भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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ओइनवार वंशक अंत भेलापर मिथिलामे केशव मजुमदार आ मजलिश खाँक शासन रहल। केन्द्रीय सत्ताक समाप्त भऽ गेलापर आ मुसलमान लोकनिककेँ लगातार आक्रमणसँ मिथिला छिन्न भिन्न भऽ गेल छल आ चारूकात अराजकता पसैरि गेल छल। जे जेम्हरे पेलक से तेम्हरे अपन आधिपत्य कायम कऽ लेलक आ एहियुगमे मिथिला बेसी बावू बवुआन लोकनि बढ़ती भेलैन्ह। किछु राजपूत लोकनि सेहो एहिसँ लाभ उठौलन्हि आ कैक ठाम अपन स्वतंत्र राज्य कायम करबामे सफल भेलाह। समस्त मिथिलामे हाजीपुरसँ बंगालक सीमा धरि मुसलमानी प्रभाव बढ़ि चुकल छल आ मुगल साम्राज्यक स्थापना धरि करीब–करीब इएह स्थिति बनल रहल। एहिठाम मुगल साम्राज्यक स्थापना हम बाबरक समयसँ नहि लऽ कए १५५६ यानि अकबरक समयसँ लैत छी कारण बाबर द्वारा स्थापित राज्य तँ राज्ये मात्र रहल आ हुनक पुत्र ओहि राज्यकेँ जोगा नहि सकलाह। नतीजा भेल जे बिहारेक शेरशाह मुगल साम्राज्यकेँ नस्तनाबूद केलन्हि आ अपन सत्ता स्थापित करबामे समर्थ भेलाह। शेरशाहक एकटा उत्तराधिकारी सिक्का तिरहूत भेटल अछि आ एकटा मैथिली लिपिक अभिलेख सूर्यगढ़ा (मूंगेर)सँ। अकबरक शासन भेलाक बाद जे परिवर्त्तन भेल तकर मिथिलापर स्वाभाविक रूपें पड़ल।
खण्डवला वंशक सम्बन्धमे कहल जाइत अछि जे हिनका लोकनिकेँ मुगल सम्राट अकबरसँ समस्त मिथिलाक राज्य भेटल छलन्हि। दरभंगा राजक इतिहास विस्तृत रूपे डॉ. जटाशंकर झा शोध कएने छथि आ एहि दृष्टिकोणें हुनक “हिस्ट्री ऑफ दरभंगा राज” आ “महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह” पठनीय ग्रंथ अछि। खण्डवला वंशक संस्थापक छलाह महामहोपाध्याय महेश ठाकुर। हिनक पूर्वज मिथिलेक रहथिन्ह आ ओहिमे एक गोटए शंकर्शन उपाध्यायकेँ किछु दान खण्डवामे भेटबाक बाद ओम्हरे जाके बसि गेल छलाह। महेश ठाकुर हुनके वंशज छलाह (दशम पीढ़ी) आ जमीन जायदाद वाला रहबाक कारणे इ लोकनि उपाध्यायसँ ठाकुर (सामंती पदवी) कहबे लागल छलाह। १६म शताब्दीमे इ लोकनि मण्डला (गढ़ मण्डल–वस्तर)सँ पुनः एलाह। हिनक पितामह श्रीपति ठाकुर भर राजपुतकेँ किछु दान दऽ कए भौर गाम बसौने छलथिन्ह। एहिठाम स्मरणीय जे ओइनवार वंशक पतनक बाद जे अराजक स्थिति शुरू भेल छल ताहिसँ लाभ उठाकेँ भर राजपूत लोकनि सेहो अपन स्वतंत्र राज्य स्थापित कऽ लेने छलाह। भौरमे आबिकेँ बसला कारणे खण्डवला लोकनि ‘खरौरे भौर’ कहौलथि। एहिवंशमे विद्वानक जे एकटा परम्परा चलि आबि रहल छल तकरा अनुरूपें इ लोकनि भौरमे एकटा संस्कृत विद्या केन्द्रक स्थापना केने छलाह जत्ते देशक विभिन्न भागसँ विद्यार्थी लोकनि पढ़बालेल अबैत छलाह। महेश ठाकुरक ज्येष्ठ भाए भगीरथक कारणे भौरक प्रतिष्ठा बड्ड बढ़ि गेल छल–
“पद्म पत्रमपि यत्र दुर्लभम्,
रन्धनं भवति नेन्धनं बिना।
श्री भगीरथ गुणेन केवलम्,
भौर गौरव कथा गरीयसी”॥
गढ़ेश–नृप–वर्णन–संग्रह श्लोकक पाण्डुलिपिक अध्ययनसँ मैथिल विद्वानक जे विवरण भेटइत अछि ताहिमे महेश ठाकुरक प्रशंसनीय उल्लेख अछि। रूपनाथ मैथिलक पाण्डुलिपि गढ़ेश–नृप–वर्णनम् कऽ उपरोक्त पाण्डुलिपि पूरक थिक आ ओहि पाण्डुलिपिमे गढ़मण्डल राज्यक विवरण भेटइत अछि। रूपनाथक अनुसार महेश ठाकुर भौर ठक्कुर लोकनिक वंशजक रूपमे वर्णित छथि आ संगहि यादोरायक धार्मिक गुरूक रूपमे सेहो। महेश दलपत शाह आ रानी दुर्गावतीक समकालीन छलाह। खण्डवा, मण्डला, रतनपुर आ वस्तरमे हिनक बेस इज्जति रहैन्ह। महेश ठाकुर दुर्गावतीकेँ पुराण सुनबैत छलाह। एक दिन कोनो कारणे ओ ओतए अपन प्रिय शिष्य रघुनंदनकेँ पठौलन्हि परञ्च रघुनन्दनकेँ ओतए किछु खटपट भऽ गेलैन्ह आ ओतहिसँ गुरू शिष्य दुनू गोटए दिल्ली दिस बिदा भेलाह। ओहिठाम मुगल दरबारमे इ लोकनि अपन विद्वतासँ सम्राटकेँ प्रभावित केलन्हि आ रघुनन्दन जे फरमान प्राप्त केलन्हि से दक्षिणा स्वरूप अपन गुरूदेव महेश ठाकुरकेँ दऽ देलन्हि। महेश ठाकुरक आ तीनू भाइ दिल्लीसँ घुरिकेँ वस्तर, रतनपुर आ मण्डला दिसि चल गेला किएक तँ ओहिठाम हुनका लोकनिकेँ जागीर छलन्हि आ महेश ठाकुर असगरे फरमानक संग घुरला। मण्डला अखनो धरि महेशपुर आ तिरहूतिया टोल अछि। मैथिल परम्परामे सेहो महेश ठाकुरक राज्य प्राप्तिक उल्लेख भेटइत अछि–
जेना कि पूर्वहिं कहल जा चुकल अछि जे महेश ठाकुर जखन फरमान लऽ कए मिथिलामे राज्य करबाक हेतु पहुँचलाह तखन हुनका विरोधक सामना करए पड़लन्हि कारण एहिठामक स्वतंत्र राजपूत राजा लोकनि ताधरि स्वतंत्रताक स्वाद लऽ लेने छलाह। ओइनवारक बाद जे स्थिति उत्पन्न भेलैक तकर विवरण हम प्रस्तुत कऽ चुकल छी आ इहो कहि चुकल छी जे राजपूत लोकनि अपन प्रभाव बढ़ा लेने छलाह। तथा सरौंजा आ पररीमे पहिने हिन्दू राजा चुनचुनक राज्य छल परञ्च चुनचुनक परोक्ष भेलापर लक्ष्मी सिंह नामक एकटा राजपुत राजा ओहि क्षेत्रपर शासन करए लगलाह। ओइनवारक बबुआन लोकनि सेहो ठाम–ठाम अपन अधिकार जमौने छलाह आ १७म शताब्दीमे औरंगजेबक शासन काल धरि मिथिलामे एकटा ओइनवार शासकक विवरण (तलवार–अभिलेख–जे मिथिला भारतीमे प्रकाशित भेल अछि) भेटल अछि। एहिसँ तँ सामान्यतः इएह स्पष्ट होइछ जे महेश ठाकुरकेँ प्रारंभमे काफी मुश्किल भेल होएतन्हि। ताहि दिनमे मिथिला छोट–छोट खण्डमे बटल छल। भौर प्रधान प्रशासनिक केन्द्र छल। महेश ठाकुरक समय मिथिलाक स्थितिक वर्णन निम्नांकित अछि–
“रहै भौर क्षत्री प्रबल, वसत भौर निज ठौर
सूर समर विजयी बड़े, सब क्षत्री सिरमौर॥
अच्युतमेघ गोपाल मिलि, मारौ क्षत्री राज
निज सुत लै भागी तबै रानी नैहर राज
बहुत दिवसकेँ बाद सौं सजि आये पम्मार
युद्ध करण मिथिलेशसँ सेना अपरंपार”॥
महेश ठाकुर सब प्रकारक विरोधकेँ दबेबामे सफल भेला। एहिठाम प्रश्न इ उठइयै जे राज्य गुरू दक्षिणामे भेटल छलन्हि अथवा ओ स्वयं ओकरा प्राप्त केने छलाह। एहिपर विद्वानक बीच मतभेद अछि आ एक सिद्धांत इहो अछि जे ओ अपन विद्वतासँ मानसिंहकेँ प्रभावित कए राज्य प्राप्त केने छलाह। अकबर सेहो एहि पक्षमे छल जे कहुना चारूकात शांति बनल रहए जाहिसँ ओ अपन राज्य विस्तार कऽ सके आ तैं मिथिलाक भार महेश ठाकुरकेँ सुपुर्द कए ओ निश्चिंत होमए चाहैत छल। तिरहूतक कलक्टरक १७८९क एक पत्रसँ इ ज्ञात होइछ जे महेश ठाकुर ओइनवार वंशक पुरोहित छलाह आ ओइनवार वंशक अंत भेलापर ओ स्वयं दिल्ली जाए ओतुक्का शासककेँ सब स्थितिसँ अवगत कराए अपना हेतु राज्य प्राप्त कऽ केँ अनलन्हि। एक आ किंवदंती बुकानन पुर्णियाँ रिपोर्टमे सुरक्षित अछि। प्रिंसेपक अनुसार खण्डवला वंश मुगल साम्राज्यक अंतर्गत एक स्वायत्त राज्य छल आ ओहि राज्यक अधीन कतैको सामंत लोकनि रहैत छलाह। गोपाल ठाकुरक देल अकबरक फरमानसँ इ स्पष्ट अछि जे आंतरिक मामला मिथिला पूर्णरूपेण स्वतंत्र छल–चौधराइ आ कानूनगोय समस्त तिरहूतक हिनका लोकनिकेँ प्राप्त छलन्हि। १६५२ ई.क मजहरनामासँ सेहो स्पष्ट होइछ जे महेश ठाकुर एहिवंशक संस्थापक छलाह। औरंगजेबक समयमे एहिवंशकेँ बिहार आ बंगालक ११० परगन्ना दानस्वरूप भेटल रहैक आ संगहि खिलत आ महिमरेतिव (माँछक चेन्ह–जे दरभंगा राज्यक राजकीय चेन्ह छल)। एहिसँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे समस्त तिरहूतपर एहिवंशक प्रभाव महेश ठाकुरक समयसँ चलल अबैत छल।
महेश ठाकुर मिथिलामे खण्डवला कुलक संस्थापक छलाह एहिमे आब सन्देह नहि रहि गेल अछि। अपन राजा हेबाक अवसरकेँ चिरस्मरणीय बनेबाक हेतु ओ धौत परीक्षाक प्रथा चलौलन्हि। महेश ठाकुर मात्र एक शासकेटा नहि अपितु एक पैघ विद्वानो छलाह आ बहुत रास पोथी सेहो लिखने छलाह। कहल जाइत अछि जे मिथिलामे राज्य प्राप्त भेलाक बाद ओ गढ़ मण्डलासँ अपन देवी (कंकाली देवी)केँ सेहो ओतएसँ अनलन्हि। ओ अकबरनामाक एकटा संक्षिप्त संस्कृत संस्करण बाहर केलन्हि जे सर्वदेश वृतांत संग्रहक नामसँ प्रसिद्ध अछि। कहल जाइत अछि जे महेश ठाकुर अकबरक शासनक ३४म वर्ष एहि ग्रंथक अनुवाद कएने छलाह। बीरबलक आदेशपर इ अनुवाद भेल छल। किनको–किनको इहो मत छन्हि जे एहि अनुवादक बाद महेश ठाकुरकेँ मिथिलाक राज भेटलन्हि। सुभद्र झाक संपादकत्वमे इ पोथी प्रकाशित अछि। एहि ग्रंथसँ इ ज्ञात होइत अछि जे हिमायुँ नरहन आएल छलाह आ तिरहूत आ पूर्णियाँमे ओ जागीर सेहो देने छलथिन्ह। इ दुनू स्थानक जागीर ओ अपन भाए हिन्दालकेँ देने छलाह आ हुनका अपन जागीर ठीक कऽ कए बंगाल दिसि बढ़बाक आदेश देने छलाह। मैथिली शब्दक सेहो एहि संस्कृत पोथीमे बेस व्यवहार अछि। उदाहरणार्थ–
i) सम्यक्तया
ii) गल्ली
iii) असुस्थ
iv) तरवारि
v) सुस्थ
vi) ढ़व्य=ढ़ौआ
vii) विचीय–विचीय (बीछि–बीछि)
viii) वस्तु जातानि–
ix) हत्था जोरी–
आ एहेन बहुत शब्द ओहि संकलनमे अछि।
महेश ठाकुरक बाद हुनक द्वितीय पुत्र गोपाल ठाकुर गद्दीपर बैसलाह। कहल जाइत अछि जे ओ विद्रोही राजपूत प्रधान लोकनिकेँ दबौलन्हि। हिनके समयमे टोडरमलक राजस्व व्यवस्था लागू भेल छल। हिनका समयमे भेटल फरमानक उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। मिथिलाक आंतरिक झंझटमे इ ततेक बाझल छलाह जे जखन दिल्लीसँ हिनका बजाहटि एलन्हि तँ अपने नहि जा कए ओ अपन पुत्र हेमांगद ठाकुरकेँ पठौलन्हि जे ओतए कोनो कारणवश गिरफ्त भऽ गेलाह आ ओहि गिरफ्तावस्थामे अपन सुप्रसिद्ध एवँ अद्वितीय ज्योतिष शास्त्रक पोथी लिखलन्हि। कागज कलमक अभावमे ओतए ओ माँटिपर लिखैत छलाह आ जखन राजाकेँ एकर सूचना भेटलन्हि तँ राजाक पूछलापर ओ कहल थिन्ह जे एक हजार वर्ष धरि कहिया–कहिया ग्रहण लागत तकरे हिसाब ओ लिखि रहल छथि। ‘राहू पराग पंजी’ नामे इ ग्रंथ प्रचलित अछि, आ ओहिमे लिखल अछि–
“खण्डवला कुल तरणेर्गोपालादापयं गौरी
हेमाङ्गद सतनुते पंजी (!) राहू परागस्य”।
राजा हिनकासँ प्रसन्न भऽ हिनका मुक्त कए देल आ तिरहूत राज्यक जे बकिऔता छल सेहो माफ कऽ देलक। हेमाङ्गद तकर बादसँ पढ़वे–लिखबेमे अपन समय व्यतीत करे लगलाह। गोपालक बाद शुभंकर ठाकुर शासक भेलाह।
शुभंकर ठाकुरक नामपर दरभंगा लग अखनो शुभकंरपुर अछि। इ एक पैघ विद्वान आ लेखक सेहो छलाह। ओ भौरमे अपन राजधानी स्थापित केलन्हि किएक तँ एहिठाम पहिने भर राजपूत लोकनिक प्रधानता छल। हुनका बाद हुनक पुत्र पुरूषोत्तम ठाकुर शासक भेला। हिनक बजाहटि मुगल राजस्व पदाधिकारीक ओहिठाम भेल छलन्हि आ राजस्व पदाधिकारी दरभंगाक किला घाटमे ठहरल छलाह। ओहि पदाधिकारीकेँ मुगलशासकक हाथे सजा भेटलैकि। हिनकहि शासनकालमे तिरहूतक दूटा ब्राह्मणकेँ मुगल दरबारमे पुरष्कार भेटल छलैक। पुरूषोत्तमक बाद हुनक सतभाय नारायण ठाकुर राजा भेलाह। नारायण ठाकुरक समयमे दू फरमान भेटल छ्लैक जाहिसँ दूटा गामक न ननकार प्राप्त भेल छलन्हि–सरसो (परगन्ना भौर) आ बिजिलपुर (परगन्ना वेराय)। भखारा परगन्नाक स्थितिकेँ सुधारबामे हिनक विशेष हाथ छलन्हि आ १६४५ तक ओ राज्य करैत रहलाह। तकर बाद सुन्दर ठाकुर राजा भेलाह। राज्यक बटबाराक संकेत भेटइत अछि। एहिकालमे शाहजहाँक शासन छल आ हकीकत अली नामक एक व्यक्ति दरभंगाक नवाब छलाह।
“ल सं ५०९ श्रावणवदि १४ खौ पुनः परमभट्टारकाश्व
पति गजपति नरपति राज्य त्रयाधिपति
सुरत्राण शासत शाहजहाँ सम्मानित नओवाव
हकीकत खाण संभुज्यमान तीरभुक्त्यंतरित, स्स्
तीसाठतया संलग्न झोरिया ग्रामे....।
हिनके शासन कालमे मैथिल रघुदेव शाहजहाँक विरूदावली बनौने छलाह। सुन्दर ठाकुरक बाद महिनाथ ठाकुर राजा भेलाह। ओ पलामू आ मोरंगमे मुगल सम्राटक सहायता केने छलथिन्ह जकर सबूत उपलब्ध अछि। सुन्दर ठाकुर सुन्दरपुर मोहल्ला बसौलन्हि आ भालपट्टीमे सुन्दर सागर पोखरि खुनौलन्हि। एहि पोखरिक नाम रामकविक आनन्द विजय नाटिकामे भेटइत अछि। सुन्दर ठाकुर देखबामे बड्ड सुन्दर छलाह–
“अरविन्द विनन्दित सुन्दर लोचन
सुन्दर ठक्कुर सुन्दरता।
मदनेन समं विधिना तुलिता
कलिता मिथिलैक पुरन्दरता।
तव खण्डवला कुल मण्डन भूप।
सदा मतिरस्तु मुकुन्द रता
नैने नगरे निले कमलापर
वारिधि मंथन मन्दरता”–
महिनाथ ठाकुरक समयक एकटा औरंगजेबक फरमान सेहो उपलब्ध अछि। महिनाथ ठाकुरक काजसँ प्रसन्न भऽ मुगल सम्राट हिनका आ राज्य देलथिन्ह–
सदर जमीन्दारी सरकार तिरहूत (तराइक संग)–१०२ परगन्ना
महिनाथ ठाकुरकेँ बेतियाक राजा गजसिंहसँ सेहो झंझटि भेलन्हि। मिरजा, फिदाइ आ जीवन हिनका समयमे तिरहूतमे मुगल फौजदार छल। महिनाथ ठाकुरक शासन कालमे खण्डवला कुल अपन चरमोत्कर्षपर पहुँचल छल। महिनाथ ठाकुर बेतिया (सिमरॉव)क राजा गजसिंहकेँ पछाड़लन्हि जे सुगौना पहुँचिकेँ सुगौना किलामे आराम करैत छलाह।
“धाय मिथिलाकेँ महिनाथ सिंह महाराज
बाजकेँ झपटते सुगाओंपर चढ़ि गयौ।
घेराकरि दौड़ि दरवाजेमे दरेरा लगे धरव,
लागै मुचित्यौं आगे आग सी लहरि गयो।
दौड़–दौड़ पैदल कंगुरनमे चढ़ि लागै।
लेहुकी लहरि सो सोति ताल भरि गयौ।
कहु ढ़ाल कहु तरकस तलवार डारि तौलौ।
गज सिंह खोलि खिड़की दै निकल गयो।
महिनाथ ठाकुर मैथिली साहित्यक सेहो संरक्षक छलाह। हिनके समयमे लोचनक राजतंरगिणी आ नैषध काव्यक रचना भेल छल। हिनकहि समयमे इहो निर्णय भेल जे दरभंगा राज्य भविष्यमे बटत नहि आ ओहि हिसाबे उत्तराधिकारक नियम सेहो बना देल गेल।
एकर बाद नरपति ठाकुर शासक भेलाह। दुनू भाए (महिनाथ आ नरपति)क सम्बन्ध केहेन छल से निम्नलिखित काव्यसँ स्पष्ट होएत। कालीक पूजक छलाह–
“वदन भयान कानशब कुण्डल विकट दशन धन पाँती।
फूजल केश वेश तुअकेँ कहजनि नवजलधर काँती॥
काटल माथ हाथ अति शोभित तीक्ष्ण खङ्ग कर लाइ।
भय निर्भय वर दहिन हाथ कए रहिअ दिगम्बर माए॥
पीन पयोधर उपर राजित रूधिर स्त्रवित मुण्ड हारा।
कटि किङ्किणि शब कर करू मंडित सृक बहु शोणित धारा॥
वसिअ मशान ध्यान शब उपर योगिनि गणरहु साथे।
नरपति पति राखिअ जग इश्वरि करू महिनाथ सतार्थ॥
नरपति ठाकुर कुशल योद्धा छलाह आ तलवार भजबामे बेस कुशल। पलामू आ मोरंगमे जे महिनाथ ठाकुर मुगलक सहाय्यक हेतु सेना पठौने छलाह ताहिमे ओ ओहि सेनाक नेतृत्व नरपति ठाकुरक हाथमे देने छलथिन्ह। हुनक बहादुरीसँ सम्राट सेहो बड्ड प्रसन्न छलाह। एकर विवरण कतेको ठाम भेटइत अछि। उपरला पदसँ सेहो एकर भान होइयै। नेपाल तराइमे एकटा मकवानपुर राज्य छल। ओइनवार वंशक अंत भेला इ राजा लोकनि तिरहूत राज्यक किछु हिस्साकेँ हड़पि लेने छलाह। नरपति ठाकुर हिनका विरूद्ध पटनाक सूबेदारक ओहिठाम शिकायत केलन्हि आ ओहिठाम सूबेदारक आश्वासन भेटलापर ओ आन जमीन्दार लोकनिकेँ संग लए शिकार खेलबाक बहानासँ मकवानपुर राज्यपर आक्रमण केलन्हि आ ओतुका राजाकेँ गिरफ्तार कऽ लेलन्हि। ओहि राजाकेँ पकड़िकेँ दरभंगाक फौजदारक ओतए आनल गेल। ओ मिथिलाक राजाकेँ सलाना १२०० टाका आ हाथी नजराना देव स्वीकार कैल। मुगल सम्राटक संग हिनक सम्बन्ध बढ़िया छलन्हि आ तैं हिनका समयमे खण्डवला कुलक प्रतिष्ठा बढ़ल।
नरपति ठाकुरक बाद हुनक पुत्र राघव सिंह राजा भेला। ‘ठाकुर’क स्थान ओ ‘सिंह’ पदवी लेलन्हि। उहो अपन पिता जकाँ एकटा प्रतापी शासक छलाह आ हुनका मिथिला पति सेहो कहल गेल छन्हि। बेतियाक राजा ध्रुवसिंहसँ हुनका खटपट भेलैन्ह आ संघर्ष सेहो–
“नगहु खङ्ग ध्रुवसिंह तोहि उपर यम चढ़ौ।
मिथिलापति सौवेर दिन–दिन तोहि बढ़ौ॥
तेकयत कुलवधिक एतो राघव नृप राजा।
एहि दल दलन सम्मथ भीम भारत जिमि गाजा॥
कवि कहत रामरे मूढ़ सुनु जेहि दल प्रचण्ड भैरो रहत।
ठहरे फौज जाथ इति कोन जब सरदार खाँ तेगा गहत”॥
प्रसिद्ध अफगान लड़ाकू सरदार खाँ हिनका दरबारमे छल। बिहारी लाल अपन ‘आयनी तिरहूत’मे लिखने छथि जे औरंगजेब हिनको राजाक उपाधि देने छलन्हि। किछु गोटएक मत छन्हि जे इ पदवी हुनका अलीवर्दीसँ भेटल छलन्हि। एक लाख टाका जमाक हिसाब इ तिरहूत राज्यक मुकर्ररी लेने छलाह। नवावक दिवान धरणिधरकेँ सेहो ५०,००० टाका नजराना दैत छलथिन्ह। मकवानीक राजा जखन वार्षिक नजराना देव बन्द कऽ देलन्हि तखन हुनका मकवानपुरक खिलाफ सेहो आक्रमण करए पड़लन्हि। युद्धक घोषणा होइतहुँ मकवानीक राजा हिनकासँ मेल मिलाप कऽ लेलथिन्ह आ बेसी नजराना देवाक प्रतिज्ञा केलथिन्ह। हिनका समयमे एक आ प्रसिद्ध घटना भेल। बीरू कुरमी जे पहिन का ओतए रहैन्ह तकरा ओ राजस्व पदाधिकारी बनाकेँ धर्मपुर परगन्ना पठौलन्हि। बीरू ओतए अपन एकटा किला बना लेलक आ ओहिसँ राजकेँ राजस्व पठाएब बन्द कऽ देलक। ओकरा विरूद्ध सेना पठाओल गेल आ ओहिमे वीरूक बेटा मारल गेल आ वीरू पराजित भेल। ओकरा सम्बन्धमे निम्नलिखित कहावत अछि–
“वीरनगर वीर साह का बसे कौशिका तीर
का पति राखे कौशिका का राखे रघुवीर”।
बुकाननक पुर्णियाँ रिपोर्टमे लिखल अछि जे वीरूक हाल सुनि सरमस्त अली खाँक नेतृत्वमे दिल्लीसँ सेना पठाओल गेल। पहिल बेर तँ ओ सेना पराजित भऽ गेल मुदा दोसर बेर राघव सिंहक मदतिसँ वीरू पराजित भेल। राघव सिंहक अधिकार पुनः समस्त परगन्नापर भेलैन्ह परञ्च नाथपुर आ गोराड़ी हुनकासँ लकए पुर्णियाँक राजाकेँ दऽ देल गेलैन्ह। राघव सिंह दानी आ उदार व्यक्ति छलाह आ बहुत रास मन्दिर इत्यादिक निर्माण सेहो करौने छलाह। हुनक दूटा शिलालेख उपलब्ध अछि–
राघव सिंहक बाद विष्णु सिंह शासक भेलाह। आ चार वर्ष धरि शासन कए ओ मरि गेलाह। हुनका बाद राजा नरेन्द्र सिंह राजा भेलाह। नरेन्द्र सिंहक शासन काल मिथिलामे बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। ओ बड्ड वीर छलाह। हुनका सम्बन्धमे चन्दा झा लिखने छथि–
“नृपति नरेन्द्र सिंह भेल जखन।
अरिधर कानन पसरल तखन॥
ताकि ताकि शत्रुक संघार।
कैलन्हि बहुत छात्र व्यवहार॥
कतहु जुद्धि नहि एला हारि।
अतिशय तेज तनिक तरूआरि”॥
मुसलमानसँ जखन हिनका संघर्ष भेल छलन्हि तखन नरहनक बबुआन हिनका मदति केने छलथिन्ह। नरेन्द्र सिंह आ नरहनक बबुआनक बहादुरी देखि नवाव आश्चर्यचकित रहि गेल छलाह जकर स्पष्टीकरण निम्नलिखित पद्यसँ होइछ–
“ऐसो महाघोर जोर जंग सुल्तानी
बीच झुकत बबरजंग संगर करीन्द्र हैं।
औलिया नवाव नामदार पूछै बार–बार।
ये दोनो कौन लड़त अरिवारण परीन्द्र हैं।
साहेब सुजान जैनुद्दिन अहमद खाँ सामनेयय
अजेकरत कहत कवि चन्द्र हैं।
ये तो द्रोणवारकेँशो साह के अजीत साह
आगे राघो सिंह जी के नवल नरेन्द्र हैं।
हुनका समयमे बछौर परगन्ना लऽ कए पुनः झंझट ठाढ़ भेल। बछौरक रूपनारायण इ झंझट केने छलाह। नरेन्द्र सिंह नवाव महावत जंगक ओतए जाय मुर्शिदाबादमे अपन दावी रखलन्हि परञ्च नवाव हुनकासँ अनुरोध केलथिन्ह जे ओ बछौर परगन्ना रूपनारायणकेँ दऽ देथुन्ह। राजमहल धरि सब गोटए संगहि अबैत गेलाह आ ओतए पुनः नवाव हुनकासँ आग्रह केलथिन्ह तखन नरेन्द्र सिंह एहि शर्त्तपर देबा लेल तैयार भेलाह जे ओ हुनका (नरेन्द्र सिंहक) प्रति राजभक्त रहताह आ करहिया, चिचरी आ जयनगरपर ओ कोनो प्रकारक दावा नहि करताह कारण इ सब तिरहूत राजाक सम्पत्ति छल। राजा आ नवावमे बढ़िया सम्बन्ध छलन्हि। नरेन्द्र सिंहकेँ जे सुविधा सरकार द्वारा भेटलैक तकर विवरण कम्पनीक कागज सबमे सेहो भेटइत अछि। कन्दर्पी घाटक लड़ाइक विवरण जे लाल कवि कएने छथि ताहिसँ ताहि दिनक मिथिला दरबारक ज्ञान होइछ। नरेन्द्र सिंह अपन पिताक स्मारककेँ चिरस्थायी बनेबाक कारणे सहरसा जिलामे राघवपुर (राघोपुर) नामक स्थानक स्थापना केलन्हि। मठक स्थापनाक हेतु कैक व्यक्तिकेँ दान देलन्हि। हुनक एकटा पत्नी महिषिक छलथिन्ह आ तिनके आग्रहपर ओ महिषिमे उग्रताराक मन्दिरक जीर्णोद्धार केलन्हि। हुनक दरबार विद्वानक हेतु एकटा बड़का आश्रय छल।
नरेन्द्र सिंहक पछाति प्रताप सिंह राजा भेलाह। ओ भनवारासँ राजधानी हटाके झंझारपुर अनलन्हि आ फेर ओतएसँ दरभंगा। स्थानीय परम्परामे हुनका “मिथिलेश” कहल गेल छन्हि। ताहि कालमे तिरहूतसँ बंगाल धरि चोर–डकैतक प्रभाव बढ़ि गेल छल आ कम्पनीक रेकार्डमे कहल गेल अछि जे प्रताप सिंह हिनका लोकनिकेँ मदति करैत छलाह। हिनका सजा देबाक बातपर सेहो विचार कैल गेल छल। दान देबामे इहो बड्ड उदार छलाह आ हिनक दानक कैकटा कागज सेहो भेटल अछि। हिनका समयमे फ्रान्सिस ग्रांड दरभंगा (तिरहूत)क कलक्टर छलाह। १७७४मे तिरहूतकेँ पटना प्रोविनसिअल....कौंसिलक अंतर्गत कऽ देल गेल।
१७७१मे नेपालक पृथ्वीसिंह जे भारत सरकारसँ समझौता कए कर देबाक प्रतिज्ञा केलन्हि से कर भारत सरकारकेँ राजा प्रताप सिंहक माध्यमे पठाओल जाइत छलन्हि। १७७०मे राजा प्रताप सिंहकेँ वंसीटार्ट आ राजा सितावरायसँ तिरहूतक राज्य मुकर्ररी पट्टापर भेटल छलन्हि। ओहि वर्ष तिरहूतक हेतु इस्ट इण्डिया कम्पनी एकटा सुपरभाइजर सेहो बहाल केने छल। कर देबामे विलंब भेलाक कारण हिनका झंझटक सामना करए पड़लन्हि। खेआली राम आ हिम्मत अलीकेँ तिरहूतक आर्थिक हालत जाँच करबाक हेतु पठाओल गेलन्हि।
दरभंगाक राजधानी अनबाक सम्बन्धमे निम्नलिखित काव्य उल्लेखनीय अछि–
दोहा–
“नृत्यत फणिन फणानंपर खंजन पाँखि पसारि
सो लाखि सब पूछत भऽये अद्भुत बात निहारि॥
पूछत भये नेरश तब सुनु सोति सब लोग
खंजन फणि पर शोभहिं थाको कौन संयोग”॥
कवित्त–
कहत लगे है तब मंत्री प्रबल लोग सुनियं मिथिलेश जो ज्योतिषमे प्रमाण है। सरस है भूमि याको जीति न सकत कोउ वास करिबेकेँ यह विधिकेँ निशानि है॥ सुनिकेँ आनन्द उर उमगे उछाह बढ़िकेँ बोले महाराज ने सरस भरि वाणी है। हुकुम हमारी यह जाहिर जहान करो भौरा को छाड़ि यहाँ दरभंगा राजधानी है।
दोहा–
राजधानी दरभंगा भऽ सकल गुणान खानि भौरा छाड़ि भूप तब सम्मत सबके जानि”॥
विद्या प्रेमी हेबाक कारणे महाराज प्रताप सिंह आलापुर परगन्नाक जगतपुर ग्राम ओ पंडित भवानी नाथ शर्माकेँ दानमे दऽ देलैन्ह जाहिसँ ओ आन आ विद्यार्थीक खर्च चला सकैथ।
“महाराजाधिराज श्रीमत प्रताप बहादुरः–
वंग देशाटनांतराभेक भूपाले दत्तानेक
वृत्तितरा स्वीकारक स्मार्ता धर्मज्ञ तर्क
मीमाँसा वेदांतालंकार कानन पञ्चानन
धर्मधीर श्री भवानीनाथ शर्मषु वृत्तिपत्रम
ददाति सकल छात्राध्ययन निर्वाहाय
सूर्य बिहार सरकार पटनाभ्यांतर्गत
तीरभुक्त देशांतर्गत परगन्ना आलापुर
अंतर्गत जगतपुर सारैण्यक ससीमक
सकाननक ग्रामस्य श्री विष्णु प्रीति
सम्पादनायच यवनायवन साधारण
स्वसपथपूर्वक वृत्ति रक्षणामेव करिष्यति...”
हुनका बाद राजा माधव सिंह गद्दीपर बैसलाह। ओ स्थायी रूपेण दरभंगाकेँ अपन राजधानी बनौलन्हि। १७८५सँ अद्यावधि हिनका लोकनिक राजधानी दरभंगा रहल अछि। खण्डवला कुलक इतिहासमे माधव सिंहक शासनकेँ बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। ओ अपन प्राचीन परम्पराक अनुसार समस्त तिरहूतपर प्रभुत्वक माँग अंग्रेजक समक्ष रखने छलाह आ चिरस्थायी बन्दोबस्तकेँ मनबा लेल तैयार नहि छलाह। एहि हेतु ओ सम्राट शाह आलम द्वितीयक दरबारमे सेहो दरखास्त देने छलाह आ शाह आलमसँ १८०० ई.मे एकर स्वीकृति सेहो भेट गेल छलन्हि। परञ्च कम्पनीक अधिकारी लोकनि हिनक बात नहि सुनल कैन्ह आ नहि शाह आलमक स्वीकृतियेकेँ मानल कैन्ह आ हिनका लोकनिकेँ जमीन्दारक दर्जा दऽ देल कैन्ह आ तहिये इ राजा दरभंगाक जमीन्दारी कहबे लागल जे १९४७ तक रहल।
१७८१ खेआली राम राजा कल्याण सिंहक डिप्टी बहाल भेलाह। राजा कल्याण सिंहसँ राजा माधव सिंहकेँ सेहो मतभेद भेल छ्लन्हि। एम्हर जखन कल्याण सिंह से झंझटि चलिते छ्लन्हि कि तामे हुनका दरभंगा सदर दिवानीक अदालतक हाकिमसँ सेहो मतभेद शुरू भऽ गेलन्हि। हुनक आदमी सबकेँ गिरफ्तार कऽ लेल गेलन्हि। राय मोहन लाल आ माधव सिंहक बीच तँ झंझट चलिये रहल छलन्हि। १७८३मे डनकनक हस्तक्षेप हिनक मामला सरियेलन्हि। दोसर एकटा झंझट आ हुनका शासन कालमे उत्पन्न भेल। सरदार खान अफगानक बेटा कराम अली अपन मृत्युसँ पूर्व अपन सब सम्पत्ति राजा माधव सिंहकेँ दानमे लिखि देने छ्लथिन्ह। १७९५मे दरभंगाक कलक्टर, दरभंगाक तहसिलदारकेँ आदेश देलथिन्ह जे ओ कराम अलीक सम्पत्तिकेँ जप्त कऽ लौथ। राजा माधव सिंह एकर विरोध केलन्हि आ ओम्हर कराम अलीक भगिना सेहो एकटा दरखास्त देलक जे कराम अलीक दानपत्र जाली थिक। अंतमे माधव सिंहक जीत भेल आ ओ सम्पत्ति हुनका भेटलन्हि। माधव सिंह उदार आ दानी छ्लाहे आ बहुत रास मन्दिरक निर्माता सेहो।
१८म शताब्दीक उत्तरार्द्धमे समस्त पूर्वी भारतक स्थिति चिंतनीय भऽ गेल छल आ समस्त क्षेत्रमे सन्यासी फकीरक बगे बनाकेँ चौर–डकैत चारूकात उपद्रव करैत छलाह। हिनका सबकेँ संरक्षण आ प्रोत्साहन मोरंगक राजासँ भेटइत छलन्हि। मोरंग आ तिरहूतक सीमा मिलैत–जुलैत छल। सन्यासी–फकीरक नेता छलाह खुर्रम शाह आ ओ ताहि दिन नेपालसँ मुक्त भऽ मोरंगक एकटा गाम मटिहानीमे रहैत छलाह। तिरहूतक सीमापर इ लोकनि आतंक मचौने छलाह।
१८०४मे परगन्ना छै आ फरकीयाक तिरहूतसँ अलग कऽ कए भागलपुरमे मिला देल गेलैक। माधव सिंहक समय धरि तिरहूत एक स्वायत्त हिन्दू राज्य छल जकर अपन न्यायालय छलैक आ अपन न्यायाधीश होइत छलैक। एकर सबसँ पैघ प्रमाण इ अछि १७९४ ई.क एकटा न्यायाधीशक निर्णय संस्कृतिमे भेटल अछि जाहिमे गुलामकन्याक उपर स्वत्वाधिकारक प्रश्नपर निर्णय अछि। एहि निर्णयकेँ बड़ा महत्वपूर्ण मानल गेल आ अठारहम शताब्दीक अन्तिम चरण धरि न्यायालयक निर्णय संस्कृतमे लिखल जाइत छल तकर इ प्रमाण थिक आ गुलामक स्थितिपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि।
माधव सिंहक समयसँ दरभंगा राजक स्थिति पूर्णरूपेण जमीन्दारक स्थितिमे परिवर्त्तित भऽ गेल। माधव सिंहक पछाति छत्रसिंह महाराज भेलाह। १८१२क बाद जखन अंग्रेजकेँ नेपाल संग झंझटि भेलन्हि तखन ओ लोकनि बेतिया, पुर्णियाँ आ दरभंगाक राजा लोकनिकेँ आदेश देलन्हि जे अपन–अपन सीमाक सुरक्षार्थ ओ लोकनि प्रयत्नशील रहौथ। एहि अवसरपर छत्रसिंह अंग्रेज लोकनिकेँ साहाय्य देने छलथिन्ह। एकर कारण इ छल जे नेपाली सब तिरहूत क्षेत्रमे सेहो हुलकी–बुलकी दैत छल आ एम्हर–आम्हरसँ लूट पाट सेहो करैत छल। १८१५मे हुनका महाराज बहादुरक पदवी भेटलन्हि। छत्रसिंहक समयमे बेतिया राज आ तिरहूत राजक बीचक सम्बन्ध बढ़िया भऽ गेल छल। दुनू गोटेकेँ पटनाक पाटन देवीक मन्दिरमे भेट भेलापर स्थितिमे सुधार भेलैक। सौराठक मन्दिरकेँ छत्र सिंह पूरा करौलन्हि आ ओहिमे माधवेश्वर महादेवक स्थापना सेहो। सौराठमे ओ एकटा धर्मशाला सेहो बनबौलन्हि।
हुनका बाद महाराज रूद्र सिंह गद्दीपर बैसलाह। हुनका बाद राजा महेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। हुनके समयमे सिपाही विद्रोह भेल छल। अंग्रेजकेँ बरोबरि हिनकापर शक बनल रहैत छलन्हि। अंग्रेजक निगरानी हिनकापर रहैत रहैन्ह। नाथपुर आ पुर्णियाँक बीच डाकक व्यवस्थाक हेतु इ अंग्रेजी सरकारकेँ १६टा घोड़सवार सेहो देने रहैथ। संताल विद्रोहकेँ दबेबामे सेहो इ अंग्रेजक मदति केने रहैथ मुदा तैइयो अंग्रेजकेँ हिनकापर विश्वास नहि होइत छलन्हि। १८६०मे हिनका मरलाक बाद दरभंगा १८७८ धरि कोर्ट आफ वार्डसक अधीन रहल। ओकर बाद महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह राजगद्दीपर बैसलाह। ओ एक सफल शासक, कुशल प्रशासक, विद्या प्रेमी, विधायक आ राजनीतिज्ञ छलाह। हुनका समयमे दरभंगा राज्यक उत्तरोत्तर विकास भेल। दरभंगामे लेडी डफरिन अस्पतालक स्थापना आ खड़गपुर (मूंगेर)मे सेहो एकटा अस्पतालक स्थापना केलन्हि। काँग्रेसकेँ बरोबरि चन्दा दैत रहलाह। कलकत्ता विश्वविद्यालयकेँ ओ हृदय खोलिकेँ दान देलन्हि आ दरभंगामे राज स्कूलक स्थापना केँलन्हि। ताहि दिनमे ऐहेन कोनो शिक्षण संस्था नहि छल जहिमे मांगलापर अथवा बिनु मंगनो इ सहायता नहि देने होथि। १८८८मे काँग्रेसकेँ अधिवेशन करबा लेल इ ‘लाउपर कास्ल’ प्रयागमे कीनिकेँ देने छलथिन्ह आ सालाना १०,००० टाका चंदा तँ दैते रहथिन्ह। महात्मा गाँधीसँ सेहो हिनका पत्राचार छलन्हि।
ताहि दिनक प्रधान व्यक्ति के. एम. बनर्जी, नरेन्द्र नाथ सेन, आनन्द मोहन वोस, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आदिसँ हिनका व्यक्तिगत सम्बन्ध छलन्हि। लेजिस लेटिभ कौंसिलक सेहो इ एकटा प्रमुख सदस्य छलाह आ ओहिमे सक्रिय भाग लैत छलाह। ओ बिहार जमीन्दार सभक सभापति छलाह। ओ एक पैघ पुस्तक प्रेमी सेहो छलाह।
हुनका बाद महाराज रामेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। ओ बहुत पैघ विद्वान छलाह आ किछु दिनक हेतु मैजिस्ट्रेटक पदपर सेहो इयुक्त भेल छलाह। दरभंगा, छपरा आ भागलपुरमे ओ मैजिस्ट्रेट रहल छलाह। पाछाँ ओहिसँ त्यागपत्र दए ओ लेजिस लेटिभ कौंसिलक सदस्य बनलाह। लक्ष्मीश्वर सिंहक अमल ओ राजनगरमे रहैत छलाह। ओ सरकारक खैरखाह छलाह आ अंग्रेजक संग हिनक सम्बन्ध बढ़िया छलन्हि। सनातन धर्म सभाक ओ सर्वेसर्वा छलाह। ओ बिहार जमीन्दार सभाक आजीवन सभापति रहलाह। ओ एक धार्मिक व्यक्ति छलाह। हिन्दू विश्वविद्यालयक स्थापनामे हुनक विशेष योगदान छलन्हि। हिनके प्रयासे बिहारमे संस्कृत एशोसियेसनक स्थापना भेल छल।
हिनका बाद १९२९मे महाराज कामेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। गद्दीपर बैसितहि ओ राजनगर अपन छोट भाए कुमार साहेबकेँ दऽ देलन्हि। इ राउन्द टेबिल कंफ्रेंसमे भाग लेने छलाह। जमीन्दार सभाक सभापति इहो बनल रहलाह। १९४७मे जमीन्दार उन्मूलन भेलाक बाद आन जमीन्दारी जकाँ दरभंगा राज्यक जमीन्दारी सेहो समाप्त भऽ गेल। पटना विश्वविद्यालयमे रामेश्वर सिंह मैथिली चेयरक हेतु इ १,२०,००० टाका दान देने छलाह। संस्कृत एशोसियेसनक सभापति इ बनल रहलाह आ अंतमे अपन “आनन्दवाग पैलेस”केँ संस्कृत विश्वविद्यालयक स्थापनाक हेतु दानमे देलन्हि। संस्कृत एशोसियेसनकेँ “मिथिलेश महेश”लेक्चरशिपक हेतु सेहो दान देने छलाह। दरभंगामे मिथिला रिसर्च इंस्टीच्युटक स्थापना हिनके दानस्वरूप सम्भव भेल। विभिन्न विश्वविद्यालय, महाविद्यालय आ स्कूलकेँ दान देवाक अतिरिक्त, इ पटनामे ‘इंडियन नेशन, ‘आर्यावर्त्त’ आ ‘मिथिला मिहिर’ पत्र–पत्रिकाक स्थापना सेहो केलन्हि। राज कम्पाउंटक आधुनिकरण हिनके समएमे भेर्ल। ‘दरभंगा इम्प्रूभमेंट ट्रस्ट’क स्थापना हिनके प्रयासे भेल छल। अम्हुबर १, १९६२केँ हिनक मृत्यु भेलन्हि आ खण्डबला कुलक परम्पराक सूर्यास्त ओहि दिन भेल हुनकासँ तीन वर्ष पूर्वहिं हुनक छोट भाए (कुमार साहेब)क मृत्यु भऽ चुकल छलन्हि जाहिसँ बड्ड दुखी रहैत छलाह। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंहकेँ कोनो संतान नहि छलन्हि आ तैं ओ अपना मरबासँ पूर्व एकटा “विल” बना देने छलाह जकर एक्जीक्युटर भेला पटना उच्च न्यायालयक भूतपूर्व न्यायाधीश पंडित लक्ष्मीकांत झा जे सम्प्रति काज कऽ रहल छथि। राजा बहादुर विशेश्वर सिंह (कुमार साहेब)क तीनटा पुत्र छथिन्ह कुमार जीवेश्वर सिंह, कुमार यज्ञेश्वर सिंह आ कुमार शुभेश्वर सिंह। अहिमे कुमार शुभेश्वर सिंह अपन पितीक परम्पराक निर्वाह करबाक प्रयासमे प्रयत्नशील छथि आ सभ तरहे सामाजिक आ सांस्कृतिक कार्यमे भाग लैत छथि। महेश ठाकुरक स्थापित खण्डवला कुलक इतिहास मिथिलामे ओतवे महत्वपूर्ण जतवा कर्णाट वंशक आ ओइनवार वंशक। अहि तीनू वंशमे सभसँ बेसी दिन शासन केलन्हि खण्डवला कुलक लोग। (खण्डवलाक इतिहासक हेतु देखु हमर निबन्ध–“द खण्डवालज आफ मिथिला” जाहिमे माधव सिंह धरि पूर्ण विवरण उपलब्ध अछि।)
अध्याय–१०
मिथिला आ नेपाल
नेपाल शब्दक उद्गम एखन धरि रहस्यमय अछि। अति प्राचीन कालसँ नेपालक इतिहास मिथिलाक इतिहास संग निकटतम रूपें संबंधित अछि। मिथिला एहेन स्थान रहल अछि जाहिठाम नाना प्रकारक धार्मिक आन्दोलन एवँ दर्शनक उत्पत्ति भेल छैक आ नेपाल ओहि आन्दोलन सबकेँ उर्वरा शक्ति देलकै जाहिसँ वो आन्दोलन सब पुष्पित वो फलदायक भेल। नेपालमे आर्यत्वक विकास मिथिले बाटे भेलैक। एहिठाम हम मिथिला आ नेपालक मात्र राजनैतिक सम्बन्धक चर्चा करब।
किरातः- भूतकालक कुहेसक मध्य नेपालक प्रारंभिक इतिहासक विषयमे किछु विशेष ज्ञात नहि अछि। ई.पू. ५९०सँ ११०ई. धरि नेपाल किरात संस्कृतिक प्रधान केन्द्र छल। किरातक वर्णन शुक्ल यजुर्वेदमे आएल छैक। इहो कहल जाइत छैक जे अति प्राचीन कालसँ किरात लोकनि पूर्वी नेपालमे रहैत जाइत छलाह। ‘किराते’ शब्द जंगली अनार्य जातिकेँ सूचित करैछ जे पहाड़पर एवँ भारतक उत्तरपूर्वी भागमे रहैत छलाह। सिल्वाँ लेवीक विचार छन्हि जे किरातक उत्पत्ति मंगोलसँ भेल छल आ दुनू एक्के छलाह। महाभारतसँ ज्ञात होइछ जे जखन अर्जुन हिमालयमे तपस्या करैत छलाह तखन महादेव किरातक भेषमे अर्जुनक परीक्षा लेने छलाह। महाभारतक वनपर्वमे एकटा किरातपर्व सेहो अछि आ यजुर्वेद शतरूद्रीयसँ सेहो एहिपर प्रकाश पड़इयै। भारतक उत्तरी पूर्वी सीमा सेहो किरात संस्कृतिसँ सम्बन्धित छल। ओ सब पूर्वी हिमालयक वासी छलाह। अपन दिग्विजयक क्रममे भीमकेँ विदेह देश छोड़लाक पश्चात किरात सबसँ भेंट भेल छलन्हि। किरात लोकनि पीअर रंगक होइत छलाह। लेभीक अनुसार किरातक सम्पर्क चीन आ म्लेच्छसँ सेहो छलन्हि। रामायणसँ सेहो प्रमाणित अछि जे किरात लोकनि पीअर रंगक होइत छलाह। विष्णु पुराण एवँ मार्कण्डे पुराणसँ ज्ञात होइछ जे इ लोकनि पूर्वी भारतमे रहैत छलाह। वो हिमालयक दक्षिणी मार्गपर सम्पूर्ण उत्तर–पूर्वी भारतमे, नेपालसँ सटले उत्तरी बिहारमे आ गंगाक उत्तरी भागमे बसि गेल छलाह। इ उएह प्रदेश छल जाहि मध्यसँ चीनक व्यापार भारतक गंगावर्ती धरातलसँ होइत छलैक। नेपाल–मिथिलाक संस्कृतिक इतिहासमे हिनका लोकनिक महत्वपूर्ण स्थान छैक। प्रारंभमे संभवतः किरात लोकनि नेपालक स्थानीय राजवंशी छलाह।
नेपालपर किरात लोकनिक राज्य बहुत दिन धरि छलन्हि। वो लोकनि ई.पू, ६००सँ संभवतः नेपालपर राज्य करैत छलाह। हिन्दू संस्कृतिक विकासमे वो नेपालमे भारतीय मंगोलियनक प्रमुखताक हेतु सब पृष्ठाधार बनौलन्हि। प्रायः ई.पू.३१२मे जखन संभूत विजय मरि गेला तखन जैन धर्मावम्बीमे विभाजन भेल आ तकर पश्चात उत्तर भारतमे बारह वर्ष धरि अकाल रहलैक। भद्रवाहु नामक एक जैन साधु अकाल भेलापर दक्षिण दिसि चल गेला आ अकाल समाप्त भेलापर घुरला। जैन धर्मसँ छुटकारा लए ओ अपन शेष जीवन व्यतीत करबाक हेतु नेपाल चल गेला। जैनी सबहक जुटान पटनामे भेल आ हुनका तकबाक हेतु स्थूलभद्र नेपाल गेला आ ओतए हुनकासँ चौदह पर्व पओलन्हि। गौतम बुद्धक जन्म तँ नेपाल क्षेत्रमे भेल परञ्च ओ नेपाल भ्रमण केने छलाह अथवा नहि से कहब कठिन। अशोकक प्रयाससँ नेपालमे बौद्ध धर्मक प्रसार भेल। कहल जाइछ जे कौटिल्यकेँ सेहो नेपालक पूर्ण ज्ञान छलन्हि। अशोकक समकालीन नेपालमे छलाह स्थुमिको। नेपाल उनक हेतु विशेष प्रसिद्ध छल। लुम्बिनीमे अशोक ४८ गोट स्तूपक निर्माण करौने छलाह आ स्थुमिकोक शासन कालमे वो स्वयं नेपालो गेल छलाह। अशोकक समयमे नेपालक शासन किरात लोकनिक हाथमे छलैक। अशोकक पुत्री आ जमाय नेपालमे छलाह। अशोकक बादो दशरथक प्रभाव नेपालमे बनल छलैक। नेपाल आ मिथिलाक सम्पर्क मौर्य साम्राज्यक ह्रासक समय धरि बनल छलैक। शूंग कालक मुद्रा पश्चिमी नेपालसँ प्राप्त भेल अछि जाहि आधारपर इ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे शुंग लोकनिक एक प्रकारक दुर्बल नियंत्रण नेपालपर छलन्हि। कुषाण लोकनिक शासन चम्पारण धरि छल आ तिरहूतोपर हुनका लोकनिक प्रभाव छलन्हि। नेपालपर कुषाण शासन हेबाक समर्थन स्वर्गीय जायसवाल महोदय केने छथि। कुषाण मुद्राक पता काठमाण्डु लग सेहो लगलैक अछि तैं जायसवाल महोदयक विचारकेँ मान्यता भेटइत छैक। ‘रधिया’ नामक ग्रामसँ सेहो कतेक रास ताँमाक मुद्रा विम कैडफिसेज आ कनिष्कक भेटल छैक आ जँ एहि प्रमाणपर किछुओ विश्वास कैल जाइक तँ कुषाण शासनक प्रमाण सिद्ध होइत छैक।
कैक शताब्दी धरि नेपालपर शासन करैत काल किरात सबकेँ जखन–तखन अनायास विड़रो सबसँ संघर्ष करए पड़लन्हि। राजनैतिक अस्थायित्वक रहितहुँ ओ सांस्कृतिक जीवन आ राजनीतिक नियमक स्थापनामे बहुत किछु केलन्हि। किछु विद्वानक मत छन्हि जे इण्डो मंगोलाइड सब सर्वप्रथम भारतपर शासन केलन्हि आ तब नेपाल गेला। सुसंस्कृत इण्डो मंगोलाइडक रूपमे नेपालक नेवारक उल्लेख भेल छैक। नेवार लोकनि प्रायः ई.पू. तेसर शताब्दीमे एला। ताधरि अशोक पाटनमे बहुत रास बौद्ध चैत्यक निर्माण कऽ चुकल छलाह। तहियासँ ओहि क्षेत्रमे बौद्ध धर्मक प्रसार बनले रहल आ बादमे महायान सम्प्रदायक पद्धति ओ विचार सेहो बिहारेसँ ओतए गेल। ओहिठामक शैव, शक्ति आ वैष्णव धर्मक सम्बन्धमे सेहो इएह कहल जा सकैत अछि। इ सभ आंशिक रूपमे उत्तरी बिहारक आरंभक मंगोलाइडक प्रतिक्रिया स्वरूप छल। आर्यीकरणक पूर्व मिथिला सेहो किरात संस्कृतिक प्रधान केन्द्र छ्ल। इण्डो मंगोलाइड एकटा सामूहिक संस्कृतिक विकासमे पैघ योगदान देलन्हि।
११०ई.क आसपास किरात वंशक अंत नेपालमे भेल आ तखनसँ लऽ कए २०५ ई. धरि नेपालक इतिहास अन्धकारपूर्ण अछि। एहि बीच कोनो लिखित प्रमाण नहि भेटइयै। गुणाढ़यक ‘बृहत्कथा’मे नेपाल देशक शिव नामक नगरमे राजा यशकेतुक शासन करबाक उल्लेख भेटइयै। कखन आ कोन प्रकारे किरात लोकनिक ह्रास भेल से हमरा लोकनि नहि जनैत छी आ ने तकर कोनो ठोस सबुते भेटइत अछि। इहो कहल जाइत अछि जे ‘निमिष’ नामक एक गोट राजा नेपालमे विजय प्राप्त केने छलाह आ निमिष राजवंश करीब १४५ वर्ष धरि ओतए शासन केने छलाह आ एहि वंशमे पाँच गोट राजा भेल छलाह– निमिष मनाक्ष, काकवर्मन, पशुप्रेक्ष देव, आ भास्कर वर्मन। एहि राजवंशक समयमे आर्य लोकनिकेँ नेपालमे शरण भेटलन्हि। पशुप्रेक्ष देव नेपालमे पशुपतिनाथक मन्दिरक स्थापना केलन्हि आ भारतसँ आर्यसबकेँ अनलन्हि। एकर बाद नेपालमे लिच्छवी वंशक शासन शुरू होइत अछि।
लिच्छवी वंशक इतिहास:- लिच्छवीक सम्बन्ध मनु लिखैत छथि–
(एहि सम्बन्धमे देखु हमर “व्रात्यज इन एंसियेंट इण्डिया”)
लिच्छवी लोकनिक सम्बन्ध नेपालसँ बड्ड घनिष्ट छलैक। किछु विद्वानक विचार छन्हि जे इहो लोकनि मंगोलाइडसँ अद्भुत छलाह। नेपालक मल्ल, खस आदिक कोटिमे मनु लिच्छवी (निच्छवी)केँ रखने छथि। लिच्छवी लोकनिक प्रभाव मिथिलामे अत्यधिक विकसित छलैक आ ओतहिसँ इ लोकनि नेपाल धरि अपन शक्तिक प्रसार केलन्हि। नेपालमे किरात शासनक अवसान भेलापर सोमवंशी एवँ सूर्यवंशी लोकनिक शासनक संदिग्ध प्रमाण अछि। निमिष वंशकेँ सोमवंशी कहल गेल अछि आ ओकर बादे सूर्यवंशी राज्यक स्थापना भेल।
लिच्छवी लोकनि निमिष वंशकेँ उखाड़ि फेकलन्हि आ तकर बाद लगभग ५००वर्ष धरि नेपालपर शासन केलन्हि। नेपाली संवत जे १११ई.सँ आरंभ छैक सैह संभवतः लिच्छवी लोकनिक राज्यारोहणक संकेत दैत अछि। ओहुना अखन इएह मान्य अछि जे लिच्छवी लोकनि नेपालमे इस्वी सन् प्रथम शताब्दीक समीप अपन साम्राज्यक स्थापना केने छलाह आ अपन संवतक प्रारंभ सेहो। सूर्यवंशी शासनक स्थापनाक पश्चाते नेपालमे यथार्थ एतिहासिक कालक प्रारंभ मानल जाइत अछि। दुनू राजवंश मिथिलासँ आएल छल एहि सब राजवंशक समयमे नेपाल आ मिथिला नियमित रूपें राजनैतिक आ साँस्कृतिक सन्दर्भ बनल रहलैक। प्रथम ऐतिहासिक राजा भेलाह जयदेव। हुनका आ जयदेव द्वितीयक बीचमे 33टा राजा भेल छलाह।
समुद्रगुप्तक समयमे नेपाल गुप्त साम्राज्यक चाङ्गुरमे पड़ल छल। प्रयाग प्रशस्तिसँ एकर स्प्ष्टीकरण होइछ– नेपालक सीमांत शासकक सेवा प्राप्त करबाक संदर्भ अछि। सूर्यवंशी लिच्छवी कोनो शासक नेपालमे तखन रहल होएताह जनिका हेतु “प्रत्यन्त नेपाल नृपति” शब्दक व्यवहार कैल गेल अछि। मिथिलासँ नेपाल धरि तखन लिच्छवी लोकनिक विस्तार छलन्हि आ समुद्रगुप्त लिच्छवी दौहित्र छलाह तैं एहि घटनाकेँ मात्र घरेलु घटना मानल जा सकइयै। एहि युगमे नेपालमे वैष्णवबादक प्रवेश भेल। मान देवक चंगुनारायण मन्दिरक शिलालेख एवँ आन–आन शिलालेखसँ इ ज्ञात होइछ जे लिच्छवी राजा लोकनि बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, शाक्त आदि सबकेँ प्रोत्साहन दैत छलाह। नरेन्द्र देवक शासन कालमे मत्स्येन्द्र नाथ नामक संप्रदायक प्रचलन भेल। लिच्छवीक समयमे महायान शाखा सेहो अपन आकार ग्रहण केलक। लिच्छवी लोकनि ३५०सँ ८९९ धरि शासन केलन्हि–बीचमे मात्र अंशुवर्मन आ जिश्नुगुप्त छोड़िकेँ जे स्वतंत्र शासन केने छलाह।
अंशुवर्मन:- महासामंत अंशुवर्मन सातम शताब्दीक पूर्वार्द्धक एकटा महत्वपूर्ण शासक भेल छथि। वो अपनाकेँ महासामंत कहने छथि। वो बेश शक्तिशाली शासक छलाह आ तराइ राज्यक विशिष्ट भागकेँ अपना राज्यमे मिला लेने छलाह। अपन राज्यक विस्तार ओ बेतिया धरि कऽ लेने छलाह जतए हुनक साम्राज्यक सीमा हर्षक साम्राज्यसँ मिलैत छल। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य चन्द्रवर्मन एवँ नालन्दा विश्वविद्यालयक प्रसिद्ध शिक्षक अंशुवर्मनक दरबारक शोभा बढ़ौने रहथिन्ह। अंशुवर्मन जाहि नेपाल राज्यक स्थापना केलन्हि ताहि परम्पराकेँ जिश्नुगुप्त रखलन्हि आ बढ़ौलन्हि। ६४३मे अंशुवर्मनक मृत्युक पश्चात नरेन्द्र देवक नेतृत्वमे नेपालमे लिच्छवी शासनक पुनर्जन्म भेलैक।
लिच्छवी शासन नेपालमे किछु अवधि धरि रहलैक एकर प्रमाण हमरा मंजूश्री मूलकल्पसँ भेटइत अछि–
“भविष्यति तदाकाले उत्तरां दिशिमाश्रृतः।
नेपाल मण्डले ख्याते हिमाद्रे कुक्षिमाश्रिते॥
राजा मानवेन्द्रस्तु लिच्छवीनां कुलोद्भवः।
सोऽपि मंत्रार्थ सिद्धस्तु महाभोगी भविष्यति॥
पतनक कारण–
“उदयः जिहनुनोह्यंते म्लेच्छानां विविधास्तथा।
अभ्योधे भ्रष्ट मर्यादा बहिः प्राज्ञोपभोजिनः॥
शस्त्र सम्पात विध्वस्ता नेपालाधिपतिस्तदा।
विद्या लुप्ता लुप्तराजानो म्लेच्छ तस्कर सेविनः”॥
(राहुलजी द्वारा सम्पादित)
मानदेव लिच्छवी छलाह आ तकर बादो कैकटा लिच्छवी शासक भेलाह। लिच्छवी शासनक प्रसंगक उल्लेख हियुएन संग सेहो केने छथि। अंशुवर्मन ‘महासामंत’ कहबै छथि जाहिसँ मान होइयै जे जो ६३३ई.धरि लिच्छवी राजाक प्रभुत्वक स्वीकार करैत छलाह। नेपालक वैवाहिक सम्बन्ध सेहो बिहारसँ चलैत छल। सोमदेवक विवाह मौखरी भोगवर्मनक पुत्री ओ आदित्य सेनक प्रपौत्री वत्स देवीसँ भेल छलन्हि।
अहीर:-मंजूश्री मूलकल्पमे मानदेव द्वितीयक पश्चात राज विप्लवक वर्णन भेटइयै जाहिसँ ज्ञात होइछ जे नेपालमे गोलमाल भेल छल। अहीर लोकनिक आक्रमणसँ नेपाल आक्रांत छल। वंशावलीक अनुसार वो लोकनि भारतक समतलसँ आएल अहीर छलाह। हिनका लोकनि अहीरगुप्त सेहो कहल गेल छन्हि। ५००सँ ५९०क बीच एहिमे पाँचटा शासक भेलाह जाहिमे परमगुप्त पराक्रमी छलाह आ ओ लिच्छवी लोकनिकेँ शिकस्त केने छलाह। हुनक एकटा पौत्र सिमरौनगढ़मे शासन करैत छलाह। ओहि राजवंशक दोसर शाखा तराइमे शासन करैत छल। जयगुप्त द्वितीयक मुद्रा चम्पारण आ मगधमे भेटल अछि।
६४३–४४मे जिश्नुगुप्तक पश्चात अहीरवंश दू भागमे बटि गेल छल आ लिच्छवी लोकनि पुनः अपन राज्यकक स्थापना कऽ लेने छलाह। तकर बाद नेपालकेँ तिब्बतमे मिलि जेबाक संभावना बुझि पड़इयै आ मंजूश्री मूलकल्पमे एकर अप्रत्यक्ष प्रमाण अछि। इ उएह समय छल जखन तिब्बती राजा चीनी राजदूतकेँ तिरहूतपर आक्रमण करबाक हेतु साहाय्य देने रहथिन्ह आ संभव जे ओहिक्रममे नेपालपर तिब्बती प्रभाव बढ़ि गेल हो। मंजूश्री मूलकल्पसँ ज्ञात होइत अछि नेपाल शासन अन्यायी म्लेच्छपर निर्भर रहए लागल छल तथा राज्यक प्रथा समाप्त भऽ गेल छलैक। तिब्बती शासक श्राँगक विवाह अंशुवर्मनक बेटीसँ भेल छलैक। ७०३क बाद नेपाल विदेशी शासनसँ मुक्ति पेवाक हेतु माथ उठौलक। धर्मदेवक पुत्र मानदेव तृतीय विजयक चारिटा स्तंभ निर्मित केने छलाह। लिच्छवी लोकनिक पुनरागमनसँ नेपालक सवतोमुखी विकास भेल। ७०५ ई. मानदेव तृतीयक चंगुनारायण अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे ओ मल्ल सबहिक संग युद्ध कएने छलाह आ गण्डक धरि पहुँचि गेल छलाह। स्वंयभुनाथ शिलालेखसँ तत्कालीन संविधानपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि। एहिठाम इ स्मरणीय थिक जे नेपालक लिच्छवी बरोबरि मिथिलासँ सम्पर्क बनौने रखैत छलाह। शिवदेवक विवाह आदित्यसेनक पौत्रीसँ छलन्हि। शिवदेवक जयदेव गद्दीपर बैसलाह आ हुनक पदवी छलन्हि ‘परचक्रकाम’। जयदेव शक्तिशाली शासक छलाह। शिवदेव अपना शिलालेखमे अपनाकेँ–“भट्टारक महाराज लिच्छवी कुलकेतु” कहने छथि। जयदेवकेँ कश्मीर धरि विजयक श्रेय देल जाइत छन्हि। जयदेव मिथिलाक सीमा धरि अपन राज्यक विस्तार केने छलाह आ हुनक सम्पर्क पाटलिपुत्र आ गौड़सँ सेहो बढ़िया छलन्हि। ८७९–८८०मे राघव देव नेपालक संवत चलौलन्हि मुदा हिनका जयदेवसँ कोन सम्बन्ध छलन्हि से हमरा लोकनि नहि जनैत छी।
लिच्छवीक पश्चात नेपालक ठाकुरी राजवंशक सम्पर्क अपना सबहिक क्षेत्रसँ बढ़िया छलैक। नेपालमे महायानक प्रधानता छल आ ओहिठामक विद्यार्थी नालंदा (आ बादमे विक्रमशिला)मे पढ़बाक हेतु अबैत छलाह। पालवंशक समयमे इ सम्बन्ध आ घनिष्ट भऽ गेल। रमेश चन्द्र मजुमदारक मत छन्हि जे इमादपुर (मुजफ्फरपुर)मे जे पाल अभिलेख भेटल अछि ताहिपर जे संवत ४८मे पढ़ल गेल अछि से भ्रामक अछि आ ओकरा नेपाली (नेवारी) संवत–१४८ बुझबाक थिक जे १०४८ई.क बरोबरि होइत अछि आ जखन मिथिलापर महिपाल प्रथम शासन करैत छलाह। सब तथ्यक स्पष्ट अध्ययन केला उत्तर हुनक मंतव्य छन्हि जे मूर्तिक समर्पित केनिहार व्यक्ति नेपाल वासी रहल होएताह आ तैं ओ नेवारी संवतक व्यवहार कएने छथि। १०३८मे नेपाली लोकनि मिथिला बाटे विक्रमशिला गेल छलाह आ ओतएसँ अतीश दीपंकरकेँ लऽ कए तिब्बत घुरल छलाह। अतीशक नेपाल पहुँचलाक बाद नेपाली महायानमे तंत्रक प्रवेश भेलैक। एग्यारहम शताब्दीमे नेपाल आंतरिक रूपें बटि गेल तीन राज्यमे–पाटन, काठमाण्डु आ भातगाँव आ ओहिठाम केन्द्रीय सत्ताक सर्वथा अभाव भऽ गेल आ एहिसँ लाभ उठाकेँ विभिन्न राज्यक आक्रमण नेपालपर शुरू भऽ गेलैक। चालूक्य, कलचुरी, यादव, जैतुंगी आदिक शिलालेखसँ ज्ञात होइछ जे इ सब नेपालपर आक्रमण कएने छलाह। एहि स्थितिसँ लाभ उठाए नान्यदेव सेहो नेपालपर आक्रमण केलन्हि। नान्यदेव नेपालपर मिथिलाक आधिपत्य स्थापित करबामे समर्थ भेलाह। राजकरैत शासक सबकेँ पदच्युत कऽ ओ अपन राजधानी भातगाँवमे बनौलन्हि। नेपाली परम्पराक अनुसार वो काठमाण्डुक जगदेव मल्ल एवँ पाटन–भातगाँवक आनंद मल्लकेँ बन्दी बनौलन्हि आ जे सब हिनक प्रभुत्व स्वीकार केलन्हि हुनका इ माफ कऽ देलथिन्ह। नेपालमे नान्यदेवकेँ कहियो चैन नहि भेटलन्हि आ बरोबरि किछु ने किछु खटपट होइते रहलैन्ह। एकमत इहो अछि जे नान्यदेवकेँ पुनः दोसर बेर (११४१मे) नेपालपर आक्रमण करए पड़लन्हि। नान्यदेवक प्रभुत्व तँ नेपालपर बनल रहलैन्ह मुदा हुनक उत्तराधिकारी लोकनि ओकरा रखबामे समर्थ भेलाह कि नहि से एकटा संदिग्ध विषय। परम्परानुसार नान्यदेवक एकटा पुत्र नेपालपर शासन करैत छलाह। संभवतः मल्लदेव एहिठामक शासक छलाह आ भीठ भगवानपुर धरि हिनक राज्यक प्रसार छल। नरसिंह देवक समयमे मिथिला आ नेपालमे फेर खटपट भेलैक आ दुनू राज्य अलग भऽ गेल। मिथिलासँ नेपाल पृथक भऽ गेल। नान्यदेवक बादहिसँ नेपालमे कर्णाट शासन दुर्बल भऽ गेल छलैक आ नेपालमे कर्णाट शासनकेँ ठाकुरी राजा लोकनि उखाड़ि फेकने छलाह। एहि आस पासमे नेपालमे मल्ल लोकनिक उत्थान सेहो देखबामे अवइयै। इ वंश अरि मल्लदेवसँ शुरू होइछ। नीलग्रीव स्तंभ अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे धर्ममल्ल आ रूपमल्ल नेपालक मल्ल लोकनिक पूर्वज छलाह। एहि वंशक प्रमुख शासक छलाह अरि मल्लदेव।
मल्ल लोकनिक प्रभुत्वक कालमे मिथिलाक मंत्री चण्डेश्वर नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ नेपालक राजाकेँ पराजित केलन्हि। चण्डेश्वरक ‘कृत्य रत्नाकर’मे सेहो एकर विवरण अछि। वाग्मतीक तटपर एहि उपलक्ष्यमे तुलापुरूष दानक उल्लेख सेहो अछि। १३१४मे नेपालपर दक्षिणसँ (मिथिला) चढ़ाइक प्रमाण स्पष्ट अछि। हरिसिंह देव पराजित भेला उत्तर नेपाल गेला आ नेपाली शासक बिना प्रतिरोध आत्मसमर्पण कऽ देलखन्हि। हरिसिंह देवमे भातगाँवमे सूर्यवंशी राजवंशक परिपाटी स्थापित केलन्हि। ओ अपन शक्तिकेँ नेपालमे पुनः संगठित केलन्हि आ कर्णाट प्रभुत्वक स्थापना सेहो। भातगाँवसँ ओ शासन करैत छलाह आ ओतहि ओ तुलजादेवीक मन्दिरक स्थापना केलन्हि। नेपालमे हुनक सार्वभौम होएबाक निम्नलिखित अभिलेखसँ स्पष्ट अछि–
हरिसिंह देवक नेपाल आक्रमणक प्रश्नपर इतिहासकारक मध्य काफी मतभेद अछि। लुसिआनो पेतेकक विचार छन्हि जे मल्ल लोकनि स्वतंत्र छलाह आ अपनाकेँ महाराजिधराज परमेश्वर परमभट्टारक कहैत छलाह जाहिसँ इ भान होइछ जे हुनका लोकनिपर कोनो विदेशी सत्ताक शासन नहि छलन्हि। मिथिलापर चण्डेश्वर द्वारा आक्रमणक बातकेँ ओ मनैत छथि परञ्च ओ इहो कहैत छथि जे ओहि आक्रमणक फले मिथिलाक आधिपत्य नेपालपर नहि भेलैक। मिथिलासँ भागलापर ओ नेपालमे अपन राज्य बनौलन्हि तकरा वो नहि मनैत छथि। एकटा वंशावली पोथीक आधारपर इहो सिद्ध कएने छथि जे हरिसिंह देव नेपाल पहुँचलाक बाद मरि गेला आ रजगाँवक माँझी भारो हुनक पुत्रकेँ गिरफ्तार कए बंदी बना लेलकन्हि आ धन–वित्त छीनि लेलकन्हि। एवँ प्रकारे हरिसिंह देवक वंश एहिठाम समाप्त भऽ गेलैन्ह।
लुसिआनो पेतेकक मतकेँ हम ओहिना राखि देने छी जेना वो लिखने छथि। इहो कहल जाइत अछि जे ओहि समयमे पश्चिमी नेपालसँ आदित्यमल्लक आक्रमण सेहो भेल छल। तिरहुतिया जगतसिंह सेहो किछु दिनक हेतु नेपालमे राज्य केने छलाह। एक विद्वानक अनुसार हरिसिंह देवक परिवार एवँ हुनक उत्तराधिकारी हुनका बादो नेपालपर शासन केलक। उत्तराधिकारी लोकनिक नाम एवँ प्रकारे अछि–
i. मतिसिंह–(१३१५–६९)–सिमरौनगढ़क राजगद्दीपर सेहो राज्य केलन्हि आ नेपालपर सेहो। चीनक सम्राट सिमरौनगढ़ शासककेँ मान्यता दैत छलथिन्ह। शमशुद्दीन इलियास जखन नेपालपर आक्रमण करबाक हेतु बढ़लाह तखन ओ सिमरौन गढ़क शासककेँ सेहो परास्त केलन्हि आ ओहि बाटे नेपाल गेलाह। मतिसिंहक नामपर मोतिहारी अछि।
ii.शक्ति सिंह
iii.श्यामसिंह– हिनका कोनो पुत्र नहि भेल आ हुनक पुत्रीक विवाह मल्लवंशक राजकुमारसँ भेल। मतिसिंहक ओतए चीनक दूत आएल छल। चीनक सम्राटक ओहिठामसँ एकटा मोहर सेहो आएल छलैक आ शक्तिसिंहक ओहिठाम सेहो एकटा चीनी सम्राटक मोहर आ पत्र आएल छलैक। श्यामसिंहक राज्यारोहणक चीनी सम्राटक हाथे भेल छल। एहि तथ्य सबसँ प्रत्यक्ष अछि चीनी सम्राट एहि कर्णाटवंशीकेँ नेपालक सार्वभौम राजा बुझैत छलाह। अहु सम्बन्धमे पेतेकक मत अछि जे इ सब बात गलत थिक। १३८२ ई. क इथाम बहाल अभिलेखसँ स्पष्ट होइयै जे मदन रामक पुत्र शक्तिसिंह नेपाली अनेक रामक वंशज छलाह ने कि कर्णाट वंशीय। नेपालक इतिहासमे अहुखन कतेको मतभेद अछि आ रहत।
रज्जलदेवीक पति जयार्जुनक शासनकालमे जयस्थिति मल्ल द्वारा राज्य शासनमे नियम विरूद्ध विप्लव कैल गेल। जयस्थितिकेँ सिमरौनक हरिसिंह देवक वंशज कहल गेल अछि। नायक देवी आ जगतसिंहक पुत्री रज्जलादेवीसँ जयस्थिति विवाह केलन्हि। जयस्थिति जयार्जुनकेँ पराजित कए नेपालक राजा भेलाह। ओ सूर्यवंशी कर्णाटक योग्य प्रतिनिधि सिद्ध भेलाह। पृथ्वीसिंहक आधिपत्य स्थापित होयबाक समय धरि हुनक वंश शासन करैत रहल। जयस्थितिमल्लक संग रज्जल्ला देवीक विवाह भेलासँ तीनटा शक्तिशाली शासक परिवार–ठाकुरी, कर्णाट ओ मल्ल संयुक्त भऽ गेल। जयस्थितिमल्ल शक्तिशाली शासक छलाह। हुनक उत्तराधिकारी यक्षमल्ल अपन अधिकार मिथिला धरि बढ़ौलन्हि। ओ अपन प्रतिद्वन्दीकेँ हराय राज्यकेँ चारि भागमे विभक्त केलन्हि।
i. भातगाँव– अपन ज्येष्ठ पुत्र राज्यमल्लकेँ
ii. बनेपा– रणमल्लकेँ
iii.काठमाण्डु– रत्नमल्लकेँ
iv.पाटन– अपन पुत्रीकेँ।
एकर परिणाम भेल नेपालक सर्वनाश। सत्रहम शताब्दीमे नेपाल अनेकानेक जागीरमे बँटि गेल। सबसँ पूबमे किरात प्रदेश छल जाहिमे दूध कोशीक समतल, ओकर शाखा तथा सून कोशीक पूबमे तराइक किछु भाग सेहो छलैक।
मुसलमानी आक्रमणः- ऐतिहासिक सम्पर्क पकड़बाक हेतु पुनः इस्वीसन् चौदहम शताब्दीक चर्चा करए पड़इत अछि। कहल जाइछ जे अलाउद्दीन खलजी सेहो अपन प्रभाव नेपाल धरि बढ़ौने छलाह यद्धपि एकर कोनो ठोस प्रमाण हमरा लोकनिकेँ उपलब्ध नहि अछि। १३४६–४७मे बंगालक शासक शमसुद्दीन हाजी इलियास नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ एहिबातक उल्लेख स्वयंभूनाथक अभिलेखमे अछि। एहि शिलालेखक अनुसार हाजी इलियास काठमाण्डुकेँ घेर लेलक, शहरमे आगि लगादेलक, लूट पाट मचौलक एवँ मूर्त्ति सबकेँ ध्वस्त केलक। शिलालेखक तिथि अछि नेवारी ४९२=१३७१–७२इ.–मन्दिर पुनः निर्मित भेलैक आ स्तूप पुनर्स्थापित भेल आ ओकर समारोह मनाओल गेल। एहि शिलालेखक संपादन के.पी.जायसवाल केने छथि। तकर बादसँ पुनः कोनो आक्रमणक उल्लेख नहि भेटइत अछि।
मल्लक शासनः- जयस्थितिक चर्च हमर पूर्वहि कचुकल छी। हुनक उत्तराधिकारी छलाह जगज्योतिमल्ल। ओ मैथिल वंशमणिक मिलिकेँ ‘संगीत भास्कर’ नामक पुस्तकक रचना केने छलाह। हुनक उत्तराधिकारी ज्योतिमल्ल भेला आ हुनक यक्षमल्ल। यक्षमल्ल अपन अधिकारक विस्तार समतल भूमि दिसि सेहो केलन्हि। यक्षमल्लक तृतीय पुत्र रत्नमल्ल मैथिल ब्राह्मणक प्रभावक अधीन छलाह। रत्नमल्लक उत्तराधिकारी छलाह अमरमल्ल आ हुनक महेन्द्रमल्ल जे चानीक मुद्राक व्यवहार शुरू केलन्हि। ओ तिरहूतसँ हानी मंगवैत छलाह।
एम्हर आबि मिथिला आ नेपालक बीचक सम्बन्ध खूब बढ़िया नहि रहल। खण्डवला कुलक राजा महिनाथ ठाकुर अपन राज्य विस्तारक क्रममे मोरंगकेँ जीति लेलन्हि। मिथिला, तिरहूति गीतक प्रचार एहि राजाक समयमे भेल छल। नेपाल तराइक लोग सब खटपट करैत छल आ तै मोरंगक जमीन्दार सबकेँ दबेबाक हेतु औरंगजेब गोरखपुरक फौजदार आ मिथिलाक फौजदारकेँ पठौलन्हि। सत्रहम शताब्दीमे मिथिला आ नेपालमे खटपट होएबाक एकटा कारण मकवानी राज्य ते तराइ वो घाटीक उपहिमालय मार्गक सटले दक्षिण आ दक्षिण–पश्चिममे रहैक। एहिठाम एकटा प्रमुख शासक छलाह राजा हरिहर जे बड्ड महत्वाकाँक्षी छलाह। राघवसिंह जखन मिथिलाक राजा भेलाह तखन फेर एहि राज्यकेँ लऽ कए नेपालसँ खटपट शुरू भेल। नेपाल तराइक पंचमहलाक राजा भूपसिंहकेँ युद्धमे हरौलन्हि आ भूपसिंह ओहिमे मारल गेला। दरभंगाक खण्डवला राज्यक सीमा मकवानी राज्य धरि पहुँचल। मोरंग राजाक ओतए सेहो मिथिलाक धाख बनल। बंजर सब सेहो तराइक क्षेत्रमे शरणलेने छलाह आ अलीवर्दी हुनका सबहिक विरूद्ध उचित कारवाइ केने छलाह। बंजर लोकनि भपटिआटी टीसनसँ मकवानी राज्यक सीमा धरि पसरल छल।
१७६५मे नेपालमे गोरखा लोकनि शक्तिशाली भऽ गेलाह। १८०२ई.सँ नेपालक सम्पर्क इस्ट इण्डिया कम्पनीक अधिकारीसँ भेल जखन कि नेपाली लोकनि हुनकासँ भेंट करबाक हेतु पटना अबैत गेल। नेपाल आ इस्ट इण्डिया कम्पनीक सम्बन्ध मधुर नहि भऽ सकल आ दिनानुदिन झंझट बढ़ि गेल। अंग्रेज आ नेपालीक बीच युद्ध भइयैकेँ रहल आ ओ युद्ध भेल मिथिला भूमिपर। युद्धमे नेपाली लोकनि अपन अधिकारक विस्तार तराइमे छपड़ा (सारन) धरिक चुकल छलाह। चारूकात लड़ाइ प्रारंभऽ छल। सारनसँ कोशी धरि आ वीचमे मकवानी होइत अंग्रेजक एकटा टुकड़ी नेपालक राजधानी दिसि बढ़ल। लड़ाइक भीषण रूप देखि गजराज मिश्र शांतिक वार्त्ता चलौलन्हि। १८१५मे एक समझौताक अनुसार इ निश्चित भेलैक जे नेपालकेँ ओहिभूमि पर अधिकार छोड़ि देवाक चाही जाहिपर ब्रिटिशक कब्जा भऽ गेल छलैक। एहि संधिसँ कोनो संतोषजनक परिणाम नहि बहरेलैक। १८१६मे पुनः मकवानीपुर लग फेर भिड़ंत भेलैक आ गोरखा पराजित भेल १८१४ई.२८ नवम्बरक सुगौलीक संधिकेँ जखन गोरखा लोकनि बिना कोनो शर्त्त स्वीकार केलन्हि तखनहि अंग्रेज युद्धवंदी घोषणा १८१६मे केलन्हि। एवँ प्रकारे अंग्रेज आ नेपालक बीच संघर्षक मुख्य स्थल मिथिले रहल आ सुगौलीक सन्धिक पश्चात दुनू राज्यक बीचक सम्बन्ध सुधरल।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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