भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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मिथिलाक अस्तित्व वैदिक कालहिसँ अद्यावधि सुरक्षित अछि। मिथिलामे आर्यक आगमनक पूर्व मिथिलाक सामाजिक व्यवस्थाक रूपरेखा केहेन छल से कहब असंभव। ओकर ठीक–ठीक अनुमान लगायबो संभव नहि अछि। मिथिलाक संस्कृतिक अविछिन्न प्रभाव रहल अछि। आजुक मिथिलामे हमरा लोकनि जे देखैत छी ताहिसँ बहुत भिन्न ओहि दिनक अवस्था सामान्य जनक हेतु नहि छल। प्रत्येक देशक अपन अपन देशगत विशेषता होइत छैक आ ओहिपर ओहि देशक भूगोलक प्रभाव रहिते छैक। मिथिला एहि नियमक अपवाद नहि रहल अछि आ रहबे किएक करैत? सामाजिक नियमक निर्माण कोनो एक दिनमे नहि होइत छैक आ सामाजिक व्यवस्थापर मात्र भूगोलक नहि अपितु आर्थिक व्यवस्थाक प्रभाव सेहो पड़इत छैक। पूर्व वैदिक कालमे समाजक व्यवस्था कठोर नहि बनल छल आ बहुत दूर धरि ओ व्यवस्था स्वच्छन्द एवँ मुक्त छल। समाजमे प्रत्येक व्यक्तिकेँ मुक्त वातावरणक अनुभव होइत छलैक आ ओ लोकनि कोनो स्थायी नियमक निर्माण कए नहि बैसि गेल छलाह। गतिशील समाज छल आ तैं विकासोन्मुख सेहो। एवँ प्रकारे ई समाज बहुतो दिन धरि चलल आ शनैः शनैः आर्यक विस्तार जहिना भारतवर्षक विभिन्न भागमे होमए लगलैक तहिना समाजोमे तदनुकुल परिवर्त्तन अवश्यम्भावी बुझना गेलैक आ समाजक महारथी लोकनि ओहि दिसि अपन ध्यान देलन्हि। साम्राज्यक विस्तारक संगहि अर्थनीतिक पेंच कसे जाए लागल आ समाज ओहिसँ भिन्न नहि रहि सकल। वर्णाश्रमक व्यवस्था, भने कोनो ऊँच्च आदर्शसँ भेलहो, पछाति ओ अपन दुर्गुणक संग हमरा लोकनिक समक्ष उपस्थित भेल आ जेना जेना वर्ग विभेद बढल गेल तेना-तेना एकर स्वरूप दिन प्रतिदिन विकृत होइत गेलैक। जँ से नहि होइत तँ मिथिलामे पुनः जनक सन शासक, याज्ञवल्क्य सन विधिनिर्माता एवं गौतम सन सूक्ष्म विचारक किएक नहि अवतीर्ण भेलाह? आ ने फेर उत्पन्न भेलीह कोनो गार्गी आ मैत्रेयी? एहि मूलतथ्यकेँ जाधरि हमरा लोकनि अवगाहन करबाक चेष्टा नहि करब ताधरि हमरा लोकनिक कल्याण नहि आ ने तत्वक उचित दिगदर्शने।
सर्वप्रथम चारि वर्णक उल्लेख ऋगवेदक पुरूष सूक्तमे भेटइत अछि। प्रारंभमे एहेन बुझि पड़ैत अछि जे जखन आर्य लोकनिक विस्तार भेलैन्ह आ हुनका लोकनिकेँ अहिठामक मूलनिवासीसँ सम्पर्क भेलैन्ह तखन दुहुक संस्कृतिमे पर्याप्त भिन्नता छल आ ओ लोकनिकेँ वर्णक विभाजन उचित बुझलन्हि आ तदनुकुल वर्णक विभाजन भेल। मिथिलामे आर्यक प्रसारक समय वर्णव्यवस्थाक प्रचलन भऽ चुकल छल। मुदा ताहि दिनमे अझुका कट्टरता देखबामे नहि अवइयै। विवाहादिक प्रसंगमे ऋगवेद आ शतपथ ब्राह्मणमे भिन्नता देखबामे अवैछ। ब्राह्मण आ क्षत्रियकेँ अपनासँ छोट वर्गमे विवाह करबाक अधिकार प्राप्त छलन्हि। ब्राह्मण कालमे शूद्र लोकनिक अवस्था शोचनीय भऽ गेल छल। एतरेय ब्राह्मणमे शूद्रक दुर्दशाक वर्णन भेटइत अछि। शूद्र लोकनि सब अधिकारसँ वंचित छलाह आ समाजमे हुनक स्थान निकृष्टतम् छलन्हि। कालांतरमे किछु एहेन व्यवस्था बनल जाहिमे ब्राह्मण-क्षत्रिय लोकनि सम्मिलित रूपें निम्नवर्गक शोषणमे रत भऽ गेलाह। एकर मूल कारण ई छल जे जँ-जँ सामाजिक व्यवस्था गूढ़ होइत गेल तँ तँ ई दुनू वर्ग उत्पादनक साधन एवं तत्संबधी ज्ञानक कुंजी अपना हाथमे दबौने गेलाह आ निम्न दुनू वर्गक लोग हिनका सबहिक अधीन होइत गेल। जखन आ कोनो चारा नहि रहलैक आ परिस्थिति दिनानुदिन बदतर होइत गेलैक तखन शूद्रकेँ वेदोसँ वंचित कैल गेलैक। एहि सब घटना क्रमक उल्लेख तत्कालीन साहित्य एवं कथा सबमे सुरक्षित अछि। दरिद्र लोकनिक की दशा रहल होइत तकर पूर्वाभास तँ महाभारतक अध्ययनसँ भेटइत अछि जतए इन्द्रोकेँ ई कहए पड़ल छन्हि जे दुःखक अनुभव करबाक हो तँ मर्त्यलोक जा कए हुनका लोकनिक संग रहिकेँ देखि आउ। महाभारतक अनुशासन पर्वमे एहि दृष्टिकोणक बहुत रास घटना वर्णित अछि।
समाजक वर्गीकरण दिनानुदिन विषम होइत गेल। शूद्र एवं अन्यान्य छोट छीन वर्ग़क लोग सब जमीनक अभावमे मजूर अथवा बेगारीक अवस्थाकेँ प्राप्त केलक आ ओम्हर दोसर दिसि गगन चुम्बी अट्टालिका ओकरा लोकनिक दयनीय एवं उपेक्षित आ असहाय अवस्थापर अट्टहास करए लागल। सूत्र एवं स्मृति साहित्यमे एहि बातक पुष्ट प्रमाण अछि। करहुक मामिलामे वैश्य-शूद्रेकेँ तंग होमए पड़इत छलन्हि। वैदिक युगमे जाति वा वर्गक निर्णय कर्मसँ होइत छल आ आन वर्णक लोगो अपन कर्मसँ ब्राह्मण भऽ सकैत छल। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार राजा जनक याज्ञवल्क्यक उपदेश एवं अपन कर्तव्यसँ ब्राह्मण भेल छलाह। तैत्तिरीय ब्राह्मणमे विद्वानेकेँ ब्राह्मण कहल गेल अछि।
स्त्री, शूद्र, श्वान आ गायकेँ "अनृत"क संज्ञा देल गेल छैक। विवाहमे खरीद-बिक्रीक प्रथा छल। बहु विवाहक प्रथा सेहो छल। धनसम्पत्तिसँ सेहो स्त्रीगणकेँ वंचित राखल जाइत छल। पूर्व वैदिक कालक जे मुक्त वातावरण छल से आब समाप्त भऽ चुकल छल आ ओकर स्थान लऽ लेने छल संकीर्णता। सामाजिक दृष्टिकोणसँ संकीर्णताक समावेश घातक सिद्ध भेल। संकीर्णताक भावनाकेँ प्रश्रय देबाक हेतु अत्यधिक साहित्य एवं कर्मकाण्डी नियमक निर्माण भेल। ओना उपरसँ देखबामे तँ इएह बुझि पड़ैछ जे स्त्रीगणक स्थान समाजमे बड्ड उँच्च छलन्हि मुदा ई स्थिति वास्तविकतासँ बड्ड दूर छल। गार्गी आ मैत्रेयीक नामसँ कोनो देश अपनाकेँ गौरवान्वित बुझओ परञ्च हमरा लोकनिकेँ एतए ई स्मरण राखब आवश्यक जे ओ लोकनि नियमक अपवाद मात्र छलीह। ओहिठाम याज्ञवल्क्यक दोसर पत्नी कात्यायनीकेँ देखिऔक तँ बुझबामे असौकर्य नहि होएत जे समाजमे स्त्रीक वास्तविक स्थिति की छल? सुलभा आ गार्गीक देनसँ भारतक दर्शन भरपुर अछि। जतए एक दिसि मनुक्खकेँ अधिकाधिक विवाह करबाक अधिकार प्राप्त छलन्हि ओहिठाम एक स्त्रीकेँ दोसर विवाह करबाक आ दोसराक संग मेल जोलक कोनो अधिकार नहीं छलैक। सुरूचि जातकमे एकटा कथा सुरक्षित अछि जकर सारांश भेल-"मिथिलाक राज्य बड्ड विस्तृत अछि आ एहिठामक शासककेँ १६०००(सोलह हजार) पत्नी छन्हि"। एहिसँ प्रत्यक्ष भऽ जाइछ जे सामाजिक व्यवस्थामे स्त्रीगणक की स्थिति छल? एतरेय ब्राह्मणमे कहल गेल अछि जे पुतोहु अपन श्वसूरक सोझाँ नहीं जाइत छलीहे, जँ अनचोकसँ श्वसूरक नजरि पुतोहुपर पड़ि जाइत छलन्हि तँ पुतोहु बेचारी नुका रहैत छलीह। मिथिलामे पर्दा प्रथा आ पुतोहु-श्वसूरक सम्बन्धक ई प्राचीनतम उदाहरण भेल आ मैथिल समाजमे ताहि दिनसँ अद्यावधि कोनो विशेष परिवर्त्तन नहीं देखबामे अबैछ। विधवाक स्थितिओ प्रायः अझुके जकाँ छल। समाजमे विधवाकेँ हेय दृष्टिये देखल जाइत छल स्थिति बदतर छल। रखेल रखबाक प्रथा, दासी पुत्रक साथ दुर्व्यवहार, व्यभिचार एवं वेश्यावृत्तिक उल्लेख सेहो भेटैछ। राजदरबारमे असंख्य दासी पुत्री आ रखेलक व्यवस्था रहैत छल। मिथिलाक विभाण्डक मुनिक पुत्र ऋषि श्रृंग्यकेँ अंगक एकटा सुन्दरी फुसला लेने छलन्हि। किंवदंती अछि जे अंगक राजा लोमपाद अपन बेटी शांताकेँ एहि कार्यक हेतु अगुऔने छलाह। एहि घटनाक उल्लेख अश्वघोष सेहो कएने छथि।
"ऋष्य श्रृंग मुनि सुतं स्त्रीष्व पंडितम्।
उपायै विविधैः शांता जग्राहच जहारच"॥
पुराण आ जातकमे वर्णित समाजमे बहुत किछु समानता अछि। दिन प्रति दिन समाजमे कट्टरता एव अनुदार भावना जड़ि पकड़ने जाइत छल। धनक महत्व बढ़ए लागल छल आ विद्या आ विद्वानक महत्व क्रमशः घटए लागल छल। ओना तँ लक्ष्मी-सरस्वतीक आपसी द्वेष बौद्धयुगमे आबिकेँ विशेष रूपें चरितार्थ भेल छल मुदा ओहुँसँ पूर्वहुँ हमरा एहि सब वस्तुक स्पष्ट उदाहरण भेटइत अछि। ब्राह्मणक अपेक्षा धनाढ्यक प्रतिष्ठा बढ़ि रहल छल। आवश्यकतानुसार आब लोक अपन रोजगार चुनए लागल आ प्राचीन कालमे ब्राह्मण लोकनिक लेल जे खेती निषिद्ध मानल जाइत छल से आब नहि रहि गेल। ब्राह्मण खेती आ व्यवसाय दुनूमे लागि गेलाह। पुराणादिक अध्ययनसँ ई सब बात स्पष्ट भऽ जाइछ। बौद्ध साहित्यक अनुसार ब्राह्मण लोकनि अपन जीविकाक हेतु सब काज करैत छलाह। जातक तँ एहि प्रकारक कथा सबसँ भरले अछि। सामाजिक नैतिकतामे सेहो परिवर्त्तन भेल आ प्राचीन मूल्याँकनक मापदण्डमे सेहो समयानुसार उचित संशोधन आ परिवर्त्तन कैल गेल।
मनुक्खक जीवनक कमसँ कम तीनटा विभाजन सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषदमे देखबामे अवइयै। उपनिषद कालमे मिथिलामे क्षत्रिय ब्राह्मणक स्तर धरि पहुँचि चुकल छलाह। ज्ञान एवं ब्रह्मविद्याक क्षेत्रमे ओ कोनो रूपें ब्राह्मणसँ कम नहि छलाह। उपनिषदमे कर्मकाण्डक विरोधमे उठैत भावनाक प्रदर्शन सेहो देखबामे अवइयै। उपनिषदमे हम जे देखैत छी ताहिसँ स्पष्ट अछि जे ओ युग मिथिलाक सामाजिक-साँस्कृतिक इतिहासक उत्कर्षक युग छल आ सब तरहे सुखी सम्पन्न सेहो। एक बात जे स्मरणीय अछि उ भेल ई जे मिथिलाक क्षत्रिय शासक कोनो रूपेँ ब्राह्मणसँ अपनाकेँ कम नहीं बुझैत छलाह आ ब्राह्मणोकेँ ई स्वीकार करबामे कोनो आपत्ति नहि छलन्हि। स्वयं याज्ञवल्क्य जनकक एहि गुणकेँ स्पष्ट रूपे मनने छथि आ गीतामे सेहो एकर संकेत अछि। वर्ण व्यवस्था ताहि दिनमे एतेक दृढ़ नहि भेल छल।
बौद्ध एवं जैन धर्म कार्य क्षेत्र सेहो मिथिलामे छल आ एकर प्रभाव तत्कालीन समाजपर पड़ब स्वाभाविके छल। अवैदिक धर्मक विकासक मुख्य स्थान छल मगध आ वैशाली सेहो ओहि प्रभावसँ अक्षुण्ण नहि छल। बौद्ध युग धरि अबैत अबैत ब्राह्मण सत्ताक भीत ढ़हि रहल छल आ क्षत्रिय लोकनिक प्रभाव चारूकात दिनानुदिन बढ़ि रहल छल। भोजन भावक नियमादिमे सेहो परिवर्त्तन अवश्यम्भावी भऽ गेल छल। जातकक अनुसार एहि युगमे ब्राह्मण लोकनि सबहिक संग भोजन भाव करैत छलाह आ एहेन ब्राह्मण सबकेँ कट्टर वैदिक लोकनि अपना पाँतीसँ फराके रखैत छलाह। सभहिक संग खेनिहार ब्राह्मण लोकनिकेँ पतित कहल जाइत छल। सामाजिक मान्यताक हेतु एहि युगमे संघर्ष चलैत रहल आ तरह तरहक उथल-पुथलक कारणे समाजमे सतत अस्थायित्व बनल रहल।
आजीविक, जैन, आ बौद्ध संप्रदायक प्रसारसँ वेदक अपौरूषेयतामे लोगक संदेह उत्पन्न होमए लगलैक आ एवं प्रकारे समाजक वर्गीकरणमे सेहो। कारण उपरोक्त तीनू सम्प्रदायक नेता वर्णव्यवस्थाक कट्टर विरोधी छलाह। एकरे प्रभाव स्वरूप जाति पातिक खाधि भोथा रहल छल आ एहि अग्निधार बहुत रास सड़ल विचारक होम सेहो भए रहल छल। प्रारंभमे वैशालीसँ आगाँ एहि विचार सबहिक दालि नहीं गलल छलैक परञ्च काल क्रमेण एकर प्रभावसँ मिथिला मुक्त नहि रहि सकल। वैशालियो पूर्णतः वर्ण-व्यवस्थासँ मुक्त नहि भऽ सकल यद्यपि बौद्ध लिच्छवी लोकनिकेँ तावतिंशदेव कहने छथि। धनक प्रभाव एहि सब क्षेत्रमे सेहो बनले छल आ गरीब मानवता कहिओ अपनापर होइत अन्यायक विरोधमे सशक्त भऽ कए ठाढ़ नहि भऽ सकल। लिच्छवी लोकनिक रहन सहन सेहो वर्गगत छलन्हि जँ एहि व्यवस्थामे कतहु कोनो प्रकारक छूट देखबामे अबैत हो तँ ओकरा नियमक अपवाद कहब। समाजक भद्र लोकनि चाण्डालकेँ हेय दृष्टिसँ देखैत छलाह आ समाजमे चाण्डालक स्थिति बदतर छल। ओ लोकनि नगरसँ बाहर रहैत छलाह। घृणित कार्य हुनके सबसँ कराओल जाइत छल। हुनका लोकनिक अवस्थामे सुधारक कोनो आसार देखबामे नहि अबैत छल।
भृत्य, गुलाम, बहिया आदिक स्थिति तँ आ चिंतनीय छल कारण ई लोकनि तँ शूद्रक कोटिमे छलाहे। स्वयं बुद्ध जे अपना मुँहसँ गुलामक अवस्थाक वर्णन कएने छथि ताहिसँ रोमाँच भऽ जाइछ। जातकमे चारि प्रकारक गुलामक वर्णन अछि। वहियाक प्रथा मिथिलामे अति प्राचीन कालसँ चलि आबि रहल अछि। कौटिल्यक अर्थशास्त्र आ अन्यान्य ग्रंथ सबमे एकर उल्लेख भेटइयै। वेश्याक प्रचलन ऐहु युगमे छल आ वैशालीक अम्बपालीक नाम तँ सर्वविदित अछिये। यद्यपि बुद्ध स्वयं एहि व्यवस्थाक विरोधी छलाह आ एतए धरि जे ओ स्त्रीकेँ संघमे एबासँ वर्जित करैत छलाह मुदा तइयो जखन अम्बपाली हुनका प्रति अपन भक्ति दरसौलक तखन बुद्ध ओकर निमंत्रण स्वीकार कए ओतए भोजन केलन्हि। अभिजात वर्गक लोक सबहिक ओतए गणिकाक ढ़ेर लागल रहैत छल। एहिमे बहुतो नृत्य एवं संगीत कलामे निपुण होइत छलीहे। कोनो कोनो राजदरबार १६०००गणिकाक उल्लेख भेटइयै। पर्दा प्रथाक संकेत बौद्धयुगमे भेटइत अछि।
बौद्धकालमे धनसम्पति आ राज्याधिकार सामाजिक मापदण्ड भेल आ क्षत्रिय लोकनिक महत्व समाजमे एतेक बढ़लन्हि जे ओ लोकनि आब विशेष रूपेँ आहूत होमए लगलाह। विदेह-वैशालीमे ओ लोकनि आ शक्तिशाली छलाह। वर्ण-व्यवस्थामे एवं प्रकारे सेहो थोड़ेक परिवर्त्तन हैव स्वाभाविक भऽ गेल। अशिक्षित ब्राह्मण लोकनि निम्नस्तरकेँ प्राप्त भेलाह। क्षत्रिय लोकनिक प्रभाव वृद्धिक सबसँ पैघ उदाहरण इएह भेल जे वैशालीक अभिषेक पुष्पकरिणीमे लिच्छवी राजा लोकनि अनका स्नान नहि करए दैत रहथिन्ह। समस्त लिच्छवी क्षेत्र तीन हिस्सामे वर्ग अथवा वर्णक आधारपर बटल छल आ प्रत्येक क्षेत्रक रहनिहार अपनहि क्षेत्रमे विवाहादि कऽ सकैत छल। पैघ वर्णक बालक जँ छोट वर्णक कन्यासँ विवाह करए तँ ताहि दिनमे एकर मान्यता छल मुदा एहिबात एकबात स्मरण राखबाक ई अछि जे राजकुमार नाभाग जखन एक वैश्य कन्यासँ विवाह केलन्हि तखन हुनका गद्दीसँ वंचित कए देल गेलन्हि। एहिसँ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे राजदरबारमे अंर्तजातीय विवाहकेँ प्रोत्साहन नहीं देल जाइत छल। कुलीन परिवार एवँ अभिजात वर्गक सदस्यगण ताहु दिनमे एकर कट्टर विरोधी छलाह।
ब्रह्मचारी एवं धर्मप्रचारक लोकनि कतहु भोजन कऽ सकैत छलाह। ओ लोकनि जातीयताक बन्धनसँ अपनाकेँ मुक्त मनैत छलाह। शूद्र लोकनि भनसिया नियुक्त होइत छलाह। माँछ-माँउसक व्यवहार ब्राह्मण लोकनिक ओतए सेहो होइत छल। भोजन-भावमे मध्ययुगीन कट्टरता ताहि दिनमे नहि छल। गैर ब्राह्मण लोकनि सेहो सब किछु खाइत-पीबैत छलाह। छुआछूतक कट्टरता नहि रहितहुँ ई देखबामे अबैछ जे चाण्डालसँ सब केओ फराके रहैत छलाह आ चाण्डाल नगरक बाहर रहैत छल। चाण्डालकेँ अछूत बुझल जाइत छल आ जँ ओकर नजरि ककरो भोजनपर पड़ि जाइत छल तँ ओहि भोजनक परित्याग कैल जाइत छल। बुद्धक संघक स्थापनाक पछाति बहुतो शूद्र आ छोट वर्णक लोग सब ओहिमे सम्मिलित भेल छल।
वर्णाश्रमक प्रधानता तथापि बौद्धयुगमे बनले रहल। एहि युगमे ब्रह्म चर्याश्रमक प्रधानता विशेष छल। विभिन्न आश्रमक महत्वपर एहि युगमे बेस विवाद चलि रहल छल। विवादक मुख्य प्रश्न इएह छल जे वाणप्रस्थ आ सन्यासमे कोन उत्तम? ओना तँ एहि युगमे हम ई देखैत छी जे सन्यासक प्रवृत्ति दिनानुदिन बढ़ि रहल छल। मार्कण्डे पुराणक कथाक अनुसार वैशालीक राजा लोकनि-खनित्र, मरूत्त, वरिष्यंत, मंखदेव आदि-सन्यास ग्रहण कएने छलाह। ब्रह्मचर्य, ग्रार्हस्थ, वाणप्रस्थ आ सन्यासी सम्बन्धी नियम एखनो पूर्णरूपेण स्थायी नहि भेल छल। बौधायन धर्मसूत्रमे तँ वाणप्रस्थ आ सन्यासक प्रतिकूल वातावरण देखबामे अवइयै। किछु धर्मसूत्र सबमे गृहस्थाश्रमक अपेक्षा वाणप्रस्थक सराहना कैल गेल अछि मुदा इहो विचार ततेक संदिग्ध रूपे प्रगट भेल अछि जे ओहि सब आधारपर किछु निश्चित बात कहब अथवा कोनो मत निर्धारित करव असंभव। एहियुगमे परिवारक चर्च सेहो भेटइत अछि। ताहि दिन भिन्न-भिनाओज नीक नहि बुझल जाइत छल। कन्याक हेतु विवाहक निश्चित आयु १६वर्ष छलैक आ जाहि कन्याकेँ भाई इत्यादि नहि रहैत छलैक से अपन पैत्रिक धनक उत्तराधिकारिणी सेहो होइत छल। 'स्त्रीधन' सिद्धांतक विकास एहि युगमे भेल छल। सती प्रथाक उल्लेख सेहो ठाम-ठाम भेटइत अछि। वैशालीक राजा खनित्र आ वरिष्यंतक पत्नी सती भेल छलथिन्ह। मादरी जे अपनाकेँ एहि सतीत्वमे अनने छलीह ताहुसँ सती प्रथाक संकेत भेटइत अछि।
बौद्ध युगक ओना इतिहासमे अपन विशेष महत्व छैक परञ्च वैशालीक हेतु तँ ई स्वर्णयुग छल। जाहि पुष्करिणीक उल्लेख हम पूर्वहि कऽ चुकल छी ताहिमे स्नान करबाक हेतु श्रावस्तीक सेनापति बन्धुल मल्लक स्त्री मल्लिका व्यग्र छलीह आ एकर वर्णन हमरा जातकमे भेटइत अछि। जातकमे कहल गेल अछि.....
"वैसाली नगरे गणराज कुलानाम्।
अभिषेक मंगल पोक्खरी नम्॥
ओतरित्वा नहातापानीयम्।
पातुकम् अहि समीति"॥
बन्धुल अपन पत्नीकेँ लऽ ओहिठाम गेलाह मुदा पहरू लोकनि हुनका दुनूकेँ नहि जाए देलथिन्ह आ अंतमे एहि लेल युद्ध भेल आ ओ दुनू गोटए ओहिमे स्नान कऽ घुरइत गेलाह। एकर अतिरिक्त वैशालीमे आ कतेको दर्शनीय वस्तु छल– उदेन चैत्य, गोतमक चैत्य, सतम्बक चैत्य, बहुपुत्तक चैत्य, सारदन्द चैत्य, चापाल चैत्य, कपिनय्य चैत्य. मर्कट हृदतीर चैत्य, मुकुट बन्धन चैत्य, इत्यादि। वैशालीमे एहि युगमे महालि, महानाम, सिंह, गोश्रृंङ्गी, भद्द आदि नामक प्रधान व्यक्ति भेल छलाह। चुल्लुवग्गमे लिच्छवी भद्रक उल्लेख एहि प्रसंगमे अछि जे एकबेर हुनका बौद्ध संघसँ निष्काषित कऽ देल गेल छल मुदा पुनः सुधार भेलापर हुनका लऽ लेल गेल छल। ओहि समयमे समाजसँ निष्कासित करबाक प्रथा एवं प्रकारे छल–जाहि सभकेँ निष्कासित करबाक होन्हि तिनका भोजनार्थ निमंत्रण देल जाइत छलन्हि आ आसनपर बैठला उत्तर हुनक जल पात्रकेँ उलटि देल जाइत छलन्हि। पुनः जखन हुनका समाजमे लेल जाइत छलन्हि तखन ओहि पात्रकेँ सोझ कऽ केँ राखल जाइत छलैक। जाहि समयमे तोमर देव वैशालीक प्रधान छलाह तखन लिच्छवी लोकनि साज गोज कए हुनक स्वागत कएने छलाह। केओ नील, केओ स्वेत आ केओ लालरंगक शास्त्रास्त्र एवं आभूषण आ वेशभूषासँ सुसज्जित भए बु्द्धक स्वागतार्थ उपस्थित भेल छलाह। महविस्तुमे एकर विवरण एवं प्रकारे अछि-
"संत्यत्र लिच्छवयः पीतास्या पीतरथा
पीत रश्मि प्रत्योदयष्टि। पीतवस्त्रा,
पीतालंकारा, पीतोष्णीशा, पीतछत्राः
पीतखङ्ग मुनिपादुका।
पीतास्या पीतरथा पीतरश्मि प्रत्योदमुष्णीशा।
पीता च पंचक कुपा पीलावस्त्रा अलंकारा:॥
नीलास्या, नीलरथा, नीलरश्मि प्रत्यादमुष्णीशा।
नीला च पंचक कुपा नीलावस्त्रा अलंकाराः॥
वैशालीक आम्रकानन जाहिमे अम्बपाली रहैत छलीह सेहो बड्ड प्रसिद्ध छल। बौद्ध धर्मक इतिहासक दृष्टिकोणसँ सेहो वैशालीक अत्यधिक महत्व अछि। अहिठाम ई निर्णय लेल गेल छल जे स्त्री लोकनिकेँ संघमे प्रवेशक अनुमति देल जाइछ। एतहि भिक्षुणी संघक स्थापना सेहो भेल छल। आनंदक कहलापर बुद्ध एहिबातकेँ मनने छलाह आ एहिपर अपन स्वीकृति दैत बौद्धधर्मक सम्बन्धमे भविष्यवाणी सेहो कएने छलाह- "स्त्री जातिक प्रवेशसँ बौद्धधर्म आब ५००वर्ष धरि जीवित रहत"। वैशालीसँ जेबा काल बुद्ध इ कहि गेल छलाह जे आब ओ पुनः एतए घुरिकेँ नहि आबि सकताह। वैशालीक लोग सब इ सुनि बड्ड दुखी भेल छल–
"इदं अपश्चिमं नाथ वैशाल्यास्तव दर्शनम्।
न भूयो सुगतो बुद्धो वैशाली आगमिष्यति"॥
हुनका महापरिनिर्वाणक सए वर्ष बाद वैशालीमे बौद्धसंघक दोसर संगीति भेल छल। मिथिलाक माँटिमे एहेन प्रभाव जे अहिठामक लोग सब बेस तार्किक होइत छलाह। नागार्जुनक शिष्य भिक्षुदेव जखन वैशाली जेबाक हेतु प्रस्तुत भेलाह तखन नागार्जुन कहलथिन्ह-"ओना अहाँ जाए चाहैत छी तँ जाउ मुदा ई स्मरण राखब जे ओहिठामक नवीनो भिक्षुक लोकनि बड्ड जबर्दस्त तार्किक होइत छथि"।
जैन ग्रंथ सबसँ सेहो ताहि दिनक सामाजिक अवस्थाक विवरण भेटइयै। वैशालीमे क्षत्रिय, ब्राह्मण आ वणिक भिन्न-भिन्न उपनगरमे रहैत छलाह। सामाजिक क्षेत्रमे हुनका लोकनिक मध्य सहयोग एवं सहकारिताक भावना व्यापक छलन्हि। ओ लोकनि विदेशी अतिथिकेँ सम्मिलित रूपें स्वागत करबाक हेतु जाइत छलाह। ओ लोकनि बड्ड कर्मठ होइत छलाह आ रंगीन वस्त्रसँ विशेष प्रेम छलन्हि। दालि, भात, तरकारीक अतिरिक्त ताहि दिनमे माँछ-माँउसक प्रचलन सेहो छल। अपना नगरसँ हुनका लोकनिकेँ बड्ड प्रेम छलन्हि। हीरा, जवाहिरात, सोना, चानीसँ हुनका लोकनिक हाथी, घोड़ा, आ सवारी सजल रहैत छलन्हि। शिकार हुनका लोकनिकेँ बड्ड प्रिय छलन्हि। अंगुत्तर निकायक अनुसार लिच्छवी बालक लोकनि बड्ड चंचल आ नटखटिया होइत छलाह। लिच्छवी लोकनि स्वतंत्रता आ स्वाभिमानक प्रेमी छलाह। शिक्षा प्राप्त करबाक हेतु ओ लोकनि दूर-दूर देश धरि जाइत छलाह। विवाहक नियमावली लिच्छवी लोकनिक हेतु कठोर छलन्हि। जाहि कन्याकेँ विवाह करबाक विचार होन्हि से लिच्छवी गणकेँ सूचना दैत रहथिन्ह आ गणक दिसि हुनका लेल सुन्दर वर चुनल जाइत छल। स्त्रीक सतीत्वक रक्षार्थ लिच्छवी लोकनिक किछु उठा नहि रखैत छलाह। एहिमे राजा आ रंकमे कोनो कानूनी भेद नहि छल। मृतकक दाह संस्कारक सम्बन्धमे सेहो हुनका लोकनिक अपन नियम छलन्हि- मुर्दा जरेबाक, गारबाक, अथवा ओहिना छोड़ि देबाक प्रथा हुनका ओतए छलन्हि। मुर्दाकेँ गाँछमे लटकेबाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। हुनका लोकनि ओहिठाम एकटा उत्सव होइत छल जकरा "सब्बरतिवार" कहल जाइत छल जाहिमे ओ लोकनि भरि राति जागिकेँ नाच गान करैत छलाह आ एकर उदाहरण अंगुत्तर-निकायमे भेटइत अछि।
मौर्य युगमे सर्वप्रथम समस्त भारतक राजनैतिक एकीकरण भेल आ मिथिलाक क्षेत्र अखिल भारतीय साम्राज्यक अंग बनल। सामाजिक दृष्टिकोणसँ सेहो इ युग महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। राज्यक स्वरूप मंगलकारी छल यद्यपि राजाक शक्तिमे अपार बृद्धि भेल छलैक। साँसारिकताकेँ प्रति आस्था लोगमे बढ़ि गेल छलैक आ प्रत्येक व्यक्ति जीवनकेँ सुखी रूपे व्यतित करबा लेल इच्छुक छल। ताहि दिनमे मनुष्य सुगठित, स्वस्थ आ बलवान होइत छल। वस्त्राभूषणक प्रति हुनका लोकनिक स्नेह विशेष रहैत छलन्हि आ खेलकूद, नाचगान आ संगीतक प्रचलन बढ़िया छल। मगधक राजधानी पाटलिपुत्र ताहि दिनमे संसारक सर्वश्रेष्ठ नगर छल आ प्रधान क्रीड़ा केन्द्र सेहो। एहि क्रीड़ाक अंतर्गत शाल-भंजिका एवं अशोक पुष्प प्रचायिका विशेष रूपे प्रचलित छल। कौटिल्यक अर्थशास्त्र आ अशोकक अभिलेखमे उत्सव, समाज, आ यात्राक उल्लेख भेटइत अछि जाहिमे आमोद-प्रमोदक व्यवस्था छल आ सब केओ बड्ड उत्साहसँ ओहिमे भाग लैत छलाह। कौटिल्य वर्णाश्रम धर्मक बड्ड पैघ समर्थक छलाह। एहि धर्मक समुचित पालन कराएब राजाक कर्तव्य छल। अशोकक शासन कालमे वर्णाश्रम धर्मपर विशेष ध्यान नहि देल गेल कारण अशोक स्वयं बौद्ध छलाह आ हुनका एहि व्यवस्थापर पूर्ण आस्था नहि छलन्हि। चन्द्रगुप्त मौर्य स्वयं शूद्र छलाह तैं हम देखैत छी जे एहि युगमे शूद्रक प्रति कौटिल्यक विचार मनुक अपेक्षा विशेष उदारवादी छल। वर्ण व्यवस्थाक अंतर्गत कतेको जाति–उपजाति बढ़ि गेल। मनु तँ बहुतों विदेशी जाति सबकेँ क्षत्रियक श्रेणीमे रखने छथि। मिथिलाक लिच्छवी लोकनिकेँ सेहो मनु व्रात्य कहने छथि। व्रात्यकेँ सेहो ओ चारि वर्णमे बटने छथि–व्रात्य ब्राह्मण, व्रात्य क्षत्रिय, व्रात्य वैश्य एवँ व्रात्य शूद्र। यवन दूत मेगास्थनीज लिखने छथि जे एहिठाम युनान जकाँ गुलामक व्यवस्था नहि छल। एहि युगमे स्त्रीकेँ अवस्थामे सेहो परिवर्त्तन भेलैक। कौटिल्य स्त्रीकेँ सम्पत्ति अर्जित करबाक आ रखबाक अधिकार देने छथिन्ह। अपन जेवरपर खर्च करबाक अधिकार सेहो हुनका लोकनिकेँ छलन्हि। जँ कोनो व्यक्तिकेँ बेटा नहि रहैक तँ ओकरा बेटीकेँ ओहि सम्पत्तिक स्वामित्वाधिकार भेटइत छलैक। स्त्रीक कल्याणक हेतु अशोकक समयमे “स्त्री–अध्यक्ष–महामात्र”क नियुक्ति भेल छलैक। गुलाम लोकनिक प्रति सेहो राज्यक विचार उदार छल। प्रत्येक गुलामकेँ अपन स्वतंत्रता प्राप्त करबाक अधिकार छलैक।
मौर्योत्तर कालमे चारि वर्णक व्यवस्था बनल रहल। जाति आ उपजातिक संख्यामे विशेष बृद्धि भेल। चारूवर्णक लोग अपना–अपना वर्णक अभ्यंतरहिमे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करैत छलाह। वराहमिहिरक वृहत्संहिताक अनुसार नगरमे चारूवर्णक भिन्न–भिन्न क्षेत्र होइत छल। चीनी यात्रीक विवरणसँ स्पष्ट अछि जे ब्राह्मण लोकनि पूज्य बुझल जाइत छलाह। ब्राह्मण लोकनिक शुद्ध जीवन व्यतीत करबाक प्रसंग सेहो ओहिमे भेटइत अछि। समाजमे ब्राह्मणक प्रतिष्ठा विशेष छल आ मनु ओकरा आ प्रतिष्ठित बनौलन्हि। नारदक अनुसार श्रोत्रिय लोकनिकेँ कर नहि लगबाक चाही। ब्राह्मण वर्गकेँ सब प्रकारक सुविधा प्राप्त छलन्हि। गुप्त युगमे ब्राह्मण लोकनिक वर्गीकरण वैदिक शाखाक अनुरूप भेल। पाछाँ आबिकेँ एकर आ वर्गीकरण भेल।
मौर्योत्तरकालीन भारतमे क्षत्रिय लोकनिक प्रधानता बढ़ल। शूंग वंश आ कण्ववंशक स्थापनासँ मिथिलामे पुनः ब्राह्मण धर्मक पुनर्स्थापन सम्भव भेल आ ब्राह्मण लोकनिक सत्तामे बृद्धि सेहो। एहियुगमे मिथिलाक ब्राह्मण मिथिलासँ बाहर जाए अपन शाखा–प्रशाखाक स्थापना कएने छलाह। शासन भार जे केओ लैथ हुनक धर्म क्षत्रियक धर्म भऽ जाइत छल। ओना सामान्यतः शासनक भार क्षत्रिय लोकनिक हाथमे रहैत छलन्हि। क्षत्रिय युद्धविद्या, कला, संगीतमे तँ पारंगत होइते छलाह संगहि ओ लोकनि विद्वान सेहो होइत छलाह। समुद्रगुप्तक प्रयाग प्रशस्तिसँ एहिपक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै। जे केओ शासक अथवा राजा होइत छलाह हुनके क्षत्रियक संज्ञा भेटइत छलन्हि। गुप्तशासक लोकनि ओना तँ क्षत्रिय नहि छलाह मुदा जखन राजा भऽ गेलाह तखन ओ क्षत्रिय कहबे लगलाह। राजाक गुणक विवरण बाणक हर्षचरितमे सेहो भेटइत अछि। कृषि आ व्यापारक भार वैश्यपर छलन्हि। इ लोकनि दान आ धर्मक प्रपक्षी होइत छलाह। स्थान–स्थानपर धर्मशाला, अस्पताल आ सत्रक स्थापना इ लोकनि बड्ड प्रेमसँ करबैत छलाह। व्यापार आ उद्योगक संचालनार्थ इ लोकनि अपना मध्य जे संगठन बनौने छलाह तकरा श्रेणी अथवा गिल्ड कहल जाइत छल। मिथिलामे श्रेष्ठी आ सार्थवाहक जे उल्लेख भेटइत अछि सेहो हिनके लोकनिक तत्वावधानमे बनैत छल। शूद्र लोकनिक स्थिति चिंतनीय छलन्हि। ओ लोकनि छोट छीन रोजगारक संग खेती गृहस्थी सेहो करैत जाइत छलाह। हुनका लोकनिकेँ वेद पढ़बाक अधिकारसँ वंचित राखल गेल छल। बिना मंत्रक ओ लोकनि अपन यज्ञादि करैत छलाह। मूल रूपें ओ लोकनि दू भागमे बटल छलाह–सत्–शूद्र आ असत्–शूद्र। असत्–शूद्रकेँ अछूत कहल जाइत छलन्हि। अनुलोम–प्रतिलोम प्रथाक कारणे कतेको मिश्रित जातिक अर्विभाव समाजमे भऽ चुकल छल। चाण्डालक स्थिति यथावत् छल। मिथिलाक उत्तरी छोरपर थारू आ किरात नामक जाति सेहो बसैत छल।
विवाहादिक नियममे कोनो विशेष परिवर्त्तन एहियुगमे नहि भेल। अपन–अपन जातिक अंतर्गतहिमे विवाहादि होइत छल। अनुलोम–प्रतिलोम विवाहक उल्लेख सेहो यदा–कदा भेटिते अछि। मान्य व्यवस्थाक वावजूदो अंतर्जातीय विवाह सेहो होइते छल। गुप्तकालीन साहित्यमे ठाम ठाम गंधर्व विवाहक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। एहियुगमे स्त्रीगणक स्थितिमे आ अवनति भेल। हुनका लोकनि शूद्रे जकाँ वेदक अध्ययनसँ वंचित राखल गेल। वेद मंत्रोच्चारण ओ लोकनि नहि कऽ सकैत छलीह। किछु गोटए पढ़ल–लिखल सेहो होइत छलीहे मुदा ओहन स्त्रीगणक संख्या महान समुद्रमे एकठोप तेल जकाँ छल। पर्दा प्रथाक सम्बन्धमे कालिदास घूंघट–घोघक उल्लेख केने छथि। एहि युगमे स्मृतिकार लोकनि विधवाक सम्बन्धमे आ कठिन नियम बनौलन्हि। शंख, अंगीरस आ हारीत स्मृतिमे तँ एतेक धरि कहल गेल आछि जे विधवाकेँ अपना पतिक चितापर जरिकेँ प्राणांत कए लेबाक चाही। तत्कालीन अभिलेखमे सेहो सतीक उल्लेख भेटइयै।
वस्त्राभूषणमे ताहिदिनक लोग शौकीन होइत छलाह। रेशमी सूती आ ऊनी कपड़ाक विशेष प्रचलन छल। धोती, साड़ी, साया, दुपट्टा, आंगी, जनेउ, बाला इत्यादिक व्यवहार होइत छल। मिथिलाक क्षेत्रसँ प्राप्त मूर्त्तिसँ तत्कालीन वेशभूषाक ज्ञान होइछ। लोग सब नाभीक नीचासँ धोती पहिरैत छलाह आ स्त्रीगण सब साड़ी सेहो ओहिना। स्त्रीगण सब साड़ीक संगे दूपट्टो ओढ़ैत छलीह। टोपीक व्यवहार सेहो होइत छल। नौलागढ़सँ जे एकटा माँटिक मुरूत भेटल अछि ताहिमे देखैत छी जे एक गोटए बेस सुन्दर मुरेठा बन्हने अछि। ई मुरूत गुप्तकालीन थिक। ओहुसँ पहिलुका आ एकटा सुन्दर स्त्रीक माटिक मुरूत ओतहिसँ भेटल आछि जाहिमे केश विन्यास शैली आ विशेषता देखबामे अवइयै। सौन्दर्य प्रसाधन एवँ श्रृंगार प्रक्रियाक रूप एहि दुनू माँटिक मुरूत बढ़िया जकाँ ज्ञात होइत अछि आ संगहि दु युगक सौन्दर्य साधनक ज्ञान सेहो। स्त्रीक मुरूत शुंगकालीन थिक। मिथिला आ वैशालीसँ प्राप्त माँटिक मुरूतसँ तत्कालीन सौन्दर्य प्रसाधनक चित्र भेटइयै। औंठी, कर्णफूल, कण्ठहार, बाला, इत्यादिक व्यवहार होइत छल। ताहि दिनमे जे मिथिलाक स्त्रीगण पाइत पहिरैत रहैथ तकरो अन्यतम नमूना मिथिलाक मुरूत सबमे भेटइत अछि। सुगन्धित तेल आ अन्यान्य सौन्दर्य साधनक व्यवहार सेहो ताहि दिनमे होइत छल। दाँतमे मिस्सी लगेबाक प्रथा सेहो छल आ हियुएन संग एकर उल्लेख कएने छथि।
गुप्तयुगक पछाति एवँ कर्णाटवंशक उत्थान धरि वर्णाश्रम धर्मक प्रधानता बनले रहल आ ठाम–ठाम कठोर सेहो भेल। स्मृतिकार लोकनिक रचनासँ एकर भान होइछ। अनुलोम–प्रतिलोमक फले अनेको वर्णशंकर उपजाति आदिक विकास भेल। असत् शूद्र अंत्यजक नामसँ पाँचम वर्णमे परिगणित भेल। एहियुगमे पंचगौड़क कल्पना सेहो साकार भेल आ पंचगौड़ ब्राह्मणक सूत्रपात सेहो ब्राह्मण लोकनि दोसरो वर्णक जीविकाकेँ अपनौलन्हि। यज्ञक संगहि संग ओ लोकनि मूर्त्तिपूजा आ पुरोहिताइक पेशा सेहो अपनौलन्हि। ब्राह्मण लोकनि सेनापतिक काजमे सेहो निपुण होमए लगलाह। पालवंशक अधीन बहुतो ब्राह्मण सेनापति रहैथ जकर उल्लेख पाल अभिलेखमे अछि। एहियुगमे ब्राह्मण लोकनिकेँ प्रचुर मात्रामे खेत दानमे भेटल छलन्हि आ ओ लोकनि पैघ–पैघ सामंत भेल छलाह आ जमीनकेँ दोसराक हाथे खेती करबाय ओ लोकनि अपन सामंत प्रदत्त राजनैतिक अधिकारक सुरक्षामे व्यस्त रहैत छलाह। ब्राह्मण–क्षत्रिय आब खेतियो दिसि भीर गेल छलाह।
शूद्र लोकनिक अवस्था आ दयनीय भऽ गेल छलैक। एहियुगसँ डोम, चमार, नट आदिक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। भाटक उल्लेख तँ सहजहि भेटितहि अछि। एहियुगमे जातिकर्म, नामकरण, उपनयन, विवाह, श्राद्ध इत्यादि संस्कारक उल्लेख भेटइत अछि। विवाह संस्कार प्रधान सामाजिक संस्कार मानल जाइत छल। बहुपत्नित्वक उदाहरण सेहो भेटइत अछि। ब्राह्मण अन्य जातिक भोजन अथवा जल नहि ग्रहण करैत छलाह। एहियुगमे प्रायश्चितक विधान सेहो बनल। माँछ, माउँस आ मदिराक व्यवहार होइत छल। सिद्ध कवि लोकनिक लेखतँ एहि सब विवरणसँ भरल अछि। चर्यापद(मैथिलीक आदि रूप)मे एकठाम लिखल अछि जे स्त्री लोकनि मदिरा बेचइत छलीह। क्षत्रिय लोकनि विशेष मदिरा पान करैत छलाह। पहिरब–ओढ़बमे कोनो विशेष फर्क देखबामे नहि अवइयै। मूर्त्ति सबसँ श्रृंङ्गारिकताक भान होइछ। कर्णफूल, हार, भुजदण्ड, करघनी, कंगन, बाला आदि आभूषणक व्यवहार होइत छल। कुमकुम लगेबाक प्रथा सेहो छल। सतीप्रथाक प्रचलन तँ चलिये आबि रहल छल। एक लेखमे दीपावलीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि–
“दीपोत्सव दिने अभिनव निष्पन्न प्रेक्षा मध्य मण्डपे”।
संगीत आ नृत्यक आयोजन तँ बरोबरि होइते छल। चर्यापदमे सतरंजक उल्लेख सेहो अछि। जूआक प्रथा प्रचलित छल। एहियुगमे अन्धविश्वास आ तंत्रमंत्रक प्रधानता बढ़ि चुकल छल। ज्योतिषपर लोकक आस्था जमि चुकल छल। विजयसेनक देवपारा अभिलेखमे ग्राम ललनाक नगर जीवनक अनभिज्ञता आ अबोधपनक उल्लेख भेल अछि। मुसलमान लोकनि भारतमे पसरि चुकल छलाह तैं एहि युगमे शुद्धिक सिद्धांतक प्रतिपादन सेहो भेल। मिथिलामे पान आ चौपाड़िक प्रचलन खूब छल।
शबरस्वामीक लेखसँ तत्कालीन मैथिल समाजक झाँकी भेटइत अछि। ओ ‘हूराहिरी’क उल्लेख कएने छथि। शतपथ ब्राह्मणमे कहल अछि–
“तस्माद वराहं गावोऽनु धावंती”।
गम्हरी, दही, दूध, चूड़ा, आदिक उल्लेख सेहो शबरस्वामीमे भेटइयै। इहो दास आ गुलामक उल्लेख कएने छथि। हुनका लेखनीसँ चिड़इ खेबाक प्रथाक अप्रत्यक्ष रूपे उदाहरण भेटइयै। दही भातक उल्लेख सेहो ओहिमे भेटइयै। माछ खेबाक निपुणताक वर्णनमे तँ एहने बुझि पड़ैत अछि–जेना शबरस्वामी नाचि उठल होथि। ओ खीर बनेबाक उल्लेख सेहो केने छथि।
“ये एकस्मिन कार्यिन विकल्पे न साधकाः
श्रूयंते ते परस्परेण विरोधिनोभवंति।
लोकवन्–यथा मत्स्यांन् न पयसा
समश्नीयादिति। यद्यपि
सगुणमत्स्या भवंति तथापि
पयसा सहन समश्यंते”।
एहियुगमे जातिक रूप कायस्थ जातिक विकास आ उत्थान भेलैक। उशनस आ वेदव्यासक स्मृतिमे कायस्थक उल्लेख जातिक रूपमे भेल अछि। याज्ञवल्क्य स्मृतिमे सेहो कायस्थक उल्लेख भेल अछि। गुप्तकालीन अभिलेखमे सेहो प्रथम कायस्थक उल्लेख भेटइत अछि। गुणैगार ताम्रपत्रमे सैनिक मंत्री लोकनाथकेँ कायस्थ कहल गेल छन्हि। बंगाल–पूर्णियाँ क्षेत्रक पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिमे तीन चारि पुस्त धरि चिरातदत्त (करण कायस्थ) राज्यपाल छलाह। ५५०ई.क पश्चात् कायस्थ लोकनि एक जातिक रूपमे समाजमे स्थापित भऽ चुकल छलाह। ‘प्रथम कायस्थ’ मुख्य सचिव होइत छलाह। कायस्थमे अखन विशेष उपजातिक वृद्धि नहि भेल छल। ‘करण’ सेहो कायस्थक द्योतक छलाह ओना ई एकटा ‘पद’ छल जाहिपर काज केनिहार सब केओ करणिक कहबैत छलाह आ जतए एकर मुख्यालय होइत छल तकरा अधिकरण कहल जाइत छल। मिथिलामे करण कायस्थक प्रभुता कर्णाटवंशक स्थापनाक संग बढ़लैक। वैशाली क्षेत्रमे ११–१२म शताब्दीक एकटा लेख प्राप्त भेल अछि जाहिमे करण कायस्थक उल्लेख अछि। ई लेख बुद्धक प्रतिमाक पादपीठपर खोदल अछि। एहि मूर्त्तिक दान केनिहार करणिक महायान पंथी भक्त छलाह।
“देय धर्मोऽयम् अवरमहायानयायिनः
करणिकोच्छाहः माणिकसुतस्य”–
एवँ प्रकारे हम देखैत छी जे कर्णाट वंशक स्थापना धरि मिथिलाक समाज सब स्टेजसँ गुजरि चुकल छल। नान्यदेवक पछाति मिथिलाक अपन निखार प्रत्यक्ष भेलैक आ सामाजिक क्षेत्रमे जे क्रांतिकारी परिवर्त्तन भेलैक तकरे हमरा लोकनि हरिसिंह देवी प्रथाक नामे जनैत छी जकर प्रभाव अखन धरि मिथिलामे बनल अछि।
पंजी प्रथाक विकास:- महाराज हरिसिंह देव कर्णाटवंशक अंतिम शासक छलाह जे मुसलमान द्वारा पराजित भऽ पड़ा गेला। पड़ेबासँ पूर्व मिथिलाक सामाजिक नियमनक हेतु ओ जे एकटा विस्तृत व्यवस्था केलन्हि ओकरे अघुना हमरा लोकनि–‘हरिसिंह देवी’ प्रथाक नामे जनैत छी अथवा सुसंस्कृत भाषामे एकरा पंजी प्रथा कहल जाइत अछि। एहि सम्बन्धमे अखनो धरि कैक प्रश्नपर विद्वानक बीच मतभेद बनले अछि। ओना एहि प्रथाक जन्म देनिहार तँ हरिसिंह देवकेँ मानल जाइत छन्हि मुदा किछु विद्वानक अनुसारे एकर इतिहास प्राचीन अछि। कुलीन प्रथाक स्थापना जँ जन्मक विशुद्धतापर भेल छल तखन तँ एहि प्रसंगपर मीमाँसक कुमारिल भट्टक मंतव्य जे तंत्रवार्तिकमे प्रसारित अछि से देखब आवश्यक–
“विशिष्टेनैव हि प्रयत्नेन महाकुलीनाः
परिरक्षंति आत्मानम्।
अनेनैव हि हेतुना राजभिर्ब्राह्मणैश्च
स्वपितृपितामहादि पारम्पर्या–
विस्मरणार्थ समूहलेख्यानि प्रवर्तितानि
तथा च प्रतिकूलं गुणदोष स्मरणात्तदनुरूपः
प्रवृत्ति निवृत्तयो दृश्यंते”॥
अर्थ भेल जे कुलीनकेँ अपन जातिक रक्षाक हेतु बड्ड प्रयत्न करए पड़इत छन्हि। तहि सँ क्षत्रिय एवँ ब्राह्मण लोकनि अपन पिता पितामह प्रभृति पूर्वजक नाम बिसरि नहि जाइ तँ “समूह संख्य” रखैत छथि आ प्रत्येक कुलमे गुण–दोषक विवेचन कए तदनुसार सम्बन्ध करबामे प्रवृत होइत छथि।
जँ एहि प्रमाणकेँ कुलीन प्रथा अथवा पाँजि रखबाक प्रथाक प्रारंभ मानल जाइक तँ इ कहए पड़त जे सर्वप्रथम एकर उदगम मिथिलामे भेल आ बादमे जखन लोग एकरा बिसरि गेलाह छल तखन हरिसिंह देव ओकरा वैज्ञानिक पद्धतिपर पंजीबद्ध करौलन्हि। सातम–आठम शताब्दीसँ हरिसिंह देव धरिक कालमे जँ लोग एहि ‘समूह लेख’ पद्धतिकेँ विसैरि गेलाह तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि कारण एहि बीचमे मिथिलापर चारूकातसँ आक्रमण होइत रहल छल आ एक अस्थिरताक स्थिति व्यापक छल। कर्णाटवंशक स्थापनाक बाद पुनः एक प्रकार स्थायित्व आ नवजागरण आएल आ तैं सामाजिक उच्छृखंलतापर पूर्णविराम लगेबाक हेतु सामाजिक नियमनक आवश्यकता लोककेँ बुझि पड़लैक आ हरिसिंह देवकेँ ई श्रेय छन्हि जे ब्राह्मण–क्षत्रिय मध्य प्रचलित प्राचीन पद्धति अपना शासन कालमे पूर्णरूपेण वैज्ञानिक बनौलन्हि।
स्वर्गीय रमानाथ झाक अनुसारे समूह लेख्य पाँजि जकाँ राखल जाइत छल आ प्रत्येक वैवाहिक सम्बन्ध भेल उत्तर ओहिपर टीपि लेल जाइत छल। कुमारिलक ‘समूह लेख्य’ समस्त ब्राह्मणक एकत्र संग्रहित भऽ पंजी कहाओल। एहि परिचय सबहिक आधारपर एक एक कुल एक एकटा नाम दऽ देल गेल जे नाम ओहिकुलक पूर्वजक आदिम ज्ञात निवास स्थान गामक नामपर भेल ओ सैह ओहि कुलक मूल कहाओल। कुमारिलक समएमे गुणदोषक विवेचन लोग स्वयं करैत छल मुदा हरिसिंह देवीक बाद आब परिचयक आधारपर गुण–दोषक विवेचण होएब प्रारंभ भेल। बंगालक कुलीन प्रथा जाति मूलक छल आ अकुलीनक संपर्क होइतहुँ कुलीन अपन कुलीनत्वसँ पतित भऽ जाइत छल। मिथिलामे उच्चता–नीचताक अवधारण स्मृतिक अनुसारहि भेल। मनुक उक्ति देखबा योग्य अछि–
“कुविवाहैः क्रियालोपैर्वेदाध्ययनेन च
कुलान्यकुलताँ यांति ब्राह्मणातिक्रमेण च”–
उत्तमैरूत्तमैर्नित्यं सम्बन्धानाचरेत्सह
निनिषुः कुलमुत्कर्षमधमानधमाँस्त्यजेत्”॥
उपरोक्तसँ स्पष्ट अछि जे जातिक अपकर्ष किंवा उत्कर्ष वैवाहिक सम्बन्धसँ नियमित होइत छल। मुदा मात्र जन्मक शुद्धिमात्र एकर नियामक नहि छल। भवभूतिक मालती माधवक टीकामे धर्माधिकरणिक जगद्धर लिखने छथि–
“जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्काराद् द्विज उच्यते
विधया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते”॥
एतवा सब किछु रहितहुँ विद्या ओ आचारकेँ गौण मानि मात्र जन्मक उत्कर्षकेँ प्रधानता दए सामाजिक नियमन जहियासँ आरम्भ भेल तहियेसँ एहि व्यवस्थामे दोष आबए लागल। विवाहक सम्बन्धमे प्राचीन कालहिसँ किछु नियम बनल छल–विवाहक अधिकार ओहि कन्यासँ भऽ सकैत अछि जे–
i) एक गोत्रक नञि हो।
ii) एक प्रवरक नञि हो।
iii) माएक सपिण्ड नञि हो।
iv) बापोक दिसि कोनो पूर्वजक ६पुश्त धरि निम्न नञि हो।
v) माएक दिसिसँ कोनो पूर्वजक ५पुश्त धरि निम्न नञि हो।
vi) पितामह–मातामहक संतान नञि हो।
vii) कठमाम (सतमाएक भाई)क संतान नञि हो।
स्वजनक संग विवाह नहि भऽ सकैत चल कारण ओहन विवाहसँ उत्पन्न संतानकेँ चण्डाल कहल जाइत छलैक। मिथिलामे स्मृतिसारक रचयिता हरिनाथसँ एहने गलती भऽ गेल छलन्हि आ तैं हरिसिंह देव पंजी प्रथाक निर्माण केने छलाह सएह कहल जाइत अछि। सब केओ ई कथा जानने छथि तैं अहिठाम एकरा दोहराएब हम आवश्यक नहि बुझैत छी। हरिनाथ अन्धकारमे विवाह कऽ लेने छलाह कारण हुनक पत्नी हुनक साक्षात पितिऔत भाइक दौहित्री छ्लथिन्ह। जाहि समूह लेखक उल्लेख हम पूर्वहिं कैल अछि हरिसिंह देव ओकरे वैज्ञानिक पद्धतिपर आनि पंजी प्रथाक जन्मदाता कहबैत छथि। हरिसिंह देवक आदेशानुसार सब ब्राह्मणक परिचय संग्रहित भेल आ ओहि संग्रहकेँ विशिष्ट पंडितक जिम्मा लगा देल गेल जे सब किछु देखि अधिकार निर्णय करैथ आ विवाहक हेतु प्रमाण पत्र दैथ–ओहि प्रमाण पत्रकेँ ‘अस्वजन’ पत्र कहल जाइत छैक। संग्रहित परिचयमे प्रत्येक विवाह आ विवाहक संतानक नाम जोड़ल जाइत छल आ उएह परिचय पञ्जी कहाओल आ जिनका जिम्मा एकर भार देल गेलन्हि सैह पञ्जीकार कहौलथि। ‘अस्वजन पत्र’ लिखके देबाक प्रथा सिद्धांत कहाओल जे अद्यावधि ब्राह्मण आ करण कायस्थमे प्रचलित अछि।
जे लोकनि परिचय एकत्र करैत छलाह से ‘परिचेता’ कहबैत छलाह–एहि प्रसंगमे गोत्र, प्रवर आ शाखा सेहो लिखल जाइत छल। सब परिचयकेँ गोत्रक अनुसार अलग–अलग रखलासँ प्रत्येक गोत्रक भिन्न–भिन्न कुलक चित्र समक्ष आबि जाइत छल। कुलक नाम कुलक प्राचीनतम ज्ञात निवास स्थानपर राखल गेल जे ओहि कुलक “मूल” कहाओल। बादमे गोत्र आ मूलसँ प्रत्येक वंशक संकेत भेटए लागल। गुप्त युगहिंसँ एहिबातक प्रमाण भेटइत अछि जे ब्राह्मण अपन ग्राम अथवा निवास स्थानहिसँ चिन्हल जाइत छलाह आ गुप्तयुगसँ पाल युग धरिक अभिलेख सबमे ब्राह्मण लोकनिक चारि–पाँच पुस्तक विवरण भेटइत अछि। ब्राह्मण लोकनि जाहि–जाहि गाममे निवास करैत छलाह ताहि–ताहि गामक प्रशंसा सेहो अभिलेख सबमे भेटइत अछि। मध्ययुगमे राढ़क ब्राह्मण लोक ५६उपजातिमे बटि गेल छलाह आ हिनका लोकनिक वर्गीकरण गाम–गाँइ–गामीकक आधारपर भेल छलन्हि। ११–१३म शताब्दीक अभिलेखमे एकर उल्लेख भेटइत अछि। ठीक अहिना हरिसिंह देव मूल–निवासक आधारपर ब्राह्मण लोकनिकेँ करीब १८०मूलमे बँटने छलाह आ मिथिलाक करण कायस्थकेँ करीब ३५०मूलमे। अहिना अम्बष्ट कायस्थ सेहो करीब १००घरमे बटल छथि। ब्रह्मवैवर्त्त पुराणक ब्रह्मखण्डमे कहाबत अछि जे देश भेदसँ जाति भेद उत्पन्न होइछ आ मध्ययुगीन पंजी परम्परा जे जोड़ देल गेल अछि से एहिबातक सबूत मानल जा सकइयै। गाम–गामक महत्व बढ़ए लागल। संग्रहित पाँजिमे जे सबसँ प्राचीनतम ज्ञात पुरूषक नाम उपलब्ध भेल उएह ‘बीजी–पुरूष’ कहौला। जँ एक्के गामक वासी दु कुलमे भेटला तँ हुनक भेदकेँ स्पष्ट करबाक हेतु कुलक मूलक संगहि–संग नव निवास स्थानक नाम जोड़ि देल गेल।
मिथिलाक ब्राह्मण लोकनि सामवेद आ शुक्ल यजुर्वेदक अनुयायी छथि–सामवेदी कौधुम शाखीय छथि आ यजुर्वेदी माध्यन्दिन शाखीय। क्रमशः इ दुनू छन्दोग आ वाजसेनयि कहबैत छथि। सामवेदी–छन्दोगमे मात्र शाँडिल्य गोत्र प्रचलित अछि आ माध्यन्दिन वाजसेनयिमे वत्स, काश्यप, पराशर, कात्यायन, सावर्ण आ भारद्वाज। एहि सात गोत्रक कुल व्यवस्थित कहबैत छथि। ब्राह्मणक आ ग्यारहटा गोत्र जे मिथिलामे अछि से भेल–गार्ग्य, कौशिक, अलाम्बुकाक्ष, कृष्णात्रेय, गौतम, मौदगल्य, वशिष्ठ, कौण्डिन्य, कपिल आ तण्डि। प्रत्येक गोत्रमे कैकटा मूल अछि। ओना तँ लगभग २००मूलक आभास भेटइत अछि परञ्च ब्राह्मण विद्वान लोकनि मात्र सात गोट गोत्र आ ३४या ३६टा मूलकेँ व्यवस्थित मानैत छथि। मिथिलामे कुलीनताक परिचायक छल जन्मक विशुद्धता, आचारक चारूता आ विद्या व्यवसाय–एहि तीनुसँ युक्त व्यक्तिकेँ श्रोत्रिय कहल जाइत छलन्हि। एहिठाम स्मरणीय जे पाँजिमे मात्र परिचय संग्रहित अछि जाहि आधारपर विवाहक अधिकारक निर्णय होइत अछि। हरिसिंह देव ब्राह्मणकेँ तीन श्रेणी (श्रोत्रिय, योग्य, जयबार)मे बँटने छलाह–ई कथन निराधार अछि। आदर्शकेँ बिसरिकेँ जखन हमरा लोकनि केवल भेदपर जोड़ देब प्रारंभ कैल तखनहिसँ एहि व्यवस्थामे कुरीतिक प्रवेश भेल। जे जे नीच काज करैत गेलाह से क्रमशः नीच होइत गेला। ब्राह्मण पाञ्जिक अनुसार अधिकार निर्णयक नियम एवँ प्रकारे अछि–
i) कन्याक पिताक पितामहक पितामह।
ii) कन्याक पिताक पितामहक मातामह।
iii) कन्याक पिताक पितामहीक पितामह।
iv) कन्याक पिताक पितामहीक मातामह।
v) कन्याक पिताक मातामहक पितामह।
vi) कन्याक पिताक मातामहक मातामह।
vii) कन्याक पिताक मातामहीक पितामह।
viii) कन्याक पिताक मातामहीक मातामह।
ix) कन्याक माताक पितामहक पितामह।
x) कन्याक माताक पितामहक मातामह।
xi) कन्याक माताक पितामहिक पितामह।
xii) कन्याक माताक पितामहीक मातामह।
xiii) कन्याक माताक मातामहक पितामह।
xiv) कन्याक माताक मातामहक मातामह।
xv) कन्याक माताक मातामहीक पितामह।
xvi) कन्याक माताक मातामहीक मातामह।
आठम पीढ़ीसँ सपिण्डत्व हटि जाइत छैक।
मिथिलामे पाञ्जिक अध्ययन अखनो वैज्ञानिक पद्धतिसँ नहि भेल अछि कारण ओकर साहित्य एतेक जटिल अछि जे सब केओ ओकर अध्ययन कइयो नहि सकैत छथि। रमानाथ बाबूक अतिरिक्त आ एकाध गोटए पाञ्जिक अध्ययन कएने छथि मुदा पूर्णरूपेण वैज्ञानिक ढ़ँग आ तालपत्रपर लिखित पाञ्जिक अध्ययन मेजर विनोद बिहारी वर्मा अपन “मैथिल करण कायस्थक पाञ्जिक सर्वेक्षण”मे कएने छथि। ई अध्ययन अपना ढ़ँगक अद्वितीय अछि आ पाञ्जिक अध्ययनक क्षेत्रमे ई अपन एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केलक आछि। तालपत्र हिनक काफी प्राचीन अछि आ पाँजि प्रथाक स्थापनाक लगभग ५०वर्षक अभ्यंतरहिमे लिखल अछि। एहि आधारपर अखन आरो कतेक अध्ययन प्रस्तुत कैल जा सकइयै। पाँजि प्रथाक नींव जाहि आधारपर पड़ल तकरा सम्बन्धमे मेजर वर्मा लिखैत छथि–
एवँ प्रकारे ओ गौतम, याज्ञवल्क्य, हारीत, विष्णुपुराण आदिसँ विभिन्न मत उपस्थित कएने छथि। पाँजि जखन उपस्थित कएल गेल तखन देशक स्थिति चिंतनीय छल। करण कायस्थ पाञ्जिक अध्ययनसँ स्पष्ट होइछ जे कठोर बन्धनक पश्चातो पाँजिमे “स्वयं गृहीता” कन्या, “चेचिक विजाती”सँ व्याहक उल्लेख, “कुलाल” जातिक उल्लेख, “चेटिका धृताः” आदिक यत्र–तत्र विवरण भेटइत अछि। जातिक रक्षा करब पाञ्जिक एकमात्र प्रयोजन छल परञ्च कायस्थ पाञ्जिक अध्ययनसँ स्पष्ट अछि जे किछु अंतर्जातीय विवाह सेहो होइत छल। करण कायस्थक पाञ्जिमे गोत्रक उल्लेख नहि अछि। बलायिन मूलक आदि पुरूष मंधदासक गोत्र राढ़मे अत्रि, कुचबिहारमे वशिष्ट आ मिथिलामे काश्यप लिखल गेल अछि। पाञ्जिमे कतहु नहि कहल गेल अछि जे अमूक मूल श्रेष्ठ आ छोट अछि आ ने भलमानुसे–गृहस्थक चर्च ओहिमे कतहु अछि।
पाञ्जिक पूर्ण शिक्षा प्राचीन कालमे पञ्जीकार लोकनिकेँ देल जाइत छलन्हि आ प्राचीन पाठशालामे मिथिलामे पाञ्जि शास्त्रक पढ़ाइ होइत आ जे एहिमे उत्तीर्ण होइत छलाह सएह ‘पञ्जीकार’ होएबाक योग्यता प्राप्त करैत छलाह। पञ्जीकारकेँ निम्नलिखित वस्तुसँ अवगत हैव आवश्यक छल–
i) मूल निर्णय,
ii) डेरावली,
iii) वंशावली,
iv) सादा उतेढ़।
पाञ्जि लिखबाक हेतु किछु नियमक पालन आवश्यक छल। पञ्जीक एक पातक एक पृष्ठक सोलह कालम आ गाम एवं प्रकारे विभक्त कैल गेल अछि–
मायक वंशक हेतु आठ कालम आ गाम।
पितामहीक वंशक हेतु चारि कालम आ गाम।
प्रपितामहीक वंशक हेतु दू कालम आ गाम।
वृद्धा प्रपितामहीक वंशक हेतु एक कालम आ गाम।
अपन स्वयंक ५पीढ़ी पूर्वजक हेतु एक कालम आ गाम।
पाञ्जिक १६कालम विभक्त देखबामे अवइयै। एक पातक एक पृष्टमे १६मूल गामक उल्लेख रहैत अछि–३१व्यक्तिक नाम आ १६कन्याक नामक उल्लेख रहैत अछि। अधुना पाञ्जि देखबाक अथवा अध्ययन करबाक अवगति आब पञ्जीकारोकेँ नहि छन्हि। कायस्थक पञ्जीकार मूलतः दुई वंशक छथि–महुनी आ सीसब। पाञ्जिमे जातीय इतिहास सुरक्षित अछि।
पंञ्जीक तिथि:-पञ्जीक तिथिक सम्बन्ध सेहो विद्वानक बीच मतभेद अछि। सब तथ्यक अनुशीलन केला उपरांत हमरा अपन विचार इ अछि जे पञ्जीक प्रारंभ १३१०–११ ई.मे भेल होएत। १३२३ सँ १३२७ धरिक तिथि जे मनैत छथि से हमरा बुझने मान्य नहि भऽ सकइयै कारण १३२३सँ १३२७क बीच हरिसिंह देव मुसलमानी आक्रमणसँ ततेक तबाह आ व्यस्त छलाह जे ओहि समयमे कोनो एहेन काज करब असंभव छल। नेपाली श्रोतसँ इहो ज्ञात होइछ जे हरिसिंह देव १३२६ई. धरि मिथिलासँ पड़ा चुकल छलाह आ तकर बादक हुनक इतिहासक कोनो निस्तुकी पता हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। काठमाण्डुक वीर पुस्तकालयक गोपाल वंशावलीक मूल एतए विज्ञ पाठकक हेतु देल जा रहल अछि –
“स माघ शुदि ३ तिरहूतिः हरशिंहु राजासन
मिह्लोसन तासत्र गही टो ढ़ीलीस तुरूक याके
वंङ रायत मानालपं थमु अगु गन याङ वस्यं
शिमरावन गड्ढ़ भङ्ग याङ तिरहूतिया राजा महाथ
आदिन समस्त वडङ व्यसन वंग्व टों ग्वलछिनो
लिन्दुंबिल ववः ग्वलछिनो राजगाम द्वलखा धारे वंग्व।
हिंपोतस राजा हरसिंह तो शिकथ्वस
काय नो मआथ नो उभय बंधि यंङा कूलन
ज्वोङाव हंग्व राज गामया मझीधारो
धायान समस्त धन कासन”।
उपरोक्त वंशावलीसँ स्पष्ट अछि जे हरिसिंह देव ७जनवरी १३२६केँ शिमराँव गढ़क नष्ट भ्रष्ट भेला पड़ेला आ तकर बाद ओ मरि गेला। राजगाँवक माँझी भारो हुनक पुत्रकेँ गिरफ्तार कए कैदी बना लेलकन्हि आ हुनक सब वस्तुजात लूटि–पाटि लेलकन्हि। ओ शरणार्थीक श्रेणीमे छलाहे शासक हिसाबमे नहि। एहि प्रसंगकेँ जखन हमरा लोकनि ध्यानमे राखब तखन बुझना जाएत जे पञ्जी प्रबन्ध सन काजक प्रारंभ १३२३–१३२७क बीच नहि भेल होएत। मैथिल परम्परामे इ कहल गेल अछि जे शक् १२४८मे नेहरामे विश्वचक्र महादान कएने छलाह। ओ पञ्जी निर्णयार्थ विद्वान लोकनिक आह्वान कएने छलाह। शक् १२४८मे इ सम्भव नहि भऽ सकइयै कारण तखन ओ पराजित भऽ नेपाल पड़ा चुकल छलाह। रघुनन्दन झा द्वारा बनाओल पञ्जी प्रबन्धक आदिमे एहि तरहे श्लोक अछि–
“शाके श्री हरिसिंह देव नृपतेर्भूपार्क १२१६ तुल्ये जनि–
१२१६+७८=१२९४ई. जखन हरिसिंह देव एकटा नाबालिकक रूपमे छल। अहु समयमे अहु समयमे पञ्जी प्रबन्ध सन मूल प्रश्नपर विचार करबाक क्षमता हिनकामे तखन नहि हेतैन्ह तैं इहो तिथि हमरा बुझने अमान्य अछि। शक्तिसिंहक समयसँ मिथिलामे अस्तव्यस्तता छल। चण्डेश्वर ठाकुर हरिसिंह देवक मुख्य सलाहकार छलाह आ राज्यक हेतु सब काज करैत छलाह। नेपाल विजयक अवसरपर तुला पुरूष सेहो केने छलाह। १३१४क आसपास हरिसिंह देव वयस्क भेलापर अपन राज्यक भार सम्हारलन्हि आ तखने चण्डेश्वरक तत्वावधानमे नेपाल विजयक खुशखबरी सेहो भेटलन्हि। ओम्हर मुसलमानी प्रकोप जोरसँ बढ़ि रहल छल तैं हेतु सामाजिक नियम निष्ठाकेँ सुदृढ़ करबाक हेतु हिनक ध्यान आकृष्ट कैल गेलन्हि आ एहि दिसि ध्यान देलन्हि आ पञ्जी प्रबन्धक व्यवस्था केलन्हि। पाञ्जिमे छोट–पैघक गप्प नहि छल–ई सभ कल्पना मात्र थिक। सब जातिक हेतु पञ्जी प्रबन्ध भेल छल मुदा मैथिल ब्राह्मण आ कायस्थ छोड़िकेँ इ चलल नहि। सूरी लोकनिक बीच सेहो पाञ्जि छल आ रहरिया तथा मधेपुरमे एकर संकेत भेटल अछि। सूरीमे पञ्जि आ पदवी एखनो विराजमान अछि। एतए पैघ काज करबाक हेतु काफी समय आ पलखतिक आवश्यकता छल तैं १३१०सँ १३१४क बीच पञ्जी प्रबन्धक प्रारंभ हैव बेसी युक्तिसंगत बुझि पड़इयै।
निम्नलिखित तीनटा श्रोतपर एहि प्रसंगमे विचार करब आवश्यक–
“शाके युग्म गुणार्क सम्मित वरे भूपाल चूड़ामणिः
श्रीमच्छृ हरिसिंह देव विजयी पञ्जी प्रबन्धः कृतः
तस्मात कर्ण बीजकलितं सुद्विंश्व चक्रेपुरा।
कायस्थ मति प्रदस्थ गुणिनः श्री शंकर दत्तभान”॥
शंकर दत्त मल्लिककेँ (सीसब मूल)केँ १३१०–११मे हरिसिंह देव पञ्जी प्रबन्ध करबाक आदेश देने छलथिन्ह। श्यामलाल चौधरी लिखित “वंशावली मैथिल कर्ण कायस्थ उपाख्यान पुस्तक वंश कुलदीपक” (ई पांडुलिपि सम्प्रति नैशनल लाइब्रेरी, कलकत्ताक, ‘शांति देवी–राधा कृष्ण चौधरी संग्रह’मे सुरक्षित अछि आ ओहिठाम कायस्थ पञ्जीक तालपत्र पोथी सेहो)मे कहल गेल अछि जे शंकर दत्त मल्लिक अपन भागिन मोहिनवार मूल ग्रामसँ लडूआरी डेरा अवस्थित गुणपति दासकेँ पाञ्जि देलथिन्ह तैं इ वंश पञ्जीकारक वंश कहाओल। श्याम लाल चौधरी एवम प्रकारे श्लोक लिखने छथि-
“शाके युग्म गुणार्क सम्मित वरे भूपाल चूड़ामणि
तस्मात् करण विज कलितं कायस्थ पञ्जी प्रबन्धः
कृतः तस्मात् मंत्र गुणीनां श्री गुणपतिः दत्तवान॥
तेसर श्रोतकेँ स्पष्ट केनिहार छथि मेजर विनोद बिहारी वर्मा। हुनका द्वारा प्रस्तुत अध्ययनक श्रोतमे एकठाम लं.सं. २३३(=१३५२)मे लिखल कोनो ‘दत्त मल्लिक’क सबूत भेटलन्हि अछि। इ ओहि ‘दत्त मल्लिक’केँ शंकर दत्तक पुत्र शंभू दत्त मल्लिक मानैत छथि। शंभूदत्त मल्लिक पाञ्जिक नकल करब १३५२ई.शुरू केलन्हि। शंकर दत्त कवि सेहो छलाह। एहिसब तथ्यकेँ एकठाम संग्रहित कए जखन हम अध्ययन करैत छी तँ हमरा इ स्पष्ट बुझना जाइत अछि जे पाञ्जि निर्माणमे प्रमुख रूपे ब्राह्मण आ कायस्थ लोकनिक योगदान छ्लैक आ १३१०सँ १३१४क मध्य पञ्जी प्रथा व्यवस्थापित भेल। तकर बाद जखन हरिसिंह पड़ाकेँ चल गेला तखन–पण्डित लोकनि बैसिकेँ ओकरा सरिऔलन्हि आ ताहिमे ताहि दिनमे १५–२०वर्ष लगले हेतैन्ह तैं संभव जे ब्राह्मण–कायस्थक पाञ्जि आ वंश संग्रह करबामे जे समय लागल हेतैन्ह तकर बाद जे एकटा साँगोपाँग विवरण प्रस्तुत भेल होएत से १२४८ शक=१३२६/२७मे प्रकाशित भेल होएत। मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक स्थितिमे देखैत उपरोक्त तर्क हमरा बेशी युक्तिसंगत बुझि पड़इयै आ तैं एकर तिथि निर्णय करबाक प्रश्नपर ओहि तथ्यकेँ ध्यानमे राखब आवश्यक।
कर्णाट आ ओइनवार युग मिथिलाक सामाजिक इतिहासक दृष्टिये महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। बौद्ध धर्मक ह्रास भेलापर एतए ब्राह्मण व्यवस्थाक पुनर्स्थापन भेल आ जातीयताक व्यवस्थामे जे थोड़ बहुत लचड़ एहि बीचमे आबि गेल छल तकरा मैथिल निबंधकार लोकनि अनेकानेक स्मृति ग्रंथादि लिखिकेँ ठोस बनौलन्हि। सामाजिक कार्य कलापक हेतु सेहो बहुत रास ग्रंथ लिखल गेल जाहिमे चण्डेश्वरक गृहस्थ रत्नाकर सर्वश्रेष्ठ अछि।
कुलीन प्रथाक विकास मिथिलामे एहियुगमे भेल। ओना एकर विश्लेषण पञ्जी प्रबन्धक प्रसंग भेल अछि परञ्ज ओकर एतिहासिक पृष्ठभूमि एहिठाम राखब आवश्यक। कुलीन व्यवस्थाक संस्थापक छलाहे आदि सूर जे पूर्वी मिथिलामे कतहुँ शासन करैत छलाह आ वृद्ध वाचस्पति हुनके ओत्तए रहि अपन न्यायकणिका नामक पुस्तकक रचना कएने छलाह। आदिसूर (९म शताब्दी)मे मिथिला आ बिहारमे बौद्धधर्मक प्रधानता छल आ तैं ब्राह्मणत्वक रक्षार्थ ओ कोलाञ्चसँ पाँचटा शुद्ध ब्राह्मणकेँ बजाय अपना ओतए आश्रय देलन्हि। आदिसूरक दरबारमे ब्राह्मण लोकनिक वर्गीकरण प्रारंभ भेल छल आ पाछाँ बल्ला सेन अपनाकेँ आदिसूरक वंशसँ मिलाय अपनाकेँ कुलीन प्रथाक जन्मदाता घोषित केलन्हि मुदा एहिठाम ई स्मरणीय जे मिथिलाँचलसँ प्राप्त दू ताम्र पत्र (बनगाँव आ पंचोभ) अभिलेखमे दान देबाक हेतु कोलाञ्च ब्राह्मणक उल्लेख स्पष्ट अछि। मिथिलाक पाञ्जिमे जे मूल ग्राम अछि सएह ओकर प्राचीनताक सबसँ पैघ प्रमाण मानल जा सकइयै। एवँ प्रकारे कुलीन व्यवस्थाक जन्म सर्वप्रथम मिथिलहिमे भेल छल आ पाछाँ एहिठामसँ बंगाल आ असममे इ पसरल। हरिसिंह देव ओहिसब पुराण व्यवस्थाकेँ एकत्र कए पञ्जी प्रबन्धक व्यवस्था केने छलाह। एहि प्रथाक बादसँ विवाहादिक नियम सेहो श्रृंखलाबद्ध भेल। पञ्जि आ घटकक प्रथा चलल। एहि प्रथाकेँ जँ रमानाथ बाबू समाजक नियमनक हेतु सर्वश्रेष्ठ मनने छथि तँ उपेन्द्र ठाकुर एकरा प्रतिक्रियावादी कहने छथि। एकरा चलते सामाजिक संकीर्णता दिनानुदिन बढ़ैत गेल आ बिकौआक प्रथा प्रचलित भेल।
एहि युगमे क्षत्रियक रूपमे राजपूत लोकनिक विकास भेलन्हि–हुनको लोकनिमे पाञ्जिक प्रथा चललन्हि मुदा बहुत दिन धरि नहि रहि सकलन्हि। ओना मिथिलामे ताहि दिनमे गन्धवरिया राजपूतक विकास भऽ चुकल छल तथापि ज्योतिरीश्वरक वर्ण रत्नाकरमे ३६टा राजपूत जातिक वर्णन भेटइत अछि। वैश्यमे व्यापारी वर्ग, कर्मकार, कलाकार, पशुपालक, खेतिहर, साहूकार, आदि लोकक गिनती छलैक। वैश्य मूल रूपेण खेती करैत छलाह आ व्यापार सेहो। आर्थिक उन्नतिक भार हिनके लोकनिपर छलन्हि। शूद्रक स्थान दयनीय छल। तेली, सूरी, धाँगर, यादव, धानुक, केओट, अमात आदि शूद्रक श्रेणीमे गिनाइत छलाह आ हिनका लोकनिकेँ कोनो विशेष सामाजिक अधिकार नहि प्राप्त छलन्हि। मुख्यतः इ लोकनि बान्हल मजूर होइत छलाह आ हिनका लोकनिक सब किछु अपन मालिकपर निर्भर करैत छलन्हि। जँ वर्ण रत्नाकरमे एकर उल्लेख अछि तँ विद्यापतिक लिखनावलीमे हिनका लोकनिक दयनीय स्थितिक वर्णन। वर्ण रत्नाकरमे दू प्रकारक छोट जातिक वर्णन अछि–i)अनिर्वासित आ, ii)निर्वासित। एकर अतिरिक्त ज्योतिरीश्वर ‘मन्द–जातीय’क एकटा पैघ सूची उपस्थित कएने छथि। ओहि सबसँ छोट जातिक सामाजिक स्तित्वक पता चलइयै। गुलामी आ बेगारीक प्रथा सेहो छल।
स्त्रीक अवस्था तँ आर दयनीय भऽ गेल छल। समाजमे स्त्रीकेँ कोनो उच्च स्थान प्राप्त नहि छलन्हि आ एकर स्पष्टीकरण तँ ज्योतिरीश्वरक निम्नलिखित वाक्यहि भऽ जाइत अछि–“स्त्रीक चरित्र अइसन दुर्लभ्य; स्त्रीक चरण अइसन दारूण” विद्यापति सेहो स्त्रीकेँ “अलप गेआनी” कहने छथि। ई बात ठीक जे एहि युगमे लखिमा, धीरमती, विश्वास देवी सेहो भेलीह आ चन्द्रकला सन निपुण स्त्री सेहो परञ्च हिनका लोकनिक आधारपर इ नहि कहल जा सकइयै जे समस्त मिथिला स्त्रीक स्थान हिनके सब जकाँ छल। सती प्रथाक प्रचलन सेहो छल आ इ राजपूतमे बेसी छल। चौठम (मूँगेर)सँ प्राप्त एकटा कागजसँ एहि बातक ज्ञान होइछ। भवसिंहक दुह पत्नी सेहो वाग्मतीक तटपर सती भेल छलथिन्ह। स्त्री शिक्षापर विशेष ध्यान नहि देल जाइत छल। पर्दा प्रथाक प्रचलन छल आ वैश्यावृत्तिक प्रचलन सेहो। विवाहिता स्त्री लोकनिकेँ सुहागिन कहल जाइत छलन्हि आ ओ लोकनि सिन्दुरक व्यवहार करैत छलीह।
पाटी फारबाक, काजर लगेबाक, तरहथी रंगबाक, नह रंगबाक प्रथा स्त्रीगणक मध्य विशेष प्रचलित छल। पानसँ दाँत लाल आ मिस्सीसँ दाँत करबाक प्रथा छल। गोदना पड़ेबाक उल्लेख सेहो लोकगीतादिमे भेटइत अछि। घोघ काढ़बाक प्रथा छल। धोती साड़ीक प्रचुर व्यवहार छल आ स्त्री लोकनि साया आ चोलीक व्यवहार सेहो करैत छलीह। कसीदा काढ़बामे मैथिलानी निपुण बुझल जाइत छली। छौड़ी सब लंहगा, घघरा आ कंचुकी पहिरैत छल। पनटीक व्यवहार होइत छल। भोज भातक प्रथा सेहो छल आ मैथिल तँ भोजन भट्ट होइते छलाह। ज्योतिरीश्वर ‘पुर्नभोज वर्णनाः’ लिखने छथि। चूड़ा दहीक विशेष व्यवहार होइत छल।
लिखनावलीमे जे पत्रादिक नमूना अछि ताहिसँ छोट जातिक सामाजिक अवस्थाक ज्ञान होइछ। स्वयं विद्यापति लिखने छथि–
“उच्चैः कक्षमधः कक्षे समकक्षे नरंप्रति
नियमे व्यवहारे च लिख्यते लिखन क्रमः”।
हिन्दू मुसलमानक सम्पर्क बढ़लासँ हिन्दू लोकनिक मध्य एक प्रकार अस्तव्यस्तता आबि गेल छल। विद्यापति अपन कीर्तिलतामे एकर विस्तृत वर्णन कएने छथि–
“धरि आनए बाभन बटुआ, मथा चढ़ाबए गाइक चुड़ुआ।
फोट चाट जनेउ तोड़, उमर चढ़ाबए चाह घोड़।
हिन्दु बोलि दुरहि निकार, छोट ओ तुरूका भभकी मार।
हिन्दुहि गोट्टओ गिलिये हल, तुरूक देखि होइ भान”॥
चण्डेश्वरक कृत्य रत्नाकरमे ओहियुगक पूजा–पाठ, पविनितिहार एवँ उत्सवादिक वर्णन भेटइत अछि। गौरी पूजा, दुर्गाव्रत, दुर्गारथ, वाराह द्वादशी, नरसिंह द्वादशी, बुद्ध द्वादशी, मत्स्य द्वादशी, रासकल्याण, महाष्टमी आदिक उल्लेख भेटइत अछि। एकर अतिरिक्त उदकोत्सव महोत्सव, विनायक पूजा, भाष्कर पूजा, सूर्यपूजा, आदिक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। फगुआक उल्लेख सेहो भेल अछि। (विस्तृत विवरणक हेतु देखु हमर पोथी–“मिथिला इन द एज आफ विद्यापति”)।
स्मृतिकारक दृष्टिकोण:- सामाजिक समस्याक प्रति मैथिल स्मृतिकारक अपन विशिष्ट दृष्टिकोण छलन्हि जकर मूल उद्देश्य छल समन्वयात्मक प्रवृतिकेँ प्रोत्साहन देव। ओ लोकनि वैदिक एवँ अवैदिक तत्वकेँ अपन स्मृतिमे स्थान एकटा विशिष्ट समन्वयात्मक प्रवृत्तिकेँ जन्म देलन्हि कारण ताहि दिनक परिस्थितिमे ओकर आवश्यकता छल। एहि दृष्टिकोणसँ ओ लोकनि गौड़ीय आ उत्कलीय स्मृतिकारसँ बड्ड आगाँ छलाह। श्रीदत्त उपाध्याय, चण्डेश्वर आ विद्यापतिक कार्य एहि क्षेत्रमे प्रशंसनीय अछि। कीर्तिलतासँ जे स्थितिक भान होइछ ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे मिथिलोमे हिन्दूक स्थिति दयनीय छल आ ओ लोकनि लाचारीक हालतमे रहैत छलाह। जखन राजकुमारे इब्राहिम शाहक प्रति कहलन्हि–“अज्ज पुण्णा पुरिसथ्थ, पातिसाह–पापोस पाइअ”, तखन दोसरा कोन गप्प? कन्याक बिक्री सेहो होइते छल। मुदा तखन मिथिलामे उपाये कि छल? विद्यापति हिन्दू मुसलमानक प्रसंगमे प्रायश्चितक कोनो चर्च नहि केने छथि। वाचस्पति सेहो एहि दिसि कोनो विशेष ध्यान नहि देलन्हि आ मात्र एतवे कहिकेँ छोड़ि देलन्हि जे मलेच्छक भाषा नहि सिखबाक थिक(मलेच्छ भाषां न शिक्षेत्)। ताहि दिन धरि बुझि पड़इयै जे मिथिलामे एहेन कोनो समस्या नहि उठल हेतैक कारण कतवो मुसलमानी प्रकोप किएक ने बढ़ल हौक एहिठाम हिन्दू शासक छल आ सूफी लोकनिक विशेष प्रभाव रहलासँ मनोमालिन्य कर्म छल। अगर ककरो जबर्दस्ती मुसलमान बनाइयै देल गेलैक अथवा गोमाँस खुआइये देल गेलैक तँ ओकरा प्रायश्चित् कराके घुरेबासँ कोन लाभ। ओहिठामक लोग तँ ओहिना विशेष कट्टर होइत छल तैं समस्या एखन धरि जटिल नहि भेल छलैक।
हिन्दूधर्मकेँ सुरक्षित रखबाक हेतु बहुत रास पारिजात, रत्नाकर इत्यादिक निर्माण भेल परञ्च लोक एतेक आलसी भऽ गेल छल जे ककरो एतेक पढ़बाक–बुझबाक पलखति नहि छलैक। बहुत गोटए कोनो नियमोक पालन नहि करैत छलाह। एहिसबकेँ ध्यानमे राखि शंकर मिश्र एकटा संक्षिप्त ‘छन्दोगांटिकोद्धार’ रचना केलन्हि आ ओकरा अंतमे लिखलन्हि–
“एतावत्यपि कृते न प्रत्यवेयात्, अन्यथा तु प्रत्यवेयात्”।
चण्डेश्वर अपन गृहस्थरत्नाकरमे विवाहक नियमक प्रतिपादन कएने छथि। मैथिल परम्परामे प्रतिलोम विवाहकेँ मान्यता नहि छैक यद्यपि एहिपर विचार आ विवाद दुनू भेल छैक। मैथिल स्मृतिकार लोकनिक सामन्त दरबारमे रहैत जाइत छलाह आ तैं इ लोकनि अपन रचनामे ब्राह्मणेटाक महत्व दैत छलाह अनका नहि। शासक आ सामन्त सेहो ब्राह्मण छलाह आ स्मृतिकार लोकनि अपने सेहो। शूद्रकेँ तँ कोनो स्थाने नहि देल जाइत छलैक। शूद्र प्राडविवाक सेहो नहि भऽ सकैत छलाह। तथापि रूद्रधरक इ वाक्य देखबा योग्य अछि–“शूद्रस्य वृषोत्सर्ग वाक्ये एव वेद पाठाधिकारो नान्यत्र इति सर्वप्रामाणिक सिद्धम्”–(श्राद्धविवेक)।
इ कतेक हास्यास्पद बुझि पड़इयै जे जखन मुसलमान अथवा आन विदेशी ब्राह्मण–शूद्रकेँ एक्के रंग बुझैत रहन्हि आ जखन दुनूक एक भऽ कए चलब अत्यावश्यक छल तखन ब्राह्मण स्मृतिकार लोकनि अपन समन्वयात्मक प्रवृत्तिक बाबजूदो सबकेँ मिलाकेँ एक संग नहि लऽ चलि सकलाह। बहु विवाहक प्रथा पञ्जी प्रबन्धक कारणे बढ़ि गेल छल। गृहस्थ रत्नाकरक अध्ययनसँ स्पष्ट अछि जे दोसर विवाह करबाक पूर्व प्रथम पत्नीक प्रबन्ध कऽ देबाक चाही। विधवा विवाहक सम्बन्धमे कोनो स्पष्ट निर्देश नहि भेटइयै। चण्डेश्वर विवाहक सम्बन्धमे मात्र एतबे कहैत छथि जे पूर्व वर कन्याक पक्षक दिसिसँ कोनो बात ककरोसँ नुकाकेँ नहि रखबाक चाही। कोनो दोष कोनो पक्ष दिसि हो तँ ओकरा स्पष्ट कहि देबाक चाही आ जँ कोनो बात नहि कहल गेल आ विवाहक बाद ओकर पता चलल तखन ओहि हेतु दण्डक निर्देश सेहो देल अछि। मैथिल स्मृतिकारक प्रयत्नसँ हिन्दू कानूनक मिथिला स्कूलक स्थापना भेल। एहिमे ओ लोकनि लक्ष्मीधरक कृत्य कल्पतरूसँ बड्ड प्रभावित भेलाह। सामाजिक दुश्मनक विवरण वर्धमान अपन दण्ड विवेकमे ‘प्रकाश तस्कर’ कहिकेँ केने छथि– मांत्रिक, ताँत्रिक, व्यापारी, वैद्य, झूठ गवाही देनिहार, इत्यादि भला आदमीक वेशमे समाजक हेतु खतरनाक बुझल गेल छथि।
दानपर मिथिलामे विशेष बल देल जाइत छल। चण्डेश्वरक दान रत्नाकर, रामदत्तक षोडस–महादान–पद्धति, वाचस्पतिक महादान निर्णय एवँ विद्यापतिक ‘दान वाक्यावली’ एहिबातक प्रमाण अछि। दानोमे सप्तसमुद्रदान, हेमहस्तिरथदान, विश्व चक्रदान आदिक उल्लेख अछि। एहि सबसँ स्पष्ट अछि जे इ सब ग्रंथ राजा–महाराजा, सामंत लोकनिक हेतु लिखल जाइत छल आ सामान्य गरीब लोककेँ एहिसँ कोनो लाभ नहि छलैक। विद्यापतिकेँ छोड़ि कोनो मैथिल स्मृतिकार गरीबक हेतु दानक रास्ता नहि बतौलन्हि अछि। मैथिल स्मृतिकार लोकनि तंत्र पंचरात्र एवँ पाशुपत साहित्यसँ प्रभावित छलाह। समन्वयवादी होइतहुँ ओ लोकनि पंचोपासनाक समर्थक छलाह। दैनन्दिन जीवनकेँ नियमित रखबाक हेतु ओ लोकनि धर्मपर विशेष जोड़ देलन्हि। समाजपर एकर प्रभाव पड़ल। संस्कृतक सुरक्षा हिनका लोकनिक प्रयासे भेल।
समाजमे गुलामक प्रथा सेहो प्रचलित छल। गुलामीक एहेन विकराल रूप छल जे पुछु जनि। सामंतवादी व्यवस्था छल आ बन्हिल मजूर छल। वहियाक खरीद बिक्री होइत छल। गौरीव वाटिका पत्र, बही–खाता, अजातपत्र, अकरारपत्र, जनौढ़ी, निस्तार पत्र, लिखनावली आदिसँ बहिया सबहिक स्थितिक पता लगैत अछि। १८–१९म शताब्दी धरि एकर प्रचलन मिथिलामे छलैक। वहियाक स्वत्वाधिकारक प्रश्नपर बरोबरि लोककेँ आपसमे झगड़ा–झाँट होइत छलैक आ अंततोगत्वा ओकर निर्णय कचहरीमे जाके होइत छलैक।
प्राचीन कालसँ ई व्यवस्था चल अबैत छल। जातक, बौद्ध साहित्य आ कौटिल्यक अध्ययनसँ एहिपर पूर्ण प्रकाश पड़इत अछि। मिथिलामे प्राचीन कालहिसँ दास–दासीक संख्याक विवरण प्राचीन साहित्यमे भेटइत अछि। नारदक अनुसार जँ कोनो गुलाम अपन मालिकक जीवनक रक्षा केलक आ मालिक बचि गेला तँ ओकरा गुलामीसँ मुक्त कऽ देल जाइत छलैक। विवाद चिंतामणिमे नारदक मतकेँ वाचस्पति उद्धृत केने छथि जाहिसँ स्पष्ट होइछ जे ताहि दिनमे नारदक इ मत मान्य छल। मिथिलाक सामंतवादी समाजमे हेवनिधरि खवास लोकनिक जे महत्व छलैक ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे प्रियपात्र गुलाम, खवास आ वहिया अपन मालिकक मोनकेँ जीतिकेँ बहुत किछु प्राप्त करैत छल। विद्यापतिक लिखनावली आ मैथिल स्मृतिकार लोकनिक रचनादिमे सेहो एहि प्रसंगक विशेष बात भेटइत अछि।
दू ब्राह्मण परिवारमे एकटा गुलाम लऽ कए जे झगड़ा भेल आ ताहिपर न्यायालय अपन निर्णय देलन्हि से अद्यावधि सुरक्षित अछि आ तत्कालीन सामाजिक व्यवस्थापर प्रकाश दइयै। वहिया लोकनिक स्थिति बड्ड दयनीय होइत छल आ ओकरा सबहिक इज्जत सदति खतरेमे रहैत छलैक। बहिया सभहिक अदला–बदला, लिखा–पढ़ी, कऽ कए होइत छल जाहिसँ केओ कत्तौसँ भागे नहि। भगलापर ओकरा सजा देल जाइत छलैक। १७७०आ १८११क दूटा एहनो उदाहरणक प्रमाण हमरा लोकनिकेँ भेटल अछि।
गुलामक अंतर्गत निम्नलिखितकेँ हमरा लोकनि राखि सकैत छी– गुलाम, नफर, खवास, डिंगर, कामकार, वहिया, इत्यादि। कुरमी, धानुख, केओट, अमात, कहार, आदि जातिक लोग खवासीमे राखल जाइत छल आ वहियाकेँ बान्हल मजूर बुझल जाइत छ्लैक। एहि सबहिक लोग घर गृहस्थीसँ खेती आ बहलमानी धरि करैत छलैक। चमार जूता आ चमड़ाक कारबारक हेतु राखल जाइत छल आ ओहुना वर्गसँ बान्हल मजूर होएत छल। मिथिलाक कोन–कोनमे छोट पैघ जमीन्दारक संख्या ततेक ने छल जे कोनो एहेन गाम नहि छल जाहिठाम खवासी आ वहियागिरी नहि हो।
जखन एकर अभाव होमए लागल आ तंग भऽ कए पीड़ित–शोषित लोग भागे लागल तखन एहि व्यवस्थाकेँ दृढ़ करबाक हेतु कतेको उपाय रचल गेल आ लिखापढ़ी शुरू भेल। जे गुलामी या वहियागिरीसँ छुटइत छल तकरा हेतु निस्तार पत्र लिखल जाइत छल। मिथिलाक सामंतवादी व्यवस्थाक इ एकटा प्रमुख अंग छल। जकर उदाहरण हेवनिधरि मिथिलामे देखबामे अवइत छल। अपना शताब्दीक उतरार्द्धमे एहि प्रथाक ह्रास देखबामे अवइयै कारण आब मिथिलाक शोलकन्हक विशेष भाग अपना गामकेँ छोड़ि कमेबाक हेतु बाहर चल जाइत अछि।
अध्याय–१७
मिथिलाक आर्थिक इतिहास
मिथिलाक आर्थिक अवस्था अति प्राचीन कालसँ अद्यपर्यंत कृषिपर आधारित रहल अछि। प्राचीन कालमे अखन जकाँ जलक अभाव नहि छल। मिथिलाक प्राकृतिक बनाबट किछु एहेन अछि जाहिसँ एहिठाम कृषिक प्रगति नीक जकाँ होइत अछि। वैदिक कालमे खेत जोतबाक, बीआ पारबाक, काटबाआ फसिल तैयार करबाक विस्तृत रूपें उल्लेख भेटइत अछि। पकला उत्तर अन्नकेँ काटल जाइत छल आ तखन ओकरा बोझ बान्हिकेँ खरिहानमे आनल जाइत छल। दाउन होइत छल तकर पश्चात् ओसौनी होइत छल आ तखन ओकरा सरियाकेँ व्यवहारक हेतु राखल जाइत छल। एहि लेल कृषक लोकनिकेँ बड्ड परिश्रम करए पड़इत छलन्हि। नापतौलक आधार छल ‘खाड़ी’। बखारीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। मिथिलामे चाउर, जौ, मूँग, मकई, गहूम, तिल, मसुरी,आदि वस्तु उपजैत छल। जौ के रोपनी शीतकालमे होइत छल आ गर्मी मासमे ओकरा काटल जाइत छल। धानक रोपनी बरसातमे होइत छल आ अगहनमे ओकर कटनी होइत छलैक। अनावृष्टिसँ कृषिकेँ क्षति पहुँचैत छलैक। कीड़ा–मकोड़ासँ सेहो फसिल बर्बाद होइत छल। अन्हर, बिहाड़ि, बसात, अतिवृष्टि आ अनावृष्टिक संगहि टिड्डीक प्रकोपसँ कृषिकेँ धक्का पहुँचैत छलैक। अनावृष्टिसँ अकालक संभावना सेहो रहैत छलैक। सामान्य किसानक स्थिति बढ़िया नहि छल आ हुनका मालिक लोकनिक अत्याचारसँ तबाह होमए पड़इत छलन्हि। कृषकक समूह विशाल होइतहुँ हुनका लोकनिकेँ कोनो विशेषाधिकार नहि छलन्हि आ हुनका लोकनिपर कर्जक बोझ बरोबरि बनले रहैत छलन्हि।
उपनिषदमे जे जनकक बहुदक्षिणा यज्ञक उल्लेख अछि ताहिसँ ई अनुमान लगाओल जा सकइयैजे मिथिला ताहि दिनमे एक समृद्धशाली राज्य छल। राजकोश धन–धान्यसँ अवश्ये भरल होइत अन्यथा एतेक पैघ यज्ञ ओ कइयै कोना सकितैथ। ओहि यज्ञमे हजारोक संख्यामे गाय आ सोनाक दान भेल छल। गाय बड़दपर विशेष ध्यान देल जाइत छल ताहि दिनमे। बृहदारण्यक उपनिषदक अध्ययनसँ बुझि पड़इयै जे मिथिला ताहि दिनमे सुखी सम्पन्न राष्ट्र छल आ ओतए कोनो वस्तुक अभाव नहि छलैक। ओहिमे सामानसँ लदल बैलगाड़ीक उल्लेख सेहो अछि। आवागमनक हेतु रथ एवँ नावक व्यवहार होइत छल। ‘स्वर्णपाद’क व्यवहार एहि बातक संकेत दैत अछि जे ताहि दिनमे सोनाक सिक्काक प्रचलन छल। आर्थिक निश्चिंतताक कारणे देशमे आध्यात्मिक एवँ बौद्धिक विकास संभव भेल छल। मैथिल लोकनि ताहि दिनमे स्वभावसँ शांत एवँ क्रियाशील छलाह। पढ़ब–लिखबपर विशेष ध्यान दैत छलाह तथापि सैनिकक रूपें सेहो ओ लोकनि ककरोसँ कम नहि छलाह आ तीर चलेबामे तँ अग्रगण्ये।
कृषि मनुष्यक मुख्य कार्य छल। लोक सब विशेष कए गामेमे रहैत छल। गाममे ३०–४०सँ लऽ कए १०००परिवार धरि रहैत छल। गामक समीपहि गाछी–बिरछी सेहो रहैत छल। गामक अध्यक्ष अथवा गण्यमान्य व्यक्ति गामभोजक होइत छलाह। गामक हेतु इ सर्वश्रेष्ठ एवम महत्वपूर्ण पद छल। राजाक हेतु कर वसूल करब, कृषि व्यवस्थाक निरीक्षण करब, ग्रामीण झगड़ा–झंझटकेँ फरिछैब हिनका लोकनिक मुख्य कर्तव्य छल। जँ उपजा नहि होइत छल तँ ग्रामीण लोकनिक भोजनक व्यवस्था हिनके करए पड़इत छलन्हि। उपजनिहार खेतमे पहरूदार सेहो राखल जाइत छल। उत्पादनक साधन मूल रूपें धनीमानी लोकक हाथमे छल तैं साधारण कृषकक स्थिति दयनीय रहब स्वाभाविके छल। जँ कोनो कारणे अन्न नहि उपजल तँ हिनका लोकनिकेँ अपार कष्टक सामना करए पड़इत छलन्हि। अकाल पड़बाक उल्लेख प्राचीन साहित्यमे भेटइत अछि। महावस्तुमे एहि बातक स्पष्ट उल्लेख अछि जे वैशालीमे एक बेर भीषण अकाल पड़ल छल। भूखसँ पीड़ित भऽ असंख्यलोक मुइल छल आ मुर्दाक दुर्गन्धसँ समस्त नगरक वातावरण दुर्गन्ध पूर्ण भऽ गेल छल। एहि युगमे बाढ़िक प्रकोपक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। गण्डकसँ पूर्वक क्षेत्रमे जलक बाहुल्य रहैत छल। मौर्यकालीन अभिलेखमे अकाल आ अभावक उल्लेख भेटइयै। मिथिलाक अंतर्गत विदेह, वैशाली, चम्पारण, अंगुतराप, पुण्ड्र, कौशिकी कक्ष, आदि स्थान सब कृषिक हेतु प्रसिद्ध छल आ एहि समस्त प्रदेशकेँ अन्नक भण्डार कहल जाइत छल। अंगुतरापक आपण गाम सुखी सम्पन्न छल। खेती करबाक हेतु खेतकेँ छोट–छोट टुकड़ीमे बाटल जाइत छल आ खेतक बीच सबमे आड़ि सेहो होइत छल। मिथिलामे इ प्रथा अद्यपर्यंत अछिये।
ताहि दिन मिथिलामे जमीनपर स्वत्वाधिकारक प्रश्न लऽ कए विद्वानमे मतभेद बनल अछि। अखन जतवा जे साधन उपलब्ध अछि ताहि आधारपर कोनो निर्णयात्मक मतक प्रतिपादन करब कठिन अछि कारण जमीनपर दुनू पक्षक विचारक हेतु सामग्रीक अभाव नहि अछि। व्यक्तिगत रूपें हमर अपन मंतव्य तँ इ अछि जे प्राचीन कालमे औपचारिक रूपें समस्त जमीनक अधिकारी राजा होइत छलाह किएक तँ परम्परागत विचारे ‘सवै भूमि गोपाल की” मानल जाइत छल आ राजा ईश्वरक प्रतिनिधि हिसाबे जमीनक मालिक सेहो होइत छलाह। विद्वान लोकनि तीनटा मत प्रतिपादन केने छथि–व्यक्तिगत, सामूहिकआ राजकीय स्वत्वाधिकार आ तीनू मतक पक्ष–विपक्षमे एक्के रंग तर्क देल जा सकइयै। फाहियान लिखने छथि जे केओ राजकीय जमीन जोतैत छथि हुनका ओहिमे सँ किछु अंश राजाकेँ देमए पड़इत छन्हि। अर्थशास्त्रमे राज्य नियंत्रित कृषि व्यवस्थाक विवरण अछि। जातकमे सामूहिक स्वत्वाधिकारक विवरण भेटइत अछि।
जमीन प्राचीनकालक आर्थिक जीवनक नींव छल जाहिपर समस्त आर्थिक रूपरेखा ठाढ़ छल। जातकमे भोगगामआ अर्थशास्त्रमे ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख भेटइयै। एहि सभक व्याख्या प्रत्येक विद्वान अपना–अपना ढ़ँगे करैत छथि। अर्थशास्त्रमे कौटिल्य कर्मचारीकेँ नगद वेतन देबाक व्यवस्था केने छथि मुदा ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख किछु विद्वानकेँ दोसर अर्थ लगैत छन्हि। जखनसँ प्रचुर मात्रामे जमीनक दान शुरू भेल तखनसँ सामंतवादक वीजारोपण सेहो भेल आ भारतक अन्य प्रांत जकाँ मिथिलामे सेहो सामंतवादी प्रथाक विकासक सूत्रपात भेल। सामंतवाद मिथिलामे मध्ययुगमे अपन चरमोत्कर्षपर छल। सामंतवादक प्रभावे जमीनक टुकड़ी–टुकड़ीमे बटब बढ़ए लागल आ बेगार प्रथाक श्रीगणेश सेहो भेल। गुप्त युगसँ जे प्रथा प्रारंभ भेल से मिथिलामे बनल रहल आ सामंतवादी व्यवस्थाक प्रभाव हमरा लोकनिक दैनन्दिन जीवनपर सेहो पड़ल।
सिक्का एवँ कर व्यवस्था:- एहि प्रसंगमे कर व्यवस्था एवँ सिक्काक प्रसंगपर विचार करब अप्रांसगिक नहि होएत। टाका–पैसाक व्यवहार होइत छल अथवा नहि से निश्चित रूपसँ कहब असंभव मुदा वैदिक साहित्यमे हिरण्य, अयस, श्याम, लौह, शीशा, कार्षापणआदिक उल्लेख भेटइत अछि। चानीक टाकाकेँ ‘निष्क’ कहल जाइत छल। सिक्काकेँ कृष्णल, सतमान, हिरण्य, पिण्ड,आ कार्षापण सेहो कहल जाइत छल। ‘स्वर्ण’ सेहो सिक्काक हेतु व्यवहार होइत छल। कतहु–कतहु सिक्काकेँ ‘पाद’ सेहो कहल गेल छैक।
राजाजनक अपन यज्ञमे प्रत्येक गामपर दश–दश ‘स्वर्ण पाद’ लगौने छलाह। ओहिमे प्रत्येक ब्राह्मणकेँ तीन–तीन सतमान सेहो देल गेल छलन्हि। बौद्ध साहित्यमे सेहो एहि हेतु बहुत शब्दक व्यवहार भेल अछि। चानी आ तामाक प्राचीन सिक्का प्रचुर मात्रामे मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ प्राप्त भेल अछि–हाजीपुर, चम्पारण, वैशाली, असुरगढ़, गोरहोघाट, पटुआहा, बहेड़ा, जयमंगलागढ़, पुर्णियाँ, बलिराजगढ़, मंगलगढ़ इत्यादि। एहि सभ स्थानसँ तँ घैलक–घैल सिक्का बहराएल अछि। जातक कथामे वस्तुकदाम ‘पण’क माध्यमसँ देल गेल जाइत छल। सिक्काकेँ पण सेहो कहल जाइत छल। साधारणतः सिक्काक तीन नाप छल–२४, ३२ आ ४०रत्ती। ‘पाद’ १००रत्तीक चौथाई भाग होइत छल।
लोककेँ राजाकेँ किछु कर सेहो देमए पड़ैत छलैक। डी. आर. भण्डारकरक अनुसार जनक कालीन आ बौद्धकालीन मिथिलामे “पाद” करक व्यवहार विशेष प्रचलित छल। राजस्व प्रशासनक जे मान्य सिद्धांत छल तदनुसार मिथिलाक शासक लोकनि कर संचयआ ओसूली करैत छलाह। ‘षडभाग’ सिद्धांत तँ सर्वमान्य छल। राजा प्रजाक रक्षा करैत छलाह आ तकरा बदलामे प्रजा राजाकेँ कर दैत छल। ‘कर’क रूपमे जमीनसँ प्राप्त कर सभसँ प्रमुख छल। समाहर्त्ता राजस्व प्रशासक होइत छल। हुनका सहायतार्थ गोप तथा स्थानिक सेहो होइत छलाह। पतञ्जलिक अनुसार क्षेत्रकर नामक एकटा पदाधिकारी महत्वपूर्ण व्यक्ति होइत छलाह जे कृषियोग्य भूमिक सर्वेक्षण कए ओहिपर कर लगेबाक अनुशंसा करैत छलाह। बलि, भाग, भोग, कर, हिरण्य, उदक भाग, उद्रंग, सीतआदि कैक प्रकारक कर होइत छल। एहिमे किछु कर तँ बड्ड कष्टकर छल। उपरोक्त शब्दक विश्लेषण करबामे विद्वान लोकनिक बीच मतभेद छन्हि तथापि उपरोक्त सबटा कर प्रचलित छल सेहो मान्य अछि। एकर अतिरिक्त शुल्क, क्लिप्त, उपक्लिप्त, प्रणय, विष्टी, उत्संगआदि सेहो करेक विभिन्न नाम छल आ इ राजकीय आयक मुख्य श्रोत मानल जाइत छल। इ सब प्रकारक कर मिथिलामे व्याप्त छल आ ओहि ठामसँ प्राप्त शिलालेख आ तत्सम्बन्धी प्राचीन साहित्यमे सेहो एकर उल्लेख अछि।
सामूहिक आर्थिक जीवन:- बौद्ध साहित्यसँ इहो स्पष्ट होइछ जे मिथिलामे मिलि जुलिकेँ रहबाक व्यवस्था आ श्रेणीबद्ध भऽ काज करबाक आदत बहुत पुराण अछि। जातक कथासँ इ ज्ञात होइत अछि जे विदेहक निवासी बंगाल होइत समुद्रक मार्गसँ विदेश जाए व्यापार करैत छलाह। ओ लोकनि एहि हेतु सामूहिक व्यवस्था करैत छलाह–आ नावआ जहाज सेहो बनबैत छलाह। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी लोकनि अबैत छलाह। एहि मानेमे पूर्व–पश्चिम दुनूसँ मिथिलाक घनिष्ट सम्बन्ध छल। आर्थिक जीवनक क्षेत्रमे एहि प्रकारक सामूहिक संगठन लाभदायक सिद्ध होइत छल आ मैथिल लोकनि एहिसँ विशेष लाभान्वित होइत छलाह। बृहदारण्यक उपनिषदसँ एकर प्रमाण भेटइत अछि। सामूहिकताक हेतु गण, व्रात, पूग, संघ, जाति, श्रेणीआदि शब्दक व्यवहार होइत छल। ‘श्रेणी’ मूलतः व्यापारी लोकनिक संगठन छल। व्यापारी लोकनि वणिक कहबैत छलाह। व्यापारक संचालनक हेतु व्यापारी लोकनि अपन ‘श्रेणी’आ संघ बनबैत छलाह। किछु गोटए एकरा गणक संज्ञा सेहो दैत छथि। रामायण–महाभारतमे सेहो व्यापारी संघक उल्लेख भेटइत अछि। रामायणमे ‘नैगम’ शब्दक व्यवहार भेल अछि। वैदिक साहित्यक ‘श्रेष्ठी’आ उपनिषदक ‘श्रेष्ठिन’ शब्दो सेहो सामूहिकताक परिचायक थिक। मनु आ पाणिनिमे सेहो श्रेणी शब्दक उल्लेख अछि।
बौद्ध साहित्य तँ श्रेणी शब्दसँ भरले अछि। लोहार, सोनार, कुम्हार, तेली, व्यापारी, मछुआ, कमार इत्यादि लोकनिक अपन अलग–अलग श्रेणी होइत छलैक। हुनका लोकनिक अपन नियम कानून सेहो भिन्ने छलन्हि। ओ लोकनि अपन नियम अपने मिलिकेँ बनबैत छलाह। हिनका लोकनिक मध्य जे कोनो मतभेद होइत छलन्हि तँ ओकरो निपटारा ओ लोकनि अपन संघेक द्वारा करैत छलैथ। संघ श्रेणीक प्रधान लोकनिकेँ राजदरबारमे समादर होइत छलन्हि आ कानून इत्यादि बनेबा काल हुनका लोकनिक राय–विचार लेल जाइत छलन्हि। मिथिलाक महत्वक वर्णन एहि दृष्टिकोणे महाउमग्ग जातकमे अछि जाहिसँ ई ज्ञात होइत अछि जे नगरक चारू कोनमे निगमक संगठन छल।
श्रेणीक प्रधानकेँ प्रमुख, प्रधान, जेट्ठक अथवा सेठी कहल जाइत छलैक। कमार, सोनार, लोहार, मालाकार, ताँती, कुम्हारआदि सभ वर्गक अपन–अपन प्रधान होइत छलैक। श्रेणीक अंतर्गत काज केनिहार पदाधिकारीक वेतन इत्यादि श्रेणीसँ देल जाइत छलैक। समय–समयपर राजा श्रेणीक प्रधानकेँ विचार–विमर्श करबाक हेतु बजबैत छलथिन्ह। व्यापारी वर्गक प्रतिनिधिकेँ बरोबरि राजदरबारसँ सम्पर्क राखे पड़इत छलैक। श्रेणीकेँ बहुत रास वैधानिक अधिकार सेहो प्राप्त छलैक। सामूहिक जीवनक सभसँ पैघ प्रमाण हमरा वैशालीक उत्खननसँ प्राप्त अवशेष सबसँ भेटइत अछि। सार्थवाह, कुलिक, निगमआदि शब्दक व्यवहार ओहिठाम प्रचुर मात्रामे भेल अछि। नगर शासनमे हिनका लोकनिक बड्डपैघ हाथ छलन्हि। ओहिठामक बहुत मुद्रापर “श्रेष्ठी निगमस्य” उल्लिखित अछि आ ओहिपर बहुत गोटएक नाम सेहो भेटइत अछि–जेना हरि, उमा भट्ट, नाग सिंह, सालिभद्र, धनहरि, उमापालित, वर्ग्ग, उग्रसेन, कृष्ण दत्त, सुखित, नागदत्त, गोण्ड, नन्द, वर्म्म, गौरिदास इत्यादि–इ सभ गोटए कुलिक छलाह। सार्थवाहमे डोड्डकक नाम आ श्रेष्ठिमे षष्ठिदत्त आ श्रीदासक नामक उल्लेख अछि। बेगूसरायसँ प्राप्त एकटा माँटिक मुद्रापर ‘श्री समुद्र’आ दोसरपर ‘सुहमाकस्य’ लिखल भेटइत अछि। वैशालीमे बैकिंग प्रथाकेँ चालू रखबाक श्रेय हिनके लोकनिकेँ छन्हि आ वैशाली व्यापारी एवँ सम्पत्तिधारी लोकनिक केन्द्र छल। एहि युगमे मैथिल लोकनि अपन आश्चर्यकारी साहसिक भावनाक परिचय देने छलाह।
उद्योग– व्यापारक स्थानीयकरणक कारण श्रेणीकेँ बल भेटल छलैक आ व्यापारक उत्कर्षक कारणे सेट्ठी लोकनिक उत्थान भेल छल। अपन संगठनकेँ मजबूत कऽ कए रखबाक आवश्यकता अहू लेल छलैक जे हुनका लोकनिपर कोनो–कोनसँ कोन प्रकार घातक आक्रमण नहि आ हुनका लोकनिक स्वार्थपर आँच नहि आबे। सामूहिकताक भावनासँ जे बल भेटइत छैक तकर अनुभव ओ लोकनिक लेने छलाह आ ओकर लाभकेँ देखि चुकल छलाह। हुनक संगठित शक्तिकेँ नजरअन्दाज आब शासको नहि कऽ सकैत छलाह। प्रत्येक व्यवसायक पृथक–पृथक संघ छल। मुग्ग–पक्क–जातकमे १८टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख अछि। रमेश मजुमदार २७टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख केने छथि। एकटा जातकमे मिथिलाक चारिटा श्रेणीक उल्लेख अछि। श्रेणी कैक प्रकारक अर्थ व्यवस्थाक सहायक छलः–
i)बैंकिंग प्रणालीकेँ जीवित राखब।
ii) सब तरह वस्तुकेँ न्यास रूपमे सुरक्षित राखब।
iii) कर्ज देबाक व्यवस्था करब।
iv) अपना क्षेत्रक अंतर्गतक भूमिक व्यवस्था करब।
v) राजस्व ओसुलीक काजमे सहायता देब।
vi)आपसमे सद्भावना बनाके राखब।
vii) अपना सदस्यक दिसि ठीका, पट्टा इत्यादि लेबाक व्यवस्था करब।
viii) बिक्री व्यवस्थाकेँ नियमित करब।
ix) अपना सदस्यकेँ अनुशासित राखब आ समय–समयपर सामयिक कर लगाएब।
x) सामूहिक कार्यक व्यवस्था करब।
xi)आवश्यक वस्तुजात पैदा करब।
xii) विज्ञापन प्रसारित करब।
xiii)आवश्यकता भेलापर स्थानीय तौरपर व्यवहारक हेतु सिक्का बाहर करब।
श्रेणीकेँ समाज आ राज्यमे प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त छलैक। जातकक अनुसार भाण्डागारिकक कार्यक्षेत्र श्रेणीक निरीक्षण धरि सीमित छल। श्रेणीक नियमक मान्यता राजाकेँ देमए पड़इत छलन्हि। प्राचीन कालक सामूहिक जीवनमे एकर विशेष महत्व छलैक आ जातकक अनुसार मिथिलामे सेहो श्रेणीबद्ध सामूहिक जीवनक प्रमाण भेटइत अछि।
व्यापार एवँ उद्योग:- अति प्राचीन कालसँ मिथिलामे उद्योग आ व्यापारक काफी प्रगतिभेल छल। मिथिला चारू कात नदीसँ घेरल अछिये आ तैं आवागमनक कोनो असुविधा कहियो रहबे नहि केलैक। विदेहसँ तक्षशिला धरि राजमार्ग बनले छल। जातक सभ तँ मिथिलामे उद्योग–व्यापार सम्बन्धी कथा सभसँ भरल अछि। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी अवइत छलाह आ चीज बिक्रय करबाक हेतु श्रावस्तीक व्यापारी वैशाली आ विदेह मुख्य व्यापारक मार्गपर छल। राजगृह, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, वैशाली, कुशीनगर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती आ मिथिलाक बीच आवागमनक मार्ग प्रशस्त छल। कश्मीरसँ होइत गाँधार धरि मिथिलासँ सोझे एक सड़क अबइत छल जकरा मिथिलासँ उज्जैन, बनारस, चम्पा, ताम्रलिप्ति, कपिलवस्तु, इन्द्रप्रस्थ, शाकल, कुशावती, पाटलिपुत्र आदि स्थानक सड़कसँ सम्बन्ध छल। सामुद्रिक व्यापारकेँ इ लोकनि बड्ड महत्व दैत छलाह आ समुद्रमे चलए बला जहाजकेँ ‘वाहनम्’ कहैत छलाह। मैथिल लोकनि दक्षिणी चीनमे अपन एक साँस्कृतिक उपनिवेश सेहो बसौने छलाह आ ओतए किछु स्थानक नाम विदेह आ मिथिला सेहो रखने छलाह। रामायणमे वैशालीकेँ उद्योग व्यापारक केन्द्रक संगहि एकटा बन्दरगाह से कहल गेल अछि। चीन, तिब्बत आ नेपालक संग मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध छल।
सूती कपड़ाक कारबार ताहि दिनमे मिथिलामे बेसी होइत छल। बौद्ध साहित्यक अध्ययनसँ एहि पक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै–तंतु, ताँती, तंतभण्ड, तंत–वित्थनम्आदि शब्द ताँतीसँ सम्बन्धित काजक संकेत दैत अछि। मिथिलाक ‘कोकटी’ अखनहुँ प्रसिद्ध अछि आ तखनहुँ प्रसिद्ध छल। एकर अतिरिक्त मिथिलाक मुख्य उद्योगमे अवइत अछि चीनी, तेल, हड्डीपर कैल काज, धातु उद्योग, चमड़ा उद्योग, माँटिक बर्तनक उद्योग, वेंत, तारक पातक बनल वस्तु, सिलाई–फराई, इत्यादि। जहिना आई इ सब वस्तुक हेतु मिथिला प्रसिद्ध अछि तहिना प्राचीन कालहुमे छल। कुसियारक चर्च तँ तेरहम शताब्दीक तिब्बती यात्री सेहो कएने छथि। ढ़ोल, बाजा, आ अन्यान्य छोट–मोट उद्योगक निर्माण सेहो मिथिलामे होइत छल। युद्ध कालीन अस्त्र–शस्त्र सेहो बनैत छल आ कहल जाइत अछि जे लिच्छवीक विरूद्ध युद्ध शुरू करबाक कालमे अजातशत्रु रथ मूसलआ ‘महाशील कांतार’ सन यंत्रक व्यवहार केने छलाह। लिच्छवी लोकनि कुंकुम आ सुगन्धित द्रव्यक व्यापार करैत छलाह। कमार लोकनि काठपर तरह–तरहक कलाकारी करइत छलाह आ पाथर धातुक माला सेहो बनबैत छलाह। माँटिक सौन्दर्यपूर्ण वासन आदि बनैत छल आ ओहिपर तरह–तरहक पालिश आ कलाकारी होइत छल। माँटिक बासन एकटा कारी चमकैत पालिश होइत छल जकरा “नादर्न ब्लैक पालिश्ड वेयर” कहल जाइत छलैक आ जे समस्त भारतमे एकर माँग छल। मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ इ प्रचुर मात्रामे प्राप्त भेल अछि।
मिथिलामे कपूर, चानन, नोन, रेशमी, ऊन, अफीम, कागज, सोना, तामा, पाथर, चूना, आदि वस्तु बाहरसँ मंगाओल जाइत छल। व्यापारिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक सम्पर्क पूबमे ताम्रलिप्ति आ पश्चिममे भरूकच्छसँ छलैक। मिथिलासँ सभ प्रकार अन्न, दलहन आदि वस्तु बाहर जाइत छल। फल फलिहारी से बाहर पठाओल जाइत छल। व्यापारक दृष्टिकोणे निम्नलिखित पथ महत्वपूर्ण छल–
i) मिथिला–राजगीर
ii) मिथिला–श्रावस्ती
iii) मिथिला–कपिलवस्तु
iv) विदेह–पुष्कलावती
v) मिथिला–चम्पा
vi) मिथिला–सिन्धु
vii) मिथिला–प्रतिष्ठान
viii) मिथिला–ताम्रलिप्ति
ix) मिथिला–नेपाल–तिब्बत
स्थल मार्गक अतिरिक्त इ लोकनि समुद्र मार्गक व्यवहार सेहो करैत छलाह। गण्डकसँ गंगा आ चम्पाक मार्ग बाटे इ लोकनि ताम्रलिप्ति धरि पहुँचैत छलाह आ ओहिठामसँ सुवर्ण भूमि आ अन्यान्य स्थानपर जाइत छलाह। जातकक कथासँ इ ज्ञात होइछ जे सिन्धुक घोड़ाक व्यवहार मिथिलामे होइत छल आ सिन्धुक सम्पर्क भेलासँ मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध पश्चिमोसँ घनिष्ट हैव बुझि पड़इयै। भारतक व्यापारी लोकनि वेविलोन धरि जाइत छलाह तैं संभव जे मैथिल व्यापारी सिन्धु बाटे आन व्यापारी सब संग ओम्हर जाइत होथि। प्रशस्त स्थल आ समुद्र मार्गक कारणे मिथिलाक व्यापारिक प्रगति अपन उत्कर्षपर छल आ जातक एकर सबूत अछि। (एहि विषयपर विस्तृत अध्ययनक हेतु देखु–मुहम्मद अकीकक लिखल–“इकोनौमिक हिस्ट्री आफ मिथिला”)।
मौर्य युगकेँ मंगलकारी राज्यक युग कहल गेल छैक। एहि युगमे जनताक सर्वांगीण आर्थिक जीवनक नियंत्रण राज्यक माध्यमसँ होइत छल। खान इत्यादिपर राज्यक प्रभुत्व छल। राज्यक जमीन आ कृषि कार्यक निरीक्षणक हेतु अधीक्षक नियुक्त होइत छलाह। राज्यक प्रत्येक विभागक हेतु अलग–अलग निरीक्षक रहैत छलाह। राज्यक दिसिसँ कृषिकेँ विशेष महत्व देल जाइत छलैक आ जनकल्याणकेँ ध्यानमे राखि इ स्वाभाविको छल। बंजर जमीन सभमे खेती करबाक हेतु शूद्र लोकनिकेँ बसाओल जाइत छलैक। पुरोहित आ विद्वान ब्राह्मण लोकनिकेँ दानमे जमीन भेटइत छलैक। सिंचाई–पटौनी आ मालक व्यवस्था राज्यक दिसिसँ होइत छलैक। प्राकृतिक उपद्रवसँ बचबाक हेतु राज्यक दिसिसँ सब प्रबन्ध होइत छल। गाम सभमे सहयोग समितिक व्यवस्था सेहो छल आ केओ एहिमे सम्मिलित नहि होइत छलाह हुनका दण्डित कैल जाइत छल। उद्योग, व्यापार आ वाणिज्य सेहो प्रगतिक पथपर छल। प्रशस्त राजमार्गक व्यवस्थासँ व्यापारक प्रगतिमे सहायता भेटइत छलैक। बाजारमे निर्धारित मूल्यपर सब वस्तुक बिक्री होइत छल आ मूल्य नियंत्रण आ वेतन निर्धारणक सिद्धांतक प्रतिपादन आइसँ २३००वर्ष पूर्व कौटिल्य केने छलाह। जे केओ राज्यकर देबामे असमर्थ छलाह हुनका ओहि बदलामे बेगारी करए पड़ैत छलन्हि। व्यापारीकेँ पूर्ण मात्रामे कर देमए पड़इत छलन्हि।
गुप्त युगमे कोनो विशेष परिवर्त्तन देखबामे नहि अवइयै। कृषि, उद्योग, व्यापारक प्रगति अहुयुगमे भेल। वैशालीसँ प्राप्त मुद्रा एहि युगक आर्थिक जीवनपर प्रकाश दैत अछि। फाहियान आ हियुएन संगक यात्रा विवरणसँ इ ज्ञात होइछ जे मिथिलाक आर्थिक अवस्था ओहि युगमे बेजाय नहि छल। एहि युगमे सामंतवादी प्रथाक विकास भेल। लोककेँ आब जमीन्दारी प्रथाक अनुभव होमए लागल छलन्हि। जनताक विशिष्ट समूह अहुखन गामेमे बसैत छल आ कृषि आजीविकाक प्रधान आधार छल। ‘कर’क मात्रामे हेर–फेर आब जमीनक अनुसारे हैव प्रारंभ भेल। जाहिठाम पटौनीक व्यवस्था छल ताहिठाम कर बेसी लगैत छलैक आ वंजर जमीनक कम। हियुएन संगक अनुसार एहिठामक किसान परिश्रमी होइत छलाह आ अधिक अन्न उपजबैत छलाह। जमीन मूलरूपसँ तीन भागमे बाँटल जाइत छल–
i) गोचर–जाहिमे भिन्न प्रकारक घास उपजैत छल।
ii) बंजर–कोनो प्रकारक उपजा नहि होइत छल।
iii) उपजाऊ।
हाटक व्यवस्था सेहो प्रारंभ भऽ गेल छल। हाटक निरीक्षणक हेतु ‘हट्टपति’ नामक एकटा अधिकारी सेहो नियुक्त होइत छलाह। ब्राह्मणआ क्षत्रियकेँ कर रहित जमीन दानमे भेटइत छलन्हि। एहि युगमे जमीन छोट–छोट टुकड़ामे बँटि चुकल छल। भूमि नापबाक प्रणाली प्रचलित भऽ चुकल छल आ गुप्तयुगमे एकरा कुलवाप्य कहल जाइत छल। अन्न नापबाक प्रणाली सेहो प्रचलित भऽ चुकल छल आ ओकरा ‘द्रोण’ कहल जाइत छलैक। खेतीबारी हरसँ होइत छल।
एहि युगमे व्यापारक प्रगति सेहो खूब भेल छल। एहियुगमे बहुतो गोटए मिथिलासँ काशी जाइत छलाह। सिक्काक रूपमे कौड़ीक प्रचलन सेहो भऽ चुकल छल। लहना–तगादाक वेश बढ़ल–चढ़ल छल आ सूदक दर ९% सँ १२% धरि छल। भोजन वस्त्रक सामग्री एकठामसँ दोसर ठाम पठाओल जाइत छल। कैक प्रकारक आभूषण बनाओल जाइत छल। एक स्थानसँ दोसर स्थान सामान बैलगाड़ी आ नावपर पठाओल जाइत छल। आ सभपर चूंगीकर सेहो लगैत छलैक। एक बैलगाड़ीपर बीस बोझसँ बेसी सामान लदलासँ दू टाका शुल्क लगैत छल। किराना वाला बैलगाड़ीपर एक टाका शुल्क लगैत छल। कथा सरित्सागरसँ ज्ञात होइत अछि जे काशीक चारूकात रस्ताक जाल बिछाओल छल। पुण्ड्रवर्द्धनसँ पाटलिपुत्र धरि मिथिले बाटे रस्ता छल। एहि सबसँ स्पष्ट होइछ जे प्राचीन मिथिला सब तरहे सम्पन्न छल। आ देश–विदेशसँ ओकर सम्पर्क बनल छलैक। सामान्य मनुक्खक जीवनमे कोनो विशेष परिवर्त्तन नहि भेल छलैक। धनी लोकनि अपना धनकेँ गारिकेँ रखैत छलाह।
मध्ययुगीन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक जनबाक हेतु साधनक अभाव अछि तथापि तत्कालीन साहित्यक अध्ययनसँ हमरा लोकनिकेँ पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होइछ। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकरमे एहि युगक आर्थिक स्थितिक विवरण भेटइत अछि। ओहि ग्रंथसँ इ प्रतीत होइछ जे ताहि दिनमे मिथिलाक ग्रामीण स्वर प्राञ्जल भऽ उठल छल। चाउर, जौ, विभिन्न प्रकारक दालि, बाजरा, मटर, तेलहन, कुसियार, रूई, पिआज, लहसून, दाना इत्यादि मिथिलामे प्रचुर मात्रामे उपजैत छल। चूड़ा आ चाउरक भूजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। सोआ, मेथी, मंगरैल आ सोंफक खेती सेहो होइत छल। आम, खजूर, नेमो, नारंगी, अनार, अंजीर, जामून, कटहर, सपाटु, लताम, पपीता आदि फलक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। चूड़ा दहीक प्रथा विशेष प्रचलित छल। अन्न रखबाक हेतु बखारी बनैत छल। चीनी आ गूड़क प्राचुर्य छल। एहिठामसँ मधु नेपाल जाइत छल। ताड़ी–दारू सेहो बनैत छल। महुआक दारू बड्ड प्रचलित छल। पानक बड़का व्यवसाय मिथिलामे होएत छल। पान लगेबाक विधिपर ज्योतिरीश्वरतँ विभिन्न प्रकारक विधानो बतौने छथि। ओहिमे तरह–तरहक मशाला पड़इत छलैक आ ओ सभ मशाला देशक विभिन्न भागसँ मँगाओल जाइत छलैक।
तीस प्रकारक वस्त्रक वर्णन ज्योतिरीश्वर स्वयं कएने छथि। दामी वस्त्रक अंगपोछा बनैत छल। ओ रंगरेज आ मुशहरीक उल्लेख सेहो कएने छथि। विभिन्न प्रकारक धातुसँ अनेकानेक प्रकार बासन–बर्त्तन बनैत छल। वर्णरत्नाकरमे अष्ट धातुक उल्लेख सेहो भेल अछि लोहा आ अन्यान्य धातु गलेबाक कलामे मैथिल निपुण होइत छलाह। एहिठामक लोहार लोहा गलाकेँ हर, खुरपी, कैंची, चक्कू, कुरहड़ि आदि बनबैत छलाह। खपरैल घरक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। कमार लोकनि काठक अनेको वस्तु बनबैत छलाह। ज्योतिरीश्वर ३६प्रकार शस्त्रास्त्रक उल्लेख केने छथि।
वर्णरत्नाकरसँ ज्ञात होइछ जे मैथिल लोकनि तंजोर, सिलहट, अजमेर, काँची, चोलप्रदेश, कामरूप, बंगाल, गुजरात, काठियावाढ़, तेलंगना, आदि स्थान सभसँ अपन वस्त्र मंगबैत छलाह। ओहिमे श्रीखण्ड, मलय आ सूरतक उल्लेख सेहो अछि। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि सिद्धहस्त छलाह। एकर विवरण धर्मस्वामी सेहो उपस्थित केने छथि। नाव सबमे सिंह, बाघ, घोड़ा, बत्तक, साँप, माँछ आदिक चेन्ह रहैत छल। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि अपन सौन्दर्यबोधक परिचय दैत छलाह।
स्वास्थ्यपर सेहो विशेष ध्यान देल जाइत छल। मिथिला ताहिदिनमे दूध दहीक हेतु प्रसिद्ध छल आ ओहिठाम लोग स्वस्थ होइत छल। देहक श्रृंगारक संग देहक सेवाक विन्यास सेहो छल। देह मालिश कएनिहारकेँ मरदनिया कहल जाइत छलैक। भोजनमे गरम मशालाक प्रयोग होइत छल। आ शरीरक सौन्दर्यक हेतु अगुरू, कर्पूर आदिक व्यवहार प्रचुर मात्रामे होइत छल। जीवनक एहन कोनो अंश अथवा सौन्दर्य सामग्रीक एहेन कोनो अवयव नहि जकर उल्लेख वर्णरत्नाकरमे नहि हो। पंचशायकमे एक दिसि स्त्रीक प्रसाधनक सभ विषयक वर्णन अछि तँ दोसर दिसि परिवार नियोजन आ गर्भ निरोधक तकक विधि लिखल अछि। कामसूत्रसँ कोनो अंशमे एहि ग्रंथक महत्व कम नहि अछि। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकर, पंचशायक आ विद्यापतिक कीर्तिलता एवँ लिखनावली पढ़लासँ बहुत बातक ज्ञान होइछ।
विद्यापतिक लिखनावलीसँ इ ज्ञात होइत अछि जे राजस्वकर सेहो वसूल होइत छल। भूमि नपबाक उल्लेख सेहो ओहिमे अछि। दानपत्रक सूची सेहो राखल जाइत छल। एहि ग्रंथमे ऋण–पत्र, खेती–व्यवस्थापत्र, बन्धकी–व्यवस्थापत्र आदिक विवरण भेटइत अछि। दानवाक्यावलीमे राहरि, साठी आ लतामक चर्च अछि आ ओहिमे कैक प्रकारक वस्त्रक उल्लेख सेहो भेल अछि–कार्पासिक वस्त्र, समेम वस्त्र, क्षौम वस्त्र, कौशेय वस्त्र, कुश वस्त्र, कृमिज वस्त्र, मृगलोमजवस्त्र, वृक्षावक् संभव वस्त्र आ आविक वस्त्र। कीर्तिलतामे बाजार, हाट, नगर, आदिक विशिष्ट वर्णन अछि। बजारमे पनहट्टा, धनहट्टा, सोनहट्टा, पकवानहट्टा, मछहट्टा इत्यादिक उल्लेख अछि। ओहि ग्रंथमे दरिद्रताक उल्लेख सेहो अछि। तत्कालीन दरिद्रताक विवरण ओहिमे अछि। कीर्तिपताकामे विद्यापति कहने छथि जे राजाक मुख्य कर्त्तव्य होना चाही दरिद्रताकेँ खतम करब। ऋणक उल्लेखो कीर्तिलतामे अछि आ दरिद्रताक विवरण तँ पदावलीक कतेको गीतमे। आर्थिक इतिहासक दृष्टिकोणसँ इ युग अखनो एकटा विशिष्ट अध्ययनक अपेक्षा रखइयै कारण ने तँ उपेन्द्र ठाकुर आ ने मोहम्मद अकीक एहि कालपर कोनो प्रकाश देने छथि। थोड़ बहुत विवरण हम मिथिला इन द एज आफ विद्यापतिमे कैल अछि। मुसलमानी प्रसारसँ आर्थिक जीवनक रूपरेखामे सेहो थोड़ेक परिवर्त्तन भेलैक मुदा तइयो मैथिल अपन कट्टरताक कारणे आन प्रांतक अपेक्षा एहिठाम अपनाकेँ फराके रखलन्हि आ अपन विधि–विधानकेँ यथाशक्ति सुरक्षित सेहो।
मुसलमानी शासन कालमे मिथिलाक आर्थिक जीवनमे कोनो विशेष उल्लेखनीय प्रगति नहि भेलैक अपितु स्थिति यथावते रहलैक। शाहजहाँक समयमे जखन समस्त भारतमे अकालक स्थिति उत्पन्न भेलैक तँ मिथिलो ओहिसँ वाँचल नहि रहल। कास्तकार आ सामान्य किसानक स्थिति बड्ड दयनीय भऽ गेलैक। तिरहूतमे ताहि दिनमे बंजारा लोकनिक उपद्रव जोरपर छल। बरनिअरक यात्रा विवरणसँ ज्ञात होइछ जे बंजारा समस्या उभरिकेँ ऊपर आएल छल आ ओकरा दबेबाक हेतु संगठित प्रयास भऽ रहल छल। कृषक लोकनिक स्थिति बदत्तर भऽ गेल छल आ औरंगजेबक परोक्ष भेलापर तँ स्थिति आर चिन्तनीय आ दयनीय भऽ गेल छल। भारतमे अंग्रेज आ अन्यान्य विदेशी लोकनिक कारबार आ व्यापार शुरू भऽ गेल छल आ शोषण प्रक्रियामे एकटा नव गति आबि गेल छलैक। १७५७मे पलासीक लड़ाईक बादक स्थितिकेँ भारतीय अर्थनीतिक इतिहासमे अंधकारपूर्ण कहल गेल अछि। अंग्रेज, मुसलमानी अमला–फैला, हिन्दू–जमीन्दार, बंजारा, सन्यासी सभ मिलिकेँ जनताकेँ लूटबामे लागल छल आ संगहि अपन–अपन जेबी गरम करबामे। देशक चिन्ता ककरोनहि छलैक। चारूकात हाहाकार आ अकालक स्थिति छल। १७५७क पछातिमे मिथिलामे बरोबरि अकाल पड़इत रहल। बेकारीक समस्या उत्पन्न भऽ गेल। कृषि आ उद्योगक स्थिति दिन–प्रतिदिन खसए लागल। तिरहूतक गामक गाम उजार होमए लागल।
१७७०मे बड़का अकाल पड़ल आ ओहिठामक लोग खेती बारी छोड़िकेँ पड़ाए लागल। ओहि वर्षमे दरभंगाक विशेष भागमे चासक कोनो काज नहि भऽ सकल आ स्थिति एहेन भऽ गेल जे १७८३मे दरभंगाक कलक्टर एहि आशयक प्रस्ताव रखलन्हि जे अवध प्रांतसँ खेतिहर मंगाकए दरभंगामे खेतीक व्यवस्था कैल जाइक। एहि अकालक कारण मुजफ्फरपुरक कलक्टरीसँ प्राप्त कागज सभसँ ज्ञात होइछ। हाजीपूरसँ पुर्णियाँ धरि अभूतपूर्व अकाल पड़ल छल। एकर मुख्य कारण इ छल जे सरकार अकारण सभ बातमे हस्तक्षेप करैत छल, आवागमन एवँ यातायातक असुविधा छल आ ताहि दिनमे केओ एहेन योग्य नेता नहि छलाह जे एहि सभहिक निराकरणक कोनो प्रयास करितैथि। एहेन अराजक स्थितिमे जकरा जतए जे हाथ लगैक से सैह करे आ जमीन्दारी अत्याचार आ शोषणक तँ कोनो कथे नहि छल। १७८२मे बाध्य भऽ कए इ नियम बनबे पड़लैक जे बिना अंग्रेजी सरकारक अनुमतिकेँ केओ जमीन्दार अपन जमीनकेँ एम्हर–ओम्हर नहि कऽ सकइयै। वार्थहस्ट्र साहेब १७८७मे तिरहूतक शासक भेला। दरभंगाक महाराज आ इस्ट इण्डिया कम्पनीक बीच एहि प्रश्नकेँ लऽ कए बरोबरि झंझट होइते रहलन्हि (देखु–हमर ‘द खण्डवलाज आफ मिथिला’)। स्थिति एहेन विभत्स भऽ गेल छल जे परगन्ना पचही, आलापुर आ भौरमे किछु उपजावारी नहि होइत छल आ इ सभ जंगलमे परिवर्त्तित भऽ गेल छल। एहि सभ क्षेत्रमे जंगली जानवरक वास भऽ गेल छल। अंग्रेजकेँ अपन राज्यक सुरक्षाक चिंता छलन्हि आ जमीन्दार लोकनिकेँ अपन सम्पत्तिक आ बीचमे पिसाइत छल दरिद्र जनता जकरा हेतु चारूकात अन्हारे अन्हार छलैक। सरकार आ जमीन्दारक अतिरिक्त महाजन लोकनि सेहो निर्दय भऽ कए जनताक पसीनाक कमाई छीन लैत छलैक।
मानव–कृत शोषण यंत्रकेँ साहाय्य देनिहार प्रकृति सेहो छलैक। अतिवृष्टि आ अनावृष्टि तँ अपन रूप देखिबते छल आ ताहिपर नदीक बाढ़ि तँ अपन नङटे नाच देखिबते छल। मिथिलामे नदीक तँ अभाव अछि नहि आ प्रति वर्ष एकर बाढ़ि अखने जकाँ ताहि दिनमे अबैत छल। गंगा, गण्डक, वाग्मती, कमला, कोशी, बलान, करेह, लखनदै आदि नदीक बाढ़ि बरसातमे तीन मास धरि मिथिलाकेँ समुद्रमे बदैल दैत छलैक जाहिसँ एकर आर्थिक जीवन अस्त–व्यस्त भऽ जाइत छलैक। कोशीकेँ तँ सहजहि ‘दुखक नदी’ कहले गेल अछि। एहिसँ सब फसिल नष्ट भऽ जाइत छल, महामारीक प्रकोप बढ़ैत छल आ आवागमन एवँ यातायातक सुविधा लुप्त प्राय भऽ जाइत छल। एहना स्थितिमे बरोबरि अकाल हैव स्वाभाविके–१५५५सँ १९७५धरि मिथिलामे कतेको बेर अकाल पड़ल अछि आ महामारीक प्रकोप बढ़ल अछि–१५७३–७४, १५८३–८४, १५व९५–९६, १६३०, आ अंग्रेजक समय १७७०सँ १९००क बीच १५–२०बेर अकालक दर्शन लोककेँ भेल छलैक। १६३०क अकाल तँ अद्वितीय छल। ओहि साल मिथिलासँ बहुत रास लोगकेँ दोसर ठाम चल गेल छल। मिथिलामे बाढ़ि तँ वार्षिक क्रम जकाँ अबैत अछि आ एहेन शायद कोनो वर्ष होएत जाहिमे बाढ़ि नहि आएल हो। बाढ़ि आ अकाल मिथिलाक आर्थिक इतिहासक एकटा अभिन्न अंग मानल जाइत अछि।
१७७०क अकाल मिथिलाक इतिहासमे अद्वितीय छल आ मिथिलाक जनसंख्या घटिकेँ एक दम्म कम्म भऽ गेल छल। १८७३–७४मे पुनः एकटा ओहने अकाल मिथिलामे भेल छल जकर विवरण हमरा फतुरी लाल कविक अकाली कवितसँ भेटइयै–अकाली कवित अप्रकाशित अछि। अकालकेँ दूर करबाक हेतु आ मजूरकेँ राजे देबाक हेतु ताहि कालकेँ रेलगाड़ीक योजना चलाओल गेल जकरा सम्बन्धमे फतुरीलाल लिखैत छथि–
“कम्पनी अजान जान कलनको बनाय शान।
पवन को छकाय मैदानमे धरायो है॥
छोड़त है अड़ादार बड़ा बीच धाय–धाय।
सभेलोग हटाजात केताजात खड़ा है॥
तारकी अपारकार खबरि देत वार वार।
चेत गयो टिकसदार रेल की उवाई है॥
करत है अनोर शोर पीछे कत लगत छोर।
जोर की धमाक से मशीन की बड़ाई है॥
कम्पूसन पहरदार कोथी सब अजबदार।
कोइला भर करल कार धूआँसे उड़ायो है॥
बाजा एक बजन लाग हाथी अस।
पिकन लाग जैसा जो चढ़नदार वैसाधर पायो है॥
गंगाकेँ भरल धार उतरि गयो फतूर पार गाड़ीकी।
अजबकार कवित्त यह बनाया है”॥
अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़ि, अभाव, एवँ प्राकृतिक प्रकोपसँ मिथिलाक आर्थिक जीवन परम्परागत रूपें प्रभावित रहल अछि आ अहुखन अछिये।
अंग्रेजक अमलमे आबिकेँ जखन रेलगाड़ीक सुविधा बढ़ल आ आवागमन एवँ यातायात आ संचार व्यवस्थामे सुधार भेल तखन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक रूपरेखामे परिवर्त्तन हैव स्वाभाविक भऽ गेल। उद्योग आ व्यापारक प्रगति सेहो भेल परञ्च ओकरा अखनो पर्याप्त नहि कहल जा सकइयै। प्राचीन कालहि मिथिलामे उद्योग–व्यापार विकसित अवस्थामे छल आ मध्य कालक विशिष्ट भागमे एकर से स्थिति बनल रहलैक मुदा इस्ट–इण्डिया कम्पनीक समयमे आबिकेँ एहिमे थोड़ेक ह्रास अवश्य भेलैक। खाद्य सामग्रीक अतिरिक्त मिथिलाक क्षेत्रमे कुसियार, तम्बाकु आ पाट आ मिरचाई बेस मात्रामे उपजैत अछि एहि लऽ कए मिथिलाक व्यापारो अछि। सब प्रकारक खादीक कपड़ा सेहो एहिठाम बनैत अछि। कोकटीक हेतु तँ मिथिला सर्वप्रसिद्ध अछिये। मिथिलामे व्यापारक प्रसिद्ध केन्द्र छल–हाजीपुर, लालगंज, बगहा, गोविन्दपुर, सतराघाट, दरभंगा, कमतौल, खगड़िया, रोसरा, पूसा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, रानीगंज, नबाबगंज, नाथपुर, साहेबगंज, राजगंज, रामपुर, अलीगंज, खबासपुर, दुलालगंज, कलियागंज, देवगंज, किसनगंज, बहादुरगंज, बारसोई, बेगूसराय, तेघड़ा, दलसिंहसराय इत्यादि। एहिमे नाथपुर तँ अंतराष्ट्रीय व्यापारक मुख्य केन्द्र छल जाहिठाम प्रचुरमात्रामे नेपाली लोकनि सामान लऽ कए अबैत छलाह आ एहिठामसँ सामान लऽ कए जाइत छलाह। अंग्रेजक अमल धरि नाथपुर एक प्रख्यात व्यापारिक केन्द्र छल। १८३६ नारेदिगर आ नाथपुरक सर्वेक्षण अंग्रेज द्वारा कैल गेल जकर रेकर्ड सम्प्रति सुरक्षित अछि। सिन्दूर, कागज, आ अफीमक व्यापार बेस होइत छल। अफीमक कारखाना विदुपुर, लालगंज, दरभंगा, वैगनी नवादा, आदि स्थानमे छल। पाटक कारबार पुर्णियाँ आ सहरसामे सबसँ बेसी होइत छल आ नीलक सम्बन्धमे पूर्ण विवरण हम पूर्वहिं दऽ चुकल छी।
एतवा होइतहुँ मिथिलामे २०म शताब्दीमे कोशीक प्रकोपक बढ़लासँ आर्थिक स्थिति दयनीय भऽ गेल छल। रेलमार्ग सबटा टूटि फाटि गेल, गामक गाम उजरि गेल छल। नाथपुरक व्यापारिक महत्व नष्ट भऽ गेल छल आ जे प्राचीन उपलब्धि आर्थिक दृष्टिकोणे मिथिलाक छल से आब इतिहासक वस्तु बनिकेँ रहि गेल। राष्ट्रीय आन्दोलन आ स्वदेशीक पुनरूत्थानक क्रममे कोकटीक हेतु प्रसिद्ध तिरहूत (मिथिला)केँ पुनः अखिल भारतीय खादीक प्रधान केन्द्र बनाओल गेल आ मधुबनीमे एकर मुख्यालय राखल गेल। बहुत गोटएक गुजर एखनो एहिसँ चलि रहल अछि। १९५५मे कोशीकेँ बन्हबाक प्रयास भेल आ वीरपुरमे कोशी बैरेजक निर्माण भेलासँ दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ आ उत्तर मूंगेर आ भागलपुर पूर्णतः लाभान्वित भेल अछि। मिथिलामे आ सब नदीकेँ जँ बान्हल आ नियंत्रित कैल जाइक तँ मिथिलाक आर्थिक स्थितिक रूप रेखा बदलि जेतैक। पूर्णियाँ–सहरसा जतबे कष्ट कोशीक कारणे भोगने छल अखन ततबे सुभ्यस्त आ सम्पन्न भऽ गेल अछि। स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र जखन रेल मंत्री बनलाह तखन ओ एहि सभ क्षेत्रक टुटल फाटल रेलवे लाइनकेँ चालू करौलन्हि। एहिसँ एहि क्षेत्रक आर्थिक विकासक संभावना आ बढ़ि गेल आ दुर्भाग्यक गप्प इ एहने एक लाइनक उद्घाटनक हेतु जखन ओ ०२/०१/७५केँ समस्तीपुरमे पहुँचलाह तँ ओतए एक संदिग्ध स्थितिमे बम बिस्फोटक कारणे मारल गेलाह।
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