भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, October 21, 2022

गजेन्द्र ठाकुर मुन्नाजीक मैथिली विहनि कथाक संग्रह “प्रतीक”

 𑒑𑒖𑒹𑒢𑓂𑒠𑓂𑒩 𑒚𑒰𑒏𑒳𑒩

𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯 “𑒣𑓂𑒩𑒞𑒲𑒏”
𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯 “𑒣𑓂𑒩𑒞𑒲𑒏” 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒲𑒏𑒰𑒞𑓂𑒧𑒏𑒞𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒲𑒏 𑒥𑒢𑒱 𑒑𑒹𑒪 𑒁𑒕𑒱। 𑒥𑒱𑒩𑒰𑒩𑒮𑒿 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒅𑒣𑒰𑒩𑒱 𑒡𑒰𑒢 𑒂 𑒧𑒹𑒩𑒔𑒰𑒃 𑒩𑒼𑒣𑒥𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒏𑓂𑒩𑒱𑒨𑒰 𑒌 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯𑒏 𑒮𑒦 𑒏𑒟𑒰 𑒮𑒦𑒧𑒹 𑒠𑒹𑒐𑒧𑒰𑒧𑒹 𑒂𑒍𑒞। 𑒞𑒹𑒿 𑒄 𑒕𑒱𑒙𑒳𑒂 𑒢𑒻 𑒩𑒼𑒣𑒳𑒂 𑒡𑒰𑒢𑒏 𑒐𑒹𑒞𑒲 𑒥𑒢𑒱 𑒑𑒹𑒪 𑒁𑒕𑒱। 𑒞𑒲𑒢 𑒧𑒼𑒢𑒏 𑒏𑒙𑓂𑒚𑒰 𑒮𑒦 𑒑𑒼𑒙𑒹 𑒮𑒳𑒢𑒻𑒞 𑒯𑒼𑒋𑒥, 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒋𑒞𑓄 𑒠𑒹𑒐𑒥।
𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒯𑒰𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒝𑒱𑒏𑒰 𑒢𑒻 𑒁𑒕𑒱, 𑒄 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒖𑒛𑓃𑒱 𑒁𑒕𑒱, 𑒥𑒲𑒂 𑒁𑒕𑒱, 𑒕𑒱𑒙𑒳𑒂 𑒡𑒰𑒢𑒮𑒿 𑒦𑒹𑒪 𑒣𑒾𑒡 𑒂 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱𑒮𑒿 𑒦𑒹𑒪 𑒣𑒾𑒡𑒧𑒹 𑒥𑒛𑓂𑒛 𑒁𑒢𑓂𑒞𑒩 𑒕𑒻। 𑒕𑒱𑒙𑒳𑒂 𑒡𑒰𑒢 𑒤𑒾𑒠𑒰𑒃 𑒢𑒻 𑒕𑒻। 𑒮𑒹 𑒯𑒰𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒝𑒱𑒏𑒰 𑒥𑒱𑒚𑒳𑒏𑒙𑓂𑒙𑒰 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻, 𑒌 𑒧𑒹 𑒯𑒿𑒮𑒲 𑒁𑒥𑒻 𑒕𑒻, 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒍 𑒕𑒱𑒙𑒳𑒂 𑒡𑒰𑒢 𑒖𑒹𑒏𑒰𑒿 𑒁𑒕𑒱। 𑒠𑒼𑒮𑒩 𑒥𑒹𑒩 𑒍𑒃 𑒥𑒱𑒚𑒳𑒏𑒙𑓂𑒙𑒰 𑒏𑒟𑒰𑒏𑒹𑒿, 𑒯𑒰𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒝𑒱𑒏𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒮𑒳𑒢𑒥 𑒞𑒿 𑒢𑒹 𑒯𑒿𑒮𑒱𑒨𑒹 𑒪𑒰𑒑𑒞 𑒂 𑒢𑒯𑒱𑒨𑒹 𑒕𑒑𑒳𑒝𑒞𑒹। 𑒞𑒐𑒢 𑒖𑒿 𑒥𑒱𑒢𑒳 𑒮𑒱𑒗𑒢𑒹 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒱𑒐𑒰𑒋𑒞, 𑒥𑒱𑒢𑒳 𑒮𑒱𑒗𑒹𑒢𑒹 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒱𑒐𑒥 𑒞𑒿 𑒪𑒞𑒲𑒤𑒰 𑒥𑒢𑒥𑒹 𑒙𑒰 𑒏𑒩𑒞। 𑒂 𑒯𑒰𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒝𑒱𑒏𑒰 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱, 𑒪𑒒𑒳 𑒂 𑒠𑒲𑒩𑓂𑒒 𑒏𑒟𑒰 𑒫𑒰 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒧𑒹 𑒪𑒹𑒐𑒏𑒲𑒨 𑒮𑒰𑒧𑒩𑓂𑒟𑓂𑒨𑒏 𑒁𑒢𑒳𑒮𑒰𑒩 𑒣𑓂𑒩𑒨𑒳𑒏𑓂𑒞 𑒯𑒼𑒃𑒞 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒂 𑒯𑒼𑒃𑒞 𑒩𑒯𑒞।
𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒅𑒮𑒢𑒰 𑒡𑒰𑒢𑒮𑒿 𑒥𑒱𑒩𑒰𑒛𑓃𑒧𑒹 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒢𑒻 𑒥𑒯𑒩𑒰𑒋𑒞। 𑒮𑒹 𑒥𑒱𑒢𑒳 𑒅𑒮𑒲𑒢𑒢𑒹 𑒥𑒲𑒂 𑒥𑒰𑒅𑒑 𑒏𑒩𑓄 𑒣𑒛𑓃𑒞। 𑒥𑒱𑒢𑒳 𑒅𑒮𑒲𑒢𑒢𑒹 𑒮𑒱𑒗𑒰𑒥𑓄 𑒣𑒛𑓃𑒞 𑒂 𑒞𑒃 𑒪𑒹𑒪 𑒥𑒹𑒬𑒲 𑒧𑒹𑒯𑒢𑒞𑒱 𑒏𑒩𑓄 𑒣𑒛𑓃𑒞। 𑒂 𑒥𑒲𑒂 𑒕𑒲𑒙𑒥 𑒞𑒻𑒨𑒼 𑒮𑒦 𑒡𑒰𑒢𑒮𑒿 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒢𑒻 𑒥𑒯𑒩𑒰𑒋𑒞, 𑒏𑒱𑒕𑒳 𑒮𑒿 𑒢𑒯𑒱𑒨𑒼 𑒥𑒯𑒩𑒰𑒋𑒞। 𑒮𑒹 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒮𑒤𑒪 𑒯𑒹𑒥𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒬𑒞 𑒏𑒧 𑒕𑒻, 𑒪𑒒𑒳𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒮𑒤𑒪𑒞𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒬𑒞 𑒏𑒢𑒹 𑒥𑒹𑒬𑒲 𑒕𑒻, 𑒠𑒲𑒩𑓂𑒒-𑒏𑒟𑒰 𑒂 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒏 𑒮𑒤𑒪𑒞𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒬𑒞 𑒂𑒩 𑒥𑒹𑒬𑒲 𑒕𑒻। 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮 𑒗𑓀𑒗𑒙𑒱𑒨𑒰 𑒏𑒰𑒖 𑒕𑒻, 𑒧𑒼𑒢 𑒒𑒼𑒩 𑒏𑓄 𑒠𑒻 𑒕𑒻, 𑒥𑒹𑒬𑒲 𑒮𑒧𑒋 𑒪𑒰𑒑𑒻 𑒕𑒻। 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒡𑒰𑒿𑒃-𑒡𑒰𑒿𑒃 𑒪𑒱𑒐𑒰𑒃 𑒕𑒻। 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒖𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒏𑒫𑒱𑒞𑒰 𑒪𑒹𑒪 𑒂𑒫𑒹𑒑 𑒔𑒰𑒯𑒲 𑒞𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒹𑒪, 𑒢𑒻 𑒞𑒿 𑒢𑒹 𑒡𑒰𑒿𑒃-𑒡𑒰𑒿𑒃 𑒪𑒱𑒐𑒹𑒥𑒹 𑒏𑒩𑒞 𑒂 𑒣𑒠𑓂𑒨𑒏 𑒑𑒠𑓂𑒨 𑒂 𑒑𑒠𑓂𑒨𑒏 𑒣𑒠𑓂𑒨 𑒥𑒢𑒥𑒰𑒏 𑒂𑒬𑓀𑒏𑒰 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒩𑒯𑒞। 𑒮𑒦 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒏𑒰𑒩 𑒏𑒞𑒹𑒏 𑒩𑒰𑒮 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒅𑒣𑒰𑒛𑓃𑒱 𑒏𑓄 𑒮𑒖𑒥𑒻𑒋। 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮 𑒑𑒠𑓂𑒨 𑒕𑒱𑒌 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒍𑒃𑒧𑒹 𑒏𑒼𑒢𑒼 𑒣𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒖𑒿 𑒑𑒲𑒞 𑒑𑒰𑒥𑓄 𑒪𑒰𑒑𑒋 𑒞𑒿 𑒍𑒏𑒩𑒰 𑒁𑒯𑒰𑒿 𑒩𑒼𑒏𑒱 𑒠𑒹𑒥𑒻? 𑒖𑒹 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒏𑒰𑒩 𑒩𑒯𑒻𑒋 𑒍 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒠𑒹𑒐𑒱 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒏 𑒡𑒢𑒐𑒹𑒞𑒲 𑒠𑒹𑒐𑓄 𑒪𑒑𑒻𑒋, 𑒏𑒐𑒢𑒼 𑒍 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒱𑒐𑒱𑒨𑒼 𑒠𑒻𑒋, 𑒤𑒹𑒩 𑒪𑒼𑒦 𑒮𑓀𑒫𑒩𑒝 𑒢𑒻 𑒦𑒹𑒪𑒰𑒮𑒿 𑒍𑒃 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒨𑒼𑒑 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮𑒧𑒹, 𑒠𑒲𑒩𑓂𑒒𑒏𑒟𑒰𑒧𑒹, 𑒪𑒒𑒳𑒏𑒟𑒰𑒧𑒹 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒏𑒩𑒻𑒋।
𑒞𑒐𑒢 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒏𑒲 𑒫𑒱𑒬𑒹𑒭𑒞𑒰। 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒯𑒧𑒩 𑒣𑒛𑓃𑒼𑒮𑒲 𑒮𑒳𑒩𑒖𑒳 𑒦𑒰𑒃 𑒕𑒟𑒱, 𑒍 𑒥𑒱𑒩𑒰𑒛𑓃𑒧𑒹 𑒖𑒞𑒹𑒏 𑒥𑒲𑒂 𑒪𑒑𑒥𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒍𑒏𑒩 𑒠𑒬𑒼 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒬𑒞 𑒁𑒣𑒢 𑒐𑒹𑒞𑒧𑒹 𑒢𑒻 𑒪𑒑𑒰 𑒣𑒥𑒻 𑒕𑒟𑒱। 𑒥𑒰𑒜𑓃𑒱𑒏 𑒃𑒪𑒰𑒏𑒰 𑒕𑒻 𑒮𑒹 𑒪𑒼𑒏𑒏 𑒐𑒹𑒞 𑒣𑒛𑓃𑒪 𑒩𑒯𑒱 𑒖𑒰𑒃 𑒕𑒻 𑒥𑒱𑒢𑒳 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱𑒏। 𑒮𑒹 𑒮𑒳𑒩𑒖𑒴 𑒦𑒰𑒃𑒏 𑒣𑒛𑓃𑒼𑒮𑒲 𑒍𑒃𑒮𑒿 𑒪𑒰𑒦 𑒅𑒚𑒥𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒏𑒰𑒩𑒝 𑒥𑒰𑒜𑓃𑒱𑒧𑒹 𑒏𑒐𑒢𑒼 𑒏𑒰𑒪 𑒞𑒲𑒢-𑒞𑒲𑒢 𑒥𑒹𑒩 𑒡𑒢𑒩𑒼𑒣𑒢𑒲 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻, 𑒋𑒏 𑒥𑒹𑒩 𑒩𑒼𑒣𑒴 𑒥𑒰𑒜𑓃𑒱 𑒂𑒋𑒪, 𑒠𑒼𑒮𑒩 𑒥𑒹𑒩 𑒩𑒼𑒣𑒴 𑒤𑒹𑒩 𑒥𑒰𑒜𑓃𑒱 𑒂𑒋𑒪। 𑒂 𑒮𑒳𑒩𑒖𑒴 𑒦𑒰𑒃 𑒕𑒟𑒱 𑒞𑒹𑒿 𑒪𑒼𑒏 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒪𑒹𑒪 𑒢𑒱𑒬𑓂𑒔𑒱𑒢𑓂𑒞 𑒩𑒯𑒻𑒋।
𑒂 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒢𑒱𑒬𑓂𑒔𑒱𑒢𑓂𑒞 𑒏𑒩𑒻𑒋।
“𑒩𑒹𑒫𑒰𑒖” 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒱𑒁। 𑒑𑒰𑒧 𑒒𑒩𑒧𑒹 𑒧𑒮𑒼𑒧𑒰𑒞𑒏𑒹𑒿 𑒪𑒼𑒏 𑒛𑒰𑒃𑒢 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒻 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒧𑒳𑒃𑒪𑒰𑒏 𑒥𑒰𑒠 𑒒𑒩𑒰𑒛𑓃𑒲 𑒪𑒹𑒪 𑒍𑒏𑒩𑒰 𑒂𑒑𑒱 𑒠𑒹𑒥𑒰 𑒪𑒹𑒪 𑒅𑒣𑒩𑒾𑓀𑒗 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻। 𑒋𑒞𑓄 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒪𑒹𑒪 𑒖𑒹 𑒥𑒲𑒂 𑒕𑒲𑒙𑒪 𑒑𑒹𑒪 𑒕𑒻 𑒮𑒹 𑒏𑒢𑒹 𑒅𑒔𑓂𑒔 𑒮𑓂𑒞𑒩𑒏 𑒕𑒻। 𑒋𑒞𑓄 𑒧𑒵𑒞𑒏𑒏𑒹𑒿 𑒥𑒹𑒙𑒰 𑒢𑒻 𑒕𑒻 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒣𑒞𑓂𑒢𑒲 𑒂 𑒥𑒹𑒙𑒲 𑒕𑒻। 𑒮𑒹 𑒖𑒐𑒢 𑒧𑒵𑒞𑒏𑒏 𑒦𑒰𑒃 𑒏𑒼𑒯𑒰 𑒅𑒚𑒥𑓄 𑒔𑒰𑒯𑒻𑒋 𑒞𑒿 𑒫𑒱𑒡𑒫𑒰 𑒍𑒏𑒩𑒰 𑒩𑒼𑒏𑒻 𑒕𑒻 𑒂 𑒥𑒹𑒙𑒲𑒏𑒹𑒿 𑒏𑒼𑒯𑒰 𑒅𑒚𑒥𑒻𑒪𑒹 𑒏𑒯𑒻 𑒕𑒻। 𑒂 𑒮𑓀𑒑 𑒏𑒹 𑒠𑒹𑒞 𑒌 𑒢𑒫 𑒩𑒹𑒫𑒰𑒖𑒧𑒹, 𑒖𑒹 𑒂𑒃𑒨𑒹𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰𑒩𑒧𑓂𑒦 𑒦𑒹𑒪 𑒁𑒕𑒱? 𑒞𑒐𑒢 𑒅𑒞𑓂𑒞𑒩𑒼 𑒦𑒹𑒙𑒻𑒋- 𑒢𑒱𑒣𑒳𑒞𑒩𑒰𑒯𑒰 𑒮𑒦।
𑒞𑒯𑒱𑒢𑒰 “𑒏𑒧𑒩𑒳𑒢𑒱𑒮𑒰” 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒁𑒕𑒱। 𑒯𑒮𑒲𑒢𑒰 𑒧𑓀𑒖𑒱𑒪 𑒮𑒢 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒂𑒩𑒼 𑒬𑓂𑒩𑒹𑒭𑓂𑒚 𑒅𑒣𑒢𑓂𑒨𑒰𑒮 𑒌 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 (𑒮𑒲𑒛 𑒮𑓂𑒙𑒼𑒩𑒲)𑒮𑒿 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒢𑒻 𑒥𑒢𑒰 𑒮𑒏𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒏𑒲? 𑒏𑒧𑒩𑒳𑒢𑒱𑒮𑒰𑒏 𑒣𑒱𑒞𑒰 𑒩𑒯𑒧𑒰𑒢। 𑒪𑒯𑒚𑒲𑒏 𑒏𑒰𑒖 𑒖𑒹𑒏𑒰𑒿 𑒠𑒧𑓂𑒧𑒰 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒍𑒏𑒩 𑒮𑒦𑒏 𑒣𑒳𑒬𑓂𑒞𑒻𑒢𑒲 𑒫𑒾𑒮𑓂𑒞𑒳 𑒕𑒪𑒻। 𑒏𑒧𑒩𑒳𑒢𑒱𑒮𑒰𑒏 𑒁𑒥𑓂𑒥𑒰-𑒁𑒧𑓂𑒧𑒲𑒏 𑒖𑒰𑒢 𑒄 𑒠𑒧𑓂𑒧𑒰 𑒪𑒹𑒪𑒏𑒻 𑒂 𑒤𑒹𑒩 𑒏𑒧𑒩𑒳𑒢𑒱𑒮𑒰…
“𑒖𑒱𑒨𑒰 𑒖𑒩𑒋 𑒮𑒑𑒩 𑒩𑒰𑒞𑒱”𑒧𑒹 𑒋𑒛𑓂𑒮𑒏 𑒮𑒧𑒮𑓂𑒨𑒰 𑒂 𑒪𑒱𑒫𑒱𑓀𑒑 𑒩𑒱𑒪𑒹𑒬𑒢𑒏 𑒔𑒩𑓂𑒔 𑒁𑒕𑒱 𑒞𑒿 “𑒠𑒱𑒨𑒰𑒠”𑒧𑒹 𑒣𑒢𑒯𑒲𑒏 𑒆𑒣𑒩𑒮𑒿 𑒔𑒱𑒏𑓂𑒏𑒢 𑒔𑒳𑒢𑒧𑒳𑒢 𑒯𑒹𑒥𑒰𑒏 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒢𑒲𑒔𑒰𑒿𑒮𑒿 𑒐𑒪𑒍𑒠𑒰𑒩 𑒏𑒹𑒢𑒹 𑒖𑒹𑒥𑒰𑒏 𑒫𑒱𑒫𑒩𑒝 𑒠𑒹𑒪 𑒑𑒹𑒪 𑒁𑒕𑒱।
“𑒢𑒣𑒢𑒰” 𑒧𑒹 𑒮𑓂𑒞𑓂𑒩𑒲𑒏 𑒏𑒰𑒖𑒏 𑒮𑓂𑒫𑒩𑒴𑒣 𑒞𑒨 𑒏𑒋𑒪 𑒑𑒹𑒪 𑒕𑒻। 𑒁𑒐𑒢𑒼 𑒖𑒢𑒑𑒝𑒢𑒰 𑒏𑒰𑒪𑒧𑒹 𑒮𑒩𑒏𑒰𑒩 𑒮𑓂𑒞𑓂𑒩𑒲𑒏 𑒒𑒩𑒏 𑒏𑒰𑒖𑒏𑒹𑒿 𑒂𑒧𑒠𑒢𑒲𑒧𑒹 𑒢𑒻 𑒖𑒼𑒛𑓃𑒻𑒞 𑒁𑒕𑒱, 𑒂 𑒌 𑒏𑒟𑒰𑒧𑒹 𑒁𑒢𑓂𑒞 𑒯𑒼𑒃𑒋 𑒖𑒐𑒢 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒮𑓂𑒞𑓂𑒩𑒲𑒏 𑒔𑒩𑓂𑒔 𑒁𑒥𑒻𑒋 𑒖𑒹 𑒢𑒼𑒏𑒩𑒲𑒨𑒼 𑒏𑒩𑒻𑒋 𑒂 𑒒𑒩𑒏 𑒏𑒰𑒖𑒼।
“𑒠𑒹𑒯, 𑒧𑒼𑒢 𑒂 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧” 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒯𑒰𑒮𑓂𑒨 𑒏𑒝𑒱𑒏𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒏𑒼𑒢𑒰 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒧𑒹 𑒣𑒩𑒱𑒫𑒩𑓂𑒞𑒱𑒞 𑒏𑒋𑒪 𑒖𑒰𑒋, 𑒞𑒏𑒩 𑒅𑒠𑒰𑒯𑒩𑒝 𑒁𑒕𑒱। 𑒮𑒥𑒲𑒢𑒰 𑒂 𑒧𑒼𑒯𑒮𑒱𑒢 𑒢𑒰𑒧𑓂𑒢𑒰 𑒣𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒪𑓄 𑒏𑓄 𑒄 𑒔𑒧𑒞𑓂𑒏𑒰𑒩 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒏𑒹𑒢𑒹 𑒕𑒟𑒱।
𑒂𑒃 𑒏𑒰𑒪𑓂𑒯𑒱 𑒖𑒐𑒢 𑒪𑒼𑒏𑒏 𑒖𑒱𑒢𑒑𑒲 𑒑𑒞𑒱 𑒣𑒏𑒛𑓃𑒱 𑒪𑒹𑒢𑒹 𑒁𑒕𑒱 𑒞𑒐𑒢 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰𑒏 𑒧𑒯𑒞𑓂𑒫 𑒥𑒜𑓃𑒱 𑒑𑒹𑒪 𑒁𑒕𑒱। 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒫𑒱𑒯𑒢𑒱 𑒏𑒟𑒰 𑒪𑒹𑒪 𑒮𑒧𑒩𑓂𑒣𑒱𑒞 𑒕𑒟𑒱 𑒂 𑒄 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯 𑒯𑒳𑒢𑒏𑒩 𑒌 𑒮𑒧𑒩𑓂𑒣𑒝𑒏 𑒑𑒳𑒝𑒰𑒞𑓂𑒧𑒏 𑒁𑒦𑒱𑒫𑓂𑒨𑒏𑓂𑒞𑒱 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱।

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