भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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मुल्ला तकिया अकबरक समकालीन छलाह आ ओ अपन असमक भ्रमणक क्रममे मिथिला बाटे गेल छलाह। ओ मिथिलामे जे देखलन्हि–सुनलन्हि से आ अन्यान्य साधनकेँ आधार अपन एकटा ‘वयाज’ (डायरी) लिखलन्हि जे मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु सर्वथा अपेक्षित अछि। एहि वयाजपर आधारित एकटा विस्तृत निबन्ध पटनाक मासिर पत्रिकामे १९४६मे छपल छल आ दरभंगासँ प्रकाशित डॉ. लक्ष्मण झा द्वारा संपादित साप्ताहिक मैथिली “मिथिला” (२ फरवरी, ९ फरवरी आ १९ फरवरी १९५३क अंक सब)मे सेहो एकरापर आधारित किछु अंश प्रकाशित अछि। मिथिलाक इतिहासक हेतु इ एकटा अपूर्व साधन मानल जा सकइयै आ एकर उपयोग हम अपन ‘हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत’मे सेहो कैल अछि। मैथिली पाठकक हेतु हम एहिठाम मुल्ला तकियाक वयाजक सारांश उपस्थित कऽ रहल छी। मिथिलापर मुसलमानी राज्यक विस्तारक अध्ययन क्रममे सेहो एकर विवरण भेटत।
वयाजक अनुसार राजा लक्ष्मणसेनपर आक्रमणक पूर्व वख्तियार खलजी मिथिलाक किछु भागपर आक्रमण कएने छलाह। मिथिलाक राजा नरसिंह देव बंगालक राजा लक्ष्मण सेनक अधीन शासन करैत छलाह। पाछाँ ओ मुसलमान राजाक अधीनता स्वीकार केलन्हि आ तखनसँ ओ मुसलमान शासक गियासुद्दीन इवाजक समय धरि कर दैत रहलाह। १२२५मे जखन इल्तुतमिश बंगालपर आक्रमण केलन्हि तखन गियासुद्दीन इवाज हुनकासँ मेल कऽ लेलन्हि। बिहारकेँ बंगालसँ फराक कए फुटे प्रांत बना देल गेल आ मल्लिक अलाउद्दीन जानीकेँ ओहिठामक राज्यपाल नियुक्त कैल गेल। इल्तुतमिसक घुरलापर गियासुद्दीन नरसिंह देवक मदतिसँ पुनः बिहारपर आधिपत्य स्थापित कऽ लेलन्हि। बदला लेबाक विचारसँ सुल्तानक पुत्र बंगालपर आक्रमण केलन्हि आ गियासुद्दीन मारल गेला। नरसिंह देव हुनकासँ माँफी माँगिकेँ अपनाकेँ छोड़ोलन्हि आ कर देबाक वचन देलन्हि। रजिया बेगमक शासन कालमे बंगाल पुनः दिल्लीक नियंत्रणसँ मुक्त भऽ गेल। राजा नरसिंह देव सेहो विद्रोह कऽ देलन्हि। तुगलक तुगान खाँ मिथिला विद्रोहकेँ दबेबाक हेतु पठाओल गेलन्हि आ ओ ओहि राज्यपर अपन सत्ता स्थापित कए बहुत रास वस्तुजात लूटिकेँ लऽ गेलाह। मिथिलाक राजा बहुत दिन धरि नजरबन्द रहलाह। १२४४मे ओ चंगेज खाँक आक्रमणक समयमे ओ अपन बहादुरी देखौलन्हि आ तकर पुरस्कार स्वरूप हुनका सुल्तान अलाउद्दीन मसूद प्रसन्न भऽ तिरहूत राज्य घुरा देलथिन्ह आ हुनका एकटा सम्मानित राजा घोषित कए बिदा केलथिन्ह। मिथिलाकेँ सूबेदारक मातहदीसँ हटा देल गेल आ एकरा सोझे दिल्लीक अधीन कऽ लेल गेल। आब इ अपन कर दिल्लीकेँ देबए लगला। ‘तबाकते नासिरी’मे एहि आक्रमणक वर्णन अछि। विद्यापति सेहो अपन ‘पुरूष परीक्षा’मे नरसिंह देवक दिल्ली प्रवासक चर्चा कएने छथि। हिनक पुत्र रामसिंह देवक समयमे सेहो किछु संघर्ष भेल छल। हिनके समयमे दरभंगामे राम चौक नाम मोहल्लाक स्थापना भेल।
अलाउद्दीनक समयमे मिथिला पर पुनः मुसलमानी आक्रमणक चर्च भेटइत अछि। इतिहासमे एकर उल्लेख आनठाम नहि भेटइत अछि मुदा मुल्लाक वयाजमे एकर विस्तृत विवरण अछि। एहि आक्रमणक अंतर्गत मखदून ताज मोहम्मद फकीहक पुत्र शेख मुहम्मद इस्माइलक नेतृत्वमे तीन बेर युद्ध भेल छल। पहिल एवँ दोसर बेर शाही सेना पराजित भऽ गेल छलाह आ मिथिलाक जीत भेल छल। प्रथम लड़ाइक स्थान दरभंगामे अखनो “मुकबेश” नामसँ प्रसिद्ध अछि। शेख मुहमद इस्माइल जखन राजापर दोसर बेर आक्रमण करबाक विचार केलक तखन सेना पठेबाक हेतु बादशाहसँ निवेदन केलक। रजीउल मुल्क मलिक महमूदक सेनापतित्वमे शाही फौज मिथिलाक धरतीपर उतरल। अहुबेर हुनका अपने सन मुँह लऽ कए पराजित भऽ कए घुरे पड़लन्हि। इ लड़ाइ जाहि स्थानपर भेल छल ताहि स्थानपर राजा अपन राजधानी दरभंगासँ उठाकेँ लऽ गेला। शक्रसिंहक नामपर ओ स्थान सम्प्रति सकरी नामसँ विख्यात अछि। तेसर बेर पुनः युद्ध भेल जाहिमे मिथिलाक पराजय भेल आ राजा अपन मंत्री सबहिक संग पकड़ल गेला। गिरफ्त भेला उत्तर राजा क्षमा याचना केलन्हि आ आजीवन कर देबाक वचन देलन्हि। एहिशर्त्तपर अलाउद्दीन हुनका राज्य घुरा देलथिन्ह। बादमे शक्तिसिंह (शक्रसिंह) अलाउद्दीनक हिन्दू फौजक सेनापति सेहो नियुक्त भेला।
जखन अलाउद्दीनकेँ हम्मीर देवसँ युद्ध भेलन्हि तखन शक्रसिंह अलाउद्दीनक आर्थिक आ सैनिक साहायता देलन्हि। शक्रसिंह स्वयं रणक्षेत्रमे उतरलाह आ एहिसँ अलाउद्दीनकेँ बड्ड बल भेटलन्हि। शक्रसिंह एवँ प्रकारे मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह। दरभंगाक ‘सुखी दिग्घी’ अखनो शक्रसिंहक स्मारक स्वरूप अछि।
हरिसिंह देव कर्णाट वंशक अंतिम राजा छलाह आ हरिसिंहपुर सेहो अपन राजधानी बनौने छलाह। गियासुद्दीन तुगलक जखन बंगालक विद्रोहकेँ दबाकेँ घुरलाह तखन ओ तिरहूतपर ध्यान देलन्हि। तिरहूतक राज्य ओ दखल केलन्हि। कहल जाइत अछि जे तिरहूतक राजा बंगालक मदतिमे छलाह। हरिसिंह देव अपन मजबूत किला, कठिन रास्ता ओ दुरूह जंगल आदिक बलें पहिने तँ गियासुद्दीनक विरोध केलन्हि परञ्च बादमे पराजित भऽ पकड़ल गेलाह। सुल्तान हुनका पकड़िकेँ दिल्ली लऽ गेला आ मिथिलाक शासन भार अहमद खाँक हाथमे देलन्हि। गियासुद्दीनक मुहम्मद तुगलक दिल्लीक शासक भेलाह। राज्याभिषेकक अवसर ओ हरिसिंह देवकेँ मुक्त कऽ देलैन्ह। हरिसिंह देव कर देबाक बचन देलन्हि तखन हुनका राज्य घुरा देल गेलैन्ह आ ओ प्रमुख सेनापतिक पदपर सेहो नियुक्त भेलाह। इ सब भेलाक बाद सुल्तानकेँ बुझबामे एलन्हि जे राजाक मंत्री वीरेश्वर ठाकुरक संग एक विचित्र पाथर छन्हि जकर संसर्गसँ सब प्रकारक धातु सोना भऽ जाइत अछि। इ पाथर अलाउद्दीन खलजीकेँ नहि देल गेल छल। सुल्तान आदेश बहार केलन्हि वाजाप्ता एक फरमान द्वारा जो ओहि पाथरकेँ शाही खजानामे जमा कऽ देल जाइक। वीरेश्वर जखन पाथरक बदलामे हीरा उपस्थित केलन्हि तखन सुल्तान ओकरा लेबासँ अस्वीकार केलन्हि। तकर बाद वीरेश्वर बजलाह जे काशीमे गंगा स्नान केलाक उत्तर ओ ओहि पाथरकेँ शाही खजानामे जमा करताह। शाही सरंक्षणमे वीरेश्वरकेँ काशी आनल गेल। काशी एबाक पूर्व ओ राजा हरिसिंह देवसँ सेहो भेंट केलन्हि आ काशीमे स्नान करबाक क्रममे ओ पाथरकेँ गंगेमे राखि देलन्हि। शाही संरक्षक एहि प्रसंगकेँ लऽ कए हरिसिंह देवक शिकायत सुल्तान लग कऽ देलक। एहिपर मिथिला राज्य जप्त भेल आ हरिसिंह देवकेँ आजीवन कारावासक आदेश भेटल। एहिबातक सूचना राजाकेँ पहनहि भेट गेलन्हि आ ओ तुरंत पड़ाएकेँ नेपाल चल गेला। बादमे हुनक पता नहि लागल। मिथिलाकेँ तुगलक साम्राज्यमे मिला लेल गेल। सुल्तान तिरहूतकेँ एक अलग प्रांत बना देलैन्ह आ तिरहूतक महत्व बढ़ल आ दरभंगा ओकर राजधानी बनल। तिरहूतकेँ तुगलकपुर सेहो कहल गेल। ओतए एकटा किला आ जामा मस्जिदक स्थापना भेल।
१३४०मे मुहम्मद तुगलक मिथिलाक शासन भार कामेश्वर ठाकुरकेँ देलन्हि। बंगालक शासनक भार सुल्तान शमसुद्दीन हाजी इलियासकेँ देलन्हि। मिथिलासँ कर वसूली करब आ राजापर निगरानी रखबाक भार सेहो हिनकेपर देल गेलैन्ह। कामेश्वर ठाकुर ओइनी गामक रहए वाला छलाह आ इ गाम हुनका पूर्वजकेँ कर्णाट शासकसँ जागीरक रूपमे भेटल छलन्हि। कामेश्वर ठाकुर राज्य प्राप्त केला उत्तर अपनहि गामकेँ राजधानी बनौलन्हि। मुहम्मद तुगलकक जीवैत हाजी इलियास अपन निवास दरभंगामे रखलक परञ्च मुहम्मद तुगलकक मुइलाक बाद ओ अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कए देलक आ कर देव सेहो बंद कऽ देलक। अपन साम्राज्य क्षेत्र विस्तारक योजनाक क्रममे ओ अपन आसपासक इलाकापर अपन अधिकार बढ़ौलक आ कोशी धरिक क्षेत्रपर अपन आधिपत्य स्थापित कऽ देलक। ओ मिथिलाक राजाक संग युद्ध कए मिथिला राज्यकेँ दू भागमे विभक्त कऽ देलक। बूढ़ी गंडकक उत्तरी भागमे मिथिलाक राज्य रहल आ ओकर दक्षिणमे इलियासक राज्य भेल। एवँ प्रकारे नेपाल तराइसँ बेगूसराय धरि ओ अधिकारक स्थापना केलक आ कामेश्वर वंशकेँ ओइनीसँ हँटौलक। मिथिलाक एहि अप्राकृतिक बटवाराक विरोधमे कामेश्वर ठाकुर विद्रोह कऽ देलन्हि मुदा ओहि विद्रोहकेँ शख्तीसँ दबाओल गेल। एहि शख्तीसँ विद्रोह दबेबाक क्रममे बहुतो गाम नष्ट–भ्रष्ट भऽ गेल। विद्रोह दबौलाक पश्चात ओ बूढी गण्डकक तटपर अपन राज्यक सुरक्षार्थ एकटा प्रशासनिक केन्द्र बनौलक जे शमसुद्दीनपुर (समस्तीपुर)क नामे ताहि दिनमे प्रसिद्ध छल। गंगाक तटपर ओ हाजीपुर बसौलक आ ओतए एकटा किलाक निर्माण सेहो केलक।
फिरोज तुगलककेँ जखन इ सूचना भेटलैक तँ ओ आगि वबुला भऽ गेल आ समाचार सुनतहि ओ दिल्लीसँ मिथिलाक हेतु विदा भऽ गेल। आवत फिरोज गोरखपुर पहुँचल तावत हाजी इलियास अपन बोरिया–विस्तर बान्हिकेँ पण्डुआ दिसि विदा भऽ गेल। ओतहु अपनाकेँ सुरक्षित नहि देखि ओ ओतएसँ एकदला दिसि चलगेल। जखन फिरोज मिथिला पहुँचल तखन कामेश्वर ठाकुर तथा छोट–मोट जमीन्दार लोकनि उपहार लऽ कए सुल्तानक समक्ष उपस्थित भेलाह आ हाजी इलियासक लूट–पाटक शिकायत केलन्हि। सुल्तान कामेश्वर ठाकुरकेँ पुरस्कृत केलथिन्ह। कामेश्वर ठाकुर हुनक अधीनता स्वीकार केलन्हि आ कर देबाक प्रतिज्ञा केलन्हि। फिरोज मिथिलाक दुनू भागकेँ मिलाकेँ फेर एक कऽ देलैन्ह आ ओहिठाम अपन काजी नियुक्त केलन्हि। सुल्तान ओहिठामसँ एकदला दिसि विदा भेला। १३५३ फिरोज तुगलक कामेश्वर ठाकुरकेँ छोट बालक भोगीश्वरकेँ राजा बनौलन्हि मुदा मुल्ला तकिया एहि प्रसंगमे चुप्प छथि। बरनी सेहो एहि विषयमे किछु नहि कहैत छथि। फिरोज विद्रोही इलियासकेँ दबाकेँ जखन घुरला तखन ओ मिथिलामे अपन हाकिम बहाल केलन्हि। मुल्ला तकिया कोनो स्पष्ट संकेत एहि सम्बन्धमे नहि दैत छथि। मिथिलामे मुसलमानी शासनक प्रसारक सम्बन्धमे जखन विवरण प्रस्तुत करब तखन सब बातक समीचीन व्याख्या करब। एहिठाम तँ मात्र मुल्ला तकियाक वयाजक आधारपर वस्तुस्थितिकेँ उपस्थिति कैल गेल अछि। फिरोज तुगलक पुनः मिथिलाकेँ दिल्लीक एकटा प्रांत बना लेलन्हि आ एहिठामक राजा पुनः दिल्लीक अधीन भऽ गेलाह भने हुनका स्वायत्ता प्राप्त रहल होन्हि से दोसर गप्प। कर वसूल करबाक हेतु फिरोज तुगलक एतए अपन आदमीकेँ नियुक्त केलन्हि। भोगीश्वर फिरोजक मित्र छलाह।
दरभंगाक उत्पत्तिः- एहि प्रसंगमे दरभंगाक उत्पत्तिक सम्बन्धमे दूएक बात कहि देव आवश्यक बुझना जाइत अछि। दरभंगा शब्दक उत्पत्ति कहिया आ कोना भेल एहि प्रश्नपर अखनो धरि मत विभिन्नता अछिए। तवारिखुल फितरत (फितरतक इतिहास)क अनुसार दरभंगाकेँ बसायवला गियासुद्दीन तुगलक छलाह। हरिसिंह देवकेँ पराजित कए ओ एहि नगरकेँ बसौलन्हि एहेन बुझल जाइत अछि। हरिसिंह देव पड़ाएकेँ जंगल–पहाड़ दिसि चल गेल छलाह। सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक अपन आक्रमणक क्रममे हुनकापर कब्जा करबा लेल जंगल कटबा देलन्हि। एहि साफ कैल जंगलक नाम “दारू भंग” राखल गेल। संस्कृतमे “दारू”क अर्थ होइछ लकड़ी आ ‘भंग’क अर्थ भेल काटब, छाटब आ नष्ट करब। चूंकि स्वयं सुल्तान अपना हाथे तरूआरिसँ जंगलकेँ काटिकेँ नष्ट केने छलाह आ ओहिठाम अपन आधिपत्य स्थापित कएने छलाह तैं ओहि स्थानकेँ “दारूभंग” कहल गेल जे क्रमेण दरभंगाक नामे प्रसिद्ध भेल। अखन धरि इ मत सर्वमान्य नहि भेल अछि।
विलियम हण्टर दरभंगी खाँ सँ दरभंगाक उत्पत्ति बतबैत छथि। दरभंगी खाँ आइसँ करीब १२५ वर्ष पहिने भेल छलाह आ ओ मुहम्मद रहीम रूहेलाक पौत्र छलाह। हिनक वंशज अखनो दरभंगामे छथिन्ह। दरभंगी खाँक बसाओल दरभंगा बाला सिद्धांत कोनो तरहे मान्य नहि बुझि पड़इयै परञ्च तइयो हम देखइत जे ओमैली सेहो हण्टरेक मतकेँ मानने छथि। दरभंगा ओहिसँ पुरान नगर अछि तैं हण्टर आ ओमैलीक मत अमान्य अछि। इहो सिद्धांत प्रतिपादित कैल गेल अछि जे ‘द्वार–वंग’ अथवा दूर–वंग या दार–इ–वंगलसँ दरभंगा शब्दक निर्माण भेल अछि। दरभंगाकेँ ‘द्वार वंग’क संज्ञा देव उपयुक्त नहि बुझि पड़इयै कारण कोन रूपे एकरा बंगालक द्वार कहल जेतैक? इ बात ठीक जे मध्य युगमे दिल्लीक सेना एहि बाटे बंगाल जाइत छल।
मिथिलाक संस्कृत लेखक पण्डित गंगादत्त झा(१६१५–१६८४)अपन अपन भृंगदूतमे दरभंगा शब्दक उल्लेख कएने छथि–
“तस्याः पाथः परम विमलं सन्निपियाभिरामा–
गारां कामायुध दरभंगा राजधानी मुपेयाः”।
अहुँसँ इ सिद्ध होइछ जे दरभंगीक पूर्वहिसँ दरभंगा नाम प्रचलित अछि। १७७८मे प्रतापसिंह सेहो दरभंगामे अपन राजधानी बनौने छलाह मुदा हुनकासँ १०० वर्ष पूर्वसँ ‘दरभंगा’ राजधानीक रूपमे प्रख्यात छल जकर प्रमाण हमरा ‘भृंगदूत’क कविसँ भेटइत अछि। ओहि कविक विवरणसँ इहो ज्ञात होइछ जे दरभंगा (राजधानी) वाग्मती नदीक तटपर स्थापित छल आ ओतए एहेन एहेन सुन्दर भवन सब छल जे देखबामे कामदेवक तरूआरि सन लगैत छल। भृंगदूतक आधार इ कहल जा सकइयै जे ‘दरभंगा’ १७म शताब्दीमे एकटा प्रसिद्ध दर्शनीय नगर छल। दरभंगामे ताहिदिनमे मुगल बादशाहक प्रतिनिधि रहैत छलाह आ खण्डवला कुलक राजधानी “भौर”मे छल आ भौर आ दरभंगाक मध्य मधुर सम्बन्ध छल। महाराज माधव सिंहक समयसँ खण्डवला कुलक महाराज लोकनि स्थायी रूपेँ दरभंगामे रहए लगलाह। एक इहो सिद्धांत प्रतिपादित कैल गेल अछि जे ‘दलभंग’सँ दरभंगाक उत्पत्ति भेल अछि–गजरथपुरमे शिवसिंहक पराजय भेलापर ओहि स्थानक नाम ‘दलभंग’ राखल गेलैक किएक तँ ओहिठाम शिवसिंहक ‘दल’केँ ‘भंग’ कैल गेल छलन्हि। परञ्च अहुमे विशेष तथ्य नहि बुझा पड़इत अछि।
ओना तँ सब गोटए अपन–अपन तर्क उपस्थित कएने छथि मुदा कोनो तर्क ने अखन धरि मान्य भेल अछि आ ने ओकरा हेतु कोनो प्रामाणिक साधने उपलब्ध अछि। १७म शताब्दीमे ‘दरभंगा’ नामक प्रचलन इ सिद्ध करैत अछि जे इ नाम बहुत पूर्वहिसँ प्रख्यात रहल होएत। तैं हमर अपन विचार इ अछि जे एहि शब्दक उत्पत्ति गियासुद्दीन तुगलकक समयमे भेल जे ‘दारू’–‘भंग’ केलैन्ह आ ओहि दारूभंगसँ दरभंगा शब्दक विन्यास भेल। इ जखन तुगलक साम्राज्यक एकटा अंग बनल तखन मिथिला तुगलकपुरक नामे प्रसिद्ध भेल आ ओकरे राजधानी भेल ‘दरभंगा’। दरभंगा ताहि दिनमे जंग़ल छल आ तकरा कटबामे सबकेँ डर होइत छलैक तैं गियासुद्दीन अपनहि जखन जंगल काटब शुरू केलन्हि तखन आ सब केओ मिलिकेँ एहिमे योगदान देलथिन्ह आ जंगल साफ भेलैक आ ओहिठाम तुगलक साम्राज्यक प्रधान कार्यालय बनल। तिरहूतक तुगलक कालीन सिक्का सेहो भेटल अछि।
अध्याय–१२
मिथिलाक इतिहासमे मुसलमानी अमल
कर्णाट वंशक समयसँ मिथिलामे मुसलमान लोकनि हुलकी–बुलकी देव शुरू कऽ देने छल।
७११ई. जखन सिन्धपर अरब लोकनिक आक्रमण भेलैक ताहिसँ पूर्वहुसँ अरब लोकनिक सम्पर्क
पश्चिमी आ दक्षिणी भारतसँ छलैक आ ओ लोकनि ओहि क्षेत्रमे व्यापार करबाक हेतु अवैत
छलाह। जखन अरब लोकनि सिन्धपर आक्रमण केलन्हि तकर बादहिसँ भारतक संग राजनैतिक
सम्बन्धक शुरूआत मानल जाइत अछि। ७११ सँ १२०० ई.क बीच बहुत रास मुसलमान चिंतक
आ संत उत्तर भारतक विभिन्न क्षेत्रमे पसरि गेलाह आ मिथिला क्षेत्र सेहो सूफी लोकनिक एकटा
प्रधान केन्द्र छल। ओम्हर पूबमे बंगाल धरि बख्तियार खलजीक समय धरि मुसलमानी प्रकोप
बढ़ि चुकल छल आ बिहारोमे गंगा दक्षिण भागमे मगधपर मुसलमान लोकनि अपन आधिपत्य
जमा चुकल छलाह। मिथिलेटा एकटा भाग बचल छल जाहिपर हिनका लोकनिक नियंत्रण अखन
धरि नहि भेल छलन्हि यद्यपि इ लोकनि एहि बातक हेतु सतत प्रयत्नशील रहैत छलाह।
मुल्ला तकियाक वयाजक अनुसार तँ मुसलमान लोकनि बख्तियार खलजीक समयमे मिथिलोपर आक्रमण कएने छलाह यद्यपि एकर कोनो आन प्रमाण ओना नहि भेटइत अछि। गंगाक मार्गसँ जेवा काल किवाँ गंगा कोशीक संगम दिसिसँ भने इ लोकनि लूट–पाट करैत होथि से दोसर कथा मुदा हिनका लोकनिक आधिपत्य तिरहूतपर भेल नहि छलन्हि। पूबमे मिथिलाकेँ मुसलमानी प्रगतिक पथमे बाधक बुझल जाइत छलैक कारण ताहि दिनमे अहिठाम सशक्त कर्णाट लोकनिक शासन छल आ तैं सब ठामसँ विद्वान लोकनि पड़ायकेँ एतए अबैत छलाह। पश्चिमक मुसलमान लोकनि तँ तत्काल मिथिलाकेँ अपना नियंत्रणमे नहि आनि सकलाह परञ्च बंगालक मुसलमान शासकक गिद्ध दृष्टि सेहो मिथिलाक स्वतंत्र कर्णाट राज्यपर लगले रहैत छलैक आ तैं जखन कोनो मौका भेटैक तखने वो लोकनि मिथिला दिसि बढ़ि जाइत छलाह। गंगदेवक कर्णाट शासक लोकनिमे ओ शक्ति नहि रहि गेल छलन्हि जाहिसँ ओ लोकनि शक्तिशाली आक्रमणक विरोध करितैथ। १२११ आ १२२९क बीचमे बंगालक विजेता गियासुद्दीन इवाज मिथिलाक राजाक क्षेत्र अपन नाक घुसौलन्हि आ हुनकासँ कर वसूल केनाई प्रारंभ केलन्हि। अहिसँ पूर्व मिथिलाक राजा ककरो सामने ने तँ झुकल छलाह आ ने कर देने छलाह। बंगाल पड़ोसिया होइतहुँ मिथिलापर मुसलमानी आक्रमणक श्रीगणेश केलक।
बंगालसँ तिरहूतमे एबाक हेतु रस्तो सुगम छलैक। कोशी, गण्डक आ गंगाक काते कात तिरहूत होइत बंगाल जाएव–आएव सुगम छल आ तैं ताहि दिन पश्चिम आ पूबक आक्रमणकारी लोकनि अहि मार्गक प्रश्रय लेने छलाह। बीचमे पड़ैत छल तिरहूतक राज्य जे समयानुसार ‘वेत्तसिवृत्ति’क पालन करैत अपन स्वतंत्रताक सुरक्षाक हेतु यथासाध्य परिश्रम करैत छल। कानूनगोय महोदयकेँ इ बात बुझबामे नहि अवैत छन्हि जे जखन मिथिला आ कामरूपक स्वतंत्र राज्यकेँ बख्तियार नहि जीत सकल तखन ओ तिब्बत दिसि बढ़बाक प्रयास कियैक केलक? बख्तियार खलजीक मूल उद्धेश्य छल प्रांत सबकेँ लूटब आ धन जमा करब तैं कोन प्रांत स्वतंत्र रहल अथवा गुलाम भेल तकर चिंता हुनका नहि छलन्हि। आ वो मात्र अपन स्वार्थ आ महत्वाकाँक्षाक पूर्त्तिक हेतु सब काज करैत छ्लाह। पश्चिमसँ एक्के वेर बंगाल धरि मुसलमानी राज्यक प्रसार कऽ देव ताहि दिनमे कि कोनो कम उपलब्धिक बात भेलैक? बंगाल विजयक क्रममे नदीक मार्गक अवलंबनमे मिथिला दक्षिण पूर्वी सीमा देने जँ ओ गुजरल होथि तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। सेनवंशक संग बरोबरि खटपल रहलसँ मिथिलाक इ अंश विशेष काल आरक्षित रहैत छल आ तैं यदि अहि बाटे बंगाल जेबाक क्रममे मुसलमान लोकनि अपन प्रभाव क्षेत्र एकरा बना लेने होथि तँ से संभव। परञ्च एतए स्मरण रखबाक अछि जे गियासुद्दीन इवाजक पूर्व धरि कोनो मुसलमान शासक मिथिलाक राजासँ कर नहि वसूल केने छलाह। तैं बख्तियारक प्रभावक गप्पक प्रसंग मिथिलापर व्यर्थ बुझना जाइछ। बख्तियारक पुत्र इख्तियारोक तिरहूतपर आक्रमण करबाक संकैत भेटइत अछि परंञ्च उहो आक्रमण लूट–पाटे जकाँ छल कारण ओहिसँ तिरहूत राज्यक अक्षुण्णता एवं अखण्डतापर कोनो आँच नहि आएल। दक्षिण बिहारपर ओकर आक्रमणक स्थायी प्रभाव पड़लैक कारण उदंतपुर विश्वविद्यालयकेँ उहै नष्ट केलक आ अपन बहादुरीक प्रदर्शन कुतुबुद्दीन ऐबकक दरबारमे दिल्लीमे जाके केलक।
बंग, कामरूप आ तिरहूतक शासकसँ ऐतिहासिक तौरपर कर वसूल केनिहार व्यक्ति छलाह गियासुद्दीन इवाज। कानूनगोएक मत जे तिरहूतक सम्बन्धमे छन्हि से पूर्णतया भ्रामक मानल जाइत अछि आ ओकर कोनो ऐतिहासिक प्रमाण नहि भेटइयै। अरिमल्लदेव नामक कोनो राजा मिथिलामे नहि भेल अछि आ ओहिकालमे नरसिंह देव अहिठामक शासक छलाह। अहि शंकाक समाधानक हेतु हम प्रोफेसर कानूनगोएकेँ लिखने छलियन्हि आ हुनके आदेशानुसार डॉ. रमेश मजुमदारकेँ सेहो। श्री मजुमदार महोदय इ लिखलन्हि जे कर्णाटवंशमे अरिमल्लदेवक नामक कोनो शासक नहि भेल छथि जकर राज्य मिथिलामे हो। कानूनगोए महोदयक अनुसार मिथिलाक पूर्वी भाग ताहि दिनमे लखनावतीक अधिकार भऽ गेल छलैक। कोन आधारपर कानूनगोए महोदय अहि निर्णयपर पहुँचल छथि तकर प्रमाण ओ नहि देने छथि आ अहिकालमे मिथिलाक राज्य टुकड़ा–टुकड़ामे बटबाक प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नहि भेटल अछि। यदि ओ सिलवाँ लेवीसँ प्रेरित भए अपन निर्णय बनौने छथि तखन आव एतवे कहि देव उचित जे आधुनिक शोधक आधार लेवी महोदयक मत मान्य नहि अछि।
नरसिंह देवक शासन कालसँ मुसलमानी प्रकोप मिथिलामे बढ़ल सेटा मान्य अछि आ मैथिल परम्परामे सेहो अहिबातकेँ स्वीकार कैल गेल अछि आ विद्यापतिक पुरूष परीक्षा एकर साक्षी अछि। नरसिंह देव पहिल व्यक्ति छलाह जे कर देलन्हि आ दिल्ली आ बंगाल दुनु ठामसँ सम्बन्ध बनौलन्हि। इ सब होइतहुँ ओ अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे सफल भेला। बछवाड़ाक समीप ब्रह्मपुरा गाममे एकटा मस्जिद अखनहु वर्त्तमान अछि जकरा इल्तुतमिश प्रचुर मात्रामे दान देने छलैक। एहिसँ बुझि पड़इयै जे मिथिलाक एहि क्षेत्रपर इल्तुतमिशक प्रभाव रहल हेतैक आ तखने ओ दान देने हेतैक। इल्तुतमिशक समयमे तुगान खाँ बिहारक राज्यपाल छलाह मुदा ताहि दिनक बिहारमे मिथिला सम्मिलित नहि छल। मिथिला बिहारसँ फुटे एक स्वतंत्र राज्य छल जकरा जीतबाक लेल बंगाल आ दिल्ली दुनु समान रूपसँ प्रयत्नशील छलाह। तुगान खाँ अपनाके बंगाल आ बिहारक शासक बना लेलक आ रजिया बेगमसँ ओकर मंजूरी लऽ लेलक। अहि स्थितिकेँ देखि नरसिंह देव पुनः अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कलेलन्हि आ कर देव बन्द कऽ देलन्हि। मुदा थोड़बे दिनक बाद ओ गिरफ्त भऽ गेला आ दिल्ली लऽ जाएल गेलाह। चंगेज खाँक विरूद्ध अपन बहादुरी देखा ओ पुनः मिथिलाक स्वतंत्रता प्राप्त केलन्हि आ एहि आदेशसँ घुरला जे ओ सोझे दिल्लीकेँ कर देल करौथ।
रामसिंह देवक समयमे मुसलमानी आक्रमणक प्रकोप बढ़ि गेल छल। तुगान खाँक तिरहूत आक्रमणक उल्लेख मुसलमानी श्रोतमे भेटइत अछि परञ्च ओहिमे राजाक नाम नहि अछि। कालक हिसाबे तखन रामसिंह देव मिथिलापर शासन करैत छलाह। तुगानक आक्रमणसँ मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ धक्का अवश्य पहुँचले परञ्च स्वतंत्रता सुरक्षित रहलै। तुगान प्रचुर मात्रा धन–वित्त प्राप्त केलक। तिब्बती यात्री धर्मस्वामी जे रामसिंहक शासनकालमे एतए आएल छलाह से अपना आँखि सब किछु देखलन्हि आ लिखैत छथि जे मुसलमानी प्रकोपसँ वैशालीक निवासी हड़कम्पित छलाह आ मुसलमानी सेनाक आवागमनसँ जे धुरा उड़ैत छल ताहिसँ सौसे मेघ अन्हार भऽ जाइत छल। तुरूक आक्रमणक संख्या दिन प्रतिदिन बढ़िते जाइत छलैक आ तिरहूतक राजा रामसिंह देव मुसलमानी प्रकोपसँ बचबाक हेतु अपन राजधानीक चारूकात बढ़िया किलाबंदी करौने छलाह। किछु संस्कृतक पाण्डुलिपिक पुष्पिकासँ सेहो इ ज्ञात होइछ जे रामसिंहकेँ मुसलमान सबसँ संघर्ष करए पड़ल छलन्हि आ ओहिमे हुनका अभूतपूर्व सफलता सेहो भेटल छलन्हि। चारूकातसँ मुसलमानक प्रकोप रहितहुँ रामसिंह अपन पूर्वजक जकाँ मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह आ एहि हेतु हिनक शासन काल मानल गेल अछि।
शक्तिसिंहक समयमे मिथिलापर अलाउद्दीनक आक्रमणक विवरण मुल्ला तकियाक वयाजमे भेटइत अछि परञ्च कोनो आन साधनसँ एकर संपुष्टि नहि होइत छैक। अलाउद्दीनकेँ हम्मीरक विरूद्ध इ सहायता देने छलथिन्ह आ हिनका हम्बीरध्वांत भानुः कहल गेल छन्हि। हिनका संग देवादित्य ठाकुर आ देवादित्यक पुत्र वीरेश्वर सेहो गेल छलथिन्ह। चण्डेश्वरक कृत्यचिंतामणिमे एकर उल्लेख अछि। फरिश्ताक विवरणमे अछि जे अलाउद्दीन समस्त बिहारकेँ जीत लेने छलाह मुदा तहिया मिथिला बिहारसँ भिन्न छल आ बिहार कहलासँ मिथिलाक बोध नहि होइत छल। अलाउद्दीन मिथिलाक व्यक्तित्व आ वैभवकेँ देखि ओकरा मित्र बनौने होथि से संभव कारण ओहि मित्रतासँ हुनका कैकटा लाभ छलन्हि। सर्वप्रथम लाभ तँ इ भेलैन्ह जे ओ मैथिल शासककेँ अपना पक्षमे कए हम्वीरक विरोधमे ठाढ़ केलन्हि आ देवादित्यकेँ ‘मंत्री रत्नाकर’ पदवीसँ विभूषित केलन्हि। अहि सबसँ बुझि पड़इयै जे ओ बिना युद्ध केनहि मिथिलाकेँ अपना मैत्री भावसँ मिला लेने होएताह आ ओहिठाम अपन प्रभाव क्षेत्र बढ़ौने होएताह। मिथिलामे प्रभाव क्षेत्र बढ़ाएब आवश्यक छल किएक तँ ओम्हर बंगाल दिसि मुसलमान लोकनि मिथिलाक पूर्वी दक्षिणी क्षेत्रमे घुसि रहल छलाह।
अहि प्रसंगक विवरणक पूर्व बलबनक संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक अछि। कहल जाइत अछि जे अपन बंगाल अभियानक क्रममे बलबन इकलिम–इ–लखनौती तथा अरशाह–इ–बंगालकेँ दबाकेँ अपना अधीनमे केने छलाह आ मुसलमानी बंगालक राज्यपालक रूपमे ओ अपन पुत्र बुगरा खाँकेँ ओतए नियुक्त केलन्हि। बुगरा खाँकेँ ओ कहलन्हि जे अहाँ “दिआर–इ–बंगाल”केँजीतबाक प्रयास करू। किछु गोटएक मत छन्हि जे सोनार गाँवक दशरथ दनुजराय (वंग)क राज्य ‘दिआर–इ–बंगाल’मे छलन्हि। एहि दिआर–इ–बंगालकेँ किछु तिरहूत जिलाक दरभंगा बुझैत छथि जे हमरा बुझबे अप्राँसगिक बुझि पड़इयै कारण अहिठाम दशरथ–दनुजरायक राज्य छल ने कि कर्णाट वंशक। बंगालक द्वार जँ एकरा बुझल जाइक तँ इ क्षेत्र कतहु बंगालक समीप रहल होइत कारण बलबनक समयमे मिथिलामे कर्णाट वंशक राज्य छल आ ओ तीरभुक्तिक नामे प्रसिद्ध छल आ ‘दिआर–इ–बंगाल’क नाम ताधरि प्रचलित नहि भेल छलैक। बलबनक समयमे बिहारकेँ बंगालसँ अलग कैल गेल छलैक से बात ठीक मुदा तखन मिथिला बिहारसँ फराके एकटा स्वतंत्र राज्य छल।
१९५५मे महेशवारा (बेगूसराय)सँ फिरूजएतिगिन (१२९०–९२)क एकटा सुप्रसिद्ध एवं अद्वितीय शिलालेख उपलब्ध भेल अछि जकरा हम पूनासँ प्रकाशित करौने छी। फिरोज एतिगीन बंगालक रूकनुद्दीन कैकश द्वारा नियुक्त एक प्रशासक छलाह जे अपनाकेँ ओहि अभिलेख द्वितीय सिकन्दर आ खानक खान कहने छथि। एहि प्रशासकक नामक एक गोट आर अभिलेख लक्खीसराय (मूंगेर)सँ सेहो प्राप्त भेल अछि। रूकनुद्दीन कैकस बलबनक वंशक छल आ मिथिला क्षेत्रमे ओकर अधिकारक प्रसार अहिबातक संकेत दैत अछि जे शक्तिसिंह आ हरिसिंह देवक समय बंगालक शासक दक्षिणसँ गंगा पार कए गण्डक धरि बढ़ि चुकल छलाह आ कर्णाट शासककेँ ओहि क्षेत्रसँ धकिया चुकल छलाह। कर्णाट शासक लोकनि बंगालक दबाबसँ तबाह भऽ रहल छलाह। मुल्ला तकिआ एहिबातक उल्लेख नहि कएने छथि मुदा अभिलेख जखन साक्षाते मौजूद अछि तखन दोसर साधनक अपेक्षे कोन? गण्डक क्षेत्रसँ अहि शिलालेखक प्राप्ति अहि बातकेँ स्पष्ट कऽ दैत अछि जे ओहिकाल धरि अवैत–अवैत कर्णाट लोकनिक शक्ति दक्षिणमे क्षीण भऽ चुकल छलन्हि। अहि क्षेत्रमे गंगाक दुनु कात बंगालक सीमा धरि दियारा सब अछि–अहि दियारा सबकेँ संकेत “दिआर–इ–बंगाल”सँ होइत हो से संभव कारण गंगाक दुनु काते बंगाल जेबा–एबाक रास्ता छल। अहि अभिलेखसँ कर्णाट राज्यक वास्तविक विस्तारक सम्बन्धमे प्रश्न उठब स्वाभाविक बुझि पड़इत अछि। बलबनक बाद बलबनी शाखा बंगालमे स्वतंत्र शासन करए लागल छल आ एतए धरि अपन राज्यक सीमा बढ़ा लेने छल।
एकर बाद छिट–पुट ढ़ंगसँ मुसलमान लोकनि एम्हर–ओम्हरसँ हुलकी–बुलकी दैत रहलाह आ लूट–पाट करैत रहलाह। चारूकात मुसलमानी प्रभावक वावजूदो जे मिथिलाक कर्णाट लोकनि अखन धरि अपन स्वतंत्रता सुरक्षित रखने छलाह, इ कोनो कम गौरवक विषय नहि। लखनौती जेबाक बाटमे मिथिला पड़ैत छल आ तैं एहिपर एबा–जेबा कालमे सब केओ अपन किछु ने किछु बना लैत छलाह। संगठित रूपेँ मिथिलापर सुनियोजित आक्रमण केनिहार व्यक्ति छलाह गियासुद्दीन खलजी। सुगति सोपानसँ ज्ञात होइछ मिथिलाक राजनैतिक स्थिति दयनीय भऽ गेल छल। दान रत्नाकरक एक श्लोकमे कहल गेल अछि जे मिथिला म्लेच्छ रूपी समुद्रमे डुबि गेल छल (मग्नाम्लेच्छमहार्णवे.....)। कहबाक तात्पर्य इ भेल जे हरिसिंह देवक समय तक अवैत मुसलमानी आक्रमणक प्रकोप मिथिलापर बढ़ि गेल छल आ हरिसिंह देव अखन धरि ककरो समक्ष झुकल नहि छलाह जेना ज्योतिरीश्वरक विवरण सँ स्पष्ट होइछ। अपितु हमरा बुझना जाइत अछि जे वो कोनो सुलतानकेँ पराजित सेहो केने छलाह– आव इ सुलतानकेँ छलाह से कहब कठिन? नामक अभाव किछु निश्चित नहि कहल जा सकइयै। नाबालिक होएबाक कारणे हरिसिंह देवकेँ बहुत दिन धरि अपना मंत्री सबक अधीनमे रहए पड़ल छलन्हि।
१३२३–२४मे मिथिलापर गियासुद्दीन तुगलकक आक्रमण भेल। मिथिलापर आक्रमणक पूर्व ओ बंगालपर आक्रमण कएने छलाह मुदा कानूनगोए महोदय कहैत छथि जे ओ पहिने तिरहूत आ तब बंगालपर आक्रमण केलन्हि। मुदा से मत मान्य नहि अछि। गियासुद्दीनक आक्रमणक विवरण सब मुसलमानी श्रोतमे भेटइत अछि, मुल्ला तकिआमे सेहो आ एहि घटनाक एकटा चश्मदीद गवाह सेहो छथि जनिक पोथी वशातिनुलउन्स अखनो उपलब्ध अछि आ जकर फोटो कॉपी पटनाक काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थानमे अखनो राखल अछि। ओहि पाण्डुलिपिक बारहम पातपर मिथिलाक राजाक सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे ककरो कोनो बात नहि सुनलन्हि, तर्क आ बुद्धिसँ काज नहि लेलन्हि आ अनेरो पहाड़ दिसि पड़ा गेलाह–आगि जकाँ पाथरक पाछु नुका गेला मुदा तइयो चकमक करिते रहलाह। इशामीक अनुसार गियासुद्दीन तिरहूतपर आक्रमण केलन्हि आ ओहिठामक राजा एत्तेक भयभीत भऽ गेला जे बिना कोनो प्रकारक विरोध केने भागि गेला। हिन्दू लोकनि सेहो जंगलमे नुका रहलाह। सुल्तान जखन अपनहि हाथसँ जंगल काटब शुरू केलन्हि तखन सैनिक सेहो ओहिमे जुटि गेला आ तीन दिनमे सम्पूर्ण जंगल साफ भऽ गेल। तकर बाद राजाक किलापर चढ़ाई भेल जे सातटा पैघ–पैघ पानि भरल खाधिसँ घेरल छल। किलापर विजय प्राप्त कए राजाक धन सम्पत्ति सबटा लूटलन्हि आ विरोधीक हत्या केलन्हि। अहमदकेँ अहिठामक शासक नियुक्त कए ओ ओतएसँ वापस गेलाह। फरिश्ता आ मुल्ला तकिआमे हरिसिंह देवक गिरफ्तारक गप्प झूठ अछि कारण वशातिनुल–उंसक विवरणसँ इ बात कटि जाइत अछि। वशातिनुलउंस (लेखक–इखतिस्सान)क अनुसार–तिरहूतक राजाकेँ प्रचुर सामग्री उपलब्ध छलन्हि, जन–धनक कोनो अभाव नहि छलन्हि, मजबूत किला छलन्हि, नीक व्यक्तित्व छलन्हि मुदा ओ घमण्डे चूर रहैत छलाह आ विद्रोहक भावनाक्ल नेतृत्व सेहो करैत छलाह। राजद्रोह हुनकामे कूटि–कूटिकेँ भरल छल। एहिसँ पूर्वक शासकक प्रति कहियो ओ अपन माथ नहि झुकौने छलाह, ने ककरो मातहदी गछने छलाह आ ने कहिओ पराजित भेल छलाह। सुल्तानक आगमनक सूचनासँ ओ भयभीत भऽ गेला आ संगहि चिंतित सेहो। ओ किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ बैसि गेला। एतेक चिंतातुर आ अपाहिज जकाँ ओ भऽ गेला जे सब किछु रहितहुँ ओ सुल्तानक विरोध करबाक वजाय किला छोड़ि भगबेक घोषणा करैत ओ सबसँ तेज घोड़ापर चढ़िकेँ भागि गेलाह। भोरमे जे अपनाकेँ सम्राट बुझैत छलाह तिनके स्थिति साँझमे भिखारि जकाँ भऽ गेलैन। ओ ओतए पहाड़ दिसि भगलाह आ अपना पाथरक पाछु नुका लेलन्हि। सुल्तान ओहिठाम बहुत दिन धरि रूकला आ प्रशासनिक व्यवस्था केलन्हि। जे केओ सुल्तानक आज्ञा मानलन्हि हुनका क्षमादान भेटलन्हि आ बाँकीकेँ सजा। सब किछु ठीक ठाक केलाक बाद ओ ओहिठामसँ दिल्ली दिसि विदा भेला। तिरहूत तुगलक साम्राज्यक एकटा अंग बनि गेल आ ओकरा तुगलकपुर सेहो कहल जाइत छल। एवँ प्रकारे कर्णाट कालक गौरव पूर्ण शासनक अंत भेल आ शुद्ध रूपे मिथिलामे मुसलमानी अमल शुरू भेल। एतवा दिन मुसलमान एम्हर–आम्हरसँ हस्तक्षेप करैत छलाह मुदा आव मिथिला दिल्ली सल्तनतक एकटा प्रांत बनि गेल आ एकर स्वतंत्र सत्ता समाप्त भऽ गेलैक जकरा पुनर्स्थापित करबाक प्रयास बादमे शिवसिंह आ भैरव सिंह केलन्हि।
कर्णाट वंशक पराभव भेलापर मिथिलामे ओइनवार वंशक स्थापना भेल आ इ राजवंश तुगलक साम्राज्यक करद राज्य छल। ओना आंतरिक मामलामे जे स्वायतत्ता प्राप्त रहल हौकसँ दोसर बात मुदा वास्तविकता आव इएह जे कर्णाट कालीन स्वतंत्रता लुप्त भऽ चुकल छल आ मुसलमानी प्रभाव मिथिलामे काफी बढ़ि गेल छल। खास कऽ कए तुगलक लोकनिक सम्बन्ध ओइनवार शासकक संग बरोबरि बनल रहलन्हि आ जखन तुगलक वंशक ह्रास भेल तखन आन–आन शक्ति सब सेहो मिथिलाकेँ धमकावे लागल। बंगाल, जौनपुर, अवध आ दिल्ली सबहिक मुसलमान शासकक नजरि मिथिलापर बनल रहैन्ह आ जखन जे मौका पावैथि सैह हाथ मारि लैत छलाह। कोनो तरहे मिथिलाकेँ चैन नहि छलैक आ बेचारे शिवसिंह आ भैरवसिंहक सत्प्रयासक बादो मिथिला स्थायीरूपेण राजनीतिक क्षेत्र कर्णाटकालीन मर्यादा नहि प्राप्त कऽ सकल। इ तँ धन्य विद्यापति जे अहिवंशक गौरवगाथाक यशोगान कऽ एकरा अमरत्व प्रदान करेबामे समर्थ भेलाह। ऐयासुद्दीन तुगलकक समयमे तिरहूतकेँ बंगालसँ फूटका कऽ एकटा अलग प्रांत बनाओल गेल छल आ दरभंगामे ओकर राजधानी छल।
ताहि दिनसँ दरभंगा मुसलमानी शक्तिक प्रसारक जे एकटा केन्द्र बनल से बनले रहल जा धरि कि ओहिपर अंग्रेजक कब्जा नहि भऽ गेलैक। ओइनवार वंशकेँ तुगलक लोकनिक हाथे राज्य भेटल छलन्हि तैं ओ लोकनि ओहिवंशक उपकृत छलाह। मोहम्मद तुगलकक समयमे एकर आर प्रसार भेलैक आ तिरहूत पर तुगलक शक्तिक विस्तार सेहो मुदा महत्वाकाँक्षी लोकनिक तँ कतहुँ अभाव नहि अछि आ इएह कारण छल जे बंगालक शमसुद्दीन हाजी इलियास रक्षकक स्थान पर भक्षकक काज केलन्हि आ तिरहूत आ नेपाल पर आक्रमण कए देलन्हि। तुगलक साम्राज्यमे मोहम्मद तुगलकक पगलपनीक चलते जे अव्यवस्था उत्पन्न भऽ गेल छलैक ताहिसँ प्रोत्साहित भए गोरखपुर, बहराइच, चम्पारण, तिरहूत आदिक राजा ढ़ीट भगेल छलाह आ शमसुद्दीन इलियास अपन महत्वाकाँक्षाक पूर्त्ति करबाक हेतु हिनका लोकनिकेँ सजा देवाक ढ़ोंग रचलक। हिन्दू राजा लोकनि आपसमे बटल छलाह जकर परिणाम ई भेल जे ई लोकनि सम्मिलित भए ओकर मुकाविला नहि कऽ सकलाह आ हाजी इलियास अपन विजयक डंका बजबैत हाजीपुर धरि पहुँचि गेल। गोरखपुर धरि ओकर प्रभाव बढ़लैक आ मिथिलामे ओइनवार राजाक अधिकारकेँ ओ सीमित ककए बूढ़ी गण्डकक उत्तरी भागमे राखि देलक आ दक्षिणक समस्त भागपर अपन आधिपत्य स्थापित केलक। समस्तीपुरसँ बेगूसराय धरि आ ओम्हर हाजीपुर धरि इलियासक आधिपत्य बढ़लैक आ समस्तीपुर एवँ हाजीपुरक संस्थापको इएह मानल जाइत अछि। हाजीपुरक सामरिक महत्व ताहि दिनसँ बनले रहल आ मुसलमान कालमे एकर महत्व छल। बंगालोक प्रतिनिधि अहिठाम रहैत छलाह।
जखन फिरोज तुगलक गद्दीपर बैसलाह तखन इलियासक ढ़ीटपनी दिसि हुनक ध्यान आकृष्ट भेलन्हि आ तैं तुगलक साम्राज्यक निर्धारित सीमापर अपन सत्ता स्थापित करबाक हेतु ओ अग्रसर भेलाह। एम्हर जे हिन्दू राजा सब इलियाससँ पराजित भेल छलाह सेहो सब इलियाससँ खिसियैले छलाह आ तैं ओ लोकनि हर्षौत्फ्फुल भेलाह। फिरोज तुगलकक स्वागतमे ठाढ़ भेला गोरखपुर, कारूष, चम्पारण आ तिरहूतक शासक लोकनि। अहि सबपर अपन सत्ता स्थापित कए फिरोज सरयु नदीसँ कोशी नदीक क्षेत्र धरिक इलाकापर अपन प्रशासनिक व्यवस्था ठीक केलन्हि आ ओकरा अपन अधीनमे पुनः आलन्हि। फिरोजक प्रगतिक सूचना सुनितहि इलियास तिरहूतसँ भागल आ फिरोज हुनका पाँछा गेला। इलियास पहिने पण्डुआ पहुँचल आ तकर बाद एकदला। फिरोज तुगलक तिरहूत बाटे बंगाल दिसि गेलाह आ झंझारपुर अनुमण्डलमे सम्प्रति एकटा पिरूजगढ़ अछि जे फिरोज द्वारा स्थापित कहल जाइत अछि। ओहिठामसँ ओ राजविराज लग कोशी पार करैत बंगाल पहुँचलाह आ इलियासकेँ हरौलन्हि। ओहिठामसँ घुरलापर मिथिलाक सहयोगक प्रतिदान स्वरूप ओ भोगीश्वरकेँ अपन प्रियसखा कहैत मिथिलाक राजा बनौलन्हि। कहल जाइत अछि जे तिरहूतक दुनू भागकेँ मिलाकेँ ओ एक केलन्हि आ समस्त राजक भार ओइनवार लोकनिकेँ देलन्हि। मुदा किछु गोटएक मत छन्हि जे इ काजक श्रेय शिवसिंहकेँ छलन्हि। दिल्ली घुरबासँ पूर्व फिरोज मिथिलाक हेतु अपन कलक्टर आ काजी बहाल केलन्हि। हाजी इलियासकेँ मिथिलासँ भगाकेँ ओहिपर ओ पुनः अपन आधिपत्य स्थापित केलन्हि आ ओइनवार वंशकेँ करद राज्यक रूपमे रहए देलन्हि। इ लोकनि वार्षिक कर तुगलककेँ दैत रहलाह। इलियास अपना अमलमे तिरहूतमे बहुत रास किला बनबौने छल मुदा ओकरा गेलापर ओहि सब किलाकेँ हिन्दू लोकनि तोड़ देलन्हि।
फिरोज तुगलकक दिल्ली चल जेबाक बाद ओइनवार वंशमे आंतरिक संघर्ष प्रारंभ भेलैक आ एम्हर तुगलक लोकनिक प्रभाव सेहो घटे लगलन्हि। गणेश्वरक हत्यासँ मिथिलामे एक नवस्थिति उत्पन्न भेल जकर चर्च हम पूर्वहि कऽ चुकल छी। बिहारमे मलिक वीर अफगान तुगलक लोकनिक प्रतिनिधि छलाह मुदा तिरहूतपर हुनक कोनो अधिकार छलन्हि अथवा नहि से कहब कठिन कारण तिरहूत तखन बिहारसँ अलग राज्य छल। कीर्तिसिंह आ वीर सिंहक जौनपुर यात्राक उल्लेख पूर्वहि भऽ चुकल अछि आ इ लोकनिक जौनपुरक इब्राहिम शर्कीसँ मदति लेबाक हेतु विद्यापतिक संगे ओतए गेल छलाह। फिरोज तुगलकक पोता सुल्तान महमूद तुगलक बिहार आ तिरहूतक राज्य अपन वजीर ख्वाजा जहाँ (जकरा मलिक–उस–शर्क) सेहो कहल जाइत छैक के देने छलाह आ ओ जखन देखलन्हि जे दिल्लीक गद्दी लड़खड़ा रहल अछि तखन ओ अपन स्वतंत्रता घोषित कऽ लेलन्हि। ओ अपन पदवी सुल्तान–उस–शर्क रखलन्हि आ अपनाकेँ जौनपुरक शासक घोषित केलन्हि। आ अवध, बिहार, तिरहूत तथा गंगाक दोआव धरि ओ अपन आधिपत्य कायम रखलन्हि। एतवा धरि निश्चित अछि जौनपुरक आक्रमण मिथिला पर भेल छलैक मुदा ओ कीर्ति सिंह–वीर सिंहक हेतु अथवा बंगालमे मुसलमानी सत्ताक पुनर्स्थापनक क्रममे से कहब कठिन। मुल्ला तकिया विवरणमे इब्राहिम शाह शर्कीक शिलालेख उल्लेख अछि जाहिसँ तथ्यक पुष्टि होइछ मुदा तत्कालीन घटना क्रमक सम्बन्ध ततेक रास नेऽ बात सब मिझ्झर भेल अछि जे ओहिमे सँ कोनो वास्तविक तथ्यकेँ बाहर करब कठिन गप्प। एहि हेतु अखन आरो प्रयास करए पड़त आ तखनहि हमरा लोकनि ओहि औझरैल जालसँ बाहर हैब। १४६० धरि मिथिला जौनपुरी राज्यक मातहदी राज्य छल तकर कोनो प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नहि भेटइत अछि। मुसलमानी साधन सेहो एत्तेक स्पष्ट नहि अछि जाहि आधार किछु ठोस बात कहल जा सकए।
जखन तुगलक साम्राज्यक पतनक बाद चारूकात अस्थायित्व छल आ कोनो निस्तुकी राजाक शासन जमि नहि रहल छल तखनहि मिथिलामे शिवसिंहक उदय भेलन्हि आ ओ मिथिलाकेँ मुसलमानी नियंत्रणसँ मुक्त कऽ अपन सोनाक सिक्का बाहर केलन्हि। बंगाल, जौनपुर, दिल्ली आ आन–आन, छोट–छोट राज्य जखन सब अपन डफली बजा रहल छलाह तखन शिवसिंहे किएक चुप्प बैसितैथ? शिवसिंहक संघर्ष जौनपुरक शर्की राजाक संग भेल छलन्हि। ओना तँ अहि युद्धक पूर्ण विवरण नहि ज्ञात अछि मुदा कीर्तिपताकाक विवरणसँ एहि युद्धक संकेत भेट सकइयै। हुनका द्वारा घोषित मिथिलाक स्वतंत्रता मुसलमानक आँखिमे काँट जकाँ गरए लागल आ ओ अपन स्वतंत्रताक सुरक्षार्थ अपन जानक बाजी लगौलन्हि। शिवसिंह लड़ैत–लड़ैत मारल गेला अथवा कतहु पड़ा गेला से कहब कठिन। शिवसिंहक बादसँ मिथिलापर आधिपत्यक हेतु दिल्ली, जौनपुर आ बंगालक बीच घीचांतीरी होइत रहल। शिवसिंहक पछाति कालक्रमेण इलियास वाला बटबाराकेँ बंगालक शासन पुनः जीऔलक आ ओहि क्षेत्रपर पुनः अपन स्तित्व कायम केलक। भैरवसिंहक समयमे ओहि क्षेत्रपर बंगालक प्रतिनिधि रहैत छल से वर्धमानक दण्डविवेक ग्रंथसँ ज्ञात होइछ–
“गौड़ेश्वर प्रतिसरीरमति प्रतापः।
केदार रायमवगच्छति दारतुल्यम्”॥
इ केदार राय बंगाल सुल्तानक प्रतिनिधि छलाह। इ हाजीपुरमे अपन मुख्यालय रखने छलाह। भैरव सिंह हिनका पराजित कऽ पंचगोड़ेश्वरक पदवीसँ विभूषित भेल छलाह आ मिथिलाक दुनू भागकेँ एक वेर पुनः जोड़िकेँ एक केने छलाह आ संगहि अपनाकेँ स्वतंत्र सेहो घोषित केने छलाह। तकर बाद लोदी वंशक प्रभाव मिथिलापर बढ़लैक आ सिकन्दर लोदी मिथिलाक राजाक परम मित्र छलाह जकर उल्लेख हम पूर्वहि कऽ चुकल छी। सिकन्दर जौनपुरकेँ हराकेँ अपन राज्यक विस्तार पटना, तिरहूत आ सारन चम्पारण धरि केने छलाह। वाकिआत–इ–मुस्तकीसँ ज्ञात होइछ जे ताहि दिनमे चम्पारणमे मियाँ हुसैन फारमुली जागीरदार छलाह। आधिपत्यक हेतु लोदी आ बंगालक शासकक बीच संघर्ष होइत रहल आ मिथिला पेड़ाइत रहल। लोदीक समयसँ मिथिलापर मुसलमानक प्रभाव एकदम प्रत्यक्ष होमए लगलैक। बेगूसरायमे एकटा लोदीडीह अखनो अछि आ तुगलकसँ लऽ कऽ शाह आलम धरिक सिक्का ओतएसँ प्राप्त भेल अछि। दिल्ली आ बंगाल दुनु मिथिलापर अधिकार प्राप्त करबा लेल संघर्षशील रहैत छलाह। भगिरथपुर अभिलेख अहिबातक साक्षी अछि जे मिथिलापर चारूकातसँ मुसलमानी प्रकोप खूब जोर–शोरसँ बढ़ि गेल छल।
१५२६मे पानीपतक पहिल लड़ाईमे इब्राहिम लोदी परास्त भेला। बाबरक लेख इत्यादिमे तिरहूतक राजा रूपनारायणक उल्लेख भेटइयै। तिरहूत बाबरकेँ कर दैत छल। बाबरसँ पूर्वहुँ तिरहूतमे अपन आधिपत्य कायम रखबाक हेतु मुसलमान लोकनि किछु उठा नहि रखलन्हि। बंगालक राजा नसरत शाह तिरहूतक राजाकेँ परास्त केलक आ नसरत शाहक एकटा अभिलेख बेगूसरायक मटिहानी गामसँ प्राप्त भेल छैक। नसरत अलाउद्दीनकेँ तिरहूतक गवर्नरक रूपमे नियुक्त केलक। नसरतक अवसान भेलापर मकदूम शाह विद्रोह केलक आ सासारामक अफगान नेता शेरशाहक संग मित्रता सेहो। शेरशाह चम्पारणसँ चटगाँव धरि जीतबाक प्रयास केने छल। हुमायुँक भाएक प्रभाव नरहनमे छलैक जे कि महेश ठाकुरक सर्वदेश वृतांत संग्रहसँ बुझना जाइत अछि। हाजीपुरपर शेरशाहक प्रभाव छलैक। १५४७मे हुमायुँ मिरजा हिन्दालकेँ हाजीपुरपर कब्जा करबाक आदेश देलकै। १५३० सँ १५४५ धरि मिथिलामे अराजकता रहलैक आ तकर किछु दिनक बाद केशव कायस्थ राजा भेल। दिल्ली सँ इ राज्यक भार हुनका भेटल छलन्हि। शेरशाह आ हुनक वंशजक शासन तिरहूतपर छलन्हि। तेघड़ा क्षेत्रमे मुगल–अफगानक संघर्ष भेल छल। मुगल साम्राज्यक समयमे मिथिलाक हेतु दिल्ली दिसि गवर्नर अथवा मुगलक प्रतिनिधि नियुक्त कैल जाइत छल। दरभंगामे बरोबरि फौजदार रहैत छल। महेश ठाकुरक शासनकालमे बहुत रास पठान सब तिरहूतमे आबिकेँ बसि गेल। 1575मे जखन दाउद खाँ अफगान मुगलक विरोधमे विद्रोह केलन्हि तखन मिथिलाकेँ पठान सब हुनक संग देलन्हि। दाउदकेँ दबेबाक हेतु अकबर बिहार, तिरहूत आ हाजीपुरसँ सेना जमा केने छलाह। सैनिक दृष्टिकोणसँ मुगलकालमे हाजीपुर बहु महत्वपूर्ण भऽ गेल छल। अकबर हाजीपुरकेँ बरोबरि सुरक्षित राखए चाहैत छलाह आ खान–इ–आजमकेँ बंगाल आ तिरहूतक गवर्नर नियुक्त केने छलाह। मुजफ्फर खाँ चम्पारणक राजा उदीकरणक संग मिलि विद्रोही लोकनिकेँ दबौने छलाह। तिरहूतक राजा सम्राटकेँ कर दैत छलथिन्ह। १५८०क बाद शुभंकर ठाकुर भौरमे मिथिलाक राजधानी बनौलन्हि आ मुगल सम्राटसँ अपन बढ़िया सम्बन्ध बनाके रखलन्हि।
शुभंकर ठाकुरक समयमे जखन अकबर काबुल दिसि गेल छलाह तखन एम्हर तिरहूतमे बदम्क्षीक पुत्र बहादुर शाह साम्राज्यक विरूद्ध विद्रोह केलन्हि आ अपन नामक सिक्का आ खुतबा शुरू कदेलन्हि। पश्चात् ओ आजम खाँक नौकर सब द्वारा मारल गेला। पुरूषोत्तम ठाकुर जखन राजा भेलाह तखन हुनका राजस्व जमा करबाक हेतु किला घाटमे बजाओल गेलन्हि आ ओतहि धोखासँ मारि देल गेलन्हि। हुनक पत्नी दिल्ली जाए जहाँगीरक दरबारमे एकर शिकायत कैलक आ पुरूषोत्तमक हत्याराकेँ मृत्युदण्ड देल गेलैक। रानी ओतहि जमुना नदीक निगम बोध घाटपर सती भऽ गेलीह। हुनक बाद नारायण ठाकुरक शासन कालमे कोनो एहेन महत्वपूर्ण घटना नहि घटल आ मुसलमानक सम्बन्ध यथावत रहल। तब सुन्दर ठाकुर राजा भेलाह। १६६१मे औरंगजेबक एकटा फरमान अछि जाहिमे उल्लिखित अछि जे महिनाथ ठाकुर पलामू आ मोरंगकेँ जीतबामे साहाय्य देने छलाह। हुनका समय नवाब मिरजा खाँ दरभंगाक फौजदार छलाह। पलामूक चेरो सरदार प्रतापराय सम्राटकेँ कर देव बन्द कऽ देने छलाह आ अपना क्षेत्रमे तहलका मचौने छलाह। हिनका दबेबाक हेतु औरंगजेबक आदेश एलापर फौजदार महिनाथ ठाकुरसँ मदति लेलन्हि आ पलामूक संग-संग मोरंगक विद्रोही लोकनिकेँ सेहो दबाओल गेल। ओहि हेतु औरंगजेब हिनका धन्यवाद सेहो देने छलथिन्ह। अहिसँ इ स्पष्ट अछि जे मुगल सम्राटक अधीन छलाह। हिनका पारितोषिक हेतु मूंगेर, हवेली, ताजपुर, पूर्णियाँ, धरमपुर आदिक जमीन्दारी भेटलन्हि आ माछक निशान सेहो। मोरंगक विरूद्धक लड़ाइमे नरपति ठाकुर सेहो संग देने छलथिन्ह। महिनाथक बाद नरपति ठाकुर राजा भेलाह। मिरजा खाँक पश्चात मासूमखाँ, नुसेरी खाँ, शाहनवाज खाँ आ हादी खाँक ओहिठामक फौजदार भेला।
नरपति ठाकुरकेँ मकवानपुरक राजासँ झंझट भेलन्हि। नरपति ठाकुर तखन सुवादारसँ अनुरोध केलन्हि आ सुवादारसँ आश्वासन भेटलापर मकवानीपर आक्रमण केलन्हि। मकवानीक राजाकेँ पकड़िकेँ दरभंगाक फौजदारक समक्ष आनल गेल जतए ओ कर देव स्वीकार केलन्हि। बासमे नवाब फिदाई खाँ (1692 – 1702) ओकरा आ बढ़ाकेँ बेसी कऽ देलन्हि। तकर बाद राघव सिंहक शासन भेल। 1701मे शमशेर खाँ तिरहूतक फौजदार छलाह। ओहि वर्ष राघव सिंह राजा भेल छलाह। अलीवर्दी हुनका राजाक पदवी देने छलन्हि। ओ तिरहूतक राज्य मुकर्ररीपर लऽ लेने छलाह मुदा पारिवारिक संघर्षक चलते केओ एक गोटए जाके नवाबकेँ हुनका विरोधमे खबरि कऽ देलकन्हि आ नतीजा इ भेलैक जे हुनकापर चढ़ाई भऽ गेलन्हि आ हुनक राज्य जप्त कऽ लेल गेलन्हि। रिआज – उस सालातिनक अनुसार भौरक राजाक विद्रोही प्रवृत्तिक कारणे इ आक्रमण भेल छल। पुनः हुनका ‘रेवन्यु कलक्टर’ बनाकेँ तिरहूत वापस पठैल गेलन्हि। नवाबक दीवान धरणीधरकेँ सेहो इ पचास हजार टाका सालाना दैत छलथिन्ह। एकर बाद विष्णु सिंह राजा भेलाह आ तकर बाद नरेन्द्र सिंह। नरेन्द्र सिंहक शासनकाल महत्वपूर्ण अछि। हिनकहि शासनकालमे कन्दर्पी घाटक लड़ाई भेल छल। राजा रामनारायणसँ हिनका संघर्ष भेल छलन्हि जकर विवरण हमरा लालकविसँ प्राप्त होइछ। रामनारायणक नेतृत्वमे भिखारी महथा, सलावत राय आ वख्त सिंह पाँच हजार सेनाक संग मिथिलाक राजा नरेन्द्र सिंहपर आक्रमण केने छलाह। रामनारायण भिखारी महथाकेँ आदेश देलथिन्ह जो तिरहूतकेँ सोझे अपना कब्जामे कऽ लौथ। सलावत राय सेहो हुनका संग गेलथिन्ह। राजा नरेन्द्र सिंह सेहो तैयारी कऽ कए बढ़लाह। वक्सी गोकुलनाथ झा, जाफर खाँ आ हालाराय सेहो हुनका संग आगाँ भेलथिन्ह। राजा मित्रजित आ उमराव सिंहकेँ आगाँ पठौलथिन्ह जाहिसँ ओ लोकनि दुश्मनक सेनाकेँ रोकि सकैथ। सलावत राय उमरावकेँ हाथे मारल गेला आ भिखारी महथा कहुना बचिकेँ भागलाह। लालकविक वर्णनक किछु अंश एवँ प्रकारे अछि–
“रामनारायण भूपतें कहयौ मुखालिफ जाय।
हाकिम को मिथिलेशने, दीन्हों अदल उठाय॥
सीरकरो तिरहूति को, ताके रचो उपाय।
फौजदार महथा भये, संग सलावति राय॥
वख्त सिंह कुल उद्धरण, रोड़मल्ल दिलपुर।
चौभान भानु भानू सुउअ, एक एक तैं सूर॥
याही सब तै नाथ करी, फौजे पाँच हजार।
दिग शुल सन्मुख जोगिनी, महथ उतरे पार॥
पड़ै उठाय धाय धाय एक एक सँ लड़ै।
मनो गजेन्द्र सो गजेन्द्र जंग जोर को धरै॥
महीप मित्रजित राव वख्त सिंह को धरै।
चखा चखी चोट चोट लोट पोट ह्वैगिरै॥
एहि युद्धमे नरहनक राजा नरेन्द्र सिंहक संग देने छलाह। कन्दर्पी घाटक युद्ध बलान नदीक तटपर भेल छल। नरेन्द्र सिंह एहि युद्धमे विजयी भेल छलाह। दरभंगाक अफगान लोकनि सेहो करीब तीन मासक हेतु अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कऽ चुकल छलाह। दरभंगाक अफगान आ दरभंगाक महाराज लोकनिक बीच सम्बन्ध बढ़िया छल। अलीवर्दीक विरोधमे दरभंगाक अफगान लोकनि मराठाक संग षडयंत्र करए लागल छलाह। अलीवर्दी अफगान सब अखनो मोहद्दीनगरक समीपमे छथि। 1765मे जखन अंग्रेजकेँ बंगाल, बिहार आ उड़ीसाक दिवानी भेट गेलैक तखन राजनैतिक स्थितिमे पूर्ण परिवर्त्तन भऽ गेलैक आ मुसलमानी अमल एक रूपें समाप्त भऽ गेलैक। 1774मे तिरहूतकेँ पटनाक अधीन कऽ देल गेलैक आ 1782मे ग्रैन्ड तिरहूतक कलक्टर भऽ कए एला। तखन मुजफ्फरपुर तिरहूतक अधीन छल। मुसलमानी अमलक अंत भेलापर अंग्रेजक अमल शुरू भेल आ मिथिला ओकर एकटा अंश बनि गेल। मुगल कालमे मिथिला तीन प्रकारमे विभाजित छल – हाजीपुर, चम्पारण आ तिरहूत आ अधुना (तिरहूत) मिथिलाक प्राचीन सीमा क्षेत्रक हिसाबे मुजफ्फरपुर, दरभंगा आ कोशी प्रमण्डल मिलाकेँ मिथिला कहाओल जाइत अछि। अंग्रेज अपना सुविधानुसार प्रशासनिक क्षेत्र बनौने छलाह आ आजुक शासक ओकरा आओर अपना सुविधानुसार बना रहल छथि।
अध्याय–१३
मिथिलामे अंग्रेजी राजक अमल
(१७६५–१९४७)
१७६४क बक्सरक लड़ाइ भारतक हेतु एकटा निर्णायक युद्ध छल कारण एकरा बाद इ स्पष्ट भऽ गेल छल जे उत्तर भारतक कोनो शक्तिकेँ आब अंग्रेजसँ मुकाबिला करबाक क्षमता नहि रहि गेल छलन्हि। १७६५मे अंग्रेजी इस्ट इण्डिया कम्पनीकेँ जखन दिवानी भेटलैक तखनहिसँ भारतमे अंग्रेजी राज्यक स्थापनाक वीजारोपण सेहो भऽ गेलैक। १८म शताब्दी उत्तर भारत आ दक्षिण भारतक महत्वाकाँक्षी नेता लोकनिक स्वार्थ पूर्त्तिक युग छल जखन लोग देशक पैघ स्वार्थकेँ बिसैरि अपन छोट–छोट स्वार्थक पूर्त्तिक हेतु देशक बलिदान करैत जाइत गेलाह। तिरहूत औरंगजेब समय धरि मुर्शिदाबादक नवाबक मातहदीमे छल। १७४०सँ बिहार आ तिरहूतक भाग्य मुर्शिदाबादसँ मिलल छल आ ओहिठामक नवाब बिहारमे अपन उपनवाब बहाल करैत छलाह। अलीवर्दी खाँ पहिने बिहारेक उपनवाब छलाह। अलीवर्दीक कृपासँ अंग्रेज व्यापारी लोकनिकेँ थोड़ेक सुविधा प्राप्त भेल रहैन्ह।
१७५६मे अलीवर्दीक मृत्यु भऽ गेलैक आ तकर बाद सिराजुद्दौलाह बंगालक नवाब भेल। अंग्रेज लोकनि अपन कुचक्रसँ पलासीक युद्धमे सिराजकेँ परास्त कए मीरजाफरकेँ १७५७मे नवाब बनौलन्हि। १७६०मीरजाफरकेँ हटा कए मीरकासिमकेँ नवाब बनाओल गेल। मीरकासिम मूंगेरकेँ अपन राजधानी बनौलन्हि। हुनका अंग्रेजसँ पटइत नहि छलन्हि आ बरोबरि खटपट होइत रहन्हि आ अंग्रेज मीरकासिमक चुस्ती चालाकीसँ खार खाइत छलाह। १७६३मे अंग्रेज आ मीरकासिमक बीचक सम्बन्ध आ खराब भऽ गेल आ मीरकासिम दिल्लीक शाह आलम आ अवधक नवाब शुजाउद्दौलाहक सहाय्यसँ अंग्रेजक पटनामे स्थित कम्पनीपर धावा करबाक विचार केलन्हि। एकरे नतीजा भेल १७६४क बक्सरक लड़ाइ। एहिमे अंग्रेज लोकनि विजयी भेलाह आ १७६५मे हुनका दिवानी भेटलन्हि। बंगाल, बिहार आ उड़ीसाक ओ अप्रत्यक्ष रूपेँ मालिक भऽ गेलाह। तहियेसँ मिथिलामे अंग्रेजी राज्यक अमल मानल जा सकइयै। १७६५मे राबर्ट बारकर अपन सेनाक संग उत्तरी बिहारमे विद्रोही जमीन्दारकेँ दबेबाक हेतु ऐलाह। बेतियाक जमीन्दार जे गत दू वर्षसँ अराजक स्थितिसँ लाभ उठाकेँ विद्रोहक झंडा गारि देने छलाह तनिका इ धतेलन्हि। ओ जमीन्दार अपन किलामे नुका रहल छला। बारकरक पहुँचलाक बाद ओ तुरंत हुनकासँ समझौता कऽ लेलन्हि आ सबटा बकिऔता चुका देलन्हि। बारकर बेतियाक सम्बन्धमे बड्ड बढ़िया विवरण देने छथि। १७७२मे जखन बोर्ड आफ रेवन्युक स्थापना भेल तखन तिरहूतक सेहो राजस्वक आधारपर समझौता भेल। १७७४मे तिरहूतकेँ पटनाक अधीन कऽ देल गेलैक। १७७२मे फ्रांसीस ग्रैण्ड तिरहूतक प्रथम कलक्टर भऽ के एलाह। ग्रैण्ड नीलहा कोठीक संस्थापक सेहो छलाह आ हिनके प्रयासे समस्त तिरहूतमे नीलहा कोठीक जाल बिछा देल गेल छल। १७८७धरि ग्रैण्ड साहेब रहलाह आ एहि बीच ओ समस्त तिरहूतक सर्वेक्षण राजस्वक दृष्टिये केलन्हि। तकर बाद वार्थस्ट एला।
१७६२मे राजा प्रताप सिंह भौरसँ हटाकेँ दरभंगामे अपन राजधानी लऽ अनले छलाह। १७७०मे जखन पटनामे रेवेन्यु कौंसिलक स्थापना भेल तखन पुनः प्रताप सिंहकेँ अपन जमीन्दारीक मुकर्ररी कम्पनीसँ भेटलन्हि। केली तिरहूतक राजस्व अधीक्षक भऽ कऽ एलाह। १७७१मे प्रताप सिंह आ केलीमे मतभेद प्रारंभ भेल। राजाक ओत बहुत रास बकिऔता भऽ गेल छलन्हि आ अंग्रेज लोकनि हिनक पुरान स्तित्वकेँ नहि रहए देमए चाहैत छलथिन्ह। माधवसिंहक समयमे फेर नव हिसाबे कम्पनीक संग समझौता भेलन्हि, ओना राज्यारोहणक पूर्वहिं माधवसिंहकेँ धीरज नारायणसँ कैकटा परगन्ना भेटल छलन्हि। सबटा बकिऔता चुकौलापर राज्य पुनः माधवसिंहकेँ वापस भेलन्हि। ताहि दिनमे एक प्रकारक अस्थायित्व छल तैं लगले–लगले परिवर्त्तनो होइत रहैत छल। तथापि १७८१ सँ १७८९ धरि दरभंगा निस्तुकी रूपें माधव सिंहक अधीन रहल। वार्थस्ट कलक्टर दरभंगा आबि महाराजसँ भेट कए अनुरोध केलकन्हि जे दमामी बन्दोबस्त मानि लैथ परञ्च माधवसिंह बड़ा चिंतामे पड़ि गेल छलाह आ कोनो निर्णय लेबामे असमर्थ रहलाह। वो गवर्नर जेनरलसँ अनुरोध केलन्हि जे हुनक राज्य घुरा देल जान्हि। जखन इ सब वार्तालाप छल तखन हुनका कराम अलीक स्टेट सेहो प्राप्त भेलैन्ह (१७९५)। एहिमे १५परगन्नामे ३५टा गाम छल। सरकार बहादुर अहिबातकेँ नहि मानि एहि सब दान बला गाँव अपन राज्यमे मिला लेलक। पुनः झंझटक बाद १८००इ.मे इ सम्पत्ति राजकेँ भेटलैक। अतंतोगत्वा दरभंगा राज सेहो दमामीबन्दोबस्तक अधीन भऽ गेल।
महाराज छत्रसिंहक समयमे कम्पनीक संग सम्बन्ध आ बढ़िया भेलैक। कम्पनीकेँ तखन नेपालसँ खटपट होइत छलैक आ लड़ाइक संभावना बढ़ल जाइत छलैक। कम्पनीक प्रतिनिधि महाराजसँ भेंट केलक आ हिनकासँ अनुरोध केलकन्हि जे संभावित गोरखा आक्रमणक विरूद्ध हिनका लोकनिकेँ सतर्क रहबाक चाही। तिरहूतक कलक्टर सीलीकेँ सेहो लिखल गेलैक जे ओ क्षेत्रक सब जमीन्दार सबसँ सेना प्राप्त करबाक प्रयास करे। सीली सेजर बैडशाक नाम जे पत्र लिखने छलाह जनकपुरसँ ताहिसँ ज्ञात होइछ जे दरभंगा महाराजकेँ छोड़ि केओ सक्रिय सहयोग नहि देने छलन्हि। छत्रसिंह करीब ९हजार टाकाक मदति सेहो देने रहथिन्ह। योग्य सैनिकक व्यवस्था सेहो इ कऽ देने छलथिन्ह। हिनक खुफिया सब अंग्रेजकेँ गोरखाक आक्रमणक पूर्व सूचना एवं ओकरा सबहिक बढ़बाक बाटक संकेत सेहो देलकन्हि। नेपालक विरूद्धक संघर्षमे अंग्रेजक मुख्य सहायक (सब तरहें) छत्र सिंह छलाह आ अंग्रेज सेना तखन पुपरी तक पहुँच चुकल। खिसियाकेँ नेपालक राजा अपन सैनिककेँ इ आदेश देलन्हि जे वो तिरहूत जिलाक सब गामकेँ लूट–पाट शुरू करे। जखन नेपालक विरूद्ध अंग्रेजक जीत भेलैक तखन छत्रसिंहकेँ महाराज बहादुरक पदवी भेटलन्हि। युद्ध समाप्त भेला उत्तरो अंग्रेजक अनुरोधपर छत्रसिंहक सेना मोतिहारीमे बनल रहल। इ लोकनि सतत अंग्रेजक खैरखाह बनल रहल। महेश्वर सिंहक समयमे सिपाही विद्रोह भेल। अंग्रेजकेँ हिन्दुस्तानी जमीन्दारपर सन्देह होइते छलैक आ ताहिपर एकटा कारणो आबि गेलैक। एक अफवाह प्रसारित भेलैक जे बहेड़ाक डिपुटी मजिस्ट्रेट मिस्टर डोवटनपर महाराजक एकटा कर्मचारी बन्दुक उठौलक यद्यपि इ बात किछु दोसर छलैक। महाराज अपन स्वामीभक्ति प्रदर्शित करबाक हेतु अंग्रेजकेँ नाथपुर आ पुर्णियाँक बीच डाक व्यवस्था चालू रखबाक हेतु १६टा घोड़सवार देलथिन्ह। १०० सिपाही सेहो ओ अंग्रेजकेँ पठौलन्हि मुदा ओ लोकनि संशकित रहबाक कारणे ओकरा घुरा देलन्हि। १८५५मे संथाल विद्रोहकेँ दबेबाक हेतु सेहो महाराज हाथी इत्यादि कम्पनीक सैनिककेँ देने छलथिन्ह। महाराज महेश्वर सिंहक बाद कोर्ट आफ वार्डस भऽ गेलैक। तिरहूतमे सिपाही विद्रोहक प्रभाव कोनो रूपें कम नहि छल।
अंग्रेजक संग बढ़िया सम्बन्ध रखितहुँ महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह देशक नब्जकेँ चिन्हलन्हि आ काँग्रेसक प्रारंभिक अवस्थामे जी जानसँ मदति केलन्हि जकर उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। सिपाही विद्रोहक बाद समस्त भारतपर अंग्रेजक एकछत्र राज्य कायम भेल आ तिरहूत कमीश्नरीक एकटा अंग जिलाक रूपमे दरभंगाकेँ राखल गेल। महेश ठाकुर वंश अंग्रेजी राजक समएमे दरभंगा राजक नामें प्रसिद्ध भेल आ उत्तर बिहारक प्रायः सब जिलामे किछु न किछु हिनका लोकनिकेँ रहबे करैन्ह। रामेश्वर सिंह आ कामेश्वर सिंहक समयमे सेहो ब्रिटिश सरकारक संग सम्बन्ध बढ़िये रहलन्हि आ १९३५–१९३६मे महाराज कामेश्वर सिंह अपन स्तित्वकेँ आ दृढ़ केलन्हि आ हुनकमे बृद्धि भेलन्हि। नेटिभ राज्यक स्थिति प्राप्त करबाक हुनक पैघ अभिलाषा छलन्हि आ अहि दिशामे ओ बहुत प्रयत्नो केने छलाह। सामान्य प्रतिष्ठाक हिसाबे आन जमीन्दारक अपेक्षा दरभंगा राज्यक विशेष महत्व छलैक आ अंग्रेज लोकनि एकरा अपन एकटा पैघ सम्बल मानैत छलाह। १९३५क कानूनक बाद जे राष्ट्रीयताक एकटा वयार बहल तकरा फलें परिवर्त्तन स्वाभाविक भगेल आ १९४७मे भारतक स्वाधीनताक बाद बिहार पहिल राज्य छल जे जमीन्दारी उन्मूलनक हेतु कानून पास केलक आ बिहारसँ जमीन्दारी प्रथा समाप्त भऽ गेल। बिहारक सब जमीन्दार समाप्त भऽ गेला आ ओहि क्रममे मिथिलाक सबसँ पैघ जमीन्दार जे कहियो मिथिलेशो कहबैत छलाह। सेहो समाप्त भऽ गेला।
II
तिरहूतमे नीलहा कोठीक इतिहासे:- उत्तर बिहार आधुनिक भारतक इतिहासक दृष्टिकोणसँ बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि कारण नीलक खेती अहिठाम होइत छल आ एकरा हेतु अंतर्राष्ट्रीय बाजार प्राप्त छल। नीलक अपन महत्व होइत छैक आ जखन इ बुझना गेलैक जे उत्तर बिहार एकरा हेतु उपर्युक्त स्थान अछि तखन इस्ट इण्डिया कम्पनीक कार्यकर्त्ता लोकनिक ध्यान अहि दिसि जाएब स्वाभाविके। अंग्रेजक आगमनक पूर्वहिंसँ अहिठाम नीलक खेती बढ़िया जकाँ होइत छल। युरोपमे इ रंग ततेक जनप्रिय भऽ गेल छलैक जे एकर माँग बढ़ि गेल छलैक। भारतवर्षमे सेहो एकर खेतीक प्रश्न किछु विवाद उठल हेतैक जकर कारण स्पष्ट नहि अछि मुदा १८३७ई.क लार्ड मैकौलेक एकटा मेमोरेण्डम छैक जाहिसँ अहि वस्तुपर प्रकाश पड़इयै आ इ आभास भेटइयै जे तकर बादसँ बंगालमे नीलक खेती कम होमए लागल आ नीलक खेतीपर तिरहूतमे विशेष ध्यान दिये जाए लागल।
१७८२ ग्रैण्ड तिरहूतक कलक्टर भऽ कए आएल छलाह आ १७८५मे ओ लिखैत छथि जे ओ अपने तिरहूतमे नीलक खेतीक सूत्रपात युरोपीय पद्धतिपर केलन्हि। इ ओ सबटा अपने खर्चपर केने छलाह। अंग्रेजक सर्वप्रथम फैक्ट्री ओना तिरहूतमे १६५०–१७००क बीच हाजीपूरक समीप सिंघिया अथवा लालगंजमे भेल छल आ तहियासँ अहि क्षेत्रमे अंग्रेजक प्रभाव बढ़ैत गेल आ ग्रैण्ड जखन कलक्टर भऽ कए एलाह तखन नीलक खेतीकेँ विशेष प्रोत्साहन भेटल। ग्रैण्ड एकरा एकटा उद्योगक हिसाबे विकसित केलन्हि। १७८८क ४फरवरीक एकटा रिपोर्टमे कहल गेल अछि जे तिरहूत कलक्टरीमे जे बारह–गोटए युरोपियन रहैत छथि ताहिमे १०गोटए नीलक खेती करैत छथि। इ बारहो गोटए कम्पनीक नौकर नहि छलाह। एहिमे सँ ६ गोटएक नाम छल–पीटर डी रोजेरियो, जेम्स जेंटिल, जी.डब्लु.एस.शुमान, जेम्स गेलन, जान मिलर आ फ्रांसिस रोज। जेम्स गेलन रोजेरियोक मनेजर छलाह। फ्रांसीस रोज जबर्दस्ती तिरहूतमे राजवल्लभक जागीरमे अपन नीलक खेती शुरू कऽ देने छलाह। १७९३मे नील फैक्ट्रीक संख्या ९ भऽ गेल छल। नील फैक्ट्रीक स्थापनासँ कानूनी व्यवस्था जटिल भऽ गेल छल आ ओहिपर सरकारकेँ ध्यान देमए पड़इत छलैक। एकर कारण इ छल कि इ लोकनि तरह–तरहक अन्याय आ जोर जबर्दस्ती करैत जाइत छलाह। १७९३मे तिरहूतक जज नीवकेँ बाध्य भऽ कए डोनबल नामक एक फ्रेंच नागरिक तथा टोमस पार्ककेँ तिरहूत छोड़बाक आदेश देमए पड़ल छलन्हि। टोमस पार्क सरैया आ सिंहियामे बिना कोनो लाइसेंसकेँ बसि गेल छलाह। बिना लाइसेंसकेँ कतहु बसब ताहि दिनमे गैरकानूनी छल। ढ़ोलीक जेम्स आर्नल्डकेँ सेहो जज महोदय ताकिद कऽ देने छलाह जो स्थानीय लोकनिक कुलाचारपर ध्यान राखैथि आ ओकरा विरूद्ध कोनो काज नहि करैथ। एहेन आदेश देबाक कारण इ छल जे जेम्स आर्नल्ड एकटा ब्राह्मणकेँ मारि बैसल छलाह। एवं प्रकारे रोज कोनो ने कोनो समस्या उठिते छल आ एकर विस्तृत इतिहास हमरा लोकनिकेँ मिन्डन विलसनक “हिस्ट्री आफ बिहार इंडिगो फैक्ट्रीज”मे भेटइत अछि। ९टा प्रारंभिक नीलक कोठी जे फुजल छल तकर विवरण एवं प्रकारे अछि:-
(i) दाउदपुर -
(ii) सराय - विलियम औखी हण्टर
(iii) ढ़ोली -
(iv) अघर - जेम्स जेंटिल
(v) शाहपुर- रिचार्डसन परविस
(vi) काँटी - अकेजेण्डर नामेल
(vii) मोतीपुर -
(viii) दयोरिया - फिंच
(ix) बनारा - ल्युयिस किक तथा शुमान
१७९४मे मात्र ७६७ बीघा १४ कट्ठा जमीनपर नीलक खेती होइत छल मुदा थोड़वे दिनमे ओकर एतेक विकास भेलैक जे समस्त उत्तर बिहारक कोन-कोनमे नीलहा साहेब सब पसरि गेल आ बढ़ियासँ बढ़िया जमीनपर अपन अधिकार कऽ लेलक। १८०३मे २५टा नील कोठी छल जाहिमे प्रमुखक नाम अछि भवराहा (भौर), मुहम्मदपुर, बेलसर, पिपराघाट, दलसिंहसराय, जितवारपुर, तिवारा, कमतौल, चितवारा, पुपरी, शाहपुरूण्डी इत्यादि। १८१०मे कलक्टर अहिबातक अनुशंसा केलन्हि जे २५टा नील फैक्ट्रीकेँ खजानासँ कर्ज देल जाइक कारण इ लोकनि अपना क्षेत्र बेकार सबकेँ काज दैत छथि आ एवं प्रकारे बेकारीक समस्याकेँ दूर करैत छथि। १८१०मे लगभग १०,०००मन नील तिरहूतसँ कलकत्ता पठाओल जाइत छल। चम्पारणमे नेपाल युद्ध समाप्त भेलाक बाद कर्नल हीकी नामक एक व्यक्ति १८१३इ. मे नीलक खेती शुरू केलन्हि। हीकी बारामे अपन फैक्ट्री खोललन्हि। ओकर ठीक बाद राजपुर आ तुरकौलियामे मोरन आ नहल अपन अपन नीलक कारखाना खोललन्हि। १८४५मे सिरहामे कैप्टेन टाइलर अपन कारखाना खोललन्हि।
१८१६मे चम्पारणमे नीलक खेतीक उल्लेख नहि भेटइयै मुदा १८३०क रिपोर्टमे एकर वर्णन अछि। चीनीक स्थानपर लोग नील उपजाएब शुरू केलन्हि। नीलक खेती अहि हिसाबसँ बढ़ए लागल कि तिरहूतक कलक्टर घबरा गेला। १८२८मे लिखलन्हि जे आब अहिपर रोक लगाना चाही। १८५०मे तिरहूतमे (दरभंगा मुजफ्फरपुरमे) ८६टा नीलक कारखाना भऽ गेल छल। सब गोटए चीनीक कारबार छोड़ि नीलपर उतरि गेल छलाह। नील उद्योगपर युरोपियन लोकनिक एकाधिपत्य छलन्हि। सिपाही विद्रोहक समयमे जे तिरहूतमे बेसी विस्फोट नहि भेल तकर कारण इएह छल जे अहि क्षेत्रमे नीलहा साहेबक बोलबाला आ दबदबा छल आ मजूर सब हिनका सबसँ रोजी रोटी पबैत छल आ तैं दबाबमे रहैत छल। सिपाही विद्रोहक समयमे अहि क्षेत्रमे शांति स्थापनाक भार सरकार हिनके लोकनिपर छोड़ि देने छलन्हि आ इ लोकनि ओकर नीक जकाँ निर्वाह केलन्हि। दलसिंहसराय, तिवारा आ जितवारपुरक कारखाना पुरान छल आ ओहि सबहक बड्ड धाक छलैक। १८७४मे तिरहूतक सबसँ पैघ नीलक कारवार पण्डौलमे छलैक जकर क्षेत्रफल ३०० वर्गमील छलैक।
१८६७–६८मे नीलक खेतीक विरोधमे एकटा जबर्दस्त प्रदर्शन चम्पारणमे भेलैक। रैयतक शोषण चरमोत्कर्षपर छलैक आ ओकर कोनो निदान सेहो नहि बहराइत छलैक। मजदूरकेँ पूरा पारिश्रमिक नहि देल जाइत छलैक। मजदूर लोकनि नीलक खेती करबासँ इंकार करए लागल आ जिउकतिया नामक गाममे अहि विरोधक पहिल उदाहरण भेटइत अछि। आनगामक लोग सब सेहो एकर देखा–देखी शुरू केलक। अहि वस्तुकेँ जल्दी सोझरेवाक हेतु मोतिहारीमे तत्काल कचहरीक स्थापना भेल। रैयतक प्रति थोड़ेक सुविधा सेहो देखाओल गेल। अंग्रेजकेँ शक्क भेलैक जे अहि आन्दोलनकेँ केओ उसका रहल अछि। आ हुनका लोकनि दृष्टि बेतिया राजपर गेल। १८७६मे बेतिया राजमे अंग्रेज मनेजर बहाल भेल आ तकर बाद फेर अंग्रेज लोकनि नीलक खेती दिस ध्यान देलन्हि। १९म शताब्दीक अन्त धरि चम्पारणमे कुल २१ फैक्ट्री आ ४८टा ओकर शाखा छल। चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगाक नीलहा साहेब मिलि कए १८०१मे अपना सबहिक हेतु एकटा नियम बनौलन्हि आ १८७७ ओ लोकनि बिहार इण्डिगो प्लांटर्स एशोसियेशन नामक संस्था सेहो स्थापित केलन्हि। एकर मुख्यालय मुजफ्फरपुरमे छल आ एकरा सरकारसँ मान्यता छलैक।
मूंगेर, भागलपुर, पूर्णियाँक बिभिन्न भागमे नीलक खेती पसरि गेल आ बेगूसराय, सहरसा, पूर्णियाँ आ कटिहार जिलाक बिभिन्न नीलहा कोठीक ताँता लागि गेल छल। १८९६मे मंझौल, बेगूसराय, भगवानपूर, बेगमसराय, दौलतपुर आदि स्थानमे नीलक कारखाना खुजल छल। ओनासँ १८७७सँ अहि जिलामे नीलक प्रसार भऽ चुकल छल। बेगूसरायक कोठी १८६३मे बनल छल। सहरसामे चपराम, सिंहेश्वर, पथरघट, राघोपुर आदि क्षेत्रमे प्रमुख नीलक कोठी सब छल आ तहिना पुर्णियाँ आ कटिहारमे सेहो। एक्के नीलहा साहेबक कैकटा कोठी होइत छल। प्रतापगंज दिसि सेहो एकटा प्रसिद्ध कोठी छल।
तिरहूत प्लांटर्स लोकनि एकटा सैनिक टुकड़ी सेहो बनौने छलाह जकर नाम छल ‘दऽ बिहार लाइट हार्स’। १८५७–५८क सिपाही विद्रोहक समयमे जखन हिनका लोकनिकेँ तिरहूतमे शांति सुरक्षा रखबाक भार देल गेल छलन्हि तखन इ लोकनि सरकारक समक्ष अहि आशयक एकटा आवेदन देने छलाह जे हिनका लोकनिकेँ अपना हेतु एक प्रकार सैनिक संगठन करबाक अधिकार भेटैन्ह। १८६१–६२ ई. अधिकार हिनका लोकनिकेँ भेटलन्हि आ इ लोकनि ‘सूबा बिहार माउंटेड राइफिल्स’ नामक एकटा संस्था बनौलन्हि। १८८६मे ओकर नाम बदलिकेँ ‘बिहार लाइट हार्स’कऽ देल गेल। १९१४–१८क प्रथम विश्वयुद्धमे एहिसँ सरकारकेँ बहुत सहायता भेटल छलैक। १९२०मे एक कानून द्वारा एकरा ‘आक्जिलियरी फोर्स’मे परिवर्त्तित कऽ देल गेलैक।
१९म शताब्दीक अन्तिम चरणमे नीलक खेतीकेँ बड़का धक्का लगलैक। १८९६मे जर्मनीमे एकटा सिंथेटिक सस्त नीलक आविष्कार भेलैक आ संसार भरिमे प्रसिद्ध भऽ गेलैक आ एकर परिणाम इ भेलैक जे अहिठामक नीलक खेती समाप्त होमए लगलैक। नीलक दाम २५०सँ घटिकेँ १५०/- मन भगेलैक। जाहिमे नील उपजैत छलैक ताहिमे लोग तम्बाकु आ कुसियारक खेती शुरू केलक। प्लांटर्स एशोसियेसन सेहो अहि प्रकारक निर्णय लेलक। १९१४मे विश्वयुद्धक कारण जब जर्मनीसँ नील एनाए बन्द भऽ गेलैक तखन फेर साहेब लोकनिक ध्यान अहि दिसि गेलन्हि आ पुनः नीलक खेत शुरू भेल मुदा से बहुत दिन धरि चलल नहि। नीलक खेती समाप्त भेल।
III
स्वातंत्र्य संग्राम आ मिथिला:-प्राचीन मिथिलाक सीमा अंग्रेज अमलमे आबिकेँ नहि रहि गेल। अंग्रेजक आगमन कालहिसँ प्रत्यक्ष एवँ अप्रत्यक्ष रूपेँ ओकर विरोध सबठाँ शुरू भऽ गेल छल कारण हुनका लोकनिक स्वार्थ अपन साम्राज्य विस्तारमे छलन्हि, जनताक कल्याणमे नहि। तथापि शक्तिशाली होएबाक कारणे आ अहिठाम आंतरिक फूट रहबाक कारणे हुनका लोकनि जे सफलता भेटलन्हि तकरा परिणाम स्वरूप ओ लोकनि २००वर्ष धरि अहिठाम शासन केलन्हि आ १९४७मे अहि देशक पिण्ड छोड़िकेँ ओ लोकनि गेला।
मिथिलामे सिपाही विद्रोहक बाद जे विरोधक पहिल आवाज उठल छल से उएह जे चम्पारणमे किसान लोकनि नीलहा कोठीक साहबक विरूद्ध उठौने छलाह आ तिरहूतक हिसाबे ओ एकटा महत्वपूर्ण घटना भेल। ओहि विद्रोहक सूत्रकेँ महात्मा गाँधी १९१७मे चम्पारणमे पकड़लन्हि आ सत्यक संग अपन प्रयोग शुरू केलन्हि। अहि दृष्टिकोणसँ इ निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे वास्तविक अर्थमे स्वाधीनता संग्रामक श्रीगणेश गाँधीक युगमे मिथिलहिक आँगनसँ भेल। जँ कहियो महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह लाउथर कास्टल कीनिकेँ काँग्रेसक सेसनक हेतु देने छलाह तँ काँग्रेस ओकर प्रतिदान चम्पारणमे गाँधीजीकेँ नियुक्त कऽ देलक आ चम्पारणमे स्वातंत्र्य संग्रामक जे आगि पजरलसँ तातक जड़ैत रहल जातक कि भारत स्वतंत्र नहि भेल। वैशाली विदेहक गणराज्य परम्पराक अनुरूप अशोक द्वारा चिन्हित एवं शेरशाहक सुशासनसँ पदांकित चम्पारणक पवित्र क्षेत्र गाँधीजीक कर्मभूमि बनि महावीरक अहिंसाकेँ साकाररूप प्रदान केलक। १९१७–१९४७धरि गण्डकसँ कोशी आ हिमालयसँ गंगाधरिक क्षेत्रमे एकसँ एक सपूत जन्म लेलन्हि जे स्वतंत्रताक हेतु अपन प्राणक आहूति देने छलाह। कलकत्तासँ आबि प्रफुल्ल चाकी आ खुदीराम बोस सेहो अपनाकेँ अहि भूमिमे अमर केलन्हि। राष्ट्रीय संग्रामक इतिहास लिखब हमर अभीष्ट एतए नहि अछि मात्र एतबे कहबाक अछि जे स्वातंत्र्य संग्राममे मिथिला कोनो प्रांतसँ ककरोसँ पाछु नहि छल। १९१७मे जँ गाँधीजी बाट देखौलन्हि तँ १९४२मे मिथिला सेहो अपन सर्वस्व निछावर कऽ देलक हुनके आह्वानपर आ उत्तर बिहार १९४२मे सब तरहें क्रांतिकारी लोकनिक गढ़ बनल छल। सब बिचारक राजनेता मिथिलाक क्षेत्र अपन विचारक भूमिकाक निर्वाह केलन्हि आ हुनके लोकनिक सत्प्रयासे १९४७मे भारतक स्वतंत्रता प्राप्त भेल–ओहिमे मिथिलाक योगदान ओतवे छल जतवा आन कोनो प्रांतक। क्रांतिकारी दलक इतिहासमे सेहो मिथिलाक नाम प्रख्यात छैक।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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