भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Friday, December 05, 2008
गामक गप
आउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
हम कोनो अहां के
गणित आ समयक
हिसाब-किताब नहि
बुझा रहल छी
हम जोइर रहल छी
कतेक समय सं
गाम नहि गेलहु
आधा युग बीत गेल गाम गेला
जहि दिवस स
बाहरि अलों
शहर के रंग-ढ़ंग मे
रंगहि गेलों
सोचैत छी
हम एतहि बदलि गेलों
तहि गाम
कतेक बदलल होइत
छोटका काकाक द्वार पर
आबो लागैत हेतै घूर
दलान पर बैठकी मे
होइत हेत सभ शामिल
सूर्य उगलाक स पहिल
केए सभ जाइत हेतै लोटा लकए
दतमैन स मुंह
आबो धोइत हैत कि नहि गामक लोक
पांच बरख मे
सरकार बदलि जाइत छैक
गामक लोकक मे
सेहो परिवर्तन भेल हेता
लकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
ई सभ सोचैत काल
हम एक-एक गप पर तुलना करैत छी शहर से
गाम आउर शहर मे फ़र्क भ गेल छैक
जमीन आ आसमानक
मुदा,
सब कुछ गाम मे
बदैल गेल
नहि बदलल छैक त आत्मीयता.
10 comments:
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
उत्पल भैया अपनेक कविता पढ़ी कें सच मुच में गामक याद आइब गेल ....
ReplyDeleteलकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
बहुत निक प्रस्तुति अहिना धुरजार लिखैत रहू !!
विनीत उत्पल जी, मैथिल आर मिथिलामे अहाँक आगमन एहि ब्लॉगकेँ आर सुवासित बना देलक। अहाँसँ आर ढेर रास रचनाक भविष्यमे सेहो आशा रहत।
ReplyDeleteएक युग मे होइत छैक बारह बरख
ReplyDeleteआउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
hamar hridayak halकतेक समय सं
गाम नहि गेलहु kona bujhi gelahu ahan vinit ji, ati sundar
ee blog te din par din chandrama jeka badhal ja rahal achi, kichu aan blog me chandramak ghatanti dekhal ja rahal achi, muda etay mithila aar maithil blog me poornima sada rahat se vishvas achhi,
ReplyDeleteपांच बरख मे
ReplyDeleteसरकार बदलि जाइत छैक
गामक लोकक मे
सेहो परिवर्तन भेल हेता
लकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि bad nik
ee blog nirantar rachnatmak aa navin rachna se poorna bujhi me abait achhi, matik sugandhik sang
ReplyDeleteutkriskt rachna sabhak bhadar achi ee site, parishramak parinam sarvada nik hoit achi, rang roop me seho utkrishta aayal acchi rachane jeka.
ReplyDeletegam gharak yadi aani delahu
ReplyDeleteबहुत निक पृसतुति ---
ReplyDelete-एक युग मे होइत छैक बारह बरख
आउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
बहुत-बहुत धन्यवाद , मैथिल और मिथिला में------
बड्ड नीक कविता लागल
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