भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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शिव कुमार झा “टिल्लू”- किस्त-किस्त जीवन-शेफालिका वर्मा-(समीक्षा)
साहित्य समाजक दर्पण होइत अछि आ साहित्यकार ओहि दर्पणक शिल्पी। शिल्प जतेक विलक्षण हएत छाया ततेक साफ। कोनो साहित्यक अध्ययनसँ रचनाकारक मनोवृत्ति स्पष्ट होइत अछि। मैथिली साहित्यक संग ई विडंवना रहल जे एहिमे वाल साहित्य, अर्थनीति आ आत्मकथाक विरल लेखन भेल। मात्र किछु साहित्यकार एहि विधामे अपन लेखनीक प्रयोग कएलनि। ओहि विरल साहित्यकारक गुच्छमे एकटा नाम अछि- डॉ. शेफालिका वर्मा।
शेफालिका जीक रचना सभमे पारदर्शिता रहल ओ जे हृदएसँ सोचैत छथि ओकरा अपन कृति उतारि दैत छथि। हुनक रचनामे अर्न्तमनक ध्वनि स्पष्ट सुनल जा सकैत अछि। कतहु अर्न्तद्वन्द्व नहि, कतहु पूर्वाग्रह नहि। हुनक किछु कृति- विप्रलब्धा, अर्थयुग स्मृति रेखा, यायावरी आ भावांजलि पढ़लाक वाद हुनक जीवनक वास्तविक रूपक दर्शन कएल जा सकैत अछि। अपन रचना सभकेँ एकसूत्रमे सहेजि कऽ अपन आत्मकथा लिखलन्हि “किस्त-किस्त जीवन” अप्रत्याशित मुदा, प्रासंगिक नाम। जीवनक कतेक रूप होइत अछि, बाल, वयस्क, प्रौढ़.... सुख-दुख, काम निष्काम यएह थिक एहि रचनाक सार। अपन करूणामयी जीवनक बून-बूनकेँ ऑंजुरमे एकत्रित कऽ आत्मकथा लिखलन्हि।
आमुखसँ स्पष्ट होइत अछि जे ओ नित डायरी लिखैत छथि तेँ अपन किस्त-किस्तक अनुभवकेँ वटोरि लेलनि। वाल-कालक गणित विषयक समस्या हो वा संगीत शिक्षक पंडित वाजपेयी जीक व्यवहारक मूक विश्लेषण सभ विन्दुपर पोथिक फुजल पन्ना जकॉं स्पष्ट प्रस्तुति। युवती वएसमे प्रवेश करैत काल कोनो अनचिनहार युवकक नजरि देखि कऽ अपन ब्रह्मास्त्रक (थूक फेकवाक) प्रयोग करैत छलीह। ओना एहि अस्त्रक शिकार विवाहसँ पूर्व ललन बावू सेहो भेल छलाह, जिनका संग ओ दाम्पत्य सूत्रमे बान्हल गेलीह। नव प्रकारक रक्षा सूत्रक विषए मे पढ़ि अकचका गेलहुँ, नीक नहि लागल मुदा, एहिसँ रचनाक प्रासंगिकतापर प्रश्नचिन्ह नहि लगाओल जा सकैत अछि।
प्रवेशिका उत्तीर्ण कएलाक पश्चात शेफालिका जी पढ़ए नहि चाहैत छलीह। ललन बावूक विशेष प्रेरणासँ जहिना- तहिना स्नातक धरि शिक्षा ग्रहण कएलनि। तत्पश्चात् घर-गृहस्थी आ साहित्य साधनामे लीन भऽ गेली। साहित्यमे विशेष योगदानक लेल दरभंगामे डॉ. दिनराजी शाण्डिल्य द्वारा “विद्या वारिधी” सम्मानसँ सम्मानित कएल गेली। एहि सम्मानकेँ पावि भाव-विभोर भऽ मिथिला मिहिरकेँ अपन मनोदशा पठौलन्हि। मिथिला मिहिर द्वारा हुनक हस्त-लिपिकेँ यथावत् प्रकाशित कए देल गेल। मिथिला मिहिरक “होली विशेषांक”मे हिनक रचनाक रचनाकारक नाम देल गेल “दिन राजी डॉ शेफालिका वर्मा।” एहि मजाकसँ शेफालिका जी कॉपि गेली आ 18 वर्खक मौनव्रतकेँ तोड़ि पुन: शिक्षा ग्रहण करवाक लेल आतुर भऽ गेली। परिणाम सोझाँ अछि- एम.ए., पी.एच.डी प्राध्यापक डॉ. शेफालिका वर्मा। अपन सम्पूर्ण जीवनमे प्रेमकेँ जीवाक आधार मानि जीवि रहल छथि- रजनी जी। आरसी बावूक शेफालिका- कोना रजनीसँ शेफाली वनि गेली एहि रचनामे झॉंपल अछि। प्रेमक सभ रूपकेँ अर्न्तमनसँ स्वीकार करव हिनक जीवन दर्शन अछि। राजनीतिसँ दूर रहलीह, जखन की किछु प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ हिनका लग नतमस्तक रहैत छलाह। डार्विनवार “उपार्जित लक्षणक वंशावलि”क आधारपर एना संभव भेल। पिता स्व. मल्लिक साहित्कार आ सरल व्यक्तित्व छलाह। हिनक पति ललन बावू साहित्यकार तँ नहि छलाह परंच शेफालिका जीक साहित्यक सभसँ पैघ पाठक। अपन पति द्वारा निरंतर पग-पगपर संग देवाक कारण हिनका जीवनसँ कोनो शिकाइत नहि अछि। “जीवनक डोरि फूजि उड़ल व्योममे कातर प्राण मुदा जीवै छी।”
आव प्रश्न उठैत अछि जे हुनक आत्मकथासँ समाजकेँ की भेटत वा की भेटल? कोनो व्यक्ति ओ महान हो वा नहि हो ओकर जीवनसँ शिक्षा लेल जा सकैत अछि। शेफालिका जी तँ मर्मज्ञ छथि जीवनक मर्मज्ञ, साहित्यक मर्मज्ञ आ सिनेहक मर्मज्ञ। पुरूष प्रधान समाजमे नारीक एहेन दृढ़ता देखि वर्तमान कालक बालाकेँ अवश्य नव दिशा भेटत।
हुनक जीवन दर्शनकेँ कण-कणमे समा लेलहुँ, भाषा मनोरम आ प्रवाहमयी अछि।
एतेक अविराम कृति रहलाक पश्चात् एहिमे किछु त्रुटिक दर्शन सेहो भेल। शेफालिका जी अपन जीवनक कचोटकेँ नुका लेली। ओ फूजल मानसिक प्रवृतिक महिला छथि, चरित्र उत्तम मुदा, पारदर्शी। सहज अछि जे एहिसँ हुनका किछु सामाजिक उपहासक अनुभव अवश्य भेल हेतनि। साहित्यकारक रूपमे उपेक्षाक शिकार अवश्य भेल हेती तकर मौन व्याख्या तँ कएल जा सकैत छल मुदा, नहि कएल गेल। भऽ सकैत अछि ओ मैथिल समाजक मध्य कोनो अनुत्तरित प्रश्न नहि उठवए चाहैत छथि। सम्पूर्ण सार अछि जे रचना सारगर्भित ओ सोहनगर लागल। शेष.....अशेष.......।
पोथीक नाम- किस्त-किस्त जीबन
रचनाकार- डॉ. शेफालिका वर्मा
प्रकाशक- शेखर प्रकाशन, इन्द्रपुरी पटना-14
मूल्य- 300टाका मात्र
प्रकाशन वर्ष- 2008
कुल पृष्ठ- 320
शमीक्षक- शिव कुमार झा “टिल्लू”
जमशेदपुर
२
डॉ. बचेश्वर झा
जन्म- १५ मार्च १९४७ईं
एम.ए.-पी.एच.डी.
पूर्व प्रधानाचार्य,
निर्मली महाविद्यालय निर्मली।
समीक्षा
(मौलाइल गाछक फूल)
‘मौलाइल गाछक फूल’क लेखक श्री जगदीश प्रसाद मंडलकेँ हम साधुवाद दैत छियन्हि जे हिन्दी आ राजनीति शास्त्रमे एम.ए.क अर्हता प्राप्त होइतहुँ अपन मातृभाषाक प्रति अटूट सिनेह राखि मैथिलीमे लेखन करबाक भगिरथी प्रयास कएल अछि। ओना तँ मैथिलीमे अनेकानेक साहिन्यकार लोकनि चेष्टा कएल अछि। हुनका लोकनिक भाषामे फेंट-फॉंट भेटल अछि, किन्तु मौलाइल गाछक फूलमे सुच्चा लोकभाषाक प्रयोग भेटैत अछि। प्रान्जल भाषा गमैया भाषाक आगॉं घुटना टेक दैत अछि, जन साधारण अल्पो शिक्षितकेँ गुद-गुदीक संग विषय अन्तस्थलीकेँ छुवि लैत अछि। वैचारिक दृढ़ता एवं हार्दिक मृदुलताक अद्भुत समाहार जगदीश जीमे विरल अस्तित्वक परिचए दैछ। उपन्यासक प्रत्येक लेखपर माने उपकथापर दृष्टि दैत छी तँ स्पष्ट प्रतीत होइछ जे एकर लेखक जेना प्रत्यक्षदर्शी भऽ विषयक निरूपण कएल अछि।
लेखक जगदीश प्रसाद मंडल जीक प्रयास आ आयास दुनू साराहनीय छन्हि। हम मॉंमैथिलीसँ प्रार्थना करैत छी जे हिनकामे स्फूरना बनल रहन्हि जाहिसँ मैथिली साहित्यक सम्वर्ध्दन होइत रहए।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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