भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

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(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, October 21, 2022

गजेन्द्र ठाकुर उमेश मण्डल जीक “निश्तुकी” कविता, लघु-कविता, हाइकू/ टनका आ गजलक संग्रहक

 𑒑𑒖𑒹𑒢𑓂𑒠𑓂𑒩 𑒚𑒰𑒏𑒳𑒩

𑒅𑒧𑒹𑒬 𑒧𑒝𑓂𑒛𑒪 𑒖𑒲𑒏 “𑒢𑒱𑒬𑓂𑒞𑒳𑒏𑒲” 𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰, 𑒪𑒒𑒳-𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰, 𑒯𑒰𑒃𑒏𑒴/ 𑒙𑒢𑒏𑒰 𑒂 𑒑𑒖𑒪𑒏 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯𑒏
𑒅𑒧𑒹𑒬 𑒧𑒝𑓂𑒛𑒪 𑒖𑒲𑒏 “𑒢𑒱𑒬𑓂𑒞𑒳𑒏𑒲” 𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰, 𑒪𑒒𑒳-𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰, 𑒯𑒰𑒃𑒏𑒴/ 𑒙𑒢𑒏𑒰 𑒂 𑒑𑒖𑒪𑒏 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯 𑒟𑒱𑒏। 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲𑒏 𑒢𑒫 𑒞𑒳𑒩 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒅𑒧𑒹𑒩𑒏𑒹𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒭𑓂𑒚𑒰 𑒢𑒻 𑒠𑒹𑒥𑓄 𑒔𑒰𑒯𑒻𑒋, 𑒖𑒿 𑒍 𑒅𑒧𑒹𑒩 𑒁𑒑𑓂𑒩𑒑𑒰𑒧𑒲 𑒢𑒻 𑒯𑒼𑒟𑒱। 𑒂 𑒮𑒹 𑒯𑒹𑒥𑒰𑒏𑒼 𑒔𑒰𑒯𑒲, 𑒏𑒰𑒖𑒏 𑒮𑒧𑓂𑒧𑒰𑒢 𑒕𑒻 𑒅𑒧𑒹𑒩𑒏 𑒂 𑒣𑒳𑒩𑒰𑒢𑒏 𑒢𑒻। 𑒂 𑒞𑒹𑒿 𑒣𑒳𑒩𑒰𑒢 𑒂 𑒅𑒧𑒹𑒩𑒑𑒩 𑒖𑒿 𑒁𑒑𑓂𑒩𑒑𑒰𑒧𑒲 𑒕𑒟𑒱 𑒞𑒿 𑒞𑒱𑒢𑒏𑒰 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒭𑓂𑒚𑒰 𑒏𑒱𑒋 𑒢𑒻 𑒦𑒹𑒙𑒢𑓂𑒯𑒳?
𑒄 𑒙𑒢𑒏𑒰 𑒠𑒹𑒐𑒴:
𑒮𑒧𑒮𑓂𑒨𑒰𑒿 𑒂𑒣𑓂𑒞
𑒮𑒼𑒪𑒯𑒢𑒲 𑒮𑒖𑒪
𑒮𑒰𑒯𑒱𑒞𑓂𑒨𑒏𑒰𑒩
𑒪𑒹𑒐𑒹 𑒣𑒳𑒩𑒰𑒢 𑒕𑒻 𑒂𑒣𑓂𑒞
𑒏𑒹𑒢𑒰 𑒋𑒞𑒻 𑒨𑒟𑒰𑒩𑓂𑒟

𑒂 𑒞𑒹𑒿 “𑒥𑒳𑒜𑓃𑒰𑒩𑒲𑒧𑒹” 𑒏𑓂𑒭𑒝𑒱𑒏𑒰𑒧𑒹 𑒍 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒖𑒱𑒢𑒑𑒲 𑒔𑒰𑒯 𑒏𑒩𑒻𑒋
𑒏𑒩𑓂𑒧𑒏 𑒥𑒰𑒙 𑒠𑒹𑒐𑒥𑒻𑒋

𑒂 𑒏𑒩𑓂𑒧𑒏𑒰 𑒥𑒰𑒙 𑒖𑒿 𑒣𑒏𑒛𑓃𑒱 𑒪𑒹𑒥 𑒞𑒐𑒢 𑒡𑒳𑒡𑒳𑒋𑒥𑒹 𑒏𑒩𑒥:
𑒦𑒳𑒩𑒏𑒲-𑒮𑒿-𑒦𑒰𑒩 𑒥𑒢𑒱
𑒥𑒲𑒪 𑒥𑒼𑒯𑒩𑒱 𑒡𑒩𑒱
𑒥𑒢𑒱-𑒥𑒢𑒱 𑒁𑒮𑓀𑒞𑒼𑒭
𑒡𑒼𑒡𑒩𑒱 𑒥𑒢𑒱 𑒡𑒳𑒡𑒳𑒂 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱

𑒧𑒱𑒟𑒱𑒪𑒰𑒮𑒿 𑒣𑒛𑓃𑒰𑒃𑒢 𑒦𑓄 𑒩𑒯𑒪 𑒕𑒻। 𑒮𑒹 𑒩𑒯𑒱-𑒩𑒯𑒱 𑒏𑒔𑒼𑒙𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱 𑒏𑒫𑒱𑒏𑒹𑒿। 𑒂 𑒖𑒿 𑒫𑒮𑒢𑓂𑒞𑒏 𑒂𑒑𑒧𑒢 𑒦𑓄 𑒖𑒰𑒋 𑒞𑒐𑒢 𑒞𑒞𑓂𑒫 𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢 𑒦𑒻𑒨𑒹 𑒢𑒹 𑒖𑒰𑒋𑒞!
𑒥𑒮𑓀𑒞 𑒂𑒋𑒪
𑒑𑒰𑒧 𑒖𑒰𑒋𑒥
𑒂𑒥 𑒋𑒞𑒋
𑒩𑒯𑒱 𑒢𑒻 𑒣𑒰𑒋𑒥
𑒥𑒮𑓀𑒞𑒹𑒏 𑒐𑒼𑒖𑒧𑒹 𑒞𑒿
𑒕𑒲 𑒥𑒾𑒂𑒋𑒪

𑒌 𑒣𑒛𑓃𑒰𑒃𑒢𑒮𑒿:-
𑒑𑒰𑒧𑒏 𑒧𑒳𑒿𑒯𑒟𑒩𑒱
𑒖𑓀𑒑𑒪 𑒥𑒢𑒪 𑒁𑒕𑒱

𑒯𑒳𑒢𑒏𑒰 𑒫𑒱𑒔𑒰𑒩𑒏 𑒤𑒰𑒿𑒙 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒩𑒯𑒱-𑒩𑒯𑒱 𑒠𑒹𑒐𑒰 𑒣𑒛𑓃𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒁𑒯𑒰𑒿𑒏 𑒑𑒣
𑒁𑒣𑒢 𑒧𑒢
𑒠𑒳𑒢𑒴 𑒧𑒱𑒪𑒻𑒋
𑒧𑒱𑒪𑒱 𑒠𑒳𑒢𑒴 𑒁𑒕𑒱 𑒔𑒾𑒔𑓀𑒑
𑒐𑒼𑒖𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒫𑒮𑓀𑒞
𑒧𑒳𑒠𑒰
𑒥𑒮𑓀𑒞𑒏 𑒔𑒱𑒛𑓃𑒻𑒏𑒹𑒿
𑒮𑓀𑒑 𑒢𑒻 𑒩𑒰𑒐𑒋 𑒔𑒰𑒯𑒻 𑒕𑒲 𑒯𑒧


𑒯𑒳𑒢𑒏𑒰 𑒥𑒳𑒗𑓄𑒧𑒹 𑒂𑒥𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱 :
𑒦𑒏𑒼𑒦𑒢 𑒍𑒃 𑒁𑒢𑓂𑒯𑒰𑒰𑒩 𑒏𑒼𑒚𑒩𑒲𑒧𑒹

𑒂 𑒍 𑒁𑒯𑒰𑒿𑒮𑒿 𑒣𑒴𑒕𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒕𑒟𑒱:
𑒞𑒐𑒢 𑒬𑒲𑒬𑒰𑒧𑒹 𑒏𑒹𑒢𑒰 𑒠𑒹𑒐𑒰𑒋𑒞
𑒍𑒏𑒩 𑒔𑒱𑒞𑓂𑒩 𑒏𑒹𑒢𑒰 𑒂𑒋𑒞?
𑒂 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒢𑒻 𑒮𑒳𑒢𑓄 𑒔𑒰𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒍 𑒑𑒲𑒞 𑒖𑒞𑓄 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒂 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒑𑒰𑒍𑒪 𑒖𑒰 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒮𑓀𑒮𑓂𑒏𑒵𑒞𑒱𑒏 𑒑𑒲𑒞:
𑒯𑒢𑒯𑒢𑒰𑒃𑒞, 𑒦𑒢𑒦𑒢𑒰𑒃𑒞 𑒍𑒃 𑒮𑓂𑒫𑒩𑒏𑒹𑒿
𑒮𑒳𑒢𑒻𑒪𑒹 𑒢𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒞𑒻𑒨𑒰𑒩

𑒏𑒱𑒋 𑒢𑒻 𑒮𑒳𑒢𑒻 𑒪𑒹𑒪 𑒕𑒟𑒱 𑒞𑒻𑒨𑒰𑒩, 𑒏𑒰𑒩𑒝 𑒁𑒕𑒱 𑒛𑒩, 𑒠𑒩𑓂𑒠𑒏 𑒛𑒩𑒹 𑒍 𑒢𑒻 𑒮𑒳𑒢𑓄 𑒔𑒰𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒯𑒢𑒯𑒢𑒰𑒃𑒞, 𑒦𑒢𑒦𑒢𑒰𑒃𑒞 𑒍𑒃 𑒮𑓂𑒫𑒩𑒏𑒹𑒿।
𑒏𑒱𑒕𑒳 𑒁𑒖𑒲𑒥 𑒥𑒰𑒞 𑒮𑒦 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒰 𑒁𑒮𑒯𑒖 𑒪𑒑𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒂𑒑𑒱-𑒣𑒰𑒢𑒱𑒏𑒹𑒿
𑒧𑒢𑒏 𑒧𑒰𑒃𑒢𑒏𑒹𑒿

𑒏𑒰𑒩𑒝 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒕𑒻, 𑒁𑒑𑒱𑒪𑒯𑒲𑒏 𑒥𑒱𑒧𑓂𑒥 𑒠𑒹𑒐𑒴:
𑒮𑒣𑓂𑒣𑒞 𑒐𑒰𑒃 𑒏𑒰𑒪 𑒠𑒹𑒫𑒞𑒰
𑒪𑒼𑒏𑒏 𑒒𑒩 𑒖𑒛𑓃𑒥𑒻𑒏𑒰𑒪 𑒧𑒱𑒞𑓂𑒞𑒰

𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢 𑒂 𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢𑒲 𑒂 𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒏𑒰𑒬 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒰 𑒏𑒐𑒢𑒼 𑒍𑒗𑒩𑒲𑒧𑒹 𑒡𑓄 𑒠𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒖𑓂𑒘𑒰𑒢𑒼 𑒦𑓄 𑒖𑒰𑒃𑒞 𑒁𑒕𑒱 𑒑𑒳𑒪𑒰𑒧
𑒮𑒰𑓀𑒏𑒵𑒞𑓂𑒨𑒰𑒨𑒢 𑒣𑒛𑓃𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒧𑒼𑒢 𑒡𑒩𑒰𑒧

𑒪𑒯𑒰𑒮 𑒖𑒹 𑒁𑒯𑒰𑒿𑒏𑒹𑒿 𑒥𑒳𑒗𑒰 𑒣𑒛𑓃𑒻𑒋 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒂𑒥 𑒥𑒰𑒖𑒞:
𑒂𑒥 𑒍 𑒥𑒰𑒖𑒞
𑒥𑒖𑒻𑒞-𑒥𑒖𑒻𑒞 𑒯𑒿𑒮𑒞
𑒁𑒯𑒰𑒿𑒏 𑒏𑒵𑒞𑒱𑒣𑒩
𑒥𑒢𑒪 𑒮𑓀𑒮𑓂𑒏𑒵𑓃𑒞𑒱𑒣𑒩

𑒧𑓀𑒑𑒪 𑒂 𑒧𑓀𑒑𑒪𑒰 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒩 𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰𑒧𑒹 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒏𑒋𑒏 𑒚𑒰𑒧 𑒂𑒋𑒪 𑒁𑒕𑒱। 𑒫𑒱𑒫𑒬𑒞𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒲𑒏 𑒁𑒕𑒱 𑒧𑓀𑒑𑒪𑒰!
𑒏𑒰𑒞𑒧𑒹 𑒚𑒰𑒜𑓃 𑒦𑓄 𑒧𑓀𑒑𑒪𑒰

𑒂 𑒂𑒑𑒰𑒿…
𑒁𑒣𑒢𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒏𑒹𑒪𑒏 𑒋𑒏𑒼𑒩

𑒞𑒿 𑒮𑒳𑒐𑒰𑒋𑒪 𑒒𑒰𑒙𑒏 𑒒𑒙𑒫𑒰𑒩𑒲 𑒧𑓀𑒑𑒪𑒰𑒣𑒩 𑒠𑒹𑒐𑒴 𑒍𑒏𑒩 𑒫𑒱𑒫𑒬𑒞𑒰:
𑒮𑒳𑒐𑒪𑒾 𑒒𑒰𑒙𑒏 𑒪𑒹𑒞𑒻 𑒐𑒹𑒥𑒰𑒃
𑒢𑒻 𑒠𑒹𑒥𑒻 𑒞𑒿 𑒠𑒹𑒞 𑒄 𑒩𑒹𑒥𑒰𑒛𑓃𑒱।
𑒮𑒋𑒯 𑒦𑒹𑒪 𑒧𑓀𑒑𑒪𑒰 𑒒𑒳𑒩𑒱 𑒑𑒹𑒪
𑒣𑒕𑒱𑒧𑒹 𑒧𑒳𑒩𑒱 𑒑𑒹𑒪

𑒏𑒫𑒱 𑒏𑒳𑒧𑓂𑒯𑒩𑒾𑒙𑒏 𑒥𑒱𑒧𑓂𑒥 𑒋𑒢𑒰 𑒁𑒢𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒏𑒰𑒿𑒔 𑒧𑒰𑒙𑒱𑒏 𑒧𑒴𑒩𑓂𑒞𑒱 𑒖𑒯𑒱𑒢𑒰
𑒜𑒰𑒹𑒔𑒰 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒏𑒯𑒥𑒻𑒋।
𑒞𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒞𑒿 𑒤𑒴𑒪𑒼𑒮𑒿 𑒥𑒢𑒪 𑒤𑒪
𑒮𑒱𑒩𑒐𑒰𑒩 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒏𑒯𑒥𑒻𑒋।
𑒂 𑒫𑒋𑒯 𑒮𑒱𑒩𑒐𑒰𑒩 𑒢𑒹
𑒂𑒬𑒰 𑒥𑒰𑒢𑓂𑒯𑒱𑒰-𑒥𑒰𑒢𑓂𑒯𑒱
𑒩𑒾𑒠-𑒥𑒮𑒰𑒞 𑒮𑒯𑒻𑒋

𑒂 𑒁𑒣𑒢𑒹 𑒮𑒢 𑒂𑒩 𑒥𑒙𑒼𑒯𑒲 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒯𑒱𑒢𑒏𑒰 𑒦𑒹𑒙𑒱 𑒖𑒰𑒃 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒯𑒧𑒩𑒹 𑒮𑒢 𑒃𑒯𑒼 𑒮𑒦 𑒥𑒙𑒼𑒯𑒲
𑒯𑒩𑒰𑒋𑒪 𑒥𑒰𑒙 𑒥𑒜𑓃𑒋 𑒔𑒰𑒯𑒻𑒋

𑒏𑒫𑒱𑒏𑒹𑒿 𑒏𑒼𑒢𑒼 𑒦𑓂𑒩𑒧 𑒢𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱 𑒖𑒹 𑒖𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒥𑒰𑒙 𑒔𑒪𑒥 𑒞𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒒𑒰𑒙 𑒦𑒹𑒙𑒞 𑒂 𑒞𑒐𑒢 𑒍𑒃 𑒒𑒰𑒙𑒣𑒩 𑒣𑒰𑒢𑒱 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒞𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒦𑒹𑒙𑒞:
𑒖𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒔𑒪𑒻𑒏 𑒥𑒰𑒙 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻
𑒞𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒞𑒿 𑒥𑒳𑒗𑒻𑒨𑒼𑒏 𑒥𑒰𑒙 𑒕𑒻
𑒖𑒹𑒯𑒹𑒢 𑒖𑒹 𑒥𑒰𑒙 𑒔𑒪𑒻 𑒕𑒻
𑒞𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒒𑒰𑒙 𑒣𑒯𑒳𑒿𑒔𑒻 𑒕𑒻

𑒄 𑒥𑒰𑒙 𑒂 𑒫𑒱𑒔𑒰𑒩 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒩 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒂𑒩𑒼 𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰𑒧𑒹 𑒁𑒥𑒻𑒞 𑒁𑒕𑒱:
𑒫𑒱𑒔𑒰𑒩𑒏 𑒮𑓀𑒑 𑒖𑒿 𑒔𑒰𑒪𑒱 𑒩𑒯𑒪
𑒒𑒰𑒙𑒣𑒩 𑒖𑒰𑒃𑒮𑒿 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒢𑒻 𑒩𑒼𑒏𑒞

𑒂 𑒢𑒲𑒏 𑒫𑒰 𑒁𑒡𑒪𑒰𑒯 𑒥𑒰𑒙 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒏𑒹𑒢𑒰 𑒡𑒩𑒻𑒋, 𑒞𑒯𑒴𑒣𑒩 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒩 𑒪𑒹𑒐𑒢𑒲 𑒔𑒪𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒖𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒒𑒩𑒏 𑒪𑒼𑒏 𑒩𑒯𑒻 𑒕𑒻
𑒒𑒩𑒏 𑒧𑒳𑒿𑒯𑒟𑒩𑒱 𑒞𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻।
𑒖𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒒𑒩𑒏 𑒧𑒳𑒿𑒯𑒟𑒩𑒱 𑒩𑒯𑒻 𑒕𑒻
𑒞𑒹𑒯𑒢𑒹 𑒢𑒹 𑒥𑒰𑒙𑒼 𑒡𑒛𑓃𑒻 𑒕𑒻

𑒂 𑒄 𑒥𑒰𑒙 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒩 𑒣𑒕𑒼𑒛𑓃 𑒑𑒖𑒪𑒧𑒹 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒢𑒻 𑒕𑒼𑒛𑓃𑒻 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱:
𑒑𑒼𑒩 𑒧𑒾𑒑𑒲 𑒑𑒾𑒩𑒥𑒹 𑒂𑒢𑓂𑒯𑒩 𑒦𑒹𑒪𑒱 𑒁𑒛𑓃𑒪
𑒏𑒩𑒱𑒨𑒰 𑒥𑒰𑒙 𑒥𑒳𑒗𑒰𑒃𑒋 𑒔𑒪𑒴 𑒒𑒳𑒩𑒱 𑒔𑒪𑒲

𑒍 𑒢𑒱𑒩𑒰𑒬 𑒏𑒐𑒢𑒼 𑒢𑒻 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒟𑒱:
𑒧𑒩𑒪𑒹𑒧𑒹 𑒧𑒰𑒩𑒱 𑒐𑒰-𑒐𑒰
𑒧𑒰𑒩𑒪 𑒥𑒳𑒃𑒡 𑒏𑒯𑒥𑒻 𑒕𑒲

𑒂 𑒋𑒏𑒩 𑒏𑒰𑒩𑒝 𑒕𑒻, 𑒍 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒖𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒣𑒥𑒱𑒞𑒹 𑒁𑒠𑓂𑒩𑒰𑒏 𑒣𑒰𑒢𑒱
𑒧𑒳𑒃𑒪𑒯𑒼 𑒡𑒰𑒩 𑒖𑒲𑒥𑒻 𑒕𑒻।
𑒦𑒪𑒯𑒱𑓀 𑒖𑒲𑒞𑒯𑒰 𑒡𑒰𑒩 𑒥𑒲𑒔
𑒞𑒲𑒢-𑒧𑒮𑒳𑒂 𑒍 𑒏𑒯𑒥𑒻 𑒕𑒻

𑒂 𑒌 𑒂𑒬𑒰-𑒂𑒏𑓂𑒩𑒼𑒬 𑒂 𑒢𑒱𑒩𑒰𑒬𑒰𑒏 𑒧𑒡𑓂𑒨 𑒍 𑒪𑒱𑒐𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒕𑒼𑒛𑓃𑒱 𑒠𑒹𑒢𑒹 𑒙𑒴𑒙𑒱 𑒖𑒰𑒋𑒞 𑒮𑒧𑒰𑒖
𑒁𑒣𑒢 𑒅𑒧𑒹𑒬 𑒖𑒼𑒛𑓃𑒞𑒻 𑒞𑒿 𑒔𑒯𑒏𑒞𑒻 𑒪𑒑𑒻𑒋 𑒄।


𑒅𑒧𑒹𑒬 𑒧𑒝𑓂𑒛𑒪 𑒖𑒹 𑒏𑒱𑒕𑒳 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒢𑒱𑒬𑓂𑒞𑒳𑒏𑒲 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒟𑒱, 𑒒𑒳𑒩𑒕𑒲, 𑒍𑒗𑒩𑒲 𑒮𑒦𑒙𑒰 𑒔𑒰𑒩𑒴 𑒏𑒰𑒞 𑒣𑒮𑒩𑒪 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱। 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒮𑒼𑒗𑒩𑒰𑒥𑒻 𑒕𑒟𑒱, 𑒍𑒗𑒩𑒰𑒥𑒻 𑒢𑒻 𑒕𑒟𑒱।

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