𑒑𑒖𑒹𑒢𑓂𑒠𑓂𑒩 𑒚𑒰𑒏𑒳𑒩- 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 “𑒧𑒰𑒿𑒗 𑒂𑓀𑒑𑒢𑒧𑒹 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒕𑒲”
“𑒧𑒰𑒿𑒗 𑒂𑓀𑒑𑒢𑒧𑒹 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒕𑒲” 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒩𑒳𑒥𑒰𑒃 𑒂 𑒑𑒖𑒪 𑒮𑓀𑒑𑓂𑒩𑒯𑒏 𑒢𑒰𑒧 𑒁𑒕𑒱। 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒂 𑒮𑒹𑒯𑒼 𑒧𑒰𑒿𑒗 𑒂𑓀𑒑𑒢𑒧𑒹! 𑒏𑒲 𑒏𑒥𑒲𑒩𑒏 𑒅𑒪𑒙𑒥𑒰𑒮𑒲𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒦𑒰𑒫 𑒁𑒕𑒱 𑒄 𑒂𑒏𑒱 𑒑𑒖𑒪𑒏 𑒮𑓂𑒫𑒦𑒰𑒫 𑒁𑒕𑒱 𑒄? 𑒢𑒯𑒱𑒨𑒹 𑒄 𑒏𑒥𑒲𑒩𑒏 𑒅𑒪𑒙𑒥𑒰𑒮𑒲𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒦𑒰𑒫 𑒁𑒕𑒱 𑒢𑒯𑒱𑒨𑒹 𑒄 𑒑𑒖𑒪𑒏 𑒮𑓂𑒫𑒦𑒰𑒫 𑒁𑒕𑒱, 𑒄 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒨𑒟𑒰𑒩𑓂𑒟 𑒁𑒕𑒱। 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒮𑒢 𑒏𑒞𑒹𑒏𑒼 𑒪𑒼𑒏 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒕𑒟𑒱, 𑒣𑓂𑒩𑒞𑒱𑒦𑒰 𑒁𑒕𑒻𑒞 𑒯𑒹𑒩𑒰𑒋𑒪 𑒕𑒟𑒱। 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩 𑒮𑒦𑒙𑒰 𑒠𑒼𑒐 𑒁𑒣𑒢𑒹𑒣𑒩 𑒪𑓄 𑒪𑒻 𑒕𑒟𑒱।𑒂𑒥 𑒞𑒿 𑒧𑒰𑒿𑒗 𑒂𑓀𑒑𑒢𑒧𑒹 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒕𑒲
𑒁𑒣𑒢𑒹 𑒔𑒰𑒪𑒱𑒮𑒿 𑒂𑒥 𑒥𑒹𑒩𑒰 𑒑𑒹𑒪𑒯𑒳𑒿 𑒯𑒧
𑒂 𑒮𑒋𑒯 𑒏𑒰𑒩𑒝 𑒁𑒕𑒱 𑒖𑒹 𑒍 𑒢𑒼𑒩𑒏 𑒮𑒳𑒐 𑒦𑒼𑒑𑓄 𑒪𑒰𑒑𑒻 𑒕𑒟𑒱।
𑒢𑒼𑒩 𑒞𑒿 𑒐𑒮𑒻𑒋 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒧𑒖𑒰 𑒮𑒢 𑒪𑒑𑒻𑒋
𑒏𑒹𑒯𑒢 𑒢𑒲𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧𑒏 𑒠𑒳𑒐 𑒪𑒹𑒪𑒯𑒳𑒿 𑒯𑒧
𑒥𑒛𑓃𑒏𑒰 𑒐𑒰𑒡𑒱𑒧𑒹 𑒐𑒮𑒻 𑒕𑒟𑒱 𑒂 𑒞𑒯𑒴 𑒪𑒹𑒪 𑒁𑒣𑒢𑒹𑒏𑒹𑒿 𑒠𑒼𑒐𑒲 𑒧𑒰𑒢𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒕𑒼𑒙𑒏𑒼 𑒚𑒹𑒮𑒮𑒿 𑒢𑒻 𑒮𑒥𑒏 𑒪𑒹𑒪𑒯𑒳𑒿 𑒯𑒧
𑒞𑒿𑒋 𑒥𑒛𑓃𑒏𑒰 𑒐𑒰𑒡𑒱𑒧𑒹 𑒐𑒮𑒱 𑒑𑒹𑒪𑒯𑒳𑒿 𑒯𑒧
𑒞𑒿 𑒏𑒲 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧𑒏 𑒧𑒯𑒞𑓂𑒫 𑒥𑒱𑒮𑒩𑒱 𑒑𑒹𑒪 𑒕𑒟𑒱, 𑒢𑒻 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧 𑒞𑒿 𑒮𑒦𑒏𑒹𑒿 𑒔𑒰𑒯𑒲।
𑒮𑒦 𑒅𑒧𑒹𑒩 𑒫𑒩𑓂𑒑𑒏𑒹𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧 𑒔𑒰𑒯𑒲
𑒧𑒩𑒱𑒞𑒼 𑒡𑒩𑒱 𑒏𑒳𑒬𑒪-𑒕𑒹𑒧 𑒔𑒰𑒯𑒲
𑒂 𑒯𑒱𑒢𑒏𑒰 𑒖𑒿 𑒏𑒼𑒮 𑒠𑒴-𑒏𑒼𑒮 𑒧𑒰𑒞𑓂𑒩 𑒔𑒪𑒥𑒰𑒏 𑒩𑒯𑒱𑒞𑒢𑓂𑒯𑒱 𑒞𑒐𑒢 𑒢𑒹, 𑒯𑒱𑒢𑒏𑒰 𑒞𑒿 𑒥𑒯𑒳𑒞 𑒂𑒑𑒰𑒿 𑒥𑒜𑓃𑒥𑒰𑒏 𑒕𑒢𑓂𑒯𑒱 𑒞𑒹𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧 𑒔𑒰𑒯𑒲।
𑒛𑒰𑒯𑒮𑒿 𑒣𑒯𑒳𑒿𑒔𑒥 𑒏𑒼𑒮-𑒠𑒴 𑒏𑒼𑒮
𑒂𑒑𑒴 𑒥𑒜𑓃𑒥𑒰 𑒪𑒹𑒪 𑒞𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒹𑒧 𑒔𑒰𑒯𑒲
𑒂 𑒮𑒹 𑒮𑒦 𑒚𑒰𑒧। 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒯𑒧𑒩 𑒮𑓀𑒑𑒲 𑒕𑒪, 𑒋𑒏𑒙𑒰 𑒣𑒩𑒲𑒏𑓂𑒭𑒰𑒧𑒹 𑒙𑒰𑒣 𑒏𑒹𑒪𑒏 𑒞𑒿 𑒥𑒰𑒖𑒪- 𑒢𑒻 𑒏𑒧𑓂𑒣𑒲𑒙 𑒏𑒩𑒻 𑒕𑒲 𑒞𑒿 𑒢𑒻 𑒏𑒩𑒻 𑒕𑒲, 𑒂 𑒏𑒩𑒻 𑒕𑒲 𑒞𑒿 𑒙𑒰𑒣 𑒏𑒩𑒻 𑒕𑒲। 𑒍 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩 𑒢𑒻 𑒕𑒪 𑒖𑒿 𑒩𑒯𑒱𑒞𑒋 𑒞𑒿 𑒁𑒯𑒱𑒢𑒰 𑒪𑒱𑒐𑒱𑒞𑒋 𑒖𑒹𑒢𑒰 𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲 𑒪𑒱𑒐𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒥𑒠𑒩𑒲 𑒪𑒰𑒠𑒪 𑒩𑒯𑒻 𑒏𑒼𑒢𑒼 𑒥𑒰𑒞 𑒢𑒻
𑒖𑒠𑒱 𑒥𑒩𑒮𑒲 𑒞𑒿 𑒥𑒩𑒱𑒮𑒰𑒞 𑒥𑒢𑒱 𑒏𑓄
𑒂 𑒢𑒖𑒩𑒱-𑒢𑒖𑒩𑒱𑒏 𑒤𑒹𑒩 𑒂 𑒯𑒰𑒤 𑒑𑓂𑒪𑒰𑒮 𑒤𑒳𑒪, 𑒄 𑒠𑒳𑒢𑒴 𑒙𑒰 𑒁𑒫𑒡𑒰𑒩𑒝𑒰 𑒌 𑒩𑒴𑒣𑒧𑒹 𑒍 𑒩𑒰𑒐𑒻 𑒕𑒟𑒱:
𑒢𑒖𑒩𑒱 𑒅𑒚𑒰 𑒏𑓄 𑒠𑒹𑒐𑒥𑒻 𑒞𑒿 𑒐𑒰𑒪𑒲 𑒥𑒳𑒗𑒰𑒋𑒞 𑒄 𑒠𑒳𑒢𑒱𑒨𑒰𑒿
𑒢𑒖𑒩𑒱 𑒑𑒩𑒰 𑒏𑓄 𑒠𑒹𑒐𑒥𑒻 𑒞𑒿 𑒮𑒦 𑒠𑒹𑒐𑒰𑒋𑒞 𑒄 𑒠𑒳𑒢𑒱𑒨𑒰𑒿
𑒮𑒧𑒰𑒪𑒼𑒔𑒢𑒰 𑒂 𑒫𑒱𑒩𑒼𑒡 𑒠𑒳𑒢𑒴𑒏𑒹𑒿 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩 𑒢𑒲𑒏 𑒧𑒰𑒢𑒻 𑒕𑒟𑒱।
𑒣𑒏𑓂𑒭𑒡𑒩𑒮𑒿 𑒩𑒰𑒐𑒴 𑒁𑒣𑒢𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒥𑒔𑒰 𑒏𑓄
𑒫𑒱𑒣𑒏𑓂𑒭𑒲𑒏 𑒮𑒦 𑒥𑒰𑒞𑒏𑒹𑒿 𑒢𑒻 𑒞𑒲𑒞 𑒥𑒳𑒗𑒴
𑒧𑒯𑒑𑒰𑒃𑒮𑒿 𑒪𑒼𑒏 𑒥𑒹𑒏𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒞𑒏𑒩𑒰 𑒪𑒹𑒪 𑒗𑒳𑒧𑒻𑒞 𑒧𑒔𑒰𑒢𑒏 𑒥𑒱𑒧𑓂𑒥 𑒠𑒹𑒐𑒴:
𑒧𑒯𑒑𑒰𑒃𑒮𑒿 𑒐𑒴𑒢𑒹 𑒢𑒻 𑒯𑒛𑓂𑒛𑒱𑒨𑒼 𑒮𑒳𑒐𑒰𑒃𑒋
𑒂𑒥 𑒗𑒳𑒪𑒻𑒞 𑒧𑒔𑒰𑒢 𑒮𑒢 𑒪𑒑𑒻𑒋 𑒪𑒼𑒏
𑒂 𑒄 𑒅𑒪𑒙𑒥𑒰𑒮𑒲 𑒠𑒹𑒐𑒴, 𑒥𑒱𑒧𑓂𑒥 𑒢𑒫, 𑒦𑒰𑒫𑒢𑒰 𑒬𑒰𑒬𑓂𑒫𑒞:
𑒯𑒧 𑒞𑒿 𑒒𑒴𑒩 𑒖𑒛𑓃𑒹𑒪𑒾𑓀 𑒑𑒩𑓂𑒧𑒲 𑒧𑒰𑒮𑒧𑒹
𑒧𑒱𑒗𑒰𑒋𑒪 𑒂𑒑𑒱𑒮𑒿 𑒣𑒮𑒰𑒯𑒲 𑒏𑒯𑒱𑒨𑒼
𑒄 𑒏𑒼𑒢 𑒑𑒼𑒭𑓂𑒚𑒲 𑒕𑒲 𑒖𑒹 𑒁𑒕𑒱 𑒏𑒼𑒢 𑒣𑒞𑓂𑒩𑒱𑒏𑒰𑒏 𑒣𑓂𑒩𑒰𑒨𑒼𑒖𑒱𑒞 𑒔𑒱𑒙𑓂𑒚𑒲 𑒕𑒣𑒥𑒰𑒏 𑒩𑒰𑒖𑒢𑒲𑒞𑒱 𑒮𑒢, 𑒄 𑒩𑒳𑒥𑒰𑒃 𑒠𑒹𑒐𑒴:
𑒧𑒼𑒢 𑒦𑒋 𑒅𑒚𑒪 𑒠𑒳𑒐𑒱𑒞 𑒯𑒼𑒯𑒏𑒰𑒩𑒲𑒮𑒿
𑒅𑒚𑒱 𑒠𑒩𑓂𑒬𑒏 𑒦𑒰𑒑𑒪 𑒧𑒰𑒩𑒰𑒧𑒰𑒩𑒲𑒮𑒿
𑒣𑓂𑒩𑒰𑒨𑒼𑒖𑒏 𑒞𑒿 𑒣𑒟𑒢𑒹 𑒩𑒯𑒪 𑒏𑒰𑒢 𑒁𑒣𑒢
𑒏𑒩𑓂𑒞𑒰 𑒠𑒹𑒐𑒰𑒩 𑒦𑒹𑒪𑒰 𑒖𑒞𑒱𑒨𑒰𑒩𑒲𑒮𑒿
𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒥𑒰𑒜𑓃𑒱𑒏 𑒫𑒱𑒭𑒨 𑒖𑒿 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒑𑒖𑒪𑒏 𑒁𑓀𑒑 𑒢𑒻 𑒥𑒢𑒋 𑒞𑒿 𑒥𑒳𑒗𑒴 𑒖𑒹 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩 𑒮𑒧𑒰𑒖𑒮𑒿 𑒏𑒞𑒱𑒂𑒋𑒪 𑒕𑒟𑒱। 𑒧𑒳𑒠𑒰 𑒮𑒹 𑒢𑒻 𑒁𑒕𑒱।
𑒡𑒰𑒩 𑒋𑒐𑒢 𑒡𑒩𑒱 𑒞𑒿 𑒅𑒤𑒰𑒢𑒣𑒩 𑒁𑒕𑒱
𑒪𑒼𑒏 𑒞𑒰𑒏𑒰-𑒞𑒰𑒏𑒲 𑒏𑒩𑒻𑒞 𑒥𑒰𑒢𑓂𑒯𑒣𑒩 𑒁𑒕𑒱
𑒂𑒥 𑒣𑒛𑓃𑒰𑒃𑒢 𑒒𑒙𑒪 𑒁𑒕𑒱, 𑒧𑒱𑒟𑒱𑒪𑒰𑒮𑒿 𑒣𑒛𑓃𑒰𑒃𑒢। 𑒥𑒰𑒯𑒩𑒲 𑒪𑒼𑒏 𑒥𑒱𑒯𑒰𑒩𑒲𑒏𑒹𑒿 𑒧𑒖𑒠𑒴𑒩 𑒂 𑒬𑓂𑒩𑒧𑒱𑒏𑒏 𑒣𑒩𑓂𑒨𑒰𑒨𑒫𑒰𑒔𑒲 𑒧𑒰𑒢𑒱 𑒪𑒹𑒢𑒹 𑒕𑒟𑒱। 𑒞𑒯𑒴𑒣𑒩 𑒑𑒖𑒪𑒏𑒰𑒩𑒏 𑒏𑒪𑒧 𑒔𑒪𑒪 𑒁𑒕𑒱।
𑒥𑒱𑒯𑒰𑒩𑒏 𑒮𑒱𑒩𑒐𑒰𑒩𑒲 𑒥𑒠𑒪𑒱 𑒑𑒹𑒪 𑒮𑒢 𑒪𑒑𑒻𑒋 𑒂𑒥
𑒬𑓂𑒩𑒧𑒱𑒏 𑒒𑒙𑒪𑒰𑒮𑒿 𑒏𑓀𑒣𑒢𑒲-𑒧𑒰𑒪𑒱𑒏 𑒪𑒑𑒻 𑒥𑒱𑒯𑒰𑒩𑒲 𑒖𑒏𑒰𑒿
𑒧𑒳𑒢𑓂𑒢𑒰𑒖𑒲𑒏 𑒑𑒖𑒪 𑒂 𑒩𑒳𑒥𑒰𑒃 𑒮𑓂𑒫𑒔𑓂𑒕𑒢𑓂𑒠 𑒩𑒴𑒣𑒮𑒿 𑒥𑒧𑒏𑒼𑒪𑒰 𑒖𑒹𑒏𑒰𑒿 𑒥𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱। 𑒬𑒹𑒩𑒏 𑒮𑓂𑒫𑒦𑒰𑒫 𑒯𑒼𑒃 𑒕𑒻 𑒖𑒹 𑒖𑒿 𑒍𑒏𑒩𑒰 𑒢𑒲𑒏𑒮𑒿 𑒏𑒯𑒪 𑒖𑒰𑒋 𑒞𑒿 𑒂𑒯-𑒥𑒰𑒯 𑒪𑒼𑒏 𑒏𑒩𑒱𑒞𑒹 𑒁𑒕𑒱। 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲𑒧𑒹 𑒑𑒖𑒪-𑒩𑒳𑒥𑒰𑒃 𑒖𑒃 𑒞𑒩𑒯𑒹𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒮𑒰𑒩𑒱𑒞 𑒦𑓄 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒮𑒹 𑒠𑒹𑒐𑒱 𑒏𑓄 𑒨𑒋𑒯 𑒪𑒰𑒑𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒖𑒹 𑒖𑒞𑒹𑒏 𑒄 𑒫𑒱𑒡𑒰 𑒁𑒣𑒢𑒰𑒏𑒹𑒿 𑒣𑒮𑒰𑒩𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 𑒞𑒃𑒮𑒿 𑒥𑒹𑒬𑒲 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒪𑒰𑒦𑒰𑒢𑓂𑒫𑒱𑒞 𑒦𑓄 𑒣𑒮𑒩𑒱 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।