप धनिसां - -रे सांनि॒ धप (प)ग॒ रे,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा

ने स विऽ द्याप तिऽऽ    ऽवि द्या  गुन निधा न, क तेऽऽऽ  ,

अन्तरा पप नि॒ध निसां सांरें

       मिथि लाऽ ऽऽ कोकि

सां निसांरेंगं॒ रें सां रें सां रें नि सांरे नि॒ धप प (प) ग॒ रेसा

ला ऽ  की ऽऽऽ  तिं प     ता ऽ ऽऽ  का ऽऽ रा म  रं  ग अ

रे सासा ध़नि॒प़ध निसा  -सा  रेग॒म॑प  - ग॒  सारे  सा,सा  रेग॒म॑प  ग॒, रेसा

हां शिव  भऽ,  तऽ   ऽसु   जाऽऽऽ  ऽ ऽ     ,    ते ऽऽऽ  ,कऽ

 

***गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद  व अन्य स्वर शुद्ध।

.राग विद्यापति कल्याण त्रिताल (मध्य लय)

 

स्थाई- भगति वश भेला शिव जिनका घर एला शिव, डमरु त्रिशूल बसहा बिसरि उगना भेष करथि चाकरी।

अन्तरा- जननी जनक धन, “रामरंग” पावल पूत एहन, मिथिलाक केलन्हि ऊँच पागड़ी॥

 

स्थाई-

       रे

      

सा गम॑ प म॑ प - - म॑ग॒  - रे सा सारे  नि सा -, नि

ग तिऽऽ     श ऽ ऽ भे  ऽ ला ऽ शि ऽ व  ऽ ऽ  जि

 

ध़ नि सा रे सा नि॒ प़ ध़ नि॒ ध़ प़ नि सा - - सा

  का         ऽ ए ऽ  ला ऽ  शि  व ऽ ऽ ड

 

रे ग॒ म॑ प  प नि॒  ध प म॑ प  धनि  सां सां गं॒

म रु ऽ त्रि  शू ऽ ल ब  स हा  ऽ बि सऽ  ऽऽ  रि उ

 

रें सां नि रें  सां नि॒ ध प  म॑ प पनि॒ ध  प -  -  -- रे

ग ना ऽ ऽ   भे   ष क  र थि चाऽ ऽ  कऽ ऽरी ऽऽ

 

अन्तरा प

      

 

प नि सां सां  सां - - ध नि  - ध नि नि सां रें सां -, नि

न नी ऽ ज  न ऽ ऽ ऽ    ऽ क ध न      न ऽ, रा

 

नि सां गं॒  रें सां सां नि ध नि सां   नि॒ ध प ग॒

 

म॑ प नि सां  सां नि॒ ध प  म॑ प पनि॒ ध  प- -ग रे

थि ला ऽ क   के ल न्हि ऊँ ऽ च पाऽऽ    गऽ  ऽड़ी ऽऽ,

***गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद दोनों व अन्य स्वर शुद्ध।

.श्री गणेश जीक वन्दना

राग बिलावल त्रिताल (मध्य लय)

स्थाई: विघन हरन गज बदन दया करु, हरु हमर दुःख-ताप-संताप।

अन्तरा: कतेक कहब हम अपन अवगुन, अधम आयल “रामरंग” अहाँ शरण।

आशुतोष सुत गण नायक बरदायक, सब विधि टारु पाप।

 

स्थाई

नि

ग प ध नि  सा नि ध प   ध नि॒ ध प   म ग म रे

वि ध न ह   र न ग         न द  या ऽ क रु

 

ग ग म नि॒   ध प म ग   ग प म ग   म रे स सा

ग रु ऽ ह     म र दु ख   ता ऽ प सं   ता ऽ प ऽ

 

अन्तरा

नि                                रें

प प ध नि   सां सां सां सां   सां गं गं मं         गं रें सां

क ते क क   ह ब ह म   अ प न अ     व गु न ऽ

                                         रे

सां सां सां सां    ध नि॒ ध प  ध ग प म   ग ग प प

अ ध म आ      य ल रा म  रे ऽ ग अ   हां श र ण

 

ध प म ग   म रे सा सा   सा सा ध -    ध नि॒ ध प

आ ऽ शु तो  ऽ ष सु त    ग ण ना ऽ     य क व र

धनि संरें नि सां   ध नि॒ ध प   पध नि॒ ध प    म ग म रे

दाऽ  ऽऽ य क     स ब बि ध   टाऽ ऽ रु ऽ    पा ऽ ऽ प

४. मिथिलाक वन्दना

राग तीरभुक्ति झपताल

 

स्थाई: गंग बागमती कोशी के जहँ धार, एहेन भूमि कय नमन करूँ बार-बार।

अन्तरा: जनक यागवल्‍क्ष्‍य जहँ सन्त विद्वान, “रामरंग” जय मिथिला नमन तोहे बार-बार॥

 

स्थाई

 

रे ग म प म ग रे सा

गं ऽ ग ऽ बा ऽ ग म ऽ ती

 

      

सा नि ध़ प़ नि नि सा रे सा

को ऽ शी ऽ के ज हं धा ऽ र

 

              सा

म ग रेग रे प ध म पनि सां सां

ए हे नऽ ऽ भू ऽ मि कऽ ऽ य

 

                    

सां नि प ध (ध) म ग रे सा सा

न म न क रुँ बा ऽ र बा र

 

अन्तरा

प पध म प नि नि सां सां

ज नऽ क ऽ ऽ या ग्य व ऽ ल्क

 

रें रें गं मं मं गं रें सां

ज हं सं ऽ त वि ऽ द्वा ऽ न

         

सां नि प ध म प नि सां सां सां

रा म रं ऽ ग ज य मि थि ला

         

सां नि प ध (ध) म ग रे सा सा

न म न तो हे बा ऽ र बा र

५. श्री शंकर जीक वन्दना

राग भूपाली त्रिताल (मध्य लय)

 

स्थाई: कतेक कहब दुःख अहाँ कय अपन शिव अहूँ रहब चुप
साधि।

अन्तरा: चिंता विथा तरह तरह क अछि, तन लागल अछि व्याधि,

 “रामरंग” कोन कोन गनब सब एक सय एक असाध्य॥

 

स्थाई

प ग ध प   ग रे स रे   स ध सा रे   ग रे ग ग

क ते क क   ह ब दुः ख   अ हाँ कय अ   प न शि व

 

ग ग रे   ग प ध सां   पध सां ध प   ग रे सा

अ हूँ ऽ र   ह ब चु प   साऽ ऽ ऽ ऽ   ऽ ऽ धि ऽ

 

अन्तरा

 

प ग प ध   सां सां सां   सां ध सां सां   सां रें सां सां

चिं ऽ ता ऽ   वि था ऽ त   र ह त र       ह क अ छि

 

सां सां ध -   सां सां रें रें    सं रे गं रें     सां ध प

त न ला ऽ   ग ल अ छि   व्या ऽ ऽ ऽ     ऽ ऽ धि ऽ

 

सां ध प   ग रे स रे     सा ध स रे     ग रे ग ग

रा ऽ म रं    ऽ ग को न   को ऽ न ग   न ब स ब

 

ग ग ग रे   ग प ध सां   पध सां ध प   ग रे सा

ए क स य   ए ऽ क अ   साऽ ऽ ऽ ऽ   ऽ ऽ ध्य ऽ


 

+% u!एकठाम रहबाक अवसर दैत अछि। विचारक आदान प्रदानक केन्द्र स्वतः मैथिली भाषा आ साहित्य भए जाइत अछि। एहिसँ परिचय आ अनुभवक क्षेत्रक विस्तार होइछ। मैथिलीक रचनाकारमे भावात्मक संवद्धता बढैत अछि।सगर राति दीप जरयक निरन्तर आयोजनसँ मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्तिपूर्ण क्रान्ति आबि गेल अछि। आन भाषाभाषी आ सात्यिकारकबीच मैथिलीक कथाकारक प्रतिष्ठा बढ़ल अछि। विशेषतः एहि हेतु जे मैथिलीक कथाकार दूर-दूरसँ अपन पाइ खर्च कए पहुचैत छथि। कथा पढैत आ सुनैत छथि। अपन कथा पर लोकक प्रतिक्रिया धैर्यपूर्वक सुनैत छथि। आ फेर अग्रिम आयोजनमे सम्मिलित होएबाक संकल्पक संग घूमि जाइत छथि। जे सगर राति कथाकार लेल कल्पित भेल छल,समाजक सुधी समाजक अन्तःकरण मे प्रवेश कए मैथिली भाषा साहित्यक पक्षमे अनुकूल वातावरणबनेबामे सार्थक भूमिकाक निर्वाह कए रहल अछि। जहिआ सगर राति प्रारम्भ भेल छल आ एखनुक जे स्थिति अछि ओहि मे गुणात्मक आ परिमाणात्मक दूनू प्रकारक परिवर्तन स्पष्ट अछि। विकासक ई दिशा आ गति निश्चिते शुभलक्षण थिक। एहि शुभ लक्षणक उदाहरण तँ इएह थिक जे दरभंगाक पहिल आयोजनमे पहिले पहिल दू टा पोथीक लोकार्पण भेल छल आ स्वर्ण जयन्तीक अवसर पर 36 टा पोथी लोकार्पित भेल। विद्वानलोकनि कहि सकैत छथि कोन भाषाक मंच पर एकबेर 36 टा पोथीक लोकार्पण भेल अछि।दरभंगामे एकटा अमेरिकन नागरिक मैथिलीमे कथाक पाठ कएने छलाह। सगर राति दीप जरयक दृष्टिसँ बोकारो उर्वर छल, एम्हर आबि राँची, जमदेशपुर देवघर पूर्णियां आदि स्थान मैथिली लेल जगरना कएलक अछि,इहो शुभ लक्षण थिक।मुदा, सगर रातिक लोकप्रियता आ बिना वर.विदाइक साहित्यकार एवं साहित्यानुरागीक उपस्थितिक उपयोग कतहु कतहु कथा पाठ एवं ओहि पर चर्चासँ भिन्न प्रयोजन सिद्धि लेल सेहो भए गेल अछि। जे सगर रातिक मूल अवधारणाक अनुकूल नहि अछि। ओहिसँ बचबाक चाही। सहरसामे दोसर खेप सगर रातिक आयेजन 21 जुलाई, 2007 केँ भेल छल। सगर राति आयोजनक एक प्रमुख आकर्षण अछि भेटघाँट। ओहिसँ बाहरक साहित्यकार वंचित रहलाह। उपस्थितिक प्रसंग सूनि जीवकान्त जी 22 जुलाई, 2007क अपन पोस्ट कार्डमे लिखलनि अछि- 

सहरसा कथा गोष्ठीक खबरि भेल। कथा गोष्ठी भूतकालक वस्तु भेल। लेखन काज लेखक सभ छोड़ने जाइत छथि। सेमिनार, तकर प्रचलनबढ़ल अछि। टी.ए./डी.ए./भेटघाँट ई सभ भए गेँबुू जे लेखकीय ल तझअस्मिताक अहंकार पुष्ट भेल आएक दोसराकँ बल देल। सरकारी मान्यताक बाद भाषामे अनेक राजरोग उत्पन्न होइत छैक। मैथिली निरपवाद रूपे पहिनेसँ बेसी रोगाहि भेल छथि। जिबैत रहओ।हमरा विश्वास अछि सगर रातिक नियमित आयोजन मैथिलीके राजरोगसँ मुक्त रखबामे सफल होएत। साहित्य अकादेमी सँ वर्ष 2007 लेल पुरस्कृत प्रहरी प्रदीप बिहारीक कथा संग्रह सरोकारक प्रायः समस्त कथा सगर राति दीप जरयक अवसर पर लोक सुनने अछि। आओहि पर अपन-अपन प्रतिक्रिया व्यक्त कएने अछि। सगर रातिक ई पहिल उपलब्धि थिकैक। एहि उपलब्धि पर मैथिली एहि शान्ति क्रान्तिक एक प्रतिभागीक रूपमे गर्व अनुभव करैत छी आकामना करैत छी इतिहास दोहराइत रहय।

ng=HI |')e' u!ly:gargi;mso-ascii-font-family:Mangal;mso-hansi-font-family: Mangal'>अछि। नवविवाहित लड़का लेल अहि पावनि के विशेष महत्व अछि या कहू पावनि खासकय हुनके सभक लेल छन्हि। नवका बरक लेल पावनि तहिने महत्वपूर्ण अछि जेहन नवविवाहिता लेल मधुश्रावनी। फर्क यैह अछि जे मधुश्रावनी कतेको दिन लम्बा चलैय बला पावनि अछि अहि में नव कन्या लेल बहुत रास विधि-विधान अछि जखनकि कोजागरा मुख्यतःमात्र एक दिन होइत अछि।

जहिना मधुश्रावनी में कनिया सासुरक अन्न-वस्त्रक प्रयोग करैत छथि तहिना कोजागरा में बर सासुर सं आयल नव वस्त्र धारण करैत छथि। कोजागरा के अवसर पर बर के सासुर सँ कपड़ा-लत्ता, भार-दोर अबैत छन्हि। अहि भार में मखानक विशेष महत्व रहैत अछि। यैह मखान गाम-समाज मे सेहो बरक सासुरक सनेस के रूप मे देल जाइत अछि। सासुर सँ आयल कपड़ा पहिरा बरक चुमाओन कयल जाइत अछि। बरक चुमाओन पर होइत अछि बहुत रास गीत-नाद।

कोजागरा में नींक जकाँ घर-आंगन नीपी-पोछि दोआरी सँ भगवतीक चिनवारि धरि अरिपन देल जाइत अछि। भगवती के लोटाक जल सँ घर कयल जाइत अछि। चिनबार पर कमलक अरिपन दय एकटा विटा में जल भरि राखि ओहि पर आमक पल्लव राखि तामक सराई में एकटा चांदी के रूपैया राखि लक्ष्मी के पूजा कयल जाइत अछि। राति में अधपहरा दखिक बरक चुमाओन कयल जाइत अछि। आंगन में अष्टदल अरिपन ओहि पर डाला राखि कलशक अरिपन ताहि में धान कलश में आमक पल्लव राखल जाइत अछि। एकटा पीढ़ी पर अरिपन देल जाइत अछि जे अष्टदलक पश्चिम राखल जाइत अछि। चुमाओनक डाला पर मखान, पांच टा नारियल, पांच हत्था केरा, दही के छांछ, पानक ढोली, गोटा सुपारी, मखानक माला आदि राखि पान, धान दूबि सँ वर के अंगोछल जाइत अछि तहन दही सँ चुमाओन कयल जाइत अछि। चुमाओन काल में बर सासुर सँ आयल कपड़ा पहिरि पीढ़ी पर पूब मुँहे बैसैत छथि।

पुरहरक पातिल के दीप सँ वर के चुमाओन सँ पहिने सेकल जाइत छथि। फेर कजरौटा के काजर सॅं आँखि कजराओल जाइत छन्हि। तकर बाद पाँच बेर अंगोछल जाइत छन्हि। तखने होइत छन्हि चुमाओन। चुमाओनक बाद वरकेँ दुर्वाक्षत मंत्र पढ़ि कम सँ कम पाँच टा ब्राह्मण दूर्वाक्षत दैत छन्हि। फेर पान मखान बांटल जाइत अछि। अगिला दिन धरि मखान गाम घर में बाँटल जाइत अछि।


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