१.राजदेव मंडल-लघुकथा-एलेक्सनक
भूत २.प्रो. वीणा ठाकुर-लघुकथा-
परिणीता ३.मनोज कुमार मण्डल- लघुकथा-घासवाली ४.कपिलेश्वर राउत- विहनिकथा-सलाह
१
राजदेव मंडल
लघुकथा-
एलेक्सनक
भूत
निन्नक
निशामे मातल सूतल छी आ सपना देखि रहल छी। जुलूस जा रहल अछि। इनक्लाब जिन्दाबाद.....।
राजनीतिक
पार्टी आ पाटीक तरफसँ ठाढ़ नेताक लेल वोट माँगएबला जुलूस। आगूमे नेताक बदला प्लाईवुडक
आदमकद फोटो। दुनू जाँघक बीच मोटका लाठी धोंसिया कऽ फोटोकेँ ऊपर उठौने। गर्दमिसान
करैत भीड़ निकट आबि रहल अछि। “जितबे करता- जितबे
करता, हमर नेता जितबे करता। नेताजीकेँ मारि कऽ गोली, बन्न नै कऽ सकत हमर बोली।”
भीड़मे
एक दोसरासँ पूछैत अछि- “नेता जीकेँ गोली लगि गेलै की?”
“हँ
भाय, साँझमे। गोली तँ अजमा कऽ छातीमे मारलकै। लेकिन हुसि
गेलै। टाँगमे गोली लगलै। होसपिटलमे पड़ल छथि। इलाज चलि रहल छै। तइ दुआरे नेता
जीक फोटो लऽ कऽ प्रचार कऽ रहल छिऐ।”
“सभटा
एण्टी पाटीक किरदानी हेतै।”
हमर धियान
आदमकद फोटोपर अछि। आरे तोरीकेँ, ई फोटो तँ हमरे छी। हू बहू। लगल जेना
हम उछलि कऽ फोटोमे ढुकि गेलौं। फोटोक बदलामे
हमहीं ठाढ़ छी। आ ऊ अगत्ती छौड़ा लाठीपर टंगने हमरा ऊपर नीचाँ कऽ रहल अछि। दरदक
अनुभव होइत अछि। बेसुमार दरद। हम िचचिया रहल छी-
“हे
रौ, हमरा नीचाँ राख। एना किए नाहकमे जान लैत छँ।”
भीड़केँ
कोनो आँखि-कान होइत छै। के सुनत हमर कानब?
मुड़ी
उठेलौं। आगूमे देखै छी जे एण्टी पाटीक किछु लफंगा सभ घुरिया रहल अछि। किछु
लोकक हाथमे झण्डा आ डण्टा अछि। आ रे तोरीकेँ, ई सभ तँ डाँड़सँ
पेस्तौल निकालि रहल अछि। कियो बम पटकि पड़ाएल।
“धुम... धुम...
धड़ाम।”
सभ भागल
जहिंपटार। हमरा लाठी सहित गन्हकैत नालीमे फेंकि देलक। ओइ भभकैत नालीमे हम लसकल
छी, नाक मुनने। हल्ला कऽ कहि रहल छिऐ-
“हओ, ठाढ़ हुअ। हमरो संग नेने चलह।” किन्तु के सुनत?
संकटकालमे
तँ लोक केहनो प्रिय बेकतीक संग छोड़ि दै छै। आ हम तँ नेता छी....। तँए हम तँ सबहक प्रिय। किन्तु कियो नै अबैत अछि। महकैत
नालीमे धँसल जा रहल छी।
‘हे
देव, डूबै छी। तँ हाथ पएर मारह।’
नालीसँ निकलबाक लेल हाथ-पएर जोर-जोर चलेलौं।
स्त्रीकेँ
झकझोरबसँ निन्न टूटि गेल। तामससँ थरथराइत पत्नी बाजि रहल अछि-
“दिन
कऽ गारि आ रातिमे मारि। हमरा ई जिअ नै दैत। हम आब रहि नै सकैत छी।”
“देखू
एना नै बाजू। पड़ोसिया सुनत तँ की कहत। हमरा तँ मोने नै रहल जे घरमे अहाँ लग सूतल
छी। हम तँ सपनामे कतएसँ कतए बौआ रहल छलौं। आब अहाँ जे कही।”
“अच्छा, अच्छा बुझलौं। भोर भऽ गेल छै। दुआरपर सँ कियो सोर पाड़ि रहल अछि। उठू, देखियौ।”
“की
देखबै। वएह सभ हेताह।”
“के
सभ?”
“आइ
तँ नमनेशन देबाक लेल जाइक छै ने। संगे-संग जाइबला संगी-साथी सभ…।”
“ठीके
तँ अछि। अहूँ नहा-सोना कऽ तैयार भऽ जाउ। चलि जाउ सवेरे।”
“धुर, हमरा राजनेति करनाइ ठीक नै लगैत अछि। ई कोनो नीक करम नै अछि।”
“हेओ, अहाँ सपनामे धसना खसैत तँ नै देखलिऐ। आकि एलेक्सनक भूत चाँपि देलक।
काल्हि तक जइ राजनेतिक गुण-गान करैत छलिऐ आइ ओकरा अधलाह कहै छिऐ?” स्वरकेँ अकानैत फेर बजली-
“अच्छा
जाइयौ, दुआरिपर सँ सोर पाड़ैत अछि।”
हाथ-मुँह
धो कऽ हम दुआरिपर पहुँचलौं। देखैत छी- गौआँ-घरूआ, संगी-साथी,
किछु नव सिखुआ नेता सभ एका-एकी दुआरिपर जमा भऽ रहल अछि। एकटा छोटका भीड़ सन। भीड़सँ स्वर
निकलि रहल अछि-
“अँए
यौ, अखनी तक अहाँ तैयार नै भेलौं। कागज-पत्तर
लिअ। आ जल्दी चलू। सभसँ पहिले।”
“हाँ-हाँ
सभसँ पहिलुक नमनेशन अपने सभक दाखिल हेबाक चाही।”
“जल्दी
नमगरहा कुरता लगाउ। अरे, मुँह की
तकै छेँ। छिपगरहा लग्गामे झण्डा बान्ह।”
हमरा
ठाढ़े भेल देखि एक गोटे बजल-
“रौ
तोरीकेँ, नेताजी
अहाँ ठाढ़े छी। जल्दी करू। साम-दामक संग चलैक छै।”
तैयो हम
असमंजसमे ठाढ़ छी। पछिम भर सँ चटपटिया काका अपस्यिाँत हइत पहुुँचल। भीड़केँ
देखि ओकर पएर ठमकल। ओ जोरसँ बजल-
“हौ, एकटा गप्प बुझलहक। पछबरिया सड़कक कातमे
एकटा नेताजीकेँ टांग-हाथ तोड़ि कऽ राखि देने छै। ओ नुए बसतरे सभ करम केने पड़ल अछि।”
“धुर
सभटा फूिस। खाली झूठे बजै छी-
अहाँ।”
“नै
हौ, देखि आबहक, अपनेसँ। किरिया खा कऽ कहै छिअह। कुहरै
छै। अखने पानि पिआ कऽ एलिऐ।”
“छोड़
ऐ गप्पकेँ। सभ एलेक्सनमे तँ अहिना होइ छै। कतेक नेता मरतै-हारतै।
अन्तमे जे बचत आ जीतत तेकरे राजतिलक लगतै।”
“चलू
बहादूर, डर नै
राखू।”
“यौ
ठकमुड़ी किअए लगल अछि।”
हमरा
लगैत अछि- ई सभ आब नै
मानत। हमरा जबरदस्ती ने लऽ जाए। हम कोनो शर्तपर नै जाएब। हमरा नस-नसमे
डर ढुकल जा रहल अछि। मिटिंगमे नेताजी कहने रहथि-
“पहिले
शिक्षा प्राप्त करू। संघर्ष करू आ तब बढ़ू सत्ता दिस।”
तँ कि
हम शिक्षित नै छी। एकता करबाक लेल प्रयास करैत रहलौं। आब जे समए आएल तँ सत्ता
प्राप्त करैक लेल कोशिशमे लगलौं। फेर ई डर कतएसँ आबि गेल। लगैत अछि तरे-तर
कण्ठ मोकने जा रहल अछि। बेकार एलेक्सनमे ठाढ़ हेबाक हवा फैला देलिऐ। सात
दिनसँ सुनि रहल छी- विपक्षी सबहक गपशप। शाइत ऐ एलेक्सनमे
हमर मौत लिखल अछि। गामक सम्पन्न आ दबंग मालिक सिंहजी सेहो कहैत रहए- जे हमरा बेटाक एण्टीमे ठाढ़ हएत ओकरा
साफ कऽ देबै।
चारिम
दिन सिंह जीक भाय हमरा समझाबैत कहने रहए-
“हौ
धिया-पुताकेँ पढ़ाबह-लिखाबह आ घर दुआरि नीकसँ बनाबह। किए राजनेतिक फेरमे पड़ल छह।
राजनेती छिऐ आन्हर बिहाड़ि। तोहर घर-परिवार तगतगर नै छह। ऐ बिहाड़िमे अपनो उड़ि जेबहक आ परिवारो
नाश भऽ जेतह। तोरा पासमे राजनेति करैबला सामरथ कहाँ छह। छोट जातिमे जनमल, छोट परिवारक लोक छह। तोरा बुत्ते ई नै
हेतह।”
लगैत
अछि हमरा धीया-पुता अनाथ भऽ जाएत आ पत्नी विधवा। संगी-साथीक की हेतै। फाँटिपर तँ हम चढ़बै। धुर नै ठाढ़ हएब हम। कहि
दैत छिअह साफे-साफ। जोरसँ बजै छी-
“हे
यौ हम एलेक्सनमे नै ठाढ़ हएब। दोसरे गोटेकेँ ठाढ़ करू। हम समर्थन करबै।”
सभ
अवाक। भीड़ बजैत अछि-
“गाछ
चढ़ा कऽ छह मारै छेँ। कतौ मुँह देखेबाक जोग रहब हम सभ। नै, आब से नै हेतह। ठाढ़ हुअए पड़तह।”
सोचै छी- हमरा पासमे बड़का माथ नै अछि। कनियो
हुसि जाएब तँ जेल जाएब। आब हमरा
भागए पड़त, दोसर कोनो उपाइ नै। देह जेना थर-थराए लगल। जोरसँ बजलौं-
“हमरा
बोखार लगि गेल। अहाँ सभ चलि जाउ। हमरा बुत्ते एलेक्सन लड़ल नै हएत।”
ओतएसँ
पड़ेलौं, ऑंगन आबि बिछौनपर धाँइ दऽ खसि पड़लौं। खिसिआएल लोक किछुसँ
किछु बजैत एका-एकी जा रहल अछि। सभ चलि गेल तँ
निचेन भऽ निसाँस छोड़लौं। पत्नी लगमे आबि हमरा निहारि रहल अछि। पुछलिऐ-
“एना
किअए तकै छी?”
बजलीह- “देखै छी जे अहाँ मौगी छी की मरद। अहाँ एतेक मौगियाह छी, हमरा पता नै छल। आब तँ हमरा लाज होइए जे
एहेन मौगाक संग केना कऽ जिनगी काटबै। अहाँ घरेमे रहू,
एलेक्सनमे ठाढ़ हेबाक लेल हमहीं जाइ छी।” कहैत ओ फुरतीसँ निकलि
गेली। हमरा भीतरीमे जेना तूफान सन उठए लगल। मोनमे आबए लगल किछु शब्द सभ- डेरबुक..... साफ कऽ देब......
बिहाड़ि..... परिवारक
नाश..... सत्ता......... राजनेति.............
मौगियाहा...........।
किछु
काल तक मोन औनाइत रहल। फेर जेना भीतरमे किछु उगल। मेघकेँ फाड़ि जेना सूरूज उगि
गेल हो। धड़फड़ा कऽ उठलौं। कुरता पहिरिलौं। झोरा कान्हमे लटकेलौं। आ ऑफिस दिस
दौगैत जा रहल छी। मुँहसँ जोरगर स्वर स्वत:
निकलि रहल अछि-
“चलू
जल्दी चलू। हम एलेक्सनमे ठाढ़ हेबाक लेल जा रहल छी।”
फेर
दौड़ए लगलौं। एतेक पछुआएल छी तँ दौड़हि ने पड़त।
२
प्रो. वीणा ठाकुर १९५४-
लघुकथा
परिणीता
आइ
डोमेस्टिक एयर पोर्ट दिल्लीमे श्यामाक भेँट नीलसँ भेल छलनि। श्यामा थोड़ेक
काल धरि हतप्रभ रहि गेल छलीह। नील-नील कहि मोनक कोनो कोनमे हहाकारक लहरि उठि
गेल छल। एतेक वर्ष बीत गेल। नील अखनो ओहने छथि, कोनो परिवर्त्तन
नै भेल छन्हि। आकर्षक नील, हँसमुख नील, पुर्ण पुरुष नील, उच्च पदस्थ नील, नील-नील। श्यामा कहियो नीलकेँ बिसरि नै सकल छलीह। सभटा प्रयासश्यामाक
विफल भऽ गेल छल। नील सदिखन छाया सदृश श्यामाक संग लागले रहलथि। नील कतेक दूर
भऽ गेल छथि, श्यामा आब चाहियो कऽ नीलकेँ स्पर्श नै कऽ
सकैत छथि, ओहिना जेना छाया संग रहितौं स्पर्श नै कएल जा
सकैत अछि, मनुष्यक संग छायाक अस्तित्व तँ सदिखन रहैत
छैक, मुदा ओकर आकार तँ सदिखन नै रहैत छैक। श्यामाक जिनगी
नील, श्यामाक सोच नील, श्यामाक सभ िकछु
नील। श्यामाक तन्द्रा भंग भऽ गेल छल, नीलक चिर परिचित
हँसि सुनि, नील आश्चर्यचकित होइत प्रसन्न भऽ कहने छलाह-
“श्यामा, माइ डियर फ्रेंड हमरा बिसवास होइत अछि, अहाँ फेर
भेँट हएत। श्यामा अहाँ अखनो ओहिना सुन्दर छी, यु आर टु मच
ब्युटिफूल यार, आइ कैन नॉट विलिभ।”
और पुन:
ठहाका माइर हँसने छलाह। नील संगक युवतीसँ श्यामाक परिचए करबैत कहने छलाह-
“श्यामा, मीट माइ वाइफ नीलिमा, ओना हमर नीलू- नीलू माइ वेस्ट
फ्रेंड श्यामा।”
नीलू
बहुत शालीनतासँ श्यामाक अभिवादन करैत कहने छलीह-
“गुड
मॉनिंग मैम।” और नील हँसेत बाजि गेल छलाह-
“देखू
हम आइयो अहाँक पसन्दक ब्लू पैंट शर्ट पहिरने छी।” किछु
आॅपचारिक गप्प भेल छल। एयरपोर्टपर एनाउन्समेंट भऽ रहल छल, संभवत: नीलक फ्लाइटक समए भऽ गेल छल। श्यामा पाछाँसँ नील और श्यामाक
जोड़ी निहारैत रहि गेल छलीह। कतेक सुन्दर जोड़ी अछि- राधा-कृष्ण सदृश। नीलिमा
कतेक सुन्दर छथि, एकदमसँ नील जोगड़क। लगैत अछि जेना
ब्रह्मा फुर्सतमे नीलिमाकेँ गढ़ने होएथिन। सुन्दर, सुडॉल
शरीर, श्वेत वर्ण, सुन्दर लम्बाइ,
उमंग और उत्साहसँ पूर्ण नीलिमा। नीलिमाक प्रत्येक हाव-भाव
सुसंस्कृत होएवाक परिचायक अछि। श्यामा अपलक देखैत रहि गेल छलीह। ताबत धरि
जाबत दुनू श्यामाक आँखिसँ ओझल नै भऽ गेल छलथि।
घर अएलाक
पश्चात् बिनु किछु सोचने आएना लग आबि अपनाकेँ देखए लागल छलीह। केशक एकटा लटमे
किछु श्वेत केश देखि श्यामाकेँ आश्चर्य भेल छलनि जे अखन धरि हुनक नजरि ऐ पर
नै पड़ल छल। फेर जेना श्यामाकेँ संकोच भेल छलनि जे अबैत देरी आखिर अएनामे की
देखि रहल छथि। भरिसक नीलक प्रशंसा अखनो श्यामाकेँ ओहिना आह्लादित कऽ गेल छल।
ई तँ किछु वर्ष पहिने होइत छल। आब तँ प्राय: श्यामा नीलकेँ, नीलक संग बिताएल क्षणकेँ बिसरवाक प्रयास कऽ रहल छथि। आखिर नील अखन धरि
श्यामाक मस्तिष्कपर ओहिना आच्छादित छथि। समैक अन्तराल किछु मिटा नै
सकल। मिटा देलक तँ श्यामाक जिनगी, श्यामाक खुशी। श्यामाक
जिनगी भग्न खण्डहर बनि कऽ रहि गेल, जइमे नील आइ हुलकी
दऽ गेल छलाह। की नील अखन धरि श्यामाकेँ बिसरने नै छथि?
श्यामाक पसन्द अखनो मोन छन्हि? श्यामाक महत्व अखनो
बाँचल अछि? नै तँ नील एना नै बजितथि।
चारू-कात
देखलनि, ओछाओनसँ लऽ कऽ टेबुल धरि किताब छिड़ियाएल छल। मोन थोड़ेक
खौंझा गेल छलनि, एहेन अस्त-व्यस्त
घरक हालत देखि। तथापि किताब एक कात कऽ श्यामा अशोथकित भऽ ओछाओनपर पड़ि रहल
छलीह। मोन एकदम थाकि गेल छल, मुदा दिमाग सोचनाइ नै छोड़ि रहल छल।
श्यामा अपन आदति अनुसार डायरी लिखैले बैस गेल छलीह।
आजुक
पन्ना-नीलक नाओं-
नील, आजुक पन्ना अहाँक नाओं अछि। हमरा बूझल अछि, आब नै
तँ हमर डायरी कहियो जबरदस्ती पढ़ब, नै हमरा पढ़ब। नील पाँच
वर्ष अहाँक संग बिताएल अवधि हमर जीवनक संचित पूँजी थिक,
ऐ पूँजीकेँ बड़ नुका कऽ मोनक कोनमे राखने छलौं। कतौ ऐ अमूल्य निधिकेँ बॉटबाक
इच्छा नै छल, कागजक पन्नोपर नै। मुदा आइ एतेक पैघ अन्तरालक
पश्चात, अहाँकेँ देखि मोन अपना वशमे नै रहल। मोन की हमरा
वशमे अछि। अहाँक संग रहि हम तँ दिन-दुनियाँ बिसरि गेल छलौं, कहियो किछु कहबाक इच्छा होएबो कएल तँ अहाँ सुनए लेल तैयार नै भेलौं।
अहाँ सतत् कहैत रहलौं-
“हमरा
अहाँक मध्य नै कहियो तेसर मनुष आएत और नै कोनो व्यर्थक गप्प, बस मात्र हम और अहाँ, और किछु नै।” हम मन्त्र मुग्ध भऽ अहाँक गप्प सुनैत सभ किछु बिसरि गेल छलौं। मुदा
आइ सभ किछु बदलि गेल। आइ जँ सभ किछु लिख अहाँकेँ समर्पित नै कऽ देब तँ मोन और
बेचैन भऽ जाएत। अहाँ हमरासँ दूर भऽ गेल छी, तथापि आइ सभ किछु,
जे नै कहि सकल छलौं, हम डायरीमे लिख रहल छी।
जखन हम अपनाकेँ अहाँकेँ समर्पित कऽ देलौं, तखन किछु बचा कऽ
राखब उचित नै।
हमर पिता
उच्च विद्यालयमे शिक्षक छलाह, नाओं छलनि पं. दिवाकर झा। हम दु
बहिन एक भाए छी, हम सभसँ पैघ, बहिन
श्वेता और भाए विकास। हमर वर्ण किछु कम छल, तइ कारणे
बाबूजी आवेशमे हमर नाओं रखलनि श्यामा। बाबूजी हरदम कहैत छलाह-
“ई
हमर बेटी नै बेटा छथि, हमर जीवनक गौरव छथि श्यामा।” छोट बहिनक नाओं श्वेता अछि, श्वेता गौर वर्णक
छथि, तँए माए श्वेता नाओं राखने छलथिन। मैट्रिकमे हमरा
फर्स्ट डिविजन भेल तँ बाबूजी कतेक प्रसन्न भेल छलाह। महावीर जीकेँ लड्डु चढ़ौने
छलाह। सौंसे महल्ला अपनहिसँ प्रसादक लड्डु बाँटने छलाह। हमरा जिद्दसँ कॉलेजमे
हमर नाओं लिखओल गेल छल। माए तँ विरोध कएने छलीह। जखन हम बी.ए. पास कऽ गेलौं, तँ हमर बिआहक चिन्ता बाबू जीकेँ होमए लागल छलनि। एकठाम बिआह ठीक भेल
तँ बड़क माए-बहिन हमरा देखए लेल आएल छलथि, मुदा श्वेताकेँ
पसिन्न करैत अपन निर्णए सुना देने छलथिन जे अपन बेटाक बिआह श्वेतासँ करब।
बाबूजी कतेक दुविधामे पड़ि गेल छलाह। पैघ बहिनसँ पहिने छोटक बिआह केना संभव
अछि। मुदा माए-बाबूजी केँ बुझाबैत कहने छलथिन-“जे काज भऽ
जाइत छैक से भऽ जाइत छैक। बिआह तँ लिखलाहा होइत छैक।” नील
शास्त्रक कथन अछि-माए बापक असिरवाद फलित होइत छैक। जँ असिरवाद फलित होइत
छैक तँ माए बापक निर्णए सन्तानक भाग्यक निर्धारण सेहो करैत हेतैक। भरिसक माएक
निर्णए हमर भविष्य भऽ गेल। श्वेताक बिआह ओइ वरसँ भऽ गेलनि।
आइ
डोमेस्टिक एयर पोर्ट दिल्लीमे श्यामाक भेँट नीलसँ भेल छलनि। श्यामा थोड़ेक
काल धरि हतप्रभ रहि गेल छलीह। नील-नील कहि मोनक कोनो कोनमे हहाकारक लहरि उठि
गेल छल। एतेक वर्ष बीत गेल। नील अखनो ओहने छथि, कोनो परिवर्त्तन
नै भेल छन्हि। आकर्षक नील, हँसमुख नील, पुर्ण पुरुष नील, उच्च पदस्थ नील, नील-नील। श्यामा कहियो नीलकेँ बिसरि नै सकल छलीह। सभटा प्रयासश्यामाक
विफल भऽ गेल छल। नील सदिखन छाया सदृश श्यामाक संग लागले रहलथि। नील कतेक दूर
भऽ गेल रुष, श्यामा आब चाहियो कऽ नीलकेँ स्पर्श नै कऽ
सकैत छथि, ओहिना जेना छाया संग रहितौं स्पर्श नै कएल जा
सकैत अछि, मनुष्यक संग छायाक अस्तित्व तँ सदिखन रहैत
छैक, मुदा ओकर आकार तँ सदिखन नै रहैत छैक। श्यामाक जिनगी
नील, श्यामाक सोच नील, श्यामाक सभ िकछु
नील। श्यामाक तन्द्रा भंग भऽ गेल छल, नीलक चिर परिचित
हँसि सुनि, नील आश्चर्यचकित होइत प्रसन्न भऽ कहने छलाह-
“श्यामा, माइ डियर फ्रेंड हमरा बिसवास होइत अछि, अहाँ फेर
भेँट हएत। श्यामा अहाँ अखनो ओहिना सुन्दर छी, यु आर टु मच
ब्युटिफूल यार, आइ कैन नॉट विलिभ।”
और पुन:
ठहाका माइर हँसने छलाह। नील संगक युवतीसँ श्यामाक परिचए करबैत कहने छलाह-
“श्यामा, मीट माइ वाइफ नीलिमा, ओना हमर नीलू- नीलू माइ वेस्ट
फ्रेंड श्यामा।”
नीलू
बहुत शालीनतासँ श्यामाक अभिवादन करैत कहने छलीह-
“गुड
मॉनिंग मैम।” और नील हँसेत बाजि गेल छलाह-
“देखू
हम आइयो अहाँक पसन्दक ब्लू पैंट शर्ट पहिरने छी।” किछु
आॅपचारिक गप्प भेल छल। एयरपोर्टपर एनाउन्समेंट भऽ रहल छल, संभवत: नीलक फ्लाइटक समए भऽ गेल छल। श्यामा पाछाँसँ नील और श्यामाक
जोड़ी निहारैत रहि गेल छलीह। कतेक सुन्दर जोड़ी अछि- राधा-कृष्ण सदृश। नीलिमा
कतेक सुन्दर छथि, एकदमसँ नील जोगड़क। लगैत अछि जेना
ब्रह्मा फुर्सतमे नीलिमाकेँ गढ़ने होएथिन। सुन्दर, सुडॉल
शरीर, श्वेत वर्ण, सुन्दर लम्बाइ,
उमंग और उत्साहसँ पूर्ण नीलिमा। नीलिमाक प्रत्येक हाव-भाव
सुसंस्कृत होएवाक परिचायक अछि। श्यामा अपलक देखैत रहि गेल छलीह। ताबत धरि
जाबत दुनू श्यामाक आँखिसँ ओझल नै भऽ गेल छलथि।
घर
अएलाक पश्चात् बिनु किछु सोचने आएना लग आबि अपनाकेँ देखए लागल छलीह। केशक एकटा
लटमे किछु श्वेत केश देखि श्यामाकेँ आश्चर्य भेल छलनि जे अखन धरि हुनक नजरि
ऐ पर नै पड़ल छल। फेर जेना श्यामाकेँ संकोच भेल छलनि जे अबैत देरी आखिर अएनामे
की देखि रहल छथि। भरिसक नीलक प्रशंसा अखनो श्यामाकेँ ओहिना आह्लादित कऽ गेल
छल। ई तँ किछु वर्ष पहिने होइत छल। आब तँ प्राय: श्यामा नीलकेँ, नीलक संग बिताएल क्षणकेँ बिसरवाक प्रयास कऽ रहल छथि। आखिर नील अखन धरि
श्यामाक मस्तिष्कपर ओहिना आच्छादित छथि। समैक अन्तराल किछु मिटा नै
सकल। मिटा देलक तँ श्यामाक जिनगी, श्यामाक खुशी। श्यामाक
जिनगी भग्न खण्डहर बनि कऽ रहि गेल, जइमे नील आइ हुलकी
दऽ गेल छलाह। की नील अखन धरि श्यामाकेँ बिसरने नै छथि?
श्यामाक पसन्द अखनो मोन छन्हि? श्यामाक महत्व अखनो
बाँचल अछि? नै तँ नील एना नै बजितथि।
चारू-कात
देखलनि, ओछाओनसँ लऽ कऽ टेबुल धरि किताब छिड़ियाएल छल। मोन थोड़ेक
खौंझा गेल छलनि, एहेन अस्त-व्यस्त
घरक हालत देखि। तथापि किताब एक कात कऽ श्यामा अशोथकित भऽ ओछाओनपर पड़ि रहल
छलीह। मोन एकदम थाकि गेल छल, मुदा दिमाग सोचनाइ नै छोड़ि रहल छल।
श्यामा अपन आदति अनुसार डायरी लिखैले बैस गेल छलीह।
आजुक
पन्ना-नीलक नाओं-
नील, आजुक पन्ना अहाँक नाओं अछि। हमरा बूझल अछि, आब नै
तँ हमर डायरी कहियो जबरदस्ती पढ़ब, नै हमरा पढ़ब। नील पाँच
वर्ष अहाँक संग बिताएल अवधि हमर जीवनक संचित पूँजी थिक,
ऐ पूँजीकेँ बड़ नुका कऽ मोनक कोनमे राखने छलौं। कतौ ऐ अमूल्य निधिकेँ बॉटबाक
इच्छा नै छल, कागजक पन्नोपर नै। मुदा आइ एतेक पैघ अन्तरालक
पश्चात, अहाँकेँ देखि मोन अपना वशमे नै रहल। मोन की हमरा
वशमे अछि। अहाँक संग रहि हम तँ दिन-दुनियाँ बिसरि गेल छलौं, कहियो किछु कहबाक इच्छा होएबो कएल तँ अहाँ सुनए लेल तैयार नै भेलौं।
अहाँ सतत् कहैत रहलौं-
“हमरा
अहाँक मध्य नै कहियो तेसर मनुष आएत और नै कोनो व्यर्थक गप्प, बस मात्र हम और अहाँ, और किछु नै।” हम मन्त्र मुग्ध भऽ अहाँक गप्प सुनैत सभ किछु बिसरि गेल छलौं। मुदा
आइ सभ किछु बदलि गेल। आइ जँ सभ किछु लिख अहाँकेँ समर्पित नै कऽ देब तँ मोन और
बेचैन भऽ जाएत। अहाँ हमरासँ दूर भऽ गेल छी, तथापि आइ सभ किछु,
जे नै कहि सकल छलौं, हम डायरीमे लिख रहल छी।
जखन हम अपनाकेँ अहाँकेँ समर्पित कऽ देलौं, तखन किछु बचा कऽ
राखब उचित नै।
हमर पिता
उच्च विद्यालयमे शिक्षक छलाह, नाओं छलनि पं. दिवाकर झा। हम दु
बहिन एक भाए छी, हम सभसँ पैघ, बहिन
श्वेता और भाए विकास। हमर वर्ण किछु कम छल, तइ कारणे
बाबूजी आवेशमे हमर नाओं रखलनि श्यामा। बाबूजी हरदम कहैत छलाह-
“ई
हमर बेटी नै बेटा छथि, हमर जीवनक गौरव छथि श्यामा।” छोट बहिनक नाओं श्वेता अछि, श्वेता गौर वर्णक
छथि, तँए माए श्वेता नाओं राखने छलथिन। मैट्रिकमे हमरा
फर्स्ट डिविजन भेल तँ बाबूजी कतेक प्रसन्न भेल छलाह। महावीर जीकेँ लड्डु चढ़ौने
छलाह। सौंसे महल्ला अपनहिसँ प्रसादक लड्डु बाँटने छलाह। हमरा जिद्दसँ कॉलेजमे
हमर नाओं लिखओल गेल छल। माए तँ विरोध कएने छलीह। जखन हम बी.ए. पास कऽ गेलौं, तँ हमर बिआहक चिन्ता बाबू जीकेँ होमए लागल छलनि। एकठाम बिआह ठीक भेल
तँ बड़क माए-बहिन हमरा देखए लेल आएल छलथि, मुदा श्वेताकेँ
पसिन्न करैत अपन निर्णए सुना देने छलथिन जे अपन बेटाक बिआह श्वेतासँ करब।
बाबूजी कतेक दुविधामे पड़ि गेल छलाह। पैघ बहिनसँ पहिने छोटक बिआह केना संभव
अछि। मुदा माए-बाबूजीकेँ बुझाबैत कहने छलथिन-“जे काज भऽ
जाइत छैक से भऽ जाइत छैक। बिआह तँ लिखलाहा होइत छैक।” नील
शास्त्रक कथन अछि-माए बापक असिरवाद फलित होइत छैक। जँ असिरवाद फलित होइत
छैक तँ माए बापक निर्णए सन्तानक भाग्यक निर्धारण सेहो करैत हेतैक। भरिसक माएक
निर्णए हमर भविष्य भऽ गेल। श्वेताक बिआह ओइ वरसँ भऽ गेलनि।
अर्थशास्त्रक
एम.ए. कएलाक पश्चात विश्वविद्यालयक पी.जी. डिपार्टमेन्टमे हमरा लेक्चररक
नौकरी भऽ गेल। तइ दिन हमरा बुझाएल छल, जेना जीवनक सभटा उद्देश्य
पूरा भऽ गेल अछि। बुझबे नै कएलौं, जे एकरा आगाँ सेहो जिनगी
छैक। जाबत बुझलौं ताबत सभ समाप्त भऽ गेल छल। जखन पढ़ैत छलौं, महिला शिक्षिकाक पहिरब ओढ़ब, वेश-भूषा हमरा वड़
आकषिर्त करैत छल। हमरा आदर्शमे इहो समाहित भऽ गेल छल। हल्लुक रंग साड़ी पहिरब हमर
शौख भऽ गेल छल, भरिसक तँए हमर जिनगी रंग विहिन भऽ गेल।
खैर, बाबुजीक प्रसन्नताक कोनो सीमा नै छलैन्हि। किछु मासक
बाद बाबुजी रिटायर भऽ गेल छलाह। स्कूलक शिक्षकक दरमाहा कम छल, बाबूजीक पेंशनसँ घरक खर्च, विकासक इन्जिनियरिंगक
पढ़ाइ संभव नै छल। हमरा पहिल बेर जहिना दरमाहा भेटल, माएक
हाथमे राखि देने छलौं, तकरा बाद ई एकटा निअम बनि गेल छल।
मुदा बाबुजीक मोनमे सतत् एकटा अपराध बोध होइत छलैन्ह। बाबुजी मुँहसँ तँ किछु नै
बजैत छलाह, मुदा हुनक आँखि सभ किछु कहि दैत छल। किछु दिनक
बाद बाबुजी एकदमसँ चुप रहए लागल छलाह। माएक व्यवहारमे सेहो परिवर्त्तन भऽ गेल
छलैन्ह। हमरा प्रति बाबुजी माएक सिनेह क्रमश: आदरमे परिवर्तित होअए लागल छल।
शुरू-शुरूमे ऐ आदरसँ हम कतेक असहज भऽ जाइत छलौं, पहिने
छोट-छोट चीज लेल जिद्दक अधिकार छल, मुदा ई आदर तँ हमरा
बहुत रास अधिकारसँ वंचित कऽ देलक। हमरा सतत् लगैत छल जे आहिस्ता-आहिस्ता
कर्त्तव्य मजबूत पाशमे हम बान्हल जा रहल छी। हमर स्वतन्त्रता छोट होइत गेल और
हम असमए पैघ होइत गेलौं। ताबत धरि हम
बुझवे नै कएलौं जे प्रत्येक मनुष्यक व्यक्तिगत जिनगी होइत अछि,
भविष्यक कल्पना होइत अछि और होइत अछि उमंग, उत्साह।
बाबुजीक
मृत्यु हार्ट अटैक सँ भऽ गेलनि। मृत्युकाल बाबुजीक मुँहपर आच्छादित निरीह
भाव, आँखिमे पश्चाताप, ओहिना मोन अछि।
बाबुजीक मुँहसँ किछु नै कहलैथ, मुदा हुनका आँखिक कातरता सभ
किछु कहि गेल। आब हम घरक मात्र बेटी नै रहि गेल छलौं। हम घरक कमौआ बेटी,
पालन केनिहारि गार्जियन भऽ गेल छलौं। विकास पढ़ैत छलाह, हुनक पढ़ाइ, बिआह सभटा हमर उत्तरदायित्व भऽ गेल।
ई छोट-छीन गृहस्थी समैक अनुसार चलैत रहल। विकासक पढ़ाइ समाप्त भऽ गेल छलनि,
बिआह लेल कन्यागत आबए लागल छलाह। विकाससँ हम बिआह लेल पुछलौं,
पहिने तँ ओ तैयार नै भेलाह, बेर-बेर कहैत
रहलाह-
“दीदी, जाबत अहाँक बिआह अएत, हम बिआह नै करब।” कतेक बुझौने छलौं, अन्तमे हमरा कहए पड़ल जे अहाँक
बिआह, सेट्लमेन्ट, अहाँक घर बसाएब
हमर दायित्व अछि, तखन विकास स्वीकृति देने छलाह। कतेक
उत्साहसँ विकासक बिआह कएने छलौं। पी.एफ.सँ अधिकतम लोन लऽ कऽ सभटा खर्च कएलौं।
एक-एक वस्तु कपड़ा, गहना माए अपना इच्छासँ कीनने छलीह। विकासक
बिआह सम्भ्रान्त परिवारमे भेल, कनिया पढ़ल-लिखल सुन्दर
सुशील छथि। मुदा एकटा बात अछि, सुशीलो व्यक्ति मुँहसँ
कहियो एहेन कटुसत्य बहरा
जाइत अछि, जकर प्रहारसँ दोसरक आत्मा छिन्न-भिन्न भऽ जाइत छैक। एकबेरक
घटना हमरा अखन धरि बिसरल नै भेल अछि, होएबो नै करत। विकासक
बेटा मोनु स्कूल गेल छल, स्कूलसँ अएबामे थोड़ेक देरी भऽ
रहल छलैक। विकासक कनियाँ पूजाक बेचैनी देखि हमरा रहल नै गेल। हम पूजाकेँ भरोस
दैत कहने छलौं-
“परेशान
नै होउ, मोनु अबैत हएत, किछु कारण भऽ
गेल हेतैक।”
पूजा निछोह
भेल बाजि गेल छलीह-
“अहाँ
की बुझबैक सन्तानक दर्द। एतेक सुनैत।”
हम अवाक
रहि गेल छलौं। पूजा कहलैथ तँ सत्य। मुदा ई सत्य एतेक कटु छल जे हमर आत्मा
क्षत-विक्षत भऽ गेल। की हमरा मोनमे मोनु, पूजा आ विकास लेल सिनेह
नै छल। की मात्र कोखिसँ जन्म देलासँ मातृत्वक भाव अबैत छैक? की हम विकासक भविष्यक चिन्तामे अपन जीवन उत्सर्ग नै कऽ देलौं? हमर एतवे महत्व। खैर पूजा नै बुझैत छथि तइसँ की। विकास तँ हमरा बुझैत
छथि। यएह सोचि मोनकेँ सांत्वना दैत रहलहु। मुदा मोन की सांत्वनाक भाषा बुझैत
छैक। मुँहसँ तँ किछु नै बाजि सकलौं। मुदा तकरा पश्चात् एकटा हीन-भाव क्रमश:
हमरा मोनमे बढ़ैत गेल। आब बेधड़क मोनुकेँ दुलारो करवामे हमरा संकोच होअए लागल छल।
पहिने हम जइ अधिकारसँ पूजा मोनुक संग रहैत छलौं, आब संकोच
होअए लागल छल। नै जानि कोन बात पूजाकेँ अप्रिय लागि जएतनि, किछु कहैसँ पहिने अनायास सर्तक भऽ जाइत छलौं। किछु दिनक बाद विकासकेँ
इग्लैण्डमे बढ़िया नौकरी भऽ गेल छलैन्ह। िवकास हमर सहमतिक बाद विदेशक नौकरी
स्वीकार कएने छलाह। आइओ मोन अछि, जइ दिन विकास सपरिवार
विदेश गेल छलाह, ओइ राति हमरे बिछाैनपर सूतल छला। विकास
कतेक कानल छलाह, हमहूँ अपनाकेँ रोकि नै सकल छलौं। विकास
जाइतो काल एकेटा बात कहने छलाह-
“दीदी, बाब अहाँ केना रहब, अपन ख्याल राखब।” ओना विकास छथि तँ हमरासँ छह वर्ष छोट, मुदा परिवारक
परिस्थिति हुनकहुँ बुजुर्ग बना देने छल। विकास छोट छथि, तइसँ की। यएह उत्तरदायित्व बोध तँ पुरुषक पुरुषत्वक छिऐक, जइसँ ओ परिवारक गार्जियन भऽ जाइत अछि। बाबुजीक मृत्युक पश्चात विकास
टुटलथि नै, किएक तँ सहारा हम भऽ गेल छलौं। मुदा जाबत विकास
सभ तरहसँ व्यवस्थित भऽ गेलथि। हमरो उत्तरदायित्व लेबए चाहैत छलाह। खैर विकास
विदेश चलि गेलथि। हमहूँ निश्चिन्त भऽ गेल छलौं। आब घरमे मात्र हम और माए
बचि गेल छलौं। कोनो उत्साह नै, समए अपनहि बितैत जाइत
अछि, जिनगीओ बित रहल छल।
ओइ
समएमे नील वसंतक झोंक बनि अहाँ हमर जिनगीमे आएल छलौं। हमरा अखनो ओहिना मोन अछि,
हम कॉलेज जएबा लेल तैयार भऽ कऽ घरसँ निकलल छलौं। रिक्शा थोड़ेक दूर चौराहापर
भेटैत छल। अहाँ हमरा बगलमे गाड़ी रोकि कतेक बिसवाससँ बाजल छलौं-
“हम
नील, एयर इण्डियामे पाएलट छी, अहाँक
पड़ोसी, अहाँ कतए जाएब, चलू छोड़ि दैत
छी।” हम निर्विकार स्वरे अहाँक अस्वीकार कऽ देने छलौं।
अहाँ फेर बाजल छलौं-
“हम
अपना परिचए तँ दऽ देलौं, अहुँ तँ किछु बाजु।”
हम अहाँकेँ
टारवाक उद्देश्यसँ कहने छलौं-
“हमर
नाओं श्यामा छी, और हम विश्वविद्यालयक पोस्ट ग्रेजुएट विभागमे
अर्थशास्त्र पढ़बैत छी।”
अहाँ
कनेक मुस्कुराइत, हमरा दिसि तकैत गाड़ीमे बैस गेल छलौं।
नील अहाँक मुहँक स्मित भाव, आत्म-बिसवाससँ भरल स्वर,
हमरा मस्तिष्कमे एहेन कऽ
अंकित भऽ गेल जे एतेक वर्ष बितलाक पश्चातो ओहिना सभटा मोन अछि। लगैत अछि
जेना ई आजुक घटना थिक। तकरा बाद आठ दिन धरि अहाँसँ भेँट नै भेल छल। नै जानि किएक
कोनमे नुकाएल अहाँसँ भेँटक इच्छा बलवति होअए लागल छल। तकरा बाद एक दिन जखन हम िडर्पाटमेन्टमे
बैसल छलौं, चपरासी समाद कहने छल जे विजिटिंग रूपमे एक गोटे भेँट करवा
लेल बैसल छथि, और अहाँक कार्ड हमरा देने छल। नाओं पढ़ि हम
कतेक उद्विग्न भऽ गेल छलौं और अहाँ कतेक अह्लादित होइत, मुस्कुराइत
हमर स्वागत कएने छलौं। हमरा लागल छल जेना ऐ मुस्कुराहटसँ हम कतेक परिचित छी।
बिना किछु पुछने अहाँ जल्दी-जल्दी बाजल छलौं जे फ्लाइट लऽ कऽ अहाँ अमेरिका
गेल छलौं, तइ कारणे एतेक देरी भऽ गेल। किंचित अहाँक
हड़बड़ी बजवाक शैली सुनि हमरा हँसि लागि गेल छल। और अहाँ आर्श्चचकित होइत
बाजल छलौं जे- भगवानक शुक्र अिछ, अहाँ हँसलौं तँ।”
और कॉफि
हाउसक अहाँक निमन्त्रण हम अस्वीकार नै कऽ सकल छलौं। ओइ दिन अहाँसँ दाेसर बेर
भेँट कॉफी आउसमे भेल छल। बिना किछु पुछने अहाँ अपन विषएमे कहने छलौं जे अहाँक
माँ, बाबुजी दुनू डॉक्टर छथि, अहाँ बैचलर
छी और माँ-बाबुजीक एक मात्र सन्तान छी, उम्र पचीस वर्ष अछि, एयर इण्डियामे पायलट छी। हम तइपर कहने छलौं जे हमर उम्र तीस वर्ष अछि।
हमर बात सुनि अहाँ हँसैत कहने छलौं जे-
“दोस्तीमे
उम्र कतएसँ आबि गेल।”
तकरा
बाद अहाँ कहलौं जे पता लगा लेने छी जे आहाँ हॉस्टल सुपरिटेन्डेन्ट भऽ गेल छी
और सुपरिटेन्डेन्ट क्वाटरमे शिफ्ट कऽ गेल छी। नील, हम केना कऽ कहितौं जे हम अपन घर छोड़ि क्वाटरमे किएक शिफ्ट कऽ गेलौं। भला
लाजक बात की बाजल जाइत छैक।
असलमे ई
भेल छल जे श्वेता हमर छोट बहिनक पतिक ट्रान्स्फर ऐ शहरमे भऽ गेल छल, माएक घरपर तँ श्वेताक अधिकार सेहो छल, श्वेता अपन
पति और बच्चाक संग माएक घरमे रहय लेल आबि गेल छलीह। माएकेँ बड्ड प्रसन्नता भेल
छलैन्ह और माएक प्रसन्नता देखि हम चुप रहि गेल छलौं। नै जानि किएक हमरा नीक
नै लागल छल, यद्यपि घरक वातावरण बदलि गेल छल मुदा हमरा श्वेताक
पतिक सभ किछुमे दखल अन्दाजी नीक नै लगैत छल। हम बेचैन रहय लागल छलौं। माए सेहो
हमर भावनासँ अनभिज्ञ छलीह। संयोगसँ हाेस्टल सुपरिटेन्डेन्ट बनवाक हमरा अवसर
भेटल और हम ऐ अवसरकेँ वरदान बूझि स्वीकार कऽ लेलौं। ऐ पद लेल हमरासँ वेशी उपयुक्त
और कोनो महिला शिक्षिका नै छलीह। किएक तँ सभ शादी-सुदा छथि, सभकेँ परिवार छन्हि, गृहस्थी छन्हि और हमरा
तँ नै आगू नाथ नै पाछू पगहा। यद्यपि संजोगि कऽ बसाएल घरसँ हमर ई पड़ाइन छल मुदा
छल उपयुक्त अवसर, हम होस्टल शिफ्ट कऽ गेलौं।
तकरा
बाद नील, अहाँ प्रतिदिन आबए लागल छलाैं पहिने तँ मात्र साँझमे अबैत
छलौं मुदा क्रमश: अहाँक आएब बढ़ैत गेल और हमरापर अहाँकेँ अधिकारो बढ़ैत गेल। अहाँ
मात्र दोस्त नै रहि गेल छलौं हमर मानस देवता बनि गेल छलौं, हमर तँ जिनगीये बदलि गेल छल। जिनगी एतेक सुन्दर होइत छैक, हम अहाँसँ सिखलौं। पहिल बेर हमरा एहसास भेल जे हमहुँ सुन्दर छी,
हमरो महत्व अछि। जीवनक एकटा नव पन्ना खुजि गेल। बस सदिखन एकेटा
काज रहि गेल। अहाँक प्रतीक्षा करब, अहाँक विषयमे सोचब। पहिल
बेर हमरा अपनापर गर्व भेल छल। नील अहाँक व्यक्तिव, सौम्य
मुद्रा अहाँक न्योछावर भऽ जाएब, अहाँक आँखि प्यास कतेक
आत्मविश्वास हमरामे भरि देने छल। हमरा बूझल अछि जे हम कतेक साधारण छी, मुदा अहाँक बाँहक गर्मकसाव, कानमे अाहिस्तासँ कहल
गेल झूठ-सच बात, हमरा कतेक भरि दैत छल। हम कतेक बहुमूल्य,
कतेक गौरवमयी भऽ जाइत छलौं। लगैत छल, हमरा लग
किछु अछि अथवा नै मुदा एकटा चीज अछि अहाँक देवता लेल, एकट
तृप्ति, एकटा उल्लास, एकटा भराव जे
हम मात्र अपनाकेँ अर्पित करवाक पश्चाते दऽ सकैत छलौं।
नील, ई चारि वर्ष कोना बीत गेल, हम बुझबे नै केलौं। कहियो
कल्पनो नै कने छलौं जे ऐ संबंधकेँ भविष्य की अछि। एक दिन अहाँ ड्युटीपर गेल
छलौं, अहाँक माँ-बाबूजी आएल छलाह। अहाँक माँ मढल-लिखल छथि, हमरा कोनो अपशब्द नै कहलन्हि, मुदा जतेक कहने
छलीह, से तँ हमर जिनगीये बदलि देलक। हमर सभ कल्पना,
जिनगी चूर-चूर भऽ गेल। तइ दिन जिनगीक ठोस धरातलक एहसास हमरा फेर
भेल। अहाँक माँ, अहाँ जिनगीक भीख हमरासँ मांगने छलीह। हमरा
तँ बुझाइत छल जे हमहीं अहाँक जिनगी छी। मुदा तखन हमरा बुझाएल जे हम अहाँक जिनगीमे
राहु छी, जेकर छाया अहाँक जिनगीमे ग्रहण बनि गेल अछि। किऐक
तँ हमर उमर अहाँसँ पाँच वर्ष बेसी छल, हमर अवस्था आब विवाह
करबा जेागर नै छल। हमर प्रेम नै व्यापार छल। नील हम तँ ऐ दृष्टिकोणसँ अपन मूल्यांकन
नै केने छलौं। और फेर हम एक बेर पलायन केलौं, अपना जिनगीसँ
अहाँक जिनगीसँ। फेर वएह कर्त्तव्यक मजबूत पाश, जे पहिने
तँ अपन परिवार लेल हमरा बान्हि देने छल आब अहाँक परिवार लेल।
नील, भरिसक अहुँकेँ मोन हएत। किएक तँ जखन हमर पसन्दक ब्लू पेन्ट-शर्ट अखन
धरि मोन अछि तँ ओ अन्तिम राति जरूर मोन हएत। अहाँ साँझमे आएल छलौं, अहाँक पाछाँ हमर जीवनमे कोन बवंडर उठि गेल अहाँ बिना कहने कोना बुझितौं।
आखिर अपन स्त्रीत्वक एतेक पैघ अपमान केना बाजल जा सकैत अछि। आन दिन जकाँ हम
सोफापर बैसल छलौं और अहाँ नील कालिनपर बैसि हमरा कोरामे एकटा निश्छल बच्चा
जकाँ माथ राखि सुति गेलौं। ड्यूटीपरी सँ एलाक बाद अहाँ थाकि जे गेल छलौं। मुदा
हमरा तँ नै आँखिमे निन्न छल, नै मोनमे चैन। सूतलमे अहाँक िनर्दोष
मुँह देखि, भरि राति सोचलाक बाद कठोर िनर्णए लऽ लेने छलौं,
जे आब अहाँसँ कोनो सम्बन्ध नै राखब। सुखक एतबे दिन हमरा भाग्यमे
अछि। अहाँकेँ हमरा छोड़ेयै पड़त। नील, तकरा बाद हमर मोन
थेड़ेक आश्वस्त भऽ गेल छल, कनी आँखि लागि गेल छल। नीन्न
टुटल तँ भोरक चारि बाजि रहल छल, मुदा चारू दिस पवित्र,
शान्त और प्रकाशमय लागि रहल छल। हमरा ओ भोर अखनौं ओहिना मोन अछि
किएक तँ फेर हमरा ओहन शान्ति, ओहन पवित्र प्रकाश,
ओहन ताजगी, ओहन मोनक पसरल उदार हरित-वर्ण
वापस नै भेटल।
नील, हम अहाँकेँ अपन सप्पत दैत हमरासँ कोनो प्रकारक सम्पर्क नै राखबाक
प्रार्थना केने छलौं। नील अहुँ तँ हमर सप्पतक मान रखैत अपन वचनक िनर्वाह करैत
रहलौं। आन दिन तँ अहाँ हमर कोनो बात नै सुनैत छलौं, जे इच्छा
होइत छल, अपन जिद्दसँ अधिकार बूझि सएह करैत छलौं। मुदा
जीवनक एतेक महत्वपूर्ण िनर्णएमे अहाँ हमर संग किएक देलौं। सम्पूर्ण जीवन संग बितेबाक
अहाँक प्रतिज्ञा हमरा अागाँ किएक छोट भऽ गेल। और सभ दिन तँ जिद्दी बच्चा जकाँ
अपन बात मनवा लैत छलौं मुदा तइ दिन भरिसक हमर दृढ़ निश्चय देखि चुप-चाप अहाँ
रहि गेल छलौं। खैर नील, अहाँ चलि गेलौं।
नील
अहाँकेँ मोन अछि, एक बेर लाल रंगक साड़ी अहाँ हमरा लेल अनने
छलौं, पहिल बेर गाढ़ लाल रंगक साड़ी देखि हमरा सुखद
आश्चर्य भेल छल। अहाँक जिद्दसँ साड़ी पहिर ऐनामे अपनाकेँ देखि हमरा कतेक संकोच
भेल छल। अहाँ कतेक प्रसन्न भेल छलौं। अहाँ कहने छलौं-
“फ्रेन्ड, यू आर टु मच ब्युटिफुल यार।”
हमहुँ
अहाँकेँ बूझल नै हएत, कॉलेज जीवनमे हल्लुक रंगक साड़ी पहिरने,
शांत सौम्य अपन शिक्षिका लोकनिकेँ देखि,
हमर सएह आदर्श भऽ गेल छल। मुदा ई आदर्श तँ हमर जिनगीकेँ रंगहीन बना देलक। एतेक
धरि जे हमर माए सेहो नै बुझलन्हि, जे रंगक बिना जीवन
कहेन उदास भऽ जाइत छैक। आन दिनक तँ गप्प छोड़ु विकासक विवाहोमे माए हमरा लेल
हल्लुक रंग साधारण सुती साड़ी कीन कऽ आनने छलीह। नील माए-बाप तँ सन्तानक जीवनमे
रंग भरैत छैक, माएकेँ हमरा लेल ई बुझबाक कहियो पलखति नै
भेटलन्हि, यएह रंगहीन हमर जिनगी बनि गेल। अहाँ हमरा जिनगीमे
देवदूत बनि एलौं हमर काया बदलि गेल, सभ किछु बदलि गेल
मुदा कतेक दिन लेल?
३
मनोज कुमार मण्डल
लघुकथा-
घासवाली
गामक चौबटियापर किछु दर-दोकान रहने सभ दिन साँझ-भोर बड़ भीड़ रहैत छल। गाम नम्हर रहने पंचायत छल। अड़ोस-पड़ोसक गाममे ऐ ढंगक दर-दोकान नै रहलाक कारण ओहो गामक लोक सभ अही चौबटियापर अबैत। लोक सभ
चौबटियापर आबि साँझ-भाेर चाह-पान सेहो करैत आ अपन जरूरतिक साैदा सेहो कीनि-बेसाहि
कऽ घर लऽ जाइत। चौबटिया गामक बीच रहबाक कारण किछु बेसिये भीड़-भार
रहैत छल। छोट-पैघ गिरहस्थ
आ ठर-ठिकेदार
आबि जन-मजदूर अढ़बैत छल। भीड़ भेने लोक सभ चाह-पानक दोकानपर चाहो-पान करैत आ रंग-बिरंगक गप-सप सेहो। गप-सपसँ बुझाइत जेना ई चौबटिया गामक राजनीतिक अड्डा रहए। दुपहरियाकेँ
चौबटिया खाली रहैत
छल। लोक अपन-अपन काम-काजमे रहैत छलाह। दोकानदारो सभ अपन-अपन दोकान बन्न कऽ घर खाइले चलि जाइत छल। गामक किछु निठल्लो
सभ दुपहरियामे ताश भँजैत रहैत
छल।
एक दिन साँझू पहर चौबटियापर बैसल रही। हमरा बगलमे किछु
लोक सेहो बैसल छलाह। चौबटियापर तरकारी बेचैवाली सभ आबि अपन-अपन दोकानक बोरा बिछा-बिछा लगा रहल
छलीह। चौबटियापर एकटा दुचारी घर रहए जे सदिखन खालिये रहैत छल। किछु गाजा पियाक
सभ बैस गाजा पी रहल छलै। तखने गामक पुबरिया टोलसँ झुण्डक-झुण्डा बकरी निकलि रहल, चरैले जा रहल छल। बकरीक
झुण्ड खूब नमहर छल। हमरा लागल तीसो-चालीसक ई झुण्ड अछि। हमरा बगलमे ओइ टोलक एक गोटे बैसल छलाह। हम
हुनका पुछलियनि- “ई सभटा बकरी अहीं टोलक छी?”
ओ कहला- “ई सभ बकरी तँ एक्के गोटाक छी।”
सुनि हमरा बड़ आश्चर्य भेल। हमर जिज्ञासा कने आर बढ़ल। हम
फेर पुछलियनि- “किनक ई सभ बकरी छी?”
कहलनि- “दीपवालीक।”
हम छगुन्तामे पड़ि गेल रही। संगे खुश सेहो भेल रही। सभसँ
पहिने तँ हमरा भेल जे एतेक बकरी एक गोटा सम्हारैत केना अछि। आ फेर भेल जे जखनि
ओ चरबए लेल जाइ अछि तँ केना बुझैत अछि जे कोन हमर छी आ कोन दोसराक।
दीपवालीक घर हमरा घरसँ कनिये दूर हटि कऽ छल। दू जाति
हेबाक कारणे दू टोल छल। गाममे बहुतो जाति रहए परंतु सभ जातिक घर कने अलग-अलग
रहए। जातिक नाओंपर टोलक नाओं पड़ल अछि। हम दीपवालीसँ परिचित रही। दीपवाली बुधनाक कनियाँ छथि। बुधना देखबामे रोगाहे जकाँ छथि। समए-समैपर
दरभंगा गिलास फैक्ट्रीमे मास-दू मास कमा कऽ किछु उपार्जन कऽ लैत छथि। जाधरि बुधना गामे
रहैत साइकिलपर झंझारपुरसँ तरकारी अनैत, बाँकी समए सदिखन ताश
भँजैत। चाह-पान, भाँग-गाँजा सभ किछु बुधनाक अमल।
दीपवाली बड़ नमगर-छड़गर छथि। देखबामे एकदम गोर। बड़ कमासुत। नाउएँटा लऽ दीपवाली
मौगी छलीह परन्तु मर्दे जकाँ हरिदम
खटैत छलीह। दूटा बेटा आर एकटा बेटी छन्हि। बेटीक बिआह भऽ गेल छन्हि। बेटी विधवा
भऽ गेल छन्हि जइसँ एकटा नातिक जिम्मेवारी दीपेवालीपर छन्हि। बड़का बेटा थोड़-बहुत
पढ़ि माइक सहयोग करए लागल। छोटका बेटा पढ़ैत छल। एतेकटा बकरीक झुण्ड दीपवालीक मेहनतिक फल छल। भरि दुपहरिया अंगने-अंगने घूमि तरकारी बेचैत छलीह, साँझू पहरकेँ
चौबटियापर बैस तरकारी बेचैत छलीह। दीपवाली बड़ मधुभाषी आ मिलनसार छथि से सभ
जनैत।
एक दिन बुधना तरकारी लऽ कऽ अबैत छलाह। बाटपर एकटा
मोटरगाड़ीबला पाछूसँ ठोकर मारि देलकनि। जइसँ बुधना मरि गेल। हटियाक दिन रहने
हमरो गामक बहुतो लोक झंझारपुर गेल छलाह। ई कथा सौंसे गाम मटिया तेल जकाँ पसरि
गेल। सुनैत देरी भरि गामक लोक चौबटियापर जमा भऽ गेल। दीपवालीक घर चौबटियासँ
सटले पुबरिया टोलमे छल। के बच्चा, के बूढ़, सभ साइकिल मोटर साइकिलसँ झंझारपुर दिस दौड़ पड़ल जेतए बुधनाक लाश छल।
हम गुड़ घावक पीड़ासँ व्यायकुल रही, ई बात सुनि कहुना कऽ
चौबटियापर गेल रही। किछुए कालक बाद हमर धियान दीपवाली आ हुनकर दुनू बेटापर
पड़ल। हमरा आइ धरि मोन अछि, दीपवालीक
खूलल-खूलल
केश, लत्ता-कपड़ाक कोनो ठेकान नै। बताहि जकाँ जोर-जोरसँ कनैत छलीह- “डकूबा हौ, डकूबा! आब हमर जिनगी केना कटतै हौ डकूबा! आब ई दुनू बेटा केकरा बाबू कहते हौ डकूबा!”
हुनकर दुनू बेटा सेहो भोकासि पाड़ि-पाड़ि कनैत छल। ई दृश्य देखि हमरा आँखिमे नोर आबि गेल। गामक
दाइ-माइ
दीपवालीकेँ सम्हारैत आ कनबो करैत। किछुए कालक बाद बुधनाक लाश लग पुलिस आएल।
लाश उठा पोस्टमार्टमक लेल लऽ गेल। गामक लोक सभ रंग-बिरंगक बात करए लगल। सबहक बात बुधनासँ शुरू होइत छल। मुन्हाइर
साँझकेँ एम्बु्लेंसपर बुधनाक लाश गाम
आएल रहए। एक बेर फेर भरि गाममे हल-चल भऽ गेल। दीपवाली आर दुनू बेटा लाशपर गिर जोर-जोरसँ
कनैत छलीह। गामक बूढ़-बुढ़ानुस सभ कहलनि- “ऐ लाशकेँ जल्दी़ संस्कार कऽ देल जाए। ई
कोनो खुशनामा नै छी। ई हाक-डाकबला लाश छी।”
कोनो तरहेँ संस्कार भऽ गेल।
आब दीपवाली बेसाहारा भऽ गेलीह। दूटा बेटा आ एकटा नातिक जिम्मेवारी
हुनका ऊपर। दीपवाली आब तरकारी बेचनाइ बन्न कऽ देलनि। केना नै बन्न करैत।
झंझारपुरसँ तरकारी के आनत? बकरीये टा आब हुनक जीविकाक साधन रहि गेल
रहनि। कहाबी अछि जे दुख जखनि अबैत अछि तँ चारू दिससँ अबैत अछि।
बुधनाक मरब सालो नै लागल रहै, बरसातक समए रहए, एकटा बेमारी आएल। हुनकर सभ बकरी एका-एकी सभटा मरि गेल।
दीपवाली फेरसँ दुखमे डूमि गेलीह। आब हुनका कोनो सहारा नै बचल। पन्द्रह दिन धरि दीपवाली किछु नै बाजए। फेर दीपवाली हिम्मत
नै हारलनि। एक दिन हम
सांत्वनाक खियालसँ कहलियनि- “की हाल अछि?”
ओ कहलनि- “बौआ, विधनाक एहने
मोन छन्हि् तँ हम की केओ की करत? आब हम सभ माटिमे मिलि
गेलौं किंतु अहाँ सबहक माए-बापक असीरवादसँ हम हारि मानएवाली नै छी। जाबे जिअब मेहनत कऽ
बाल-बच्चाकेँ
देखब। मरला ऊपर जानथि विधना।”
दीपवालीकेँ आब मेहनति छोड़ि कोनो सहारा नै बँचल। ओ छथि
बड़ मेहनती। ओना बुधना दीपवालीक साेहाग छल किंतु दीपवालीक कमाइपर घरक सबहक ठेसी
छलनि। दस धूर जमीनसँ पाँच कट्ठा भेल रहै जे दीपवालीक खून-पसेनाक फल छी।
दीपवाली एक गोटासँ गाए, तेहाइपर, पोसिया लेलनि। नाति अपन गाम चलि गेल। दीपवाली आब भरि दिन गाएमे
लागल रहैत छलीह। समए बीतल। छोटका बेटाकेँ कोनो तरहेँ दरभंगा पढ़ैले पठौलनि।
दीपवालीक उमर सेहो नीचाँ मुहेँ भेल जा रहल छल। गाए पोसबामे एना लगल रहैत छलीह जे
घासक पथिया सदिखन हुनका माथेपर रहैत छल। बड़का बेटा आब नम्हर भेल, घर-गिरहस्तीक कार्य करए लगल। गाए पोसलासँ एकटा बड़द भऽ गेल। जइसँ बड़का
बेटा खेती करए लागल। दुख तँ दीपवालीकेँ बड़ भेलै किंतु दीपवालीक मेहनतिक कारण
एकबेर फेर हुनकर घर-परिवार चलए लगल। भरि गामक लोक हुनका घासवाली कहए लगलनि। आइ हुनका
दस थान गाए छन्हि। ओ घास
आनैमे एना लगल रहैत छलीह जे भरि दिन बाधेमे रहैत छलीह। बाधसँ एलापर खेनाइ बनाबथि आ माल-जालक निमेरा
सेहो करथि।
एक दिन बड़का बेटाकेँ कहलीह- “बौआ, हमरा खेतसँ
एबामे देरी भऽ जाइए, तोरा भूख लागि जाइत हेतह ने?”
बेटा कहलकनि- “माए, भूख तँ
अवश्ये लागि जाइए परन्तु तूहीं की करबीही, से नै तँ हमरा
खेनाइ बनेनाइ सिखा दे।”
माए बाजलि- “जरूर बौआ, लूरि
कोनो खराप नै होइ छै। हम बाप-जनम कहियो घास नै छिलने रही मुदा आइ दस थान गाए घासेपर रखने
छी।”
ऐ तरहेँ समए बितैत गेल। दीपवाली संघर्ष करैत रहलीह।
एक दिन हम भोरे-भोर चौबटियापर गेल रही। चाहक दोकानपर िकयो बजलाह जे दीपवालीक
बेटा प्रोफेसर भऽ गेलै। पेपरमे
आएल छै। हमरा बड़ खुशी भेल। हम हुनकर
पूरा जिनगीकेँ मोन पाड़ए लगल रही। दीपवालीपर घनेरो दुख आएल परन्तु कखनो हुनक
मनोबल मलीन नै भेल। ओ दुखसँ संघर्ष कऽ समाजकेँ एकटा प्रोफेसर देलखिन,
ऐसँ खुशी अओर की?
छोटका बेटा काओलेज ज्वाैइन कऽ लेलन्हि। पहिल तनखाह उठा
माएसँ मिलबा लेल गाम एलाह। माए कहलखिन- “बेटा, हमरा बड़
खुशी अछि किंतु ई दिन आनबामे तोहर भैयाक योगदान छह। तूँ छोटेटा छेलह तखन बाप
मरि गेलह। तोरा पढ़ेबा-लिखेबामे तोहर भैया हरिदम मदति केलकह। ई धियान रखियह।”
कहैत दीपवालीक आँखिसँ खुशीक नोर टपकल आ तखनि दोसर दिस
टगि गेल।
४
कपिलेश्वर राउत
विहनिकथा-
सलाह
फागुन
बीत रहल छल आ चैतक आगमन भऽ रहल छल। समए तेहन ने बिकट जे बातरस बलाक लेल बर उकड़ू
छल। फागुन चैतमे जेहने गर्मी तेहने हार तक डोलबैबला जाड़। तँए ने एकटा कहावत छै जे
एकटा ब्रह्मण गाए बेच कऽ चैतमे कम्बल खरीदने रहथि। तेहने समए अहू बेर छल।
बातरसोक जन्म एहने समएमे होइत छै।
िकसुनकेँ
बातरस जागि गेल छलै जइसँ बेचारा अफसियाँत छल। गाम घरक डाक्टरसँ लऽ कऽ दरभंगा
तकक डाक्टरसँ देखौलक मुदा बेमारी ठीक नै भेलै। बातरस आब गठियाक रूप धऽ लेलकै।
उठबैसँ लऽ कऽ खेनाइ-पिनाइ
तकमे असोकर्य होमए लगलै।
एक दिन
पड़ोसी-बालगोविन्द कहलकै- “हौ िकसुन, तोरा
देखि कऽ हमरा बड़ दया अबैत अछि जे एहेन धुआ-कायामे
ई की भऽ गेलै। हमर विचार अछि जे बेटा दिल्लीमे छहे,
ओतइ जा कऽ एक बेर देखा आबह।”
िकसुन
बजला-
“ठीके कहै छह भाय, दू-चारि
दिनमे चलि जाएब।”
दिल्ली
जा कऽ एम्स असपतालमे जाँच करा कऽ एक महीना दवाइ खेलक। िकछु असान भेल,
गाम चल आएल। गाम आबि कऽ जखन दवाइ खाए तँ दवाइ जखन तक असर रहै ताबे तक ठीक रहै आ
जखन दवाइक असर खतम भऽ जाइ तँ बेमारी बढ़ि जाइ।
बेचारा
असोथकित भऽ असमंजसमे दलानपर बैसल छल िक सुमन जी जे गामे स्कूलमे मास्टरी करैत
छला, ओही टोल दऽ कऽ अबैत छला अाकि नजरि किसुन दिस गेलनि। कुशल
पुछलखिन, बेचारा झमानसँ खसल। धूर, हम
िक अपन कुशल कहब। हम तँ वातरससँ हरान छी। सुमन जी बोल भरोस दैत कहलखिन-
“अहाँक बेमारी ठीक भऽ जाएत। हम जेना कहैत
छी तना-तना करू आ आयुर्वेदिक दवाइ बता दैत छी से करैत रहू,
बेमारी ठीक भऽ जाएत।”
बेचारेकेँ
कतौसँ प्राण एलै। बाजला- “एतेक केलौं तँ एकबेर इहो अजमाएब।”
सुमनजी
बजला-
“हम जेना-जेना
कहै छी तेना-तेना
करू। सीधा भऽ कऽ बैसू। एक नम्बर, पएर पसारू आ अंगुरीकेँ मोड़ू आ सोझ
करू। दोसर, पएरक पंजाक अंगुरीकेँ मोड़ू आ सोझ करू। तेसर, पंजाकेँ आगाँ झुकाउ आ सोझ करू। आब दुनू पएरकेँ सटा कऽ गोल कऽ कऽ घुमा,
पाँच बेर एक मुँहेँ तँ पाँच बेर
दोसर मुँहेँ। चारिम, जाँघमे हाथसँ गहुआ लगा कऽ छावाकेँ जेना साइिकल
चलबैत छी तेना चलाउ, उपरसँ नीचाँ मुँहेँ आ नीचाँसँ उपर मुँहेँ, इहो पाँच बेर। आ हे याद राखब रीढ़क हड्डी सीधा रहक चाही। पाँचम, पलथा मारि कऽ बैस जाउ आ दुनू हाथकेँ
पसारू आ दुनू हाथक अोंगरीकेँ सोझ करू,
कसि कऽ मुट्ठी बान्हू, दस बेर करू। छअम, हाथक पंजाकेँ आगू झुकाउ आ सोझ करू १० बेर।
सातम, दुनू कलाइक मुट्ठी बान्हि कऽ गोल कऽ कऽ घुमाउ, ऊपरसँ नीचाँ आ नीचाँसँ ऊपर मुँहेँ। आठम,
हाथकेँ सीधा कऽ कऽ पंजाकेँ पाँखुरपर भिराउ आ सोझ करू। नवम, पंजाकेँ पाँखुरपर भिड़ा कऽ कोहुनीकेँ सटाउ
आ गोल कऽ कऽ ऊपरसँ नीचाँ आ नीचाँसँ ऊपर मुँहेँ १० बेर करू। दसम, गरदनिकेँ आगू झुकाउ आ फेर पाछू झुकाउ,
पाँच बेर फेर दुनू पाँखुरमे पाँच बेर कानकेँ सटाउ आब गोल कऽ कऽ चारूभर घुमाउ आगूसँ
पाछू आ पाछूसँ आगू पाँच बेर। एगारहम,
पएर पसारू आ ठेहुनकेँ मोड़ि कऽ
पएरपर बैस जाउ आ दुनू हाथ ऊपर उठा कऽ आगू मुँहेँ झुकू आ नाककेँ जमीनपर सटाउ आ
हाथकेँ सीधा जमीनपर पसारि दियौ। पेटसँ हवा निकालि दियौ। जखन साँस लेबाक हुअए
तखन सोझ भऽ जाउ आ साँस लिअ। ई पाँच बेर करू। बारहम,
ठेहुन भरे डाँड़केँ सोझ करू आ दुनू हाथसँ पएरक तरबाकेँ पकड़ू,
ईहो पाँच बेर करू।”
बिच्चेमे
किसुन बजला- “ई तँ बड्ड भिरगर अछि।”
सुमनजी- “सभ दिन साँझ-भिनसर करैत रहब ने तँ कोनो भिरगर नै बुझाएत। हँ तँ अगिला आसन सभ
सुनू। ततेक ने आसन छै जे करैत
रहब तँ भिनसरसँ साँझ पड़ि जाएत। अहाँ लेल जे जरूरत अछि ओतबे देखबै छी। तँ सुनू चित भऽ कऽ सुति रहू, दुनू टांगकेँ सटा
कऽ ऊपरसँ नीचाँ मुँहेँ आ नीचाँसँ ऊपर मुँहे चलाउ। फेर दुनू टाँगकेँ सटा कऽ ओहिना
चलाउ।”
िकसुन
बजला- “ई तँ आरो भिरगर अछि।”
सुमनजी
कहलखिन-
“नै, जहन
लगातार करए लगब ने तँ सभ हल्लुक भऽ जाएत। जहिना जनमौटी बच्चाकेँ माए आ दादी सभ
टांग, हाथ, देह सभकेँ ममोरि-समोरि दैत छै जइसँ सभ अंग सक्कत भऽ जाइ छै,
तहिना अहूँकेँ हएत। अहाँक खून जाम भऽ गेल अछि। ओकरा चलेबाक अछि। अहाँक तँ कमाएल-खटाएल
देह छलए, बेटाकेँ नोकरी भेने काज छोड़ि देलिऐ, तँए एना भेल। जँ सभ अंग
चलबैत रहब, योग-प्राणायाम करैत रहब, तँ सभ रोग-व्याधि
स्वत: भागि जाएत। हँ
तँ आब अगिला करू। आब पीठ भरे सुतू पहिने एक टांगकेँ डाँड़ भरे उठाउ फेर दोसरो
टाँगकेँ उठाउ तकर बाद दुनू टाँगकेँ उठाउ आ राखू। एकर बाद दुनू हाथकेँ पाछू लऽ जा
कऽ घुट्ठीकेँ पकड़ि कऽ छातीकेँ उठाउ। ऐसँ डाँड़क रोग समाप्त। सुबह-शाम
खाली पेटे अगर नियमित रूपे करैत रहब तँ निश्चित ठीक भऽ जाएब। आब किछु
प्राणायाम सेहो सिख लिअ। पद्मासनमे बैस जाउ आ कपाल भाती,
उड़ियान बन्ध, अनुलोम-विलोम,
भ्रामरी आ नाड़ी सोधन प्राणायाम करैत रहू। कपाल भातीमे केवल साँस छोड़ैक छै ई
पच्चास बेर करू। उड़ियान बंधमे पेटकेँ सटकेबाक छै पूरा हवा पेटसँ निकालि कऽ।
अनुलोम-विलोममे वामा नाकसँ साँस लिअ आ दहिनासँ छोड़ू। तहिना दहिनासँ लिअ
आ वामासँ छोड़ू। ई क्रम दस बेर। भ्रामरीमे,
आँखि आ कानकेँ हाथक ओंगरीसँ मोड़ि कऽ औंठा
कानमे, दोसर ओंगरी
कपारपर आ तीन ओंगरी आँखिपर राखू आ कंठसँ ओम शब्दक उच्चारक करू, दस बेर।
नारी
सोधन, वामा नाकसँ साँस
लिअ आ रोकू, जहन
छोड़ैक विचार हुअए तहन दाया नाकसँ पूरा छोड़ि आ बाहरे साँसकेँ रोकने रहू। जहन
साँस लइक विचार हुअए तँ दायासँ लिअ। फेर रोकि दियौ आ ओहिना विपरीतसँ छोड़ू।
ईहो दस बेर करू। आ हे सुबह-शाम टहलैक सेहो आदति लगा लिअ। एकटा दवाइ बता दइ छी। पहिने
दवाइ बनाएब केना से सुनू, आधा किलो
करू तेल, एक पौआ लहसुन, पाँचटा धथुरक फड़,
दू सए ग्राम लाल मिरचाइ, दू सए
ग्राम तमाकुलक पात, थोड़ेक
आकक पत्ता, सए ग्राम लौंग, सभटाकेँ कुटि कऽ तेलमे डाहि दिऔ। एक
मास तक जरलेहेसँ मािलश करू तखन गरलाहासँ करब आ मोन राखब जे मालिश केला बाद हाथ
साबुनसँ धाेइ लेब।”
किसुन
लाल बजला-
“किछु परहेजो-तरहेज छै?”
“योग
केला बाद बीस मिनट तक किछु नै खाएब। एक घंटाक बाद जलपान करब। जलपानक चारि घंटा
बाद भोजन करब। खाइत काल पानि नै पीअब। खेलाक एक घंटा बाद पानि पिअब। हरिअर साग-सब्जीक
खेनाइमे बेसी बेवहार करब। सूतैकाल एक गिलास सुशुम दूध पीिब लेब। जौं निअम आ
संयमसँ जेना बता देलौं तेना जँ करैत रहब तँ बातरस तँ ठीके भऽ जाएत जे आनो बेमारी
सभ नै हएत। जेना कफ, दम्मा, टीवी,
रक्तचाप, मोटापा, गैस,
कब्ज, हृदए रोग, अवसाद इत्यादि। देहसँ मेहनति करैबलाक
देह केहेन सोंटल-साँटल रहै छै तहिना अहुँक भऽ जाएत।”
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।