भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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(i.) गंधवरिया राजवंशक इतिहास:- स्वर्गीय पुलकित लाल दास ‘मधुर’ अथक परिश्रम कए गन्धवरियाक इतिहास लिखि स्वनामधन्य श्री भोला लाल दासक ओतए प्रकाशनार्थ पठौने छलाह। कोनो कारणवश इ पाण्डुलिपि (जे कि आब जीर्णावस्थामे अछि) प्रकाशित नहि भऽ सकल आ गन्धवरियाक इतिहासक प्रसंग एकदिन जखन हमरा भोला बाबूसँ गप्प भेल तखन ओ एहि पाण्डुलिपि चर्च केलन्हि आ हमरा आग्रहपर ओ पाण्डुलिपि हमरा पठा देलन्हि। पाण्डुलिपि देखलापर इ बुझबामे आएल जे मधुरजी गन्धवरियाक इतिहास किंवदंतीक आधारपर लिखने छथि मुदा ताहु हेतु हुनक परिश्रम स्तुत्य एवं सराहनीय अछि। जखन गन्धवरिया कतहु किछु प्रामाणिक इतिहासक सामग्री नहि एकत्रित भऽ सकल अछि ताहि दृष्टिकोणे मधुरजीक इ सत्प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय अछि। सोनबरसा राज केसमे गन्धवरियाक इतिहास देल गेल अछि मुदा ओहुमे जे गन्धवरिया लोकनि सोनबरसाक विरोधमे गवाही देलन्हि ताहि मँहक एकटा प्रमुख व्यक्ति स्वर्गीय श्री चंचल प्रसाद सिंह मुइलासँ पूर्व हमरा व्यक्तिगत रूपें इ कहने गेला जे हुनक अपन जे वयान ओहि केसमे भेल छन्हि से एकदम उल्टा छन्हि तैं गन्धवरियाक इतिहासक हेतु ओकरा उपयोग करबामे ओकरा ‘रिभर्स’ कऽ कए पढ़ब उचित। ओहु केसमे जे इतिहास बनाओल गेल अछि से बहुत किछु परंपरेपर आधारित अछि मुदा ओहिमे एक बहुत महत्वपूर्ण बात इ भेटल जे गन्धवरियाक द्वारा देल दानपत्र सब बहुत किछु उपस्थित कैल गेल छल जाहिमे किछु चुनल दानपत्रक अंग्रेजी अनुवादक अंश हम अपन ‘हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत’मे प्रकाशित कैल अछि। सहरसा जिलामे गन्धवरियाक एतेक प्रभुत्व छल तइयो ओकर कोनो उल्लेख पुरनका ‘भागलपुर गजेटियर’मे नहि छल आ जखन सहरसा जिला बनल आ ओकर नव गजेटियर बनल तखन ओहिमे इतिहास लिखबाक भार हमरा भेटल आ ओहिक्रममे हम एक पाराग्राफमे गन्धवरियाक चर्च कैल। एकर अतिरिक्त आ कोनो प्रामाणिक इतिहास गन्धवरियाक नहि बनल अछि आ ने अद्यावधि एहि दिशामे कोनो प्रयासे भऽ रहल अछि। एहना स्थितिमे मधुरजीक लिखल गन्धवरियाक इतिहासक मूलकेँ हम अहिठाम प्रस्तुत कऽ रहल छी जाहिसँ ओहि मृतात्माकेँ अपन कृतिक स्वीकृति देखि आनन्द होन्हि। अनापेक्षित बातकेँ हटा देल गेल अछि। गन्धवरिया लोकनिक गन्धवारडीह एखनो शकरी आ दरभंगा टीसनक बीचमे अछि आ हुनका लोकनिक ओतए जीवछक पूजा होइत छन्हि। गन्धवरिया लोकनि पँचमहलामे पसरल छथि– वरूआरी, सुखपुर, परशरमा, बरैल आ यदिया मानगंजकेँ मिलाकेँ पँचमहला कहल जाइत छल। जाहिठाम मधुरजीक अंश समाप्त होएत ओतए हम संकेत दऽ देब।
दरभंगा ओ विशेषतः उत्तर भागलपुर (सम्प्रति सहरसा जिला)मे गन्धवरिया वंशज राजपूतक संख्या अत्यधिक अछि। दरभंगा जिलांतर्गत भीठ भगवानपुरक राजा साहेब तथा सहरसा जिलांतर्गत दुर्गापुर भद्दीक राजा साहेब एवँ वरूआरी, पछगछिया, सुखपुर, बरैल, परसरमा, रजनी, मोहनपुर, सोहा साहपुर, देहद, नोनैती, सहसौल, मंगुआ, धवौली, पामा, पस्तपार, कपसिया, विष्णुपुर एवं वारा इत्यादि ग्राम स्थित बहुसंख्यक छोट पैघ जमीन्दार लोकनि एहि वंशक थिकाह आ सोनबरसाक स्वर्गीय महाराज हरिवल्लभ नारायण सिंह सेहो एहि वंशक छलाह। इ राजवंश बहुत प्राचीन थिक ओ एहि राजवंशक सम्बन्ध मालवाक सुप्रसिद्ध धारानगरीक परमारवंशीय राजा भोज देवक वंशसँ अछि। एहिवंशक नाम “गन्धवरिया” एतै आबिकेँ पड़ल। राजा भोज देवक ३५म पीढ़ीक पश्चात् ३६म पीढ़ीक राजा प्रतिराज साह अपन धर्मपत्नी तथा दूइ पुत्रक संग ब्रह्मपुत्र स्नानक निमित्त आसाम गेल छलाह। एहि यात्रा जखन ओ लोकनि फिरलाह तँ पुर्णियाँ जिलांतर्गत सुप्रसिद्ध सौरिया ड्योढ़ीक समीप मार्गमे कतहु कोनो संक्रामक रोगसँ राजा–रानीक देहांत भऽ गेलन्हि।
सौरिया राजक प्रतिनिधि एखनो दुर्गागंजमे छथि। माता–पिताक देहांत भेलापर दुनू अनाथ बालक भूलल–भटकल सौरिया राजाक ओतए उपस्थित भेलाह आ अपन पूर्ण परिचय देलन्हि। सौरिया राज ताहि समयमे बड्ड पैघ आ प्रतिष्ठित छल। ओ दुनू भाइकेँ यथोचित आदर पुरस्कार अपना ओतए आश्रय प्रदान केलन्हि तथा कालांतर उपनयन संस्कारो करा देलन्हि। उपनयनक समय उक्त दुनू भाइक गोत्र अवगत नहि रहबाक कारणे हुनका लोकनिकेँ परासर गोत्र देल गेल जबकि परमारक गोत्र कौण्डिन्य छल। दुनू राजकुमारक नाम लखेशराय आ परवेशराय छलन्हि। ओ लोकनि वीर आ योद्धा छलाह। सौरिया राजक जमीन्दारी दरभंगा राज्यमे सेहो पबै छलन्हि। कोनो कारणे ओहिठाम युद्ध उपस्थित भेलन्हि। राजा साहेब अहि दुनू भाइकेँ सेनानायक बनाए अपन सेना पठौलन्हि। कहल जाइछ जे दुनू भाइ एक राति कतहु निवास कैलन्हि कि निशीघ राति भेलापर शिविरक आगाँ किछु दूरपर एक वृद्धा स्त्रीक कानव ओ दुनू गोटए सुनलन्हि। जिज्ञासा केला संता ओ स्त्री बाजलि “जे हम अहाँ घरक गोसाओन भगवती थिकहुँ। हमरा अहाँ लोकनि कतहु स्थान दिअह”। एहिपर ओ दुनू भाइ बजलाह जे हम सब तँ स्वयं पराश्रित छी तैं हमरा वरदान दिअह जे हमरा लोकनि एहि युद्धमे विजय पाबी। ओ स्त्री हुनका लोकनिकेँ एक बहुत उत्तम खड्ग प्रदान कैल जकर दुनू पृष्ट भागपर बहुत सूक्ष्म अक्षरमे समस्त दुर्गा सप्तशती अंकित छल। इ खड्ग प्रथम दुर्गापुर भद्दीमे छल पश्चात् महाराज हरिवल्लभ नारायण सिंह ओकरा सोनबरसा आनलन्हि। ओहिमे कहियो बीझ नहि लागल छल। ओ खड्ग एक पनबट्टामे चौपेतल बन्द रहैत छल आ झाड़ि देला संता ओ खड्गक आकारक भऽ जाइत छल। दुनू भाइ युद्धमे विजयी भेला। समस्त रणक्षेत्र मुर्दासँ पाटि गेल आ दुर्गन्ध दूर–दूर धरि व्याप्त भऽ गेल। एहिसँ सौरियाक राजा प्रसन्न भए एहिवंशक नाम ‘गन्धवरिया’ रखलन्हि। इ युद्ध दरभंगा जिलांतर्गत गंधवारि नामक गाममे भेल छल। गंधवारि आ अन्यान्य क्षेत्रक हिनका लोकनिकेँ उपहार स्वरूप भेटलन्हि। लखेशरायक शाखामे दरभंगा जिलांतर्गत (सम्प्रति मधुबनी) भीठ भगवानपुरक श्रीमान राजा निर्भय नारायणजी भेल छथि आ परवेशक शाखामे सहरसाक गन्धवरिया जमीन्दार लोकनि छथि। सहरसाक विशेष भूभाग एहि शाखाक अधीन छल। दुर्गापुर भद्दी एकर प्रधान केन्द्र छल।
परिवेशरायकेँ चारि पुत्र भेलन्हि– लक्ष्मण सिंह, भरत सिंह, गणेश सिंह, वल्लभ सिंह। गणेश सिंह आ वल्लभ सिंह निसंतान भेलाह। भरत सिंहक शाखामे धवौलीक जमीन्दार भेल छथि। लक्ष्मण सिंहकेँ तीन पुत्र भेलन्हि– रामकृष्ण, निशंक आ माधव सिंह। एहिमे माधव सिंह मुसलमान भए गेलाह आ नौहट्टाक शासक भेलाह। ‘निशंक’क नामपर निशंकपुर कुढ़ा परगन्नाक नामकरण भेल। प्रथम एहि परगन्नाक नाम मात्र ‘कुढ़ा’ छल बादमे ओहिमे निशंकपुर जोड़ल गेल। निशंककेँ चारि पुत्र भेलन्हि– दान शाह, दरियाव शाह, गोपाल शाह आ क्षत्रपति शाह। दरियाव शाहक शाखामे वरूआरी, सुखपुर, बरैल तथा परसरमाक गन्धवरिया लोकनि छथि।
लक्ष्मण सिंहक ज्येष्ठ पुत्र रामकृष्णकेँ चारि पुत्र भेलन्हि– वसंत सिंह, वसुमन सिंह, धर्मागत सिंह, रंजित सिंह। वसुमन सिंहक शाखामे पछगछियाक राज भेल। धर्मागत सिंहक शाखामे जदिया मानगंजक जमीन्दार लोकनि भेल छथि। रंजित सिंहक शाखामे सोनबरसा राज भेल। एहि वंशक हरिवल्लभ नारायण सिंहकेँ १९०८मे सोनबरसासँ १०–१२मील उत्तर कांप नामक सर्किलमे साढ़े नौ बजे रातिमे शौचक समय मारि देलकन्हि। हिनक एक कन्याक विवाह जयपुरक स्टेटक संम्बन्धीक संग भेल छलन्हि। आ हिनका एकोटा पुत्र नहि छलन्हि। ओहि कन्याक पुत्र रूद्रप्रताप सिंह सोनबरसाक राजा भेलाह। एहि शाखामे सोहा, साहपुर, सहमौरा, देहद, वेहट, वराटपुर, तथा मंगुआक गंधवरिया जमीन्दार भेल छथि। एहिमे साहपुरक राजदरबार सेहो प्रसिद्ध छल–हुनका दरबारमे बिहपुर मिलकीक श्यामसुंदर कवि आ शाह आलमनगरक गोपीनाथ कवि उपस्थित छलाह। स्वर्गीय चंचल प्रसाद सिंह सेहो सोनबरसाक दमाद छलाह।
वंसत सिंहकेँ जहाँगीरसँ राजाक उपाधि भेटल छलन्हि। राजा वसंत सिंह गंधवारिसँ अपन राजधानी हटाकेँ सहरसा जिलामे वसंतपुर नामक गाम बसौलन्हि आ ओतहि अपन राजधानी बनौलन्हि। मधेपुरासँ १८–२०मील पूब इ गाम अछि। वंसत सिंहकेँ चारि पुत्र छलन्हि– रामशाह, वैरिशाह, कल्याण शाह, गंगाराम शाह। प्रथम पुत्रक शाखा नहि चलल। वैरिशाह राजा भेल। कल्याण शाहक शाखामे रजनीक जमीन्दार लोकनि आ गंगारामक शाखामे वाराक जमीन्दार लोकनि भेलाह। इ अपना नामपर गंगापुर तालुका बसौलन्हि। वैरिशाहकेँ दु रानी छलन्हि– जाहिमे जेठरानीसँ राजा केसरी सिंह आ जोरावर सिंह भेलथिन्ह आ छोट रानीसँ पद्मसिंह। जोरावर सिंहक शाखामे मोहनपुर आ पस्तपारक जमीन्दार लोकनि भेलाह। पद्मसिंहक शाखामे कोड़लाहीक जमीन्दार लोकनि भेल छन्हि। राजा केसरी सिंह प्रतिभाशाली व्यक्ति छलाह। हुनका औरंगजेबसँ राजाक उपाधि भेटल छलन्हि। केसरी सिंहक पुत्र धीरा सिंह, धीरा सिंहक कीर्ति सिंह, कीर्ति सिंहक राजा जगदत्त सिंह भेलाह जे बड्ड प्रतापी, दयालु आ दानवीर छलाह। गंगापुर, दुर्गापुर आ बेलारी तालुका हिनका अधिकारमे छलन्हि। इ जनश्रुति विशेष प्रख्यात अछि जे ताहि समयमे दरभंगा राजक कोनो महारानी कौशिकी स्नानक निमित्त अवै छलीह। सिंहेश्वरक समीप बेलारीमे हुनक डेरा पड़ल। इ सुनिकेँ जे इ दोसरा गोटाक राज्य थिकन्हि ओ बजलीह जे हम आन राज्यमे अन्न जल ग्रहण नहि कऽ सकैत छी। जगदत्त सिंह तत्काल बेलारी तालुकाक दानपत्र लिखिकेँ महारानीसँ स्नान भोजनक आग्रह केलन्हि। उक्त बेलारी तालुका हेवनि धरि बड़हगोरियाक खड़ौड़य बबुआन लोकनिक अधीन छल आ तत्पश्चात् राज दरभंगाक भेल। जगदत्त सिंहकेँ चारि पुत्र भेलैन्ह– हरिहर सिंह, नल सिंह, त्रिभुवन सिंह, रत्न सिंह। त्रिभुवन सिंह ‘पामा’मे अपन ड्यौढ़ी बनौलन्हि। मधुरजीक विवरण संक्षेपमे एतबे अछि।
मधुरजीक विवरणसँ आ आन विवरणसँ किछु तफात देखबामे अवइयै। पंचगछियाक राजवंश अपनाकेँ नान्यदेवक वंशज हरिसिंह देवक पुत्र पतिराज सिंहसँ उत्पत्ति मनैत छथि। पतिराज सिंह ‘गन्धवारपुर’मे अपन वास स्थापित केलन्हि आ तै गन्धवरिया कहौलथि। परञ्च इहो लोकनि अपनाकेँ पतिराज सिंहक पुत्र परवेश रायक वंशज कहैत छथि। रामकृष्ण सिंहक वंशज भेला पछगछिया स्टेट। हिनका लोकनिक वंश वृक्षक अनुसार–
लक्ष्मण सिंहसँ राजक बटबारा एवं प्रकारे भेल–
माधव सिंह रामकृष्ण निशंकसिंह
(मुहम्मद खान) (दुर्गापुर, सोनबरसा (पंचमहला)
(नवहट्टा) पछगछिया इत्यादि)
सोनबरसा, पछगछिया तथा बरूआरी प्रसिद्ध स्टेट मानल जाइत छल। पंचमहलामे बरूआरी मुख्य स्टेट छल। निशंक सिंहक पुत्र दरिया सिंहक वंशज भेला बरूआरी स्टेट। अहिवंशमे राजा कोकिल सिंह प्रख्यात भेल छथि जनिका सम्राट शाह आलमसँ ११७५ हिजरीमे शाही फरमान भेटल छलन्हि। राजाक उपाधि हिनका सम्राटसँ भेटल छलन्हि। राजाक उपाधि हिनका सम्राटसँ भेटल छलन्हि। बरूआरी तिरहूत सरकारक अधीन छल आ कोकिल सिंहकेँ अहिक्षेत्रक ननकार हैसियत भेटल छलन्हि। गन्धवरिया लोकनिक कुलदेवी “जीवछ”क प्रतिमा वरूआरी राजदरबारमे छल आ ओकर पूजा नियमित रूपेँ होइत छल। ‘जीवछ’क प्रतिमाकेँ नोहट्टासँ अहिठाम आनल गेल छल।
निशंक सिंह
दानी सिंह दरिया सिंह क्षत्रपति सिंह गोपाल सिंह
(परसरमा) (वरूआरी) (गोबरगढ़ा) (कुमरखन)
वरूआरी सुन्दर सिंह कृष्ण नारायण सिंह
(सुखपुर) (बरैल)
एतवा सब किछु होइतहुँ गन्धवरियाक कोनो प्रामाणिक इतिहास नहि बनि पाओल अछि। जे किछु दानपत्रक अंग्रेजी अनुवादमे केसमे भेटल अछि से बेसी भीठ–भगवानपुरक राजा सबहिक। भीठ भगवानपुर गन्धवरियाक पैघ हिस्साक राजधानी छल आ हुनका लोकनिक स्तित्व निश्चित रूपें दृढ़ छलन्हि आ ओ दानपत्र दैत छलाह जकर प्रमाण अछि। दरभंगाक गन्धवरिया लोकनि सेहो अपन इतिहासक रूपरेखा नहि प्रकाशित केने छथि तैं ओहि सम्बन्धमे किछु कहब असंभव। हमरा बुझने ओइनवार वंशक पतनक बाद ‘भौर’ क्षेत्रमे राजपूत लोकनि अपन प्रभुत्व जमा लेने छलाह आ स्वतंत्र राज्य स्थापित केने छलाह। खण्डवलासँ हुनका संघर्षो भेल छलन्हि आ ओहि संघर्षक क्रममे ओ लोकनि भीठ–भगवानपुर होइत सहरसा–पुर्णियाँक सीमा धरि पसरि गेला। “गन्ध” आ “भर” (राजपूत)क शब्दक मिलनसँ गन्धवारि बनल (‘गन्धभर’) आ ओहि गाँवकेँ ओ लोकनि अपन राजधानी बनौलन्हि। कालांतरमे भीठ–भगवानपुर हिनका लोकनि प्रधान केन्द्र बनल। इतिहासक परंपराक पालन करैत इहो लोकनि अपन सम्बन्ध प्राचीन परमार वंशक संग जोड़लन्हि आ ‘नीलदेव’ नामक एक व्यक्तिक अनुसंधान केलन्हि। ओहिमे सँ केओ अपनाकेँ विक्रमादित्यक वंशज कहलैन्हि आ केओ नान्यदेवक। भीठ भगवानपुरक वंश तालिका तँ हमरा लग नहि अछि मुदा सहरसाक गंधवरिया लोकनिक वंश तालिका देखलासँ इ स्पष्ट होइछ जे परमार भोज आ नान्यदेवसँ अपनाकेँ जोड़निहार गन्धवरिया लोकनि लखेश आ परवेशक अपन पूर्वज मनैत छथि। पूर्वजक हिसाबे सब श्रोत एकमत अछि। परंपरामे इहो सुरक्षित अछि जे नीलदेव गंधवारिमे आबिकेँ बसल छलाह आ ‘जीवछ’ नदीकेँ अपन कुलदेवता बनौने छलाह। कहल जाइत अछि जे नीलदेव राजा गंधकेँ मारिकेँ अपन राज्य बनौलन्हि। सहरसा जिलामे भगवतीक आशीष स्वरूप राज भेटबाक जे गप्प अछि ताहुमे कैक प्रकारक कथा आ किंवदंती भेटइयै। मात्र एक बातपरसब श्रोत एकमत अछि जे हिनका लोकनिकेँ उपनयनक अवसरपर अपन गोत्र याद नहि रहला संता ‘परासर गोत्र’ देल गेलन्हि। जा धरि कोनो आन वैज्ञानिक साधन उपलब्ध नहि होइछ ताधरि गन्धवरियाक इतिहास अहिना किंवदंती आ परम्परापर आधारित रहत।
ii. बनैली राजक इतिहास:- प्राचीनताक दृष्टिकोणसँ बनैलीक इतिहास सेहो अपन महत्व रखैत अछि। १४म शताब्दीमे गदाधर झा नामक एक विद्वान दरभंगा जिलाक वैगनी नवादा नामक गाममे रहैत छलाह। कहल जाइत अछि जे हिनक विद्वतासँ प्रभावित भए गयासुद्दीन तुगलक हिनका काफी सम्पत्ति दानमे देने छलथिन्ह। हुनकासँ नवम पीढ़ीमे भेला देवनंदन झा जनिका परमानंद झा आ मानिक झा नामक दूटा पुत्र छलथिन्ह। परमानंद झा संस्कृत, फारसी आ अरबीक प्रसिद्ध विद्वान छलाह। शिकारक सेहो हुनका बड्ड शौख छलन्हि। बाघ मारबामे तँ वो सहजहि निपुणते प्राप्त केने छलाह। अपन पूर्वजसँ हिनका पर्याप्त धन सम्पत्ति भेटले छलन्हि आ इ अपन क्षेत्रक पूर्ण मालिक छलाह। क्षेत्रक प्रशासनिक काज लऽ कए हिनका बरोबरि अजीमाबाद जाए पड़इत छलन्हि आ तैं हिनक निपुणताकेँ देखि अठारहम् शताब्दीमे हिनका फकराबाद परगन्नाक चौधरी बना देल गेलन्हि। दिनानुदिन हिनक ख्याति बढ़ैत गेलन्हि परञ्च इ अपन काज सम्पादन करबामे असावधान होइत गेलाह। फलस्वरूप इ अजीमाबादक कोपभाजन बनला आ दरभंगासँ भागि कमला नदी बाटे फरकिया दिसि प्रस्थान केलन्हि। अजीमाबादक सरकारसँ डर बनले रहैन्ह तैं फरकियाकेँ छोड़ि ओ धरमपुर दिसि बढ़ला आ पुर्णियाँक क्षेत्रमे अमौर दिसि चल गेलाह। ताहि दिनमे नवाब आ अंग्रेजमे खटपट चलि रहल छल। एम्हर हिनका लाल सिंह चौधरी आ दुलार सिंह चौधरी दूटा पुत्र उत्पन्न भेलन्हि। हुनक भाए माणिक चौधरीक देहांत भऽ गेलन्हि। माणिक चौधरीक एक पुत्र छलथिन्ह हरीलाल चौधरी। ओहि समयमे अमौरमे भैरव मल्लिक नामक एकटा सम्पन्न कायस्थ सेहो रहैत छलाह जे बड्ड जनप्रिय, निपुण आ उत्साही लोक छलाह आ जिनकर प्रतिष्ठा ओहि क्षेत्रमे अपूर्व छल। ओ पूर्णियाँ आ दिनाजपुर क्षेत्रक कानूनगोय छलाह। इएह अपना ओहिठाम परमानन्द चौधरीकेँ रहबाक प्रश्रय देलन्हि। कृषिकार्य कए अपन पालन पोषण करबाक हेतु परती जमीन सेहो ओ परमानंद चौधरीकेँ देलन्हि।
तकर बादहिसँ परमानंद चौधरीक भाग्य पलटल। पहसाराक प्रसिद्ध राजा इन्द्रनारायण राय एक दिन अपन पालकीपर बैसल कतहु जाइत छलाह कि बाटहिमे परमानन्द चौधरी एकटा रहु माछ मारिकेँ हुनका समक्ष उपस्थित केलन्हि। राजा प्रसन्न भए हुनका अपना ओतए तहसीलदार मनेजरमे बहाल कऽ लेलथिन्ह। परमानन्द शक्तिशाली लोक भऽ गेलाह आ ओहि क्षेत्रमे हुनक प्रभाव बढ़ए लागल। एक दिन पुर्णियाँक नवाब शिकारक हेतु एम्हर एला मुदा हुनका एक्कोटा शिकार नहि भेटलन्हि तखन परमानंद चौधरी हुनका देखितहि देखितहि एकटा बाघ मारिकेँ देलथिन्ह। नवाब पसिन्न भए हुनका “हजारी”क उपाधि देलथिन्ह आ वो आब हजारी चौधरीक नामे प्रसिद्ध भऽ गेलाह। हिनक पुत्र दुलार सिंह कृषि आ व्यापारक माध्यमसँ अपन आर्थिक स्थितिकेँ सुदृढ़ केलन्हि। घी, इलायची, आ लकड़ीक व्यापार ओ नेपालसँ शुरू केलन्हि आ नवाबसँ मिलिकेँ ओहि सब वस्तुकेँ कलकत्ता धरि पठबे लगलाह। फेर हाथीक व्यापार शुरू केलन्हि जाहिमे बड्ड लाभ भेलन्हि। अहि क्षेत्रमे धनीमानी व्यक्तिमे हुनक गिनती होमए लागल। भैरव मल्लिकक धन बिलहि गेल आ ओ शोकाकुल भए मरि गेल। हुनका स्थानपर दुलार सिंह कानुनगोय नियुक्त भेला। एम्हर ताधरि परमानंद चौधरी असजा आ मोरंग तटक तीरा परगन्नाक अधिकारी सेहो भऽ चुकल छलाह। ओम्हर ताधरि राजा इन्द्रनारायण सिंहक महल कुरसाकाँटाक बन्दोबस्त दमामी बन्दोबस्तक समय इ लऽ लेने छलाह। राजा इन्द्रनारायण हुनक एहि विश्वासघाती कार्यसँ असंतुष्ट भऽ गेल छलथिन्ह। हजारी चौधरीक परोक्ष भेलापर हुनका लोकनिमे आपसी मनमुटाव शुरू भेल। दुलार सिंह हरीलालकेँ अमौरक इलाका दऽ कए अपन घरेलु कलहकेँ शांत केलन्हि। हरीलालक उत्तराधिकारी अयोग्य बहरेला। दुलारसिंह बनैलीमे अपन निवास स्थान बनौलन्हि। ओतहिसँ हिनक प्रभावमे वृद्धि शुरू भेल। दुलार सिंहक दू पुत्र छलथिन्ह सर्वानन्द आ वेदानन्द– सर्वानन्द निसंतान मरि गेलाह। वेदानंदक कार्यकलापसँ वंशक कीर्ति बढ़ल। दुलार सिंहकेँ दोसर विवाहसँ कतेको संतान भेलैन्ह जाहिमे प्रख्यात भेलाह रूद्रानंद सिंह जे अपन पुत्र श्रीनंदनक नामपर श्रीनगर राजक स्थापना केलन्हि। कानूनगोय रहलाक कारणे सरकारक ओतए दुलार सिंहक वेश प्रभाव छल आ अपन प्रभावहिसँ ओ नवहट्टा, धपहर, गोगरी आदि क्षेत्र धरि अपन अधिकारक विस्तार केलन्हि। ओम्हर पुर्णियाँ आ मालदह धरि अपन जमीन्दारी बढ़ौलन्हि। नेपाल युद्धमे सेहो इ कम्पनी सरकारकेँ सहायता देने छलाह। नेपाल विजयक पश्चात् हिनका कम्पनी सरकारसँ राजाबहादुरक उपाधि भेटलन्हि। नेपाल आ अंग्रेजक बीच सीमा निर्णयक समयमे कम्पनी सरकार तीरा परगन्नाक समीप हिनका सातकोस भूमि बन्दोबस्तमे दऽ देलकन्हि।
दुलार सिंहक बाद हुनक पुत्र वेदानंद सिंह राजा भेला आ हुनको कम्पनीसँ राजाक उपाधि भेटल छलन्हि। हुनका समयमे राज दू भागमे बटि गेल। वेदानंद अपन पैत्रिक बनैलीमे रहलाह आ रूद्रानन्द सौरा नदी टपि कए श्रीनगरमे बसलाह। वेदानन्द खरगपुर महाल कीनिके अपना राजमे मिलौलन्हि आ अपन राजक पूर्ण विस्तार केलन्हि। हिनके बनैली राजक संस्थापक कहल जा सकइयै। हिनक विवाह मिथिलामे महेश ठाकुरक वंशजमे भेल छलन्हि। इ विद्या प्रेमी सेहो छलाह आ किछु पोथिओ लिखने छलाह। हिनक बाद लीलानंद सिंह राजा भेलाह। हिनका तीनटा पत्नी छलथिन्ह– प्रथम पत्नीसँ पद्मानंद सिंह आ तेसर पत्नीसँ कुमार कलानन्द आ कृत्यानंद सिंह भेलथिन्ह। लीलानंद सिंह अपना समयक मिथिलाक एक प्रमुख व्यक्ति छलाह। हिनक परोक्ष भेलापर राजा पद्मानंद सिंह राजा भेलाह आ हिनका अंग्रेजी राजसँ सरकारक उपाधि सेहो भेटल छलन्हि। हिनकहि समयमे राजमे बटबाराक मामला शुरू भेल जाहिमे हिनका ७आना आ कुमार कलानंद आ कृत्यानंदकेँ ९आना हिस्सा भेटलन्हि। पद्मानंद सिंह अपना बापे जकाँ दानी छलाह। वैद्यनाथ मंदिरक फाटक बनेबामे हिनक पूर्ण योगदान छलन्हि। महादेवक प्रति हिनक निम्नलिखित कविता प्रसिद्ध अछि–
”जो अलका पति की सुख–सम्पत्ति देइ मेरो प्रभु भौन भरेंगे।
अङ्कलिये गिरि राज सुता, कर पंकज तेसिर आइ धरेंगे॥
चन्द्र विभूषण भाल धरे, दुख जाल कराल हमार हरेंगे।
पद्मानंद सदा शिवकेँ, हरखाहमखाह निवाह करेंगे॥
करै पवित्र जाको दर्शनदिव्य देवन को,
सेवाते होत जाके सहजहि सनाथ है।
गायें यश जाको, पावें मंगल मनोरथको,
छाइ छिति कीरति कृपाल गुणगाथ हैं॥
नाथनकेँ नाथको अनाथनकेँ नाथ प्रभु,
देवनकेँ नाथ मेरे बाबा वैद्यनाथ हैं॥
बनारसमे श्यामा मंदिर आ तारा मंदिरक स्थापना हिनके पत्नी लोकनिक प्रयत्ने भेल छल। हिनक पुत्र लोकनिक अकालमृत्यु भऽ गेलन्हि। हिनक वंशजक रानी चन्द्रावतीक कोठी भागलपुरमे अछि।
कलानंद सिंहकेँ सेहो सरकार बहादुरसँ राजा बहादुरक पदवी भेटलन्हि। हिनक दूटा पुत्र भेलथिन्ह कुमार रामानंद सिंह आ कुमार कृष्णानंद सिंह। कृष्णानंद सिंह अपन निवास स्थान सुल्तानगंजक श्रीकृष्णगढ़मे बनौलन्हि। कलानंद सिंहक बाद राजा कृत्यानंद सिंहक प्रभाव बनैली राजमे सबसँ विशेष छल। बिहारक जमीन्दारमे इ सर्वप्रथम ग्रैजुएट छलाह आ अंग्रेजी, हिन्दी आ संस्कृतक असाधारण विद्वान सेहो। खेलकुद आ शिकारमे इ अद्वितीय छलाह। बंगाल–बिहारक काउंसिलमे सेहो इ सक्रिय भाग लैत छलाह आ पटनासँ बिहारी पत्रिकाक प्रकाशन सेहो करौने छलाह। तेजनारायण जुबिली कालेजक आपात् कालमे इ अपूर्व सहयोग दए ओहि कालेजकेँ जीवित रखलन्हि आ ताहि दिनक हिसाबे ६लाखक दान देने छलाह। हिनके दानक स्वरूप ओहि कालेजक नाम तेजनारायण बनैली कालेज पड़ल अछि। हिनको राजाबहादुरक उपाधि छलन्हि आ सनद देवा काल बिहारक राज्यपाल बेली साहेब तेजनारायण जुबिली कालेजमे देल हिनक सराहणीय दानक उल्लेख केने छलाह। भागलपुरमे आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलनक स्वागताध्यक्ष सेहो छलाह। कलकत्ता विश्वविद्यालयमे मैथिलीकेँ स्थान दियेबामे हिनक अपूर्व योगदान छल। बिहार प्रांतीय संस्कृत सम्मेलनक सभापति सेहो इ छलाह।
वंशवृक्ष गदाधर झा
११म पीढ़ी–दुलार सिंह चौधरी
(१२) सर्वानंद सिंह वेदानंद सिंह रूद्रानंद सिंह
लीलानंद सिंह (श्रीनगर राज्य शाखा
पद्मानंद सिंह कुमार गंगानन्द सिंह)
कलानंद सिंह
कृत्यानंद सिंह
पद्मानंद सिंह कलानंद सिंह कृत्यानन्द सिंह
चन्द्रानन्द सिंह रामनंद सिंह श्यामानंद सिंह
सूर्यानन्द सिंह कृष्णानन्द सिंह बिमलानंद सिंह
(सुलतान गंज) तारानन्द सिंह
दुर्गानन्द सिंह
जयानन्द सिंह
नुनु जी
iii. शंकरपुर राजक इतिहास:-शंकरपुर मधेपुरासँ उत्तर १२मीलक दूरीपर अछि। एकरा बड़गोड़िया स्टेट सेहो कहल जाइत छल कारण बड़गोरिया नामक एकटा गाम दरभंगामे अछि। जाहि नामपर अहि राजक नामकरण भेल छल। शंकरपुरक समीप दूटा प्रसिद्ध प्राचीन गढ़ अछि राय भीर आ बुधिया गढ़ी। एकरे समीपमे बेलारी गाम अछि। बेलारीक सम्बन्धमे किंवदन्ती अछि जे वल्लालसेन अहिगामक संस्थापक छलाह। शंकरपुरक समीप मधेली बजार आ वंसतपुर नामक प्रसिद्ध एतिहासिक स्थान अछि जाहिठाम सीत–वसंतक ध्वंसावशेष देखबामे अवइयै।
बेलारी तालुका पहिने दुर्गापुरक अधीन छल। पाछाँ दरभंगा राजक अंतर्गत भेल। खण्डवला कुलक महाराज छत्रसिंहक तेसर पुत्र नेत्रेश्वर सिंहकेँ बबुआनीक हिसाबे शंकरपुर भेटलन्हि। तखनहिसँ शंकरपुर राजक स्थापना मानल जा सकइयै। हिनका दूटा पुत्र छलथिन्ह एकरदेश्वर सिंह आ जनेश्वर सिंह। जनेश्वर सिंह लक्ष्मीश्वर सिंहक अभिभावकत्वमे रहलाह। जनेश्वर सिंह प्रख्यात पुरूष भेल छथि। इ विद्याप्रेमी छलाह आ मधेपुरामे संस्कृत विद्यालयक स्थापना केने छलाह। हिनक पुस्तकालय अपूर्व छल जे हिनक परोक्ष भेलापर लक्ष्मीश्वर पुस्तकालय दरभंगामे पठा देल गेल। वैवाहिक दृष्टिकोणे एकरदेश्वर सिंहक सम्बन्ध सौरिया राज (संस्थापक राजा सुमेर सिंह चौधरी)सँ सेहो छल। एकरदेश्वर सिंहकेँ तीन पुत्र भेलथिन्ह–
होमेश्वर सिंह, कुलेश्वर सिंह, चितेश्वर सिंह।
वंशवृक्ष
महाराज रूद्र सिंह
नेत्रेश्वर सिंह
एकरदेश्वर सिंह जनेश्वर सिंह
होमेश्वर सिंह
फुलेश्वर सिंह
चितेश्वर सिंह
iv. हरावत स्टेटक इतिहास:-इ राज्य सहरसा आ पूर्णियाँक सीमा रेखापर छल। हरावत परगन्नामे रहलाक कारणे अहि राजक नाम हरावत राज पड़ल। अहि राजक संस्थापक अग्निवंशीय चौहान छलाह परञ्च बादमे इ लोकनि जैन धर्ममे दीक्षा लेलन्हि। सम्राट शाहजहाँक समयमे हिनका लोकनिकेँ राजाक उपाधिसँ विभूषित कैल गेलन्हि आ राजस्थानसँ इ लोकनि मुर्शिदाबाद पहुँचलाह। हरावत परगन्नामे स्टेट संस्थापकक रूपमे प्रतापसिंहक नाम अवइयै। हिनक व्यक्तित्वसँ प्रभावित भए दिल्ली सम्राट आ बंगालक नवाबसँ हिनका खिल्लत भेटल छलन्हि। हरावतक प्रसिद्ध राजा इन्द्रनारायणक पत्नी इन्द्रावतीक कर्त्तापुत्र विजयगोविन्द सिंह प्रताप सिंहसँ महाजनी कारबार शुरू केलन्हि। इन्द्रनारायणक जमीन्दारी सौरिया राजक नामे प्रख्यात छल जे हिनक पूर्वज सुमेरसिंह चौधरीकेँ मुसलमान सम्राटसँ भेटल छलन्हि। विजय गोविन्दसँ प्रताप सिंहकेँ झगड़ा भेलन्हि आ १८५०मे सम्पूर्ण हरावत परगन्नाक जमीन्दारीपर प्रतापक अधिपत्य भऽ गेलैन्ह। एवँ प्रकारे सौरिया राजक एक महत्वपूर्ण भाग समाप्त भऽ गेल। हुनके नामपर प्रतापगंज बाजार बसल अछि। प्रतापगंज अहिवंशक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति भेलाह। अपना मृत्युसँ पूर्वहिं ओ अपन सम्पत्ति अपन दुनू पुत्र लक्ष्मीपति सिंह आ धनपति सिंहमे बटबा देलन्हि। इ दुनू भाए सार्वजनिक काममे सक्रिय रूपसँ भाग लेलन्हि। धनपति सिंह सेहो काफी प्रसिद्ध व्यक्ति भेल छथि। हिनका तीनटा पुत्र छलथिन्ह– गनपत, नरपत, बहादुर। गनपत सिंह अपना नामपर गनपत गंज बजार बसौलन्हि। नरपत सिंह कैसरे हिन्द कहबैत छलाह। हिनक पुत्रमे शूरपत सिंह प्रसिद्ध भेल छथि। ओ महाजनी भाषाक अतिरिक्त आरो कैक भाषाक जानकार छथि। हिन्दीसँ हुनका विशेष प्रेम छलन्हि आ जैन धर्म ग्रंथक हिन्दीमे अनुवाद सेहो करौने छलाह। प्राचीनकालमे हरावत जंगल छल आ आइनी–अकबरीमे एकर राजस्वक उल्लेख अछि। नाथपुरक चलते हरावतक बड्ड नाम छल मुदा कोशीक पेटमे सब जाके नष्ट भऽ गेल।
वंशवृक्ष
राजा सोमचंद
४८म प्रताप सिंह
। ।
लक्ष्मीपत धनपत
। । । ।
छत्रपत गनपत नरपत बहादुर । । ।
शूरपत महिपत भूपत
v. चक्रवारक इतिहास:-मिथिलाक पाँजि आ अंग्रेजक इस्ट इण्डिया कम्पनीक कागज देखलासँ ज्ञात होइत अछि जे मुगलकालक अंतिम दिनमे बेगूसराय इलाकामे एकटा छोट–छीन राज चक्रवार ब्राह्मण लोकनि बनौने छलाह जे सम्प्रति चक्रवार भूमिहारक नामे प्रसिद्ध छथि। शुद्ध भूमिहारक दृष्टिकोणसँ लिखल गेल स्वामी सहजानंदक ‘ब्रह्मर्षिवंश विस्तर’मे चक्रवारकेँ भूमिहारमे नहि गिनल गेल छैक आ बहुतो दिन धरि ओ लोकनि मैथिल कहबैत छलाह। चक्रवारक मूल छन्हि ‘बेलौंचे सुदइ’।
स्थानीय परम्पराक आधारपर ज्ञात होइछ जे चिरायुँमिश्र नामक एक व्यक्ति बेलौंचे डीहसँ उपटिकेँ बेगूसराय जिलाक साम्हो ग्राममे आबिकेँ बसि गेल छलाह। मुल्ला तकियाक वयाजसँ इ ज्ञात होइछ जे ओ हाजी इलियास तिरहूत राजकेँ दू भागमे बटने छल आ गंडकक दक्षिणी भागपर अपन अधिपत्य स्थापित कए बेगूसराय क्षेत्र धरि अपन प्रभाव बढ़ा लेने छल। फिरोज तुगलक पुनः तिरहूतक सम्पूर्ण राज्य भोगीश्वरकें हस्तांतरित कऽ देने छलाह। मिथिलाक ब्राह्मण शासक, ओइनवार वंशक लोग, आंतरिक मामलामे स्वतंत्र छलाह परञ्च दिल्लीक प्रभुताक मनैत छलाह। ओहि कालमे जे एक प्रकारक अस्तव्यस्तता छल तकरा चलते बहुत रास मैथिल ब्राह्मण अपन जीविकोपार्जनक हेतु चारोकात बहराइत गेलाह। तेरहम–चौदहम शताब्दीमे चिरायुँ मिश्र सेहो गंगा स्नान करबाक दृष्टिये साम्हो दिसि पहुँचलाह आ ओतुका प्राकृतिक छटा देखि आकृष्ट भए गेलाह आ ओतुके लोकक आग्रहपर ओतए बसि गेलाह। चक्रवार परम्परामे तँ इ कथा सुरक्षित अछि जे तहियेसँ हुनका लोकनि राज्य ओतए बनि गेलन्हि आ चक्रवारक प्रभाव पूर्णियाँसँ बक्सर धरि गंगाक दुनूकात पसरि गेल। तुगलक कालीन मलिक वायासँ संघर्ष हेबाक कथा सेहो चक्रवार परम्परामे सुरक्षित अछि। (अहि प्रसंगमे देखु–हमरे लिखल–‘चक्रवारस आफ बेगूसराय’)
अठारहम शताब्दीक पूर्वार्द्धमे मुगल साम्राज्यक विघटन प्रारंभ भऽ गेल छल। प्रांतीय राज्यपाल लोकनि अपन स्वतंत्रता घोषित करए लागल छलाह। एहना स्थितिमे चक्रवार लोकनि सेहो अपनाकेँ बेगूसराय क्षेत्रमे स्वतंत्र घोषित कए देलन्हि। हुनक स्वतंत्र राज होएबाक सबसँ पैघ प्रमाण इ अछि जे चक्रवार राजक विभिन्न व्यक्ति अपन हस्ताक्षर आ मुदासँ युक्त अनेको दानपत्र देने छथि। चक्रवार राजा बख्तावर सिंहक एक भूमिदान पत्रसँ इ प्रतीत होइछ जे हुनक अधिपत्य दलसिंहसराय धरि छल। “महाराज बख्तावर सिंह देवदेवानाम्”–क उपाधिसँ सेहो इ सूचित होइछ जे ओ मात्र एक सामंतेटा नहीं अपितु अपना प्रदेशक एक स्वतंत्र शासक सेहो। कम्पनीक कागजातमे बख्तावर सिंहक उल्लेख चक्रवारक राजाक रूपेँ भेल अछि। राजा शिवदत्त सिंह चक्रवारक एकटा दानक मान्यता अलीवर्दी स्वीकृत केने छल आ ओहि दानकेँ ओ यथावत् रहए देने छल। इहो कहल जाइछ जे राजा बख्तावर सिंहक पितृव्य रूको सिंह फरकिया परगन्नाकेँ लूटने छलाह जे तखन राजा कुंजल सिंहक अधीनमे छल। रूको सिंह १७३०मे कुंजल सिंहक हत्या कऽ देलन्हि।
कम्पनीक लेखसँ बुझि पड़इयै जे १७१९धरि चक्रवार लोकनि बेगूसरायमे प्रभुता संपन्न राज्यक रूपमे स्वीकृत भऽ चुकल छलाह। ओ लोकनि सरकारकेँ लगान देब बन्द कऽ देने छलाह आ मूंगेरसँ पटना धरि गंगा नदीक मार्गपर नियंत्रण सेहो कऽ लेने छलाह। ओहि मार्गसँ जाइबला सब नावकेँ रोकिकेँ ओ लोकनि कर वसूल करैत छलाह आ ओकरा लूटितो छलाह। अंग्रेज कम्पनीकेँ अपन नावक संग सेना सेहो पठवे पड़इत छलैक। कोन्ना आ अन्य स्थानमे चक्रवार लोकनि सबल पड़इत छलाह। चक्रवार लोकनि अंग्रेजक नावपर आक्रमणो करैत छलाह आ अंग्रेज आ चक्रवारक बीच बरोबरि युद्ध होइत छल। अंग्रेज लोकनि १७२१मे बख्तावर सिंहकेँ चक्रवारक राजा मानि लेलाह। अलीवर्दी चक्रवारकेँ पराजित करबामे सफल भेलाह। कहल जाइत अछि जे १७३०मे विश्वासघात कऽ कए अलीवर्दीक आदमी चक्रवार राजाकेँ मारि देलक। हालवेल अपन पोथीमे अहि विश्वासघातक वर्णन केने अछि। ओ चक्रवार राजा कोन छल तकर नाम नहि भेटइत अछि कारण बख्तावर सिंह अलीवर्दीसँ नीक सम्बन्ध स्थापित कऽ लेने छलाह आ बादमे अलीवर्दीक अभियानमे हुनक मदति सेहो केलथिन्ह। चक्रवार वंशक दलेल सिंह टेकारी राकक एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी छलाह आ राजा मित्रजित सिंहक प्राण बचेबामे सहायक भेल छलाह। १७९३मे दमामी बन्दोबस्तक समय कार्नवलिस साम्होक बन्दोबस्त चक्रवार दिग्विजय नारायणक संग कऽ देलक। अखनो धरि बेगूसराय जिलाक बारह गाम चक्रवार लोकनि पसरल छथि आ अपन प्राचीन इतिहासक अध्ययनसँ गौरवान्वित होइत छथि। चक्रवार कालमे बेगूसरायक महत्व काफी बढ़ि गेल छल आ एकर प्रमाण हमरा कम्पनी रेकार्डससँ भेटइत अछि।
vi. नरहनक द्रोणवार वंश :- द्रोणवार लोकनिकेँ छथि, कहाँसँ एलाह आ कोना अहिठाम अपन राजक स्थापना केलन्हि तकर कोनो प्रामाणिक इतिहास नहि भेटैछ आ अपन अथक परिश्रमक बाबजूदो हम कोनो ठोस सामग्री जुटेबामे समर्थ नहि भेलहुँ अछि। इ लोकनि पश्चिमसँ एलाह आ एक परम्पराक अनुसार कन्नौजसँ। जँ अहि परम्परामे विश्वास कैल जाइक तखन तँ हमरा बुझि पड़इयै जे कोलाञ्चसँ ब्राह्मण लोकनिकेँ बजाकेँ जे दान देल जाइत छल ताहिकालक ओहिमहक कोनो शाखा द्रोणवारक पूर्वज रहल हेथिन्ह। पंचोभ ताम्रपत्र अभिलेखसँ स्पष्ट अछि जे १३म शताब्दी धरि कोलाञ्च ब्राह्मणकेँ आमंत्रित कए दान देल जाइत छलन्हि। द्रोणवार परम्परामे कहल जाइत अछि जे कन्नौज से जे द्रोणवारक शाखा तिरहूत अवइत छल ताहिमे सँ किछु गोटए बाटहिमे गाजीपुरमे रूकि गेलाह। कहल जाइत अछि जे तिरहूतमे ‘द्रोणवार’ लोकनि ‘द्रोणडीह’सँ आएल छथि। दोसर परम्पराक अनुसार हिमालयक तलहट्टीमे द्रोणसागर नामक कोनो ताल अछि जकर चारूकात बहुत रास ब्राह्मण बसैत छलाह आ तैं इ लोकनि द्रोणवार कहौलन्हि। रेलवे बोर्ड द्वारा प्रकाशित ‘तीर्थाटन–प्रदीपिका’ नामक पोथीमे काशीपुर द्रोणसागरक वर्णन अछि। पाण्डव लोकनि अपन गुरू द्रोणाचार्यक हेतु ‘द्रोणसागर’क निर्माण केने छलाह।
सरैसा परगन्नाक द्रोणवारक ओतए जे मैथिल पंडितक लिखल हस्तलेख सब अछि ताहिमे ओ लोकनि द्रोणवारक हेतु ‘द्रोणवंशोद्भव’ शब्दक व्यवहार कएने छथि। द्रोणवार लोकनि अपनाकेँ द्रोणक वंशज कहैत छथि आ पश्चिमक वासी सेहो। मुसलमानी उपद्रव बढ़लाक बाद इ लोकनि अपन मूलस्थानसँ भगलाह आ ओहि क्रममे एक शाखा तिरहूतमे आबिकेँ बसलाह। विद्यापति अपन लिखनावलीमे द्रोणवार पुरादित्यक उल्लेख केने छथि जिनक राज नेपालक तराइमे छल आ जाहिठाम विद्यापति लखिमाकेँ लऽ कए प्रश्रय लेने छलाह। परमेश्वर झाक अनुसार शिवसिंह रनिवासक सब स्त्रीवर्गकेँ विद्यापति ठाकुरक संग कए नेपालक तराइमे रजाबनौली गाम सप्तरी परगन्नाक अधिपति निजमित्र पुरादित्य नामक द्रोणवंशीय दोनवार राजाक शरणमे पठौलन्हि। पुरादित्य द्रोणवार हुनका सबहिक सम्मानपूर्वक रक्षा केलन्हि। एहिसँ स्पष्ट अछि जे ओइनवार वंशक शिवसिंह आ द्रोणवार वंशक पुरादित्यक मध्य घनिष्ट मित्रता छल। अहिठाम विद्यापति लिखनावली लिखलन्हि आ भागवतक प्रतिलिपि सेहो तैयार केलन्हि।
द्रोणवारक बस्ती देकुलीक सम्बन्धमे परमेश्वर झा लिखैत छथि जे तेसर देकुली मुजफ्फरपुर जिलामे शिवहर राजधानीसँ एक कोस पूर्व सीतामढ़ी सड़कसँ दक्षिण भागमे अछि, ताहिमे एक बहुत खाधिमे एक शिवलिंग भुवनेश्वर नामक छथि आ एहि गामक विषयमे बहुत रास पुरान कथोपकथन अछि जाहिमे कौरव पाण्डवक उल्लेख सेहो अबैछ। संभव जे इ देकुली द्रोणवारक मूल स्थान रहल हो आ एतहिसँ ओ लोकनि चारूकात पसरल होथि। द्रोणवारक संघर्ष बौद्ध लोकनिसँ तिरहूतक सीमामे भेल छलन्हि से हमरा लोकनिकेँ विद्यापतिसँ ज्ञात होइछ। एहिसँ इहो सिद्ध होइछ जे द्रोणवार लोकनि सेहो मिथिलाक उत्तरांचलमे प्रबल शक्तिक रूपमे विराजमान छलाह आ मैथिल ब्राह्मणहि जकाँ बौद्ध विरोधी सेहो छलाह। आन द्रोणवार वंशक एहेन प्रमाण आ कहाँ भेटइत अछि। द्रोणवार लोकनि मूलरूपेण तिरहूतक अंशमे प्राचीन कालमे रहल हेताह आ नेपालक तराइ धरि अपन राजक विस्तार केने होथि से संभव।
द्रोणवार परम्परा एकटा कथा इहो अछि जे बुद्धक देहावसान भेलापर जखन हुनक अस्थि वितरण होइत छल तखन मिथिलामे द्रोण ब्राह्मण लोकनि हुनक अस्थि अनने छलाह। जँ ताहिकाल ‘द्रोणवार’ लोकनि मिथिलामे उपस्थित छलाह तखन तँ हमर तँ इ मत आरो पुष्ट होइछ जे द्रोणवार अहिठामक थिकाह आ मिथिलाक आन ब्राह्मण जकाँ हिनको उत्पत्ति तिरहूतेमे भेल छलन्हि। मात्र अस्थि संचय करबा लेल ओ द्रोण लोकनि ओतए दूरसँ एतए नहि आएल होएताह। कालक्रमेण ब्राह्मण कौलिक कार्यसँ अपनाकेँ फराक कऽ लेलापर इ लोकनि भूमिहार कऽ कोटिमे राखल गेल होथि से संभव।
एक दोसर परम्पराक अनुसार नेपाल दरबारसँ द्रोणवार लोकनिकेँ राजाक उपाधि भेटलन्हि आ हिनक शौर्यकेँ देखैत मकमानी जिलाक भार हिनका लोकनिकेँ देल गेल छलन्हि। द्रोणवार राजा अभिमान राय प्रसिद्ध भेला आ मकमानीमे हिनक अधिपत्य छलन्हि आ इ लोकनि ‘पाण्डेय’ कहबैत छलाह। अभिमानक मृत्युक पश्चात् हुनक कर्मचारी लोकनि महारानीकेँ लऽ कए मिथिला प्रांतक दक्षिणी सीमापर स्थित बेलौंचे सुदइ मूलक चक्रवार ब्राह्मणक राज्यमे पहुँचा देलन्हि। अभिमान रायक पुत्र छलाह गंग़ाराम। गंगाराम अहिवंशक सर्वप्रसिद्ध व्यक्ति भेल छथि आ हिनका सम्बन्धमे बहुत रास किंवदंती अछि। चक्रवार राजा अपन कन्यासँ गंगारामक विवाह करौलन्हि। सार–बहनोइमे सामान्य बाताबाती भेलापर ओ राज्य छोड़ि देलन्हि आ अपन पत्नीकेँ संग लऽ कए ओतएसँ चलि देलन्हि। ससूरसँ सेनाक साहाय्य भेटलन्हि आ ओ सरैसा परगन्नामे अपन राजक स्थापना केलन्हि। सरैसा परगन्नाक “पुनाश” गाममे हिनक पूर्वज पहिने रहैत छलथिन्ह तैं सरैसा परगन्नामे राज्य स्थापनाक निर्णय इ केलन्हि। ताहि दिनमे ओहि सब क्षेत्रपर मुसलमानक आधिपत्य छल। ताजखाँ (ताजपुरक संस्थापक) आ सुल्तानखाँ (सुल्तानपुरक संस्थापक)केँ मारि इ मोखामे अपन राजधानी बनौलन्हि। सरैसा परगन्ना नरहनसँ जन्दाहा धरि करीब ४०मील नाम अछि आ पोखरैरासँ सुल्तानपुर घाट धरि करीब २०मील चाकर अछि। हिनक एक विवाह मैथिल ब्राह्मण परिवारमे सेहो छलन्हि। पहिल पत्नीक नाम भागरानी आ दोसराक नाम मुक्तारानी छलन्हि। हिनक दुनूरानी मोखागढ़मे सती भेलथिन्ह।
भागरानीसँ उत्पन्न पुत्र भेला राय बड्ड प्रतापी भेलाह। भेला राय मोखा सुल्तानपुरमे रहलाह आ मालाराय ‘वीरसिंहपुर–पोखरैरा’मे भेला। रायक वंशज नरहनक पूर्वज भेलाह। अहिवंशक लोग बनारसक गद्दीपर छथि। भेला रायक पुत्र विक्रमादित्य रायकेँ सरैसा परगन्नाक ‘चौधराइ’ भेटलन्हि। विक्रमादित्य राय बड़ा पराक्रमी छलाह। इ अपना नामपर ‘विक्रमपुर’ गाम बसौलन्हि। हिनक पुत्र हरेकृष्ण राय नरहनमे अपन दोसर राजधानी बनौलन्हि।– प्रधान राजधानी मोखा आ दोसर नरहन। वंशवृक्षक अनुसार इतिहास एवं प्रकारे अछि–
द्रोणवार हरगोविन्द राय–
चौधरी केशवनारायण राय (सरैसा, भूषारी, नैपुर परगन्ना)
हिनक जेठपुत्र दिग्विजय नारायण बनारसक राजा बलबंत सिंहक बेटीसँ विवाह केलन्हि -
वारेन हेस्टिंग्सक मदतिसँ बलबंत सिंहक बाद चेतसिंह बनारसक गद्दीपर बैसलाह। जखन चेतसिंह वारेन हेस्टिंग्ससँ पराजित भेलाह आ बनारसक राजगद्दी खाली भेल तखन नरहनक अजीत नारायणक पौत्र आ दिग्विजय नारायणक पुत्र वारेन हेस्टिंग्सक अनुमतिसँ बनारसक गद्दीपर बैसलाह। हुनक नाम छलन्हि राजा महीप सिंह आ इ सालाना ३८ लाख टाका वारेन हेस्टिंग्सकेँ देबाक वचन देलथिन्ह। तहियासँ बनारसक गद्दीपर हिनके वंशज शासन कै रहल अछि।
महीप सिंह
उदित सिंह
इश्वरी प्रसाद सिंह
प्रभुनारायण सिंह
आदित्य नारायण सिंह
दिग्विजयक भ्राता नरहन स्टेटक मालिक भेला। महाराज दरभंगाक जे नवाबक संग कन्दर्पी घाटक लड़ाइ भेल छल ताहिमे सर्वजीत सिंह नरेन्द्र सिंहक दिस छलाह। हुनक भाए उमराव सिंह नरहनक सैनिकक नेतृत्व करैत छलाह आ एकर विवरण हमरा लाल कविसँ भेटइत अछि। नरेन्द्र सिंह प्रसन्न भए हिनका दुनू भाइकेँ पुरस्कृत करए चाहैत छलथिन्ह मुदा ओ लोकनि पुरस्कार लेबासँ नकारि गेलाह तथापि फरकिया परगन्नामे हिनका लोकनिकेँ किछु गाँव भेटलन्हि। दरभंगा राज परिवारमे एहि हेतु नरहन राज परिवारक बड्ड सम्मान छलैक। हिनका लोकनिमे एतेक नीक सम्बन्ध छल जे महाराज प्रताप सिंहक समयमे जखन नवाबक दबाब बढ़ल तँ प्रताप सिंह अपन परिवारकेँ नरहन पठा देलन्हि आ अपने बेतिया चल गेलाह। रामेश्वर सिंह धरि इ सम्बन्ध ओहिना बनल छल।
सर्वजीत
रणजीत
रूप नारायण
राम नारायण
परमेश्वरी प्रसाद सिंह
नरहन दरबारमे चित्रधर मिश्र आ चंदा झा सन प्रसिद्ध विद्वानकेँ प्रश्रय भेटल छलन्हि आ महामहोपाध्याय गंगानाथ झासँ सेहो हिनका लोकनिक बढ़िया सम्बन्ध छल। राम नारायणक सम्बन्ध नेपालक जंगबहादुर शाहसँ सेहो छल कारण दुनू गोटएकेँ सोनपुर मेलामे भेट भेल छलन्हि। राम नारायण नेपालो गेल छलाह।
vii. बेतिया राजक इतिहास:-सोलहम शताब्दीक उतरार्द्धमे उग्रसेन सिंहक पुत्र गज सिंह द्वारा बेतिया राजक स्थापना भेल। गज सिंहकेँ शाहजहाँसँ राजाक पदवी भेटल छलन्हि। इ मिथिलाक राजा महिनाथ ठाकुरक समकालीन छलाह आ हुनका समयमे दुनूक बीच मनमुटाव आ खटपट सेहो भेल छल। मुगल साम्राज्यक कमजोर भेलापर उत्तर बिहारक सबटा राज्य स्वतंत्र हेबाक प्रयासमे लागि गेल छल आ बेतिया राज एकर कोनो अपवाद नहि कहल जा सकइयै। १७२९मे अलीवर्दी बेतिया राजपर आक्रमण कए ओकरा अपना अधीन केने छलाह। १७४८मे बेतियाक राजा लोकनि दरभंगा अफगानक संग मित्रता केलन्हि। दरभंगा अफगान अलीवर्दीक सेना द्वारा पराजित भेला। दरभंगा अफगानकेँ बेतियाक राजा सब बरोबरि मदति करैत रहैथ। अलीवर्दीक बाद पुनः बेतिया अपन स्वतंत्रता घोषित कए लेलक आ अंग्रेजी सत्ताक विरूद्ध ताधरि बनल रहल जाधरि कि १७५९मे अंग्रेजी सेनाक आक्रमण बेतियापर भेल। मीरजाफरक पुत्र मीरन अंग्रेजी सेनाक संग १७६०मे बेतियापर धावा मारलक आ बेतियाक स्वतंत्रता पुनः समाप्त भऽ गेल। १७६२मे मीरकासीम बेतियाक विरूद्ध सेना पठौलन्हि आ बेतियापर अपन अधिकार जमौलन्हि।
१७६६मे राबर्ट बेकरक प्रयाससँ बेतियामे अंग्रेजी सत्ताक स्थापना संभव भऽ सकल। १७६२मे ओहिठाम जुगलकेश्वर सिंह राजा छलाह। हुनका पुनः इस्ट इण्डिया कम्पनीसँ झंझट भेलन्हि कारण बहुतो दिनसँ बेतियापर करक बकिऔता खसल छलैक। कर देबाक बजाय बेतियाक राजा अंग्रेजी सेनासँ युद्ध करब उचित आ सम्मानीय बुझलैथ आ युद्धमे परास्त भेला उत्तर ओ भागिकेँ बुन्देलखंड चल गेला आ कम्पनी हुनक राजकेँ अपना अधीन कऽ लेलक। बादमे जखन राजक स्थिति अंग्रेजक बुते नहि सुधरलैक तखन अंग्रेज पुनः जुगलकेश्वर सिंहसँ वार्त्ता शुरू केलक आ हुनका घुरबाक लेल अनुरोध केलक। अंग्रेज जुगलकेश्वर सिंहकेँ मझवा आ सिमरौन परगन्ना सेहो देलक आ बाँकि क्षेत्रकेँ गजसिंहक पौत्र आ पितिऔत श्री किशुन सिंह आ अवधुत सिंहमे बाँटि देलक। उएह लोकनि बादमे क्रमशः शिवहर (मुजफ्फरपुर) आ मधुबन (चम्पारण) राजक संस्थापक होइत गेलाह।
१७९१ जुगलकेश्वर सिंहक पुत्र वीरकेश्वर सिंहक संग कम्पनीक समझौता भेल आ वीरकेश्वरक नेतृत्वमे बेतिया राजक स्थिति सुदृढ़ भेल। कम्पनी आ नेपालक बीच जे युद्ध भेल ताहिमे वीरकेश्वर सिंह सक्रिय भाग लेलन्हि। १८१६मे आनन्दकेश्वर सिंह राजा भेला आ लार्ड विलियम बेंटिङ्गसँ हुनका महाराज बहादुरक पदवी भेटलन्हि। एकर कारण इ छल जे ओ अंग्रेजकेँ बड्ड मदति केने छलाह। हुनका बाद नवलकेश्वर सिंह राजा भेलाह आ १८५५मे राजेन्द्रकेश्वर सिंह। सिपाही विद्रोहक अवसरपर इ अंग्रेजक अपूर्व सहायता केने छलाह। हुनका आ हुनक पुत्र हरेन्द्रकेश्वरकेँ महाराज बहादुरक पदवी अंग्रेजसँ भेटल छलन्हि। १८९३मे हरेन्द्रकेश्वरकेँ के.सी.आइ.इक पदवी सेहो भेटलन्हि।
बेतियाक शासक लोकनि भूमिहार ब्राह्मण छलाह। इ लोकनि अपना राजकालमे नीक अस्पताल आ पुस्तकालय बनौने छलाह। इ लोकनि साहित्य प्रेमी सेहो छलाह। हिनका लोकनिक दरबारमे कवि आ कलाकारक बड्ड आदर छल। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आ राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्दकेँ हिनका लोकनिक ओतएसँ बरोबरि सहायता भेटइत छलन्हि। ओना तँ बेतिया राज बड्ड प्राचीन मानल गेल अछि मुदा एकरा सम्बन्धमे अखन सब बात स्पष्ट नहि भऽ सकल अछि। बेतिया राजक वंशावली एवं प्रकारे अछि।
बेतिया राजक वंशावली
गंगेश्वर देव
मकेश्वर देव
राजा देव
धानोराज
उदय करण राज, जदुराज
उग्रसेन
गज सिंह (राज सिंह ?)
दिलीप सिंह
पृथ्वी सिंह
सत्रजित सिंह
ध्रुवसिंह (बड्ड पैघ किला बनौने छलाह)
अपन बेटीक बेटा जुगलकेश्वरकेँ कोरामे लेलन्हि। कारण हिनका पुत्र नहि छलन्हि।
शिवनाथ सिंह
जुगलकेश्वर सिंह
वीरकेश्वर सिंह
वीरकेश्वर सिंह
नवलकेश्वर सिंह
महेन्द्रकेश्वर सिंह
आनन्दकेश्वर सिंह
राजेन्द्रकेश्वर सिंह
हरेन्द्रकेश्वर सिंह
(महारानी शिवरतन–महारानी जानकी कुँवर)
भूमिहार ब्राह्मणक इ वंश अपनाकेँ बड्ड प्राचीन मनैत छथि। हिनका लोकनिक वैवाहिक सम्बन्ध बनारस राजसँ सेहो अछि। कामेश्वर वंश जकाँ इहो लोकनि अपनाकेँ सुगौनासँ जोड़ैत छथि मुदा एतिहासिक तत्वक अभावमे अखन किछु कहब असंभव। बेतियाक वर्णन १७८६मे प्रकाशित गजेटियरमे भेटइत अछि। १७८६मे अहिठाम इशाइ मिशनक एकटा शाखा छल।
छोट छिन्ह राज सभहिक विवरण:- शिवहरक स्थापना बेतिया राजक शाखासँ भेल छल। सुरसंड राज सेहो भूमिहार ब्राह्मण वंशक राज जकर स्थापना महाराज प्रताप सिंह (दरभंगा)क समयमे भेल। एहिमे सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यक्ति चन्द्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह भेल छथि जे नेपाल क्रांति (१९५०)क समयमे भारतक राजदूत रहल छलाह। बनैली राजक शाखाक रूपमे श्रीनगर राजक स्थापना भेल अछि। रूद्रानंद सिंह अपन पुत्र श्रीनन्दन सिंहक नामपर श्रीनगरक स्थापना केने छलाह श्रीनन्दन सिंहक तीन पुत्र नित्यानंद सिंह, कमलानंद सिंह आ कालिकानंद सिंह भेला। कमलानंद सिंह साहित्य सेवी छलाह आ हिन्दीक प्रगतिक हेतु लाखो टाका खर्च केने छलाह। ‘साहित्य सरोज’, ‘अभिनव भोज’, ‘कलियुगी हरिश्चन्द्र’, ‘कलिकर्ण’ आदि उपाधिसँ इ विभूषित छलाह। हिनके पुत्र भेल थिन्ह कुमार गंगानन्द सिंह जे मैथिली, हिन्दी, अंग्रेजी आ प्राचीन भारतीय इतिहासक प्रकाण्ड पण्डित छलाह। कालिकानंद सिंह आ गंगानंदक पुस्तकालय दर्शनीय छल। पुर्णियाँमे राजा पृथ्वीचन्द लालक राज सेहो प्रख्यात छल। छोट–मोट मुसलमान राजक संख्या सेहो ओतए बड्ड अछि। पुर्णियाँमे क्षत्रिय लोकनिक रजबारा सेहो छल जाहिमे सौरिया राजक इतिहास प्रसिद्ध अछि। मुसलमानी राजमे खगड़ाक मुसलमानी राज प्रसिद्ध छल।
अध्याय–15
मिथिलाक प्रशासनिक इतिहास
प्राचीन कालमे मिथिला एक एहेन स्थान छल जतए जनक सन शासक छलाह, याज्ञवल्क्य सन विधि विशेषज्ञ एवँ विधिकर्त्ता तथा गौतम सन प्रख्यात नैयायिक। एक ठाम एहेन त्रिरत्नक जुटब कोनो सामान्य बात नहि अपितु ओहि माँटिक विशेषता कहल जा सकइयै। जनक कालीन मिथिला अपना युगमे राजतंत्रक प्रधान केन्द्र छल मुदा ओ राजतंत्र सब तरहे आदर्श राजतंत्र कहल जा सकइयै आ एकर प्रमाण हमरा उपनिषदसँ भेटइत अछि। (अफलातुन, प्लेटो)क दार्शनिक राजाक कल्पना मिथिलहिमे जनक युगमे साकार भेल छल आ हमर एहि कथनकेँ कोनो रूपेँ अतिशयोक्ति नहि कहल जा सकइयै। बृहदारण्यक उपनिषदसँ ज्ञात होइछ जे राजा अपन प्रजाक हाल–चाल बुझबाक हेतु बरोबरि अपन राज्यमे भ्रमण करैत रहैत छलाह आ राजाक अहि परिभ्रमणक क्रममे गामक बृद्ध लोकनि राजाक ठहरबाक आ सुख सुविधाक व्यवस्था करैत छलाह। जाधरि राजा अहि प्रकारक यात्रापर रहैत छलाह ताधरि ओ लोकनि राजाक संग रहैत छलाह। गामक मुख्य पदाधिकारी उग्रकर्मासूत कहबैत छलाह आ ओ गामक बृद्धक संग मिलि शासन कार्य चलबैत छलाह। राजा अपन प्रजासँ प्रेम करैत छलाह आ प्रजाक स्थितिक ज्ञान प्राप्त करबाक लेल स्वयं बरोबरि भ्रमणशील रहैत छलाह। उग्रकर्मासूतकेँ पुलिस पदाधिकारी सेहो कहल गेल अछि। प्राचीनकाल ग्यारह रत्निनमे एकटा ‘सूत’ सेहो होइत छलाह आ बादमे इएह इतिहासकारक काज सेहो करए लागल छलाह। जनक कालीन मिथिलामे हिनक मुख्य काज छल ग्रामीण शासन व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ बनाके राखब आ जनताक कल्याणपर ध्यान देब। एतबा सब किछु होइतहुँ ताहु दिनमे अकाल पड़इत छल आ जनकक समयमे अनावृष्टिक कारणे अकाल पड़ल छल जाहिमे जनककेँ स्वयं हर जोतए पड़ल छलन्हि।
वैदिक कालमे मिथिलामे राजतंत्रिय व्यवस्था छल आ वंशानुगत राजतंत्र प्रणालीक जड़ि जमि चुकल छल। पवित्रताक भावना राजा लोकनिकेँ रहैत छलन्हि। राजा लोकनि शक्तिशाली होइत छलाह। राजदरबारमे ब्राह्मणक प्रधानता छल आ संगहि सेनापति आ रथकार सेहो रहैत छलाह। एतरेय ब्राह्मणक अनुसार ककरोसँ कोनो काज लेब राजाक विशेषाधिकार बुझल जाइत छल। राजा समस्त मानवक एक मात्र शासक मानल जाइत छलाह आ ओहिमे जे गैरजबाबदेह होइत छलाह हुनका प्रजाक भोक्ता कहल जाइत छल। जनप्रिय राजा लोकनिकेँ देवक संज्ञा भेटइत छलन्हि। ब्राह्मण साहित्यमे राजा जनककेँ सम्राट सेहो कहल गेल छन्हि। राजा जनकक समयमे राजतंत्र मिथिलामे चरमोत्कर्षपर छल। अत्याचारी राजापर अंकुश रखबाक हेतु प्राचीन मनीषि लोकनि अधिकाधिक नियम बनौने छलाह। राज्याभिषेकक अवसरपर जे शपथ ग्रहण होइत छल ताहिमे राजाकेँ इ प्रतिज्ञा करए पड़इत छलन्हि जे ओ अपना प्रजाक हेतु किछु उठा नहि रखताह। राज्यमे सूत, ग्रामणी आ अनान्य अधिकारी वर्गक बड्ड महत्व छल आ राजाक निर्वाचनमे इएह लोकनि सर्वेसर्वा होइत छलाह। तैं तँ शतपथ ब्राह्मणमे हिनका लोकनिकेँ “राजकृत” सेहो कहल गेल छन्हि। वैदिक युगमे विदथ, सभा आ समितिक उल्लेख सेहो भेटैछ। विदथ बड्ड पुरान संस्था छल आ मिथिलामे एकर प्रचलन छलैक अथवा नहिसे कहब असंभव। सभा–समिति प्राचीन वैदिक वैधानिक संस्था छल आ एहि माध्यमसँ राजापर अंकुश राखल जाइत छल। गिलगिटसँ प्राप्त बौद्ध पाण्डुलिपिमे एहिबातक उल्लेख अछि जे मिथिलाक राजाक ओतए ५००अमात्य रहैत छलाह जाहिमे ‘खण्ड’ अमात्य अग्रगण्य छलाह। खण्ड शक्तिशाली अमात्य छलाह आ समस्त मिथिला राज्यमे हुनक धाक जमल छलन्हि। खण्डक वक्तव्यसँ इ स्पष्ट अछि कि जखन वैशालीमे गणराज्यक स्थापना भऽ चुकल छल तखनो मिथिलामे राजतंत्र प्रतिष्ठित राजनैतिक व्यवस्था छल। महाउम्मग्गजातकसँ इ ज्ञात होइत अछि जे मिथिलामे राजा विदेहक ओतए केवट नामक एकटा प्रधानमंत्री छलाह। मिथिलापर एकबेर जखन उत्तर पाँचाल दिसिसँ आक्रमण भेल छल तखन मिथिलाक रक्षार्थ केवट किछु उठा नहि रखने छलाह। केवटक कथाक विशद विश्लेषण जातक कथामे भेटइत अछि। कराल जनकक कुकृत्यसँ तंग भए मिथिलाक जनता राजतंत्रक जूआकेँ उठा फेकलक आ ओहि स्थानपर वैशालीक देखादेखी गणतंत्रक स्थापना केलक। किछु दिनक पश्चात् विदेह गणराज्य अपन सुरक्षार्थ वैशालीक गणराज्यसँ मिलि जुलिकेँ रहए लागल आ वज्जीसंघक प्रमुख सदस्य सेहो भऽ गेल।
वैशालीक गणराज्य शासन पद्धति:- वैशालीक लिच्छवी लोकनिक शासन गणतांत्रिक छल। राज्यक शक्ति जनतामे निहित छल। कौटिल्य लिच्छवी लोकनिक हेतु ‘राज शब्दोपजीवीसंघ’क व्यवहार कएने छथि। ‘ललितविस्तर’क अनुसार वैशालीक प्रत्येक व्यक्ति अपना सम्बन्धमे इएह बुझैत छल जे ओ राजा अछि। केओ अपनाकेँ ककरोसँ छोट नहि बुझैत छलाह। ओहिठामक राज्यशक्ति समूहमे निहित छल। शासक राज्यक सेवक बुझल जाइत छलाह। परिषदक बैसक जाहि भवनमे होइत छल तकरा ‘संथागार’ कहल जाइत छल। संथागारेमे बैसिकेँ सब केओ राजनैतिक आ सामाजिक प्रश्नपर विचार विमर्श करैत जाइत छलाह। परिषदक सभापति अथवा गणमुख्य सेहो राजा कहबैत छलाह। वैशालीमे ७७०७राजाक उल्लेख भेटइत अछि। संभवतः इ सब गोटए कुलीन परिवारक छलाह आ शासन सत्ता हिनके लोकनिक मध्य निहित छल। इएह कारण अछि जे वैशालीक शासनकेँ कुलीनतंत्र सेहो कहल गेल अछि।
आजुक संसद जकाँ ताहि दिनक संथागारमे सेहो सबटा कार्य नियमानुसार होइत छल। सदस्य लोकनिक बैसबाक प्रबन्धकेँ आसन कहल जाइत छल आ परिषदक कार्यवाहीक हेतु निश्चित गणपूर्त्तिक आवश्यकता छल। गणपूर्त्ति करेनिहार पदाधिकारीकेँ गणपूरक कहल जाइत छल। परिषदमे उपस्थित प्रस्तावकेँ प्रतिज्ञा कहल जाइत छल। प्रस्तावपर वाद–विवाद होइत छल आ तकर बाद ओहिपर मत लेल जाइत छल। मतकेँ गुप्त राखल जाइत छल आ पारित प्रस्तावकेँ सबकेँ मानए पड़इत छलन्हि।
गणक मुख्य अधिकारी होइत छलाह राजा, उपराजा, सेनापति, भांडागारिक, इत्यादि आ सेना, अर्थ आ न्याय शासनक मुख्य अंग छल। बौद्ध साहित्यमे हिरण्यक, सारथी आदि कर्मचारीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। नायक नामक एक पदाधिकारीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। न्याय विभागक अधिकारीकेँ विनय महामात्य कहल जाइत छल। अभियुक्तकेँ सर्वप्रथम हिनके समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल आ अहिठाम सर्वप्रथम आरोपक जाँच होइत छल। निरपराध भेलापर अपराधीकेँ मुक्त कऽ देल जाइत छल आ अपराध सिद्ध भेलापर पुनः ओकरा व्यावहारिक अथवा वोहारिक महामात्यक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। निरपराध सिद्ध भेलापर अपराधी मुक्त कऽ देल जाइत छल अन्यथा ओकरा पुनः अट्ठकुलकक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। क्रमशः अभियुक्तकेँ सेनापति, उपराजा आ राजाक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। अभियुक्तकेँ दण्ड तखने देल जाइत छल जखन ओकर अपराध पूर्णतया सिद्ध भऽ जाइक। समस्त न्याय प्रणालीक रेकार्ड राखल जाइत छल जकरा ‘पवेणीपुस्तक’ कहल जाइत छलैक। न्याय व्यवस्था समता आ स्वतंत्रताक सिद्धांतपर आधारित छल। अपील करबाक व्यवस्था सेहो छल।
अहिठाम इ स्मरण रखबाक अछि जे वैशाली लिच्छवी संघक राजधानी छल आ संगहि वृज्जि गणसंघक सेहो तैं वैशालीक अत्यधिक महत्व बौद्धयुगमे भऽ गेल छल। विदेह आ लिच्छवी संयुक्त रूपसँ संवज्जि कहबैत छलाह आ वृज्जिसंघमे आठटा गणराज्य सम्मिलित छल। कल्पसूत्रक अनुसार लिच्छवीक एहेन सम्बन्ध एकबेर मल्लक संग सेहो छल आ इ दुनू गोटए मिलिकेँ एकबेरसंयुक्त परिषदक निर्माण केने छलाह जाहिमे १८ सदस्य छलाह–९लिच्छवी आ ९मल्ल। इहो लोकनि राजा कहबैत छलाह। साम्राज्यवादी आक्रमणक प्रकोपसँ बचबाक हेतु इ लोकनि समय–समयपर अपन संघ बनबैत छलाह। वैशाली सबमे प्रमुख छल तैं सब छोट–छोट, गणराज्य वैशालीक संग मिलिकेँ संघ बनेबाक हेतु उत्सुक रहैत छल। वृज्जिसंघ शासनकेँ परामर्श देबाक हेतु एक संस्था छल अष्टकुलक जाहिमे आठो गणक प्रतिनिधि रहैत छलाह। संघक सब सदस्यक अधिकार बरोबरि छलन्हि। उच्चतम न्यायालयकेँ अष्टकुलक कहल जाइत छल। संघ शासन प्रणालीक अपन नियम छल जाहिसँ संघ शासन संचालित होइत छल। वैशाली ताहि दिनमे सर्वश्रेष्ठ संघ राज्यक केन्द्र छल।
बुद्ध वैशाली गणतंत्रक मतैक्य, सौहार्द, आदर, दृढ़ता, पराक्रम आदिक भावनासँ बड्ड प्रभावित छलाह आ बेर–बेर वैशाली अबैत रहैत छलाह। बुद्धक अनुसार जे गणराज्य निम्नलिखित सातटा आदर्शक (सप्तअपरिहाणिसुत्त) पालन करैत रहत तकर कहिओ ह्रास नहि हेतैक–
i) नियमित एवँ व्यवस्थित रूपें सदति सभाक आयोजन करब–
iv) बृद्ध लोकनिक प्रति आदर, श्रद्धा, सहयोग एवँ प्रतिष्ठाक भाव राखब–
v) संघक चैत्यक प्रति श्रद्धा एवँ सहयोगक भावना राखब–
vi) पराजित देशक स्त्रीक संग उचित व्यवहार करब–
vii) अर्हत् क प्रति समुचित सहयोग एवं रक्षाक भावना राखब।–
महापरिनिर्वाणसुत्तसँ ज्ञात होइछ ज वृज्जीसंघक शासन व्यवस्थामे–
i) विभिन्न संघक सभाक अधिवेशन बरोबरि नियमित रूपेँ होइत रहैत छल।–
ii) वृज्जीसंघक सदस्य लोकनि बरोबरि आपसमे मिलैत–जुलैत रहैत छलाह आ शासन चलेबामे सतर्कताक परिचय दैत छलाह।
iii) ओ लोकनि अपन परम्परागत नियमक पालनक प्रति जागरूक रहैत छलाह।
iv) शासनमे बुझनुक बृद्ध लोकनिक हाथ रहए दैत छलाह।
वैशालीमे कोना आ कहिया गणराज्यक स्थापना भेल से कहब असंभव। बुद्ध तँ लिच्छवी लोकनिक प्रशंसा ‘तावतिंश देव’ कहिकेँ केने छथि आ ओ स्वयं गणशासन प्रणालीसँ एतेक प्रभावित भेल छलाह जे ओ एहि प्रणालीकेँ अपन संघ संगठनक आदर्श मानलन्हि। ७७०७राजा ओहिठाम राजकुलोद्भव मानल जाइत छलाह आ ओहिना व्यवहारो करैत छलाह। वैशालीक पुष्करिणी हिनके लोकनिक हेतु सुरक्षित रहैत छल। इ लोकनि वैशालीक एक विशिष्ट क्षेत्रसँ संबन्धित छलाह। जैन कल्पसूत्रसँ इहो स्पष्ट होइछ जे वैशाली शासनक एकटा कार्यकारिणी समिति सेहो छल। वैशाली सन प्राचीन न्याय व्यवस्थाक कोनो दोसर उदाहरण संसारमे नहि भेटइत अछि। अभियुक्तकेँ तखने दण्डित कैल जा सकैत छल जखन ओ क्रमशः सातो न्याय समितिसँ एकमतसँ दण्डित घोषित हुए। वृज्जीसंघक शासनमे सेहो समानताक सिद्धांतक पालन होइत छल। अजातशत्रुक आक्रमणक बादो जखन वैशाली मगध साम्राज्यक अंग बनि गेल तखनो एकर गणतांत्रिक स्वरूप अपना क्षेत्रमे बनले रहल।
मौर्य युगसँ वैशाली–विदेह मौर्य साम्राज्यक एकटा अंग बनिकेँ रहल। अशोकक समयमे वैशाली आ चम्पारणक प्रशासनिक महत्व बढ़ल होइत कारण अहि दुनूठाम अशोकक स्तंभ अछि। अशोकक स्तंभसँ इ अनुमान लगाओल जाइछ जे प्रशासनिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक महत्व घटल नहि छल अपितु बढ़ले छल। अहि बाटे नेपाल जेबाक मार्ग छल तैं प्रशासनिक दृष्टिये सीमासँ सटल वैशाली–विदेह राज्यकेँ सुरक्षित राखब आ ओकरासँ नीक संबन्ध बनौने राखब साम्राज्यवादी शासकोक अभीष्ट रहैत छलन्हि। वैशालीसँ पुर्णियाँ धरिक सीमा मिथिला प्रांतक अंतर्गत छल आ मिथिला उत्तर बिहारक एकटा प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र छल। साम्राज्यवादी छत्रछायाक अंतर्गत रहितहुँ मिथिला अपन प्रजातांत्रिक प्रणालीकेँ सोहागक सिन्दुर जकाँ संजोगने छल। पतञ्जलिक महाभाष्यमे सेहो जतए–ततए मिथिला जनपदक उल्लेख भेटइत अछि। मौर्य साम्राज्यक समाप्त भेलापर वैशाली पुनः अपन स्वतंत्रता प्राप्त केलक से बुझि पड़इयै।
वैशालीक उत्खननसँ जे बहुत रास मोहर सब भेटल अछि ताहिपर श्रेणी, सार्थवाह, कुलिक, निगम आदिक उल्लेख भेटइयै। एहेन बुझना जाइत अछि जे वैशालीमे श्रेष्ठी, सार्थवाह आ शिल्पी लोकनिक सम्मिलित निगम छल आ एहि निगमक काज विभिन्न नगर सबमे पसरल छल। श्रेष्ठी–सार्थवाह–कुलिक निगमक २७४टा मोहर वैशालीसँ भेटल अछि जाहिमे ७५टा इशानदासक, ३८टा मातृदासक, ३७टा गोभिस्वामीक मोहर अछि। संभवतः इ लोकनि निगम शाखाक अध्यक्ष रहल होयताह। ठाम–ठाम मोहर सबक अतिरिक्त भगवान, जिन, पशुपति आदिक नामक उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
गुप्तकालमे वैशाली तीरभुक्ति प्रांतक राजधानी छल आ ओहिठामसँ प्राप्त मुद्रामे एकरा अधिष्ठान सेहो कहल गेल छैक। एहि प्रांतक महत्व अहुँसँ बुझना जाइत अछि जे स्वयं गोविन्दगुप्त एहि प्रांतक राज्यपाल छलाह आ हुनक एक अभिलेख सेहो अहिठामसँ भेटल अछि।
महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पत्नी श्री गोविन्द गुप्त माता श्री ध्रुवस्वामिनी–
अहिठामसँ बहुत रास मुद्रा, अभिलेख आदि भेटल अछि। प्रांतीय शासकक रूपमे राजकुलक लोग नियुक्त होइत छलाह। हुनका लोकनिकेँ युवराज कुमारामात्य कहल जाइत छलन्हि। प्रान्तीय शासककेँ अपन अपन महासेनापति, महादण्डनायक आ अन्यान्य कर्मचारी होइत छलन्हि। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति आ तीरभुक्तिक क्षेत्र ताहि दिनक मिथिला प्रांतमे छल। युवराज कुमारामात्यक अधीन भुक्तिक शासनक हेतु उपरिक नियुक्ति होइत छल आ पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिमे करण कायस्थक ‘दत्त’ पदवी धारी ‘चिरात दत्त’क ३–४पुस्त उपरिकक पदपर विराजमान छलाह। उपरिककेँ प्रांतीय शासक अथवा गवर्नर कहल जाइत छल। प्रांतीय शासकक मुख्य कर्त्तव्य निम्नलिखित छल–
i) शांति–व्यवस्थाकेँ सुरक्षित राखब
ii) कर वसूलीक व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ राखब
iii) प्रजाक रक्षा करब
iv) सुख–समृद्धिक प्रबन्ध करब
v) राजाक प्रति प्रजामे बिश्वास उत्पन्न करब
vi) सीमावर्त्ती राज्यक आक्रमणसँ अपन क्षेत्रकेँ सुरक्षित राखब।
गुप्तकालमे प्रादेशिक शासक लोकनिक सम्पर्क सोझे राजासँ छलन्हि। सामंतवादक विकास अहियुगमे प्रारंभ भऽ चुकल छल आ एकर प्रभाव शासनपर पड़ब स्वाभाविकेँ छल। उत्खननसँ प्राप्त सामग्रीक आधारपर प्रांतीय शासनसँ सम्बन्धित निम्नलिखित कर्मचारीक विवरण भेटइत अछि–
उपरिक, कुमारपालाधिकरण, (राजकुमारक मंत्रीक कार्यालय), बलाधिकरण (सेनापतिक कार्यालय), दण्डपाशाधिकरण, (पुलिस अधिकारीक कार्यालय), महादण्डनायक (प्रमुख न्यायाधीश), विनय स्थिति स्थापक (कानून आ व्यवस्था मंत्री)।
गुप्तकालमे केन्द्रीय शासनक विभिन्न विभागकेँ अधिकरण कहल जाइत छलैक आ एक प्रकारक राष्ट्रीय सेवाक प्रावधान सेहो छलैक। जकरा ‘कुमारामात्य’ कहल जाइत छलैक। ‘कुमारामात्य’ साम्राज्यक शासन प्रणालीक स्थायी सेवामे रहैत छलाह आ हुनका कतहु कोनो काजमे पठाओल जा सकैत छल। ओ लोकनि प्रशासनिक सेवाक सदस्य होइत छलाह। कवि हरिषेण सेहो अपनाकेँ कुमारामात्य कहने छथि। कुमारामात्यक सम्बन्ध प्रांतीय आ स्थानीय शासनसँ सेहो रहैत छल। वैशालीसँ प्राप्त सूचना प्रशासनिक सम्बन्धमे एवँ प्रकारे अछि–
i) कुमारामात्यधिकरणस्य
ii) युवराज पादीयकुमारामात्यधिकरण
iii) परमभट्टारक पादीय कुमारामात्यधिकरण
iv) वालाधिकरणस्य
v) रण भाण्डागारिधिकरणस्य
vi) दण्डपाशाधिकरणस्य
vii) तीरभुक्तौपरिकामधिकरणस्य
viii) तीरभुक्तौ विनय स्थिति स्थापकाधिकरणस्य
ix) तीरभुक्तौ कुमारामात्यधिकरणस्य
x) वैशालयाधिष्ठानाधिकरण
भुक्तिक अधीन विषय (जिला) होइत छल। विभिन्न श्रोतसँ इ ज्ञात होइत जे पालयुग धरि अवैत–अवैत तीरभुक्तिमे चामुण्डा, होद्रेय, कक्ष विषय छल आ नौलागढ़सँ प्राप्त अभिलेखक अनुसार एक ‘रक्षमुक्त विषयाधिकरण’ नामक सेहो एकटा प्रशासनिक केन्द्र छल। विषयमे पादितरिक आ गौल्मिक नामक अधिकारी होइत छलाह। अक्षपटलाधिकृत गामक जमीनक लेखा–जोखा रखैत छलाह। विषयमे चारि सदस्यक एकटा परामर्शदातृ समिति सेहो होइत छल जाहिमे नगर श्रेष्ठी, सार्थवाह, प्रथमकुलिक आ प्रथमकायस्थ सदस्य होइत छलाह। विषयपति अपन जिलाक प्रमुख व्यक्तिक संग मिलिकेँ शासन करैत छलाह। वैशालीमे नगर शासन स्थानीय निगमक हाथमे छल।
अहिठाम पुण्ड्रवर्द्धन–पुर्णियाँ (जे कि पूर्वी मिथिलाक अंश रहल अछि)केँ सम्बन्धमे किछु कहिदेव आवश्यक। प्राचीन कालहिसँ प्रशासनिक, सामरिक आ साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ पुर्णियाँक महत्व रहल अछि आ मिथिलाक सुरक्षा सेहो पुर्णियाँक सुरक्षासँ सम्बद्ध मानल गेल अछि। गुप्तलोकनि पूर्वी प्रदेंशपर अपन नियंत्रण रखबाक हेतु अहिठाम अपन शासनक एक प्रमुख केन्द्र बनौने छलाह। कंनिघमक अनुसार वैशालीक वृज्जीसंघ सेहो एहि प्रदेश अपन नियंत्रण रखैत छलाह। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक समीकरण पुर्णियाँसँ करब अत्यंत स्वाभाविक बुझना जाइत अछि। अभिलेखमे कोकामुखस्वामी आ स्वेतवाराहस्वामी उल्लेख भेटइत अछि जे नेपालक धनकुट्टा नामक स्थान लग अछि आ पुर्णियाँ जिलाक अभ्यंतर सेहो। बादमे जे आ अभिलेख सबमे वराहक्षेत्र किंवा ‘पुण्ड्र’क उल्लेख भेटैछ से सब पुर्णियाँक संकेत दैत अछि। पुर्णियाँक प्रशासनकेँ नियंत्रणमे राखब अहुलेल आवश्यक छल कारण पुर्णियाँक सीमा नेपाल, असम, बंगालसँ मिलैत छल। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति बंगाल–बिहारक पूर्वी अंश मिलाकेँ छल आ पुर्णियाँ ओकर प्रमुख केन्द्र छल।
हर्षक शासन कालमे सेहो मिथिलाक प्रधानता बनल रहल। राज्यसत्ताक कमजोरीक कारणे राजतंत्रक विकेन्द्रीकरण भऽ गेल छल आ हर्षक मृत्युक पश्चात् तिरहूतमे अराजकता पसरि गेल छल जे लगभग ५० वर्ष धरि बनल रहल। दोसर बात इहो जे अहियुगमे सामंतवादी प्रवृत्ति दृढ़तर भेल आ शासनयंत्रमे एकर प्रभाव स्पष्ट होमए लागल। चीनी यात्री हियुएन संग सेहो एहि बातक समर्थन केने छथि। हर्षक शासनक मुख्य आधार छल व्यक्तिगत भ्रमण एवँ निरीक्षण आ तैं हर्षक परोक्ष भेलापर शासन यंत्र एकदम ढ़ील भऽ गेल आ चारूकात सब केओ अपन–अपन हाथ–पैर पसारे लगलाह। तहियासँ लऽ कए पाल शासनक स्थापना धरि एक प्रकारक अस्थायित्व बनल रहल आ मिथिलाक क्षेत्रपर चारू दिसिसँ आक्रमण होइत रहल। एहि अराजकताक कालोमे तीरभुक्ति एक प्रमुख प्रांत छल आ उत्तर गुप्त शासक लोकनिक मुख्य शासन केन्द्र सेहो जकर प्रमाण हमरा कटरासँ प्राप्त ताम्रलेखसँ भेटइत अछि। कटरा (मुजफ्फरपुर)सँ प्राप्त जीवगुप्तक अभिलेखमे तीरभुक्तिक चामुण्डा विषयक आ तिष्टिहलपाटकक उल्लेख भेटइत अछि। तारा नामक स्थानसँ इ ताम्रपत्र देल गेल छल आ ओहिमे सुरभकार, याम्या आ हरिग्रामक नामक गामक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। एहि ताम्रलेखमे निम्नलिखित शासनाधिकारीक वर्णन अछि–
i) महासान्धिविग्रहिक
ii) अक्षपटलिक
iii) सर्वाधिकाहिक
iv) प्रतिहार
v) सेनापति आ
vi) महासामंत
पालयुगमे तीरभुक्ति एकटा प्रधान केन्द्र छल। ओना तँ नारायण पाल भागलपुर ताम्रलेखमे तीरभुक्तिक कक्ष (कौशिकी–कच्छ–छै परगना) विषय आ गाम सबहिक वर्णन भेटिते अछि मुदा तिरहूतक केन्द्र वनगाँवसँ जे ताम्र अभिलेख (विग्रह पाल तृतीयक) भेटल अछि ताहुसँ तीरभुक्तिक शासनपर प्रकाश पड़इयै। पालकालमे जखन कलचुरी वंशक आक्रमणक प्रकोप बढ़ल तखन पाल लोकनि अपनाकेँ समेटकेँ तीरभुक्तिमे सुरक्षित रखलन्हि आ एवं प्रकारे अपन साम्राज्य आ प्रतिष्ठाकेँ बचौलन्हि। मिथिला भौगोलिक दृष्टिये सुरक्षित छल तैं ओ लोकनि एम्हरे दासकिकेँ एलाह। वनगाँवक अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे तीरभुक्तिमे हौद्रेय (आधुनिक हरदी गाँव सहरसा) विषय सेहो छल। गुप्तयुगसँ कर्णाटवंशक स्थापना धरि तीरभुक्ति शासनक एकटा प्रधान केन्द्र बनल रहल। ११म शताब्दीक दूटा अभिलेख चम्पारणसँ हालहिमे उपलब्ध भेल अछि जाहिसँ ताहि दिन शासन प्रणालीपर किछु प्रकाश पड़इयै। गोरखपुरसँ चम्पारण धरि क्षेत्रकेँ दरद गण्डकी देश कहल जाइत छल आ प्रशासनिक इकाइक हिसाबे दरद–गण्डकी–मण्डल जकरा अधीनमे विआलिसि विषय (४२ग्राम) छल। एहि लेखसँ इ स्पष्ट अछि जे अहिठाम विषय मण्डलक एकटा छोट अंग मानल गेल अछि। चम्पारणक इ दुनूटा अभिलेख कर्णाटक पूर्व थिक आ प्रतिहार लोकनिक सत्ताक कमजोर भेलापर इ लोकनि संभवतः एहि क्षेत्रपर अपन सत्ता स्थापित केने छलाह। एहि दुनू अभिलेखमे निम्नलिखित प्रशासनिक शब्दावली भेटइत अछि।
एहिमे वर्णित बहुत रास शब्दावली पाल अभिलेखमे सेहो भेटल अछि। एहि अभिलेखसँ इहो अनुमान लगाओल जाइछ जे मिथिलाक सीमा पश्चिममे श्रावस्ती भुक्तिसँ पश्चिमोत्तरमे दरद–गण्डकी–देशसँ आ पूबमे पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिसँ मिलल जुलल छल। एवँ प्रकारे समस्त उत्तर बिहारक प्रतिनिधित्व प्राचीन कालक तीरभुक्ति करैत छल आ अहि दृष्टिकोणे एकर प्रशासनिक महत्व अद्वितीय छलैक जे मुगलकाल धरि बनल रहलैक। उत्तरमे कर्णाट लोकनि सिमरौनगढ़ धरि बढ़ले रहैत आ ओतए अपन राजधानी बनौने रहैत। ग्राममे ग्राम पंचायतक व्यवस्था छल आ अभिलेख सबमे पञ्चमण्डली आ पञ्चकुलक उल्लेख भेटइत अछि।
१०९७मे जखन कर्णाटवंशक स्थापना भेल तखन पुनः शासन व्यवस्थाक संगठन मिथिलाक आवश्यकताक अनुकूल गठित भेल यद्यपि एकर आधार छल सामंतवादी व्यवस्था। नान्यदेव अहिठामक शासन व्यवस्थाकेँ सुगठित केलन्हि आ मिथिलाक निजीगौरव एवँ विशिष्टताक विकास सेहो। नान्यदेव स्वयं कर्णाट वंशक संस्थापक छलाह तैं शासनमे हुनक प्रधानता रहब स्वाभाविके। शासकक प्रधान राजा होइत छलाह। प्रजाक रक्षा करब उचित बुझल जाइत छल– चण्डेश्वर तँ प्रजाकेँ विष्णु कहने छथि। राजा शासन, न्याय एवँ प्रशासनिक यंत्रक अध्यक्ष होइत छलाह। शासनकेँ सुरूचिपूर्ण ढ़ँगसँ चलेबाक हेतु राजा बरोबरि प्राचीन परम्परा एवम मान्यताकेँ ध्यानमे रखैत छलाह। शासकक संगहि संग मिथिलाक राजा प्रसिद्ध विद्वानो होइत छ्लाह आ उदाहरण स्वरूप हमरा लोकनि नान्यदेव, रामसिंह देव, शिवसिंह, लखिमा, विश्वास देवी आदिक नाम लऽ सकैत छी। राजा लोकनि परमेश्वर, परमभट्टारक, महाराजाधिराज, महानृपति, क्षितिपाल, भूपाल, मिथिलाधिपति, भुजवल भीम, भीमपराक्रम, कर्णाटचूड़ामणि, दशमदेव अवतार, एकादश अवतार, भूमिपति, मुकुटमणि, आदि पदवीसँ विभूषित होइत छलाह। नान्यदेव, गंगदेव, रामसिंहदेवक शासन धरि तँ कोनो प्रकारक गोलमाल देखबामे नहि अवइयै परञ्च शक्तिसिंहदेवक शासनकालमे मंत्री लोकनि शासन सत्ता अपना हाथमे लऽ लेने छलाह। सामंते मंत्री होइत छलाह। शक्तिसिंहक कठोर शासनसँ ओ लोकनि उबि गेल छलाह तैं हुनकासँ सब अधिकार छीनिके अपना हाथमे लऽ लेलन्हि। मंत्रियेक संरक्षणमे बहुत दिन धरि हरिसिंह देव नाम मात्रक शासक छलाह। सामंतवादी व्यवस्थाक फलें राजाक शक्ति क्षीण अवश्य भेल छल मुदा शक्तिशाली शासक अपन अधिकारक उपयोग कइये लैत छलाह। हरिसिंह देव, शिवसिंह देव, भैरव सिंह देव आदि शासक एकर उदाहरण छथि। सामान्यतः राजाकेँ सामन्तक बलपर निर्भर करए पड़इत छलन्हि।
राजाकेँ सहायता देबाक हेतु मंत्रिपरिषदक व्यवस्था सेहो छल। मिथिलामे प्रधानमंत्रीकेँ महामत्तक कहल जाइत छल। अन्हराठाढ़ी आ हावीडीह अभिलेखमे प्रधानमंत्री लोकनिकेँ मंत्रीक नामसँ संबोधित कैल गेल अछि। मंत्री लोकनिकेँ संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, आ संश्रयक पूर्ण ज्ञान रहब आवश्यक बुझना जाइत छल। श्रीधरदास एवँ रत्नदेवक वंशज मिथिलामे बहुतो दिन धरि मंत्री पदक भार सम्हारने छलाह। श्रीधरदासकेँ सेन वंश दिसिसँ महामण्डलिकक पदवी भेटल छलन्हि। रत्नदेवक वंशजकेँ सामंतवादी पदवी ‘रउत’ रहैन्ह आ विद्यापतिमे रत्नदेवक वंशज रउत रजदेवक उल्लेख अछि। रामादित्य, कर्मादित्य, वीरेश्वर, देवादित्य, गणेश्वर, चंडेश्वर आदि सेहो प्रमुख मंत्रीगण मिथिलामे भेल छथि। शक्तिसिंहक निरंकुश शासनसँ जखन मंत्रीगण उबि गेल छलाह तखन ओ लोकनि सात बृद्धक एकटा परिषद बनौलन्हि आ शक्तिसिंहकेँ गद्दीसँ उतारि ओहि परिषदक हाथमे शासन भार देलन्हि। एहिसँ मंत्रिपरिषदक व्यापकता एवँ अधिकारक पता लगइयै। पाछाँ जखन हरिसिंह देव वयस्क भेला तखन हुनक राज्याभिषेक भेल। ताहिसँ पूर्व संभवतः चण्डेश्वर राज्यक भार सम्हारने छलाह। चण्डेश्वर साँधिविग्रहिक छलाह। हुनका महावार्त्तिक नैबन्धिक सेहो कहल गेल अछि। एहिसँ प्रत्यक्ष अछि जे चण्डेश्वर बड्ड शक्तिशाली मंत्री छलाह। मंत्री लोकनि सामंत, महासामंत, मांडलिक, महामाण्डलिक, महाराज, महामत्तक आदि पदवी एवँ उपाधिसँ विभूषित होइत छलाह। इ लोकनि हृदयसँ दान इत्यादि सेहो करैत छलाह आ एहि दिशामे वीरेश्वर आ चण्डेश्वरक नाम अग्रगण्य अछि। चण्डेश्वरक अधीन जे एकटा सामन्त हरिब्रह्म छलाह तिनक एकटा पद प्राकृत पैगंलममे सुरक्षित अछि। मंत्रिपरिषदक अतिरिक्त आरो कतैक पदाधिकारी होइत छलाह जेना–
i) महामुद्राधिकृत
ii) महासर्वाधिकृत
iii) महाधर्माध्यक्ष
iv) धर्माध्यक्ष
v) प्राडविवाक
vi) कोषाध्यक्ष
vii) स्थानांतरिक, इत्यादि।
ग्राम शासनक न्यूनतम इकाइ छल। ग्रामक अध्यक्षकेँ ग्रामपति कहल जाइत छल। ग्रामपति कर वसूल कए राजाक ओतए पठबैत छलाह। गुल्म सेहो एकटा ग्राम पदाधिकारी होइत छलाह। तीन अथवा पाँचटा ग्रामकेँ मिलाकेँ एकटा गुल्म नियुक्त होइत छलाह। एकर अतिरिक्त दश ग्रामपति, विंशति ग्रामपति, त्रिंशति ग्रामपति, सहस्त्र ग्रामपति, इत्यादिक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। प्रत्येक ग्राममे एकटा मुखिया होइत छल। केन्द्रीय शासन ग्राम शासनक सफलतापर निर्भर करैत छल। ग्राम सभामे राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, आ साँस्कृतिक आदि विषयपर विचार विमर्श होइत छल। ग्रामक झगड़ा दन ग्राम सभामे फरियैल जाइत छल। जखन ग्राम सभा फरियैबामे असमर्थ होइत छल, तखने उपरका अधिकारीक ओतए ओ पठाओल जाइत छल। मिथिलाक समस्त राजनैतिक संगठनक आधारशिला छल ग्राम सभा। ग्राम सभाक पदाधिकारीकेँ पारिश्रामिक भेटइत छलन्हि जकर विवरण निम्नांकित अछि–
i)दशेश– दश गामक अधिकारीकेँ जोतबाक हेतु ओतेक जमीन भेटइत छलन्हि जतेक ओ एक हरसँ स्वयं जोति सकैत छलाह।
ii)विंशतिंश– बीस गामक अधिकारीकेँ चारिटा हरसँ स्वयं जोति सकबा जोकर जमीन भेटइत छलन्हि।
iii)सतेश–एक सौ गामक अधिकारीकेँ एकटा सम्पूर्ण गामे भेटइत छलन्हि।
iv)सहस्राधिपति– एक हजार ग्रामक अधिकारीकेँ एकटा सम्पूर्ण नगर भेटइत छलन्हि।
ग्राम शासन संगठनक प्रसंगमे गंगदेवक नाम अग्रगण्य अछि। मिथिलामे एकर सर्वश्रेष्ठ श्रेय हुनके छन्हि। ओ समस्त मिथिला राज्यकेँ राजस्व प्रशासनक दृष्टिकोणसँ कतेको परगन्नामे बटने छलाह आ प्रत्येक परगन्नाक हेतु चौधरी आ कोतवाल नियुक्त केने छलाह। इएह लोकनि ग्राम शांति आ राजस्व वसूलीक हेतु उत्तरदायी होइत छलाह आ हिनके लोकनिक योग्यता आ सहयोगपर केन्द्रीय शासनक सफलता निर्भर करैत छल। ग्राम शासन आ केन्द्रीय शासनक मध्य सम्पर्क स्थापित करबाक हेतु आ ओकरा बनाकेँ रखबाक हेतु एक प्रकारक विशेष कर्मचारी होइत छलाह जकरा ‘स्निग्ध’ कहल जाइत छल। ‘स्निग्ध’केँ ग्राम विभागक मंत्रियो कहि सकैत छी। यदा कदा ‘स्निग्ध’क स्वार्थपूर्ण आचरणसँ ग्रामीण तबाहो होइत छलाह। ‘सवार्थ चिंतकम्’ नामक एकटा अधिकारी आ होइत छलाह जिनका ग्रामीण लोकनि ‘राहु’ बुझैत छलथिन्ह। ग्राममे पंचायतक चुनावे जनतांत्रिक पद्धतिसँ होइत छल आ मिथिलामे एकर परम्परा बड्ड प्राचीन छल। प्रत्येक गामक हेतु पुलिस (आ क्षी)क नियुक्ति सेहो होइत छल। प्रत्येक दिन पुलिस लोकनिकेँ अपन काजक ब्योरा गामक मुखियाकेँ देमए पड़इत छलन्हि। जँ कतहु कोनो गड़बड़ी भेल तँ ओहि हेतु पुलिसकेँ उत्तरदायी ठहराओल जाइत छल।
मिथिलाक अभिलेख आ प्राचीन पोथी सबमे बहुत रास प्रशासनिक शब्दावली भेटइत अछि जाहिसँ बुझि पड़इयै जे ओ सब ताहि दिनमे व्यवहारमे छल। संग्रामगुप्तक पंचोभ ताम्रलेख(१३म शाताब्दी)मे निम्नलिखित अधिकारीक विवरण भेटइत अछि–
i) महाराजाधिराज वर्णनरत्नाकरमे–
ii) महामाण्डलिक i)भूपाल
iii) महासान्धिविग्रहिक ii)माण्डलिक
iv) महाव्युहपति iii)सामन्त
v) महाधिकारिक iv)सेनापति
vi) महामुद्राधिकारिक v)पुरपति
vii) महामत्तक vi)मंत्री
viii) महासाधनिक vii)पुरोहित
ix) महाकटुक viii) धर्माधिकरण
x) महाकरणाध्यक्ष ix) सान्धिविग्रहिक
xi) वार्तिनैबन्धिक x) महामत्तक
xii) महादण्डनायक xi) प्रातबलकरणाध्यक्ष
xiii) महापंचकुलिक xii) शांतिकरणिक
xiv) महासामन्तराणक xiii) दुर्गपाल
xv) महाश्रेष्ठिदानिक xiv)राजगुरू, इत्यादि।
xvi) गुल्मपति
xvii) खण्डपाल
xviii) नरपति
xix) महौत्थिक
xx) महाधर्माधिकरणिक, इत्यादि।
चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकर:- भारतीय राजनैतिक विचारधाराक विकासक इतिहासमे मिथिलाक चण्डेश्वरक स्थान अग्रगण्य अछि। ओनातँ भारतमे राजनीति शास्त्रपर प्राचीन कालहिसँ ग्रंथ लिखल जा रहल अछि आ एकर प्रमाण हमरा महाभारत, शुक्र, उशनस आ कौटिल्य तथा कामन्दकमे भेटइत अछि। एहिमे कौटिल्यक ग्रंथ सर्वश्रेष्ठ अछि आ पाछाँ सब केओ ओकरे अनुकरण केने छथि। चण्डेश्वर ग्रंथ राजनीति रत्नाकरमे सब पूर्वाचार्यक मत उद्धृत अछि।
मध्ययुगीन विचारकमे चण्डेश्वरक नाम विशेष रूपें उल्लेखनीय अछि। ओ एक संभ्रान्त, प्रतिष्ठित एवँ विद्वान परिवारमे जन्म ग्रहण केने छलाह। ओ देवादित्यक पौत्र आ वीरेश्वरक पुत्र छलाह आ इ तीनु गोटए कर्णाट शासक हरिसिंह देवक शासन काल मंत्री पदकेँ सुशोभित केने छलाह। हिनक पित्ती धीरेश्वर, शुभदत्त आ लक्ष्मीदत्त तथा गणेश्वर सेहो पैघ–पैघ राज्याधिकारी छलाह। ओ लोकनि अपना युगक धुरन्धर विद्वान सेहो छलाह। चण्डेश्वर मिथिलाक प्रसिद्ध निबन्धकार भेल छथि आ कृत्यरत्नाकर, दानरत्नाकर, व्यवहार रत्नाकर, शुद्धि रत्नाकर, पूजा रत्नाकर, गृहस्थ रत्नाकर, विवाद रत्नाकर, राजनीति रत्नाकर हिनक प्रमुख रचना भेल छन्हि। मिथिलाक धर्म व्यवस्था आ कानूनक प्रसंगमे हिनक विवाद रत्नाकर आ वाचस्पतिक विवाद चिंतामणि प्रामाणिक ग्रंथ मानल जाइत अछि। स्मार्त विषयपर लिखल हुनक ग्रंथ कृत्य चिंतामणिमे उत्सव–संस्कारक वर्णन अछि। चण्डेश्वरक व्यक्तित्व एवँ कृतित्वक प्रभाव उत्तरवर्त्ती विद्वानपर सेहो देखबामे अवइयै। मैथिल आ बंगाली विद्वान हुनकासँ प्रभावित देखल जाइत छथि। मिसरूमिश्र, वर्द्धमान, वाचस्पति मिश्र, आ रघुनंदन चण्डेश्वरसँ एतेक प्रभावित छथि जे ओ लोकनि अपना ग्रथमे हुनक ग्रंथक असंख्य उदाहरण देने छथि।
ओइनवार वंशक राजा भवेशक आज्ञासँ चण्डेश्वर राजनीतिरत्नाकरक रचना केलन्हि। ओहियुगक दृष्टिये एहि ग्रंथक बड्ड महत्व अछि। राजनीति विषयपर इ एकटा प्रौढ़ ग्रंथ मानल गेल अछि। एहिमे १६टा तरंग अछि आ सबहक व्यवस्था एवं क्रमबद्धतापर चण्डेश्वर विशेष ध्यान देने छथि। विषय प्रतिपादनक दृष्टिये सेहो इ महत्वपूर्ण मानल जा सकइयै। सोलहो तंरग एवँ प्रकारे अछि–
i) राजाक निरूपण, x)सेनापतिक निरूपण
ii) मंत्रीक निरूपण, xi)दूतक निरूपण
iii) पुरोहितक निरूपण, xii) राजाक सामान्य कार्यक निरूपण
iv) प्राड़विवाकक निरूपण,xiii) दण्डक निरूपण
v) सभ्यक निरूपण, xiv)राज्यव्यवस्थाक निरूपण
vi) दुर्गक निरूपण, xv)पुरोहित आदि द्वारा राज्यदान निरूपण
vii) मंत्रणाक निरूपण, xvi)राज्याभिषेक निरूपण
viii) कोषक निरूपण,
ix) सेनाक निरूपण,
अहिठाम द्रष्टव्य जे चण्डेश्वर पहिने विजिगीषु राजा अमात्य एवँ अन्यान्य प्रकृति आ राज्यव्यवस्थाक प्रतिपादन केला उत्तर राज्याभिषेकपर सबसँ अंतमे विचार करैत छथि। राजाक वास्तविक एवँ न्यायसंगत उत्तराधिकारी भेला ज्येष्ठ पुत्र आ तैं राज्याभिषेक हुनके हेतैन्ह आ ताहि प्रसंगक एहिमे विस्तृत विवरण अछि। प्रत्येक विषयक निरूपण करबाक पूर्व चण्डेश्वर प्रारंभमे कोनो प्रामाणिक विधिग्रंथ अथवा राजनीतिज्ञक मतक उद्धरण दैत छथि आ तखन अपन मत स्थापित करैत छथि। पारस्परिक मतांतर एवँ विषमतामे समन्वय स्थापित करब हुनक लक्ष्य बुझना जाइत अछि। एहि ग्रंथक प्रणयनक क्रममे ओ वेद, पुराण, धर्मग्रंथ, स्मृति ग्रंथ, सूत्र ग्रंथ, राजनीति विषयक ग्रंथ आदि अध्ययन कए ओकर समन्वय स्थापित करबाक दृष्टिये सर्वमान्य सिद्धांतक स्थापना सेहो। प्रत्येक विषयक सांगोपांग विवेचन करबामे ओ बीच–बीचमे अपन स्वतंत्र टिप्पणी सेहो देने छथि जाहिसँ इ स्पष्ट अछि जे ओ कोनो बातकेँ आँखि मुनिकेँ नहि मानए बाला छलाह। एहि आलोचनात्मक टिप्पणीसँ ग्रंथक उपयोगिता आ विलक्षणता बढ़ि गेल अछि। कोनो दृष्टिये देखला उत्तर इ निर्विवाद अछि जे ‘राजनीति रत्नाकर’ अपना ढ़ँगक एक अपूर्व ग्रंथ अछि आ राजनीति चिंतनक क्षेत्रमे मिथिलाक इ अनुपम देन अछि। प्राचीन पारिभाषिक शब्दक अर्थबोधक हेतु चण्डेश्वर जे पद्धति अपनौने छथि से विशेष रूपे उल्लेखनीय अछि। विभिन्न प्रमाणसँ अपन तर्ककेँ पुष्ट कऽ कए ओ अपन मतक स्थापना केने छथि आ ओहिमे समन्वय स्थापित करबाक प्रयास सेहो। अपन ग्रंथक अंतमे ओ लिखैत छथि–“मनु एवँ अन्य स्मृति ग्रंथमे निरूपित राजनीतिक अगाध एवम विशाल सागरसँ सार स्वरूप रत्नक चयन कए एवँ नीति निबंधक सर्वसम्मत मरक संकलन कए हम एहि ग्रंथक रचना कैल अछि जे भगवानकेँ मान्य हेतैन्ह, राजा द्वारा समादृत होएत आ उदार व्यक्तिक ऐश्वर्य वृद्धिक हेतु लाभदायक सिद्ध हेतैन्ह”।
मध्य युगमे जखन कि राजनीति विषयक पुस्तकक कोनो अभाव नहि छल तखन चण्डेश्वरकेँ इ पोथी लिखबाक आवश्यकता किएक भेलैन्ह से एकटा विचारणीय विषय। इ ग्रंथ लिखबाक पाछाँ चण्डेश्वरक अभिप्राय इ छल जे प्रत्येक राजा धर्म आ अर्थमे सामंजस्य स्थापित करैत न्यायोचित मार्गपर चलिकेँ राजनीतिक वास्तविक कर्तव्य एवँ दायित्वक निर्वाह करैथ। सोलहो तरंगक प्रतिपाद्य विषय देखला उत्तर इ स्पष्ट भऽ जाइछ।
i) राजा:- चण्डेश्वर मनुक मतक उद्धरण दैत लिखने छथि जे संसारक रक्षार्थ प्रजापति राजाक सृष्टि केने छलाह। प्रजाक रक्षा कैनिहार राज्याभिषिक्र पुरूषकेँ राजा मानल गेल अछि। याज्ञवल्क्य द्वारा वर्णित राजाकेँ अपेक्षित गुणक वर्णन सेहो कैल गेल अछि। एहि गुणक अतिरिक्त चण्डेश्वरक अनुसार राजाकेँ धार्मिक सेहो हेबाक चाही। तीन प्रकारक राजाक वर्णन ओ करैत छथि–सम्राट (चक्रवर्त्ती), सकर (कर दै वाला) आ अकर (कर नहि दै वाला)। तीनुक धर्म आ गुण एक समान होएबाक चाही। प्रजाक पालन, विद्वान, बृद्ध एवँ ब्राह्मणक रक्षा राजाक मुख्य कर्तव्य मानल गेल अछि। राजाकेँ विभिन्न विषयक ज्ञान रहबाक चाही। व्यसन रहित राजाकेँ एहिक आ पारलौकिक सफलता भेटइत छैक आ अन्याय केनिहार राजाक शीघ्रहि नाश भऽ जेबाक संभावना रहैत छैक। चण्डेश्वर कौटिल्य द्वारा निर्धारित राजाक कर्तब्य आ अधिकारक चर्च नहि केने छथि।
ii) अमात्य:- राजाकेँ चाही जे ओ सात–आठ सुपरिक्षित व्यक्तिकेँ अमात्य नियुक्त करैथ कारण ओहि बिनु राज काज चलब असंभव। सन्धि विग्रह आदि प्रश्नपर राजाकेँ अमात्यक संग विचार विमर्श करबाक चाही। अमात्यक परिषदकेँ मंत्रिपरिषद कहल गेल अछि।
iv) प्राडविवाक:-धर्म एवम न्याय व्यवस्थाक हेतु प्राडविवाक (मुख्य न्यायाधीश)क नियुक्ति आवश्यक मानल गेल अछि। प्राडविवाककेँ कुलीन, शील सम्पन्न, गुणवान, सत्यवक्ता, निर्भीक, चतुर आ निपुण होएबाक चाही। प्राडविवाक तीन सभ्यक संग मिलिकेँ निर्णय दैथ से सर्वोत्तम–एकमतसँ निर्णय हो तँ ओकरे धार्मिक निर्णय मानबाक चाही।
v) सभा–सभ्य:-चारि प्रकारक सभाक वर्णन भेल अछि–
प्रतिष्ठिता–नगर अथवा राजा द्वारा निश्चित कैल गेल स्थानपर जे सभा आहूत हो तकरा प्रतिष्ठिता कहल गेल अछि।
अप्रतिष्ठिता–कोनो गाममे आयोजित होइवाला सभाकेँ अप्रतिष्ठिता कहल गेल अछि।
सुमुद्रिता–जाहिमे अध्यक्ष एवँ न्यायाधीश विराजमान होथि।
शासिता–जाहिमे राजा विद्यमान होथि।
सभाक दश अंग कहल गेल अछि–राजा, अधिकारी (वक्रा), सभासद, धर्मशास्त्र, गणक, लेखक, सुवर्ण, अग्नि, जल आ दण्डधारी। राजा शासन करैत छथि, अधिकारी वक्रा भेला, सभासद निरीक्षणक कार्य करैत छथि, धर्मशास्त्र निर्णयक काज करैत अछि, गणक हिसाब लिखैत छथि, लेखक न्यायालयक कार्यवाही लिखैत छथि, सुवर्ण, अग्नि आ जल सपथक सामग्री भेल। उत्तम कार्यक अधिष्ठाता, सत्य–धर्मक प्रति अनुरक्त निर्लोभ एवँ निष्पक्ष व्यक्तिकेँ राजाकेँ सभ्य चुनबाक चाही। एहने लोग धर्म आ कर्ममे निष्णात होइत छथि। निर्णयक शुद्धता सभासदक शुद्धतापर निर्भर करैत अछि। धार्मिक बातक प्रतिवाद करब हुनक प्रमुख कर्त्तव्य छल।
vi) दुर्ग:-राजाक हेतु दुर्गक निर्माण करब आवश्यक छल। छह प्रकारक दुर्गक चर्च कैल गेल अछि। राजाकेँ स्वयं गिरि दुर्गमे आश्रय लेना चाही कारण सब दुर्ग ओकरे श्रेष्ठ मानल गेल छैक। प्रत्येक दुर्गमे सब किछु रहबाक चाही।
vii) मंत्रणा:-एकांत राजभवन अथवा जंगलमे जतए मंत्रभेदक कोनो आशंका नहि हो ततए गुप्त मंत्रणा करबाक चाही। मंत्रणाकेँ सब तरहे गुप्त राखब आवश्यक।
viii) कोष:-एहने कोषकेँ प्रशंसनीय मानल गेल अछि जाहिमे द्रव्य जमा हो मुदा बाहर नहि कैल जाए। राजाकेँ कोषक वृद्धिक हेतु सतत प्रयत्नशील रहबाक चाही।
ix) सेना:-राजाकेँ सेना आ बलक व्यवस्थापर पूर्ण ध्यान देबाक चाही। एहिमे छह प्रकारक सेनाक संयोजनक चर्च भेल अछि।
xiv) राज्यक उत्तराधिकार:- सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्रकेँ देबाक चाही।
xv) पुरोहितक हाथे राज्याभिषेक:- उत्तराधिकार सौंपबाक पूर्वहि जँ देहावसान भऽ जाए तँ पुरोहित आ मंत्री द्वारा ज्येष्ठ पुत्रकेँ अभिषिक्त करबाक चाही। जँ कोनो पुत्र नहि हो तँ राजवंशक कोनो उपयुक्त व्यक्तिकेँ चुनबाक चाही।
xvi) राज्याभिषेक:- राजा अपन जीवन कालहिमे ज्येष्ठ पुत्रकेँ युवराज पदपर नियुक्त कऽ सकैत छथि। जँ कोनो पुत्र नहि हो तँ प्रजा आ ब्राह्मणक परामर्शसँ कोनो समीपवर्त्ती अन्य व्यक्तिकेँ ओहि पदपर आनिकेँ राज्याभिषेक कैल जा सकइयै। अभिषिक्त युवराजकेँ मान्य परम्पराक अनुसार चलबाक चाही। धर्मशास्त्र आ अर्थशास्त्रमे विरोध भेलापर मध्यम मार्गक अवलंवन कए अपन व्यावहारिक बुद्धिसँ राज्यक संचालन करबाक चाही।
चण्डेश्वर अपन राजनीति रत्नाकरमे अमर सिंह, कात्यायन, कामन्दक, कुल्लूक भट्ट, कौटिल्य, नारद, भागवत, मनु, याज्ञवल्क्य, रामायण–महाभारत, लक्ष्मीधर, वसिष्ठ, विष्णु, बृहस्पति, व्यास, शुक्र, श्रीकर, हारीत, आदिसँ मत उद्धृत केने छथि। राजनीति रत्नाकर एक प्रकार संग्रह ग्रंथ थिक आ मध्य युगमे जखन लोग सब मौलिक ग्रंथक अवगाहन करबामे असमर्थ छल तखन चण्डेश्वर एहि ग्रंथक रचना कए ओहि अभावक पूर्त्ति केलन्हि। एकर लोकप्रियता एवँ प्रसिद्धिक इएह कारण अछि।
चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकर मिथिलाक हेतु एकटा आदर्श ग्रंथ भेल आ तदनुसार मिथिलामे शासन पद्धति संगठित भेल जकर प्रमाण हमरा ओइनवार वंशक शासन पद्धतिसँ लगइयै। देवसिंह अपना जीवतहि शिवसिंहकेँ युवराज बनौने छलाह। अहिठाम इहो स्मरण रखबाक अछि जे १३२५क बाद मिथिलमे मुसलमानी अमल प्रारंभ भऽ चुकल छल आ अहिठाम मुसलमान शासकक प्रतिनिधि सेहो रहैत छलाह। अहिबातकेँ ध्यानमे राखियेकेँ चण्डेश्वर अपन राजनीति रत्नाकरमे विचारक प्रतिपादन केने छथि आ अपन समन्वयवादी प्रवृत्तिक परिचय सेहो देने छथि। सामंतवादी कुलीन लोकनिक प्रभाव तँ सहजहि बढ़िये गेल छल। विद्यापतिक रचना आ अन्यान्य साधन सबसँ निम्नलिखित मंत्री आ कुलीनक नाम भेटइत अछि।
i) अच्युत,
ii) महेश,
iii) रतिधर,
iv) रतिपति आ शंकर,
v) वाचस्पति (परिषद छलाह),
vi) रउत रजदेव,
vii) अमृतकर आ अमिञंकर,
viii) गणेश्वर,
ix) चण्डेश्वर।
न्याय व्यवस्थाक क्षेत्रमे मिथिलाक योगदान विशेष रहल अछि आ ताहुमे फौजदारीक क्षेत्रमे सेहो। वर्धमानक दण्डविवेक कानूनक एक प्रमुख पोथी मानल गेल अछि। न्याय व्यवस्थामे जाति सेहो देखल जाइत छल आ तदनुसार अभियुक्तकेँ सजा देल जाइत छल। सब किछु होइतहुँ वर्द्धमान बहुत अर्थमे स्पष्ट वल्ता छलाह आ मूल सत्यकेँ पकड़ने छलाह। हुनक विश्वास छलन्हि जे लोभ आ अज्ञानतावशे दिवानी मुकदमाक संख्या बढ़ैत अछि। हुनक विचार छलन्हि जे अभियुक्तकेँ एहि हिसाबे सजा देल जाइन्ह जे पुनः ओ ओहन काज नहि करए आ ओकरा चरित्रमे सुधार भऽ जाइक। ब्राह्मण अभियुक्तकेँ सुविधा भेटइत छलन्हि। गैर कानूनी ढ़ंगसँ दोसराक चीज वस्तु लेबकेँ चोरी कहल गेल अछि आ एहि प्रकारक तीनटा वर्गीकरण वर्द्धमान कएने छथि–
i) साहस कृत (डकैती)
ii) प्रकाशतस्कर (ठग)
iii) अप्रकाशतस्कर (चोर)
वर्द्धमान दण्डक वर्गीकरण एवँ प्रकारे केने छथि–
दण्ड
वाक् धिक् धन् वध् निर्वासन्
धन्
धनदण्ड सर्वस्वहरण
वध
पीड़न अंगच्छेद प्रमापण
पीड़न
ताण्डव अवरोधन बन्धन विडम्बन
वाचस्पति मिश्रक अनुसार सजा देबाक अधिकार राजाकेँ छन्हि। न्यायपालिकाक अध्यक्ष राजा होइत छलाह आ हुनका कानूनक पालन करए पड़इत छलन्हि। कानूनमे साक्ष्यक रूप ‘बृषल’केँ विश्वास नहि कैल जाइत छल आ तैं साक्षी ओ नहि भऽ सकैत छलाह। कानून आ राजनीतिक दृष्टिये वाचस्पतिक विवादचिंतामणि, नीतिचिंतामणि आ विवाद निर्णय महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। विद्यापति सेहो एकटा कानून ग्रंथ लिखने छलाह जकर नाम छल विभागसार। वकीलकेँ मिथिलामे व्यावहारिक कहल जाइत छल।
मुसलमान लोकनि शांतिसुरक्षाक हेतु ठाम–ठाम कोतवालक नियुक्ति करैत छलाह आ कोतवाल शब्दक व्यवहार हमरा विद्यापतिमे सेहो भेटइत अछि जाहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे कोतवाल मिथिलाक शासन प्रणालीक एकटा प्रमुख अंग बनि चुकल छल। विद्यापतिमे कोतवालक हेतु कोटवार शब्दक व्यवहार अछि। बादमे कोतवालक स्थान फौजदार लेलक। काजी, ख्वाजा, मखदुम आदि शब्दक व्यवहार मिथिलाक शासन प्रणालीमे शुरू भऽ चुकल छल। वज्रघंटक विवरण सेहो भेटइत अछि। कीर्त्तिपताकासँ निम्नलिखित व्यक्ति (पदाधिकारी लोकनि?)क नाम उपलब्ध होइयै।
खण्डवला कुलक समयसँ मुगल अधिकारी तिरहूतमे रहए लागल। सम्प्रति मिथिला तीन प्रमण्डलमे विभक्त अछि–तिरहूत, दरभंगा आ सहरसा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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