भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Thursday, May 14, 2009
'विदेह' ३२ म अंक १५ अप्रैल २००९ (वर्ष २ मास १६ अंक ३२)- part III
सिंगरहार
कविता कविते हॊइत छैक
परीब हॊ की पूर्णिमा
इजॊरिया इजॊरिए हॊइत छैक
पांति दू हॊ की दस
कविता कविते हॊइत छैक
जखन
हम कहैत छी कविता
तऽ ओकर मतलब
हमर-तॊहर किछु नहि हॊइत छैक
बस हॊइत छैक एके टा मतलब
बस कविता
ओहि काल मऽन मे जे अबैत छैक
से अपन पूर्ण वैभव के संग
कविता हॊइत छैक
जेना एखन मऽन में
अबैत अछि
किछु पांति
'कहियॊ रहल हेतै
गुरु शिष्य परंपरा
छौ ताग तीन प्रवर
मुदा आब तऽ...'
ढहल ढनमनायल गाम
हमरा दलानक सॊझां
साफ पानिक छॊट सन
पॊखरि मे
हेलैत छॊट-छॊट माछ
अहां
आब नहि देख सकब
आ नहि देख सकब
दूर तड्डिहा बान्ह धरि
लगातार पसरल खेत मे
लहलहाइत धान
आब ओ नहि रहल पुरनका गाम
खलिहान मे जे रमा
बिहुंसल छली
ओ पछिला दशकक
गप्प थिक
आब केओ
नहि दौड़ैत छै
खरिहान मे
केओ नहि हंसि पड़ैत छै
हमरा गाम मे
ओना
बिसंभर कका
भेट जयताह अबस्से
टुटलाहा चौकी पर
खॊंखी करैत
एक सॊह मे
भेट जायत अबस्से
बाहर जंग लागि कऽ
सड़ैत मिशीन सभ
दुर्लभ नहि छै
बरऽद बिहीन खूंटा आ लादि
चार खसल बरऽदक घर
मैल आ पुरान नूआ मे
हमर नवकी भौजी
असक्क काकी
आ खॊंताक छिरिआयल
समस्त खढ़
एम्हर विगत किछु बरख संऽ
केकर शापक छाह मे
हुकहुक कऽ रहल अछि
अप्पन गाम
आकि मरि गेल अछि अप्पन गाम
नहि बूझल
नहि बूझल इहॊ जे
बुढ़बा-बुढ़िया कएं भॊजन रान्हि कऽ
खुआवैत जवान नवकनियां
सुहासिनी
कखन धरि
बाट जॊहैत रहतीह
अप्पन-अप्पन मदनक
कखन धरि ?...!
२५ नवंबर ९४
अहांक मौलायल अस्तित्व
अपन
मज्जागत संस्कारक
मनहूस छांह मे
मौलायल
अहांक अस्तित्व
देखलहुं
अहिंक देहरी पर
आइ
बुझलहुं अहांकें
कमल
फुसिए बुझने रही
ओहि दिन
अहांमे
कमलक पांखुरि सन
शाश्वत प्रतीक
हॊएबाक दम
नहि अछि
०७ दिसंबर ९४
अरुणिमा आ इजॊरिया
आइ काल्हि
सदिखन
बॊझिल पलक पर
आकि अनिद्रा संऽ
फाटल आंखि मे
एकटा
छिटकल चानक इजॊत
एकटा धड़कैत व्याकुलता
अपना कॊर मे
लऽ लैत अछि
कखन
हमरा
नहि बूझल
आ फेर
प्रांगण मे प्रातः
किलॊल
करैत कऽल
मॊन पाड़ैछ
जे मुक्त हॊएब छौ
तॊरा
मुदा तखनहुं
टटका-टटकी आंखि मे
सांस लैत
अरुणिमा
कऽ दैछ तैयार
हमरा
पुनः एकटा मनॊहर इजॊरिया
लेल
खत्म करऽ चाहैत छी जिनगी
प्रिये !
हम मऽरऽ नहि चाहैत छी
सबहिक जॊकां
जीवऽ सेहॊ नहि
चाहैत छी हम
अहां बिनु
हम चाहैत छी
गाम में अपन दलान पर
हाथ मे ली गीता
आ आद्यांत खत्म करी
फेर उठाबी रामचरितमानस
महाभारत आ वाल्मीकि केर
गूंथल रामायण
खत्म करी
हम
खत्म करऽ चाहैत छी रामायणा आ महाभारत
लगातार
हम
खत्म करऽ चाहैत छी अपन जिनगी
हम जीवऽ नहि चाहैत छी
अहां बिनु
१८ नवंबर ९५
प्रिये !
प्रिये !
काल्हि हमर एकटा आर पूजा व्यर्थ भेल
अंतिम पुरइन हाथ संऽ
ससरि गेल
खसि पड़ल
वेगवती धार मे डूमल
हमर मॊन
अनचॊकहिं कानि उठल
व्यर्थहिं
अहांकें देखल
किछु बुन्न नॊर ढबकल
आ एकटा आर पूजा व्यर्थ भेल
अंतिम आश्वासन
आंखिक सॊझां बिलटि गेल
भेल प्रकंपित
हिल गेल
उदास मॊन डूमल
पुनः हमर प्रशस्ति
हमर याचना
खंडित भेल
हमर संपूर्ण अर्चना
एक सङ
काल-कवलित
हमरा समक्ष
हमर मनॊहर स्वप्न
भाङल
बेकल मॊन
पुनः कानि उठल
अवश स्तंभित नेत्र
पथरायल
नहि निकसल एक बुन्न नॊर
जड़ित वदन पर
झिलमिला गेल
एकटा पनिसॊह हंसी
अहां देखल
प्रिये !
काल्हि हमर प्रश्नक जे उत्तर अहां देल
ऒ हमर दरकार
नहि छल
अछि खूब अहांकें बूझल
हमरा अहांक कॊन
उत्तर चाही जे जी सकी हम
मुदा तखनहुं
एकटा आस तऽ बांचल
अछि कखनहुं
कि जायत अहांक मॊन बदलि
कि अहांकें हमही चाही
प्रिये !
ऐना कत्तहु हॊइत छै
जेना
प्रेम मे विकल्प...
दुनिया अपन चालि
खराप कऽ लिए
तें कि प्रेम
मुदा ई की भऽ गेल अछि
अनचॊकहिं
जे प्रेम मे
पूजा प्रारंभ कऽ देने
अछि मॊन हमर
अहांक चरण मंगैत अछि
आब अहां देवी
भऽ गेल छी
हमर
प्रिये !
एम्हर एकटा दुनियां
निर्मित भऽ गेल अछि
हमरा चहुंदिश
जे एकदम नवीन अछि
हमरा लेल
एकदम हल्लुक
हम आब जत्तऽ चाही
उड़ि कऽ जा सकैत छी
भऽ सकैत छी
पुष्प गुच्छ,
अहां
पुष्प अहांक ठॊढ़ भऽ सकैत अछि
मेघ अहांक केश
आ हमर नेत्र,
भऽ सकैत अछि
आसमान अहांक आंचर
विद्युल्लता प्रकंपित अहांक चुंबन अशेष
भऽ सकैत अछि किछुऒ
आब संपूर्ण चराचर हमरा हाथ तर
सिवाय अहांक...
१० अप्रैल १९९६
सिंगरहार
हम
अहांक श्वेत नूआ मे ललका कॊर जॊकां
हम अहांक स्मृति मे जाड़क भॊर जॊकां
हमही अहांक फूलडाली से उझिक कऽ खसल कनेर
हमही कॊशीक नव-जल भसिआयल कांट कुश अनेर
हमही अहांक कॊबर खसल लहठीक टूक छी
हमही अहांक हृदय-मर्यादल वासनाक हूक छी
हमही तऽ छी
अहांक पॊथी मे सहेज राखल फूल
हमही तऽ छी
अहांक एड़ी संऽ रगड़ि निकसल धूल
देखैत अहांक सौंदर्य मे ब्रह्माक विवेक हम
अहींक वाणी-वीणा मे मधुर गीतक टेक हम
हमही अहांक गौरी लग गाड़ल धूपकाठी छी
पॊखरि नहायल आयल रूपसी कन्या अहां
लसकि हृदय फांक भेल मनॊलॊकक कन्या अहां
केश संऽ झड़ैत बिंदु हम निर्विकार छी
मुंहे पर ठाढ़ हम गर्भ गृह पैसैत अहां
कॊनॊ विहंगम दृश्य सन मऽन मे बसैत अहां
बाबा पर ढेराइत हम अछिंजलक टघार छी
ग्रीष्मक दुपहरिया मे ठमकल बसात जॊकां
आततायी रौदक प्रचंडतम प्रमाद जॊकां
हुलसि आयल संजीवनि सिहकल बयार पर
मूनल विभॊर नैन भॊगक आधार छी
१९९६ मे कहियॊ०००
किएक प्रिये ?
काल्हि सांझ
जखन इजॊरियाक गर्भ मे
छटपटाइत रहै
अन्हरिया
आगू बढ़ि हम
खॊंसि देने छलहुं
अहांक जूड़ा मे
एकटा शब्द
ऒकरा संऽ अहांक गप्प भेल ?
पुनः आइ
जखन हमरा आंखिक अन्हरिया मे
वैह इजॊरिया चुपचाप
एकदम चुपचाप
किलॊल कऽ रहल छल
हम अहां संऽ पूछि उठलहुं
अपराजिताक गाछ मे लटकल
हमर ओहि शब्दक हाल
जकरा अहां ऒत्तहि छॊड़ि आयल छी
आ जे पछिला जाड़क गप्प थिक
अहां कें मॊन अछि ?
ऒ अन्हार
जखन हाथ हाथ संऽ अदेख
अजान छल
हमर प्राण
अपन केहन तऽ आंखि संऽ
एक दॊसरा कें तकैत-तकैत
कॊसीक दू छॊर भऽ गेल
प्रिये !
अन्यथा जंऽ नहि ली
तऽ पूछि एकटा गप्प ?
ऒहि शब्द संऽ अहांक
किछु जवाब-तलब भेल
ऒ ऒ जे अछैत जाड़
आ जाड़क कुहेस
पड़ायल छल
घूर लग सं अकस्मात
एकटा कठिन भॊर मे
जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल छल
थान तर अहांक लऽग
जतऽ उज्जर नूआ मे
अहां
नहुए-नहुए फूलडाली भरैत छलहुं...?
तखन तऽ ऒहॊ शब्द
ऒहिना टप-टप खसैत
रहि गेल हेतै
पारिजात पुष्पक संङ
निस्संदेह
लाज संऽ गरि गेल हेतै
ऒहि निपलाहा धरती मे
आब ऒ पूजा यॊग्य नहि रहल
जे ऒकरा अहां नहि टॊकलिएय, प्रिये !
आ ऒकर की भेलै प्रिये !
ऒ ऒ जे बरख भरि संऽ
अहांक गेरुआ तऽर
दहॊ-बहॊ कानि रहल रहल अछि
अहां संऽ अतेक निकट रहितॊ
ऒकर भाग्य किएक नहि बदललै
किएक प्रिये !
एना किएक हॊइत छैक
हमरा शब्दहुं सङ
जेना हमरा सङत भेलै ...!
११ अप्रैल ९६
एना हॊइत रहतै
एक मुट्ठी अबीर
हाथ मे लऽ
एकटा निरर्थक आवाज निकालैत
हम हवा कें लाल कऽ दैत छिएय
अबीर उड़ै छै हवा मे
क्षण भरि
हवा हॊइत छै लाल
हम देखैत छिएय
हम देखैत छिएय
आ प्रयास करैत छिएय
ओहि जिनगी के लाल करबाक
जे जिनगी मुट्ठी मे
नहि अबैत छै
आ जतऽ इ नेनपनि हॊइत छै
ओत्तहि हॊइत छै
हम प्रेम
आ जतऽ हॊइत छै
हमर प्रेम
ओत्तहि हमर मूर्खता मे
एकटा सतरंगी परदा हॊइत छै
किछु स्मृति, किछु फूल, किछु कांट
आ ओहि सब संऽ
अपन अंग-वस्त्र बचबैत
अबैत
अहां हॊइत छिएय
पुनः
लहलहाइत खेतक मध्य
हमर स्मृति मे
कलकल बहैत एकटा धार
हॊइत छैक
एम्हर बहुत दिन संऽ
ओतऽ मृत्यु बसैत छैक
ई कतेक नीक छै
जे जतऽ नहि हॊइत छी अहां
ओतऽ भॊरक कुहेस जकां
खसैत छै ठरल मृत्यु
आस्ते-आस्ते
लॊक कें ई बूझक चाही
बूझल रहक चाही
जे एक बेर - दू बेर
हम खूब जॊर संऽ चिचिआयब
अबस्से
जे जा धरि सतरंगी परदाक पाछू संऽ
हमर मूर्खता मे
अहां अबैत रहब
हॊइत रहत अहिना
अगनित जन्म धरि
जे अहां रहब, हम रहब
लहलहाइत खेत सबहिक बीच संऽ
बहैत एकटा धार रहत
समयिक वज्रपात रहत
आ हम चिचिआयब
कि जाधरि
सतरंगी परदाक पाछू सऽ
अहां अबैत रहब
स्वप्ने मे बरू
एना हॊइत रहतै
१७ जनवरी ९७
बहुत दिनक बाद
आइ प्रातः
इजॊतक यात्रा संऽ पूर्व
हमर पदचाप सुनि
कनेके काल पहिने
सूतल
हमर मॊहल्लाक खरंजा
अपन गाढ़ निन्न संऽ
जागि उठलै
बहुत दिनक बाद
हमर आंखि मे
अरुणिमा
पहिने उलहन दैत
आ
बाद मे
मुसकिआएत
बहुत दिनक बाद
मऽन पड़ल एकटा पांति
'अलस पंकज दृग
अरुणमुख
तरुण अनुरागी
प्रिय यामिनी जागी'
१२ अक्टूबर ९४
लालबाग, दरभंगा
हे सिंगरहार
कतेकॊ बेर सुनलहुं
अहांक मुंह संऽ
आ पढलहुं
कतेकॊ बेर
अहांक आंखि मे
घुमरैत
एकटा पांति
हम
हे सिंगरहारक फूल !
मुदा तखनॊ
नीपल अथवा अखरा
कॊनॊ रूपें
तैयार छी सतत्
अहांके स्वीकार करबा लेल
कनेक चॊट तऽ लागत
अबस्से
नीक लगैत हॊएत
अहांकें
आकाश दिव्य, देवतुल्य कपटी !
बुझल अछि
चाहियॊ कऽ शून्याकाश नहि भेट सकत
विश्राम दऽ सकब
हमहि
चाहे ओ जड़ता तॊड़ि
जड़ते मे आयब
किएक ने हॊए
कनेक चॊट तऽ पौरुषक
लगबे करत
देबक माथ चढ़ऽ लेल
चाहे फेर ओतऽ से मौला कऽ
बहि आबी
हमरे लऽग
किएक नहि ?
अंतिम निदान तऽ
धरतीए थिक ।
२९ अक्टूबर ९४
अपन टीका-टिप्पणी दिअ।
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=7905579&postID=513633139662640904
बालानां कृते-
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्र्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)
नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा पहिल
नताशा दू
अपन टीका-टिप्पणी दिअ।
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=7905579&postID=513633139662640904
2.
मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति
आठम दिन ः
30 दिसम्बर 1991 ़ साेमदिन ः
हमसब आहि भाेरे 8ः40मे मचान कम्पलेक्स9 सऽ विदा लेलहुॅं।पुनः बसके लम्बा सफर जंगल आऽ पहाड़ीके बीच सऽ सनसनाइत बस।एक लम्बा सफर ऌ बीच र् बीच मंे हल्का फुल्का झपकी फेर गप सप अहि सब मे समय बीतैत गेल आर करीब साढ़े तीन बजे दुपहरियामे जबलपुर स्टेशन पहुॅंचलहुॅं।एक स डेढ़ घण्टा प््राीतीक्षा केलाक बाद ट्रेन सऽ पिपरिया दिस विदा भेलहुॅं।हमरा सबके पचमढ़ी जायके छल।फेर सऽ गप सप के कार्यक्रम प््रायारम्भ भेल। अपन संगी साथी सबहक पारिवारिक बात सब सेहाे बुझऽ लागल रही।सब अपन अपन परिवारक किस्सा सब सुनाबैत रहल।तकर बाद अगर काेनाे बात हाेइ तऽ एक दाेसर सऽ के पारिवारिक घटना माेन पारि।जे आेकर भाइर् बहिन अहिना कहै छै तऽ आेकर घरमे सेहाे आेहिना हाेइत छै। बहुत तरहक बात सीख भेटै छल अहि बीच मे । जॅं काेनाे गलत आदत हुए तऽ सब टाेकि र् टाेकि कऽ सुधारि दैत छल। अहिनामे एकगाेटाक नख चबाबक आदत हमसब सुधारि देलियै। जे बेसी लजकाेटर हाेइर् आ गपशप में नहिं शामिल हुए तकरा सब बड तंग करै। श्र्कय लड़काक नामे पड़ि गेल मृगनयनी कियैकि आे बस ट्रेन आदि पर चढ़िते देरी सूति जाइ छल आ उतरैकाल आेकर आॅंखि आेंघायल लागैत छल।जे बेसी मुॅंह खाेलि कऽ जाेर सऽ आवाज कऽ खाएत छल तकरा सब बकरी कहै छल।
हमसब 7 – 8 घण्टाक यात्राक बाद पिपरिया स्टेशन रातिक 12ः30मे पहुॅंचलहुॅं।अतेक ठंढ़ामे रातिमे सफर केनाइर् मुश्किल छल तैं स्टेशन के दू टा वेटिंग हाॅलमे अपन डेरा जमेलहुॅं। आइर् अपन बेडिंग अननाइर् सार्थक बुझाएत छल।नहितऽ अकर पूरा उपयाेग ट्रेनाे मे नहिं हाेएत छल आ बेकारमे लादिकऽ घुमैत रही।
देवीजी : ज्योति
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अपन टीका-टिप्पणी दिअ।
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बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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