भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे मिथिलाक अवस्था अत्यंत दयनीय आ सोचनीय भऽ गेल छल कारण एहिठाम कोनो प्रकारक केन्द्रीय सत्ता नहि रहि गेल छल आ चारूकातसँ महत्वाकाँक्षी शासक लोकनि एहिपर अपन गिद्ध-दृष्टि लगौने छलाह। पाल लोकनिक शासन डगमगा गेल छल। कलचुरी लोकनि पश्चिमसँ हिनका सबके ठेलैत–ठेलैत मिथिलाक एक कोनमे पहुँचा देने छल। १०७७ एवँ १०७९क बीच कलचुरी शोढ़देव गण्डकीमे स्नान कए दान कएने छलाह तकर प्रमाण एकटा शिलालेखसँ भेटइत अछि। एहिसँ इ नहि बुझबाक अछि जे कलचुरी लोकनिक शासन स्थायी रूपे मिथिलापर छ्ल। एहिसँ तात्पर्य एतबे बहराइत अछि जे मिथिलाक दुर्बल राजनैतिक स्थितिसँ लाभ उठा कए विभिन्न राज्य एहिपर अपन सत्ता स्थापित करए चाहैत छलाह। सन्ध्याकर नन्दीक रामचरितमे तत्कालीन राजनीतिक विशद विश्लेषण अछि आ ओहिसँ इहो ज्ञात होइछ जे विग्रहपाल तृतीय कर्णकेँ हरौने छलाह। हुनक नौलागढ़ आ बनगामक शिलालेखक उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। पाल लोकनि सेहो एहिकालमे सबठामसँ सिकुरिकेँ मिथिलेमे आबि गेल छलाह। कुब्जिकामतमक एकटा तालपत्र पोथीमे इ लिखल अछि जे रामपालदेव नेपालक शासक छलाह जाहिसँ स्पष्ट होइछ जे विग्रहपाल तृतीयसँ रामपाल धरि मिथिला आ नेपाल पाल साम्राज्यक मुख्य केन्द्र छल।
एहि अनिश्चित स्थितिसँ जखन सब दिशक महत्वाकाँक्षी शासक लाभान्वित होइत छलाह तखन दक्षिणक महत्वाकाँक्षी लोकनि किएक मुँह तकैत रहितैथ? हमरा लोकनिकेँ विल्हणक विक्रमाँकदेवचरितसँ ज्ञात होइछ जे चालुक्य सोमेश्वर (१०४०–१०६९) मालवाक परमारक राजधानी धारकेँ जीतलैन्ह आ भोजक भोजकेँ ओतएसँ पड़ाए पड़लन्हि आ डाहलक राजा कलचुरि कर्णक शक्तिकेँ सेहो नष्ट केलन्हि। हुनक पुत्र विक्रमादित्य षष्ठम अपन बापोसँ एक डेग आगाँ बढ़लाह आ गौड़ कामरूपपर दू बेर विजय प्राप्त केलन्हि। बाप–बेटाक लगातार उत्तर भारतीय विजयक फलस्वरूप उत्तर बिहार, बंगाल आ कन्नौजक राजनीतिमे क्रांतिकारी परिवर्त्तन भेल। ओ लोकनि नेपाल धरि आक्रमण केने छलाह। विक्रमादित्य षष्ठमक पुत्र सोमेश्वर तृतीय अपन एक शिलालेखमे कहने छथि जे आन्ध्र, द्रविड़, मगध आ नेपालक शासक लोकनि हुनका पैरपर अपन माथ टेकने छलाह।
चालुक्य आक्रमण एहि बातकेँ सिद्ध करइयै जे उत्तर भारतमे ताधरि परमार आ कलचुरि वंशक पतन प्रारंभ भऽ गेल होएत। जँ से नहि होएत तँ एक्के बेर चालुक्य लोकनि आन्हर बिहाड़ि जँका समस्त उत्तर भारत एवँ नेपालकेँ कोना आक्रांत केने रहितैथ? विरोधक संभावना नहि रहला संता ओ लोकनि प्रोत्साहित भए एहि सब क्षेत्रपर अपन प्रभुत्व जमौने हेताह। हिनकहि सब संग दक्षिणसँ बहुत रास कर्णाट सेनापति लोकनि उत्तर भारतमे अवतरित भेलाह आ एक्कहि संग उत्तर भारतमे मिथिला–नेपालमे कर्णाट नान्यदेवक, बंगालमे विजय सेनक आ कन्नौजमे चन्द्रदेव गहढ़वालक उत्थान संभव भेल। गहढ़वाल लोकनि बढ़ैत–बढ़ैत गंगाक दक्षिणमे मूंगेर धरि पहुँच चुकल छलाह।
कर्णाट लोकनिक उत्पत्ति:- जनक वंशक परोक्ष भेलापर मिथिलाक अपन कोनो राजवंशक राज्य मिथिलामे नहि भेल छलैक। १०९७मे मिथिलामे कर्णाट वंशक स्थापना ताहि हिसाबे एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल जा सकइयै। मुदा इ कर्णाट लोकनिकेँ छलाह आ कोना मिथिलामे आबिकेँ बसलाह आ शासक भेलाह से पूर्ण रूपेण अखनो धरि ज्ञात नहि अछि आ हमरा लोकनि निश्चित रूपे इ नहि कहि सकैछी जे कर्णाट लोकनि अमूक आ अमूक छलाह। जेना कि हम पहिने देखि चुकल छी कि ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे मिथिला, कन्नौज आ बंगालमे करीब करीब एक्के समय तीनटा स्वतंत्र राज्यक स्थापना भेल छल आ ओ तीनू राज्य तत्कालीन राजनीतिमे महत्वपूर्ण भूमिका अदा केने छल। मिथिलाक व्यक्तित्वक पूर्ण विकास एहिवंशक शासन कालमे भेल आ तहियेसँ मिथिलाक प्रसिद्धि बढ़लैक।
कर्णाट लोकनि अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहैत छलाह। सेनवंश शासक सेहो अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहैत छलाह। हिनका लोकनिक सम्बन्धमे विद्वानक बीचमे पूर्ण मतभेद अछि। इ लोकनि कर्णाट छलाह एतवा धरि निश्चित अछि कारण नान्यदेव अपनाकेँ कर्णाट कुलभूषण कहने छथि आ सामंत सेन अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रियक कुल शिरोमणि। हेमचन्द्र राय चौधरीक मत छन्हि जे देवपालक मूंगेर ताम्रलेखमे जाहि कर्णाट लोकनिक उल्लेख अछि सम्भवतः उएह कर्णाट लोकनि बादमे चलिके अलग–अलग राज्यक स्थापना केलन्हि। एहिमतक समर्थन केनिहार एक गोटएक कथन इ अछि जे जखन मगध– मिथिलामे पालवंशक ह्रास प्रारंभ भेल तखन उएह कर्णाट लोकनि (जे अखन धरि एहि क्षेत्रमे चुप्पी साधने छलाह) ओहि स्थितिसँ लाभ उठाके विस्तार केलन्हि आ कर्णाट सत्ताक स्थापना सेहो। एकमत इहो अछि जे राजेन्द्र चोलक आक्रमणक समयमे बहुत रास कर्णाट सैनिक एम्हर आएल छलाह आ राजेन्द्र चोलक घुरि जेबाक वाद एहिठाम रहि गेलाह आ एम्हुरका राजनीतिमे सक्रिय भाग लेबए लगलाह। राजेन्द्र चोल अपनाक गंगाइकोण्ड सेहो कहने छथि जाहिसँ प्रमाणित होइछ जे विजयाभियानक क्रममे इ गंगा धरि आएल छलाह। परंतु सब साधनक सामान्य अध्ययन केला उत्तर इ प्रतीत होइछ जे राजेन्द्र चोलक अभियानक विशेष प्रभाव तत्कालीन उत्तर भारतक राजनीतिपर नहि पड़ल छल। तैं इ कहब जे हुनका संगे आएल कर्णाट लोकनि एतए बसलाह से वैज्ञानिककेँ नहि बुझि पड़इयै। देवपालसँ मदनपाल धरि जतवा जे पाल अभिलेख अछि ताहि सबमे गौड़, मालव, खस, हूण, कुलिक, कर्णाट, लाट्, चाट, भाट, आदि शब्दक मात्र औपचारिक व्यवहार अछि आ एहि शब्दसँ मिथिला अथवा बंगालक कर्णाटकेँ जोड़ब समीचीन नहि बुझाइत अछि।
कर्णाट शासक लोकनि कर्णाटसँ आबि मिथिलामे बसल छलाह इ सर्व सम्मतिसँ स्वीकृत अछि– विवाद एतवे अछि जे ओ लोकनि कखन, कहिआ आ कोना एतए आबिकेँ रहलाह आ कोन रूपे सत्ता हथिऔलन्हि। नेपाली परम्परा आ वंशावलिमे सेहो मिथिलाक नान्यदेवक वंशकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहल गेल छैक। नान्यदेव भरतक नाट्यशास्त्रपर एकटा टीका लिखने छलाह जे सर्व प्रसिद्ध अछि आ ओहिक्रममे ओ अपना सम्बन्धमे निम्नलिखित पदवी सबहिक प्रयोग कएने छथि–नान्यपति, नान्य, महासामंताधिपति धर्मावलोक, धर्माधारभूपति, मिथिलेश, एवँ कर्णाट कुलभूषण। नान्य शब्दक व्यवहार हमरा लोकनि अन्हराठाढ़ी अभिलेखमे सेहो भेटइत अछि। नान्य शब्दक उत्पत्ति द्रविड़ शब्द ‘नन्नीय’सँ भेल अछि। नान्यदेव अपन टीकामे जतवा देशी रागक उल्लेख केने छथि से सब कर्णाट शैलीक राग थिक आ ओहुसँ इ सिद्ध होइत अछि जे नान्यदेव कर्णाटकक रहल होएताह अथवा कर्णाटकसँ हुनक सम्बन्ध कोनो ने कोनो रूपे अवश्य रहल हेतन्हि। चाहे कारण जे भी रहल हो, एतवा धरि निश्चित अछि जे ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे कर्णाट लोकनि उत्तर भारतक राजनीतिमे सक्रिय रूपसँ भाग लेमए लागल छलाह।
एक मत इहो अछि जे कलचुरि गंगेयदेवक संग जे कर्णाट लोकनि सैनिकक रूपमे एतए आएल छलाह उएह सब बादमे चलिकेँ शासक भऽ गेलाह परञ्च इहो मत ने सर्वमान्य भऽ सकइयै। एहिठाम केवल एतवे स्मरण राखब आवश्यक अछि जे जँ गंगेय देवक आक्रमण मिथिलापर भेवे कैल होन्हि तँ से नान्यदेवक प्रादूर्भावसँ ६०–७० वर्ष पूर्वे भेल हेतैन्ह आ ओहना स्थिति हुनक (गंगेयदेव) सैनिक मिथिलापर अधिपत्य स्थापित केने हेथिन्ह से संभव नहि बुझाइत अछि। तैं एहि तर्ककेँ मानब असंभव।
रामकृष्ण कविक अनुसार राष्ट्रकूट लोकनि सेहो कर्णाट कहबैत छलाह आ जखन दक्षिणमे हुनक अवसान समीप एलन्हि तखन ओ लोकनि ओहिठामसँ हँटि उत्तर दिसि बढ़लाह आ कन्नौज, मिथिला आ बंगालमे अपन शासन स्थापित केलन्हि। एहि कथनक कोनो शुद्ध ऐतिहासिक अथवा परम्परागत आधार नहि अछि। राष्ट्रकूट इतिहासक मर्मज्ञ स्वर्गीय सदाशिव अनंत अल्तेकरसँ हम एहि सम्बन्ध जखन विचार विमर्श कैल तखन ओ कहने छलाह जे मिथिलामे कहियो कोनो रूपे राष्ट्रकूट लोकनिक शासन ने छल आ ने ओकर कोनो प्रमाणे अछि। तैं राष्ट्रकूटकेँ एहिठाम कर्णाटसँ मिलाएब उचित नहि बुझना जाइत अछि।
सुप्रसिद्ध फ्रेंच विद्वान सिल्वाँ लेवीक अनुसार मिथिलामे कर्णाट वंशक उत्पत्तिक सम्बन्ध सोमेश्वर चालुक्य एवँ ओकर वंशजक उत्तर भारतपर आक्रमणसँ छैक आ इएह सबसँ समीचीन तर्क बुझियो पड़इत अछि। विल्हणक विक्रमाँकदेव चरितमे एहि आक्रमणक विवरण भेटइयै आ पिता–पुत्र–पौत्रक अभियानक समय सेहो एहन अछि जे मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक स्थितिसँ मिलैत–जुलैत अछि। एहि आक्रमणक फलस्वरूपे बहुत रास कर्णाट वीर, सैनिक एवँ सामान्य लोक सब एम्हर आबिकेँ मिथिला, मगध, वंग, कन्नौज आदि स्थानमे बसि गेल छलाह। एहि आक्रमणक फले उत्तर भारतक परमार आ कलचुरि राजवंशक पराभव सेहो भेल छल। क्षेमेश्वरक चण्डकौशिकमे एकटा कथा अछि जाहिसँ मान (ज्ञात) होइछ जे पालवंशक महिपाल कोनो कर्णाटराजकेँ हरौने छलाह–
“य संश्रित्य प्रकृति गहनामार्य्या चाणक्यनीति
हत्वानंदान् कुसुमनगरं चन्द्रगुप्तो जिणाय
कर्णाटत्वं धुवमुपगतानत्व तानेव हंतुं
दादैपोघः स पुनरभवत् श्री महीपाल देवः”॥
आब इ कर्णाट राजकेँ छलाह से अखुनका स्थितिमे कहब कठिन। संभवतः कर्णाटकेन्दु विक्रमादित्य षष्ठम गौड़पर आक्रमण केने होथि। विक्रमादित्यक नागपुर प्रशस्तिसँ त एतवा स्पष्ट अछि जे कर्णाट लोकनिक सम्पर्क चेदिराज कर्णसँ सेहो छलन्हि आ ओ हिनके लोकनिक मदतिसँ मालवाकेँ पराजित केने छलाह। मुदा इ कहब एहि सहयोगक फले मिथिलामे कर्णाट नान्यदेवकेँ राज्य स्थापित करबामे सुविधा भेलैन्ह से तर्क संगत नहि बुझि पड़इयै कारण एहि दुनू घटनामे तिथिक जे अंतर अछि से ततेक व्यापक जे दुनूकेँ जोड़ब असंभव। क्षेमेश्वर एवँ विक्रमादित्य षष्ठमक आक्रमणक फले जे कर्णाट सैनिक एवँ सेनापति लोकनि एम्हर एलाह सैह राज्यक स्थापनामे समर्थ भेल छलाह कारण एम्हर आएल सेनापति लोकनि एम्हुरका स्थिति देखि एम्हरे रहि जाएब उचित बुझलन्हि कारण एम्हर रहबामे दुनू हाथमे लड्डुये–लड्डु छल। सेन वंशक संस्थापक अपनाकेँ कर्णाट कुललक्ष्मीक संरक्षक कहने छथि। विक्रमादित्य षष्ठम आ क्षेमेश्वर तृतीय अपन प्रभाव नेपाल धरि बढ़ौने छलाह। एकर बादसँ विभिन्न भारतीय राजा लोकनि नेपालपर अपन प्रभाव बढ़ेबाक प्रयास केलन्हि।
पाल लोकनि जखन कलचुरिक संग लटपटाएल छलाह तखने चालुक्य लोकनिक आक्रमणकेँ फले उत्तर भारतक कैक स्थानपर कर्णाट लोकनि पसरि चुकल छलाह आ ओहिठामक राजनीतिमे हस्तक्षेप करब शुरू कऽ देने छलाह। एहि तथ्यक प्रमाण हमरा विक्रमाँकदेव चरितसँ भेटइत अछि। १०५३ ई. क आसपाससँ चालुक्य लोकनि एम्हर सक्रिय रूपें हुलकी–बुलकी देमए लागल छलाह। १०५३ कऽ केलावाड़ी अभिलेखसँ इ ज्ञात होइछ जे सेनानायक भोगरस वंगकेँ जीति लेने छलाह। इ सोमेश्वर प्रथमक सेनानायक छलाह। चालुक्यक एकटा सामंत, जकर नाम आच छलैक, सेहो विक्रमादित्य षष्ठमक समयमे वंग धरि आक्रमण केने छलाह। एहि दुनू घटनासँ इ स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे हिनके लोकनिक संग आएल सेनापति, सेनानायक, सामन्त, सिपाही आदि व्यक्ति एम्हुरका स्थिति देखि एम्हरे रहि जाइ जाएत गेलाह। नान्य अथवा हुनक पूर्वज एहने एकटा सामंत–सेनापति रहल हेताह जे नेपालक तलहट्टी मिथिलाकेँ उपयुक्त बुझि ओहिठाम बसि गेल हेताह आ चालुक्य वंशक वापस भेलाह अपन स्वतंत्र सत्ता घोषित कए मिथिला आ नेपालक शासक बनि गेल हेताह। शासक भेला उत्तरो ओ अपनाकेँ महा सामंताधिपति कहैत रहलाह से एहिबातक द्योतक थिक जे राजा हेबाक पूर्व हुनक कि स्थिति छल।
नान्यदेव (१०९७–११४७):- हम उपर देखि चुकल छी जे चालुक्य आक्रमणक समयसँ चालुक्य सेनाक विशेष भाग मिथिला आ बंगालमे बसि गेल छल। नान्यदेव मिथिलामे कर्णाट वंशक संस्थापक भेलाह। एहिठाम इ स्मरण राखब आवश्यक जे एहि वंशक तत्वावधानमे समस्त पूर्वी भारत मिथिले एक गोट एहेन राज्य छल जाहिठाम २२७ वर्ष धरि (१०९७–१३२४) मुसलमान लोकनिक कोनो राजनीतिक प्रभाव नहि जमि सकलैक। राजनीतिक एवँ साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ नान्यदेवक शासन काल तँ महत्वपूर्ण अछिये परञ्च कर्णाटवंशक शासनकेँ स्वर्णयुग कहल गेल छैक किएक तँ एहि युगमे मिथिलामे लगभग १४००–१५०० वर्षक बाद स्वतंत्र संगठित राज्य एवँ शासन प्रणालीक स्थापना भेलैक आ कला, साहित्यक संगहि संग मैथिली भाषाक विकास सेहो भेलैक। नान्यदेव अपन दीर्घ राजकालमे पाल, कलचुरि, सेन आ गहढ़वालक पारस्परिक संघर्षक मध्य अपन दूरदर्शिता, नीतिकुशलता, एवँ वीरतासँ अपन राज्यक स्थापना केलन्हि आ उत्तरोत्तर ओकरा शक्तिशाली बनौलन्हि। ओ अपना वंशक संस्थापक संगहि संग एकटा सर्वश्रेष्ठ शासक सेहो छलाह जनिक स्थान तत्कालीन भारतीय राजा सबहिक मध्य महत्वपूर्ण छल। नान्यदेव १०९७ इ.मे सिमरौनगढ़मे राजगद्दीपर बैसलाह आ कर्णाट वंशक स्थापना केलन्हि। निम्नलिखित श्लोकसँ उपरोक्त तिथिक भान होइयै आ कहल गेल अछि जे इ लेख सिमरौनगढ़ (जे सम्प्रति नेपालमे अछि)सँ प्राप्त भेल अछि।
“नन्देन्दु विन्दु विधु सऽम्मितशाकवर्षे
सच्छ्रविणे सितदले मुनिसिद्धितिथ्याम्।
स्वा(ती) तौ शनैश्चर दिन करिवैर लग्ने
श्री नान्यदेव नृपतिर्व्यदधीत वास्तुम्”
शक् १०१९ (=१०९७ ई.)क स्वाती नक्षत्रमे शनि दिन(श्रावण सप्तमी)केँ नान्यदेव राजा भेला–याने मिथिला राज्यक स्थापना केलन्हि।
१६२८ ई. भतगाँवक राजा जगज्योतिमल्ल रचित मुदितकुवलयाश्वसँ सेहो ज्ञात होइछ जे नान्यदेवक १८ जुलाइ १०९७केँ मिथिला राज्यक स्थापना केलन्हि। मिथिला राज्यक स्थापनाक क्रममे नान्यदेवक स्थान सर्वप्रथम छन्हि आ तकर प्रमाण हमरा नेपालक परम्परा एवँ वंशावली आ शिलालेखसँ भेटइत अछि। प्रतापमल्लक शिलालेखमे सेहो एहि क्रमे नाम अछि। नान्यदेव मिथिला राज्यक स्थापना मिथिला–नेपालक सिमानपर सिमरौनगढ़मे केने छलाह आ ओहिठामसँ चारूकात पसरल छलाह।
मैथिल परम्परामे एकटा कथा सुरक्षित अछि जे एवँ प्रकारे अछि। कहल गेल अछि जे प्रारंभमे नान्यदेव नीलगिरी प्रांत (दक्षिण भारत)मे राज्य करैत छलाह आ ओतहिसँ ओ मिथिला प्रांत आएल छलाह। घुमैत–फिरैत ओ सीतामढ़ी जिलांतर्गत नान्यपुर परगन्नास्थ पुपरी ग्रामक समीप कोइली ग्राममे विश्राम केलन्हि। एकदिन ओ अपन खेमाक कातसँ एकटा विषधर सर्पकेँ जाइत देखलन्हि जाहिपर निम्नलिखित श्लोक लिखल छल–
“रामोवेत्ति नलोकेत्ति वेत्ति राजा पुरूखाः
अलर्कस्य धनं प्राप्य नान्यो राजाभविष्यति”।
परम्परा केकटा जँ देखल जाइक तँ एहिसँ इएह सिद्ध होइछ जे अलक्षित धनक प्राप्ति कए नान्यदेव मिथिलाक राजा हेताह। कहल जाइत अछि जे हुनका एहेन धन प्राप्त भेल छलन्हि जाहिसँ हुनका राज्यशक्ति अर्जन करबामे सहायता भेटल छलन्हि। ओ दक्षिणमे नीलगिरीमे राजा छलाह अथवा नहि से कहब तँ कठिन अछि मुदा एतबा धरि ज्ञातव्य जे मिथिला पहुँचलाहपर हुनका किछु अलक्षित धनक लाभ अवश्य भेलन्हि आ ओ ओहिसँ लाभान्वित भए मिथिला राज्य प्राप्त करबामे अग्रसर भेलाह। तखन मिथिलामे कोनो प्रकारक विरोधक संभावना नहि रहि गेल छल।
नान्यदेवकेँ कामरूपक धर्मपालक समकालीन कहल गेल छन्हि। धर्मपालक शासनकालमे कालिका पुराणक संकलन भेल छल आ ओहि कालिका पुराणमे सबसँ प्राचीन उल्लेख भरत भाष्यक अछि जकर लेखक नान्यदेव छलाह। ओहि कालमे मिथिलासँ बासतरिया ब्राह्म लोकनिक परिवार असम गेल छल। मिथिला ताहि दिन धरि तंत्रक प्रमुख केन्द्र बनि चुकल छल आ कालिका पुराणक संकलनक मूल उद्देश्य छल मिथिला आ असमक बीच एक प्रकारक साँस्कृतिक सम्पर्क स्थापित करब। नान्यदेव, जे कि अभिनव गुप्तक नामे सेहो प्रसिद्ध छलाह, प्रसंग के.सी.पाण्डेयक विचार छन्हि जे ओ १०१४–१५ इ.मे भेल होएताह मुदा से कोनो रूपे मान्य नहि भऽ सकइयै आ एहि प्रसंगक तर्क हम आनठाम उपस्थित कऽ चुकल छी (द्रष्टव्य–काशी प्रसाद जायसवाल संस्थान द्वारा प्रकाशित बिहारक बृहत् इतिहास–अंग्रेजीमे)।
सिमरौनगढ़ शिलालेखमे नान्यदेवक तिथि स्पष्ट अछि जकर संकेत हम पूर्वहिं दऽ चुकल छी। नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दासक एकटा बिनु तिथिक शिलालेख, जे अन्हराठाढ़ी गाममे अछि, जे पाठ निम्नलिखित अछि–
“ॐ श्रीमन्नान्य पतिर्जेता गुणरत्न महार्णवः
यत्कीर्त्यां जनितम् विश्वे द्वितीय क्षीर सागर।
मंत्रिणा तस्यन्नान्यस्य क्षत्र वंशाब्ज भानुना
दओयकारित श्रीधरः श्रीधरेणच
यस्यास्य बाल्मीकेर विजयो प्रबन्ध जलधौ
व्यासस्य चात्यद् भुत्ते वाद्यैरण वद्य गद्य
चतुरैन्यैश्च विस्तारिते अस्माकम्
क्वर्पुनग्गिरामवसरः
कोवाकारोत्यादर यद्वालबचोप्य”।
१६४८क प्रताप मल्लक शिलालेखमे नान्यदेवक वंशक क्रम एवँ प्रकारे अछि–
“आसीत् श्री सूर्यवंशे रघुकुल नृपजो रामचन्द्रो
नृपेशः तद्वंशो नान्यदेवोऽवनि पतिरभवत सुतः
गंगदेवः। तत्पुत्रोऽभून्नृसिंहो नरपतिरतुलस्तत्सुतो
रामसिंहः तज्जः श्री शक्तिसिंहो धरणिपतिरभत्
भूप भूपालसिंह तस्मात्कर्णाट चूड़ामणि
विहरियुत्सिंह देवौस्यवंशे”।
ओहिकाल राजनीतिक परिस्थितिक अध्ययनसँ हमरा लोकनि नान्यदेवक उचित मूल्याँकन कऽ सकैत छी। बंगालमे सेन वंशक स्थापना भऽ चुकल छल आ कन्नौजमे गहढ़वाल राज्य सेहो जमि रहल छल। मूंगेरक क्षेत्र पाल लोकनि सिमैटिकेँ आबि गेल छलाह। जखन पाल, सेन आ गहढ़वाल अपने–अपनेमे बाँझल छलाह तखन नान्यदेव मिथिलासँ नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ ओकरा अपन राज्यमे मिला लेलन्हि। सेन सबकेँ हरेबाक हेतु नान्यदेव गहढ़वालसँ बढ़िया सम्बन्ध रखैत छलाह आ एकर प्रमाण हमरा विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ सेहो भेटइत अछि जाहिमे लिखल अछि नान्यदेवक पुत्र मल्लदेव राजा जयचन्द्रक ओतए सम्मानित भावें रहैत छलाह। विजयसेनक देवपाड़ा शिलालेखसँ इ ज्ञात होइछ जे नान्यकेँ पराजित कए विजयसेन गिरफ्तार कऽ लेने छलन्हि। सेन आ कर्णाट वंशक वीच बरोबरि खटपट होइते रहैत छल आ पूर्वी मिथिला (सहरसा–पूर्णियाँ)क क्षेत्रमे दुनूकेँ कोनो ने कोनो रूपें झंझटि चलिते रहन्हि। एहि हेतु नान्यदेव गहढ़वाल लोकनिक संग नीक सम्बन्ध रखैत छलाह। नान्यदेव मिथिलामे मात्र कर्णाटवंशक स्थापनेटा धरि नहि केलन्हि अपितु एकरा दृढ़ सेहो केलन्हि आ समस्त मिथिलापर अपन एकक्षत्र शासन कायम केलन्हि। गण्डकीसँ कौशिकी धरि आ हिमालयसँ गंगाधरि अपन राज्यक विस्तार करबामे ओ सक्षम भेला। मिथिलाक इतिहासक संदर्भमे नान्यदेवकेँ उएह स्थान प्राप्त छन्हि जे समस्त भारतक इतिहासक संदर्भमे चन्द्रगुप्त मौर्यकेँ। जनक वंशक पश्चात् एहन प्रशस्त राज्य मिथिलामे आ कहिओ नहि बनल। ओहि समयमे मिथिलाक जे राजनैतिक स्थिति छलैक ताहिमे नान्यदेव एहिसँ बेसी किछु कइयो नहि सकइत छलाह। राज्यक स्थापनाक संगहि संग ओकरा सुदृढ़ बनेबाक हेतु ओ संगठित शासन विधानक जन्म सेहो देलन्हि।
नान्य अपनाकेँ श्रीमहासामंताधिपति, श्रीमन्नान्यपति, कर्णाटकुलभूषण, धर्माधर भूपति, राजनारायण, नृपमल्लमोहन मुरारी, प्रत्ययग्रवानिपति, मिथिलेश्वर, सामंतधिपति आदि–कहने छथि। अन्हराठाढ़ी अभिलेखमे हुनका ‘श्रीमान’ कहल गेल छन्हि। एहि सबसँ हुनक पूर्वक स्थितिक भान होइयै आ बुझि पड़इयै ओ पूर्वमे सामंत रहल होएताह आ बादमे शासक भेल होएताह। ताहि दिनक अनिश्चित राजनैतिक स्थितिमे ओ मिथिलाक व्यक्तित्वक विकास केलन्हि आ मिथिलाकेँ एकटा रूप देलन्हि। मिथिलाक चौहद्दीक परिभाषा जे हमरा लोकनि देखइत छी तकरा राज्यक रूपमे चरितार्थ उएह केलन्हि आ तैं ओ प्रशंसनीय छथि। ओ स्वयं एक पैघ कूटनीतिज्ञ एवँ सफल योद्धा छलाह। चम्पारणमे राजधानीक स्थापना करब (सिमरौनगढ़) हुनक कूटनीतिज्ञताक परिचय देने छथि। ताहि दिनमे दरद–गण्डकी क्षेत्र धरि पश्चिमक राज्य छल आ मिथिलाक सीमा ओहि राज्यसँ मिलैत छल आ ओम्हर यशः कर्णक नजरि सेहो एहि दिसि लगले छल। तैं नान्यदेव ओहि खतरासँ अपन राज्यक रक्षार्थ ओम्हरे अपन राजधानी बनौलन्हि जाहिसँ पश्चिम आ उत्तर दुनूक सुरक्षा हो। एहि विचारसँ ओ अपन राज्यक राजनीतिकेँ सेहो संचालित करैत छलाह।
नान्य जे टीका लिखने छथि ताहिमे ओ अपनाकेँ सौवीर आ मालवक विजेता घोषित कएने छथि–
“जित सौवीर वीरेण सौवीरक उदहृतः”
“लुप्तमालव भूपाल कीर्तिर्मालव पञ्चमीम्”
“बाँगलि केति कथिता मिथिलेश्वरेण”।
“श्रीरागस्यैक भूमिर्ललित मधुरवाग्भिंत
बंगाल–गौड़, प्रौढ़ प्राग्भारसारः
कुकुभमुभयथासाधयन्विश्रमुच्चैः।
संग्रामे भैरओयः प्रबिलसति
मुहुर्धूर्जरीयस्य कण्ठे, सौवीरो
ध्यायमोनं व्यधितकृतमतिः भूपतिः नान्यदेवः”॥
सौवीर, मालवा, बंगाल आ गौड़केँ पराजित करबाक श्रेय ओ अपनापर लैत छथि–सौवीर, मालवापर संभवतः ओ मिथिलेश्वर होएबाक पूर्वहिं विजय प्राप्त केने होएताह। बंगालक प्रश्न लऽ कए हुनका सेन वंशसँ झंझटि भेलन्हि तकर वर्णन उपर कऽ चुकल छी आ संभव जे अंततोगत्वा हुनका बंगाल–गौड़पर विजय प्राप्त भेल होन्हि। बंगाल आ गौड़क प्रश्नपर नान्यदेव आ विजयसेनक वीच मनोमालिन्य भेल होन्हि अथवा रहैत होन्हि से संभव। दिनेश चन्द्र सरकार सेनवंश आ कर्णाटवंशक सब तथ्यक अध्ययन केलाक पछाति एहि निर्णयपर पहुँचल छथि जे विजयसेनकेँ नान्यदेवक विरूद्ध कोनो खास सफलता नहि भेटल छलन्हि। गिरीन्द्र मोहन सरकार सेहो एहिबातसँ हमरा लोकनिकेँ अवगत करौने छथि जे सेनक मिथिलामे शासन अथवा राज्य हेबाक कोनो ठोस प्रमाण नहि अछि। देवपाड़ा शिलालेखक अध्ययनसँ एतबे प्रमाणित होइछ जे विजयसेन नान्यदेव आ राघवक घमण्डकेँ चूर केलन्हि।
मिथिलामे अपन अस्तित्वकेँ सुदृढ़ कए आ अपन चारूकात विस्तारक कोनो आशा नहि देखि नान्यदेव नेपाल दिसि अपन ध्यान लगौलन्हि। ताहि दिनमे नेपालोमे कैक गोट राज्य छल आ ओहिमे आपसमे आधिपत्यक हेतु संघर्ष होइत रहैत छल। नान्यदेव एहि स्थितिसँ लाभ उठौलन्हि आ नेपालक राजनीतिमे हस्तक्षेप करब प्रारंभ केलन्हि। नेपाली परम्पराक अनुसार ओ समस्त नेपालकेँ अपना अधीनमे केलन्हि आ नेपालक स्थानीय शासक, पाटन आ काठमाण्डुक जयदेव मल्ल आ भात गाँवक आनंद मल्लकेँ गद्दीसँ उतारलन्हि। नेपाली परंपराक अनुसार नेपालक राजवंशकेँ नान्यदेव समाप्त नहि केलन्हि–बुझि पड़इयै जे जखन ओ लोकनि नान्यदेवक सत्ताकेँ स्वीकार कऽ लेलथिन्ह तखन नान्यदेव हुनका लोकनिकेँ अपन अधीनस्थ शासक बनाकेँ छोड़ि देलथिन्ह। सामंतवादी व्यवस्थाक इ एकटा प्रमुख बात छल। नेपालक इतिहासकार दिली रमण रेगमीक अनुसार नान्यदेव सम्पूर्ण नेपालकेँ नहि जीतने छलाह आ हुनका ११४१मे फेर दोसर बेर नेपालपर आक्रमण करए पड़ल छलन्हि। नान्यक परोक्ष भेलापर पुनः ठाकुरी वंशक लोग अपन आधिपत्य बना लेने छलाह। नेपालपर नान्यदेव जे कर्णाट वंशक स्थापना केलन्हि तकरा हुनक वंशज हरिसिंह देव बादमे सुदृढ़ केलथिन्ह।
विजेता, राज्यनिर्माता, कुशल प्रशासक एवँ संगठन कर्त्ताक अतिरिक्त नान्यदेव स्वयं एक बहुत पैघ विद्वान छलाह आ भरतक नाट्यशास्त्रपर एक गोट टीका सेहो लिखने छलाह। श्रीधर दास एवँ रत्नदेव नान्यदेवक प्रधानमंत्री छलथिन्ह। श्रीधर दासक पिता बटुदास सेनक महासामंत छलाह आ श्रीधर दास सेहो महामाण्डलिक छलाह। हिनक मूल राजधानी सिमरौनगढ़ (नेपाल)मे छलन्हि आ दोसर राजधानी नान्यपुरमे। नान्यदेव ५० वर्ष धरि राज्य केलन्हि आ सब किछु सफलतापूर्वक उपलब्ध कए मिथिला राज्यकेँ एकटा स्वरूप प्रदान केलथि। मिथिला तहियासँ आइ धरि संस्कृतिक एकटा प्रधान केन्द्र बनल अछि। राजनैतिक इतिहासक महत्वक लोप भेलो उत्तर सांस्कृतिक दृष्टिकोणसँ नान्यदेवक शासनक अपन अलग महत्व अछि।
मल्ल देव:- विद्यापति अपन पुरूष परीक्षामे मल्लदेवकेँ युवराज कहने छथि परञ्च मिथिलामे कर्णाट वंशक शासन श्रृंखलामे नान्यदेवक बाद गंगदेवक नाम अवइयै तैं मल्लदेवक युवराजक संज्ञा एकटा समस्या बनि गेल अछि। सभ साधनक अध्ययन केलापर इ प्रतीत होइछ जे नान्यदेवक बाद मिथिला राज्य संभवतः दुनू भाइमे बटि गेल छल आ दुनू गोटए अपन–अपन क्षेत्रपर शासन करैत हेताह। पुरूष परीक्षाक अनुसार नान्यदेवक पुत्र मल्लदेव बड्ड साहसी आ स्वाभिमानी छलाह। ओ किछु दिन धरि कन्नौजक जयचन्द्रक ओतए छलाह आ फेर ओहिठामसँ चिक्कौर राजाक ओतए आबिकेँ रहला। मैथिली अनुश्रति इ कहल जाइत अछि जे दुनू भाएमे पटइत नहि छलन्हि आ तैं जखन गंगदेव नेपाल एवँ वंगक संग बाझल छलाह तखन मल्लदेव हुनक मदति नहि केने छलथिन्ह। जयचन्द्र मल्लदेवक वीरतासँ बड्ड प्रभावित छलाह। सहरसा जिलामे मलडीहा आ मल्हनी गोपाल मल्लदेवक नामपर बसल अछि। भीठ भगवानपुरमे मंदिरमे एकटा अभिलेख अछि जाहिमे लिखल अछि–“ॐ श्री मल्लदेवस्य”। किंवदंती अछि जे भीठ भगवानपुर मल्लदेवक राजधानी छल। भीठ भगवानपुर गंधवरिया राजपूतक केन्द्र सेहो मानल गेल अछि आ गंधवरिया परम्परामे सेहो एकटा मल्लदेवक नाम अवइयै। तैं इ कोन मल्लदेवक शिलालेख थिक से कहब असंभव।
विभिन्न तथ्यक परीक्षणक बाद हम एहि निर्णयपर पहुँचल छी जे नान्यदेवक पछाति मिथिला राज्यक विभाजन भेलैक आ ओकर पूर्वी भागपर मल्लदेवक आधिपत्य रहलैक। पश्चात मल्लदेवक वंशज सेहो एहि क्षेत्रपर शासन केलन्हि जकर अप्रत्यक्ष रूपें कनेको प्रमाण भेटइत अछि। राज्यक बटबारा भऽ गेलसँ कर्णाट वंशक प्रभाव किछु घटि अवश्य गेल होएतैक आ तैं नान्यदेवक पछाति हमरा लोकनिकेँ कर्णाट राज्यक विशेष विस्तार देखबामे नहि अवइयै।
स्वर्गीय कालिकारज्जन कानूनगोय एकठाम लिखने छथि जे १२१३–१२२७क बीच मिथिलामे कोनो कर्णाट अरिमल्लदेवक शासन छल मुदा एहिठाम स्मरणीय जे एहि नामक कोनो शासक मिथिलामे नहि भेल छथि। नेपालमे एहि नामक शासक भेलहि अवश्य परञ्च ओ कर्णाटवंशक नहि छलाह आ ने ताहि दिनमे नेपालक कोनो प्रभाव मिथिलाक कोनो भागपर छल। इहो संभव अछि जे कानूनगोय महोदय मल्लदेवकेँ अरिमल्लदेव बुझि लेने होथि। एकर कारण हमरा बुझने इ अछि जे मिथिला परम्परामे कहल गेल छैक जे नान्यक एकटा पुत्र नेपालमे शासन करैत रहथिन्ह आ चूंकि नान्यक एकटा पुत्रक नाम मल्लदेव छलन्हि तैं कानूनगोय साहेब ओहि नामकेँ अरिमल्लदेवक संगे मिझ्झरक देने होथि। तैं हम अपन एक लेखमे (जे आनठाम प्रकाशित अछि) मल्लदेवकेँ मिथिलाक एकटा विसरल राजाक संज्ञा देने छी। मल्लदेव पूर्वी मिथिलापर तँ राज्य करिते छलाहे आ संगहि नेपालक किछु भागपर सेहो भीठ भगवानपुर एकटा केन्द्रीय स्थल छल तैं ओकरा ओ अपन राजधानी बनौलन्हि कारण ओहिठामसँ ओ अपन शासन बढ़िया जकाँ दुनूठाम चला सकैत छलाह। कहल जाइत अछि जे हुनके दरबारमे स्मृतिकार वर्द्धमान उपाध्याय सेहो रहैत छलाह जनिक एकटा शिलालेख आसी (मटिआरी) (हाटी परगन्ना)सँ उपलब्ध अछि। ओ मल्लदेवक समयमे धर्माधिकरणक पदपर नियुक्त छलाह। शिलालेख एवँ प्रकारे अछि–
“जातो वंशे बिल्व पंचाभिधाने
धमाध्यक्षो वर्द्धमानो भवेशात्।
देवस्याग्रे देवयष्टि ध्वजाग्रा
रूढ़ कृत्वाऽस्थापद्वैन तेयम्”॥
भीठ भगवानपुरक मंदिर आ पोखरिसँ बहराएल बहुत रास बस्तुजात एहि बातकेँ प्रमाणित करैत अछि जे प्राचीन कालमे इ एकटा महत्वपूर्ण स्थान रहल होएत। कलात्मक वस्तुजात जे कर्णाटकालीन बुझि पड़इत अछि से ओतए प्रचुर मात्रामे बहराएल अछि आ किछु वस्तु तँ एहनो अछि जकरा अपूर्व कहल जा सकइयै। एकर विस्तृत विवरण कतेक ठाम कैल अछि। कर्णाट कालीन पुरातात्विक महत्वक बहुत रास वस्तु बहेड़ासँ सेहो बाहर भेल अछि। भगवानपुरक डीह–डाबर, पोखरि आ मंदिर विस्तारसँ देखलासँ आ सामरिक दृष्टिकोणसँ ओहिगामक चौहद्दीक अध्ययन केलासँ इ बुझना जाइत अछि जे मल्लदेव ओहि स्थानकेँ अपन राजधानी बनौने हेताहे आ ओतहिसँ ओ नेपाल आ सहरसा–पूर्णियाँ क्षेत्र धरि अपन राज्यक नियंत्रण करैत हेताह। प्राचीन कालमे सहरसा–पूर्णियाँ जेबाक रास्ता, बाट–घाट, सबटा एहि दऽ कऽ छल आ नेपालो जेबामे हुनका एहिठामसँ सुभीता होइत हेतन्हि। ओहि स्थानक उत्खनन भेलासँ ओहिपर आ प्रकाश पड़बाक संभावना अछि। जाधरि आ कोनो नवीन तथ्य हमरा लोकनिक समक्ष नहि अवइयै ताधरि मल्लदेवक ऐतिहासिकता संदिग्धे मानल जाएत। मल्लदेवक सम्बन्ध अखन आ शोधक अपेक्षा अछि।
गंगदेव:- ११४७ ई.मे नान्यदेवक मृत्युक उपरांत आ पारिवारिक कलह एवँ उपरोक्तक पछाति गंगदेव मिथिलाक राजगद्दीपर आसीन भेलाह। ओ बंगालक वल्लालसेनक समकालीन छलाह आ स्वयं एक महत्वाकाँक्षी शासक सेहो। विजय सेनक हाथे अपन पिता नान्यदेवक बेइज्जतीक बात ओ बिसरल नहि छलाह आ ओ अवसरक खोजमे छलाह जाहिसँ एकर बदला लऽ सकैथ। गंगदेव आ गाँगेयदेवक प्रश्नपर इतिहासकारक मध्य जे एकटा विवाद चलि रहल अछि ताहि दिस हम पाठकक ध्यान पूर्वहिं आकृष्ट कए चुकल छी। रामायणक पुष्पिकामे जे एकटा गाँगेयदेवक विश्लेषण भेल अछि ताहि प्रसंगमे मिथिलाक इतिहासकार उपेन्द्र ठाकुरक विचार छन्हि जे ओ गाँगेयदेव कलचुरि वंशक छलाह आ हुनका महिपालसँ संघर्ष भेल छलन्हि। परञ्च हमरा एहिठाम एहि प्रश्नपर विचार करबाक हेतु निम्नलिखित बातकेँ ध्यानमे राखए पड़त।
रामायणक एक पोथीमे छैक–‘गौड़ध्वज’ श्रीमद गांगेयदेव–एहिमे पुण्याव लोक शब्दक व्यवहार अछि आ विनु कोनो संकेत संवत् १०७६क। दोसर पाठमे ‘गौड़ध्वज’क स्थानपर “गरूड़ध्वज” छैक। उपेन्द्र ठाकुर महामहोपाध्याय मिराशीक मतसँ सहमति प्रगट कएने छथि। मुदा एहिठाम विचारणीय विषय इ अछि जे १०७६–शक छल अथवा विक्रम आ दोसर बात इ जे महिपाल प्रथमक समयमे पाल वंशक पुनरूद्धार भेल छल आ तैं ओहि कालमे कलचुरि लोकनिकेँ ‘गौड़ध्वज’क उपाधिसँ विभूषित हेबाक कोनो संभावना नहि बुझाइत अछि। महिपाल प्रथम अपन साम्राज्यक सीमा बनारस धरि बढ़ौने रहैथ आ जँ कलचुरि गांगेयदेवकेँ से शक्ति रहितन्हि तँ ओ अवश्ये बंगालक महिपालक प्रगतिकेँ रोकितैथ परञ्च से कहाँ हमरा लोकनिक देखबामे अवइयै। दोसर बात इहो जे मिथिलासँ महिपालक काल अभिलेखो भेटल अछि। संवतक संकेत नहि रहब सेहो एकटा दिग्भ्रमक जन्म दैत अछि। पोथी लिखनिहार श्रीकरक आत्मज कायस्थ मिथिलाक नरंगवाली मूलक एकटा प्रमुख व्यक्ति छलाह आ अहुँसँ इ प्रमाणित होइछ जे अपन तीरभुक्तिक महाराजाधिराज पुण्यावलोक श्री गंगदेवक प्रसंगहिमे लिखने हेताह।
तत्कालीन राजनैतिक अवस्थाकेँ ध्यानमे राखि जखन हम एहि साधनक अध्ययन करैत छी तखन इ स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे बारहम शताब्दी उतरार्द्धमे बंगालमे पालवंशक ह्रास भऽ रहल छल आ बंगालक सेनवंश आ मिथिलाक कर्णाट लोकनि ओहि पाल साम्राज्यपर अपन गिद्ध दृष्टि लगौने छलाह। एहेन बुझि पड़इयै जे प्रारंभमे मिथिलाक कर्णाट आ बंगालक सेन संगहि मिलि पालकेँ परास्त कए ओतएसँ भगौलन्हि आ जखन आपसी बटबाराक प्रश्न उठल तखन दुनूमे संभवतः विवाद भेलन्हि आ सेन आ कर्णाट वंशमे झगड़ा भेल। पाल लोकनिकेँ पराजित करबाक श्रेयक कारणें मिथिलाक गाँगेयदेव “गौड़ध्वज”क उपाधिसँ विभूषित भेलाह। तैं रामायणक पुष्पिकामे उल्लिखित ‘गांगेयदेव’ मिथिलाक गंगदेव थिकाह जे मिथिलासँ बंगाल धरि अपन शासनक प्रसार केने छलाह आ बल्लालसेन मिथिलाक बढ़ैत शक्तिसँ सशंकित भऽ भागलपुर धरि गंगाक दक्षिणमे अपन सत्ता बढ़ा लेने छलाह।
बल्लालसेनक एकटा अभिलेख धातु सनोखर (भागलपुर)सँ प्राप्त भेल अछि जे एहिबातकेँ सिद्ध करइयै। बल्लाल चरितमे कहल गेल अछि जे बल्लालसेन पंचगौड़ (वंग, वागड़ी, वरेन्द्र, राढ़ आ मिथिला)क शासक छलाह परञ्च हमरा बुझने पहिल चारिपर हुनक शासन छलन्हि आ पाँचमकेँ ओ अपन बापक अमलक प्रतिष्ठाक रूपमे जोड़ने छलाह। पूर्वहिं इ देखाओल जा चुकल अछि कि मिथिलापर सेन राज्यक कोनो स्पष्ट प्रमाण नहि छल तैं आब इ निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे गंगदेवक शासन कालमे मिथिला पूर्णरूपेण स्वतंत्र छल आ कर्णाट लोकनि अक्षुण्ण भावें एहिठाम राज्य करैत छलाह। दुनू राज्यक सीमा मिलैत जुलैत छल तैं यदा कदा टंट–घंट भऽ जाएब स्वाभाविके छल। लक्ष्मण संवत् प्रचलनक साक्ष्य दऽ केँ इ कहब जे मिथिलामे सेन वंशक राज्य छल से समीचीन प्रतीत नहि होइछ आ ने एकरा सिद्ध करबाक हेतु कोनो ठोस प्रमाणे अछि।
गंगदेव अपन मंत्री श्रीधर दासक सहायतासँ उत्तमोत्तम रीतिसँ अपन राज काज चलबैत रहलाह। हुनका समयमे कर्णाट शासन प्रणालीकेँ दृढ़ बनाओल गेलैक। राजस्व प्रशासनकेँ वैज्ञानिक ढ़ंगपर चलेबाक हेतु ओ अपन राज्यकेँ परगन्नामे विभाजित केलन्हि आ प्रत्येक परगन्नामे मुखिया अथवा प्रधान नियुक्त भेलाह जे ‘चौधरी’ कहबैत गेलाह। न्याय प्रशासनक हेतु पंचायती व्यवस्थाक स्थापना भेल। जन कल्याण आ कृषिक उन्नतिक हेतु ओ अपना राज्यमे अनेकानेक पोखरि एवँ जलाशयक व्यवस्था केलन्हि। अपन राज्यकेँ ओ अपना शासन कालमे सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह। पश्चिममे गहढ़वाल, पूर्वमे सेन आ दक्षिणमे पाल लोकनिसँ अपन साम्राज्यक सुरक्षा रखैत ओ नेपालोपर अपन अधिकारक दावी देनहि रहलाह आ एवँ प्रकारे नान्यदेव द्वारा स्थापित राज्यकेँ गंगदेव आ दृढ़ बनौलन्हि जाहिसँ मिथिलाक प्रतिष्ठा चारूकात बढ़ल। गंगदेवक समयमे मिथिलामे शांति आ सुव्यवस्था बनल रहल आ कोम्हरोसँ कोनो आक्रमण नहि भेल। इएह कारण छल जे ओ शासन संगठन आ प्रशासनिक सुधार दिसि अपन ध्यान देबामे समर्थ भेलाह। नान्यदेव तँ विजय प्राप्त कैक राज्यक जन्म देलन्हि आ गंगदेव ओकरा संगठित केलन्हि आ शांति प्रदान केलन्हि। इ एकटा अजीव संयोग थिक जे पिता पुत्र दुनू एक्के रंग कूटनीतिज्ञ, दूरदर्शी आ कुशल विजेता आ प्रशासक बहरेलाह।
बारहम शताब्दीक श्रीवल्लभाचार्य (न्याय–लीलावतीक लेखक) निम्नलिखित वाक्य एकटा तत्कालीन कर्णाट शासक उल्लेख करैत छथि–
“यदि च गगनमात्मावान्यधर्मणान्यमवच्छिन्द्यात्
काश्मीर वर्त्तिना कुङ्कुम रागेण कर्णाट चक्रवर्त्ति (ललना)
करकमवच्छिन्द्यात्–”
आब इ कर्णाट चक्रवर्त्ति (ललना)केँ छलाह से कहब असंभव। नान्यदेव, मल्लदेव आ गंगदेव–सब भऽ सकैत छथि। ‘ललना’ शब्द मैथिलीमे छोट बच्चाक हेतु प्रयोग होइत छैक तैं हमरा बुझने एहिसँ नान्यदेवक कोनो पुत्रक संकेत होइयै, आब ओ मल्लदेव हेताह अथवा गाँगदेव से कहब कठिन।
श्री वल्लवभाचार्य–एकटा शासन करैत राजाक नाम सेहो लिखैत छथि–“श्री शालि वाहनो नृपति”– अहु राजाक पहचान असंभव अछि। मिथिलासँ प्राप्त मैथिलीक पाण्डुलिपि सब से एहेन बहुत रास राजा सबहक नाम भेटइत अछि जकरा कोनो राजवंशसँ मिलाएब अथवा जोड़ब असंभव भऽ जाइत अछि। मिथिलाक इतिहासक साधनो अखन धरि इएह सब रहल अछि तैं एकरा तिरस्कारो करब असंभव।
नरसिंह देव–(११८७–१२२७)– गंगदेवक परोक्ष भेलापर मिथिलाक राजगद्दीपर नरसिंह देव बैसलाह। हुनका समयमे मिथिला आ नेपालक मध्य किछु खट–पट भेल छल आ एकर नतीजा इ भेल जे नेपाल मिथिलासँ फराक भऽ गेल। रामदत्त अपन दान पद्धतिमे नरसिंह देवकेँ कर्णाटान्वय भूषणः- कहने छथि। रामदत्त हुनक मंत्री छलाह आ रामदत्तक अनुसार नरसिंह देव मिथिलाक अक्षुण्ण शासक छलाह। विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ ज्ञात होइछ जे नरसिंह देव अपन पिता मल्लदेवक संग कन्नौज गेल छलैथ। ओतएसँ ओ दिल्ली सेहो गेल छलाह आ शहाबुद्दीन गोरीक सेनामे सेनानायकक काज कएने छलाह जाहिसँ गोरी हिनकासँ प्रसन्न भऽ हिनका मिथिलामे अक्षुण्ण करबाक हेतु छोड़ि देबाक आश्वासन देने रहथिन्ह। इ चाचिक देव चौहानक परम मित्र छलाह। कहल जाइत जे इहो एक कुशल शासक छलाह मुदा राजनैतिक दृष्टिकोणसँ हम देखैत छी जे हिनका राज्यमे नेपाल हिनका हाथसँ बाहर भऽ गेल आ ताधरि बाहर रहल जाधरि हरिसिंह देव पुनः ओकरा नहि जीतलन्हि। दोसर बात इहो जे मुसलमान लोकनि पश्चिम आ पूबसँ मिथिला राज्यकेँ दबबे लागल छलाह आ आक्रमण श्री गणेश सेहो हिनके समयमे प्रारंभ भऽ गेल छल। मिथिला राज्यकेँ मुसलमान लोकनि अपन आँखिमे काँट जकाँ बुझैत छलाह आ तैं ओ लोकनि एम्हर–ओम्हरसँ हुलकी–बुलकी देव आरंभ कऽ देने छलाह। नरसिंह देव अपना भरि मिथिला राज्यकेँ चारूकातसँ सुरक्षित रखबाक यथेष्ट प्रयास केलन्हि आ एहि क्रममे हुनका बहुत किछु सफलता भेटलन्हि।
रामसिंह देव–(१२२७–१२८५)– रामसिंह देव कर्णाट वंशक एक सफल आ कुशल शासक छलाह जनिक महिमाक गुनगान तिब्बती यात्री धर्मस्वामी सेहो कएने छथि। कर्मादित्य ठाकुर रामसिंह देवक मंत्री छलथिन्ह आ कर्मादित्यक एकटा अभिलेख ल.सं.२१२क सेहो उपलब्ध अछि। हिनका समयमे समस्त उत्तर भारतमे मुसलमानी सत्ताक प्रसार भऽ चुकल छल आ मिथिलाक चारूकात मुसलमानी आक्रमणक संभावना बढ़ि गेल छल। वैशालीमे मुसलमानी आक्रमणक स्वरूपक विवरण धर्मस्वामी उपस्थित कएने छथि। लखनौतीक हिसामुद्दिनइवाज मिथिलोसँ कर प्राप्त केने छल आ तिरहुतमे पूर्व–पश्चिम दुनू दिसिसँ आक्रमण होइत रहैत छल। रामसिंह देवक पदवीमे ‘भुजबलभीम’ आ ‘भीमपराक्रम’क विशेष महत्व रखइयै। हिनक सान्धि विग्रहिक छलाह देवादित्य ठाकुर जिनका वंशमे बड्ड पैघ–पैघ विद्वान आ पराक्रमी लोक सब भेल छलाह। धनवान होएबाक कारणे ओ लोकनि महत्तक (महथा) सेहो कहबैत छलाह।
रामसिंह देव विद्या आ धर्मक समर्थक आ प्रवर्त्तक छलाह। हुनके समयमे मिथिलामे वैदिक टीका लिखल गेलैक। ओहिकालमे सामाजिक एवँ धार्मिक नियमक प्रतिपादन भेल आ शासन विधानमे सेहो बेस सुधार भेलैक। प्रत्येक गामक हेतु कोतवालक नियुक्ति भेल। गामक प्रत्येक समाचार चौधरी कोतवालकेँ दैत छलैक आ ओहि ठामसँ ओ समाचार राजा धरि पहुँचैत छ्ल। ओहि समयमे पटवारी प्रथाक विकास भेल। रामसिंह देव पैघ विद्या प्रेमी छलाह आ हुनके समयमे श्रीधर आचार्य अमरकोशपर अपन टीका लिखलन्हि।
रामसिंह देवक समयमे प्रसिद्ध तिब्बती यात्री धर्मस्वामी एम्हर आएल छलाह आ रामसिंह देवक संग हुनक सम्बन्ध मधुर छलन्हि। ओ आती–जाती दुनू बेर रामसिंह देवक संगे रहलो छलाह। ओहि समयमे मिथिलामे मुसलमान लोकनिक प्रकोप बढ़ल जाइत छल। रामसिंह राजधानी ‘पट’ (सिमरौनगढ़)क सुन्दर विश्लेषण धर्मस्वामी कएने छथि। ‘पट’ बड्ड पैघ आ उन्नत नगर छल आ चारूकातसँ दुर्ग आ खाधिसँ घेरल–बेढ़ल छल। सब तरहे एकर सुरक्षाक प्रबंध कैल गेल छल। इ नगर उत्तरमे छल। एहिठाम ओ ज्वरसँ पीड़ित सेहो भेल छलाह। नेपालसँ एहिठाम एबामे हुनका तीन मास लागल छलन्हि। रोगसँ मुक्त भेलापर जखन ओ अपन देश जेबाक हेतु तैयार भेलापर तखन रामसिंह हुनका किछु दिन आ रहबाक हेतु आग्रह केलथिन्ह। एतबे नहि रामसिंह हुनका अपन प्रधान पुरोहितक पदपर नियुक्त करबाक आश्वासन सेहो देलथिन्ह मुदा तइयो ओ एतए रहबा लेल तैयार नहि भेलाह आ घुरबाक हेतु तत्पर भऽ गेलाह। रामसिंह हुनका बहुत रास वस्तुजात उपहारमे देलथिन्ह। धर्मस्वामीक विवरण इ स्पष्ट होइछ जे मुसलमान लोकनिक प्रभाव बड्ड बढ़ि गेल छल आ रामसिंह किलाबंदीपर विशेष बल देने छलाह। रामसिंह किलाबंदीपर विशेष बल देने छलाह। रामसिंहक अपन राजभवन सात गोट भीत आ २१ गोट खाधिसँ घेरल छल। वैशालीक निवासी लोकनि मुसलमानी आक्रमणसँ हड़कम्पित छलाह। वैशालीमे एकटा प्रसिद्ध ताराक मूर्त्ति छल।
धर्मस्वामीक मुसलमानी आक्रमण सम्बन्धी मतक समर्थन परम्परागत साहित्य एवँ साधनसँ सेहो होइत अछि जाहिमे इ कहल गेल अछि जे रामसिंहकेँ मुसलमानसँ लड़ए पड़ल छलन्हि। मुसलमान लोकनि गंगाक दक्षिणमे मूंगेर, भागलपुर, पटना, आदि स्थानमे पसरि चुकल छलाह आ ओम्हर बंगालक शासक सेहो पश्चिम दिसि अपन शक्तिकेँ बढ़ेबामे लागल छलाह। ओहि दुनूमे बरोबरि संघर्ष चलैत रहन्हि आ मिथिलाक शासक अपन ‘वेतसिवृति’क पालन कए अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे व्यस्त छलाह। रामसिंह देव एहि हेतु कत्तेक प्रयत्नशील छलाह तकर प्रमाण तँ एतवे अछि जे ओ जँ अपन राज्यक विस्तार नहि केलन्हि तँ हुनका समयमे हुनक राज्य एक्को इंच घटल नहि आ साँस्कृतिक एवँ सामाजिक दृष्टिकोण ओ जे रचनाक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बनौलन्हि तकरे आधारपर बादमे हरिसिंह देवी पंजी प्रथा ठाढ़ भेल।
शक्ति सिंह:-(शक्र सिंह)–(1285–95)–?– रामसिंहक पछाति शक्तिसिंह अथवा शक्रसिंह मिथिलाक राजा भेलाह। ओ महा पंडित, प्रतापी एवँ पराक्रमी शासक छलाह आ दिल्लीक शासकक संग हुनक सम्बन्ध बरोबरि बनल रहलन्हि–इ सम्बन्ध विरोध आ मित्रता दुनूक छलन्हि। हम्मीरक विरूद्धक अभियान शक्तिसिंह अलाउद्दीन खलजीक संग रहैथ आ हुनका संग हुनक मंत्री देवादित्य आ हुनक आत्मज वीरेश्वर सेहो रहथिन्ह। अपन मंत्रीक स्वामीद्रोहक कारणे (रायमल्ल आ रामपाल) हम्मीर पराजित भेलाह। अलाउद्दीन देवादित्यकेँ ‘मंत्रिरत्नाकर’ पदवीसँ विभूषित केलथिन्ह। शक्तिसिंहक संग खलजी सम्राटक मित्रता बनल रहल आ मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो बाँचल रहल।
शक्तिसिंह अत्याचारी शासक छलाह। हुनक निरंकुश शासनकेँ रोकबाक हेतु वृद्ध सब सातटा प्रमुख वृद्धकेँ चुनिकेँ एकटा ‘वृद्ध–परिषद’क निर्माण कएने छलाह। हुनक अत्याचारी शासनसँ हुनक दरबारी आ मंत्री लोकनि कूपित भऽ गेल छलाह। राजाक निरंकुशताक विरोधमे सर्वप्रथम अवाज उठौलनि चण्डेश्वर ठाकुर जे अपना युगक एकटा प्रसिद्ध विद्वान आ राजनीतिज्ञ छलाह। हुनके प्रयासे राजाक निरंकुशतापर रोक लागि सकल। दरभंगाक आनंदवागक पश्चिम ‘सुखीदिग्घी’ पोखरि हिनके खुनाओल थिक आ आधुनिक सकुरीक बसौनिहार शक्तिसिंहें थिकाह। शक्तिसिंहक बाद एकटा भूपाल सिंहक नाम भेटइयै मुदा ओ शासक भेलाह अथवा नहि से कहब असंभव।
हरिसिंह देव:-(१२९५–१३२४-?)– नान्यदेवक पश्चात् कर्णाटवंशक सबसँ प्रसिद्ध एवँ महान शासक हरिसिंह देव भेलाह जे मिथिला आ नेपालक इतिहासमे कैक दृष्टिये विख्यात छथि आ जनिक शासन काल पूर्वी भारतक इतिहासमे महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। हिनक जन्म, राज्यारोहण, मृत्यु इत्यादिक वास्तविकताक सम्बन्धमे हमरा लोकनिक ज्ञान अपूर्ण अछि अथवा इहो कहि सकैत छी जे हिनका सम्बन्ध सबटा एतिहासिक तथ्य अद्यावधि अनिश्चितता एवँ सन्दिग्धक गर्भेमे अछि। एकर मूल कारण इ अछि जे मिथिलाक एहिकालक इतिहासक अध्ययनक हेतु जे प्रामाणिक साधन चाही तकर सर्वथा अभाव अछि। तथापि जतवे जे साधन उपलब्ध अछि ताहि आधारपर हमरा लोकनि हरिसिंह देवक शासन एकटा वस्तुनिष्ठ अध्ययन प्रस्तुत करबाक प्रयास करब। ने राजनीतिक इतिहासक हिसाबे आ साँस्कृतिक इतिहासक हिसाबे हरिसिंह देवकेँ विसरल जा सकइयै। जँ नान्यदेव एहिवंशक संस्थापकक हिसाबे स्मरणीय छथि तँ हरिसिंह अपन नेपाल विजय एवँ पंजी–प्रथाक संस्थापकक रूपें मिथिलाक इतिहासमे अमर छथि। एम्हर आबिकेँ आब मिथिलाक इतिहासक महत्व दिसि पौवात्य–पाश्चात्य विद्वानक ध्यान आकृष्ट भेल छन्हि आ एकर प्रमाण भेल लुसिआनो पेतेकक ‘मिडिभल हिस्ट्री आफ नेपाल’ तथा भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित “दिल्ली सल्तनत” (खण्ड–6)मे विवेचित मिथिलाक इतिहासक अंश। आब मिथिलाक इतिहासक एहिकालकेँ उपेक्षित करब कठिन अछि कारण एहि सम्बन्धमे जे अद्यावधि एकटा भ्रांति पसरल छल से दूर भऽ गेल अछि आ सामाजिक इतिहासक अध्ययनार्थ हरिसिंह देवक पंजी प्रथा एकटा प्रमुख विषय बनल अछि।
कहिआ, कोना आ कोन रूपें ओ मिथिलाक शासन भार ग्रहण केलन्हि तकर कोनो ठोस प्रमाण हमरा लग नहि अछि मुदा हुनका सम्बन्धमे प्रचलित किंवा व्यवहृत शब्दावली एहि बातक प्रमाण अछि जे ओ शक्तिशाली शासक छलाह। अपना काल धरि ओ कहियो ककरो समक्ष ने अपन माथ झुकौने छलाह आ ने टेकने छलाह। अपनाकेँ स्वाभिमानी स्वतंत्र आ निर्भीक बुझैत छलाह आ एहिबातक प्रमाण हमरा वसातिनुलउन्ससँ भेटइत अछि। पुरूष परीक्षामे विद्यापति हुनका ‘कर्णाट–कुल–सम्भव’ कहने छथिन्ह; चण्डेश्वरक कृत्यरत्नाकरमे हुनका ‘कर्णाट वंशोद्भव’ कहल गेल छन्हि। ज्योतिरीश्वर ठाकुर धूर्त समागममे कर्णाट चूड़ामणिक संज्ञा हिनका देल गेल छन्हि।
कर्णाटवंशोद्भव शत्रुजेता हरिसिंह देव मिथिलामे अपन एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केने छलाह। हुनक सान्धिविग्रहिक मंत्री देवादित्य ठाकुर छलथिन्ह। देवादित्य यशस्वी, बुद्धिमान एवँ दानी छलाह। हुनक पश्चात् हुनक पुत्र वीरेश्वर ठाकुर मंत्री भेलाह। उहो महा दानी छलाह आ समुद्र सन गहिर पोखरि दहिभत गाममे खुनौने छलाह। ओ श्रौतकर्मानुष्ठाता ब्राह्मण लोकनिकेँ उदारता पूर्वक दान देने छलाह आ गामक गाम दानमे सेहो हुनका लोकनिकेँ देने छलाह। उहो एकटा पोखरि खुनौने छलाह जकर नाम छल ‘वीरसागर’आ ओहिसँ गामक नाम‘विरसागर’ पड़ल। वीरेश्वर ठाकुरकेँ ‘महावर्तिक नैबन्धिक’ सेहो कहल जाइत छलन्हि। वीरेश्वर ठाकुरक बाद हुनक पुत्र चण्डेश्वर ठाकुर महामत्तक सांधिविग्रहिक भेलाह। उहो प्रतापी, साहसी, उदार एवँ दानी छलाह आ हरिसिंह देवक मित्र, सलाहकार एवँ दार्शनिक सेहो छलाह। हरिसिंह देव हिनक समयमे व्यस्क भऽ चुकल छलाह आ राज काज सम्हारि लेने छलाह। इहो हावी परगन्नाक सिमराम ग्राममे एकटा पोखरि खुनौने छलाह जे “सुरवय” कहबैत अछि। नाबालिक अवस्थामे राजगद्दीपर बैसलाक कारणे हरिसिंहक देखरेख सुयोग्य मंत्रिगणक हाथमे छल आ राजाक दिसि इएह मंत्री लोकनि सब काज करैत छलाह। हरिसिंह देव जखन जवान भेलाह तखन चण्डेश्वर ठाकुर हुनक मंत्री छलथिन्ह। ब्राह्मणक एकवंशसँ कर्णाट राजदरबारमे तीन पीढ़ी धरि बरोबरि मंत्री होइत रहलाह–ताहिसँ इ सिद्ध होइत जे एहि कालमे सामंतवादी व्यवस्थाक विकासक कारणे मंत्रीपद वंशानुगत भऽ चुकल छल आ राजापर हुनका लोकनिक विशेष नियंत्रण रहैत छलन्हि। हम उपर देखि चुकल छी जे शक्ति सिंह जखन निरकुंश बनबाक चेष्टा केलन्हि तखन इएह सामंत लोकनि हुनक ओहि चेष्टाकेँ विफल कैल आ हरिसिंह देवक नाबालिग रहबाक कारणे हुनका लोकनिक अधिकारमे अत्यधिक वृद्धि भेल। विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ इहो ज्ञान होइछ जे हरिसिंह देव यादव राजा देवगिरिक रामदेवक समकालीन छलाह आ गोरखपुरक राज दरबारमे हुनक कला–प्रेमी होएबाक चर्च बरोबरि होइत छलन्हि। हरिसिंह देवक नामसँ समकालीन राजा लोकनि नीक जकाँ परिचित छलाह। हरिसिंह देवक मंत्री चण्डेश्वर अपना कालक प्रसिद्ध विद्वान छलाह आ तैं हिनक नामसँ मिथिला राज्योक नामक प्रसार होइत छल।
हरिसिंह देवक समयमे चण्डेश्वर ठाकुर नेपाल अभियानक नेतृत्व केलन्हि। ओतए इ किरात राजा सबकेँ एवँ सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा गणकेँ पराजित कए सम्पूर्ण नेपाल राज्यपर मिथिलाक आधिपत्य जमौलन्हि। एहिसँ इ तँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे नरसिंह देवक समयमे नेपालसँ खट–पट भेलाक बाद नेपाल अपनाकेँ मिथिलाक नियंत्रणसँ मुक्त कऽ लेने छल कारण जँ से बात नहि रहैत तँ चण्डेश्वर ठाकुरकेँ हरिसिंह देवक शासन कालमे पुनः नेपालपर आक्रमण करबाक आवश्यकता कियैक भेलैन्ह। दोसर बात इहो जे हरिसिंह देवक प्रभाव जखन नेपालपर पुनः स्थापित भेल तँ मिथिलाक प्रतिष्ठा सेहो बढ़ल आ एहि हिसाबे हरिसिंह देवक शासनकाल महत्वपूर्ण मानल जा सकइयै। हरिसिंह देव तुगलकसँ पराजित भेलाक बाद भागिकेँ नेपाले गेल छलाह। चण्डेश्वर ठाकुर वाग्मतीक नदीक तटपर स्वर्ण तुलापुरूष महादान कयने छलाह आ उएह प्रथम व्यक्ति छलाह जे पशुपति नाथ धरि पहुँचल छलाह। चण्डेश्वर ठाकुर अधीन हरिब्रह्म नामक एक सामंतक चर्च प्राकृत–पैंगलममे भेल अछि।
हरिसिंह देवक समयमे मिथिलाक राज्य सुरक्षित रहल यद्यपि ताहि समय तक पश्चिमी आ पूर्वी राज्यसँ मिथिलापर बरोबरि प्रहार भऽ रहल छल। नेपाल धरि अपन राज्यक सीमाकेँ पुनः बढ़ेबाक श्रेय हरिसिंह देवकेँ छन्हि। नेहरामे हरिसिंह देव सेहो अपन एकटा मुख्यालय रखने छलाह आ ओहिठाम एकटा गढ़ सेहो छल। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक ‘धूर्त समागम नाटक’सँ ज्ञात होइछ जे हरिसिंह देवकेँ कोनो सुरत्राणसँ झगड़ा भेल छलन्हि जकर परिणाम अनिर्णीत बुझना जाइत अछि। हरिसिंह देवक पादपद्मपर कतेको प्रतापी राजा अपन–अपन माथ नमवैत छलाह।
उमापतिक पारिजातहरणसँ सेहो इ स्पष्ट होइछ जे हरिसिंह देव आ कोनो मुसलमान शासकक बीच संघर्ष भेल छल मुदा ज्योतिरीश्वर आ उमापतिक विवरणमे कोनो मुसलमान शासकक नाम नहि रहलासँ कठिनताक अनुभव हैव स्वाभाविके। ओहि सबसँ केवल एतवे ज्ञान होइछ जे हरिसिंह देवकेँ बरोबरि मुसलमान शासक लोकनिसँ टंटा होइत रहन्हि आ ओहि सभहिक वावजूदो ओ मिथिलाकेँ राज्य सुरक्षित रखैत अपन प्रजाक कल्याणमे लागल रहैथ। हमरा बुझि पड़इयै जे मिथिलाक राज्यक भविष्यक सम्बन्ध हुनका पूर्वाभास भऽ गेल छलन्हि आ तैं ओ नेपालपर पुनः अपन आधिपत्य कायम करबाक प्रयासमे लागल छलाह। मिथिलामे चारूकातसँ तंगी देखि ओ अपना हेतु नेपाल राज्यकेँ सुरक्षित राखए जाहिसँ किओ मुसलमानी आक्रमणसँ आक्रांत भेलापर ओतए जाएकेँ रहि सकैथ। इएह कारण थिक जे हुनक मंत्री नेपालपर पूर्ण आधिपत्य कायम केने छलाह। तुगलक आक्रमणक बाद ओ भागिकेँ ओम्हरे गेओ केलाह। कहल जाइत अछि जे मिथिला छोड़बाक पूर्व ओ नेहरा पोखरिपर विश्वचक्र महादान यज्ञ कयने छलाह।
१३२३–२४ ई.मे मिथिलापर गयासुद्दीन तुगलकक आक्रमण भेल। कहल जाइत अछि जे बंगाल आ मिथिलाक शासकक संग एक प्रकार गुप्त समझौता छल आ दुनू अपन–अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबाक लेल प्रयत्नशील छलाह। गयासुद्दीन तुगलक एहि दुनू राज्यकेँ अपना आँखिक काँट बुझैत छल आ तैं बंगालपर आक्रमण केलाक बाद ओ मिथिले बाटे घुरल आ एहिठाम शासककेँ अपना अधीन करबाक प्रयास केलक। फरिस्ताक अनुसार तिरहुतक राजा संघर्षक हेतु आगाँ बढ़लाह परञ्च हुनका खेहारिकेँ जंगलमे ठेल देल गेलन्हि। तुगलक राजा जंगलकेँ अपने हाथसँ कटलन्हि आ जखन जंगल साफ भेल तखन ओ देखलन्हि जे तिरहुत राजाक एकटा बड़का किला अछि जे चारूकात बड़का–बड़का खाधिसँ घेरल अछि। उच्च उच्च भीति आ सातटा खाधिसँ घेरल किला देखि तुगलक शासक थोड़ेक कालक हेतु धतमतेलाह आ तत्पश्चात् सातोटा खाधिकेँ भरि ओ किलाक भीत आ देवालकेँ नष्ट केलन्हि। एहि सब काजमे हुनका तीन हफ्ता लगलन्हि। राजा सपरिवार गिरफ्त भेलाह आ तिरहुतक शासन भार मलिक तबलिगाक पुत्र अहमद खाँक हाथमे देल गेल। तकर बाद तुगलक राजा दिल्ली दिसि प्रस्थान केलन्हि। वरनीक अनुसार जखन गयासुद्दीन तुगलक तिरहुत पहुँचलाह तखन सब राजा लोकनि आत्म समर्पणकेँ देलन्हि। वसातिनुलउंसक अनुसार तिरहुतक राजा पड़ाकेँ नेपाल चल गेलाह आ तिरहुतपर तुगलक शासन स्थापित भऽ गेल। (विशद् विश्लेषणक हेतु देखु हमर लिखल पोथी–“हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुत”)।
चण्डेश्वर ठाकुरक दान रत्नाकर आ ज्योतिरीश्वर ठाकुरक धूर्तसमागम नाटक तथा उमापतिक पारिजातहरण नाटकसँ एतवा धरि स्पष्ट होइयै जे i) हरिसिंह देव म्लेच्छसँ आप्लावित पृथ्वीकेँ मुक्त कएने छलाह आ, ii) ओ कोनो सुरत्राणकेँ पराजित कएने छलाह आ iii) पृथ्वीपर जे म्लेच्छ लोकनि भार स्वरूप छथि तकरासँ ओ पृथ्वीकेँ हलुक केने छलाह। फरिस्ताक कथन जे हरिसिंह देव सपरिवार गिरफ्त भेलाह से मान्य नहि अछि कारण आँखिक देखल हाल लिखनिहार वसातिनुलउंसमे एकर समर्थन नहि केने छथि। ओहिमे इ स्पष्ट लिखल अछि जे राजा भागिकेँ नेपाल चल गेलाह आ ओतहि बसि गेलाह। परिस्थितिसँ वाध्य भऽ भागि जेबाक कथा आ पहाड़मे घुसिया जेबाक बात मैथिली परम्परामे निम्नलिखित श्लोकमे सुरक्षित अछि।
“वाणाब्धि बाहु सम्मित शाकवर्षे
पौषस्य शुक्ल दशमी क्षितिसूनुवारे
त्यकत्वा स्व–पट्टन पुरी हरिसिंह देओ
दुर्दैव देशित पथे गिरिमाविवेश”–
मिथिलासँ निराश्रित भेलापर हरिसिंह देव पड़ाकेँ नेपाल गेला जतए १० वर्ष पूर्व चण्डेश्वर ठाकुर किरात आ क्षत्रिय शासक लोकनिकेँ हराके मिथिलाक प्रभुत्व स्थापित कएने छलाह। हरिसिंह देव नेपाल पहुँचि सूर्यवंशी राज्यक स्थापना केलन्हि से कहल जाइत अछि। ओ भातगाँवमे अपन केन्द्र बनौलन्हि। नेपालपर मिथिलाक आक्रमणक तिथि लऽ कए इतिहासकारमे मतभेद छन्हि। दिली रमण रेग्मी १३१४ (चण्डेश्वर द्वारा आक्रमणक तिथि)केँ नेपालपर आक्रमणक तिथि मनैत छथि परञ्च भगवान लाल इन्द्र जी आ राइट महोदय १३२४ ई.केँ (जखन हरिसिंह देव मिथिलासँ पड़ाय ओतए पहुँचलाह)। एहि दुनू तिथिमे कोनो संघर्षक गुंजाइश नहि अछि यदि हमरा लोकनि एकरा एहि ढ़ँगे देखी–चण्डेश्वर मिथिला राज्यक मंत्री हिसाबे नेपालकेँ जीतने छलाह आ तहियासँ पुनः नेपाल मिथिलाक अधीन भऽ गेल छल। हरिसिंह देव जखन ओतए पहुँचलाह तखन ओ विधिवत अपनाकेँ ओतुका शासक घोषित केलन्हि आ भातगाँवमे अपन प्रधान कार्यालयक स्थापना केलन्हि। एहि दुनूमे विशेष साम्य अछि। १३१४सँ १३२४ धरि ओ मिथिलासँ नेपालपर राज्य करैत छलाह मुदा १३२४क पछाति मुख्यरूपेण नेपालक एकमात्र शासक भऽ गेलाह। १३१४क बादहिसँ नेपालमे मैथिल लोकनिक आवागमन शुरू भऽ गेलन्हि। मिथिलामे मुसलमानक प्रकोप बढ़ल आ नेपालमे मल्ल लोकनिक मुदा हरिसिंह देव बड्ड चतुर व्यक्ति छलाह आ ओ ओतुक्का मल्ल लोकनिक संग वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कऽ लेलन्हि।
नेपालक वंशावली आ शिलालेख एहिबातक सबूत अछि जे हरिसिंह देव नेपालमे जा कए नीक जकाँ जमि गेल छलाह आ हुनक प्रभुत्व ओहिठाम नीक जकाँ स्वीकृत भऽ गेल छलन्हि। काठमाण्डुक एकटा शिलालेखमे हरिसिंह देवकेँ कर्णाट वंशोद्भव आ कर्णाट चूड़ामणि कहल गेल छन्हि।-
“जातः श्री हरिसिंह देव नृपतिः प्रौढ़ प्रतापोदयः
तद्वंशे विमले महारिपुहरे गाम्भीर्य रत्नाकरः
कर्त्तायः सरसामूपेत्य मिथिलां संलक्ष्य लक्षप्रियो
नेपाले पुनराद्यवैभवंयुते स्थैर्यः चिरम्विद्यते”।
हरिसिंह देवक उत्तराधिकारीकेँ चीनी सम्राट नेपालक कानूनी शासक मानैत रहथिन्ह।
कर्णाट वंशक पतन:- हरिसिंह देवक बाद मिथिलामे कर्णाट वंशक पतन भऽ गेल। बहुत रास साहित्यिक साधनक अध्ययन केला संता एवँ पाण्डुलिपिक पुष्पिका सबकेँ देखलासँ इ प्रतीत होइछ जे हरिसिंह देवक नेपाल पड़ैला उत्तरो मिथिलामे बचल कर्णाट लोकनि मिथिलाक स्वतंत्रताक हेतु संघर्ष करैत रहलाह आ मुसलमान लोकनिक पैरकेँ नहि जमे देल गेल। कर्णाट वंशक अंतो भेलापर मिथिलाक किछु क्षेत्र सबमे कर्णाट शासन विद्यमान छल आ एकर प्रमाण भेटइत अछि। श्रीवल्लभाचार्य कर्णाट राजवंशक उल्लेख कएने छथि। ओ अपन कर्णाट राजाकेँ नृपति कहने छथि। एहि सम्बन्धमे सबसँ महत्वपूर्ण अछि मधुसूदन ठाकुरक ‘कण्टकोद्धार’ पुस्तकक पुष्पिका। मधुसूदन ठाकुर कर्णाट चक्रवती महाराजाधिराज रामराजक अधीन रहिकेँ लिखने छलाह। पुष्पिकामे लिखल अछि–“इति महाराजाधिराज कर्णाट चक्रवर्त्ति भुजबल भीम सम्मस्त दिग्विजयार्जित समस्त संतोष निखिल भूमण्डल श्री रामराज कारितायां महामहोपाध्याय सठ्ठक्कुर श्री मधुसूदन कृता वनुमान। लोक कण्टकोद्धारः सम्पूर्ण मिति। लं.सं.५२९ फाल्गुन शुक्लाष्टम्याँमध्ययन शालिना श्री भवदेवशर्मणा भौरग्रामेऽपूरीय मिति”। एहिसँ स्पष्ट होइछ जे कर्णाटवंशक किछु लोकनि हरिसिंह देवक बादो मिथिलामे शासन करैत रहलाह भने हुनक क्षेत्र सीमित आ छोट रहल हो। ओइनवार वंशक बादो ओ लोकनि मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रमे शासन करिते रहि गेला। ओइनवार वंशक समाप्त भेलोपर जे अराजकताक स्थिति उत्पन्न भेल छल ताहुसँ लाभ उठाकए कर्णाट रामराज अपन प्रभाव क्षेत्रक विस्तार केने होथि से संभव। सकरपुरा ड्योढ़ी (राजपुतक जमीन्दारी) सेहो नान्यदेवक वंशजक अंग छथि आ मिथिलाक राजपुत लोकनि सेहो कर्णाट कुलसँ अपन सम्बन्ध जोड़बामे गौरवान्वित बुझैत छथि।
मुसलमानी आक्रमणक चलते मिथिलामे कर्णाट वंशक अंत भेल। हरिसिंह देवक बाद केओ योग्य शासक नहि रहि गेलाह जे एहिठाम कर्णाटवंशकेँ दृढ़ करितैथ आ ओम्हर तुगलक लोकनि जखन एहिठामक शासन भार अपना हाथमे लेलन्हि आ देखलन्हि जे चलाएब असंभव अछि तखन ओ लोकनि एहेन व्यक्तिक खोज करए लगलाह जिनकापर हुनका विश्वास होन्हि। कर्णाट लोकनिपर हुनक विश्वास हिल चुकल छलन्हि तैं ओ लोकनि सुगौनाक राजपंडित कामेश्वरक वंशजकेँ अपन प्रतिनिधि चुनलन्हि आ मिथिलाक शासन बागडोर हुनके लोकनिक हाथमे देलन्हि। फिरोजशाह शाह तुगलक भोगीश्वरकेँ प्रियसरवा कहिकेँ संबोधित कयने छथि। १०९७सँ १३२५ धरि कर्णाट लोकनि मिथिलापर शासन कए एकटा अमिट छाप छोड़ने छथि जाहिसँ मिथिलाक निजी व्यक्तित्व विकास भेल आ मैथिली संस्कृतिक पृष्ट पोषण सेहो। परञ्च ऐतिहासिक नियमक अनुसार सामंतवादी व्यवस्थाक गुण–दोषक चलते जेना सब राज्यक पराभव भेल छैक तहिना मिथिलाक कर्णाट राज्य अपन अवधिक पूर्ण कए लुप्तप्राय भेल आ मिथिलामे मुसलमानी शक्तिक प्रादुर्भावक संगहि ओइनवारक स्थापना कर्णाट वंशक अवशेषपर भेल।
परिशिष्ट–
चण्डेश्वर ठाकुरक कृत्य रत्नाकरक किछु आवश्यक श्लोक–
उपर्युक्त श्लोक सबसँ कर्णाटकालीन मिथिलाक इतिहासक विविधपक्षपर यथेष्ट प्रकाश पड़इयै तैं एहिठाम ओहिसबकेँ परिशिष्टक रूपमे जोड़ि देल अछि। तिथि आ तथ्यक सम्बन्ध अद्यपर्यंत विवाद बनले अछि तैं ओहि सम्बन्धमे कोनो निर्णय देव असंभव। (विशेष विवरणक हेतु हमर निबन्ध–‘द कर्णाट्ज आफ मिथिला’)
अध्याय–८
ओइनवार वंशक इतिहास
कर्णाट वंशक परोक्ष भेलापर मिथिलामे ओइनवार वंशक राज्य प्रारंभ भेल। ओइनवार वंशकेँ ‘कामेश्वर वंश’ तथा ‘सुगौना वंश’सेहो कहल गेल छैक। ‘कामेश्वर वंश’ एहि कारणे कि राज पंडित कामेश्वर एहि वंशक संस्थापक छलाह और ‘सुगौना वंश’ एहि कारणे कि सुगौनामे एहि वंशक राजधानी छल। ओइनवार लोकनि ‘खौआड़े जगत्पुर’ मूलक काश्यप गोत्र मैथिल ब्राह्मण रहैथ। हिनक पूर्वजमे जयपति, हुनक पुत्र हिङ्गु आ हुनक पुत्र ओएन ठाकुर छलाह। ओ अत्यंत विद्वान आ परम तपस्वी छलाह आ हुनके कोनो कर्णाट राजासँ ‘ओइनि’ गाम दानमे भेटल छलन्हि। एहि कारणे एहि वंशक नाम ओइनवार वंश पड़ल। ओएन ठाकुरक पुत्र भेला अतिरूप, अतिरूपक पुत्र विश्वरूप, हुनक पुत्र गोविन्द, हुनक पुत्र लक्ष्मण आ लक्ष्मण ठाकुरक छटा पुत्र छलथिन्ह–यथा
१. राज पण्डित कामेश्वर,
२. हर्षण,
३. त्रिपुरे,
४. तेवाड़ी,
५. सलखन,
६. गौड़
ठाम–ठाम एकटा सातम पुत्रक उल्लेख अवइयै जकर नाम रामेश्वर छल। एहि छःमेसँ एक गोटएक वंश अहुखन मालदह जिलामे विराजमान छथि।
एहेन बुझना जाइत अछि जे कर्णाट शासक हरिसिंह देवक पड़ैलाक बाद मिथिलामे कर्णाट लोकनिक सत्ताक ह्रास भेल आ शासनक उलट–फेर बरोबरि होइत रहल। गयासुद्दीन तुगलक शासनक हेतु अपन प्रबन्ध केलन्हि आ हुनक पुत्र मुहम्मद तुगलकक समयमे मिथिला तुगलक साम्राज्यक एकटा प्रांत बनि चुकल छल आ एकरा तुगलकपुर अथवा तिरहूत सेहो कहल जाइत छलैक। १३२३–२४सँ करीब ३० वर्ष धरि एक प्रकारक अव्यवस्था बनल रहलैक। कर्णाट लोकनि अपन सत्ताकेँ पुनः स्थापित करबाक हेतु प्रयत्नशील एवँ संघर्षशील बनल रहलाह मुदा हुनका लोकनिकेँ कोनो सफलता हाथ नहि लगलन्हि आ छिट–पुट भऽ एम्हर–ओम्हरमे बिखैर गेलाह आ यत्र तत्र अपन क्षेत्र बनाकेँ रहए लगलाह। ओम्हर दिल्लीसँ तिरहूतक शासन करब कोनो आसान काज नहि छल कारण पूवसँ बंगालक गिद्ध दृष्टि सेहो मिथिलापर लगले रहैत छलैक आ जहाँ दिल्लीक दिसिसँ कनिओ ढ़िलाइ भेलैक कि बंगाल बाला सब धर मिथिलापर चढ़ि बैसैत छल। इ एकटा एहेन कटु सत्य छल जकरा दिल्ली नकारि नहि सकैत छल। दिल्लीक हकमे मिथिला दिल्लीक अंग बनल रहब सामरिक दृष्टियें महत्वपूर्ण छलैक कारण तखन दिल्ली मिथिलाकेँ अड्डा बनाए बंगालक मुकाबला कऽ सकैत छल। बंगालक हकमे मिथिलाकेँ बंगालक पक्षमे रहब उचित बुझना जाइत छलैक आ तैं बंगाल आ दिल्ली तथा पश्चिमक आन राज्य एहि दृष्टियें मिथिलाकेँ देखैत छल। मिथिलाक शासक लोकनि एहि अवसरसँ लाभ उठाए अपन स्वतंत्रताक सुरक्षार्थ ताकमे रहैथ छलाह परञ्च ओइनवार वंशमे कर्णाट शासक नान्यदेव अथवा हरिसिंह देव सन केओ योग्य आ कुशल शासक नहि भेला तैं एहि मौकाक लाभ उठेबामे असमर्थ रहलाह। शिवसिंह सबसँ योग्य, कर्मठ, एवँ स्वतंत्र प्रेमी व्यक्ति छलाह आ मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ अपन प्राणक बाजी लगौलन्हि। ओइनवार वंशमे शिवसिंह आ भैरवसिंहक नाम चिर स्मरणीय रहल कारण ओ दुनू गोटए अपना–अपना ढ़ँगे मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ किछु उठानहि रखने छलाह।
१३२४ आ १३५५क मध्य मिथिलाक श्रृंखलावद्ध इतिहासक अभाव अछि। तुगलक कालमे मिथिला दिल्लीक प्रांत छल आ एकर उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। बंगालकेँ इ बात पसिन्न नहि छलैक आ बंगालक शासक हाजी इलियास शाह सेहो एकटा महत्वाकाँक्षी शासक छल। तिरहूतपर आक्रमण करबाक ओकर मूल उद्देश्य इ छलैक जे ओहि बाटे ओ नेपाल धरि जाए चाहैत छल आ तैं जखन दिल्लीक ढ़िलाई एम्हर देखलक तखन मिथिलापर आक्रमण कए हाजीपुर धरि पहुँचि गेल आ हाजीपुरक स्थापना अपना नामपर केलक आ पुनः नेपालपर आक्रमण केलक जकर प्रमाण नेपालसँ प्राप्त एकटा शिलालेख अछि। तुगलक लोकनिकेँ इ बात सहाय्य नहि भेलन्हि आ फिरोज तुगलक तुरंत एकर बदला लेबाक हेतु मिथिला बाटे बंगालपर आक्रमणक योजना बनौलन्हि। बरनीक विवरणसँ स्पष्ट अछि जे फिरोज गोरखपुर, खरोसा आ तिरहूतक बाटे बंगाल दिसि गेल छलाह आ संभवतः राजविराज लग कोशी नदीकेँ टपने छलाह। मधुबनी जिलामे अखनो एकटा पिरूजगढ़ नामक स्थान अछि जे फिरोज तुगलकक बाटक संकेत दइयै। १३५५क आसपास इ घटना घटल छल। फिरोज शाह सब स्थितिकेँ देखि एहि निर्णयपर पहुँचल हेताह जे मिथिलाक आंतिरिक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित राखियेकेँ ओ मिथिलाकेँ दिल्लीक मित्र बनाकेँ राखि सकैत छथि। एहि तथ्यकेँ स्वीकार कए ओ एकटा दूरदर्शिता आ कूटनीतिज्ञताक परिचय देलन्हि। मिथिलाक स्वतंत्रताक स्वीकृति दए ओ ओइनवार लोकनिक अधीन मिथिलाक शासन भार छोड़लन्हि आ ओहि क्रम ओ ओइनवार वंशीय ‘भोगिसराय’केँ अपन प्रियसखा कहिकेँ संबोधित केलन्हि। मिथिला पुनः स्वतंत्र रूपें अपन शासन प्रारंभ केलक परञ्च ताहि दिनक समय एहेन छल कि चारूकात दिन राति खट–पट होइते रहैत छल। मैथिली परम्पराक अनुसार फिरोज तुगलक राज पण्डित कामेश्वरकेँ मिथिलाक राज्य देने छलाह आ हुनक पुत्र भोगीश्वरकेँ ‘प्रियसखा’ कहि सम्मान केलन्हि। राजपण्डित कामेश्वर ठाकुर ‘ठाकुर’ कहबैत छलाह तैं किछु गोटए एहिवंशकेँ ‘ठाकुर वंश’ सेहो कहैत छथि। वर्धमानक गंगकृत्य विवेकमे कहल गेल अछि “कामेशो मिथिला मासत”। कामेश्वर स्वयं सिद्धपुरूष एवँ योगी होएबाक कारणे मिथिलाक राज्य गछवा लेल तैयार नहि छलाह तथापि भोगीश्वरक आग्रह ओ गछलन्हि आ किछु दिन शासन केलन्हि। कामेश्वरकेँ ‘राय’ आ ‘राजपण्डित’ दुनू कहल गेल छन्हि। कामेश्वरक बाद भोगीश्वर राजा भेलाह। हुनको ‘राय’ कहल जाइत छलन्हि आ कीर्तिलतासँ ज्ञात होइछ जे ओ फिरोज शाहक परम मित्र छलाह। भोगीश्वरक बाद गणेश्वर शासक भेलाह। हुनक समयमे ओइनवार वंशमे बटवारा हेतु संघर्ष भेल जाहिमे लोग दू दलमे बटि गेलाह–एक दल भोगीश्वरक छोट भाइ भवासिंहक समर्थक छल आ दोसर दल गणेश्वरक। जे भेल हो मुदा हम देखैत छी जे गणेश्वर राजा भेलाह। भवेशक पुत्र द्वय कुमर हरसिंह आ कुमर त्रिपुर सिंहकेँ इ बात अप्रिय बुझि पड़लन्हि आ ओ लोकनि अर्जुन राय आ कुमार रत्नाकरक मदतिसँ गणेश्वरक वध केलन्हि। तत्पश्चात भवेश राजा भेलाह। भवेशक दरबारेमे चण्डेश्वर ठाकुर अपन ‘रत्नाकर’– विशेष कए राजनीति रत्नाकरक रचना केने छलाह।
विद्यापतिक कीर्तिलतामे एहि घटनाक विवरण दोसरा ढ़ंगे अछि। विद्यापतिक अनुसार गणेश्वरक हत्या अर्सलान नामक एक मुसलमानक हाथें भेल छल जे मिथिलाक तत्कालीन अराजक स्थितिसँ लाभ उठाकेँ मिथिलाक राज्यकेँ हथिया लेने छल। मैथिली परम्परामे सेहो एहि प्रश्नपर मतैक्य नहि अछि मुदा सब साधनक वैज्ञानिक अध्ययन केला संता इ स्पष्ट होइछ जे मिथिलामे ताहि दिनमे गद्दीक हेतु गृहयुद्धक स्थिति विराजमान छल। गणेश्वरक दुनू पुत्र कीर्तिसिंह आ वीरसिंह बालिग भेलापर अपन पितामह भ्राता भवसिंहसँ राज्यक हेतु प्रार्थना केलन्हि परञ्च से नहि भेटलन्हि। अपन पिताक हत्याक प्रतिशोध लेबाक हेतु इ दुनू भाइ जौनपुर राजा इब्राहिम शाहक ओतए साहाय्यक हेतु पहुँचलाह। महामहोपाध्याय परमेश्वर झा लिखैत छथि जे कीर्तिसिंह वीरसिंह फिरोज शाहक ओतए नालिस कएल आ फिरोज शाह मिथिलापर चढ़ाइ कए हरसिंह त्रिपुर सिंहकेँ मारि राज्य कीर्तिसिंहकेँ फिरौलन्हि। मुदा विद्यापतिक कीर्तिलतासँ एहि बातक समर्थन नहि होइछ।
बापक वैरिकेँ कीर्तिसिंह सधौलन्हि से बात ठीक अछि मुदा एहि हेतु फिरोजशाह मिथिला पर आक्रमण केने छलाह तकर कोनो प्रमाण नहि आछि। एहि गृहयुद्धक क्रममे दुनू पक्ष तत्कालीन मुसलमानी प्रतिनिधिसँ साहाय्यक अपेक्षा रखने होथि तँ कोनो आश्चर्यक बात नहि आ एहिक्रममे गणेश्वरकेँ अपनेसँ नहि मारि कोनो मुसलमानक हाथे मरबौने होथि सेहो संभव कारण जखन लोक ज्ञान आ तर्ककेँ स्वार्थ वश तिलांजलि दैत अछि तखन ओ कोनो प्रकारक काज (नैतिक–अनैतिक)क बैसइयै। भैय्यारीमे जखन एहि प्रकारक झगड़ा होइत तखन तँ दुश्मन लाभ उठवे करइयै। विद्यापति ओइनवार वंशसँ एत्तेक घनिष्ट छलाह कि ओ एहि घिनौना बातकेँ दाबि देलन्हि आ एकर कतहु चर्चो धरि नहि केलन्हि आ गणेश्वरक हत्याक उत्तरदायित्व अर्सलानपर देलन्हि। मुदा विद्यापतिक विवरणसँ एतवा धरि तैं स्पष्ट अछिये जे ताहि दिनमे मिथिलामे चारूकात अराजकता पसरल छल आ केओ ककरो कहबमे नहि छल। ‘अर्सलान’ अर्थ होइछ ‘वीर’‘बहादुर’, ‘जमामर्द’ इत्यादि। वीर अफगान नामक पदाधिकारी ताहि दिन तिरहूतमे छल आ इहो संभव अछि जे गृहयुद्धक स्थितिकेँ देखि ओ एक पक्षक भऽ गेल हुए आ स्वयं मिथिलाक राज्य हथिया लेने हुए। गणेश्वरक मृत्युक कारण अखनो धरि मिथिलाक इतिहासमे एकटा समस्यामूलक प्रश्न बनल अछि आ विद्यापति ओकरा झँपबाक हेतु सब प्रयास कएने छथि कारण गणेश्वरक पुत्रक प्रति विद्यापति सहानुभूति रखैत छलाह आ हुनक अधिकारक स्थापनाक हेतु हुनका लऽ कए जौनपुर सेहो गेल छलाह। ओ कीर्तिसिंहकेँ ‘पुरूष श्रेष्ठ’क कोटिमे रखने छथि आ मैथिल कवि दामोदर मिश्र अपन छन्द ग्रंथ “वाणी भूषण”मे सेहो कीर्ति सिंहक सम्बन्धमे निम्नलिखित उद्गार प्रगट केने छथि।
कीर्तिलता मध्यक विवरण एतवा धरि अवश्य स्पष्ट कऽ दैत अछि जे तत्कालीन स्थिति गंभीर छल आ जौनपुरक शासक मिथिलाक राजकुमारक सहायता केने छलथिन्ह। उपेन्द्र ठाकुरक मत छन्हि जे गणेश्वरक समयमे मिथिलाक बटबारा भऽ गेल छल आ ओइनवार वंश दू भागमे बटिकेँ शासन करैत छल। भवसिंहक शासक हैव तैं चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकरसँ प्रमाणित अछि। परञ्च गणेश्वरक पुत्रक स्थिति कि छल से कहब असंभव। उपेन्द्र ठाकुर मिथिलाकेँ जौनपुरक सामंत राज्य हौएबाक बात कहने छथि मुदा एकर कोनो प्रमाण ओ नहि देने छथि आ कीर्ति सिंहक सम्बन्धमे जे तिथि देल गेल अछि सेहो गलती अछि। भवेशक शासनकाल (भवसिंह) संभवतः मिथिलाक दुर्दशाकेँ देखि समस्त मिथिलाकेँ एक रखबाक ओ यथेष्ट प्रयास केने छलाह। कन्दाहा अभिलेखमे हुनका ‘पृथ्वीपति द्विजवरो’ भवसिंह कहल गेल छन्हि आ विद्यापति अपन शैव सर्वस्वसारमे हुनक वैभवक वर्णन करैत लिखैत छथि–
“गंगोहुंग तरंगिता मललसत् कीर्तिच्छटांक्षालित
क्षोणिक्ष्मातल सर्वपर्वत वरो वीरत्रतालंकृत....”
भवसिंह एतेक प्रतापी शासक छलाह जे छोट–छोट सामंत शासक हुनका डरे थर–थर कंपैत छल। ओ सब सतत अपन माथ हिनका पैर टेकने रहैत छल। भवसिंह प्रतापी राजा छलाह आ दानी सेहो। वाग्मतीक तटपर ओ अपन पार्थिव शरीरकेँ त्यागलन्हि आ ओहिठाम हुनक दुनू पत्नी सेहो सती भेलथिन्ह।
भवसिंहक बाद देवसिंह राजा भेलाह। परमेश्वर झाक अनुसार ओइनिमे कीर्ति सिंहक राज्य भेने राति दिन खट पट होइतन्हि तैं महाराज भवसिंह अपन अंतिम समयमे ओहि स्थानकेँ त्यागि दरभंगासँ दक्षिण वाग्मती तटपर अपन स्कन्धावार बनौने छलाह। देवसिंह जखन राजा भेलाह देकुलीमे अपन राजधानी बनौलन्हि जाहिठाम अखनो स्मार्त निबन्धकर्त्ता धर्माधिकारी अभिनव वर्धमान उपाध्यायक स्थापित “वर्धमानेश्वर” नामक महादेवक मंदिर अछि। देवसिंहक विरूद ‘गरूड़नारायण’ छलन्हि। हुनक पत्नीक नाम छलन्हि हासिनी देवी। पुरूष परीक्षा आ शैवसर्वस्वसारक अनुसार देवसिंह एक कुशल प्रशासक आ सफल विजेता छलाह। मिथिलाक एक उदारशासकक रूपमे ओ सेहो प्रसिद्ध छथि कारण ओ ‘तुला पुरूषदान’ सेहो करौने छलाह। कृषि आ जनकल्याणक हेतु ओ अपना राज्यमे बड्ड पैघ–पैघ पोखरि सेहो खुनौने छलाह। एक पोखरिक नाम देवसागर छल आ ओहिसँ सटल बस्तीक नाम सगरपुर छल। ओ विद्या आ संस्कृतिक समर्थक सेहो छलाह आ विद्यापतिक अनुसार ओ “वीरेषु मान्याः सुधियाँ वरेण्योः” छलाह। हुनके कहलापर विद्यापति “भूपरिक्रमा” लिखने छलाह जाहिमे नैमिष्य जंगलसँ मिथिला धरिक बलदेवक यात्रा विवरणक उल्लेख अछि। संगहि एहिमे नीतिपरक कथा सेहो कहल गेल अछि। देवसिंहक अनुमतिसँ श्रीदत्त एकाग्निदान पद्धतिक रचना केलन्हि। हुनके समयमे मुरारिक पितामह हरिहर प्रधान न्यायाधीश छलाह। हिनके दरबारमे स्मृति तत्वामृतक रचयिता अभिनव वर्द्धमान रहैत छलाह आ ओ धर्माधिकारी सेहो छलाह।
देवसिंहक समयमे आबिकेँ मिथिलाक दुर्व्यवस्थामे थोड़–बहुत सुधार भेल आ आब ओ लोकनि एहि बातकेँ बुझए लगलाह जे जाधरि ओइनवार वंश पुनः एकजूट भऽ प्रयत्नशील नहि रहत ताधरि मिथिलाक दुर्व्यवस्था बनले रहतैक। देवसिंह एहि दिशामे विशेष प्रयास केने छलाह आ अपना चारूकातक क्षेत्रपर अपन प्रभावकेँ दृढ़ करबामे किछु उठा नहि रखने छलाह। कीर्तिसिंहक ओहिठामसँ देवसिंहक दरबारमे विद्यापतिक आएब एकटा विचारणीय विषय अछि। विद्यापति ओइनवार कुलक सब किछु छलाह आ ओइनवारक नेतृत्वमे मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित देखए चाहैत छलाह। तैं जखन देवसिंहक प्रयाससँ विद्यापतिकेँ इ विश्वास भेलैन्ह जे इ समस्त मिथिलाक एकता एवँ स्वतंत्रताक हेतु प्रयत्नशील छथि तखन ओ कीर्तिसिंहक संग छोड़ि देवसिंहक ओतए आबि गेलाह एतए आतहियासँ यावज्जीवन हुनके वंशजक संग रहलाह। जे विद्यापति गणेश्वरक हत्याक वाद कीर्तिसिंहक हकक हेतु सब किछु केने रहैथ सैह विद्यापति जखन देखलन्हि जे कीर्तिसिंहक नेतृत्वमे मिथिलाक एकता संभव नहि होएत आ मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो नहि वाँचत तखन ओ अपन निर्णय बदलि देलन्हि आ देवसिंहक प्रयासमे सहयोग देलन्हि। ‘घर फुटे गँवार लूटे’क कहावत मिथिलामे चरितार्थ भऽ चुकल छल आ एकर कि परिणाम होइछ से विद्यापति देखि चुकल छलाह तैं ओ देवसिंहक वंशजक संग अपन भाग्यकेँ सटादेलन्हि आ तहियासँ अपन मृत्यु धरि ओ मिथिलाक एकता एवँ स्वतंत्रताक हेतु तल्लीन रहलाह आ स्वयं युद्ध एवँ शांतिमे एक रंग बहादुर जकाँ ठाढ़ रहलाह। देवसिंहक ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह विद्यापतिक अभिन्न छलथिन्ह आ शिवसिंह मिथिलाक इतिहासपर जे अमिट छाप छोड़ने छथि तकरा विद्यापति अपन लेखनीसँ आ अमर बना देने छलथिन्ह।
शिवसिंह:- ओइनवार वंशक सर्वश्रेष्ठ, सर्वप्रसिद्ध आ एतिहासिक दृष्टिकोणसँ सबसँ महत्वपूर्ण शासक छलाह शिवसिंह। हिनक विरूद्ध छलन्हि रूपनारायण। इ दुनू भाइ छलाह अपने आ पद्मसिंह। बाल्य कालहिसँ इ राजदरबारमे रहैत छलाह आ बालिग भेलापर अपन पिताक सबटा राज्यक कार्य करैत छलाह। इ बड्ड तीक्ष्ण बुद्धिक लोक छलाह आ राजनीतिमे सर्वथा निपुण सेहो। योग्य राजकुमार बनेबाक विचारे हिनक पिता देवसिंह हिनका विद्यापतिक संग लगौने रहथिन्ह आ नीतिमे निपुणता प्राप्त करेबाक हेतु विद्यापति शिवसिंहक आदेशानुसार ‘पुरूष परीक्षा’क रचना केने छलाह। विद्यापतिक गीतमे १२९ पदमे (११२+१७) शिवसिंहक नाम अछि।
१५ वर्षक अवस्थहिंसँ इ राज्यक प्रशासनमे हाथ बटबैत छलाह। जखन ओ राजा भेलाह तखन ओ देकुली (देवकुली)सँ अपन राजधानी हटाकेँ गजरथपुर अनलन्हि। ओकरा शिवसिंहपुर सेहो कहल जाइत छैक। एहिठाम गजरथपुरसँ शिवसिंह विद्यापतिकेँ दान देने छ्लथिन्ह। राज्य प्रशासनमे हाथ बटेबा काल हुनका अपन परम मित्र एवँ अभिन्न विद्यापतिसँ सेहो सहयोग भेटइत रहन्हि। शिवसिंह परम विद्वान, उदार, सुन्दर, तथा प्रतापी छलाह। हुनक खुनाओल पोखरि वारि भड़ौरामे रजोखरि नामसँ प्रसिद्ध अछि आ हुनक बनाओल सड़क सब रजबान्ह (राजबन्ध) शिवसिंहपुरसँ राजवाड़ा घोड़ दौड़ धरि हुनक गजरथक सड़क अत्यंत सुदृढ़ आ चाकर अछि। पोखरि आ सड़क ओ प्रजाक कल्याणार्थ बनौने छलाह। एहि प्रसंगमे हुनका सम्बन्धमे एकटा लोकोक्ति निम्नांकित अछि–
“पोखरि रजोखरि आ सब पोखरा, राजा शिवसिंह आ सब छोकड़ा।
तालते भूपाल ताल आरो सब तलैया, राजा ते शिवसिंह आरो सब रजैया”॥
शिवसिंहक समयमे तिरहूतक राज्य शक्तिशाली भऽ गेल छल। अपना चारूकातक परिस्थितिकेँ ध्यानमे राखि ओ अपन राजधानी गजरथपुरमे अनने छलाह आ राज्यक विभिन्न भागसँ सड़क द्वारा ओकरा जोड़ने छलाह। गौड़ आ गज्जनक विरूद्ध ओ संघर्ष केने छलाह जकर प्रमाण हमरा पुरूष परीक्षासँ भेटइयै। देवसिंहक समयमे सेहो मिथिलामे मुसलमानी प्रकोप छल। परम्पराक अनुसार अपन पिताक शासनकालमे मुसलमानी सेनासँ लड़बाक हेतु ओ पठाओल गेल छलाह आ ओहिमे पराजित भेलाक कारणे गिरफ्त भेल छलाह। हुनके छोड़ेबाक हेतु विद्यापति गेल छलथिन्ह आ मुसलमानी शासक विद्यापतिक काव्य प्रतिभासँ प्रभावित भए शिवसिंहकेँ छोड़ि देने रहैन्ह आ विद्यापतिक बहुत सम्मान केने रहैन्ह। राजा भेलाह शिवसिंह एहि अपमानकेँ बिसरल नहि छलाह आ तैं अपन स्वाभिमान आ मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ हुनका कतेको मुसलमान शासकसँ संघर्ष करए पड़लन्हि।
जेना कि हम पूर्वहिं कहि चुकल छी जे मध्य युगमे मिथिलापर पश्चिम आ पूब दुनू दिसिसँ दबाब पड़इत छल आ मिथिला ‘वेत्तसिवृत्ति’क नियम पालन करैत छल। दिल्ली, जौनपुर, बंगाल, सभहिक नजरि मिथिलापर छलैक। शिवसिंहक पूर्ण इच्छा छलन्हि जे मिथिलाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र राज्यक रूपमे राखल जाए आ ताहि प्रयासमे ओ कोनो कसैरि उठा नहि रखलन्हि। अपन कम दिनक शासनमे ओ जाहि निपुणताक परिचय देने छथि से कोनो देशक राजाक हेतु एकटा गौरवक विषय। शिवसिंहकेँ पँचगौड़ेश्वर सेहो कहल गेल छन्हि। बंगालोमे मिथिला जकाँ अराजक स्थिति छल आ ओतहु शिवसिंह जकाँ राजा गणेश ओहि स्थितिसँ लाभ उठाकेँ ओतए अपन शासन स्थापित कऽ लेने छलाह। हुनक पुत्र जदुसेन मुसलमान भऽ गेलाह आ जलालुद्दीनक नामे ओतुका राजा बनलाह। ओ शिवसिंहक समकालीन छलाह। शिवसिंह हिनका विरूद्ध अभियान शुरू केलन्हि आ हिनका पराजित केलन्हि आ हिनक राज्यक किछु अंशकेँ अपना राज्यमे मिलौलन्हि। बंगालपर विजय प्राप्त करबाक हेतु इ पंचगौड़ेश्वर कहाओल गेल हेताह से संभव। ताहि कालमे पश्चिममे जौनपुरक इब्राहिम शर्कीक बड्ड प्रभाव छलैक आ बंगालमे जखन मुसलमानी शासनक पराभव भेल तखन ओतए गणेशक उत्थान भेल। मिथिलामे शिवसिंह आ बंगालमे गणेशक प्रादुर्भावसँ पश्चिमक मुसलमान शासनक कान ठाढ़ भेल आ बंगालक मुसलमान संत लोकनि इब्राहिम शर्कीकेँ एहि बातक हेतु चेतौलन्हि। बंगालक निमंत्रण पर इब्राहिम शर्की बढ़लाह जाहिसँ ओहिठाम पुनः मुसलमानी शासनक पुनर्स्थापित भऽ सकए।
एहिक्रममे मिथिलामे हुनका शिवसिंहसँ झंझट हैव स्वाभाविक कियैक तँ शिवसिंह बंगालक जलालुद्दीनकेँ पराजित कए ओतए धरि अपन राज्यक विस्तार कऽ लेने छलाह आ संगहि मिथिलाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र सेहो। इब्राहिमकेँ एहि दूमेसँ कोनो बात पसिन्न नहिये पड़ल होएतन्हि आ तैं मिथिलापर आक्रमण करब हुनक बंगाल नीतिक एकटा प्रमुख अंग रहल होएत। शर्की कालीन अभिलेख तिरहूतमे मुल्ला तकिया देखने छलाह आ ताहिसँ इ बुझना जाइत अछि जे शिवसिंहकेँ परास्त करबाक हेतु अथवा बदला लेबाक हेतु इब्राहिम शाह तिरहूतपर आक्रमण केने हेताह। हुनक समर्थक कीर्तिसिंहक प्रताप आब मिथिलामे नहि छलैक आ स्वाभिमानी एवँ स्वतंत्रता प्रेमी शिवसिंहक शासन पूब–पश्चिम दुनूकेँ चैलेंज कऽ रहल छलैक। एहना स्थितिमे इब्राहिम शर्की चुप्प बैसनिहार नहि छलाह। दुनूक बीच संघर्ष भेल जकर परिणाम हमरा लोकनिकेँ ज्ञात नहि अछि आ एकर बादे ओ वंगाल दिसि बढ़ल होएताह। एहो संभव जे बंगालसँ घुरबो काल (जतए ओ शिवसिंहक महत्वाकाँक्षाक विषयमे सुनने होथि) ओ मिथिलापर आक्रमण कए गेल होथि। मुदा तत्कालीन साधनक आधारपर एहि सम्बन्धमे कोनो ठोस निर्णय देव असंभव अछि।
शिवसिंह स्वतंत्र रूपें लगभग ३–४ वर्ष धरि शासन केलन्हि परञ्च कहियो ओ निश्चिंत भऽ सुति नहि सकलाह कारण सब दिन हुनका कोनो ने कोनो समस्या लगले रहैन्ह। दिल्ली आ जौनपुर हुनका बरोबरि तंग करैत रहैन्ह जो ओ पसिन्न नहि करैत छलाह। मुसलमान शासककेँ जे तिरहूतसँ कर भेटइत रहैक से देव ओ वंद कऽ देलैन्ह आ ओ अपनाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र घोषित कऽ देलैन्ह। इ शासककेँ छलाह से सम्प्रति कहब असंभव मुदा कर बन्द केलाक बाद ओ खिसिया गेलाह आ शिवसिंहक संगहि युद्ध बजरब स्वाभाविक भऽ गेल। एतवे नहि अपन स्वतंत्रताकेँ व्यापक बनेबाक हेतु शिवसिंह अपना नामे सोनाक सिक्का बहार केलन्हि आ एहिक्रममे ओ इ सिद्ध कऽ देलैन्ह जे मिथिलाक कोनो दोसर महाप्रभु शिवसिंह छोड़िकेँ आ केओ नहि छल। एहिसँ मिथिलाक गौरवमे वृद्धि भेल आ शिवसिंह नान्यदेवक परम्परामे आबि गेला। शिवसिंहक एहि काजसँ तत्कालीन छोट–छोट राजाकेँ प्रेरणा भेटलैक आ शिवसिंहक शासन काल धरि मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो अक्षुण्ण रहलैक। इ मिथिलाक इतिहासक हेतु एकटा गौरवक विषय मानल जाइत अछि।
मुसलमान सुल्तान शिवसिंहक एहेन विद्रोही रूप देखि आश्चर्यचकित भऽ गेलाह। शिवसिंह सेहो अपन गिरफ्त होएबाक अपमानकेँ बिसरने नहि छलाह। दुनू अपन–अपन जिद्दपर छलाह जकर नतीजा इ भेल जे दुनूक बीच युद्ध अवश्यम्भावी भऽ गेल। एहि युद्धक परिणाम तँ बुझल नहि अछि परञ्च एकर बाद शिवसिंह हारि गेला, अथवा मारल गेलाह या लापता भऽ गेलाह से बुझल नहि अछि। मारलो गेल होथि से असंभव बात नहि। किछु गोटएक मत छन्हि जे शिवसिंह नेपालक जंगलमे भागि गेलाह अथवा ओम्हरे लापता भऽ गेलाह। एकर अर्थ किछु लेल जा सकइयै। एहि पराजयक बाद लखिमा देवी विद्यापतिक संगे द्रोणवार राजा पुरादित्यक ओतए सप्तरी परगन्नामे चल गेला। नेपालमे सेहो एकटा शिवराजगढ़ अछि जकरा लोक शिवसिंहसँ जोड़ैत अछि आ किछु गोटएक विचार छन्हि जे रानी लखिमा अपन पतिक स्मारक स्वरूप एहि गढ़क निर्माण करौने छलीह। विद्यापति एहि युद्धक वर्णन जाहि रूपें केने छथि ताहिसँ बुझना जाइत अछि इ भयंकर युद्ध छल। विद्यापति सेहो शिवसिंहक संगे युद्धमे शरीक भेल छलाह। युद्धक स्वरूप विद्यापतिक निम्नलिखित कवितासँ स्पष्ट होएतः–
“दूर दुग्गमदमसि भज्जे,
ओ गाढ़ गड़ गूठीअ गण्जेओ।
पातिसाह ससीम सीमा समदरसे ओरे।
ढोल तरल निसान सद्दहि भेरि काटल संख नद्दहि।
तीन भूअन निकेतकेँतकि सनभरि ओरे॥
कोहे नीरे पयान चलियो वायुमध्य सयगरूओ।
तरणि तेअ तुलाधार परताप गहि ओरे॥
मेरू कनक सुभेरू कम्पिय धरणि पूरिय गगन झम्पिय।
हाति तुरय पदाति पयभर कमन सहि ओरे॥
तरल तर तखारि रङ्ग़े विज्जुदाम छटा तरंगे,
घोरघन संघात वारिस काल दरस ओरे॥
तुरय कोटी चाप चूरिय चारदिस चौविदिशपूरिय।
विषम सार असारधारा धोरनी भरि ओरे॥
अन्धकुअ कबन्ध लाइअ फेखी फफफरिस गाइअ।
रूहिरमत्त परेत भूत वेताल विछलि ओरे॥
पारभइ परिपन्थ गज्जिय भूमि मण्डल मुण्डे मण्डिअ।
चारू चन्द्रकलेब कीर्तिसुकेत की तुलि ओरे।
रामरूपे स्वधरम राखिअ दान दप्पे दधीचि खीखिअ।
सुकवि नव जयदेव भनि ओरे॥
देवसिंह नरेन्द्र नन्दन शत्रु नखइ कुल निकन्दन, सिंह
समशिवसिंह मया सकल गुणक निधान गणि ओरे”॥
शिवसिंह मात्र एक विजेतेटा नहि अपितु कला, संस्कृति आ साहित्यक संरक्षक सेहो छलाह। हुनक दरबार विद्वान, पण्डित, कवि, दार्शनिक एवँ चिंतक लोकनिसँ भरल रहैत छल आ एहि मानेमे ओ राजा विक्रमादित्य आ भोजसँ एक्को पाइ कम नहि छलाह। विद्यापति, वाचस्पति, अमृतकर, जयंत, लखिमा आदिक नामसँ सब केओ परिचित छथिओ। विद्यापति तँ हुनक सब किछु छलथिन्ह आ पदावलीक रचना शिवसिंहक राज दरबारमे भेल। शिवसिंहक मंत्रीगण छलाह अच्युत, महेश (महेश्वर) आ रतिधर। शंकर नामक एकटा प्रमुख अधिकारी सेहो हुनका दरबारमे रहैत छलाह। तरौनीक एक पोखरिक अंगनइमे शिवसिंह कालीन एतिहासिक अवशेष सब सुरक्षित अछि। ओहि समयक एकटा पोखरि ‘भटोखरि’क नामसँ प्रसिद्ध अछि। मिथिलामे ओ प्रथम राजा छलाह जे स्वर्ण मुद्राक प्रचलन चलौने छलाह आ जकर दूटा अवशेष अखनो प्राप्य अछि। शिवसिंहक सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे ओ अपना समयक समकालीन राजा सभहिक मध्य एकटा अद्वितीय प्रतिभाक व्यक्ति छलाह जे एतवे कम दिनमे समस्त उत्तरी भारतमे अपन धाक जमा लेने छलाह। परञ्च सबहिक दिन सबखन एक्के रंग नहि रहैत अछि तैं शिवसिंह एकर अपवाद कोना होइतैथ।
शिवसिंहक परोक्ष भेलाहपर पद्मसिंह मिथिलाक शासक भेला आ मैथिल परम्पराक अनुसार ओ दिल्ली सुल्तानकेँ कर देब स्वीकार केलन्हि। हुनका समएमे विद्यापति हुनक सलाहकार छलथिन्ह। ताहि कालमे विद्यापति ठाकुरकेँ मंत्री सेहो कहल गेल छन्हि। ओ पद्मा, पद्मौलि आदिक स्थापना केलन्हि आ चम्पारणमे पद्मकेलि नामक स्थानक सेहो। विद्यापति हिनका नृपति पद्मसिंह कहिकेँ उल्लेख केने छथि। विद्यापतिक अनुसार पद्मसिंह भीम जकाँ बहादुर छलाह आ दानीक हिसाबे कल्पवृक्षे बुझल जाइछ। शैवसर्वस्वसारमे विद्यापति लिखने छथि–“संग्रामांगन सीम भीम सदृश....दाने स्वल्पित कल्पवृक्ष”।
पद्मसिंहकेँ कोनो पुत्र नहि छलन्हि। पद्मसिंहक बाद महारानी लखिमा मिथिला राज्यक भार अपना हाथमे लेलन्हि। उपेन्द्र ठाकुर लिखने छथि जे शिवसिंहक पछाति लखिमा उत्तराधिकारिणी भेलीह मुदा से बात विश्वास करबा योग्य नहि अछि कारण हम देखि चुकल छी जे विद्यापतिक संग लखिमा द्रोणवार पुरादित्यक दरबारमे चल गेल छलीहे आ मिथिलामे बचि गेल छलाह, पद्मसिंह जे मुसलमानी महाप्रभुकेँ कर देबाक वचन दए मिथिला राज्यक आंतरिक स्वतंत्रता सुरक्षित रखबामे समर्थ भेल छलाह। मैथिली परम्परामे एकटा कथा सुरक्षित अछि जाहिसँ एहि बातपर प्रकाश पड़इयै। शिवसिंहक लापता भेलापर कायस्थ चन्द्रकरक पुत्र एवँ शिवसिंहक मंत्री अमृतकर पटना गेला आ ओतए जाए सुल्तानक प्रतिनिधिसँ भेट कए मिथिलाक स्वतंत्रताक भीख मंगलन्हि। तखन जे समझौता भेल तदनुसार पद्मसिंह राजगद्दीपर बैसलाह। पद्मसिंह बछौर परगन्नामे पदुमा नामक स्थानपर अपन राजधानी बनौलन्हि। एहि परम्पराकेँ ध्यानमे राखिक स्पष्ट होइछ जे शिवसिंहक बाद मिथिलाक गद्दीपर पद्मसिंह बैसलाह आ तत्पश्चात लखिमा रानी।
लखिमा रानीकेँ गद्दीपर बैसबाक मूल कारण इ छल जे पद्मसिंह सेहो अपुत्रे मरल छलाह। बारह वर्ष धरि ओ शिवसिंहक प्रतीक्षा नियमानुसार केलन्हि आ तदुपरांत शिवसिंहक श्राद्धादि कए विद्यापतिक विचारसँ ओ राजगद्दीपर बैसलीह। लखिमा देवी नीति, धर्मनिष्ठा, उदारता, एवँ विद्वता आदिमे निपुण छलीहे आ विद्यापतिक सहयोगसँ नीक जकाँ करीब नौ वर्ष धरि राज्य केलन्हि। एकर बाद पद्मसिंहक पत्नी विश्वास देवीक शासन भेलन्हि। ओ विसौली गाममे अपन राजधानी बनौलनि आ बहुत रास धार्मिक कृत्य केलन्हि। विद्यापति हिनका समयमे बहुत रास पोथी लिखलन्हि।
देवसिंहक वंशज अंत एहिठाम भऽ गेल आ तत्पश्चात हुनक वैमात्रैय भाए कुमर हरसिंहक शाखाक शासन पुनः प्रारंभ भेल। इ बहुत कम दिन धरि शासन केलन्हि आ हिनका समयमे कोनो खास घटनो नहि घटल। विभागसार (विद्यापति), कृत महार्णव एवँ महादान निर्णय (वाचस्पति), विवाद चन्द्र (मिसारुमिश्र) तथा गंगकृत्य विवेक (वर्द्धमान) आदि पोथी सबमे हिनक नामक उल्लेख भेटइयै। कन्दाहा अभिलेखमे सेहो हिनक उल्लेख अछि। ओ विद्वान उदार एवँ योद्धा छलाह।
हिनक बाद हिनक पुत्र रत्न सिंह प्रसिद्ध नरसिंह दर्पनारायण राजगद्दीपर बैसलाह। नरसिंह अत्यंत प्रतापी राजा छलाह आ तैं हिनका दर्पनारायणक विरूद मंत्री लोकनि देने रहथिन्ह। कहल जाइत अछि जे ओ अपने मंत्री विद्यापति ठाकुरसँ विभागसागर नामक कानूनी ग्रंथक निर्माण करौने छलाह आ तदनुसार न्यायालयमे कार्य करबाक आज्ञा देने छलाह। कन्दाहा (सहरसा)क सूर्य मन्दिर पर एखनो हिनक लिखाओल उपलब्ध अछि आ ओकर तिथि देल अछि शक १३७५ (१४५३–५४ ई.) ओहि शिलालेखक पाठ एवँ प्रकारे अछि–
एहिलेखमे नरसिंहक पूर्वज उल्लेख अछि आ इहो कहल गेल अछि जे ओ अपन दुनू शक्तिशाली भुजासँ अपन दुश्मनकेँ दबौने छलाह आ सब हुनके पैरपर लोट पोट करैत छल। कामन्दकीय नीर्तिसारक अनुसार ओ अपन राज्यकेँ रक्षा करैत छलाह। एहिमे हुनका ‘भूपति तिलक’ सेहो कहल गेल छन्हि। दुर्गा भक्ति तरंगिनीमे विद्यापति हिनका योद्धा कहने छथिन्ह। इ अपने आ हिनक पत्नी धीरमति एक्के रंग उदार छलाह। कहल जाइत अछि जे धीरमतिक आदेशानुसार काशीमे एकटा वापी खुनाओल गेल छल आ धर्मात्माक हेतु एकटा धर्मशालाक निर्माण सेहो कैल गेल छल। हिनके आदेशपर विद्यापति दानवाम्यावली ग्रंथक निर्माण कएने छलाह। एहिमे नरसिंह देवक हेतु निम्नलिखित वाक्यक प्रयोग भेल अछि।
“श्री कामेश्वर राज पण्डित कुलालंकार सारः श्रिया
मावासो नरसिंह देव मिथिला भूमण्डलाखण्डलः।
दृव्यद् दुर्धखौरिदर्पदलनोऽभूद्दर्पनारायणो।
विख्यातः शरदिन्दु कुन्द धवल भ्राम्यद्यशो मण्डलः।
तस्योदार गुणाश्रस्य मिथिला क्ष्मापाल चूड़ामणेः॥
हिनके समयमे विद्यापति व्याढ़िभक्तितरंगिणी सेहो बनौने छलाह। व्याढ़िभक्तितरंगिणी आ विभागसारक मूल अपन पोथी ‘मिथिला इन द एज ऑफ विद्यापति’क परिशिष्टमे छपने छी। हिनका समयमे बहुत रास विभिन्न विषयक ग्रंथक रचना सेहो भेल।
नरसिंहक बाद धीरसिंह राजा भेलाह। नरसिंहकेँ चारिटा पुत्र छलथिन्ह–
धीरसिंह हृदय नारायण (प्रथम पत्नीसँ)
भैरवसिंह रूपनारायण
चन्द्र सिंह (द्वितीय पत्नीसँ)
दुर्लभ सिंह (रण सिंह)
धीरसिंह अपने पिता जकाँ एकटा योग्य शासक छलाह। ई. १४६० क आसपास गद्दीपर बैसलाह आ विद्यापति हिनको हेतु प्रशंसाक पुल बान्हने छथि। मर्यादा, पराक्रम आ प्रज्ञा तीनुमे इ अपूर्व छलाह। हिनको दरबारमे बहुत रास विद्वान रहैथ छलथिन्ह। हिनके छोट भाए चन्द्रसिंह चनौर (चन्द्रपुर)क निर्माता छलाह। चन्द्र सिंहक आदेशपर कृष्ण मिश्रक प्रबोध चन्द्रोदय नाटकपर रूचि शर्मा अपन टीका लिखने छलाह। धीरसिंहक कंसनारायण सेहो कहल जाइत छलन्हि।
भैरवसिंह देव:- मिथिलामे शिवसिंहक बाद ओइनवार वंशमे सबसँ प्रसिद्ध शासक भेलाह भैरव सिंह देव जे पुनः एक बेर शिवसिंह जकाँ समस्त मिथिलाक एकीकरण केलन्हि आ मिथिलाकेँ पूर्ण स्वतंत्र घोषित केलन्हि। उहो शिवसिंह जकाँ अपन चानीक सिक्का चलौने छलाह आ ओहि सिक्काक आधारपर इ निर्विवाद रूपें कहल जाइत अछि जे ओ १४७५ ई. मिथिलाक गद्दीपर बैसलाह। हुनक स्त्री जयाक अनुरोधपर वाचस्पपति मिश्र द्वैत निर्णयक रचना कएने छलाह। शिवसिंह जकाँ इहो पंचगौड़ेश्वरक उपाधिसँ विभूषित छलाह। हिनका सम्बन्धमे निम्नलिखित शब्दावली ध्यान देबाक योग्य अछि।
विद्यापति:-
शौयावर्जित पंचगौड़धरणी नाथोप नम्रीकृता–
नेर्को तुङ्ग तुरंग संग सहितच्छत्राभि रामोदयः
श्रीमद भैरव सिंह देव नृपतिर्यस्यानुजन्मा जय
त्याचन्द्रार्कमखण्डकीर्ति सहितः श्री रूपनारायणः।
रूचि शर्मा (प्रबोधचन्दोदयक टीकामे):-
न्यायेनावति तीरभुक्ति वसुधां श्री धीरसिंह नृपे
श्रीमद भैरव सिंह भूमिपतिना भ्रात्रानुजेनांविते।
वर्द्धमान (दण्डविवेक):-
गौड़ेश्वर प्रतिसरीरमति प्रतापः
केदार राय मवगच्छति दार तुत्यम्॥
संभवतः शिवसिंह जकाँ भैरवसिंह सेहो अपन पिताक समयसँ शासनमे हाथ बटबैत छलाह। हिनका समयक सबसँ मुख्य घटना इ अछि जे इ बंगाल सुल्तान द्वारा कैल गेल मिथिलाक अप्राकृतिक बटवाराकेँ तोड़लन्हि आ पुनः समस्त मिथिलाकेँ एक कए ओहिपर अपन एक क्षत्र राज्यक स्थापना केलन्हि। बछौड़ परगन्नाक बरूआ ग्राममे ओ अपन राजधानी बनौलन्हि कारण इएह सबसँ सुरक्षित स्थान हिनका बुझि पड़लन्हि।
एतए इ स्मरण रखबाक अछि जे हाजी इलियास १३४६ ई.मे मिथिलापर आक्रमणक क्रममे हाजीपुर तक बढ़ल छल आ मिथिलाक ओइनवार राजाकेँ पराजित कऽ कए मिथिलाकेँ दू भागमे बाँटि देने छल। गंडकक उत्तरी भागमे ओ ओइनवार लोकनिकेँ शासन करैत छोड़ि देलकन्हि आ गण्डकक दक्षिणी भाग समस्तीपुर, बेगूसराय, बछवाड़ा, महनार, हाजीपुर आदि क्षेत्रकेँ ओ अपना अधीन रखलक। गण्डकपर अपना दिसि ओ समस्तीपुर (शमसुद्दीनपुर) नामक नगरक स्थापना केलक। तिरहूतक ओइनवार शासककेँ इ सब दिन खटकैत रहैन्ह। एहि आप्राकृतिक बटबाराकेँ किछु दिनक हेतु शिवसिंह नष्ट कए समस्त मिथिलाक एकीकरण कएने छलाह परंतु शिवसिंहक परोक्ष भेलापर पुनः यथास्थितिक स्थापना भेल आ केओ मैथिल शासक एहि दिसि ध्यान नहि देलन्हि। भैरव सिंह एक महत्वाकाँक्षी व्यक्ति छलाह आ मिथिलाक अप्राकृतिक बटवारा हुनका बरोबरि खटकैत रहैन्ह तैं ओ राजगद्दीपर एला उत्तर सबसँ पहिने एहि दिसि ध्यान देलन्हि आ एहिमे सफल सेहो भेला।
धीरसिंहक समयसँ बंगालसँ खटपट होइत छल आ इ बात भैरवसिंह देखैत छलाह। बेर–कुबेरमे हुनके बंगालक विरूद्ध अभियानमे जाइयो पड़इत छलन्हि तैं जखन ओ शासक भेलाह तखन ओ एहि दिसि अपन ध्यान देलन्हि। हुनका समय बंगाल सुल्तानक प्रतिनिधि केदार राय हाजीपुरमे रहैत छल। भैरव सिंह केदार रायकेँ पराजित कए ओहि क्षेत्रपर अपन आधिपत्य स्थापित केलन्हि आ समस्त मिथिलाक एकीकरण करबामे समर्थ भेला।
ओ सौसँ उपर पोखरि खुनौलन्हि। एहिमे जरहटिया गामक पोखरि सबसँ पैघ छल। हिनका दरबारमे चौहान केसरी सिंह आ संग्राम सिंह प्रसिद्ध सिपाही छलथिन्ह आ परम्परागत कथाक अनुसार ओ एहि दुनू सिपाही लंका पठौने छलाह। जरहटिया पोखरिक यज्ञोत्सव बड्ड पैघ भेल छल आ ओहिमे तत्कालीन राजा महाराजा आ विद्वान लोकनिकेँ आमंत्रित कैल गेल छलन्हि। ओहि क्रममे उपरोक्त दुनू दूतकेँ लंको पठाओल गेल छलन्हि। ताहि दिनमे बंगाली विद्वान रघुनाथ शिरोमणि सेहो एहिठाम पढ़ि रहल छलाह आ एहि यज्ञमे नुकाकेँ सब किछु देखैत छलाह। यज्ञमे गलती मंत्र पढ़ल जा रहल छल आ से हुनका नहि रहल गेलन्हि तो ओ बाजि उठलाह–“साखती कथिता कर्विता पण्डितराज (रत्न) शिरो मणिना”– एहिसँ लोग हुनका चिन्ह लेलक।
पोखरिक अतिरिक्त भैरवसिंहक समयमे बहुत रास नगर पट्टनक स्थापना सेहो भेल छल। ‘तुलापुरूषदान’क चर्च सेहो भेटइत अछि। संस्कृत साहित्यमे बहुत रास ग्रंथक रचना एहि कालमे भेल। विद्यापति, वाचस्पति, पक्षधर आदि सन धुरन्धर विद्वान हुनका दरबारमे छलथिन्ह आ राजा स्वयं संस्कृत साहित्यक बड्ड पैघ पृष्टपोषक छलाह। हुनका दरबारमे वाचस्पति ‘परिषद्’ रहथिन्ह, आ वर्द्धमान धर्माधिकरणिक रहथिन्ह। हिनक विरूद छलन्हि ‘रूपनारायण’।
भैरवसिंहक वाद रामभद्र शासक भेला आ हिनको विरूद रूपनारायणे छलन्हि। इहो अपन राजधानी रामभद्रपुर नामक गाममे बनौलन्हि। कहल जाइत अछि जे हिनका पटनामे सिकन्दर लोदी संगे भेट भेल छलन्हि आ दुनूमे बेस दोस्ती सेहो छलन्हि। इ हुनका संग शतरंज इत्यादि सेहो खेलाइत छलाह। सुल्तान रहस्य नृत्य देखबा काल हुनकहुँ अपना समीपमे स्थान देथिन्ह। गौड़, बंगाल, मालदह, मुर्शिदाबाद आदि स्थानकेँ ओ जीतने छलाह। सिकन्दर लोदी बंगालकेँ ध्यानमे राखि मिथिलाक शासककेँ अपना दिसि पटियाकेँ रखने होथि से संभव। विभाकर द्वैतविवेक नामक ग्रंथसँ निम्नलिखित वाक्य स्पष्ट अछि।
“सिकन्दर पुरन्दरो गुरूदुरोदरक्रीड़या
दिनं गमयति ध्रुवं विविध नागरी विभ्रमैः।
पचण्ड रिपुमण्डली मुकुट कोटि प्रभा।
समजित पदाम्बुजं यमिह मित्र भावंनयन्॥
येना खानि समुद्रखात सदृशं वापीगतं निजेले।
येनादायि च तानि तान्यथ महादानानि पुण्यत्मना।
जागेत्येद्भुत विक्रमः संजगती कन्याकर ग्राहको।
गौड़ोवीवलयेन्द्रदविदहनः श्री रामभद्रो नृपः॥
रामभद्र अत्यंत विद्याप्रिय छलाह। वाचस्पति हिनको समयमे जीवित छलाह। सिकन्दर लोदीकेँ रामभद्रपर बड्ड विश्वास छलन्हि आ तैं आवश्यकता पड़लापर हिनक बजाहटि होइत रहैन्ह। रामभद्र उदार, दानी आ विद्याप्रेमी छलाह आ ओइनवार परम्पराक अनुसार इहो बहुत रास पोखरि इत्यादि खुनौने छलाह। हिनका समयमे भट्ट श्री राम नामक एक यात्री गयासँ तीरभुक्ति तीर्थ करबाक हेतु आयल छलाह आ ओ रामभद्रक दानप्रियता एवँ उदारतासँ बड्ड प्रभावित भेल छलाह। मिथिला होइत ओ प्रयाग घुरल छलाह। ओ तीरभुक्तिक विद्वत समाजसँ एत्तेक प्रभावित भेल छलाह जे एहि बातक उल्लेख ओ अपन पोथी ‘विद्वत प्रबोधिनी’मे सेहो केने छथि–
“गयाया निर्गता रामस्तीर्भूक्त्यारव्यदेशपम्।
रूपनारायणं विप्रं संतुष्टं स्वागिराकरोत्॥
रूपनारायणाद् भूपादाज्ञां प्राप्य सुतान्वितः।
तीरभूक्त्यारव्यदेशाश्च प्रयागं समुपागतः”॥
एहिवंशक सबसँ अंतिम शासक छलाह लक्ष्मी नाथ देव कंस नारायण जनिका समयक अभिलेख भगीरथपुरसँ प्राप्त भेल अछि। १५१३ ई.मे इ मिथिलामे शासन करैत छलाह। १५१० ई.मे गद्दीपर बैसल होथि से संभव कारण ओहि वर्षमे हिनके शासन कालमे देवी माहात्म्यक एकटा पाण्डुलिपि तैयार भेल छल।
भगीरथपुर अभिलेखमे हिनका ‘राजाधिराज’ कहल गेल छन्हि–“यवनपति भयाधायकस्तीरभुक्तौ राजा राजाधिराजः समर–सः कंसनारायणो सौ”। हिनका डरे यवन लोकनि थर–थर कंपैत छलाह। कहल जाइयै जे हिनक चरित्र संदेहास्पद छल आ इ अपन कोनो मंत्री श्री धरक पत्नीसँ सम्बन्ध रखैत छलाह। हिनका समयमे मिथिलापर मुसलमानी आक्रमण भेल। १५२६ ई.मे हिनक मृत्यु भेल जेना कि निम्नलिखित श्लोकसँ स्पष्ट अछि–“अंकाब्धिवेदशशि (१४४९) सम्मित शाकवर्षे, भाद्रेसिते, प्रतिपदिं क्षिति सुनुवारे हा हा निहात्य इव कंसनारायणौऽसौ, त्याज्य देवसरसीनिकटे शरीरम्”– १४४९ शाक अथवा १५२६ ई.मे अपन पार्थिव शरीर त्यागलन्हि। संभवतः बंगालक नशरत शाहक हाथे इ पराजित भेल छलाह किएक तँ नशरत शाहक एकटा अभिलेख बेगूसरायक मटिहानी अंचलसँ प्राप्त भेल अछि। नशरत दिल्लीक सुल्तान संग भेल संधिकेँ नहि मानि मिथिलापर आक्रमण केलन्हि आ लक्ष्मीनाथ कंसनारायणकेँ पराजित कए अपन जमाए अलाउद्दीनकेँ एहिठामक राज्यपाल नियुक्त केलन्हि।
एकर बादक इतिहास पूर्णरूपेण ज्ञात नहि अछि। ओइनवारक शक्तिक ह्रास भऽ गेलैक। तथापि ओइनवार वंशक लोग यत्र तत्र मिथिलामे राज्य करैत रहलाह आ एम्हर अराजकता सेहो बढ़े लागल। केन्द्रीय सत्ता टुटि गेलासँ चारूकातक राजा–सामंत अपन स्वतंत्रता घोषित कऽ लेलन्हि आ मुसलमान लोकनि सेहो एहि क्षेत्रमे अपन अधिकार बढ़ेबामे प्रयत्नशील भऽ गेलाह। ओइनवार वंशक एकटा इन्द्रसेन (शालिहोत्रसारसंग्रहक लेखक)क नाम भेटइत अछि जकरा सम्बन्धमे हमरा लोकनिकेँ कोनो विशेष ज्ञान नहि अछि। १४३४–३५मे चम्पारणमे राजा पृथ्वीनारायण सिंह देवक राज्य छल (महाराज पृथ्वीनारायण सिंह देव भुज्यमान राज्ये चम्पकारण्यनगरे)। हिनक उत्तराधिकारी छलथिन्ह शक्तिसिंह आ तकर बाद हुनक पुत्र मदन सिंह। मदन सिंह, मदन–रत्न–प्रदीपक लेखक छलाह। इ सब राजा अपन सिक्का सेहो चलौने रहैथ जाहिपर लिखल अछि–“गोविन्द चरण प्रणत–श्री चम्पकारण्ये”। हिनक मुद्रा हिमालय तराइसँ दिल्ली धरि भेटइत अछि। मदन सिंहक राज्य गोरखपुर धरि छलन्हि। नरसिंह पुराणक पाण्डुलिपिक पुष्पिकामे एकर प्रमाण अछि–“....महाराजाधिराज श्रीमन्मदन सिंह देवानाम् विजयिनाम् शासति गोरक्षपुरे.....”। चम्पारणक लौरिया नंदनगढ़मे अशोकक स्तंभपर एकटा लेख अछि–“नृपनारायण सुत नृप अमरसिंह”। इ केँ छलाह आ कतुका राजा छलाह से कहब असंभव।
महाराज लक्ष्मीनाथ अपुत्र छलाह तैं हुनक बाद हुनक कायस्थ मंत्री केशव मजूमदार राजक भार सम्हारलन्हि आ उएह राजा भेला। ओइनवारक परंपराक निर्वाह करैत उहो जन–कल्याणक हेतु पोखरि खुनौलन्हि आ दानादिक नीक व्यवस्था केलन्हि। मजलिश खाँ नामक व्यक्ति सेहो एहि स्थितिसँ लाभ उठाए किछु दिन मिथिलापर शासन केलन्हि। केशव मजूमदार कुशल व्यक्ति छलाह आ ओइनवार शासनक सब बातसँ अवगत रहबाक कारणे ओ मिथिलाकेँ अपना शासन कालमे यथासाध्य स्वतंत्र रखलन्हि आ मैथिल परम्परा निर्वाह करैत जन कल्याणार्थ बहुत किछु केलन्हि। ओइनवार वंश आपसी कलह आ बटवारासँ खण्डित भऽ चुकल छल। राजकुलक सम्बन्धसँ ओइनवार मूलक ब्राह्मण लोकनि “कुमार”पदवी धारण करए लगलाह आ ‘कुमार’ पदवी धारी ओइनवार ब्राह्मण लोकनिक एक शाखा अहुखन मालदह जिलाक अराइदंगा गाममे छथिन्ह। ओइनवार वंशक अनेक शिलालेख आ किछु मुद्रा सेहो अछि जाहिपर हमरा सब इ कहि सकैत छी जे ओइनवार लोकनि कर्णाट वंश जकाँ मिथिलाक स्वतंत्रताक सुरक्षाक हेतु किछु उठा नहि रखलन्हि आ हुनका शासन काल मैथिलक प्रसार चारूकात भेल। एहि वंशक तत्वाधानमे साहित्य, कला, व्याकरण, स्मृति, निबंध, दर्शन, इत्यादिक विकास भेल। महाकवि विद्यापति देवसिंहक समयसँ भैरव सिंहक शासन काल धरि ओइनवार राजनीतिक एकटा प्रमुख स्तंभ छलाह। राजकाजमे एतवा व्यस्त रहितो ओ अपन लिखब–पढ़ब नहि छोड़लन्हि आ मातृभाषाकेँ सेहो नहि बिसरलाह। एहिवंशक समयमे गोनू झा सेहो भेल छलाह। एहिवंशक परोक्ष भेलापर मिथिलामे मुसलमानी प्रभावक वृद्धि भेल। (एहि प्रसंगमे हमर “हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत” देखल जा सकइयै आ देखु हमर निबन्ध–“द ओइनवारज ऑफ मिथिला”)
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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